मरुद्भिद (Xerophyte) पौधे क्या है? इसका विशेष आकारिकी, शारीरिकीय एवं अनुकूलन

मरुद्भिद पौधों में पाये जाने वाले आकारिकीय, शारीरिकीय एवं प्रकार्यात्मक अनुकूलन की संपूर्ण जानकारी

हेल्लो दोस्तों आज हम आपके लिए बॉटनी (वनस्पति विज्ञान) विषय से सम्बन्धित आर्टिकल लेकर आये है  इस विषय में आपको पूरा पेड़ पौधे की पूरी जानकारी होता है इसी विषय में से एक टॉपिक लेकर आये है मरुद्भिद पौधे क्या हैं? मरुद्भिद पौधों में पाये जाने वाले आकारिकीय, शारीरिकीय का वर्णन आज के हमारे इस लेख में पूरी जानकारी देने वाले है मरुद्भिक पौधे सूखे जगहों में पाए जाते है ये बहुत कटीले पौधा होता है मरुद्भिक पौधे की खास बात यह है की ये हर सूखे जगहों पर जैसे रेगिस्तान, के अलावा और इस दुनिया में बहुत से ऐसे जगहों पर उगता हैं.






Table of Content-

  • मरुद्भिद की परिभाषा (Definition of Xerophyte)
  • मरुद्भिद पौधो के प्रकार (Types of Xerophyte plants)
  • अनुकूलताओं के कारण (Causes of Adaptation)
  • आकारिकीय अनुकूलन (Morphological Adaptation)
  • आंतरिक अनुकूलन (Anatomical Adaptation)
  • कार्यिकीय अनुकूलताएं (Physiological Adaptations)

मरुद्भिद (Xerophytes)- ऐसे पौधे जो कि भौतिकीय (Physically) या कार्यिकीय (Physiologically) रूप से जल की कमी अर्थात् शुष्क वातावरण वाले क्षेत्रों में वृद्धि करते हैं, मरुद्भिद (Xerophytes) कहलाते हैं। अर्थात् ये शुष्क पारिस्थितिक स्थिति में उगने के लिए अनुकूलित होते हैं। 

मरुद्भिद पौंधों के प्रकार-

1.अल्पकालिक या जलाभाव पलायनी मरुद्भिद (Ephemerals or Draught-Escapers)-इस प्रकार के मरुद्भिद अपना जीवन-चक्र बहुत छोटी अवधि में पूर्ण कर लेते हैं। शुष्क मौसम के प्रभाव से बचने के लिए ये अदृश्य हो जाते हैं तथा बीजों को मुक्त कर देते हैं। उदाहरण रेंगनी (Solanum xanthocarpus), पीली कंटेरी (Argemone mexicana), चरौटा (Cassia tora) आदि।

2. मांसलोभिद (Succulents or Fleshy Xero phytes)-जल तथा भोज्य पदार्थों को संचयित कर शुष्क वातावरण में वृद्धि करने वाले पौधे मांसल मरुद्भिद या शुष्कता सहनशील पौधे (Drought avoiding xero phytes) कहलाते हैं। उदाहरण- नागफनी (Opuntia), कैक्टस (Cactus), पत्थर चट्टा (Bryophyllum) आदि। 

3. अमांसल मरुद्भिद (Non-succulent Xero phytes)- इन्हें सत्य मरुद्भिद अथवा जलाभाव सह पौधे (Drought Avoiding Xerophytes) कहते हैं। ये मरुस्थल (Desert) प्रकृति वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। उदाहरण- बबूल (Acacia), आक (Calotropis), कैपेरिस (Capparis), प्रोसोपिस (Prosopis)।

अनुकूलताओं के कारण (Causes ofAdaptation)

मरुद्भिद ऐसी स्थिति में वृद्धि करते हैं, जहाँ अधिक अवधि के लिए उपापचयिक रूप से सक्रिय पानी की कमी होती है। ऐसे पौधों में निम्नलिखित प्रक्रियाओं के लिए अनुकूलन पाया जाता है 

  1. जल के अवशोषण के लिए। 
  2. ज्यादा से ज्यादा मात्रा में पानी के संग्रहण के लिए। 
  3. वाष्पोत्सर्जन की दर को कम करने के लिए। 
  4. प्रकाश को परावर्तित करने के लिए। 

(A) आकारिकीय अनुकूलन (Morphological Adaptation) 

(i) मरुद्भिद पौधों में जड़ तंत्र काफी गहराई (65-129 feet) तक फैली होती है तथा भू-जल (Ground water) को अवशोषित करने की क्षमता रखती है। 

उदाहरण- प्रोसोपिस (Prosopis), एल्गी (Alagi), अल्फाल्फा (Alfalfa)। 

(ii) दीर्घ जड़ तंत्र न होने की स्थिति में जड़ मृदा के ऊपरी हिस्सों में ही काफी दूरी तक फैली हो सकती है। उदाहरण-ओपन्शिया (Opuntia), यूफॉर्बिया (Euphor bia) आदि।

(iii) मूल रोम चिरस्थायी प्रकृति वाले होते हैं। 

(iv) वायवीय अंग अपेक्षाकृत कम विकसित होते हैं। 

(v) न्यूनतम प्रकाश के अवशोषण हेतु पत्तियाँ ऊर्ध्व सजी रहती हैं। 

(vi) कुछ पौधों की पत्तियाँ दिन में मुड़कर वाष्पोत्सर्जन की दर को कम कर देती हैं। 

उदाहरण-पोआ प्रेटेन्सिय Poa pratensis), एम्मोफिला (Ammophila)|


Morphological Adaptation in Xerophyte


(vii) पत्तियाँ या तो अत्यधिक छोटी या मोटी, चर्मिल या सूच्याकार (Needle shaped) होती हैं। 

(viii) पत्तियाँ वर्षा ऋतु तक पौधों से जुड़ी रहती हैं तथा गर्मी आने तक सभी पत्तियाँ झड़ जाती हैं। उदाहरण— कैपेरिस डेसिड्यूआ (Capparis decidua)|

(ix) जड़, तना, पत्तियाँ या उसके भाग जल संग्रहण हेतु अथवा अन्य कार्य के कारण विशिष्ट रूपों में रूपान्तरित हो सकते हैं। 

उदाहरण–(i) नागफनी (Opuntia) में पत्तियाँ काँटों में रूपान्तरित तथा तना फायलोक्लेड (Phylloclade) के रूप में। 

(ii) एस्पैरेगस (Asparagus) में जड़ भोजन संग्रह के कारण कंदिल (Tuberous) हो जाते हैं। 

(iii) ऑस्ट्रेलियाई बबूल में पर्णवृन्त (Petiole) फायलोड (Phyllodc) के रूप में। (10) तरुण शाखाएँ शुष्क मौसम के प्रारम्भ में गिर जाती हैं। इस प्रक्रिया को क्लैडोट्राफी (Cladotrophy) कहते हैं।

(B) आंतरिक अनुकूलन (Anatomical Adaptation)–

(i) बाह्यत्वचा (Epidermis) के ऊपर सुस्पष्ट एवं मोटी क्यूटिकल की परत होती है। साथ ही साथ एपिडर्मिस पर मोम (Wax) या रोम (Hairs) की अतिरिक्त परत होती है। 

उदाहरण—निफैलियम (Gnephalium) में रोम, आक (Calotropis) में मोम की परत।

(ii) पत्तियों तथा अन्य वायवीय अंगों में गर्ती रन्ध्र (Sunken Stomata) पाये जाते हैं। 

(iii) पेलिसेड ऊतक पूर्ण विकसित होते हैं, साथ ही साथ इनमें अन्तरकोशिकीय अवकाश (Intercellular spaces) नहीं पाये जाते हैं।

Anatomical Adaptation in Xerophytes

(iv) कॉर्टेक्स (Cortex) की कोशिकाएँ क्लोरेनकायमेटस होती हैं। 

(v) म्यूसिलेडा या रेजिन कोशिका या नलिका (Ducts) पत्तियों में या तने में उपस्थित होते हैं। 

(vi) पत्तियों में दृढ़ोत्तक कोशिकाओं की बनी अध : त्वचा (Hypodermis) होती है। 

(vii) संवहन पूल (Vascular Tissue) सुविकसित होते हैं।

(viii) यांत्रिक ऊतक यथा स्थूलोत्तक (Collenchy matous) तथा दृढ़ोत्तक (Sclerenchymatous) कोशिकाएँ काफी अधिक मात्रा में होते हैं। 

(ix) लैटेक्स युक्त ऊतक तथा अन्य ग्रंथिकीय ऊतक प्रायः उपस्थित होते हैं। उदाहरण- आर्जिमोन (Argemone), यूफॉर्बिया (Euphorbia) आदि। 

(ix) जायलम वाहिकाएँ (Xylem Vessels) बड़े व्यास (Large diameter) वाले होते हैं।

(C) कार्यिकीय अनुकूलताएं (Physiological Adaptations)

(1) इन पौधों में वाष्पोत्सर्जन की दर अपेक्षाकृत कम होती है। 

(ii) इन कोशिकाओं का परासरण दाब उच्च होता है क्योंकि कोशिकाद्रव्य में विलेय की मात्रा अधिक अर्थात् सान्द्रता अधिक होती है

(iii) अल्प रन्ध्रीय आवृत्ति या अन्य रूपान्तरणों के कारण शुष्कन की स्थितियों का प्रभाव कम होता है।


इस पोस्ट में हमने मरुद्भिद क्या है ,आकारिकी ,शारीरिकीय ,एवं अनुकूलन के बारे में पढ़ा,जीव विज्ञान से सम्बंधित यह आर्टिकल न केवल परीक्षा की दृष्टि से बल्कि सामान्य जीवन के ज्ञान की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है जीवन में पेड़- पौधों का बहुत महत्त्व है अत: इसके सम्बंधित सामान्य जानकारी सभी को होनी चाहिए,

आशा करता हूँ कि हमारे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी सिद्ध  होगी ,अगर आपको यह  पोस्ट पसंद आये तो इसे शेयर अवश्य करें  



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