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मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee)

क्या आपको कभी मधुमक्खी ने काटा है? क्या आप जानना चाहते हैं की मधुमक्खी विष क्या होता है? मधुमक्खी के काटने पर इसका उपचार(treatment) कैसे करें? ये जानने के नीचे लिखे content आपके लिए बहुत उपयोगी होने वाला है.

मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee)– 



भारतवर्ष में मधुमक्खियों की पाँच जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें एपिस डार्सेटा (Apis dorsata), एपिस इंडिका (Apis indica), एपिस फ्लोरिया (A. flora), मेलिपोना इरिडिपेन्निस (Melipona iridipennis) तथा एपिस मेलिफेरा (A. mellifera), इन मधुमक्खियों में बहुरूपता (Polymorphism) एवं श्रम विभाजन (Divison of labour) स्पष्ट एवं अच्छी विकसित अवस्था में पाया जाता है। 

बहुरूपी प्रकारों की रानी (Oueen), एवं श्रमिक (Workers) मधुमक्खियों में दंशक उपकरण (Sting ap paratus) पाया जाता है। दंश उपकरण में एक जोड़ी अम्लीय विष ग्रंथि (Acid venom gland) एक क्षारीय ग्रंथि (AI kaline gland) एक मजबूत पेशीय बल्ब तथा काइटिन युक्त डंक (Chtinized sting) पाए जाते हैं ।

मधुमक्खी विष (Honey bee poison)  

मधुमक्खी के विष में हिस्टामीन (Histamine) एवं मैलिटिन (Melli tine) नामक विशिष्ट प्रोटीन पाए जाते हैं। इन प्रोटीन्स के अतिरिक्त हायलूरोनाइडेज़ (Hyluronidase), फॉस्फो लाइपेज (Phosphohlipase) ए एवं बी, ऐपामीन (Apa mine) एवं पेप्टाइडेज (Peptidaze) पाए जाते हैं । 

विष के लक्षण (Symptoms of Venom ) 

मधुमक्खी एवं बर्र कीट जब किसी भी मनुष्य को काटते हैं तब डंक की सहायता से वह घाव बनाता है और घाव के अंदर गहराई तक जाकर यह डंक विष को अंदर पहुँचाने में सहायता करता है। विष के शरीर में प्रवेश करने पर निम्नलिखित लक्षण परिलक्षित होते हैं.  

  1.  काटने वाले भाग में दर्द, लालिमा तथा सूजन दिखाई देता है। 
  2.  दर्द युक्त एवं कभी-कभी घातक अभिक्रियाएँ होती 
  3.  मुख, गले, चेहरे, गर्दन या भुजाओं पर लेरिंग्स (Larynx) या ग्रसनी (Pharynx) का सूजन तथा अवरोध निर्मित हो जाता है।

मक्खियों के द्वारा अनेकों डंक के प्रहार से पेट में विसंगति एवं उल्टी होना तथा डायरिया के साथ मूर्छा होने की क्रिया दिखाई देती है। यदि दंश घातक नहीं होता है, तब इसका प्रभाव 24 घंटों तक रहता है। तीव्र अभिक्रियाओं की स्थिति से 2-15 मिनट में मृत्यु हो सकती है।

उपचार (Treatment) 

  1.  डंक को शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए तथा वहाँ पर चीरा लगाकार टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए । 
  2.  स्थानीय भाषा में दंश पर एवं चारों ओर एन्टीहिस्टामिन (Antihistamine) औषधि का उपयोग करना चाहिए। 
  3.  बहुगुणित डंक दंश में हाइड्रोकार्टिसोन (Hydro cortisone) को अंतःशिरायी (Intravenosuly) रूप से देने से लाभ होता है। 
  4.  पित्ती एवं सूजन में कैल्सियम को अंतः शिरायी रूप (Intravenously) देने से लाभ होता है ।
इस पोस्ट में हमने मधुमक्खी के विष, मधुमक्खी के काटने से क्या होता है उसके के क्या उपाय हैं के बारे में जाना।

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ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

जीवन की कल्पना श्वसन के बिना नहीं हो सकती है। श्वसन में मनुष्य ऑक्सीजन ग्रहण करता है यह ऑक्सीजन उसे पेड़ पौधों से प्राप्त होता है। अनेक प्रकार के पेड़ पौधे एक स्थान पर होते हैं तो उसे वन कहते हैं। वनों में कई प्रकार के वन होते  हैं। ऊष्ण कटिबंध वन उनमे से एक प्रकार है। जिसके बारे में हम इस पोस्ट में जानने वाले हैं।

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

ऐसे वन उष्ण एवं गर्म जलवायु वाले भागों में पाये जाते हैं। यहाँ पर अत्यंत घने, ऊँचे, वृक्ष, झाड़ियाँ एवं काष्ठीय आरोही या लाइनस पौधे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों, कटीले वृक्षों वाले जंगलों एवं शुष्क क्षेत्रों में कहीं-कहीं पाये जाते हैं। इस प्रकार उष्ण कटिबंधीय वन दो प्रकार के होते हैं 

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests), 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests) 

इन्हें भी जानें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests):- ऐसे बनों में वर्षा अधिक होने के कारण आर्द्रता (Moisture) काफी अधिक होती हैआर्द्रता के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं--- 

1. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबाहार वन (Tropical wet evergreen forests):- 250 सेमी वार्षिक वर्षा से अधिक वर्षा दर वाले भारतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के वन स्थित हैं। इस प्रकार के वन भारत के दक्षिणी हिस्सों मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ भाग तथा उपरी हिस्सों मुख्यत : पश्चिम बंगाल, असम एवं उड़ीसा के कुछ भागों में पाये जाते हैं। इन वनों के वृक्षों की ऊँचाई 40-60 मीटर से अधिक होती है। इस वन के वृक्ष सदाबहार प्रवृत्ति के तथा चौड़ी पत्ती वाले होते हैं। यहाँ काष्ठीय लता तथा उपरिरोही (Epiphytes) की बहुतायत होती है। 

उदाहरण- साल या शोरिया (Shorea), डिप्टेरोकार्पस (Dipterocarpus), आम (Mangifera), मेसुआ (Mesia), होपिया (Hopea), बाँस, इक्जोरा (Ixora), टायलोफोरा (Tylophora) आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय नम अर्द्ध-सदाबहार वन (Tropi cal moist semi-evergreen forests):- इन वनों का विस्तार 200-250 सेमी तक वार्षिक वर्षा स्तर वाले क्षेत्रों में मिलता है। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर, बंगाल एवं पूर्वी उड़ीसा तथा आसाम में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में हैं। इन वनों में कुछ पर्णपाती वृक्षों की जातियाँ भी पायी जाती हैं, इसलिए इन्हें अर्द्ध सदाबहार वन कहते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले कुछ पौधे पर्णपाती तो होते हैं, लेकिन पत्ती रहित अवस्था अल्पकालिक होती है। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया पैनीकुलाटा (Terminalia paniculata) साल (Shorea robhusta), कचनार (Bauhinal), आम (Mengiphera); मैलोटस (Mallotus), टिनोस्पोरा (Tinospora), एण्ड्रोपोगॉन (Andropogon), आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical most deciduous forests):- औसतन 100 से 200 सेमी वर्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस प्रकार के वन मिलते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार अण्डमान द्वीप समूह, मध्य प्रदेश के जबलपुर, मण्डला, छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तरगुजरात के डाँग, महाराष्ट्र के थाने, रत्नागिरी, कर्नाटक के केनरा, बंगलौर एवं पश्चिमी क्षेत्र, तमिलनाडु के कोयम्बटूर तथा निलंबुर व चापनपाड़ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जाते हैंये वन उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगालआसाम, हिमांचल प्रदेश आदि राज्यों के कुछ भागों में पाये जाते हैंदक्षिणी आर्द्र पर्णपाती वनों की मुख्य वृक्ष सागौन (Teak) है, जबकि उत्तरी आई पर्णपाती वन की प्रमुख वृक्ष साल है। सागौन वन में कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के कुछ वन क्षेत्रों में डायोस्पायरॉस (Dlospyros)जिजिफस (Zizyphus)कैसिया (Cas sia)स्टिरियोस्पर्मम (Stereospermum), ऐल्बिजिया (Albizzia), सायजिजियम (Syzygium), सेड्रेला (Cedrella) साथ-साथ मिश्रित रहते हैं।

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समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन(Littoral and Swamp Forest):- समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन क्षेत्र भारत के 67.00 वर्ग किलोमीटर में फैला के वन समुद्र तट पर उदाहरणतः पूर्वी व पश्चिमी समुद्र तट तथा बड़ी-बड़ी नदियों, जैसे- गंगा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी के डेल्टाओं के ज्वारीय अनूपों में पाये जाते हैं। ये क्षेत्र नरम गाद के बने होते हैं, जिनमें राइजोफोरा (Rhizophora), सोन्नैरेशिया (Sonneratia) इत्यादि के मैंग्रोव वन उगते हैं। इस जलाक्रान्त पारिस्थितियों में वानस्पतियों के क्षय से दुर्गन्ध आने लगती है। अपेक्षाकृत अन्तस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ भूमि पर ज्वारीय जल आता रहता है, ज्वारीय वन (Tidal forests) पाये जाते हैं। यहाँ हेरिशियेरा (Haritiera), वेस्पेशिया (Thespesia), वाड़ (Palm) विभिन्न जातियाँ तथा अन्य क्षूप उगते हैं। 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests):- ऐसे वनों में औसत वर्षा अत्यंत कम होती है, जिसके कारण यहाँ का तापमान काफी अधिक हो जाता है। पौधों के प्रकृति के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं 

1. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical dry deciduous forests):- औसत 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले भारतीय क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन मिलते हैं तथा समस्त भारतवर्ष के वन क्षेत्र के 1/3 भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा भारतीय प्रायद्वीप के अधिकांश भागों में हैं। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया टोमेन्टोसा (Terminalia tomentosa), इमली (Temarindus indica), साल (Shorea robhnusia), बेल (Aegle marmelos), बेर आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय कटीले वन (Tropical thorn forests):- ये वन 25-70 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में पर्णपाती वनों के स्थान पर कटीले वन पाये जाते हैं। 

उदाहरण- अकेशिया निलोटिका, अ. सुन्द्रा, प्रोसेपिस सिनेरिया, बेर (Zicyphus), नागफनी (Opum tia) बारलेरिया, यूफोर्बिया की प्रजातियाँ हिन्दरोपोगॉन लेक्टाना आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Tropi. cal thorn evergreen forests):- इस प्रकार के वन क्षेत्रों में 75-100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस प्रकार के वन तमिलनाडु के पूर्वी भाग में, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के समुद्री किनारों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के वनों में वृक्षों की पत्तियाँ चर्मिल (Coriaceous) होती है। इस क्षेत्र में बाँस का अभाव, लेकिन घास पाया जाता है। वृक्ष की ऊँचाई 9-15 मीटर तक होती है। सबसे ऊचे वृक्षों में स्ट्रिक्नॉस नक्स वोमिका (Strychnos mcx vomica), सैम्पिडस इमार्जिनेटस (Spindus emarginatus) में कैरिसा कैरान्डास (carissa carandas), इक्जोरा पार्विफ्लोरा (xara parviflora) आदि।

इस पोस्ट में हमने ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) के बारे में जाना। जो वनों के एक प्रकार में से एक है।

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स्तनधारियों के श्वसन (Mammalian respiration)

हेलो दोस्तों , इस आर्टिकल में हम स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जानने वाले हैं। आपने श्वसन तंत्र के बारे में सुना होगा और आप जानते भी होंगे क्यूंकि मनुष्य को जीवित रहने के लिए सबसे जरुरी सांस लेना है। और श्वसन तंत्र श्वास से सम्बन्धित है। अगर आप श्वसन तंत्र के बारे में नहीं भी जानते हैं तो आपको श्वसन तंत्र के बारे में जरुर जानना चाहिए।  इस आर्टिकल में स्तनधारियों के श्वसन के बारे में जानकारी दी जा रही है। 

स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)


स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)

स्तनधारियों सहित समस्त स्थलीय तथा कुछ जलीय वर्टीब्रेट प्राणीयों में वायवीय श्वसन हेतु मुख्य श्वसनांग एक जोड़ी फेफड़े तथा श्वसन मार्ग बाह्य नासाछिद्र, नासिका वेश्म (Nasal number)अतनासाचिद्र (Internal nares) ग्रसनी (Pharynx), श्वासनलिका (Trachea) एवं श्वसन नलिकाएँ श्वसन तंत्र का निर्माण करते हैं। स्तनियों में एक जोड़ी कोमल गुलाबी, लचीली सक्षम तथा स्पंजी फेफड़े वक्षीय गुहा के मिडियास्टिनम के दोनों ओर एक-एक पाये जाते हैं। 

श्वसन मार्ग (Respiratory path):- श्वसन मार्ग वातावरण O युक्त गैसों को फेफड़े तक ले जाने तथा फेफड़े से CO, युक्त गैसों को वापस शरीर से बाहर निकालने का कार्य करते हैं ये अंग निम्नानुसार होते हैं।

इन्हें भी जानें- 100+ जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi)

(i) बाह्य नासाछिद्र (External nares) - मुख में ठीक एक जोड़ी बाह्य नासाछिद्र उपस्थित होते हैं जो आपस में नासा पट्ट (Nasal septam) द्वारा पृथक होते हैं।

(ii) नासिका वेश्म (Nasal chamber):- प्रत्येक बाह्य नाशाछिद्र एक नालिकाकार श्वसन मार्ग में खुलती है जो प्रछाण (Vestibule) व प्राण भाग (Olfactory) दो भागों में विभक्त होती है और ग्रसनी के पृष्ठ भाग नेसोफैरिंग्स (Nassopharynx) में खुलती है नासिका वेश्म या नासा मार्ग में कठोर रोम या वाइब्रिसी (Vibrisae) पाये जाते हैं जो कुल तथा अन्य कणों को रोकने का कार्य करते हैं जबकि नासा मार्ग के श्लेष्मीकला (Mucous membrane ) को आवरण मार्ग को नम बनाये रखने तथा बाह्य वायु के तापमान को शरीर के आंतरिक तापमान के बराबर लाने का कार्य करते हैं।

(iii) ग्रसनी (Phanynx):- यह श्वसन तंत्र तथा आ नाल का संयुक्त भाग होता है। जिसमें तीन भाग नेसोफेक्ि ओरोफैरिक्स एवं लैरिंगोफैरिक्स में होते हैं। इसके नेसोफैरिक्स भाग में आंतरिक नासाछिद्र खुलते हैं तथा निचला भाग लैरिंगोफैरिक्स में एक कष्ठ या लैरिक्स (Larynx) नामक संरचना पायी जाती है जो थायरॉइड (Thyroid), क्रिकॉयड (Cricoid) तथा एरिटिनॉयड (Arytenoid) नामक उपास्थियों से मिलकर बनी होती है। लैरिंक्स से वायु के एक निश्चित दाब के साथ बहाव से स्तनियों में विभिन्न प्रकार के आवाज उत्पन्न होते हैं तथा मनुष्य में भाषा का विकास हुआ है। 

(iv) श्वासनलिका (Trachea):- यह लैरिक्स से जुड़ी हुई एक अर्द्धपारदर्शक उपस्थित नलिका है जो ग्रीवा से न्यलकर वृत्तीय गुहा में पहुंचती है और दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है जिन्हें श्वासनलिकाएँ या ब्रोंकाई Bronchiकहते हैं। प्रत्येक ब्रोंकाई अब अपने ओर के फेफड़े में प्रवेश करती है और फेफड़े के भीतर छोटी-छोटी शाखाओं में विभक्त होकर श्वसनीय वृक्ष (Bronchial tree) का निर्माण करती है।

सरीसृपों में श्वासनाल की लम्बाई ग्रीवा या गर्दन की लम्बाई के अनुसार अलग-अलग होती है। पत्तियों में यह असामान्य रूप से अधिक लम्बी होती है तथा कॉर्टिलेजिनस ट्रेकियल रिंग्स (Cartilaginous tracheal rings) द्वारा घिरी रहती है एवं कैल्सीफाइड तथा आसीफाइड होती है। मुख्य श्वसनांग या फेफड़े (Main respiratory organs or lung) स्तनियों में फेफड़े अत्यंत विकसितस्पंजी तथा प्रत्यास्थ संरचना होती है जो बाहर से कई पालियों में स्पष्ट रूप से विभाजित होती है। मनुष्य तथा सभी स्तनियों के बाँये फेफड़े में समान्यतः 04 पाली (Lobes) होती है

जबकि दाँये फेफड़े में मनुष्यों में तीन पाली व खरगोश में 04 पाली होती हैबाँये फेफड़े का अगला पिण्ड छोटा होता है तथा इसे बाँया अग्र पिण्ड (Left anterior lobe) और पीछे वाला पिण्ड लगभग तीन गुना बड़ा होता है तथा उसे वाम पश्च पिण्ड (Left posterior lobe) कहते हैं। दाँये फेफड़े के पिण्ड (Lobes) क्रमशः आगे से पीछे की ओर इस प्रकार होते हैं

1. अग्र एजाइगस पिण्ड (Anterior Azygos Lobe):- यह सबसे छोटा होता है। 

2. दायाँ अग्र पिण्ड (Right posterior Lobe):- यह पहले से कुछ बड़ा होता है।

3. दायाँ पश्च पिण्ड (Right Posterior Lobe):- यह सबसे बड़ा होता है। 

4. पश्च एजाइगस (Posterior azygos):- यह अनं एजाइगस से कुछ बड़ा होता है। स्तनी का फेफड़ा काफी मात्रा में गैसों के आदान-प्रदान के लिए बना होता है


स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)


स्तनियों के फेफड़ा एक जटिल शाखित श्वसन वृत्त के समान होते हैं जो भीतरी ब्रोंकस के बारबार विभाजन से बनती है। विभाजित पतली शाखाएँ ब्रोंकियोल्स कहलाती है, ब्रॉकियोल्स विभाजित होकर एल्वियोलर डक्ट बनाती है। प्रत्येक एल्वियोलर डक्ट के अन्तिम सिरे फूलकर छोटे-छोटे वायुकोष या एल्विओलाई (Air sacs or Alveoli) बनाते हैं। एल्विओलाई के चारों ओर पतली रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है।

फेफड़े के चारों ओर एक दोहरे पर्त वाली झिल्ली प्लूरा (Pluera) पायी जाती है। प्लूरा की एक पर्व फेफड़े से तथा दूसरी पतं वृत्तीय गुहा (Thorasic cavity) की भीतरी सतह से चिपकी रहती हैप्लूरा के दोनों स्तरों के मध्य एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिससे फेफड़ों के फूलने व सिकुड़ने पर रगड़ नहीं होती है।

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सहायक श्वसनांग (Accessory Respiratory organ):- यद्यपि जलीय कशेरुकियों के मुख्य श्वसनांग गिल्स और स्थलीय कशेरुकियों के फेफड़े होते हैं फिर भी अन्य उपस्थित संरचनाएँ भी जल या वायु से सीधे गैसों का आदान-प्रदान करने में सहायक होते हैं। इन्हें सहायक श्वसनांग कहते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं

Respitory organ of mammals


 1. पीतक कोष और ऐलेंटॉइस (yolk sac and allantois):– लगभग सभी भौणिक कशेरुकी भोजन के लिए पीतक के अवशोषण के अतिरिक्त पीतक कोष का उसके पीतक संवहन सहित गैसीय विनिमय के लिए उपयोग करते हैंये गर्भाशय की भित्ति के संपर्क में होने से श्वसन सांधन (Respiratory device) का कार्य करते हैं। ऐलेंटॉइस भी अस्थायी श्वसनांग बन जाती है। 

2. त्वचा (Skin):- उभयचरों की गीली व नम त्वचा के द्वारा श्वसन क्रिया होती है। जो कि सामान्य बात है जबकि सैलामैंडर्स जैसे जन्तु श्वसन के लिए पूर्णतया त्वचा पर ही निर्भर रहते हैं- 

3. एपिथीलियल अस्तर (Epithelial Ciring):- कुछ मछलियों और जलीय उभयचरों में अवस्कर, मलाशय आंत्र तथा मुख ग्रसनी का एपिथीलियल अस्तर अत्यंत संवहनीय होता है। जो श्वसन में सहायक होता है।

4. अवस्कर आशय (Cloacal bladders):- यह सहायक आशय विशेषकर अधिक समय तक जलमग्न रहने पर महत्वपूर्ण श्वसनांगों का कार्य करते हैं

5. तरण आशय (Swim bladders):- कुछ निम्न श्रेणी की मछलियों में फेफड़े के समान कार्य करने वाली अन्य महत्वपूर्ण संरचना तरण आशय होते हैं। इनके द्वारा भी श्वसन का कार्य किया जाता है।

इस आर्टिकल में हमने स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जाना। जो परीक्षा के अलावा सामान्य जीवन में बहुत जरुरी है।

आशा करता हूँ कि स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इस आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

पीरियाडिक टेबल की जानकारी | Periodic Table ki Jankari

Chemistry subject में Periodic Table की पढाई की जाती है| Periodic Table में अभी तक 118 Element इन्वेंट हुए है| Periodic Table में Element का नाम, Symbol और Atomic Number होते है| तो फिर  Periodic Table को किसने बनाया।

Periodic Table का Invention Russian chemist Dmitri Mendeleev ने किया है| आपको निचे Periodic Table की जानकारी दी जा रही है|

Periodic Table (Name of Element and Atomic Number in Hindi)



Periodic Table ki Jankari

पीरियाडिक टेबल (तत्वों के नाम और उनके परमाणु संख्या हिंदी में)

Name of the Element Symbol of the Element Atomic Number
Hydrogen H 1
Helium He 2
Lithium Li 3
Beryllium Be 4
Boron B 5
Carbon C 6
Nitrogen N 7
Oxygen O 8
Fluorine F 9
Neon Ne 10
Sodium Na 11
Magnesium Mg 12
Aluminium Al 13
Silicon Si 14
Phosphorus P 15
Sulfur S 16
Chlorine Cl 17
Argon Ar 18
Potassium K 19
Calcium Ca 20
Scandium Sc 21
Titanium Ti 22
Vanadium V 23
Chromium Cr 24
Manganese Mn 25
Iron Fe 26
Cobalt Co 27
Nickel Ni 28
Copper Cu 29
Zinc Zn 30
Gallium Ga 31
Germanium Ge 32
Arsenic As 33
Selenium Se 34
Bromine Br 35
Krypton Kr 36
Rubidium Rb 37
Strontium Sr 38
Yttrium Y 39
Zirconium Zr 40
Niobium Nb 41
Molybdenum Mo 42
Technetium Tc 43
Ruthenium Ru 44
Rhodium Rh 45
Palladium Pd 46
Silver Ag 47
Cadmium Cd 48
Indium In 49
Tin Sn 50
Antimony Sb 51
Tellurium Te 52
Iodine I 53
Xenon Xe 54
Cesium Cs 55
Barium Ba 56
Lanthanum La 57
Cerium Ce 58
Praseodymium Pr 59
Neodymium Nd 60
Promethium Pm 61
Samarium Sm 62
Europium Eu 63
Gadolinium Gd 64
Terbium Tb 65
Dysprosium Dy 66
Holmium Ho 67
Erbium Er 68
Thulium Tm 69
Ytterbium Yb 70
Lutetium Lu 71
Hafnium Hf 72
Tantalum Ta 73
Tungsten W 74
Rhenium Re 75
Osmium Os 76
Iridium Ir 77
Platinum Pt 78
Gold Au 79
Mercury Hg 80
Thallium Tl 81
Lead Pb 82
Bismuth Bi 83
Polonium Po 84
Astatine At 85
Radon Rn 86
Francium Fr 87
Radium Ra 88
Actinium Ac 89
Thorium Th 90
Protactinium Pa 91
Uranium U 92
Neptunium Np 93
Plutonium Pu 94
Americium Am 95
Curium Cm 96
Berkelium Bk 97
Californium Cf 98
Einsteinium Es 99
Fermium Fm 100
Mendelevium Md 101
Nobelium No 102
Lawrencium Lr 103
Rutherfordium Rf 104
Dubnium Db 105
Seaborgium Sg 106
Bohrium Bh 107
Hassium Hs 108
Meitnerium Mt 109
Darmstadtium Ds 110
Roentgenium Rg 111
Copernicium Cn 112
Nihonium Nh 113
Flerovium Fl 114
Moscovium Mc 115
Livermorium Lv 116
Tennessine Ts 117
Oganesson Og 118

यहाँ पर आपको पीरियाडिक टेबल की जानकारी दी गयी है. आपको और किसी विषय की जानकारी चाहिये हो तो कमेंट कर के बताये| आशा है आपको ये जानकारी अच्छी लगी होगी.

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अम्ल, क्षार और लवण (Acid, Base and Salt in Hindi)

रसायन विज्ञान (Chemistry) में अम्ल, क्षार और लवण (Acid, Base and Salt) एक प्रमुख विषय वस्तु है जो रसायन विज्ञान के अन्य विषयवस्तु को भी प्रभावित करता है और रसायन विज्ञान में इसके बेसिक जानकारी के बिना आगे नहीं बढ़ा सकता है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर अम्ल, क्षार और लवण (Acids, Bases and Salts in Hindi) का यह लेख संग्रहित किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए सहायक साबित होगा।

क्षार और लवण

अम्ल, क्षार और लवण (Acids, Bases and Salts in Hindi)

सभी तत्वों की अपनी अलग अलग प्रकृति होती है , तत्वों की प्रकृति को स्वाद के अनुसार जान सकते हैं , किसी तत्व के साथ क्रिया कराने पर कैसा परिणाम आता इसके आधार पर या लिटमस पेपर पर डालकर जान सकते हैं। इनकी प्रकृति तीन प्रकार की होती है-

  1. अम्ल (Acid)
  2. क्षार (Base)
  3. लवण (Salt)

अम्ल (Acid) :-

एक एसिड एक पदार्थ है जिसका pH 7.0 से कम होता है, जो इसे प्रोटॉन डोनर बनाता है। अम्ल आमतौर पर स्वाद में खट्टे होते हैं और अन्य पदार्थों, जैसे धातु या क्षार के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया कर सकते हैं। एसिड के सामान्य उदाहरणों में हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड और साइट्रिक एसिड शामिल हैं। एसिड का उपयोग अक्सर विभिन्न औद्योगिक और प्रयोगशाला प्रक्रियाओं में किया जाता है, जैसे कि उर्वरकों, प्लास्टिक और रंगों के उत्पादन में और धातुओं के शुद्धिकरण में।

इसके अलावा, कुछ खाद्य पदार्थों के संरक्षण के लिए खाद्य उद्योग में और कुछ दवाओं के उत्पादन के लिए दवा उद्योग में एसिड का उपयोग किया जाता है। एसिड हानिकारक हो सकता है अगर गलत तरीके से लिया जाता है या संभाला जाता है, और उनके साथ काम करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

अम्ल वह पदार्थ होता है जो जल में घुलकर H+ आयन देता है अम्ल को अंग्रेजी में एसिड कहा जाता है जो लैटिन भाषा के "accre" शब्द से बना है जिसका अर्थ है 'खट्टा'। अम्ल एक रासायनिक यौगिक है जिसका pH मान से काम होता है। वे रासायनिक पदार्थ जो इलेक्ट्रान ग्रहण करते हैं अम्ल कहलाते हैं।

उदाहरण:-

  • हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जलीय विलयन में आयनित होता है
  • शीतल पेय में कार्बोनिक अम्ल
  • नीम्बू और कई फलों में एस्कॉर्बिक अम्ल
  • नाइट्रिक अम्ल
  • सल्फ्यूरिक अम्ल
  • एसिटिक अम्ल
  • इमली में टार्टरिक अम्ल
  • सेब में मैलिक अम्ल
  • फास्फोरिक अम्ल
  • दूध में लैक्टिक अम्ल
  • टमाटर में ऑक्सेलिक अम्ल

अम्ल के उपयोग (Uses of acid)

  1. अकार्बनिक अम्ल के साथ धातु की प्रतिक्रिया होने पर हाइड्रोजन गैस निकलती है।
  2. मूत्र में यूरिक अम्ल की मात्रा 5% होती है। यूरोक्रोम के कारण मूत्र का रंग पीला होता है तथा अमोनिया के कारण इसमें गंध होता है।
  3. संचायक सेल में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग किया जाता है।
  4. आक्जेलिक अम्ल की सहायता से दाग धब्बे साफ किया जाता है।
  5. सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग पेट्रोलियम के शोधन में, कई प्रकार के विस्फोट बनाने में, औषधियां और रंग बनाने में आदि।।
  6. एसीटिक अम्ल का उपयोग जीवाणुनाशक के रूप में, सिरका निर्माण में, एसीटोन बनाने में, किया जाता है
  7. खाने की चीजों में फ्लेवर के रूप में सिट्रिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है
  8. साइट्रिक अम्ल का उपयोग: धातुओं को साफ करने में, खाद्य पदार्थों व दवाओं के निर्माण में, कपडा उद्योग में, आदि।
  9. खाद्य पदार्थों और फलों के संरक्षण में भी इस अम्ल का प्रयोग किया जाता है.

क्षार (Base):-

क्षार (Base) एक ऐसा पदार्थ है जिसका pH 7.0 से अधिक होता है। क्षार, एसिड को बेअसर (Neutralize) कर सकते हैं और कई अन्य रसायनों के साथ अत्यधिक क्रियाशील होते हैं। क्षार के सामान्य उदाहरणों में सोडियम हाइड्रॉक्साइड, पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड और कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड शामिल हैं।

क्षार का उपयोग अक्सर विभिन्न औद्योगिक और प्रयोगशाला प्रक्रियाओं में किया जाता है, जैसे साबुन और डिटर्जेंट के उत्पादन में, कागज और वस्त्रों के निर्माण में, और पानी और कचरे के उपचार में। इसके अलावा, खाद्य उद्योग में फलों और सब्जियों के संरक्षण के लिए और कुछ दवाओं के उत्पादन के लिए दवा उद्योग में क्षार का उपयोग किया जाता है।

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसे जल में मिलाने पर जल का pH मान 7 से अधिक हो जाता है। क्षार अम्लीय पदार्थों को OH- देता है। क्षार स्वाद में कड़वा होता है क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला कर देता है । सभी क्षारक जल में धुलते नही है और जो जल में घुलनशील होते है उन्हें क्षार कहते है। क्षार वे पदार्थ होते हैं जो प्रोटान ग्रहण करते हैं।

उदाहरण:-

  • मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड – Mg(OH)2 :-
  • अमोनियम हाइड्रोक्साइड – NH4OH
  • केल्शियम हाइड्रोक्साइड – Ca(OH)2
  • सोडियम हाइड्रोक्साइड – NAOH
  • पोटेशियम हाइड्रोक्साइड – KOH
  • सोडियम कार्बोनेट – Na2CO3
  • सोडियम बाई कार्बोनेट – NaHCO₃
  • सीज़ियम हाइड्रोक्साइड – CsOH
  • सोडियम हाइड्रोक्साइड –NaOH
  • बेरियम हाइड्रोक्साइड – Ba(OH)2(H2O)x

क्षार के उपयोग (Uses of acid):-

  1. सोडियम हाइड्रोक्साइड (NAOH) :- साबुन बनाने और पेट्रोलियम शुद्धिकरण करने में
  2. पोटैशियम हाइड्रोक्साइड (KOH) :- नहाने का साबुन या मुलायम साबुन बनाने में
  3. कैल्शियम हाइड्रोक्साइड (CA(OH)2 ) :- पुताई वाले चुने के पानी में और ब्लीचिंग पाउडर बनाने में
  4. मैग्निशियम हाइड्रोक्साइड Mg(OH)2 :- पेट की अम्लता को दूर करने में
  5. अमोनियम हाइड्रोक्साइड NH4OH :- कपडे के दाग धब्बे दूर करने में
  6. सोडियम कार्बोनेट – Na₂CO3 :- खारे पानी को मीठे पानी में बदलने के लिए

लवण (Salt):-

लवण (Salt) वह यौगिक है जो किसी अम्ल के एक, या अधिक हाइड्रोजन परमाणु को किसी क्षारक के एक, या अधिक धनायन से प्रतिस्थापित करने पर बनता है। लवण अक ऐसा यौगिक है जिसमे अम्ल और क्षार दोनों के गुण सम्मिलित होते हैं। लवण अम्ल और क्षार के उदासीनीकरण का परिणाम है । लवण स्वाद में नमकीन होते हैं।

उदहारण:-

  • पोटेशियम क्लोराइड (KCL)
  • सोडियम क्लोराइड (NaCl)
  • फेरस क्लोराइड (FeCl2)
  • सोडियम सल्फेट (Na2SO4)
  • अमोनियम क्लोराइड (NH4Cl)
  • कॉपर सल्फेट (CuS04)
  • पोटैशियम फेरोसायनाइड K2[Fe(CN)6]

लवण के उपयोग (Uses of Salt):-

  1. सोडियम क्लोराइड (NaCl) का उपयोग खाने के नमक के रूप में तथा रसोई गैस के निर्माण के समय में
  2. सोडियम कार्बोनेट का जल की सतही कठोरता को दूर करने में
  3. प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का टूटी हड्डी को जोड़ने में
  4. ब्लीचिंग पाउडर का पीने के पानी को संक्रमण मुक्त करने में
  5. सोडियम बाई कार्बोनेट का आग बुझाने के लिए
  6. सोडियम हाईड्रा का कागज के निर्माण में
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अणु और परमाणु में अंतर (Difference Between Molecule and Atom in Hindi)

आपका, answerduniya.com में स्वागत है। आज के इस लेख में हम अणु और परमाणु में अंतर(difference between molecule and atom in Hindi) के बारे में जानने वाले हैं । अणु तथा परमाणु , विज्ञान विषय से जुड़े हुए दो महत्वपूर्ण शब्द हैं।

विज्ञान विषय पढ़ने के लिए अणु और परमाणु शब्दों के अर्थ और अणु और परमाणु में अंतर को जानना बहुत जरूरी है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अणु और परमाणु में अंतर(difference between molecule and atom in Hindi) से जुड़े सवाल प्रायः पूछे जाते हैं। अणु और परमाणु में अंतर(difference between molecule and atom in Hindi) को जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

परमाणु और अणु में अंतर स्पष्ट कीजिए (difference between molecule and atom in Hindi)

Anu tatha parmanu me antar

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परमाणु किसी पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण है। जो स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है। जबकि अणु स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है।

परमाणु (Atom) अणु (Molecule)
परमाणु किसी पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण है जो स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता है। अणु किसी पदार्थ का वह सूक्ष्मतम कण है जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है ।
यह रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेने वाला तत्व का सूक्ष्मतम कण हैं। यह एक या एक से अधिक परमाणुओं के संयोग से बनता है।
यह रासायनिक अभिक्रिया में विभाजित नहीं होता है । यह रासायनिक अभिक्रिया में परमाणुओं में विभाजित हो जाता है।
परमाणु रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेते हैं । अणु रासायनिक अभिक्रिया में भाग नहीं लेते हैं ।
यह इलेक्ट्रान, प्रोटॉन, न्यूट्रॉन से मिलकर बनता है। यह परमाणुओं से मिलकर बनता है।
यह अविभाज्य है। इसको विभाजित किया जा सकता है।
रासायनिक क्रियाओं में भाग लेता है। यह रासायनिक क्रियाओं में भाग नहीं लेता है।
इसे उत्पन्न नहीं किया जा सकता है। इसे उत्पन्न किया जा सकता है अर्थात इसे बनाया जा सकता है।
यह अविनाशी कण है। इसका विनाश सम्भव है।
नष्ट या विघटित नहीं होता है। यह रासायनिक क्रियाओं में विघटित हो जाता है।

जानें- वन पारिस्थितिकी तंत्र 

अणु (Molecule)

किसी पदार्थ (तत्व या यौगिक) का वह सूक्ष्म कण जो स्वतंत्र अवस्था में रह सकता है, परंतु रासायनिक अभिक्रियाओं, प्रतिक्रियाओं में भाग नहीं ले सकता तथा जिसमें उस पदार्थ के सभी गुण विद्यमान रहते हैं, अणु कहलाता है।

परमाणु (Atom)

किसी पदार्थ (अर्थात् तत्व) का वह संभव सूक्ष्मतम कण जो स्वतंत्र अवस्था में नहीं रह सकता परंतु रासायनिक अभिक्रिया में भाग लेता है तथा जिसमें उस पदार्थ के सभी गुण विद्यमान रहते हैं, परमाणु कहलाता है।

अणु और परमाणु में अंतर

अणुओं और परमाणुओं में निम्नलिखित अन्तर हैं :-

  1. परमाणु अणु से छोटे होते हैं।
  2. अणु परमाणुओं से बनते हैं जबकि परमाणु इलेक्ट्रान, प्रोटॉन एवं न्यूट्रॉन से।
  3. परमाणु स्वतंत्र रूप से नहीं रह सकते। अणु स्वतंत्र रूप से रह सकते हैं।
  4. रासायनिक क्रियाओं में परमाणु भाग लेते हैं न कि अणु।
  5. सामान्यतः अणुओं का विभाजन किया जा सकता है, परमाणुओं का नहीं। परमाणुओं का विखंडन विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है।
  6. अणुओं में उस पदार्थ के सभी गुण धर्म पाए जाते हैं, परमाणुओं में नहीं।
  7. परमाणु किसी न किसी तत्व के ही होते हैं। अणु तत्व और यौगिक दोनों के होते हैं।
इस आर्टिकल में हमने अणु और परमाणु में अंतर(difference between molecule and atom in Hindi) के बारे में जाना। यह आर्टिकल विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है। इसमें अणु और परमाणु में अंतर(difference between molecule and atom in Hindi) से जुड़े महत्वपूर्ण तथ्यों को लिया गया है।

आशा करता हूँ कि अणु और परमाणु में अंतर(difference between molecule and atom in Hindi) का यह आर्टिकल आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा, यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो इस आर्टिकल को शेयर अवश्य करें।

कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)

कोशिका (Cell) को जीव शरीर का सबसे छोटा हिस्सा माना जाता है। इस प्रकार इसकी संरचना भी काफी जटिल होती है, इस पोस्ट में हम आपको कोशिका की पूरी संरचना (Full Cell Structure in Hindi)को विस्तार से बताने वाले है।

Structure of the Cell in Hindi: इस पोस्ट में कोशिका के सभी भाग के बारे में भी बताया गया है।

structure of cells in hindi

कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)

  • कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)
  • कोशिका (Cell) किसे कहते है?
  • संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under Compound Microscope)
  • (1) कोशिका कला या प्लाज्मा झिल्ली (Cell membrane or Plasma membrane)
  • (2) केन्द्रक (Nucleus)
  • (3) कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)
  • कोशिकांग (Cell organelles)
  • (A) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)
  • (B) लाइसोसोम (Lysosome)
  • (C) गॉल्जी उपकरण (Golgi Apparatus)
  • (D) राइबोसोम (Ribosome)
  • (E) तारक-परिकेन्द्र (Centriole)
  • (F) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endo plasmic Reticulum – E।R।)
  • (G) लवक (Plastids)
  • (H) रिक्तिका (Vacuoles)

कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)

कोशिका (Cell) किसे कहते है?

"कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की एक रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन में समर्थ है।" यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन करते हैं।

‘कोशिका‘ का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के ‘शेलुला‘ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘एक छोटा कमरा‘ है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने हुए होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने 1665 ई। में किया। 1839 ई। में श्लाइडेन तथा श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी सजीवों का शरीर दो या दो से अधिक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है तथा सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से उपस्थित किसी कोशिका से ही होती है।

कोशिका की संरचना का दो शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन करते हैं-

(अ) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under compound microscope)।

(ब) इलेक्ट्रॉम सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under an Electron microscope)।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under Compound Microscope)

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी यन्त्र (Compound Microscope) से जन्तु कोशिका का अध्ययन करने में कोशिका की संरचना अत्यन्त सरल दिखाई देती है। कोशिका (Cell) में प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) से घिरा हुआ जीवद्रव्य (Protoplasm) होता है। कोशिका के मध्य में एक केन्द्रक (Nucleus) होता है जो एक केन्द्रक कला (Nuclear membrane) से घिरा होता है। केन्द्रक के भीतर का जीवद्रव्य, केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) तथा केन्द्रक के बाहर शेष जीवद्रव्य कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) कहलाता है। केन्द्रक में केन्द्रिका (Nucleolus) होती है। इनकी संख्या एक से अधिक होती है। कोशिका द्रव्य में केवल गाल्जी काय (Golgi body), अनेक सूक्ष्म एवं लम्बे माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) के अतिरिक्त एक सेन्ट्रोसोम (Centrosome) तथा लाइसोसोम (Lysosome), राइबोसोम (Ribosome) तथा अनेक धानियाँ (Vacuoles) दिखायी पड़ती हैं। सभी कोशिकांग (Organelles) को कोशिकाद्रव्य में से निकालने के पश्चात् एक आधात्री (Matrix) शेष बचती है इसको हायलोप्लाज्म (Hyaloplasm) कहते हैं।

Electron Structure of an Eukaryotic animal cell

(1) कोशिका कला या प्लाज्मा झिल्ली (Cell membrane or Plasma membrane)

सभी कोशिकाओं में प्लाज्मा झिल्ली पाई जाती है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी के अन्तर्गत यह दिखाई नहीं देती है, लेकिन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के अन्तर्गत देखने पर यह लगभग 100 A मोटी एक दोहरी झिल्ली है। कहीं-कहीं पर यह केन्द्रक झिल्ली (Nuclear membrane) से अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum) द्वारा सम्बन्धित रहती है। वनस्पति कोशिकाओं में कोशिका भित्ति (Cell wall) पायी जाती है तथा यह सेल्यूलोज की बनी होती है। प्लाज्मा झिल्ली कोशिका की बाह्य सीमा ही नहीं बनाती है बल्कि जीवद्रव्य (Protoplasm) एवं ऊतक द्रव्य के मध्य एक गतिशील रोधक (Dynamic barrier) का कार्य भी करती है, इसमें होकर कुछ विलयन (Solutions) एवं विलायक (Solvents) ही आ जा सकते हैं।

(2) केन्द्रक (Nucleus)

यह कोशिका की विभिन्न जैव क्रियाओं का अध्ययन करता है। कोशिका का नियन्त्रण कक्ष (Controlling room) कहलाता है। केन्द्रक के चारों ओर एक सरन्ध्र (Porous), पारगम्य (Permeable) केन्द्रक झिल्ली (Nuclear membrane) होती है जो केन्द्रक को चारों ओर कोशिका द्रव्य से पृथक् रखती है। केन्द्रक के मध्य में केन्द्रक रस (Nuclear sap or karyolymph) भरा रहता है जिसमें केन्द्रक के अन्य अंग-केन्द्रिका Nucleolus) एवं केन्द्रिका (Nucleoli) की संख्या जाति (Species) एवं गुणसूत्रों के समुच्चयों (Set of chromosomes) के अनुसार पाई जाती है।

(3) कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)

कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के मध्य का भाग जिस तरल पदार्थ से भरा होता है उसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं।

Cell emphasizing the details of its structure

कोशिकांग (Cell organelles)

कोशिकाद्रव्य में विभिन्न कार्यों के लिए कोशिकांग पाये जाते है।

Ultra structure of typical animal cell under electron microscope

(A) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)

इनकी आकृतिक संरचना, सूत्राकार या छड़ों (Filamentous or rod) के समान होती है। इसका व्यास 54 एवं लम्बाई 3 u होती है। इनका आकार बदलता रहता है, इनकी संख्या 500–5,00,000 तक हो सकती है। यह दोहरी भित्ति वाली लचीली संरचना, जिसमें अन्दर की ओर क्रिस्टी (Cristae) नामक वलन (Folds) होते हैं। यह भोजन की रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) को अधिक शक्तिशाली एवं उपयोगी ATP में परिवर्तित कर देती है।

(B) लाइसोसोम (Lysosome)

ये कोशिकाद्रव्य में बिखरे हुए पाये जाते हैं। इनका व्यास 0।4 से 0।84 तक हो सकता है। यह वृत्ताकार होते हैं, आकार अनियमित भी हो सकता है। यह लाइपोप्रोटीन की झिल्ली द्वारा परिबद्ध (Bound) होते हैं। (Organelle) है।

(C) गॉल्जी उपकरण (Golgi Apparatus)

यह कोशिका के उपापचय (Metabolism) में भाग लेने वाला महत्वपूर्ण कोशिकांग होते है। स्त्रावी कोशिकाओं (Secretory cells) में इनकी संख्या अत्यधिक होती है।

(D) राइबोसोम (Ribosome)

यह पिन के आकार की सूक्ष्म संरचनाएँ हैं। यह अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (E।R।) के चारों कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं। इनमें कोशिका की प्रोटीन एवं एन्जाइम का संश्लेषण होता है। इनको कोशिका की प्रोटीन फैक्ट्री (Protein factory) भी कहते हैं।

(E) तारक-परिकेन्द्र (Centriole)

सूत्री विभाजन (Mitotic division) के समय तारक किरणों (Astral rays) के केन्द्र में छोटा-सा तारक परिकेन्द्र पाया जाता है। यह कोशिका की विश्रामावस्था में निष्क्रिय लेकिन विभाजन के समय सक्रिय (Active) हो जाता है।

(F) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endo plasmic Reticulum – E।R।)

कोशिकाद्रव्य की आधात्री (Matrix) में झिल्ली द्वारा परिबद्ध नालिका जाल के रूप में पाया जाता है। स्तनी प्राणियों के परिपक्व रक्ताणुओं (Erythrocytes) के अतिरिक्त यह सभी प्रकार की कोशिकाओं में पाया जाता है।

(G) लवक (Plastids)

सामान्यतः यह पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं, परन्तु यह प्राणी कोशिकाओं जैसे कि कशाभिक प्रोटोजोआ (Flagellate protozoans) में भी पाये जाते हैं। पौधों में पाये जाने वाले लवकों में हरितलवक (Chloroplast) सबसे महत्वपूर्ण होता है और हरा रंग प्रदान करता है। इनका व्यास 46 प्र तथा मोटाई 3।1 4 होती है।

(H) रिक्तिका (Vacuoles)

नई पादप कोशिकाओं एवं प्राणी कोशिकाओं में रिक्तिका नहीं पाई जाती है। यदि पायी भी जाती हैं, तो आकार में बहुत ही छोटी तथा संख्या में एक से अधिक रिक्तिकाएँ हो सकती हैं। रिक्तिका जल या जल में घुले पदार्थों से भरी होती हैं। रिक्तिका, कोशिकाद्रव्य से एक झिल्ली द्वारा पृथक् रहता है, इसे टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। टोनोप्लास्ट अपने आर-पार जाने वाले पदार्थों का चयन करता है। रिक्तिका कोशिका में निश्चित् दाब (Pressure) बनाए रखते हैं एवं पदार्थों का भी संचय करते हैं।

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जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology

जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology


नमस्कार,आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस  पोस्ट में आपको जैव प्रौद्योगिकी से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली दिया जा रहा है । इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए जा रहे हैं। जैव प्रोद्योगिकी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है जिसके अंतर्गत जीवाणुओं की ऊतक या कोशिका का उपयोग करके नए जीवों का उत्पादन किया जाता है। इन जीवों का उत्पादन सामान्य दाब, निम्न ताप एवं उदासीन नमी या जल में इन नए जीवों का उत्पादन होता है। अगर आप जैव प्रोद्योगिकी जिसे अंगेजी में Biotechnology कहा जाता है इस विषय में स्नातक की पढाई करना चाहते हैं तो आपको जैव प्रौद्योगिकी-पारिभाषिक शब्दावली (Biotechnology-Terminology) के बारे में जरुर जान लेना चाहिए।



Biotechnology - Biology Terminology

Jaiva Praudyogikee Paribhashik Shabdavali

1. जीन क्लोनिंग (Gene cloning) - पुनर्योगज D.N.A. के पोषक कोशिका में प्रवेश के बाद परपोषी कोशिका का संवर्धन जिससे वांछित जीन की भी क्लोनिंग होती है।

2. निवेशी निष्क्रियता (Insertional Inactivation) - रंग पैदा करने वाले जीन उत्पाद, जैसे- बीटा गैलेक्टो साइडेज को कोडित करने वाले जीन में वांछित जीन निवेशित कर पुनर्योगजों की पहचान करना।

3. लाइगेज (Ligase) - D.N.A. खण्डों को जोड़ने वाला एन्जाइम।

4. न्यूक्लिएज (Nuclease) - नाभिकीय अम्ल (DNA/ RNA) का पाचन करने वाला एन्जाइम।

5.ओरी (Ori) - प्लाज्मिड या वाहक का वह स्थल जहाँ से प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ होता है।

6.प्लाज्मिड (Plasmid ) - जीवाणुओं के गुणसूत्रों से बाहर के गोलाकार स्व-प्रतिकृतिकरण करने वाले डी.एन.ए. अणु।

7.पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक (Recombinant DNA Technology) - बाह्य या विजातीय डी.एन.ए. को दूसरे जीव के डी.एन.ए. से जोड़कर काइमेरिक डी. एन. ए. बनाने की प्रक्रिया या जेनेटिक इंजीनियरिंग।

8. पश्च विषाणु (Retro Virus) - आर.एन.ए. विषाणु जिनमें डी.एन.ए. निर्माण हेतु रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम पाया जाता है।

9. वाहक / संवाहक (Vector) - डी.एन.ए. अणु जिसमें उचित पोषक कोशिका के अंदर प्रतिकृतिकरण की क्षमता होती है तथा जिसमें विजातीय डी.एन.ए. निवेशित (Insert) किया जा सकता है।

10. जी.एम.ओ. (GMO) - जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म या ट्रांसजेनिक जिनके जीनों में फेरबदल कर कोई कार्यशील विजातीय डी.एन.ए. प्रविष्ट करा दिया गया हो, जैसे बी.टी. पौधे।

12. जीन थेरेपी (Gene Therapy) - त्रुटिपूर्ण या विकारयुक्त जीन को सामान्य कार्यशील जीन द्वारा प्रतिस्थापित कर रोग - उपचार।

13. ह्यूम्यूलिन (Humulin) - यू. एस की एलि लिली कम्पनी द्वारा पुनर्योगज तकनीक से उत्पादित मानव इंसुलिन का ब्रांड नाम।

14.p 53 जीन (p53 जीन) - कोशिका विभाजन के नियन्त्रण के लिए यह जीन कोशिका चक्र को रोकती है।

15. पेटेन्ट (Patent) - सरकार द्वारा किसी वस्तु/प्रक्रिया के खोजकर्ता को दिया जाने वाला अधिकार जो अन्य व्यक्तियों को व्यावसायिक उपयोग से रोकता है।

16. खोजी (Probe) - न्यूक्लियोटाइड के छोटे 13-30 क्षारक युग्म लम्बे खण्ड है जो रेडियोएक्टिव अणुओं से चिन्हित करने पर पूरक खण्डों की पहचान हेतु प्रयोग किये जाते हैं।

17. प्रोइंसुलिन (Proinsulin) - इंसुलिन का पूर्ववर्ती अणु जिसमें एक अतिरिक्त C-पेप्टाइड होता है तथा इसके निकलने (प्रसंस्करण) से इंसुलिन बनता है।

18.जीन लाइब्रेरी (Gene library) - जीव के DNA के सभी जीनों को किसी वाहक के DNA के साथ समाकित करके क्लोनों का मिश्रण बना लेन।

19.DNA रिकॉम्बिनेंट तकनीक (DNA Recombinent Technology) - वह तकनीक जिसके अंतर्गत किसी मनचाहे DNA का कृत्रिम रूप से निर्माण करते है।

इसे पढ़ेवंशागति के सिद्धान्त - पारिभाषिक शब्दावली

इसे पढ़े - वंशागति का आण्विक आधार - पारिभाषिक शब्दावली

20.ट्रांसफॉर्मेशन(Transformation) - जब किसी स्वतंत्र DNA को बैक्टीरियल सेल में स्थानान्तरित करने की क्रिया।

21.रोगी थेरैपी (Patient Therapy) - इस थेरैपी में प्रभावित ऊतक में स्वस्थ जीनों का प्रवेश करा दिया जाता है।

22.भ्रूण थेरैपी (Embryo Therapy) -इस थेरैपी में दोषी जीन का पता लग जाने पर ,जायगोट बनने के बाद भ्रूण की आनुवंशिक संरचना को बदला जाता है।

23.सोमोक्लोनल विभिन्नताए (Somoclonal Variation) - कृत्रिम संवर्धन माध्यम कोशिकाओं अथवा ऊतको में होने वाली आकस्मिक एवं प्राकृतिक विभिन्नताओ को ही सोमोक्लोनल विभिन्नताए कहते है

24. हैटरोकेरियान(Heterokaryon) - ऐसी कोशिकाए जिसमे दो भिन्न -भिन्न कोशिकाओ में नाभिक होता है।

25.संकर कोशिका (Hybrid Cell) - कोशिका - संयोजन से बने हैटरोकेरियान में अंततः समससूत्रण विभाजन से बने सेल को संकर कोशिका कहते है।

इस पोस्ट में हमने जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े सवाल अक्सर पूछे जाते रहते हैं। 

उम्मीद करता हूँ कि जैव प्रौद्योगिकी-पारिभाषिक शब्दावली (Biotechnology Terminology) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा ,अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें। धन्यवाद !!

सामान्य विज्ञान के प्रश्न-उत्तर | General Science Questions and Answers in Hindi

हमारे इर्दगिर्द जो घटित हो रहा है, उसके बारे में कि वह क्यों और कैसे होता है, विज्ञान हमें स्पष्ट एवं सुव्यवस्थित जानकारी देता है। क्यों और कैसे जैसे प्रश्नों का उत्तर जानने के बाद कभी-कभी तो आश्चर्य होता है, क्योंकि तब हमें इस बात का अंदाजा नहीं होता कि छोटी-सी दिखने वाली घटना के पीछे कितनी लंबी प्रक्रिया काम करती है। आगे दी जा रही जानकारी आपको जरूर हैरानी में डालेगी, ऐसा हमें विश्वास है।

विज्ञान के सामान्य प्रश्नों के उत्तर science questions in Hindi

निचे विज्ञान के सामान्य प्रश्नों के उत्तर है ऐसे सामान्य प्रश्नों के उत्तर कभी -कभी हमें नहीं पता होते तो आइये पढ़ते है कुछ ऐसे ही सामान्य प्रश्नों के उत्तर -

science questions in hindi

general science questions and answers in Hindi 

01-चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार कम क्यों हो जाता है?

उत्तर :- पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है। इस कार्य के लिए पृथ्वी। कुछ बल लगाना पड़ता है। यही बल वस्तु का भार कहलाता है। जब कोई भी वस्तु चंद्रमा पर होती है, तो उसका भार चंद्रमा के आकर्षण बल पर निर्भर करता है। चंद्रमा का आकर्षण बल पृथ्वी के आकर्षण बल का छठा भाग होता है। यही कारण है कि चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार कम अर्थात पृथ्वी पर वस्तु के भार का 1/6 भाग हो जाता है।

02-चलती बस से उतरते समय तुम आगे की ओर क्यों गिर पड़ते हो?

उत्तर :- जब तुम बस में बैठकर यात्रा कर रहे होते हो, तो तुम्हारा शरीर भी बस की गति के साथ-साथ गति-अवस्था में रहता है। बस के रुकने पर बस से उतरते समय जब तुम अपने पांव नीचे जमीन पर रखते हो, तो तुम्हारा निचला भाग विराम अवस्था में आ जाता है अर्थात स्थिर हो जाता है। दूसरी ओर, तुम्हारे शरीर का ऊपरी भाग गति-अवस्था में ही बना रहता है। बस, इसीलिए तुम आगे की ओर गिर पड़ते हो।

03-वृक्ष की शाखाओं को हिलाने पर फल जमीन पर ही गिरते हैं, ऊपर क्यों नहीं जाते?

उत्तर :- पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है। पृथ्वी के इस आकर्षण बल का नाम गुरुत्वाकर्षण भी है। चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी का आकर्षण बल छह गुना अधिक होता है।जब तुम वृक्ष की शाखाओं को हिलाते हो, तो फल शाखाओं से टूटकर अलग हो जाते हैं। इन फलों को पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के कारण अपनी ओर खींच लेती है। ये फल ऊपर इसलिए नहीं जा पाते क्योंकि चंद्रमा का आकर्षण - बल पृथ्वी से कम है तथा वह इसे प्रभावित नहीं कर पाता ।

04-खाली ट्रक की तुलना में सामान से भरे हुए ट्रक को रोकना कठिन क्यों?

उत्तर :- संसार की प्रत्येक वस्तु अवस्था परिवर्तन (विराम से गति तथा गति से विराम में आना) का विरोध करती है, इस अवस्था परिवर्तन के विरोध करने के गुण को जड़त्व कहा जाता है। खाली ट्रक की तुलना में सामान से भरे हुए ट्रक का जड़त्व अधिक होता में है । किसी भी गति करती हुई वस्तु का जड़त्व जितना अधिक होगा, उसे रोकने के लिए तुम्हें उतना ही अधिक बल लगाना पड़ेगा। यही कारण है कि खाली ट्रक के बजाय सामान से भरे हुए ट्रक को रोकना कठिन होता है ।

05-नदी की अपेक्षा समुद्र के पानी में तुम आसानी से क्यों तैर सकते हो?

उत्तर :- किसी वस्तु के एकांक आयतन की संहति को उस वस्तु का घनत्व कहते हैं। नदी की अपेक्षा समुद्र के पानी का घनत्व अधिक होता है। जब तुम समुद्र के पानी में तैर रहे होते हो, तो तुम्हारे द्वारा हटाए गए पानी का भार नदी में तैरने पर हटाए गए पानी के भार से ज्यादा होता है। अतः समुद्र के पानी में तुम्हारे भार में नदी की अपेक्षा अधिक कमी आ जाती है। दूसरी ओर, अधिक घनत्व के कारण से समुद्र के पानी में उत्प्लावन-बल (वस्तु को द्रव में डुबोने पर द्रव द्वारा उस पर ऊपर की ओर लगाया गया बल) भी अधिक लगता है जिससे तुम आसानी से तैर सकते हो ।

06-लोहे का बना हुआ जहाज पानी में तैरता है परंतु लोहे की सुई पानी में क्यों डूब जाती है?

उत्तर :- किसी भी वस्तु के पानी में तैरने के लिए यह जरूरी है कि उसके द्वारा हटाए गए पानी का भार उसके भार से अधिक हो । लोहे का बना हुआ जहाज जब पानी में चलता है, तो उसके द्वारा हटाए गए पानी का भार उसके (जहाज के) भार से अधिक होता है अतः जहाज पानी में तैरता है। दूसरी ओर, सुई पानी में डालने पर अपने भार से कम भार का ही पानी हटा पाती है अतः पानी में डूब जाती है।

07-पानी भरने से गुब्बारा क्यों फूल जाता है?

उत्तर :- किसी वस्तु गुब्बारे में पानी भरने पर उसकी सतह पर यही बल कार्य करता है जिसके कारण गुब्बारा फूल जाता है। जैसे-जैसे तुम गुब्बारे में अधिक पानी डालते हो, गुब्बारा और अधिक फूलता जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि प्रणोद बढ़ जाता है क्योंकि यह द्रव की ऊंचाई पर निर्भर करता है।

08-नमकीन पानी में अंडा क्यों तैरता है?

उत्तर :- आमतौर पर पानी का घनत्व कम होता है किंतु नमक मिलाते ही पानी का घनत्व बढ़ जाता है। जब घनत्व बढ़ जाएगा, तब उत्प्लावन-बल (वस्तु को द्रव में डुबोने पर द्रव द्वारा उस पर ऊपर की ओर लगाया गया बल) भी अधिक हो जाता है। इसी कारण से नमकीन पानी में अंडा तैरता रहता है ।

09-रेगिस्तान में ऊंट आसानी से क्यों चल सकता है?

उत्तर :- ऊंट के पैर नीचे से चौड़े होते हैं जिससे पैरों का क्षेत्रफल अधिक होता है। इस वजह से जमीन पर प्रभावित क्षेत्रफल बढ़ जाता है तथा दबाव कम होने के कारण ही ऊंट रेगिस्तान में रेत पर आसानी से चल पाता है।

10-तुम पानी में सिर या पैर के बल ही छलांग क्यों लगाते हो?

उत्तर :- जब कोई वस्तु द्रव में डाली जाती है, तो द्रव उस वस्तु पर ऊपर की ओर उत्प्लावन-बल लगाता है। अतः जब तुम सिर या पैर के बल पानी में छलांग लगाते हो, तो पानी का उत्प्लावन-बल तुम्हारे सिर या पैरों पर ऊपर की ओर लगता है। यदि तुम पानी के समानांतर छलांग लगाओगे, तो यह बल शरीर पर लगेगा जिससे शरीर को चोट लगने की आशंका रहती ।

11-बर्फ पानी में क्यों तैरती है?

उत्तर :- बर्फ ठोस है, फिर भी वह पानी में तैरती है । है न, अचरज की बात। तो, सुनो! बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है। जब बर्फ को पानी में डाला जाता है, तो वह कुछ पानी हटाती है। इस पानी के आयतन का भार बर्फ के भार से अधिक होता है। इसीलिए बर्फ पानी में तैरती हैं।

12-गरम चाय या दूध डालने से कभी-कभी कांच का गिलास टूट क्यों जाता है?

उत्तर :- जब तुम गिलास में गरम चाय या दूध डालते हो, तो गिलास का भीतरी तल उष्मा ग्रहण करके फैल जाता है। इसके विपरीत गिलास के बाहर के भाग का ताप भीतरी भाग से कम होने के कारण उसमें फैलाव नहीं या कम होता है। दोनों तलों में ताप के इस अंतर के कारण ही कभी-कभी कांच का गिलास टूट जाता है।

13-रेल की पटरियों में जोड़ों के बीच खाली स्थान क्यों छोड़ा जाता है?

उत्तर :- रेलगाड़ी जब पटरी पर चलती है, तो पहियों तथा पटरी के बीच में एक. प्रकार का घर्षण होता है । इस घर्षण से बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा निकलती है जिसके कारण रेल की पटरी फैलती है । पटरी के इस फैलाव के लिए स्थान देने के उद्देश्य से ही कहीं-कहीं खाली स्थान छोड़ा जाता है। यदि स्थान नहीं छोड़ा जाएगा, तो पटरी के फैलाव से वह टेढ़ी-मेढ़ी हो जाएगी और रेलगाड़ी पटरी से उतर जाएगी ।

14-बोतल को गरम करने पर फंसी हुई डाट आसानी से बाहर क्यों निकल जाती है?

उत्तर :- ऊष्मा प्रदान करने से वस्तु में प्रसार होता है। इसी सिद्धांत का उपयोग करके जब कांच की बोतल को गरम किया जाता है, तो उसमें प्रसार हो जाता है। प्रसार के कारण ही बोतल के मुंह में फंसी डाट आसानी से बाहर निकल जाती है।

15-थर्मस बोतल में गरम वस्तु गरम और ठंडी वस्तु ठंडी क्यों रहती है?

थर्मस बोतल कांच की बनी होती है और कांच उष्मा का कुचालक होता है। कुचालक ऐसे पदार्थ होते हैं जिनमें से उष्मा-चालन आसानी से नहीं होता। कांच की बोतल की दोनों दीवारों के बीच निर्वात (बिना वायु का स्थान) होने से उष्मा बोतल के अंदर की दीवार से बाहर नहीं आ पाती। इसके अतिरिक्त बोतल की चमकदार बाहरी दीवारें उष्मा की विकिरण किरणों को परावर्तित करके बाहरी सतह पर ही रोक लेती हैं। अत : थर्मस बोतल में गरम वस्तु गरम और ठंडी वस्तु ठंडी रहती है।

16-खाना पकाने के बरतन नीचे से काले और ऊपर से चमकदार क्यों होते हैं?

उत्तर :- काली वस्तु उष्मा को जल्दी से सोख लेती है। अतः खाना पकाने के बरतनों के पेंदे काले रखे जाते हैं ताकि बरतन अधिक उष्मा को सोखकर शीघ्र खाना पका दें । बरतनों की ऊपरी सतह चमकदार इसलिए रखी जाती है ताकि बरतनों में से उष्मा का स्थानांतरण न हो सके।

17-बर्फ को बोरी या बुरादे में ही क्यों रखते हैं?

उत्तर :- बोरी और बुरादे में तमाम छिद्र होते हैं और उन छिद्रों में वायु भरी रहती है । वायु उष्मा की कुचालक होती है जो बाहर की उष्मा को अंदर बर्फ तक आने से रोकती है। इस प्रकार बर्फ पिघल नहीं पाती। यही कारण है कि बर्फ को बोरी या बुरादे में ही रखते हैं।

18-रेगिस्तान में दिन के समय गरमी और रात के समय ठंड क्यों होती है?

उत्तर :- रेगिस्तान में रेत की अधिकता रहती है। रेत उष्मा का अच्छा अवशोषक है। अत : दिन के समय सूर्य की उष्मा को अवशोषित करके रेगिस्तान गरम हो जाता है और वहां गरमी होती है। रेगिस्तान विकिरण द्वारा अपनी उष्मा को निकालकर रात में ठंडा हो जाता है जिससे रात के समय वहां ठंड होती है।

19-चिड़ियां सर्दियों में अपने पंख क्यों फैलाए रहती हैं?

उत्तर :- जब सर्दियां शुरू होती हैं, तो अक्सर चिड़ियां अपने पंख फैलाए हुए देखी जा सकती हैं। जब चिड़ियां पंख फैलाकर बैठती हैं, तो उनके शरीर तथा पंखों के बीच में हवा की परत आ जाती है। हवा उष्मा की कुचालक है जो चिड़ियों के शरीर की उष्मा को बाहर जाने से रोकती है। इस प्रकार चिड़ियां सर्दी के कुप्रभाव से स्वयं को बचाने में सक्षम हो जाती हैं। यही कारण है कि चिड़ियां सर्दियों में अपने पंख फैलाए रहती हैं।

20-दो पतले कंबल एक मोटे कंबल की तुलना में अधिक गरम क्यों होते हैं?

उत्तर :- दो पतले कंबल ओढ़ने से उनके बीच में हवा की एक परत बन जाती है। हवा ऊष्मा की कुचालक होती है जो शरीर की उष्मा को बाहर नहीं जाने देती और शरीर को सर्दी के प्रकोप से बचाती है। एक मोटे कंबल में हवा की कोई परत नहीं होती जिससे वह अधिक गरम नहीं रहता ।

21-सब्जी की गरम पतीली को चूल्हे से उतारने के लिए कपड़े का प्रयोग क्यों करते हैं?

उत्तर :- कपड़े में अनेक छिद्र मौजूद रहते हैं जिनमें वायु भरी होती है । वायु ऊष्मा की कुचालक है । वह आग की ऊष्मा को तुम्हारे हाथ तक नहीं पहुंचने देती । इस प्रकार तुम्हारा हाथ सुरक्षित रहता है। तभी तो, सब्जी की गरम पतीली को चूल्हे से उतारने के लिए कपड़े का प्रयोग करते हैं ।

22-कच्चे मकान सर्दियों में गरम और गरमियों में ठंडे क्यों रहते हैं?

उत्तर :- कच्चे मकान मिट्टी के बने होते हैं। मिट्टी ऊष्मा की कुचालक होती है। कुचालक होने के कारण सर्दियों में मिट्टी मकान के अंदर की उष्मा को बाहर नहीं निकलने देती तथा यही मिट्टी गरमियों में बाहर की उष्मा को अंदर नहीं आने देती। अतः कच्चे मकान सर्दियों में गरम और गरमियों में ठंडे रहते हैं।

23-साइकिल की ट्यूब गरमियों में प्राय: फट क्यों जाती है?

उत्तर :- साइकिल की ट्यूब में हवा भरी होती है। गरमी के मौसम में गरम होकर ट्यूब की हवा फैलती है। ट्यूब को फैलने के लिए कुछ स्थान चाहिए। जब उसे यह स्थान नहीं मिल पाता, तब वह ट्यूब को फाड़ देती है।

24-अधिक ऊंचाई पर उड़ते हुए पक्षियों की छाया पृथ्वी पर क्यों नहीं बनती?

उत्तर :- सूर्य प्रकाश का बहुत बड़ा स्रोत है, जबकि पक्षी बहुत छोटे । पक्षियों की घटती हुई छाया और बढ़ती हुई उपछाया बनती है। पक्षियों के पृथ्वी से अधिक ऊंचाई पर उड़ने के कारण छाया घटकर रास्ते में ही खो जाती है। उपछाया अधिक बड़ी लेकिन बहुत हल्की होने के कारण दिखाई नहीं पड़ती। यही कारण है कि अधिक ऊंचाई पर उड़ते हुए पक्षियों की छाया पृथ्वी पर नहीं बनती।

25-सूखे बालों में कंघी करने से चट-चट की आवाज क्यों सुनाई देती है?

उत्तर :- जब आप सूखे बालों में कंघी करते हैं, तो घर्षण पैदा होता है। इस घर्षण से बालों तथा कंघी में विपरीत आवेश आ जाता है। जब अधिक मात्रा में आवेश जमा हो जाता है, तो बीच की वायु में बहुत अधिक तनाव पैदा हो जाता है । इस प्रकार वायु में आवेश का विसर्जन होता है जिससे तुम्हें चट-चट की आवाज सुनाई देती है।

26-जब बादल गरज रहे हों और बिजली चमक रही हो, तो तुम्हें किसी पेड़ के नीचे क्यों नहीं जाना चाहिए?

उत्तर :- रगड़ के कारण वायु तथा बादलों के बीच में आवेश उत्पन्न हो जाता है। जब आवेशित बादल ऊंचे पेड़ों के पास से गुजरते हैं, तो पेड़ों पर विपरीत आवेश आ जाने से आकर्षण होता है। आवेश के प्रवाहित होने से तड़ित भी उत्पन्न होती है। यह तड़ित जब किसी पेड़ पर गिरती है, तो नीचे खड़े व्यक्ति को हानि पहुंच सकती है। अत : ऐसी अवस्था में किसी पेड़ के नीचे नहीं जाना चाहिए।

27-सूखे बालों में रगड़ा हुआ प्लास्टिक का पेन कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर क्यों खींच लेता है?

उत्तर :- जब तुम सूखे बालों में प्लास्टिक का पेन रगड़ते हो, तो रगड़ के कारण घर्षण (स्थिर) विद्युत पैदा होती है। इस घर्षण - विद्युत के कारण ही प्लास्टिक का पेन कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर खींच लेता है।

28-कपड़े से रगड़ने के बाद वायु से भरा गुब्बारा दीवार से क्यों चिपक जाता है?

उत्तर :- जब तुम गुब्बारे को कपड़े से रगड़ते हो, तो उस स्थान पर आवेश उत्पन्न हो जाता है। आवेशित - गुब्बारा दीवार के निकट लाने पर विपरीत आवेश उत्पन्न करता है और आकर्षित होकर दीवार से चिपक जाता है ।

29-घरों में बिजली के तारों के ऊपर प्लास्टिक या रबड़ के खोल क्यों चढ़े होते हैं?

उत्तर :- जिस तार में से बिजली आ रही होती है, उसे छूने से तुम्हें झटका लग सकता है। इस झटके से बचने के लिए तारों पर प्लास्टिक या रबड़ के खोल चढ़ाए जाते हैं । प्लास्टिक तथा रबड़ दोनों ही विद्युत के कुचालक अर्थात विद्युतरोधी होते हैं जिनमें बिजली प्रवेश नहीं कर पाती। अतः इनको छूने पर भी तुम्हें झटका नहीं लग सकता ।

30-बिजली के बल्बों में पतला तार ही क्यों प्रयोग किया जाता है?

उत्तर :- चालक का वह गुण जिसके द्वारा विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध किया जाता है, प्रतिरोध कहलाता है। पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है, जबकि मोटे तार का प्रतिरोध कम होता है। अतः बिजली के बल्बों में पतला तार ही प्रयोग किया जाता ।

31-अंधेरे कमरे में किसी छोटे छेद से आते हुए सूर्य के प्रकाश में हवा में उपस्थित धूल के कण इधर-उधर गति करते हुए क्यों दिखाई पड़ते हैं?

उत्तर :- जब अंधेरे कमरे में किसी छोटे छेद से सूर्य के प्रकाश में धूल के कण (अणु) आते हैं, तब वे लगातार गति करते हैं। इस प्रकार वायु के अणु धूल के कणों के साथ मिलकर टकराते हैं। इस टकराव के कारण ही धूल-कणों में अनियमित-गति उत्पन्न होती है और वे इधर-उधर गति करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

32-वर्षा की बूंदें गोल क्यों होती हैं?

उत्तर :- पानी की संरचना छोटे-छोटे अणुओं से मिलकर होती हैं। ये अणु परस्पर एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। इसी आकर्षण के कारण ही पानी सिकुड़ता है और कम स्थान घेरना चाहता है। बूंदें पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण नीचे गिरती हैं किंतु पानी के अणु पृष्ठ-तनाव द्वारा आपस में इकट्ठा होते हैं। इसी वजह से बूंदें गोल आकार ग्रहण कर लेती हैं ।

33-साइकिल के टायर खुरदरे क्यों होते हैं?

उत्तर :- जब एक तल दूसरे तल पर गति करता है, तो उस गति का विरोधक-बल उत्पन्न हो जाता है। इसे घर्षण बल कहते हैं । घर्षण बल जितना अधिक होता है, वस्तु उतनी ही सरलता से गति कर सकती है। - साइकिल के टायर भी खुरदरे इसीलिए बनाए जाते हैं ताकि घर्षण-बल अधिक रहे और साइकिल सुविधाजनक ढंग से चल सके । खुरदरे तल पर घर्षण समतल की अपेक्षा अधिक रहता है।

34-कांच की गोली खुरदरे तल की अपेक्षा समतल पर अधिक दूरी तक क्यों लुढ़कती है?

उत्तर :- खुरदरे तल पर घर्षण समतल की तुलना में अधिक होता है। अतः जब कांच की गोली खुरदरे तल पर लुढ़कती है, तो घर्षण अधिक होने के कारण शीघ्र रुक जाती है। दूसरी ओर, यही गोली जब समतल पर लुढ़कती है तो घर्षण कम होने से अधिक दूरी तक जाती है।

35-भारी गाड़ियों के टायर अधिक चौड़े क्यों होते हैं?

उत्तर :- अधिक चौड़े टायरों का क्षेत्रफल अधिक होता है जिससे घर्षण अधिक होता है और दाब कम हो जाता है। अतः गाड़ी की गति बढ़ जाती है। बस, इसीलिए भारी गाड़ियों के टायर अधिक चौड़े बनाए जाते हैं ।

36-मकान की नींव दीवार की अपेक्षा चौड़ी क्यों होती है?

उत्तर :- तल का क्षेत्रफल जितना कम होगा, दबाव भी उतना ही बढ़ जाएगा। अतः क्षेत्रफल घटाने से दबाव में वृद्धि होगी। इसीलिए मकान बनवाते समय नींव चौड़ी रखी जाती है ताकि तल का क्षेत्रफल अधिक रहे। अधिक क्षेत्रफल रहने से दीवार का दबाव कम पड़ेगा।

37-कुएं से पानी निकालने के लिए घिरनी का उपयोग क्यों किया जाता है?

उत्तर :- कुएं से पानी निकालने के लिए घिरनी का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण यह है कि घिरनी के द्वारा बल लगाने की दिशा ऊपर की अपेक्षा नीचे हो जाती है। इससे पानी भरने में सुविधा रहती है तथा कम बल से अधिक कार्य हो जाता है।

38-कभी-कभी कील की अपेक्षा पेंच का प्रयोग क्यों किया जाता है?

उतार :- जब लकड़ी के साथ कुंडा लगाना हो, तो अक्सर पेंच का प्रयोग किया जाता है। पेंच कुंड़े को तख़्ते से कील की अपेक्षा अधिक मजबूती से जोड़े रखता है। इसका कारण यह है कि पेंच का तल चूड़ीदार होता है जबकि कील का तल समतल है। पेंच इन चूड़ियों के कारण अधिक शक्ति से अपना कार्य करता है।

39-ट्रक आदि पर सामान लादने के लिए ढलवां रखे हुए लकड़ी के तख्ते का प्रयोग क्यों किया जाता है?

उत्तर :- यदि किसी भारी वस्तु को उठाना हो, तो एक मजबूत छड़ लेकर उसका एक सिरा वस्तु के नीचे लगा देते हैं और छड़ को किसी ईंट आदि पर टिका कर दूसरे सिरे पर बल लगाते हैं। इस प्रकार भारी वस्तु को उठाने में आसानी हो जाती है। इस छड़ को उत्तोलक या लीवर कहते हैं। ट्रक आदि पर सामान लादने के लिए ढलवां रखे हुए लकड़ी के तख्ते का प्रयोग किया जाता है जो कि उत्तोलक ही है। ऐसा करने से कम बल लगाकर अधिक भार उठाया जा सकता है।

40-डिब्बे का ढक्कन खोलने के लिए चम्मच का प्रयोग क्यों करते हैं?

उत्तर :- डिब्बे का ढक्कन खोलने के लिए तुम चम्मच का उपयोग उत्तोलक के रूप में ही करते हो । चम्मच के किनारे को ढक्कन के नीचे रखा जाता है तथा दूसरे किनारे पर हाथ से नीचे को दबाकर बल लगाया जाता है। इस प्रकार चम्मच द्वारा बने उत्तोलक में बल भुजा भार भुजा से बड़ी होती है। अतः कम बल लगाने से बंद हुआ ढक्कन सरलता से खुल जाता है ।

41-झाड़ू में लंबी डंडी क्यों लगाते हैं?

उत्तर :- उत्तोलक के सिद्धांत के अनुसार यदि बल भुजा भार भुजा से बड़ी हो, तो कम बल से अधिक कार्य हो सकता है। झाड़ू में लंबी डंडी इसीलिए लगाई जाती है ताकि बल भुजा बड़ी हो जाए और कम बल लगाना पड़े। इसके अतिरिक्त बिना झुकें ही सफाई भी हो जाती है।

42-चंद्रमा प्रतिदिन एक ही समय पर उदय क्यों नहीं होता?

उत्तर :- चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है जो उसके गिर्द 29 दिनों में एक बार परिक्रमा पूरी करता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार घूमती है। जितने समय में पृथ्वी अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करती है, उतने समय में चंद्रमा पृथ्वी के गिर्द अपने मार्ग में कुछ आगे निकल जाता है। अतः तुम चंद्रमा को पृथ्वी द्वारा अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करने तथा उस दूरी को तय करने के बाद देखते हो जो दूरी चंद्रमा आगे निकल चुका है। यही कारण है कि चंद्रमा प्रतिदिन एक ही समय पर उदय नहीं होता।

43-अधिक देर तक धूप में बैठने पर शरीर का रंग काला क्यों हो जाता है?

उत्तर :- धूप में मनुष्य का शरीर गहरे रंग के वर्णक बनाता है। ये वर्णक सूर्य के प्रकाश की किरणों को सोख लेते हैं। यदि शरीर में प्रकाश-किरणों को सोख लेने वाले वर्णक बनाने की शक्ति विज्ञान न होती, तो सूर्य की गरमी के कारण त्वचा झुलस जाती। अधिक तेज धूप में शरीर अधिक वर्णक बनाता है। यही कारण है कि देर तक धूप में बैठे रहने से शरीर का रंग काला हो जाता है।

45-सर्दी में तुम्हें कंपकंपी क्यों लगती है?

उत्तर :- सर्दी के मौसम में वातावरण ठंडा हो जाता है। अतः तुम्हें कंपकंपी लगती है। कंपकंपी होने से तुम्हारी मांसपेशियों को अधिक काम करना पड़ता है, जिसके कारण ऊर्जा पैदा होती है। इस प्रकार शरीर का ताप (37°C) समान बना रहता है और यह कम नहीं हो पाता।

46-पहाड़ों पर दाल क्यों नहीं गलती?

उत्तर :- तुम जिस पृथ्वी पर रहते हो, वहां पर वायु का दबाव अत्यधिक है। जानते हो, तुम्हारे शरीर पर भी निरंतर 14 टन वायु का दबाव पड़ता रहता है। जैसे-जैसे तुम ऊंचाई पर जाते हो, इस दबाव में कमी आती रहती है । पहाड़ों पर भी वायु का दबाव कम हो जाता है। दाल को पकाने में यही वायुमंडलीय-दबाव कार्य करता है। क्योंकि पहाड़ों पर वायुमंडलीय दबाव कम होता है अत: दाल पकाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

47-तारे टिमटिमाते हुए नजर क्यों आते हैं?

उत्तर :- तुम जिस वायुमंडल में सांस लेते हो, उसमें विभिन्न घनत्व वाली अनेक परतें पाई जाती हैं। इन्हीं परतों से गुजरकर तारों का प्रकाश तुम तक पहुंचता है। वायु के कारण वायुमंडल की परतें भी हिलती रहती हैं। यही कारण है कि जब तारों का प्रकाश इन परतों से गुजरकर तुम तक आता है, तो तारे टिमटिमाते हुए नजर आते हैं ।

48-आकाश नीला क्यों दिखाई देता है?

उत्तर :- सूर्य के प्रकाश में सात रंग पाए जाते हैं। जब सात रंगों वाला सूर्य का प्रकाश वायुमंडल के कणों से टकराता है, तो रंगों में विचलन की क्रिया प्रारंभ हो जाती है। बैंगनी, नीले और आसमानी रंग का विचलन सबसे अधिक होता है और शेष रंगों (हरा, पीला, नारंगी तथा लाल) का विचलन कम। उपर्युक्त तीन रंगों के विचलन से लगभग नीले रंग की ही उत्पत्ति होती है। अतः आकाश नीला दिखाई देता है।

49-रंगीन कपड़ा रात्रि को क्यों नहीं खरीदना चाहिए?

उत्तर :- सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल । किसी वस्तु का रंग, रंगों के परावर्तन तथा अवशोषण के कारण होता है। अतः जो कपड़ा तुम दिन में पहनते हो, वह रात को अलग रंग का दिखाई देता है क्योंकि रात्रि का प्रकाश कृत्रिम (बनावटी) होता है। इसमें प्राय: सूर्य के प्रकाश की भांति सात रंगों का क्रम नहीं पाया जाता। इसीलिए, रात्रि में कपड़ा खरीदते समय रंग की भूल हो जाने के कारण कपड़ा नहीं खरीदना चाहिए। ।

50-इंद्रधनुष वर्षा के बाद ही क्यों दिखाई देता है?

उत्तर :- कांच के तिकोने टुकड़े को प्रिज्म या त्रिपार्श्व कहते हैं। जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म के एक फलक (सिरे) पर पड़ता है, तो विचलित होकर यह सात रंगों में विभाजित हो जाता है । यह क्रिया विक्षेपण कहलाती है। इंद्रधनुष का बनना भी प्रकाश के इसी विक्षेपण का एक उदाहरण है। वर्षा के बाद वायुमंडल में पानी की बूंदें उपस्थित रहती हैं। जब सूर्य का प्रकाश इन बूंदों पर गिरता है, तो बूंदें प्रिज्म का काम करने लगती हैं और सूर्य के प्रकाश को सात रंगों में विभाजित कर देती हैं। अतः इंद्रधनुष बन जाता है। वर्षा के पूर्व वायुमंडल में नमी न रहने के कारण इंद्रधनुष का बनना असंभव घटना है।

आशा है की आपको सारे प्रश्न रोचक और मजेदार लगे होंगे ।

ऐसे ही सामान्य प्रश्नों के उत्तर कभी-कभी हमसे नहीं बन पाते अर्थात उसका सही उत्तर नहीं बता पाते अगर आपको ऊपर  के  सारे प्रश्न अच्छे लगे होंगे, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। 

"धन्यवाद"
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