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मानव नेत्र का सचित्र वर्णन, नोट्स PDF, भाग और कार्य

नमस्कार दोस्तों, आपका स्वागत है आज के पोस्ट के माध्यम से हम मानव नेत्र के बारे में जानेंगे, मानव नेत्र हमारे शरीर का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है जिसकी सहायता से आज हम इस संसार को देख पा रहे है। अतः आप मानव नेत्र के बारे में जानने के लिए पूरा पोस्ट जरुर पढिएगा। 

जिसमे हम मानव नेत्र, मानव नेत्र का सचित्र वर्णन, मानव नेत्र के भाग निम्न प्रकार से है, मानव नेत्र की क्रियाविधि, समंजन क्षमता, मानव नेत्र के कार्य, दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन के बारे में जानेंगे तो कृपया पूरा  जरुर पढिएगा।

मानव नेत्र (Human Eye)

मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय (Sense Organs) है। यह हमें इस अद्भुत संसार तथा हमारे चारों ओर के रंगों को देखने योग्य बनाता है। आँखें बंद करके हम वस्तुओं को उनकी गंध, स्वाद, उनके द्वारा उत्पन्न ध्वनि या उनको स्पर्श करके, कुछ सीमा तक पहचान सकते हैं,  तथा आँखों को बंद करके रंगों को पहचान पाना असंभव है। इस प्रकार समस्त ज्ञानेंद्रियों में मानव नेत्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें हमारे चारों ओर के रंगबिरंगे संसार को देखने योग्य बनाता है।

मानव नेत्र का सचित्र वर्णन (Pictograph of Human Eye)

manav netra picture in hindi

मानव नेत्र के भाग निम्न प्रकार से है (The parts of the human eye are as follows)-

रेटिना (Retina):यह रक्त पटल के नीचे एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है जिसमें अधिक संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती है। इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही परदे, जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं, पर प्रतिबिंब बनाता है। 

कॉर्निया (cornea): यह नेत्र के सामने श्वेत पटल के मध्य का कुछ उभरा हुआ पारदर्शी भाग होता है। प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं।

नेत्र गोलक (eyeball) : नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। 

परितारिका (iris) : यह कार्निया के पीछे एक अपारदर्शक मांसपेशियों की बनी रचना है। इसके बीच में छिद्र होता है तथा अधिकांश भाग काला होता है। यह पुतली के साईज को नियंत्रित करता है ।

पुतली (pupil): परितारिका के बीच वाले छिद्र को पुतली कहते हैं। इसकी मांसपेशियों में संकुचन व प्रसरण से पुतली का आकार परिवर्तित हो जाता है। प्रकाश में पुतली का आकार छोटा व अँधेरे में आकार बढ़ जाता है।

लेंस (Lens): आईरिस के पीछे एक मोटा लचीला उत्तल लैंस होता है जिसे नेत्र लैंस कहते हैं। मांसपेशियों पर तनाव को परिवर्तित कर इस लैंस की वक्रता त्रिज्या को परिवर्तित किया जा सकता है। इससे वस्तु का उल्टा, छोटा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है।

कचाभ द्रव (vitreous): नेत्र लैस एवं स्वच्छ मण्डल के बीच के स्थान में एक पारदर्शक पतला द्रव भरा रहता है। जिसे जलीय द्रव कहते है। यह आँख की गोलाई बनाने के लिये उचित दबाव बनाये रखता है। काॅर्निया व अन्य भागों को पोषण यही से मिलता है।

रक्त पटल (choroid) : यह श्वेत पटल के नीचे अन्दर की ओर एक काले रंग की झिल्ली होती है। इसके पृष्ठ भाग में बहुत सी रक्त की धमनी एवं शिराएँ होती है, जो नेत्र को आक्सीजन व पोषण प्रदान करती है। आँख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण कर भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरूद्ध करती है।

मानव नेत्र की क्रियाविधि (Mechanism of human eye):-

मानव नेत्र एक कैमरे की भाँति है। इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही परदे, जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं, पर प्रतिबिंब बनाता है। प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं। 

यह झिल्ली नेत्र गोलक के अग्र पृष्ठ पर एक पारदर्शी उभार बनाती है। नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है। क्रिस्टलीय लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर फोकसित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है। 

कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है जिसे परितारिका कहते हैंपरितारिका गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के साइज़ को नियंत्रित करता है। पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। 

अभिनेत्र लेंस रेटिना पर किसी वस्तु का उलटा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। रेटिना एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है जिसमें बृहत् संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं। प्रदीप्ति होने पर प्रकाश-सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिगनल उत्पन्न करती हैं।

ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है तथा अंततः इस सूचना को संसाधित करता है जिससे कि हम किसी वस्तु को जैसा है, वैसा ही देख लेते है।

समंजन क्षमता (accommodative ability):-

नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?

अभिनेत्र लेंस रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है। इसकी वक्रता में कुछ सीमाओं तक पक्ष्माभी पेशियों द्वारा रूपांतरण किया जा सकता हैअभिनेत्र लेंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है। जब पेशियाँ शिथिल होती हैं तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है। इस प्रकार इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। इस स्थिति में हम दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख पाने में समर्थ होते हैं।

जब आप आँख के निकट की वस्तुओं को देखते हैं तब पक्ष्माभी पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। इससे अभिनेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाती हैअभिनेत्र लेंस अब मोटा हो जाता है। परिणामस्वरूप, अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी घट जाती है। इससे हम निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।

अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है। तथापि अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती। किसी छपे हुए पृष्ठ को आँख के अत्यंत निकट रख कर उसे पढ़ने का प्रयास कीजिए। आप अनुभव करेंगे कि प्रतिबिंब धुँधला है या इससे आपके नेत्रों पर तनाव पड़ता है। किसी वस्तु को आराम से सुस्पष्ट देखने के लिए आपको इसे अपने नेत्रों से कम से कम 25 cm दूर रखना होगा। वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना किसी तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। 

इसे नेत्र का निकट बिंदु भी कहते हैंकिसी सामान्य दृष्टि के तरुण वयस्क के लिए निकट बिंदु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती हैवह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु (far Point) कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता हैइस प्रकार, आप नोट कर सकते हैं कि एक सामान्य नेत्र 25cm से अनंत दूरी तक रखी सभी वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है। - कभी-कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद (cataract) कहते हैंइसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाता है। मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के पश्चात दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।

मानव नेत्र के कार्य (Functions of The Human Eye in Hindi)

  • मानव नेत्र का प्रमुख कार्य रंगों को पहचानना होता है।
  • मानव नेत्र के द्वारा हम वस्तुयो को देख सकते है । 
  • नेत्र की सहायता से ही मनुष्य अपनी सभी दैनिक कार्यो को करता है अर्थात यह कहा जा सकता है की मनुष्य की  सम्पूर्ण दैनिक क्रियाकलापों के संचालन में नेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है । 

दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन (vision defects and their correction)

कभी-कभी नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता खो सकते हैं। ऐसी स्थितियों व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नहीं देख पाते। नेत्र में अपवर्तन दोषों के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती है।

प्रमुख रूप से दृष्टि के तीन सामान्य अपवर्तन दोष होते हैं। ये दोष हैं -

 (1.) निकट दृष्टि (Myopia),

 (2.) दीर्घ दृष्टि (Hypermetropia) 

  (3.) जरा दूरदृष्टिता (Presbyopia)।

 इन दोषों को उपयुक्त गोलीय लेंस के उपयोग से संशोधित किया जा सकता है। हम इन दोषों तथा उनके संशोधन के बारे में संक्षेप में नीचे चर्चा करेंगे।

(1.) निकट दृष्टि दोष (Near sightedness)

निकट दृष्टि दोष को निकटदृष्टिता (Near sightedness) भी कहते हैं। निकट दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता हैऐसा व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तुओं को ही सुस्पष्ट देख पाता हैनिकट दृष्टि दोषयुक्त नेत्र में किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल (रेटिना) पर न बनकर     दृष्टिपटल के सामने बनता है।

Near sightedness in hindi


इस दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं - 

(i) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना।

(ii) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।

दूर करने के  उपाय (remedies to remove)- इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस (अपसारी लेंस) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है। 

उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस वस्तु के प्रतिबिंब को वापस दृष्टिपटल (रेटिना) पर ले आता है तथा इस प्रकार इस दोष का संशोधन हो जाता है । 

(2.)  दीर्घ-दृष्टि दोष (Far-sightedness) 

दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर दृष्टिता (Far-sightedness) भी कहते हैं। दीर्घ दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता हैपरंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट बिंदु सामान्य निकट बिंदु ( 25 cmसे दूर हट जाता हैऐसे व्यक्ति को आराम से सुस्पष्ट पढ़ने के लिए पठन सामग्री को नेत्र से 25 cm से काफ़ी अधिक दूरी पर रखना पड़ता हैइसका कारण यह है कि पास रखी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल (रेटिना) के पीछे फोकसित होती हैं ।

Far-sightedness in hindi


  इस दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं :

 (1) अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना  । 

 (ii) नेत्र गोलक का छोटा हो जाना। 

दूर करने के  उपाय (remedies to remove)- इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस (उत्तल लेंस) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है। इसे  उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं। 


(c) जरा दूरदृष्टिता ( Zara foresight)-

आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती हैअधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदु दूर हट जाता हैसंशोधक चश्मों के बिना उन्हें पास की वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट देखने में कठिनाई होती है। इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते हैंयह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता हैकभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकने के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती हैसामान्य प्रकार के द्विफोकसी लेंसों में अवतल तथा उत्तल दोनों लेंस होते हैं। ऊपरी भाग अवतल लेंस होता हैयह दूर की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता हैनिचला भाग उत्तल लेंस होता हैयह पास की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायक होता है।


जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology

जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology


नमस्कार,आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस  पोस्ट में आपको जैव प्रौद्योगिकी से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली दिया जा रहा है । इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए जा रहे हैं। जैव प्रोद्योगिकी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है जिसके अंतर्गत जीवाणुओं की ऊतक या कोशिका का उपयोग करके नए जीवों का उत्पादन किया जाता है। इन जीवों का उत्पादन सामान्य दाब, निम्न ताप एवं उदासीन नमी या जल में इन नए जीवों का उत्पादन होता है। अगर आप जैव प्रोद्योगिकी जिसे अंगेजी में Biotechnology कहा जाता है इस विषय में स्नातक की पढाई करना चाहते हैं तो आपको जैव प्रौद्योगिकी-पारिभाषिक शब्दावली (Biotechnology-Terminology) के बारे में जरुर जान लेना चाहिए।



Biotechnology - Biology Terminology

Jaiva Praudyogikee Paribhashik Shabdavali

1. जीन क्लोनिंग (Gene cloning) - पुनर्योगज D.N.A. के पोषक कोशिका में प्रवेश के बाद परपोषी कोशिका का संवर्धन जिससे वांछित जीन की भी क्लोनिंग होती है।

2. निवेशी निष्क्रियता (Insertional Inactivation) - रंग पैदा करने वाले जीन उत्पाद, जैसे- बीटा गैलेक्टो साइडेज को कोडित करने वाले जीन में वांछित जीन निवेशित कर पुनर्योगजों की पहचान करना।

3. लाइगेज (Ligase) - D.N.A. खण्डों को जोड़ने वाला एन्जाइम।

4. न्यूक्लिएज (Nuclease) - नाभिकीय अम्ल (DNA/ RNA) का पाचन करने वाला एन्जाइम।

5.ओरी (Ori) - प्लाज्मिड या वाहक का वह स्थल जहाँ से प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ होता है।

6.प्लाज्मिड (Plasmid ) - जीवाणुओं के गुणसूत्रों से बाहर के गोलाकार स्व-प्रतिकृतिकरण करने वाले डी.एन.ए. अणु।

7.पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक (Recombinant DNA Technology) - बाह्य या विजातीय डी.एन.ए. को दूसरे जीव के डी.एन.ए. से जोड़कर काइमेरिक डी. एन. ए. बनाने की प्रक्रिया या जेनेटिक इंजीनियरिंग।

8. पश्च विषाणु (Retro Virus) - आर.एन.ए. विषाणु जिनमें डी.एन.ए. निर्माण हेतु रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम पाया जाता है।

9. वाहक / संवाहक (Vector) - डी.एन.ए. अणु जिसमें उचित पोषक कोशिका के अंदर प्रतिकृतिकरण की क्षमता होती है तथा जिसमें विजातीय डी.एन.ए. निवेशित (Insert) किया जा सकता है।

10. जी.एम.ओ. (GMO) - जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म या ट्रांसजेनिक जिनके जीनों में फेरबदल कर कोई कार्यशील विजातीय डी.एन.ए. प्रविष्ट करा दिया गया हो, जैसे बी.टी. पौधे।

12. जीन थेरेपी (Gene Therapy) - त्रुटिपूर्ण या विकारयुक्त जीन को सामान्य कार्यशील जीन द्वारा प्रतिस्थापित कर रोग - उपचार।

13. ह्यूम्यूलिन (Humulin) - यू. एस की एलि लिली कम्पनी द्वारा पुनर्योगज तकनीक से उत्पादित मानव इंसुलिन का ब्रांड नाम।

14.p 53 जीन (p53 जीन) - कोशिका विभाजन के नियन्त्रण के लिए यह जीन कोशिका चक्र को रोकती है।

15. पेटेन्ट (Patent) - सरकार द्वारा किसी वस्तु/प्रक्रिया के खोजकर्ता को दिया जाने वाला अधिकार जो अन्य व्यक्तियों को व्यावसायिक उपयोग से रोकता है।

16. खोजी (Probe) - न्यूक्लियोटाइड के छोटे 13-30 क्षारक युग्म लम्बे खण्ड है जो रेडियोएक्टिव अणुओं से चिन्हित करने पर पूरक खण्डों की पहचान हेतु प्रयोग किये जाते हैं।

17. प्रोइंसुलिन (Proinsulin) - इंसुलिन का पूर्ववर्ती अणु जिसमें एक अतिरिक्त C-पेप्टाइड होता है तथा इसके निकलने (प्रसंस्करण) से इंसुलिन बनता है।

18.जीन लाइब्रेरी (Gene library) - जीव के DNA के सभी जीनों को किसी वाहक के DNA के साथ समाकित करके क्लोनों का मिश्रण बना लेन।

19.DNA रिकॉम्बिनेंट तकनीक (DNA Recombinent Technology) - वह तकनीक जिसके अंतर्गत किसी मनचाहे DNA का कृत्रिम रूप से निर्माण करते है।

इसे पढ़ेवंशागति के सिद्धान्त - पारिभाषिक शब्दावली

इसे पढ़े - वंशागति का आण्विक आधार - पारिभाषिक शब्दावली

20.ट्रांसफॉर्मेशन(Transformation) - जब किसी स्वतंत्र DNA को बैक्टीरियल सेल में स्थानान्तरित करने की क्रिया।

21.रोगी थेरैपी (Patient Therapy) - इस थेरैपी में प्रभावित ऊतक में स्वस्थ जीनों का प्रवेश करा दिया जाता है।

22.भ्रूण थेरैपी (Embryo Therapy) -इस थेरैपी में दोषी जीन का पता लग जाने पर ,जायगोट बनने के बाद भ्रूण की आनुवंशिक संरचना को बदला जाता है।

23.सोमोक्लोनल विभिन्नताए (Somoclonal Variation) - कृत्रिम संवर्धन माध्यम कोशिकाओं अथवा ऊतको में होने वाली आकस्मिक एवं प्राकृतिक विभिन्नताओ को ही सोमोक्लोनल विभिन्नताए कहते है

24. हैटरोकेरियान(Heterokaryon) - ऐसी कोशिकाए जिसमे दो भिन्न -भिन्न कोशिकाओ में नाभिक होता है।

25.संकर कोशिका (Hybrid Cell) - कोशिका - संयोजन से बने हैटरोकेरियान में अंततः समससूत्रण विभाजन से बने सेल को संकर कोशिका कहते है।

इस पोस्ट में हमने जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े सवाल अक्सर पूछे जाते रहते हैं। 

उम्मीद करता हूँ कि जैव प्रौद्योगिकी-पारिभाषिक शब्दावली (Biotechnology Terminology) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा ,अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें। धन्यवाद !!

कृषि एवं जन्तु पालन-शब्दावली (Agriculture and Animal Husbandry-Terminology)

कृषि एवं जन्तु पालन-पारिभाषिक शब्दावली (Agriculture and Animal Husbandry-Terminology)

हेलो दोस्तों, आपका answerduniya.com में स्वागत है। आप सभी इस बात को अक्सर सुनते आ रहे हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है और भारत में पशुपालन को बहुत अधिक महत्व दिया जाता है। अगर आप कृषि एवं जंतु के पालन के बारे में पढ़ना या जानना चाहते हैं तो आपको पहले कृषि एवं जन्तु पालन-पारिभाषिक शब्दावली (Agriculture and Animal Husbandry-Terminology) के बारे में जरूर जान लेना चाहिए। इस पोस्ट में आपको कृषि एवं जन्तु पालन से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली दिया जा रहा  है। इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए गए है।

Agriculture and Animal Husbandry-Terminology)

Krishi Evam Jantu Paribhashik Shabdavali

1. कृषि ( Agriculture) - 

विज्ञान की शाखा या पद्धति जो फसलों को उगाने, फसलों के लिए भूमि तैयार करने तथा पशु पालन से सम्बन्धित है, फसलों का उगाना संग्रहण व विपणन भी इसी के भाग है।

2.पशु पालन (Animal Husbandry)- कृषि की वह शाखा जो पशुओं की देखभाल, प्रबन्धन व प्रजनन से सम्बन्धित है।

3.कृत्रिम मधुमक्खी छत्ता (Apiary)- लकड़ी से बना कक्ष जिसमें मधुमक्खी पालन किया जाता है।

4. मधुमक्खी पालन (Apiculture)- व्यावसायिक रूप से शहद उत्पादन के लिए किया जाने वाला मधुमक्खी संवर्धन।

5. जल कृषि (Aquaculture)- मछली, क्रस्टेशियन, मोलस्क या जलीय पादपों का व्यावसायिक संवर्धन।

6.कृत्रिम वीर्यसेचन ( Artificial Insemination)-उन्नत नस्ल के नर का वीर्य मादा के जननमार्ग में अन्तःक्षेपित या इंजेक्ट करना।

पढ़ें- मृदा अपरदन क्या है।

7. जैव पुष्टिकरण (Biofortification)- पादप प्रजनन की विभिन्न तकनीकों द्वारा फसली पौधों के पोषक मान में वृद्धि - करना।

8कैलस (Callus)- ऊतक संवर्धन में एक्सप्लाण्ड की संवर्धन माध्यम में वृद्धि से बना असंगठित व अविभेदित कोशिकाओं का समूह।

9. सांद्रिक पोषक (Concentrates nutrient)- पशुओं के - खाने में पोषक पदार्थों जैसे विटामिन, खनिजप्रोटीन या वसा आदि से समृद्ध भाग जैसे धान्य, खलीबिनौला।

10. घरेलूकरण (Domestication)- किसी जीव (पादप या जन्तु) को उसरी वन्य अवस्था से मानव प्रबन्धन की स्थिति में लाना।

11. कत्र्त्तातक (Explant)- किसी पौधे की वह कोशिका या ऊतक जिसे ऊतक संवर्धन हेतु पोषक माध्यम पर उगाया जाता है।

12. विदेशी नस्ल (Exotic Breed) -किसी क्षेत्र में प्रवेशित विदेशी नस्ल।

13. जनन द्रव्य (Germplasm)- किसी पौधे के सभी जीनों के सभी एलील्ससभी सम्भावित स्रोतों से।

14. उद्यानिकी (Horticulture)- कृषि की शाखा जो फलो, वृक्षों, उद्यानों, सजावटी पौधों की कृषि से सम्बन्धित है।

15. संकरण (Hybridisation)- दो भिन्न लक्षणों वाले जनकों के लैंगिक प्रजनन से संकरों का निर्माण।

16. हेटेरोसिस (Heterosis)- संकरों की दोनों जनकों से श्रेष्टता की अवस्था।

17. अन्तः प्रजनन (Inbreeding)- एक ही किस्म (Variety) नस्ल (Breed) के जीवों के बीच प्रजनन।

18. पशु सम्पदा (Livestock)- घरेलू कृत पशु जैसे गौवंश, भैंस, भेड़-बकरी, घोड़ाऊँट आदि।

19. दुधारू पशु (Milch Animal)- दूध देने वाले पशु जैसे गाय, भैंस, बकरी आदि।

20. पादप प्रजनन (Plant Breeding)- अनुप्रयोज्य वनस्पति विज्ञान की एक शाखा जो फसली पौधों में आनुवंशिक सुधार सम्बन्धित है।

इसे पढ़े पुष्पीय पादपो में लैंगिक जनन  -पारिभाषिक शब्दावली 

21. मत्स्य पालन उत्पादन(Pisciculture)- मछलियों का व्यावसायिक।

22. पोल्ट्री (Poultry)- अण्डे व माँस प्राप्ति हेतु मुर्गी व अन्य पक्षियों का पालन।

23. चयन (Selection)- मिश्रित समष्टि से वांछित गुणों वाले जीवों की पहचान व चयन।

24. सुपरओव्युलेशन (Superovulation)- उन्नत नस्ल को मादा (गाय आदि) में हॉर्मोनों के इंन्जेक्शन द्वारा अनेक अण्डों का निर्माण (अण्डोत्सर्ग) की प्रक्रिया।

25. स्वमिंग ( Swarming) - पुरानी रानी (Queen) मक्खी को कुछ श्रमिकों के साथ छोड़कर नए स्थान पर नयी कॉलोनी निर्माण की प्रक्रिया।

26.लवणन (Salting)- मछलियों को सोडियम क्लोराइड सहित परासरण के व्दारा आंशिक निर्जलीकरण को लवणन कहते है।

27.कृमि खाद उत्पादन(Vermicomposting) - कार्बनिक कचरे के कम्पोस्टिंग केंचुए व्दारा कराने की क्रिया।

28.कीटनाशक(Insecticides) - रसायन जिनका उपयोग कीटों को मारने,भगाने और इनकी संख्या कम करने में होता है।

29.अथाह हिमीकरण (Deep freezing)- हिमीकरण से पूर्व मछलियों को ठीक प्रकार से साफ धोया जाता है और मछलियों का सिर काटकर - 18C तापक्रम पर लम्बे समय के लिए रखा जाता है।

30.सूर्य शुष्कन (Sun drying ) - छोटी मछलियों को सूर्य के प्रकाश में अनेक बार पलटकर सुखाया जाता है। बड़ी मछलियों को छोटे-छोटे टुकडों में काटकर सुखाया जाता है।

इस पोस्ट में हमने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाने वाले कृषि एवं जन्तुपालन से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली के बारे में जाना। 

उम्मीद है आपको कृषि एवं जन्तु पालन-पारिभाषिक शब्दावली (Agriculture and Animal Husbandry-Terminology) का यह पोस्ट पसंद आया होगा। अगर आपको यह पोस्ट उपयोगी लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें।

जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology in Hindi)

जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology)

हेलो दोस्तों, आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस लेख में आपको जन्तु ऊतक से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली के बारे में जानने वाले हैं। इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए गए है। भ्रूणीय विकास में समान कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहा जाता है। शरीर के निर्माण में सबसे छोटी इकाई कोशिका होती है जंतु के शरीर में ऐसे ही समान प्रकार के कोशिका के समूहों को जंतु ऊतक कहा जाता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC, SSC, PCS, RRB, NTPC, RAILWAY, CDS, TET CTET इत्यादि में जन्तु ऊतक और जन्तु ऊतक  से जुड़े पारिभाषिक शब्दावली से जुड़े प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। इस लेख में ऐसे ही जन्तु ऊतक के महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है।

Animal Tissues - Terminology in Hindi

Jantu Utak Paribhashik Shabdavali

1.ऊतक (Tissue)-"लगभग एक ही परिमाण तथा आकर की कोशिकाओं का समूह जो उत्पत्ति, विकास, रचना, कार्य के विचार से एक समान हो, ऊतक कहलाते है।"

2.अंग (Organ)-"एक या एक से अधिक ऊतकों से बने शरीर के उस भाग को जो एक या कई विशिष्ट कार्य करता हैं, अंग कहते हैं।"

3.ऊतक संगठन (Tissue Organization)-"जीव शरीर का यह संगठन जो की कई विशिष्ट कार्य करने वाले ऊतकों का बना होता है, ऊतक संगठन कहलाता है।"

पढ़ें- पादप ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली।

4.अंग तंत्र (Organ System)-"विशिष्ट कार्य करने वाले अंगों के समूह को अंग तंत्र कहते हैं।"

5.शरीर (Body)-"अंग तंत्र मिलकर शरीर का निर्माण करता हैं।"

6.पाचन तंत्र (Digestive System)-भोजन का पाचन तथा अवशोषण का कार्य करता है, पाचन तंत्र कहलाता है।

7.श्वसन तंत्र (Respiratory System)-गैसों के विनियम तथा ग्रहण का कार्य करता है, श्वसन तंत्र कहलाता है।

8.परिसंचण तंत्र (Circulatory System)-शरीर के अन्दर संवहन का कार्य करती है, परिसंचरण तंत्र कहलाता है।

9.उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)-उत्सर्जन तंत्र उत्सर्जी पदार्थ को शरीर के बाहर निकलता है।

जानें- मानव जनन - जीव विज्ञान पारिभाषिक शब्दावली।

10.कंकाल तंत्र (Skeletal System)-कंकाल तंत्र शरीर को आधार प्रदान करता है, कोमल अंगों की रक्षा करता है तथा पेशियों को जोड़ने के लिए स्थान देता है।

11.तंत्रिका तंत्र (Nervous System)-तंत्रिका तंत्र सोचने समझाने याद रखने तथा संवेदनाओं को ग्रहण करने का कार्य करता है। मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा इनसे निकलने वाली तंत्रिकाएँ मिलकर तंत्रिका तंत्र का निर्माण करती है।

12.अन्तःस्त्रावी तंत्र (Endocrine System)-शरीर की वृद्धि तथा विकास के अलावा जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करता है अन्तःस्त्रावी तंत्र कहलाता है।

13.अध्यावारणी तंत्र (Integumentary System)-यह तंत्र शरीर को वातावरण से सुरक्षा प्रदान करता है। त्वचा और इससे सम्बंधित रचनाएँ अध्यावारणी तंत्र का निर्माण करती है।

14.उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)-ऐसा ऊतक जो की विभिन्न प्रकार के आंतरिक अंगों एवं शरीर की स्वतंत्र या बाहरी सतहों पर पाया जाता है, उसे उपकला ऊतक कहते है।

15.सरल उपकला ऊतक(Simple Epithelial Tissue)-सरल उपकला ऊतक कोशिकाओं की केवल एक ही स्तर का बना होता है।

16.संयुक्त उपकला ऊतक (compound Epithelial Tissue)-संयुक्त उपकला ऊतक कोशिका के कई स्तरों व्यवस्थित होती हैं।

17.विशेषीकृत उपकला ऊतक (Specialized Epithelial Tissue)-कुछ उपकला ऊतक कुछ विशिष्ट कार्यों को करने के लिए रूपांतरित होती हैं, विशेषीकृत उपकला ऊतक कहते हैं।

18.संयोजी ऊतक (Connective Tissue)-संयोजी ऊतक वह ऊतक है, जो शरीर ऊतकों के सभी तथा अंगों को जड़ने का कार्य करती है, इसी कारण यह ऊतक अन्य ऊतकों के अनुपात में शरीर के अन्दर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।

19.वास्तविक संयोजी ऊतक (Proper Connectiv Tissue)-इस ऊतक में आधात्री बहुत अधिक मात्रा में जेली या अर्द्ध-तरल रूप में पाई जाती है, उसे वास्तविक संयोजी ऊतक है।

20.तंतुमय संयोजी ऊतक (Fibrous Connective Tissue)-इस ऊतक में आधात्री बहुत कम मात्रा में पाई जाती  है, लेकिन रेशे अधिक मात्रा में पाई जाती है।

21.कंकाली संयोजी ऊतक (Skeletal Connective Tissue)-कशेरुकी जंतुओं के शरीर की आकृति तथा आकर स्थिर बनाये रखने के लिए इनके शरीर में एक मजबूत ढांचा पाया जाया है, जिसे कंकाल कहते हैं। यह एक रूपांतरित संयोजी ऊतक का बना होता है, जिसे कंकाली या अवलम्बन ऊतक कहते हैं।

22.संवहनीय संयोजी ऊतक (Vascular Connective Tissue)-रूपांतरित संयोजी ऊतक एक प्रकार का संवहनीय संयोजी ऊतक है, जिसमें मैट्रिक्स तरल होता है, जिसे प्लाज्मा कहते है।


इस लेख में हमने जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology in Hindi) के बारे में जाना । भ्रूणीय विकास में  कोशिका सबसे छोटी इकाई होती है, शरीर में ऐसे ही समान प्रकार के कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहा जाता है। विभिन्न परीक्षाओं को दृष्टिगत रखते हुए इस लेख को तैयार किया गया है ।

आशा करता हूँ कि जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology in Hindi) का यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह लेख पसंद आये तो इस लेख को शेयर अवश्य करें।

जीन क्लोनिंग क्या है? (What is Gene Cloning in Hindi)

जीन क्लोनिंग क्या है (What is Gene Cloning in Hindi)

हेल्लो दोस्तों क्या आप भी सर्च कर रहे है जीन क्लोनिंग क्या है पूरी जानकारी तो आप बिलकुल सही वेबसाइट में आये है आज के आर्टिकल में जीन क्लोनिंग क्या है, जीन क्लोनिंग के प्रकार, जीन क्लोनिंग कि विधि, जीन क्लोनिंग के महत्व, साथ ही आप जानेंगे जीन क्लोनिंग के उपयोग इन सब की जानकारी नीचे दिया गया है. jin cloning

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Gene Cloning in Hindi

इस तकनीक में क्लोनिंग के द्वारा जीन की एकल कॉपी के समान असीमित कॉपी का प्राप्त करना । जीन क्लोनिंग में संवाहक द्वारा Host-Cell में ऐच्छिक रूप से प्रवेश कराये जाते हैं।

जीन क्लोनिंग परिभाषा (Gene cloning definition)

जीन क्लोनिंग (Gene cloning)वह प्रक्रिया है जिसमें एक वांछित जीन किसी वाहक के साथ जोड़ दी जाती है। इस प्रकार बने पुनर्योगज (Recombinant) डी. एन. ए. (DNA) को रूपान्तरण की प्रक्रिया में किसी पोषक में किसी पोषक (Host) कोशिका में प्रविष्ट करा दिया जाता है।

आसान शब्दों में कहें तो क्लोनिंग का तात्पर्य है "अलैंगिक विधि से एक जीव से दूसरा जीव तैयार करना।" इस विधि से उत्पादित क्लोन अपने जनक से शारीरिक और आनुवांशिक रूप में समरूप होते हैं। अर्थात् किसी जीव का प्रतिरूप तैयार करना ही क्लोनिंग है।

जीन क्लोनिंग की क्रिया निम्नलिखित चरणों में पूरी होती है (Gene Cloning Stages) – 

ऊपर हमने जाना की जीन क्लोनिंग क्या है? अब नीचे जानेंगे कि जीन क्लोनिंग की क्रिया किस प्रकार होता है-

  1. एक या अधिक रेस्ट्रिक्शन एन्जाइम के द्वारा DNA को विघटित किया जाता है।
  2. जिस DNA की क्लोनिंग की जाती है, उसे लक्षित वाहक से मिलाया जाता है और पुनर्योजित रीकॉम्बिनेण्ट अणु को उत्पन्न किया जाता है। 
  3. रीकॉम्बिनेण्ट DNA अणु को पोषक जीवाणु कोशिका में प्रवेश कराया जाता हैइस प्रकार वाहक अणु के प्रवेश के द्वारा पोषक कोशिका रूपान्तरित हो जाती है। 
  4. रूपान्तरित कॉलोनी का चयन कर वृद्धि की जाती है।

जीन क्लोनिंग के प्रकार (Types of Gene Cloning)-

ऊपर हमने जाना जीन क्लोनिंग की क्रिया विधि को, अब जानते है की जीन क्लोनिंग कितने प्रकार के होते है।

मुख्य रूप से जीन क्लोनिंग तीन प्रकार के होते है -

(1) जीन क्लोनिंग या आणविक क्लोनिंग (Gen or Molecular Cloning) 

इस क्रिया अंतर्गत पहले जीन-अभियांत्रिकी (Gene Engineering) के प्रयोग से ट्रांसजेनिक बैक्टीरिया का निर्माण किया जाता है, फिर उस आनुवांशिक रूप से संशोधित बैक्टीरिया के क्लोन प्राप्त किये जाते हैं।

(2) रीप्रोडक्टिव क्लोनिंग (Reproductive Cloning) 

इस क्रिया में सोमैटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर (SCNT) तकनीक का प्रयोग किया जाता है।साथ ही इसमें  कोशिका से नाभिक को निकालकर केंद्रकरहित अंडाणु में प्रतिस्थापित किया जाता है और विद्युत तरंग प्रवाहित करके भ्रूण तैयार किया जाता है।

(3) थेराप्यूटिक क्लोनिंग ( Therapeutic Cloning)

इस विधि से मानवीय अनुसंधान हेतु मानव भ्रूण तैयार किया जाता है।भ्रूण के तैयार होने की आरंभिक अवस्था में इससे ‘स्टेम सेल’ को अलग कर लिया जाता है। बाद में इस सेल से आवश्यक मानवीय कोशिकाओं का विकास किया जाता है।

जीन क्लोनिंग की क्रियाविधि (Mechanism of gene cloning)

जीन क्लोनिंग की एक सरल व साधारण प्रक्रिया इंसुलिन जीन (Insulin gene) के संदर्भ में यहाँ वर्णित की गई है।

  1. Insulin gene को बनाना।
  2. Plasmid pBR322 का बनाना। 
  3. pBR, 22 में Insulin gene प्रविष्ट करना। 
  4. E.coli में RNA प्रविष्ट करना 
  5. पुनर्संयोजकों (Recombinants) का चयन करना।

जीन, जीनोमिक तथा cDNA लाइब्रेरी

किसी जीव के DNA में से वांछित जीन को क्लोनिंग (Cloning) के लिए अलग करना जेनेटिक इन्जीनियरिंग का एक महत्वपूर्ण कार्य है। इसके लिए जीव के DNA के सभी जीनों को किसी वाहक के DNA के साथ समाकलित करके क्लोनों का मिश्रण बना लेते हैं। इस प्रकार के मिश्रण को जीन लाइब्रेरी (Gene Library) कहते हैं। यह मिश्रण जब सीधे * जीनोम (Genome) के DNA से तैयार किया जाता है, तो इसे जीनोमिक लाइब्रेरी (Genomic library) तथा जब इसे cDNA, mRNA किसी जीव या कोशिका के किसी गुण या लक्षण के लिए प्रोटीन का निर्माण कराते हैं। अतः m RNA का टेम्पलेट (Template) के रूप में उपयोग क उससे, उसका प्रति या डुप्लीकेट (Duplicate) DNA अणु प्राप्त करते हैं। इस DNA को DNA (Copy DNA या Complementary DNA) कहते हैं। इस अभिक्रिया में रिवर्स ट्रान्सक्रिप्टेज एन्जाइम का प्रयोग किया जाता है।

जीनोमिक लाइब्रेरी का निर्माण (Construction of Genomic Library) 

इसके लिए सम्बन्धित जीव का सम्पूर्ण DNA पृथक किया जाता है। इस DNA को यान्त्रिक एन्जाइमों के उपयोग से उपयुक्त आकार के टुकड़ों में काटा जाता हैं। प्रतिबन्ध एन्जाइमों द्वारा केवल आंशिक पाचन किया जाता है। जीनोम DNA के खण्डों के मिश्रण से विभिन्न विधियों द्वारा उपयुक्त आकार के खण्डों को क्लोनिंग के लिए अलग कर लेते हैं। इन खण्डों को किसी उपयुक्त वाहक में प्रवेश कराकर क्लोन करते हैं। जीनोमिक लाइब्रेरी का आकार जीनोम की जटिलता तथा DNA के खण्डों के आकार पर निर्भर करता है। 

वांछित क्लोन की पहचान (Indentification of the • - Desired clone) 

 जीनोम लाइब्रेरी के क्लोनों में से वांछित जीन / DNA खण्ड वाले की पहचान कॉलोनी संकरण (Colony Hybridization) द्वारा की जाती है। कॉलोनी संकरण के लिए चिन्हित (labelled) साधारण रेडियोधर्मी समस्थानिक (rodioactive isotope) से चिन्हित, अन्वेषक (probe) का उपयोग किया जाता है। यह अन्वषक (Probe) 

(i) सम्बन्धित जीन का mRNA, 

(ii) उसके mRNA का cDNA, 

(iii) किसी अन्य जीव का समजात जीन अथवा 

(iv) उस जीन का DNA खण्ड के क्षारक क्रम वाला संश्लेषित ओलिगोन्यूक्लिओटाइड हो सकता हैं।

जीनोम लाइब्रेरी में वांछित जीन/DNA खण्ड वाले क्लोनों की आवृत्ति निम्न विधि से बढ़ा सकते हैं। क्लोन के लिए विलग किए DNA खण्डों का इलेक्ट्रोफोरेसिस या निष्पादन व्युत्क्रम कला द्रव क्रोमैटोग्राफी (High performances reverse Liquid chromatography) करते हैं। इन विधियों से DNA खण्डों का मुख्य रूप से आमाप (Size) एवं क्षारक संघटन (base composition) के आधार पर विलगन होता है। इलेक्ट्रोफोरेसिस के बाद जेल (gel) का वांछित जीन । DNA खण्ड के लिए अन्वेषक (Probe) के साथ सदर्न संकरण (Southern hybridization) करते हैं। इससे जेल में वांछित जीन की स्थिति ज्ञात हो जाती है। अब तक अन्य जेल से वांछित जीन वाले क्षेत्र को विलग करके उसमें 

जीन क्लोनिंग का महत्व (Importance of Gene Cloning)-

ऊपर आपने जाना की जीन क्लोनिंग की क्रियाविधि कैसे कम करता है पूरी जानकरी ऊपर दिया है है अब जानते है  जीन क्लोनिंग के महत्व.

  • डीएनए क्लोनिंग का उपयोग बायोमेडिकल तकनीकों से इंसुलिन जैसे प्रोटीन बनाने के लिए किया जा सकता है । 
  • इसका उपयोग सामान्य जीन के कामकाज को समझने के लिए गैर-कार्यात्मक जीन के पुनः संयोजक संस्करणों को विकसित करने के लिए किया जाता है। 
  • यह जीन थेरेपी में भी लागू होता है। यह एक विशेष जीन पर उत्परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण करने में मदद करता है।

जीन क्लोनिंग का उपयोग (Use of Gene Cloning) -

  • जीन क्लोनिंग कैंसर के उपचार में भी कारगर हो सकता है। 
  • जीन क्लोनिंग की मदद से लीवर, किडनी आदि अंगों का निर्माण कर अंग प्रत्यारोपण को सुविधाजनक बनाया जा सकता है। 
  • क्लोनिंग के द्वारा विशेष प्रकार की वनस्पतियों व जीवों का क्लोन बनाया जा सकता है, 
  • इससे औषधियों का निर्माण तथा जैव-विविधता का संरक्षण किया जा सकता है।

उम्मीद करता हूँ कि आपको जीन क्लोनिंग क्या है पूरी जानकारी आपको पसंद आया हो जीन क्लोनिंग अच्छे से समझने की कोशिश है साथ ही आपने जाना की क्लोनिंग की क्रिया निम्नलिखित जीन क्लोनिंग के प्रकार (जीन क्लोनिंग की क्रियाविधि) mechanism of gene cloning जीन क्लोनिंग क्या है इसका महत्व  जीन क्लोनिंग के उपयोग 

FAQs -

1. जीन क्लोनिंग से आप क्या समझते हैं इस तकनीकी की सफलता के कारण लिखिए?

उत्तर - इस तकनीकी को पुनर्योगज DNA तकनीकी या जीन क्लोनिंग कहते है इस तकनीकी के सफलता के तीन कारण थे- 

(i) DNA की विकृतिकरण एवं पुन: स्वभाविकरण की क्षमता, 

(ii) प्रतिबंधित एंडोन्यूक्लियेज एंजाइम की खोज, 

(iii) जीन संबंधन का विकास।

2. जीन क्लोनिंग कैसे की जाती है?

उत्तर - एक क्लोन बनाने के लिए, वैज्ञानिक एक जानवर की दैहिक कोशिका से डीएनए को एक अंडे की कोशिका में स्थानांतरित करते हैं, जिसके नाभिक और डीएनए को हटा दिया गया है । अंडा एक भ्रूण के रूप में विकसित होता है जिसमें कोशिका दाता के समान जीन होते हैं। फिर भ्रूण को विकसित होने के लिए एक वयस्क महिला के गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है।

3. क्लोनिंग द्वारा निर्मित संसार के पहले जीव का क्या नाम है?

उत्तर -  वर्ष 1996 में डॉ. इयान विल्मुट और उनके सहयोगियों ने सोमेटिक सेल न्यूक्लियर ट्रांसफर टेक्नोलॉजी का प्रयोग कर ”डाॅली” नामक भेड़ का क्लोन तैयार किया, परंतु इसकी जानकारी वर्ष 1997 में सार्वजनिक की गई।

4. सर्वप्रथम क्लोन किया जाने वाला स्तनधारी जीव कौन सा था?

उत्तर -  दुनिया में एक वयस्क स्तनधारी जीव की पहली क्लोन थी भेड़ डॉली. 5 जुलाई 1996 को जन्मी डॉली का कोई पिता नहीं था, लेकिन तीन मांएं थीं. उसे एक भेड़ की बॉडी सेल, दूसरे का अंडा और तीसरी सरोगेट का गर्भ मिला था

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अपकेन्द्रण और स्पेक्ट्रोस्कोपी की क्रियाविधि (Mechanism of Centrifugation and Spectroscopy)

अपकेन्द्रण और स्पेक्ट्रोस्कोपी की क्रियाविधि (Mechanism of Centrifugation and Spectroscopy)

हेलो दोस्तों,  इस पोस्ट में आपको अपकेन्द्रण (Centrifugation) से जुडी सभी महत्वपूर्ण जानकारी दिया गया हैं जैसे की अपकेन्द्रण (Centrifugation) क्या हैं,इसके प्रकार  और अपकेन्द्रण की विधि और साथ ही स्पेक्ट्रोस्कोपी के  बारे में भी जानेंगे। विज्ञान विषय से जुड़े विभिन्न परीक्षाओं में अपकेन्द्रण और स्पेक्ट्रोस्कोपी से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।


Centrifugation and Spectroscopy

Table of content :-
  • अपकेन्द्रण की परिभाषा (Definition of Centrifugation) 
  • अपकेन्द्रण की विधि (method of centrifugation)
  • अपकेन्द्रण के प्रकार (Types of Centrifugations)
  • अपकेन्द्रण के उपयोग (use of centrifugation)
  • स्पेक्ट्रोस्कोपी के क्रियाविधि को समझाइए (Methods of Spectroscopy)
  • स्पेक्ट्रोस्कोपी की क्रियाविधि (Methods of Spectroscopy) 
  • स्पेक्ट्रोस्कोपी की उपयोग (Use of spectroscopy)

अपकेन्द्रण की परिभाषा (Definition of Centrifugation) 

यह विधि इस सिद्धान्त पर कार्य करती है कि यदि किसी भी द्रव को केन्द्रीय अक्ष के चारों ओर क्षैतिज रूप में घुमाया जाता है तब पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव की अपेक्षा उच्च गुरुत्वाकर्षण क्षेत्र उत्पन्न होगा। इस विधि का उपयोग विभिन्न आकार एवं घनत्व के कणों को अलग करने में होता है प्रादर्श में पाये लगने वाले बड़े आकार के कण सतह पर या तलहटी पर बिना घुमाव के घुमाया जाता है जबकि छोटे आकार के कण द्रव्य माध्यम में निलम्बित रहते हैं। यह प्रादर्श (Sample) को घुमाया जाता है।

अपकेन्द्रण की विधि (method of centrifugation)

अपकेन्द्रण बल (Centrifugal force) को गुरुत्वाकर्षण बल के रूप में या फिर पृथ्वी इकाई 'g' के रूप में दर्शाया जाता है।g= 980 cm/Sec परिभ्रमण / घूर्णन (Rotation) या घुमाव के समय जो बल प्राप्त होता है उसकी गणना निम्न प्रकार की जाती है 

Centrifugal force

F= अपकेन्द्रण बल 'g' इकाई 

S = घूर्णन प्रति मिनट 

r- त्रिज्या सेन्टीमीटर में।

अपकेन्द्रण के प्रकार (Types of Centrifugations)

अपकेन्द्रण चार प्रकार के होते हैं -

1. हस्त अपकेन्द्रण यंत्र (Hand Centrifuge)- यह अपकेन्द्रण हाथ से घुमाया जाता है। 

2. मोटर चलित अपकेन्द्रण यंत्र (Motor driver centrifuge)- यह अपकेन्द्रण मोटर द्वारा चलाया जाता है। 

3. माइक्रो हिमेटोक्रिट अपकेन्द्रण यंत्र (Microheamatocrit centrifuge)- इसे विद्युत् चलित मोटर द्वारा चलाया जाता है। इसका उपयोग R.B.Cs. में किया जाता है। 

4. प्रयोगशाला उपयोगी अपकेन्द्रण यंत्र (Laboratory Centrifuge)- इसे विद्युत् मोटर  द्वारा बिना घर्षण के चलाया जाता है। इसकी सहायता से ऊतक घटकों का पृथक्करण किया जाता है।

इन्हें भी पढ़े - लिपिड्स (Lipids) क्या है ? लिपिड का वर्गीकरण एवं संरचना

अपकेन्द्रण के उपयोग (use of centrifugation)

  1. तत्वों के कण के घनत्व ज्ञात करने में। 
  2. R.B.Cs. के पिगमेन्ट को अलग करने में। 
  3. ऊतक के घटको को पृथक् करने में।

स्पेक्ट्रोस्कोपी के क्रियाविधि को समझाइए। 

स्पेक्ट्रोस्कोपी (Spectroscopy) - इनका उपयोग हम अणुओं की त्रिविमीय संरचना के अध्ययन के लिए करते हैं प्रोटीन तथा न्यूक्लिक अम्लों के द्वितीयक संरचनाओं को ज्ञात करने के लिए हम प्रायः प्रोटीन में एमीनो एसिड अनुक्रमों तथा न्यूक्लिक अम्ल में न्यूक्लि योटाइड अनुक्रमों का अध्ययन करते हैं। 

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उदाहरण-प्रोटीन के ट्रान्सकलीन खण्ड की कुण्डली संरचना इसके अमीनो अम्ल अनुक्रम के द्वारा ज्ञात की जाती है इसी प्रकार (RNA के फ्लोवर पत्ती संरचना की खोज अनेको IRNA अणुओं के न्यूक्लियोटाइड अनुक्रमों के द्वारा की गयी। परन्तु इन अनुक्रमों के द्वारा की हम गुरू अणुओं की त्रिविमीय संरचना ज्ञात नहीं कर सकते । 

स्पेक्ट्रोस्कोपी की क्रियाविधि (Methods of Spectroscopy) - 

स्पेक्ट्रोस्कोपी का प्रयोग हम कोशिकीय गुरू अणुओ विशेषतः प्रोटीनो तथा न्यूक्लिक अम्लों की त्रिविमीय संरचना के अध्ययन के लिए किया जाता है। इसमें गुरू अणुओं के क्रिस्टलीय नमूने में से X-किरण को गुजरने दिया जाता है अधिकांश X - किरणे इनमें से गुजर जाती है परन्तु इनका कुछ भाग नमूने के अणुओं के द्वारा प्रकीर्णित हो जाता है यदि ये अणु एक निश्चित क्रम में लगे ये होते है तो प्रकीर्णित X. किरण प्रबल हो जाती है तथा प्रकीर्णित बिन्दु का निर्माण करती है, जिसका अभिलेखन संसूचक के द्वारा किया जाता है प्रकीर्णित बिन्दुओं को देखकर किसी भी क्रिस्टल में अणुओं की स्थिति ज्ञात की जा सकती है तथा कम्प्यूटर का उपयोग करके अमीनों अम्लों अथवा न्यूक्लियोटाइडो की त्रिविमीय संरचना का अध्ययन किया जा सकता है, 

इन्हें भी पढ़े - अमीनो अम्ल तथा पेप्टाइड्स क्या होता है ? संरचना और कार्य

स्पेक्ट्रोस्कोपी की उपयोग (Use of spectroscopy)- 

  1. छोटे प्रोटीन अणुओं की संरचना ज्ञात करने में किया जाता है। 
  2. त्रिविमीय संरचना ज्ञात की जाती है।

इस पोस्ट में हमने अपकेन्द्रण क्या है ,इसकी क्रियाविधि, प्रकार,उपयोग  के बारे में विस्तृत रूप से जाना, विज्ञान का यह प्रश्न परिक्षापयोगी  दृष्टिकोण से  बहुत  महत्वपूर्ण है, अगर  आपको पोस्ट में दी गई जानकारी अच्छी  लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे.

कार्बोहाइड्रेट क्या है - प्रकार, महत्व और संरचना (carbohydrate in hindi - Types, Importance and Composition)

हेलो दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। इस लेख में हम कार्बोहाइड्रेट क्या हैं(what is carbohydrateऔर कार्बोहाइड्रेट के प्रकार (Types of carbohydrate), कार्बोहाइड्रेट की संरचना(Structure of carbohydrate) और कार्बोहाइड्रेट का महत्व( Importance of carbohydrate) आदि के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे।

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कार्बोहाइड्रेट क्या है - प्रकार, महत्व और संरचना (what is carbohydrate- Types, Importance and Composition)

अक्सर कई परीक्षाओं में कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं जिसमे कार्बोहाइड्रेट(carbohydrateक्या हैं यह प्रश्न कई बार पूछा जाता हैं इस पोस्ट में कार्बोहाइड्रेट(carbohydrateसे जुड़े सभी सवालों के जवाब आपको नीचे दिए गये हैं।


Table of content-
  • कार्बोहाइड्रेट क्या है ( what is carbohydrate)
  • कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण (Classification of Carbohydrates)
  • कार्बोहाइड्रेट्स की सामान्य रचना (General Structure of Carbohydrates)
  • कार्बोहाइड्रेट के जैविकीय महत्व (Biological Significance of Carbohydrates)
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कार्बोहाइड्रेट क्या है
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कार्बोहाइड्रेट के प्रकार
कार्बोहाइड्रेट की संरचना
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कार्बोहाइड्रेट क्या है (what is carbohydrate)

रासायनिक रूप से कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) को पॉलिहाइड्रिक ऐल्कोहॉल एवं उसके व्युत्पन्नों को कीटोन व्युत्पन्न के रूप में परिभाषित किया जाता है। कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) क्या हैं-ये वे कार्बनिक यौगिक हैं जो कार्बन, हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन से मिलकर बनते हैं जैसे- ग्लूकोज (C.H,,O.), फ्रक्टोज (C.H,,O.), गन्ने O की शक्कर (C,H.O), स्टार्च (C,H,O,) और सेल्युलोज आदि। इन यौगिकों में हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन में वही अनुपात पाया जाता है जो जल में होता है। अतः इन्हें कार्बन का हाइड्रेट कहते हैं।

इन्हें CH,O, मूलानुपाती सूत्र द्वारा प्रदर्शित करते हैं कुछ कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) ऐसे भी हैं जिनमें हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन इस अनुपात में नहीं पाये जाते (जैसे रैम्नोज तथा रैम्नोहैक्सोज) तथा कुछ यौगिक ऐसे भी है जिनमें हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का अनुपात 2 : 1 तो है है किन्तु उनमें कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) के गुण नहीं पाये जाते हैं। जैसे फॉर्मेल्डिहाइड, ऐसीटिक अम्ल, लैक्टिक अम्ल आदि।

यहाँ हमने जाना की कार्बोहाइड्रेट क्या हैं(What is carbohydrate) अब चलिए जानते हैं की कार्बोहाइड्रेट के प्रकारों के बारे में-

कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण (Classification of Carbohydrates)- 

कार्बोहाइड्रेट्स(carbohydrate) को साधारणतः शर्करा (Sugars) एवं अशर्करा (Non-Sugars) में विभाजित किया जाता है जो कि तीन वर्गों में वर्गीकृत किये गये हैं 

  1. मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides) 
  2. ओलीगोसैकेराइड्स (Oligosaccharides) 
  3. पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides) 

1. मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides)-(ग्रीक मोनो - एक सैकैटॉन = शुगर) एक कार्बन की श्रृंखला वाली सरलतम शर्करा है जो कि सरल यौगिकों में जल अपघटन (Hydrolysis) के द्वारा विभाजित नहीं हो सकता है। ये कार्बोहाइड्रेटस हैं जिनकी हाइड्रोलाइसिस (Hydroly sis) सरल यूनिट्स (Simple units) में नहीं हो सकती है क्योंकि ये एक ही मोनोसैकेराइड यूनिट या अणुओं से बने होते हैं।

जैसे- ग्लूकोज (Glucose), फ्रक्टोज (Fructose), राइबोज (Ribose), जाइलोज (Xylose), गैलेक्टोज (Ga lactose) आदि। 

2. ओलिगोसैकेराइड्स (Oligosaccharides)- ओलिगौसैकेराइड्स दो या दो से अधिक (2 से 10 तक) मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharids) के संघनित (Condensed) होने तथा अणु H,0 से मिलकर बनते हैं। 

(i) डाइसैकेराइड्स (Disaccharides)- ये चार प्रकार के होते हैं -

उदाहरणार्थ- सुक्रोज (Sucrose), लैक्टोज (Lactose) माल्टोज, (Maltose), सेल्यूलोज। CH1206 +C6H1206 →C2H22011 + H2O 

(ii) ट्राइसैकेराइड्स (Trisaccharides)- इनका निर्माण मोनोसैकेराइड्स के 3 अणुओं के संघनन (Condensa tion) से होता है तथा इनका जलीय अपघटन करने पर इनसे मोनोसैकेराइड्स के तीन अणु प्राप्त होता है। 

उदाहरणार्थ- रोबिनोज (Robinose) तथा रैफिनोज (Raffinose)। 

(iii) टेट्रासैकेराइड (Tetrasaccharides)- इनका निर्माण मोनोसैकेराइड्स के चार अणुओं से मिलकर होता है। उदाहरणार्थ- स्कोरोडोस (Scorodose), स्टेकियोस (Stachyose)। 

(iv) पॉलीसैकेराइड्स (Polysaccharides) – कई मोनोसैकेराइड्स (Monosaccharides) यूनिट्स (Units) () - ( ग्लाइकोसाइडिक बंध (Glycosidic bonds) द्वारा जुड़कर पॉलीसैकेराइड्स का निर्माण करते हैं । किन्तु यह निश्चित ज्ञात नहीं है कि एक पॉलीसैकेराइड अणु में कितने मोनोसैकेराइड अणु होते हैं।

अब आप समझ गये होंगे की कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) का वर्गीकरण क्या हैं चलिए अब कार्बोहाइड्रेट की संरचना को ध्यान से समझते हैं -

कार्बोहाइड्रेट्स की सामान्य रचना (General Structure of Carbohydrates) 

General Structure of Carbohydrates

1. मोनोसैकेराइड्स की संरचना (Structure of Monosaccharides)– कार्बोहाइड्रेट्स प्राकृतिक रूप से दो प्रमुख संरचनाओं के रूप में पाये जाते हैं.

(i) स्ट्रेट चेन (Straight chain) 

(ii) वलय (Ring)

एमिल फिशर (Emil Fischer) को 1896 में ग्लूकोज की परमाणु (Molecule) संरचना के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया। हावर्थ (W.H.H Haworth) ने सन् 1929 में ग्लूकोज परमाणु की संरचना के लिए ऐल्डिहाइड सुगर (Aldehyde sugar) को हेमीएसीटल रूप में माना तथा बताया कि दो प्रकार की हेक्सोज रिंग बन सकती है।

ओलिगोसैकेराइड्स (Oligosaccharides) — मोनोसैकेराइड्स के जुड़ाव के दौरान पानी का एक अणु निकल जाता है और दो इकाइयों के बीच ऑक्सीजन सेतु के रूप में होता है, जिसे ग्लाइकोसाइडिक लिंकेज (Glycosidic linkage) कहते हैं।

डाइसैकेराइड्स (Disaccharides)- प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले ओलिगोसैकेराइड्स हैं। उदाहरण-माल्टोज एवं लैक्टोज माल्टोज (Maltose)- यह स्टार्च को डेक्सट्रिन (Dextrine) और माल्टोज (Maltose) में विभक्त कर देता है।

लैक्टोज (Lactose)- यह प्राकृतिक रूप में स्तन ग्रन्थियों में पाया जाता है। यह मानव दूध में 6% तथा गाय के दूध में 4-5% पाया जाता है। यह भी रिड्यूसिंग शर्करा है तथा a-ग्लूकोज के एक अणु और 8- गैलेक्टोज के अणु के साथ 1,4 ग्लाइकोसाइडिक लिंकेज के द्वारा बना होता है।

ट्राइसैकेराइड्स एवं टेट्रासैकेराइड्स (पॉलीसैकेराइड्स) (Trisaccharides and Tetrasaccharides) (Polysaccharidesh)- अनेक मोनोसैकेराइड इकाइयों से मिलकर पॉलीसैकेराइड्स बने होते हैं। उदाहरण- स्टार्च (Starch), सेल्यूलोज (Cellulose), ग्लाइकोजन (Glycogen), डेक्सट्रान्स, (Dextrans), इन्सुलिन (Insulin) एवं अगर (Agar) हैं।

सेल्यूलोज (Cellulose)- सेल्यूलोज सीधी शृंखला वाला पॉलीसैकेराइड है, जो ग्लूकोज इकाइयों के 8-1, 4-लिंकेज के जुड़ने से बनता है। इसका अणुभार 2,00,000 से लेकर 20,00,000 तक होता है। यह पानी का अणु एक B D-ग्लूकोज के एक परमाणु भार के OH समूह से तथा निकटवर्ती B-D ग्लूकोज अणु के 14 कार्बन वाले OH (समूह) के द्वारा होता है।

उपर हमने जाना की कार्बोहाइड्रेट क्या हैं कार्बोहाइड्रेट के प्रकार और संरचना के बारे में कार्बोहाइड्रेट अंतिम में हम जानेंगे की कार्बोहाइड्रेट का क्या महत्व हैं 

कार्बोहाइड्रेट के जैविकीय महत्व (Biological Significance of Carbohydrates)- 

  1. कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) कुछ जन्तुओं तथा सभी पौधों की कोशिकाओं को बनाने में एक महत्वपूर्ण पदार्थ होता है। 
  2. कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) से जन्तुओं को आवश्यक ऊर्जा का अधिकांश भाग प्राप्त होता है। कार्बोहाइड्रेट जीवन के लिए आवश्यक होते हैं। 
  3. कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) अमीनो अम्लों एवं वसीय अम्लों के चयापचय में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। 
  4. कुछ कार्बोहाइड्रेट(carbohydrate) के कार्य विशिष्ट होते हैं, जैसे- कोशिकाओं के न्यूक्लिओ प्रोटीन में राइबोज (Ribose) का कार्य तथा दूध का लैक्टोज (Lactose)।

आज के इस  आर्टिकल में आपने जाना  कार्बोहाईड्रेट(carbohydrate) से  जुड़ी महत्त्वपूर्ण  जानकारी जैसे-कार्बोहाईड्रेट क्या है(What is carbohydrate), प्रकार तथा महत्व विज्ञान का यह प्रश्न का न केवल परीक्षा की दृष्टि से बल्कि सामान्य जीवन में भी इसकी उपयोगिता है अत: इससे जुडी जानकारी सभी व्यक्ति को होना आवश्यक है 

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एन्जाइम्स क्या है? (what are enzymes in Hindi)

नमस्कार दोस्तों, आंसर दुनिया की वेब पेज में आपका स्वागत है। एन्जाइम्स प्रोटीन के बने अधिक अणुभार वाले प्रो जटिल कार्बनिक पदार्थ है। यह जीव शरीर में होने वाली इस जैव-रासायनिक प्रतिक्रियाओं में उत्प्ररेक (Catalyst) की भाँति कार्य करता है, उत्प्ररेक हम उसे कहते हैं जो किसी रासायनिक क्रिया को बढ़ा देता हैं। प्रतिक्रिया में भाग लेते समय इनमें loc कोई परिवर्तन नहीं होता है।  एन्जाइम नाम कुहने (Kuhne) ने सन् 1978 में दिया था। आज के इस पोस्ट में हम एन्जाइम्स क्या है ,एन्जाइम्स का वर्गीकरण ,एन्जाइम्स का महत्व इत्यादि के बारे में जानेंगे।

एन्जाइम्स क्या है (what are enzymes)

एन्जाइम्स की विशेषताएँ- 

  1. अधिकांश पानी या नमक के घोल में घुलनशील होते हैं। 
  2. ये जटिल प्रोटीन्स हैं। 
  3. ये प्रायः रंगहीन, कुछ लाल, पीले, नीले, भूरे होते हैं 
  4. कुछ ठोस व रवेदार होते हैं। 
  5. ये क्षारीय अभिकर्मक (Alkaloid reagent) के साथ अवक्षेप बनाते हैं। 
  6. ये 25-40°C के मध्य पूर्ण रूप से सक्रिय होते हैं। 
  7. इनमें प्रतिक्रिया की क्षमता बहुत अधिक होती है। 
  8. इनके द्वारा नियंत्रित प्रतिक्रियाएँ उत्क्रमणीय (Re versible) होती हैं। 
  9. इनका कार्य सामूहिक होता है। 
  10. ये कोलॉइडल प्रकृति (Colloidal Nature) के होते हैं।
  11. ये जीन्स के अनुसार होते हैं। अधिकांश कोशिका के कोशिकाद्रव्य में घुले रहते हैं, परन्तु माइट्रोकॉण्ड्रिया, राइबोसोम्स, लाइसोसोम्स (lysosomes) आदि में होते हैं।

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एन्जाइम्स की रासायनिक प्रकृति- 

कुनिज (Kuntz) ने सन् 1931 में दिखाया कि एन्जाइम प्रोटीन युक्त स्वभाव के के लिस्ट होते हैं। इनमें उन सभी विशेषताओं को निम्न दो समूहों में बाँटा जा सकता है 

(1) सरल प्रोटीन एन्जाइम्स (Single Protein.En zymes)—ये सरल प्रोटिन्स के बने होते हैं। 

(ii) जटिल प्रोटीन एन्जाइम्स या कॉन्जूगेटेड एन्जाइम Complex Protein enymes or conjugated en zymes)-ये जटिल प्रोटीन्स के बने होते हैं। जिसमें अप्रोटीन भाग के (Non-Protein group) विशिष्ट प्रोटीन से जुड़ा रहता है। ये दोनों समूह यदि पृथक्-पृथक् कर दिये जाते हैं, तब एन्जाइम क्रियाहीन हो जाता है Conjugated enzyme का प्रोटीन वाला भाग (जो वास्तव में एन्जाइम होता है), एपोएन्जाइम (Apoenzyme) कहलाता है, तथा इसका नॉन प्रोटीन वाला भाग को-फैक्टर (Co-factor) कहलाता है। इस प्रकार एपोएन्जाइम अपने को-फैक्टर से मिलकर पूर्ण एन्जाइम का निर्माण करता है, जो होलोएन्जाइम्स (Ho + loenzymes) कहलाता है।

यह पढ़े -  अजीब सवालों के जवाब पार्ट - 1

एन्जाइम्स का नामकरण- 

एन्जाइम्स के नामकरण की आधुनिक पद्धति में किसी भी एन्जाइम का नाम उसके प्रभाव अथवा उसके द्वारा प्रभावित होने वाले विशिष्ट पदार्थ या सब्स्ट्रेट (Substrate) के नाम के अन्त में ऐज (ase) सफिक्स (Suffix) लगाकर किया जाता है। जैसे- यूरिया की हाइड्रोलाइसिस करने वाला एन्जाइम यूरियेज (Urase) तथा फॉस्फेट का विघटन करने वाला एन्जाइम फॉस्फेटेज (Phosphatase) कहलाते हैं। इसी प्रकार सुक्रोज के ऊपर प्रतिक्रिया करने वाला एन्जाइम सुक्रेज (Sucrase) होता है। 

कुछ सब्स्ट्रेट के पीछे ऐज के स्थान पर लाइटिक सफिक्स (Suffix) का प्रयोग करके एन्जाइम का नामकरण किया जाता है, जैसे प्रोटीन के ऊपर प्रतिक्रिया करने वाला एन्जाइम प्रोटिओलाइटिक (Proteolytic) कहलाता है। कभी-कभी क्रिया के स्वभाव को कैटेलाइट करने के आधार पर एन्जाइम का नामकरण किया जाता है, जैसे हाइड्रोजन को स्थानान्तरित करने वाला एन्जाइम डीहाइड्रोजिनेज (Dehydrogenase) तथा रासायनिक गुणों को स्थानान्तरित करने वाला एन्जाइम ट्रान्सफरेज (Transferase) कहलाते हैं। खोज करने वाले वैज्ञानिकों के नाम पर भी एन्जाइम्स का नामकरण किया जाता है।

एन्जाइमों की क्रिया-विधि- एन्जाइमों की क्रिया विधि के बारे में तीन परिकल्पनाएँ हैं 

  1. ताला-कुंजी या टेम्पलेट परिकल्पना- (Lock &key or template hypothesis)- इस परिकल्पना को एमिल फिशर (Emil Fisher, 1884) ने प्रस्तुत किया। इस परिकल्पना के अनुसार, प्रत्येक के अणु की संरचना विशेष प्रकार की होती है जिसे टेम्पलेट (Template) कहते हैं। इसमें कोई ऐसा ही सब्स्ट्रेट या पदार्थ (या कुंजी) जुड़ जाता है जिसका अणु एन्जाइम अणु के विशेष भाग (टेम्पलेट) में फिट हो जाता है। 
  2. एन्जाइम सब्स्ट्रेट कॉम्प्लेक्स परिकल्पना (En zyme Substrate complex Hypothesis)-प्रो. हेनरी (Herry, 1903) ने बताया कि एन्जाइम अणु के टेम्पलेट में उसके सब्स्ट्रेट के अणु (Enyme-Substrate molecule) अधिक सक्रिय होते हैं तथा जल के साथ क्रिया करके एन्जाइम बाद में सब्स्ट्रेट से अलग हो जाता है और फिर दूसरे सब्स्ट्रेट अणुओं से क्रिया करता है । इस विचारधारा को माइकैलिस एवं मेण्टेन (Michaelis & Menten 1913) ने "एन्जाइम सब्स्ट्रेट काम्पलेक्स परिकल्पना" के रूप से प्रस्तुत किया है।
  3. इनड्यूस्ड फिट मॉडल परिकल्पना (Induced fit model hypothesis)- यह परिकल्पना आधुनिक वैज्ञानिक कौशलैण्ड (Koshland, 1963-64) ने प्रस्तुत की। इनके अनुसार एन्जाइम की आण्विक संरचना (molecular struc ture) निश्चित नहीं होती हैं। प्रतिक्रिया (reaction) के दौरान ही सब्स्ट्रेट के प्रभाव से, एन्जाइम के अणु की संरचना में ऐसा विशेष परिवर्तन होता है कि यह अपने सब्स्ट्रेट के अणु से जुड़ सके।अतः इस परिकल्पना में परिवर्तनशील या लचक (Flexibility) पायी जाती है। जिससे यह अपने सब्स्ट्रेट के अणु की संरचना के अनुसार बदलकर, सब्स्ट्रेट के अणु से जुड़कर प्रतिक्रिया करता है।

एन्जाइम्स का वर्गीकरण (Classification of Enzymes)

लेहनिंगर (Lehninger, 1970) ने एन्जाइम्स को छः श्रेणियों में विभाजित किया 

1. हाइड्रोलेजेज (Hydrolases)-ये पाचक एन्जाइम ये (Digestive enzymes) कहलाते हैं। ये हाइड्रोलिसिस (Hy drolysis) द्वारा भोजन के जटिल अणुओं को सरल अणुओं में बदल देते हैं, सब्स्ट्रेट के आधार पर हाइड्रोलेजेज।

(A) प्रोटिओलाइटिक एन्जाइम्स (Proteolytic enzymes)- ये हाइड्रोलाइसिस के द्वारा विभिन्न प्रकार की प्रोटीन्स का पाचन करते हैं। ये जटिल प्रोटीन्स को पहले सरल प्रोटीन्स प्रोटीओज (Protiose) तथा पेप्टोन्स (Pep tones) में और फिर इनको पॉलिपेप्टाइड (Ploypeptide) एवं अमीनो अम्ल (Amino acid) में बदल देते हैं। इनको भी निम्न दो भागों में बाँटा जा सकता है 

(i) Endopeptidase - Protein Central peptide bond पर आक्रमण करते हैं, इनमें मुख्य निम्न 

(a) Pepsin- जठर रस (Gastric juice) का एन्जाइम होता है। जो Complex proteines को Simple (Pro teose तथा Peptones) में बदल देता है।

(b) Trypsin - 26 Pancreatic juice of enzyme है जो Simple protenin को polypeptides में बदल देता है। 

(c) Chymotrypsin – Pancreatic juice पाया जाता है। जो Protin को Polypeptides में बदल देता है। 

(d) Erepsin - Intestinal juice में पाया जाता है। यह Polypetides को Amino acid बदल देता है।

(ii) Exopeptidase - ये Protein के Terminal bond पर आक्रमण करके उन्हें Amino acid में बदलता है।

(a) Carboxypeptidases – ये Peptides में उपस्थित स्वतंत्र (Carborxyl group) पर आक्रमण करते हैं। (b) Amino Peptidases – ये Peptides group में उपस्थित Amino group पर आक्रमण करते हैं। (c) Dipeptidases – ये Dipeptide में आक्रमण ( - करके उन्हें Amino acid में बदल देते हैं। 

(B) सुक्रोलाइटिक एन्जाइम्स या कार्बोहाइड्रेजेज (Sucrolytic Enzymes or carbohydrases)- ये एन्जाइम, कार्बोहाइड्रेट (Starch) का पाचन करके उन्हें ग्लूकोज में बदल देते हैं। ये निम्न हैं 

(a) Ptyalin - Starch को maltose में बदलता है। लार में पाया जाता है। 

(b) Amylase - Starch को maltose में बदलता ) है। अग्न्याशय रस में होता है। 

(c) Maltase - Maltose को glucose में बदलता है। अग्न्याशय रस में होता है। 

(d) Sucrase - Sucrose को glucose में बदलता है। अग्न्याशय रस में होता है। 

(e) Lactase - Lactose को glucose में बदलता है। अग्न्याशय रस में होता है। 

(C) लाइपोलाइटिक एन्जाइम (Lipolitic enzyme)– ये भोजन की वसाओं (fats) को glycerol तथा fatty acids में बदल देते हैं, ये निम्न हैं 

(a) Gastric lipase -यह gastric juice में पाया जाता है, जो Fats को glycerol तथा fatty acid में बदलता है। 

(b) Pancreatic lipase यह Emulsified को glycerol तथा fatty acid में बदलता है। 

(c) Intestinal lipase- यह Intestinal juice में पाया जाता है, जो phosphatidase को glycerol fatty acids तथा phosphoric acid में बदलता है। 

(d) Amidase - यह Amids पर क्रिया करता है। इसमें मुख्य रूप से यूरिएज (Uriase) तथा आर्जिनेज (Arginase) एन्जाइम्स आते हैं। यूरिऐज यूरिया को अमोनिया में तथा आर्जीनेजकृत में यूरिया बनाता है।

2. ऑक्सीडोरिडक्टेजेज (Oxidoreductases)- ये H* आयनों के अणुओं का स्थानान्तरण करने वाले उत्प्रेरक होते हैं । जैसे- Dehydrogenase Product 

3. ट्रान्सफरेजेज (Transferases)- इनमें फॉस्फोराइलेज, ATP से Fig : Mechanism of Enzymes एक फॉस्फेट भाग को ग्लूकोज अणु में स्थानान्तरित करते हैं। 

4. आइसोमरेजेज (Isomerases)- ये रासायनिक यौगिकों के अणुओं में एटम्स (Atom's) के विन्यास को ) ये परिवर्तित करने का कार्य करते हैं। जैसे- Phosphoxoisomerase Co-enzymes (को एन्जाइम्स)

को-एन्जाइम्स (Co-enzymes)-

  1. ये None protein कार्बनिक पदार्थ जो एन्जाइम्स से धीरे से जुड़े हैं और Dialysis के द्वारा आसानी से अलग किये जा सकते हैं, जैसे- NAD, NADP, CoA तथा FAD. 
  2. इन्हें Co-substrate भी कहते हैं। 
  3. ये कम molecular weight वाले छोटे molecules हैं। 
  4. ये Heatsot Soluble होते हैं। 
  5. इनका विटामिन से निकट का संबंध होता है और Vit. B complex के व्युत्पन्न हैं। 
  6. ये Catalyst की तरह कार्य करते हैं और Enzyme action के लिए जरूरी है।

co-एन्जाइम्स का वर्गीकरण (Classification of Co-enzymes)- ये कार्य के आधार पर तीन प्रकार के होते हैं 

  1. Hydrogen transfering Co-enzyme - it- NAD, NADP, FAD snifi 
  2. Group transfering Co-enzyme - - ATP, CDP, CO-A fi 
  3. Isomerase Co-enzyme -जैसे- UDP, TPP आदि।

एन्जाइम सक्रियण (Enzyme activation) 

  • एन्जाइम-क्रियाधार संकुल (Enzymes-Substrate-complex) उत्पाद एन्जाइम अभिक्रिया की गति में वृद्धि करता है, किन्तु अन्त में स्वयं अपरिवर्तित रहता है। 
  • एन्जाइम सक्रियण ऊर्जा को ह्रास करते हैं (Enzymes reduce the Energy ofActivation)- एन्जाइम के प्रभाव से सक्रियण ऊर्जा की आवश्यकतायें (Activation-enzyme requirement) कम हो जाती है। 
  • एन्जाइम मुक्त सक्रिय ऊर्जा (Free energy of activation) को घटाकर अभिक्रियाओं की गति बढ़ाते हैं। इस धारणा (Concept) के अनुसार प्रतिकारक (Reactants)A और B को परस्पर क्रिया कर उत्पाद (Product)c बनाने के लिए एक संक्रमण अवस्था (Transition State A-B) से होकर पारित होना पड़ता है। एक सक्रियित संकुल (Activation complex) बनता है तथा सक्रियण (Activation) ऊर्जा की एक निश्चित मात्रा (Ea) आवश्यक होती है।

उत्प्रेरक स्थल (The Catalytic Site) 

  • उत्प्रेरक स्थल एन्जाइम के कुल आयतन (Total volume) का अपेक्षाकृत एक छोटा भाग होता है। 
  • उत्प्रेरक स्थल का एक त्रि-विमीय अस्तित्व (Three-dimensional entity) होता है। 
  • उत्प्रेरक स्थल दरार या विदरिका (Clefts or Cevices) होता है। 
  • सब्स्ट्रेट (Substrate) एन्जाइमों के साथ अपेक्षाकृत क्षीण शक्तियों (Weak forces) द्वारा संयोजित होती है।

एन्जाइम विशिष्टता (Enzyme Specific)

1. ताला और कुंजी सिद्धान्त (Lock and key Theory) – Emil Fischer, ने 1980 में की थी। इस सिद्धान्त के अनुसार, जिस प्रकार एक विशेष आकार की कुंजी किसी एक निश्चित ताले में ही लग सकती है। इसी प्रकार एन्जाइम के साथ किसी विशेष सब्स्ट्रेट के अणु ही सही प्रकार से संयोजित हो सकते हैं। प्रत्येक एन्जाइम के उत्प्रेरक स्थल की रचना सब्स्ट्रेट की रचना की अनुपूरक (Complementary) होती है।

2. प्रेरित आसंजन सिद्धान्त उत्प्रेरक स्थल का लचीला प्रतिरूप (Induced fit Theory Flexible modle of the catalytic site) कोशलैण्ड (Koshland) द्वारा प्रस्तावित किया गया था। सब्स्ट्रेट के एन्जाइम के साथ संबद्ध होने के बाद ही उत्प्रेरक स्थल का आकार क्रियाधार के अनुपूरक (Complementary) हो पाता है। अभिज्ञान की यह गतिशील प्रक्रिया ही Induce fit कहलाती है। यह सब्स्ट्रेट बन्धन (Substrate binding), उत्प्रेरणा अथवा दोनों के लिए अमीनो अम्ल अवशिष्टों या एन्जाइम पर सही स्थानिक अनुस्थापन (Spatial orientation) में लाती है। इसके साथ की अन्य अमीनों अम्ल अवशिष्ट एन्जाइम अणु के भीतर धसकर अंतर्हित (CBurried) हो सकते हैं।


इस आर्टिकल में हमने एन्जाइम्स क्या है (what are enzymes), एन्जाइम्स का वर्गीकरण, एन्जाइम्स की क्रियाविधि, एन्जाइम्स का महत्त्व इत्यादि  के बारे में विस्तार से जाना। विभिन्न परीक्षाओं में एन्जाइम्स से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं ।

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लिपिड- प्रकार, सरंचना, वर्गीकरण (Lipids - Types, Structure, Classification in Hindi)

आंसर दुनिया के इस पेज में आपको लिपिड्स (Lipids) से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी दिया गया है जैसे कि वसा या लिपिड क्या है(What is Lipids)? लिपिड्स का वर्गीकरण (Classification) एवं संरचना को भी विस्तार से बताया गया है.

साथ ही लिपिड्स के प्रकारों का वर्णन भी किया गया हैं जहाँ हम लिपिड्स(Lipidsके कुल तीन प्रकारों के नाम और उनकी व्याख्या जानेंगे | साथ ही लिपिड्स(Lipidsसे जुड़े महत्वपूर्ण सवाल जवाब भी जानेंगें।

लिपिड की सरंचना एवं वर्गीकरण (Structure and Classification of Lipids)

Lipids - Types, Structure, Classification in Hindi

लिपिड की सरंचना एवं वर्गीकरण ((Lipids - Structure and Classification)

  • लिपिड्स की परिभाषा (definition of lipids)
  • लिपिड्स (Lipids) के प्रकार
  • लिपिड के गुण (properties of lipids)
  • लिपिड के कार्य (function of lipid)
  • लिपिड्स (Lipids) से महत्वपूर्ण सवाल जवाब

लिपिड्स की परिभाषा (lipid kya hota hai)

लिपिड क्या है? "यह कार्बन, हाइड्रोजन, ऑक्सीजन निर्मित कार्बनिक यौगिक है। लिपिड्स प्राकृतिक रूप से पाये जाने वाले वसा जैसे पदार्थों का समूह है, जो कि जल में अविलेय किन्तु वसा विलायकों जैसे-ईथर, क्लोरोफॉर्म, बेन्जीन आदि में विलेय होते हैं।"

लिपिड का वर्गीकरण (Classification of Lipids in Hindi)

खोज-ब्लोर द्वारा लिपिड्स (Lipids) तीन प्रकार के होते हैं-

  1. साधारण लिपिड्स (Simple Lipids)
  2. संयुक्त लिपिड्स (Compound Lipids)
  3. व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived Lipids)
साइंस >> विज्ञान के प्रश्न उत्तर

लिपिड्स (Lipids) के प्रकार

1. साधारण लिपिड्स (Simple Lipids) -

ग्लिसरॉल और वसीय अम्लों के एस्टर्स हैं। 

(i) वसीय अम्ल (Fatty acids)- ये लम्बी श्रृंखला वाले कार्बनिक अम्ल (Long chainorgaic acids) हैं, जो 2-24 कार्बन परमाणु रखते हैं। इनमें एक कॉर्बोक्सिल समूह भी पाया जाता है, जो पानी में विलेय होता है इनमें एक नॉन- पोलर हाइड्रोकार्बन पूँछ (Non polar Hydrocarbon til or chain) भी पायी जाती है, जो केवल कार्बनिक विलायकों में घुलनशील है।

(ii) उदासीन वसाएँ और तेल (Neutral fats and oil) ट्राइग्लिसराइड्स (Triglycerides) को उदासीन या वास्तविक या प्राकृतिक वसाएँ (Neutral or true or natu ral fats) कहते हैं। ये एस्टर्स है, जो ट्राइहाइड्रिक ऐल्कोहॉल, ग्लिसरॉल तथा वसा अम्लों के तीन अणुओं से मिलकर बनते हैं।

(iii) मोम (Wax)- ये मोनोहाइड्रिक ऐल्कोहॉल्स और वसा अम्लों के एस्टर्स हैं। इनमें एक अणु उच्च भार वाले ऐल्कोहॉल का तथा एक अणु वसा अम्ल का होता है। इनका गलनांक (Melting point) उच्च होता है। वसा को पचाने वाले एन्जाइम लाइपेज की मोम के प्रति कोई क्रिया नहीं होती। अतः ये भोजन का महत्वपूर्ण भाग नहीं बनाते। 

2. संयुक्त लिपिड्स (Compound Lipids) -

ये वे एस्टर हैं, जो वसीय अम्लों तथा ऐल्कोहॉलों के अलावा किसी अन्य रेडीकल्स के एस्टरीफिकेशन के परिणामस्वरूप बनते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं 

(i) फॉस्फोलिपिड्स (Phospholipids) - वे लिपिड्स कहलाते हैं, जिनमें फॉस्फोरस पाया जाता है। ये सभी जन्तु एवं पादप कोशिका में पाये जाते हैं, किन्तु मस्तिष्क एवं तंत्रिका ऊतकों में अधिक पाये जाते हैं।

(ii) ग्लाइकोलिपिड्स (Glycolipids)- ये वे लिपिड्स हैं, जिनमें वसीय अम्लों के अतिरिक्त नाइट्रोजन एवं कार्बोहाड्रेटस भी पाये जाते हैं। ये स्प्लीन (Spleen) तथा अण्डे के पीला योक (Yellow yolk) में पाये जाते हैं। 

(iii) लिपोप्रोटीन्स (Lipoproteins)- ये वे वसा है जो प्रोटीन के साथ संयुक्त रूप में पाये जाते हैं। 

(iv) क्रोमोलिपिड्स (Chromolipids)- ये वे लिपिड्स हैं, जिनमें कैरोटिन (Carotene) तथा अन्य सम्बन्धित रंजक (Pigments) पाये जाते हैं। कैरोटिन एक रंजक है, जो जन्तु शरीर में वसा के रूप में एकत्र रहता है।

3. व्युत्पन्न लिपिड्स (Derived Lipids) -

ये सरल एवं जटिल लिपिड्स के जल अपघटन (Hydrolysis) के परिणामस्वरूप प्राप्त होते हैं। इनमें स्टीरिड्स (Sterids) ही सबसे महत्वपूर्ण व्युत्पन्न है। स्टीरिड्स में स्टीरॉइड्स एवं स्टीरॉल्स (Steroids and Sterols) शामिल हैं, तथा ये जन्तु तथा पादपों में बहुतायत से मिलते हैं। ये लगभग मोम जैसे होते हैं तथा वसीय अम्ल के एस्टर्स एवं स्वतंत्र दोनों रूपों में पाये जाते हैं। जन्तुओं में ये कॉलेस्ट्रॉल एवं स्टीरॉइड्स (Cholesterol & Steroids) के रूप में तथा पौधों में एोस्टेरॉल, स्टिग्मेस्टेरॉल एवं साइटोस्टेरॉल के रूप में पाये जाते हैं।

पढ़ें -एन्जाइम से आप क्या समझते  हैं?

लिपिड के गुण (properties of lipids)-

  1. वसा कुल जीवद्रव्य का 3-5% भाग है। 
  2. इसका निर्माण ग्लिसरॉल व वसीय अम्ल द्वारा होता है। 
  3. यह जल में अघुलनशील है। 
  4. यह साधारण ताप पर अर्द्ध ठोस है। 
  5. उच्च वर्गीय जन्तुओं में अतिरिक्त भोजन के रूप में शरीर में संचित रहते हैं। (vi) ये त्वचा के नीचे रहकर शरीर की ऊष्मा का संरक्षण करते हैं। 
  6. लिंग हॉर्मोन्स, कोलिक अम्ल का निर्माण लिपिड द्वारा होता है। 
  7. कुछ लिपिड्स एन्जाइमों के उद्दीपन की तरह कार्य करते हैं। 

लिपिड के कार्य (function of lipid)-

  1. ऊर्जा स्रोत के रूप में 
  2. संचित भोजन के रूप में 
  3. सुरक्षा पर्त के रूप में 
  4. ऊष्मारोधी के रूप में 
  5. विलायक के रूप में 
  6. हार्मोन्स संश्लेषण में 
  7. वसा अभिगमन में 
  8. उद्दीपक के रूप में

लिपिड्स (Lipids) क्या है ? लिपिड का वर्गीकरण एवं संरचना और लिपिड्स (Lipids) के प्रकार से जुड़ी इस जानकारी को शेयर जरुर करें | 

लिपिड्स (Lipids) से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल जवाब -

1.लिपिड से आप क्या समझते हैं?

उत्तर- लिपिड एक अघुलनशील पदार्थ हैं, जो कार्बोहाइड्रेट एवं प्रोटीन के साथ मिलकर प्राणियों एवं वनस्पति के ऊतक का निर्माण करते है। लिपिड को सामान्य भाषा में कई बार वसा भी कहा जाता है परंतु दोनों में कुछ अंतर होता है।

2.व्युत्पन्न लिपिड क्या है?

उत्तर- व्युत्पन्न लिपिड स्टेरॉयड लिपिड वसाओं का अन्य वर्ग है जो हमारे शरीर में उपापचय के दौरान बनते हैं। इन यौगिकों में एक विशिष्ट वलय तंत्र उपस्थित होता है जो अनेक हॉर्मोनों के लिए संरचनात्मक ढाँचे का कार्य करता है। स्टेरॉयडों में एस्टर समूह नहीं होता है और इसलिए उनका जल-अपघटन नहीं किया जा सकता है।

3.लिपिड का संश्लेषण कहाँ होता है?

उत्तर- रफ़ एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम वह जगह है जहां सेल में अधिकांश प्रोटीन संश्लेषण होता है। स्मूथ एंडोप्लाज्मिक रेटिकुलम का कार्य कोशिका मेंलिपिड को संश्लेषित करना है।

Question - where do the lipids and proteins get synthesised?

Answer - Lipids and proteins are synthesized in the endoplasmic reticulum (ER).

प्रश्न - लिपिड और प्रोटीन कहां संश्लेषित होते हैं?

उत्तर - लिपिड और प्रोटीन अंतर्द्रव्यी जालिका (ER) में संश्लेषित होते हैं।

आज के इस पोस्ट में आपने लिपिड्स (Lipids) क्या है ? लिपिड का वर्गीकरण एवं संरचना से जुडी महत्वपूर्ण जानकारी के बारे में जाना जैसे लिपिड्स की परिभाषा ,प्रकार ,महत्व आदि।

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व्युत्पन्न लिपिड
लिपिड शरीर में कार्य
लिपिड संरचना
हिंदी में सरल लिपिड
लिपिड के प्रकार
लिपिड के गुण
व्युत्पन्न लिपिड
लिपिड के गुण
सरल लिपिड की संरचना
लिपिड शरीर में कार्य
हिंदी में सरल लिपिड
लिपिड का वर्गीकरण
लिपिड के प्रकार
लिपिड के गुण
व्युत्पन्न लिपिड
लिपिड संरचना
लिपिड के कार्य
लिपिड की विशेषताएं
लिपिड का वर्गीकरण

माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना पर सक्रिय अभिगमन (Active access to the structure of mitochondria)

 माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना पर सक्रिय अभिगमन (Active access to the structure of mitochondria)

नमस्कार आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। माइटोकॉण्ड्रिया को कोशिका का पावर हाउस यानी की ऊर्जा गृह कहा जाता हैं, और इसका प्रमुख कार्य होता हैं पूरी कोशिका को पावर देना। विज्ञान के क्षेत्र में माइटोकॉण्ड्रिया की खोज एक क्रान्ति थी और इसकी खोज का श्रेय जाता हैं कोलीकर को। आज के इस आर्टिकल में माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना पर सक्रिय अभिगमन के बारे में जानने वाले हैं।


Active access to the structure of mitochondria

Table of content-

  • माइटोकॉण्ड्रिया की सरंचना (structure of mitochondria)
  • माइटोकॉण्ड्रिया कार्य (mitochondria function) 
  • माइटोकॉण्ड्रिया में सक्रिय अभिगमन

माइटोकॉण्ड्रिया की सरंचना (structure of mitochondria)

माइटोकॉण्ड्रिया का अर्थ- माइटो- Filament कॉण्ड्रिया - granules इसे सामान्यत : कोशिका का  पावर हाऊस (Power house of the cell) कहते हैं। 

माइटोकॉण्ड्रिया की खोज-1850 में कोलीकर (Koliker)। 

माइटोकॉण्ड्रिया का आकार- छड़ के, रिंग के आकार के होते हैं। 

माइटोकॉण्ड्रिया की संख्या- समुद्री अर्चिन 14,000- 1,50,000. माइटोकॉण्ड्रिया में सक्रिय अभिगमन या परासंरचना (Ultra Structure)- यूकैरियोटिक कोशिका के कोशिका द्रव्य में पाया जाने वाला दोहरे स्तर वाला कोशिकांग (Or ganelles) है। स्तनधारियों के R.B.Cs. में माइटोकॉण्ड्रिया नहीं पाए जाते हैं। यह भोजन का पूर्ण आक्सीकरण करके -A.T.P के रूप में ऊर्जा मुक्त करती है।ये दो मेम्ब्रेन (Membrane) तथा दो कक्ष (Cham ber) में विभाजित होते हैं। 



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1. मेम्ब्रेन (Membrane)- ये दो भागों में विभाजित होते हैं। 

(a) आन्तरिक-मेम्ब्रेन (Inner Membrane)- इसकी मोटाई 60A-70A होती है इसके भीतर में ऊँगली के समान उभरी रचनाएँ माइटोकॉण्ड्रियल क्रिस्टी (Mitochon drial Cristae) पाया जाता हैं। 

(b)बाहरी मेम्ब्रेन (Outer Membrane)- इसकी मोटाई 60A-70A तक होती है। यह चिकनी एवं रचना में एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम की तरह होती है। कक्ष (Chambers)- दो कक्ष पाये जाते हैं। 

(i) बाहरी कक्ष (Outer Chamber)- यह 60A 80A तक होती है। यह बाहरी व भीतरी मेम्ब्रेन के मध्य स्थित होती है। इसमें द्रव भरा होता है जिसमें अनेक को एन्जाइम (Co-enzyme) पाये जाते हैं। 

(ii) भीतरी कक्ष (Inner Chamber)- यह भीतरी मेम्ब्रेन द्वारा घिरी हुई गुहा है जिसमें सघन द्रव भरा होता है। इस द्रव को माइटोकॉण्ड्रियल मैट्रिक्स (Mitochondrial Matrix) कहते हैं। इसमें अनेक प्रोटीन्स (Proteins)Mg'", Ca" पाये जाते हैं 

माइटोकॉण्ड्रिया कार्य (mitochondria function) 

  1. यह कोशिकीय श्वसन का क्रिया स्थल है। ATP ऊर्जा उत्पन्न होती है। 
  2. एमीनो एसिड एंव स्टीरॉइड के संश्लेषण में मध्यस्थ का कार्य करता है। 
  3. शुक्राणुओं के मध्य भाग के चारों ओर माइटोकॉण्ड्रिया एक माइटोकॉण्ड्रिया आच्छद.का निर्माण करता है। 
  4. यह फैट्स के मेटाबॉलिज्म में सहायता करती है। 

रासायनिक संघटन (Chemical Composition) प्रोटीन-65-70% लिपीड-25-30% डी. एन. ए.-8% आर. एन. ए.-5-7%

माइटोकॉण्ड्रिया में सक्रिय अभिगमन-

माइटो कॉण्ड्रिया की श्वसन श्रृंखला में जटिल प्रोटीन्स का एक क्रम होता है जो इलेक्ट्रॉन अभिगमन तेत्र या ETS में भाग लेता है इन्हें चार कॉम्पलैक्स द्वारा प्रदिर्शत करते हैं जिनमें से दो हाइपो-प्रोटीन के तथा दो गतिशील इलेक्ट्रॉन वाहक COQ या UQ तथा साइटोक्रोम 'C' से बने होते हैं। 

A. कॉम्प्लैक्स- क्रेब चक्र में से एक निकले हाइड्रोजन (H') इसमें ऑक्सीकृत होते हैं और निकली हुई ऊर्जा ATP में बंद हो जाती है। ये चार प्रकार के होते हैं। 

(i) कॉम्प्लैक्स 1- यह NADH से हाइड्रोजन एटम I को प्राप्त करता है इसका प्रोस्थेटिक ग्रुप Flavin mono nucleotide (FAN) होता है तथा इसमें NADH dehy drogenase का Flavoprotein (FPN) होता है। 

(ii) कॉम्प्लैक्स II - यह Succinic dehydroge - nase से H' ग्रहण करता है अर्थात् इसमें Succinic dehyrogenase का फ्लेवोप्रोटीन (FPN) होता है, यह प्रोस्थेटिक ग्रुप FAD होता है।

(ii) कॉम्प्लैक्स III- इसमें Cytochrome b व होते हैं, इसका nonhaem-iron protein cytochrome b से सम्बन्धित होता है। 

(iv) कॉम्प्लैक्स IV - इसमें Cytochrone a, aaj होते हैं। 

B. को-एन्जाइम = ए-ये गतिशील इलेक्ट्रॉन वाहक है ये । व II complex के इलेक्ट्रॉनों को complex III में ले जाते हैं। माइटोकाण्ड्रिया में यह ऑक्सीकृत क्यूनॉन के रूप में होता है। 

C.साइटोक्रोमc-यह भी इलेक्ट्रॉन वाहक का कार्य करता है तथा complex II व IV के बीच स्थित होता है।


इस पोस्ट में हमने  माइटोकॉण्ड्रिया से जुडी जानकारियों जैसे माइटोकॉण्ड्रिया  की सरंचना ,कार्य ,और माइटोकॉण्ड्रिया मे सक्रिय अभिगमन  के बारे में जाना .यह विज्ञान का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है जो अक्सर परीक्षाओं में पूछा जाता है .साथ ही यह सामान्य ज्ञान की दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण टॉपिक है इसलिए इस पोस्ट को अवश्य पढ़ें । 

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