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Neet 2023 Biology question answer in Hindi pdf

अगर आप neet की तैयारी कर रहे हैं या करना चाहते हैं और neet की तैयारी के लिए question answer की प्रैक्टिस करना चाहते हैं तो आप बिल्कुल सही पोस्ट में आये हैं क्यूंकि इस पोस्ट में Neet 2023 Biology question answer दिया जा रहा है। जो neet के लिए biology के महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह है।

Neet 2023 Biology question answer

प्रश्न:- सबसे कठोर कौन सा पादप उत्पाद  है?
उत्तर- क्यूटीन

प्रश्न:-मक्का में जंपिंग जीन की खोज किसने की थी?
उत्तर.मेंडल ने

प्रश्न:-फेरीटीमा मे पट किन खंडों के बीच अनुपस्थित होते हैं?
उत्तर- 5/6 एवं 7/8

प्रश्न:-  एंजाइम ग्लूकोस को अल्कोहल में कौन सा एंजाइम बदल देता है?
उत्तर- लाइपेस

प्रश्न:- रसारोहण के लिए सर्वमान्य परिकल्पना क्या है?
उत्तर- स्पंदन बाद

प्रश्न:- अगार  किससे प्राप्त किया जाता है?
उत्तर- क्लोरेला से

प्रश्न:- 16 कोशिकिय अवस्था में भ्रूण क्या कहलाता है?
उत्तर- मोरुला

प्रश्न:- लाइकेन प्राथमिक जैविक समुदाय किस प्रकार के अनुक्रमण में होते हैं?
उत्तर- लिथोसियर

इन्हें भी जानें- शैवाल का  वर्गीकरण

प्रश्न:- साइकस में परागकण कैसी अवस्था में होता है?
उत्तर- दो कोशिय अवस्था में

प्रश्न:-आपातकाल के समय कौन सा हार्मोन स्त्रावित होता है?
उत्तर- एल्डोस्टीरॉन

प्रश्न:- जंतु सर्दियों में एक अक्रिय अवस्था में से गुजरते हैं जिसे क्या कहते हैं?
उत्तर- एस्टिवेशन

प्रश्न:- द्विनाम नामकरण पद्धति किसके द्वारा दी गई है?
उत्तर- लिनियस द्वारा

प्रश्न:- द्विनिषेचन कहां पाया जाता है?
उत्तर- आवृतबिजीयो में

प्रश्न:- कौन सा किट निवही है?
उत्तर- मच्छर

प्रश्न:- रुधिर का थक्का जमने के लिए कौन सा विटामिन काम आता है?
उत्तर- विटामिन K

प्रश्न:- दो भिन्न आवासों के राज्य क्षेत्रों के संबंधी स्थान पर जैव विविधता की उपस्थिति क्या कहलाती है?
उत्तर- बोटल नैक प्रभाव

प्रश्न:- कुफ्फर कोशिकाएं उपस्थित कंहा होती है?
उत्तर- छोटी आंत में

प्रश्न:- कैलिप्ट्रा किससे बनता है?
उत्तर- स्त्रीधन से

प्रश्न:- आरंभक कोडान क्या है?
उत्तर- UAG

प्रश्न:- पैराफिन वैक्स क्या है?
उत्तर- मोनोहाइड्रेक एल्कोहल

प्रश्न:- DNA का गुणन क्या कहलाता है?
उत्तर- अनुवादन

प्रश्न:- वैज्ञानिकिय रूप में प्रोग्रेम्ड सैल डेथ को क्या कहते है?
उत्तर- परासरण

प्रश्न:- पत्तियों के विलगन का क्या कारण है?
उत्तर- ABA

प्रश्न:- वे परिवर्तन जो लार्वा को आवश्यक व्यस्क में परिवर्तित कर देते हैं वे क्या कहलाते हैं?
उत्तर- एकांतरण

प्रश्न:- मुर्गे का सिनसेकर्म कितनी कोशिकाओं का बना होता है?
उत्तर- 16 कोशिकाओं का

प्रश्न:- मेंढक के हृदय में हृदय पेशियां जंतुओं की बनी होती है उन्हें क्या कहते हैं?
उत्तर- मायानीमा

प्रश्न:- एस्फेरिस में सीलाम क्या कहलाती है?
उत्तर- हिमोसीलोम

प्रश्न:- कॉकरोच में लार्वा तथा निम्फ के गुण किसके द्वारा बनाए रखे जाते हैं?
उत्तर- लार ग्रंथियों द्वारा

प्रश्न:- अमीबा में संकुचनशील धानी का क्या कार्य है?
उत्तर- परासरण नियंत्रण

प्रश्न:- खरगोश में लंबी अस्थि का छोर दूसरी अस्थि किस द्वारा जुड़ा होता है?
उत्तर- उपास्थि द्वारा

प्रश्न:- पादपों में भोजन किस रूप में स्थानांतरित होता है?
उत्तर- फ्रक्टोज

प्रश्न:- एक पोषक स्तर से दूसरे पोषक स्तर पर स्थानांतरित ऊर्जा कितनी है?
उत्तर- 10%

प्रश्न:- स्तनीय थाइमस किस से संबंधित हैं?
उत्तर- शरीर के तापक्रम के नियंत्रण से

प्रश्न:- तुर्क तंतु किसे बना होता है?
उत्तर- हयुमुलिन का

प्रश्न:- DNA खंड जिसमें अपना स्वास्थ्य बदलने की क्षमता होती है क्या कहलाता है?
उत्तर- इन्ट्रॉन

जानें- जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व

प्रश्न:- L- आकार के गुणसूत्र क्या कहलाते हैं?
उत्तर- उपमध्यकेंद्री

प्रश्न:- 21 वें गुणसूत्र की ट्राईसोमी क्या कहलाती है?
उत्तर- डाउन सिंड्रोम

प्रश्न:- रिक्तिका एक कला द्वारा घीरी होती है जिसे क्या कहते हैं?
उत्तर- टोनोप्लास्ट

प्रश्न:- भिंडी किस कुल से संबंधित है?
उत्तर- मालवेसी

प्रश्न:- व्यस्क मानव में कौन सी ग्रंथि सबसे बड़ी है?
उत्तर- थाइमस

प्रश्न:- एक सामान्य पुरुष तथा वर्णान्ध स्त्री के विवाह से किस प्रकार की संतान पैदा होगी?
उत्तर- सामान्य पुत्र तथा वाहक पुत्रियां

प्रश्न:- मेल्पिघी नलिकाएं क्या होती है?
उत्तर- कीटो के उत्सर्जी अंग

प्रश्न:- कौन सा ऊतक पारदर्शी है?
उत्तर- तंतुकिय उपास्थि

प्रश्न:- अस्थिल मछली का उत्सर्जी पदार्थ क्या है?
उत्तर- यूरिया

प्रश्न:- मशरूम का खाने योग्य भाग कौन सा होता है?
उत्तर- बेसिडियोकार्प

प्रश्न:- रुधिर में CO2 का परिवहन मुख्यतया किस रूप में होता है?
उत्तर- सोडियम कार्बोनेट

प्रश्न:- LH तथा FSH को संग्रहित रूप से क्या कहते हैं?
उत्तर- ल्यूरियोट्रोपिक

प्रश्न:- पादपों में जल निरंतरता किसके कारण होती है?
उत्तर- आसंजन बल

प्रश्न:-गुणसूत्र प्रारूप 2n-1 को क्या कहा जाता है?
उत्तर- टेट्रासोमी

प्रश्न:- कोन प्रकाश रसायनिक समांग में हमेशा पाया जाता है?
उत्तर- CO2

प्रश्न:- पलिप अवस्था कहां अनुपस्थित होती है?
उत्तर- आबेलिया में

प्रश्न:- फेरिटीमा पोस्थूमा का मादा जनन छिद्र किस खंड में स्थित होता है?
उत्तर- 16 वें.

प्रश्न:- अपघटक क्या होते हैं?
उत्तर- स्वपरपो

प्रश्न:- किस जंतु में श्वसन श्वसन अंग के बिना ही होता है?
उत्तर- मेंढक

प्रश्न:- कौन अंतः स्त्रावी विज्ञान का पिता कहलाता है?
उत्तर- आइन्थोवन

प्रश्न:- इंडियूसिम कहां पाया जाता है?
उत्तर- शैवाल में

प्रश्न:- सीमाकारी कारको का नियम किसने दिया था?
उत्तर- कैल्विन ने

प्रश्न:- खरगोश में अधिवृषण का शीघ्र जो वृषण के सिर पर उपस्थित होता है क्या कहलाता है?
उत्तर- शुक्र वाहक

प्रश्न:- मोलस्का संघ में आंख एक पतली रचना के ऊपर स्थित होती है जिसे क्या कहते हैं?
उत्तर- आपरकुलम

प्रश्न:- कोशिका चक्र के किस अवस्था में गुणसूत्र मध्यवर्ती प्लेट पर व्यवस्थित होते हैं?
उत्तर- मध्यवस्था में

प्रश्न:- संघ सीलेंट्रेटा का लाक्षणिक लाडवा कौन है?
उत्तर- सष्टिसर्कस

प्रश्न:- निम्न ताप समाधान द्वारा पुष्पन का उत्प्रेरण क्या कहलाता है?
उत्तर- दीप्तिकालिता

प्रश्न:- कंडरा तथा स्नायु विशेषीकृत क्या है?
उत्तर- संयोजी उत्तक

प्रश्न:- किस में उत्तम कपाल क्षमता पाई जाती है?
उत्तर- पैकिंग मानव में

प्रश्न:- कौन विकास के महत्वपूर्ण प्रमाण प्रदान करता है?
उत्तर- अवशेषी अंग

प्रश्न:- सिस्टोसोमा का मध्य प्रदेश परपोषी क्या है?
उत्तर- घरेलू मक्खी

प्रश्न:- मृदा जल का परिवहन वायु होता है उसे क्या कहते हैं?
उत्तर- इओलियन

प्रश्न:-वे जंतु जो अपने शरीर का तापमान स्थिर बनाए रखते हैं वह क्या कहलाते हैं?
उत्तर- जैवतापी

प्रश्न:-Rh कारक किस में उपस्थि होता है?
उत्तर- सभी स्तनियो में

प्रश्न:- उष्णकटिबंधीय वन में कुछ जातियों के विलुप्त होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर- वनीकरण

प्रश्न:- संबंधों में कौन सी कोशिका अन्य प्रकार की कोशिकाओ द्वारा बनाने योग्य होती थी है?
उत्तर- थीसोसाईट

प्रश्न:-स्पर्शानुचलन किसके द्वारा नहीं दर्शाई जाती है?
उत्तर- पैरामीशियम

प्रश्न:- बदलना बहुभ्रूणता किसमें पाई जाती है?
उत्तर-मिनी साइकस में

प्रश्न:-लैंगहैंन्स की द्विपिकाए कहां पाई जाती है?
उत्तर- अग्नाश्य में

प्रश्न:- एक डीएनए अणु में एडमिन एवं थायमिन के मध्य उपस्थित हाइड्रोजन बंधुओं की संख्या कितनी है?
उत्तर- 2

प्रश्न:- चार्ल्स डार्विन और ए आर वालेस दोनों............. से प्रभावित थे।
उत्तर- टी आर मैलथस द्वारा मानव जनसंख्या पर निबंध

प्रश्न:- जीवन की उत्पत्ति के समय वायुमंडल में कौन अनुपस्थित था?
उत्तर- ऑक्सीजन

प्रश्न:- लैंगिक रूप से प्रजनन करने वाले जीवों की समष्टि में आनुवंशिक विभिन्नता की सबसे सामान्य क्रियाविधि कौन सी है?
उत्तर- पुनर्संयोजन

प्रश्न:- यदि 900 लोग इस प्रकार समष्टि बनाते हैं कि अवर्णक 300 हैं। वाहकों की आवृत्ति की गणना करें?
उत्तर-49

प्रश्न:- आधुनिक मानव का प्रत्यक्ष पूर्वज किसे माना जाता है?
उत्तर- क्रो-मैग्नॉन मानव

प्रश्न:- आनुवंशिक विचलन किसका का परिवर्तन है:
उत्तर- एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक जीन आवृत्ति

प्रश्न:- एकमात्र स्व-चेतन जीव हैं-
उत्तर-मानव

प्रश्न:- द्विबीजपत्र किसका का प्रतिनिधित्व करती हैः
उत्तर- वर्ग 

प्रश्न:- जैविक वर्गीकरण श्रेणियों के लिए वैज्ञानिक शब्दावली है:
उत्तर- वर्गक

प्रश्न:- मांगिफेरा इंडिका कौनसा कुल हैः
उत्तर- ऐनाकार्डिऐसी

प्रश्न:- फेलिडी में नहीं होते हैंः
उत्तर-कुत्ते

प्रश्न:- गेहूं किस कुल के अंतर्गत आता है?
उत्तर-पोएसी

इसे भी पढ़ें- जंतु विज्ञान की शाखाएं

प्रश्न:- वैज्ञानिक नामों के लैटिन उत्पत्‍ति को इंगित करने के लिए-
उत्तर-इन्हें अपनी उत्पत्‍ति के निरपेक्ष लैटिनीकृत  किया जाता है।

प्रश्न:- वसा घुलनशील वर्णक जैसे कि पीतवर्णक उपस्थित होते हैं:
उत्तर- वर्णलवक में 

प्रश्न:- रंगसूत्रद्रव्य किससे अभिरंजित किया जा सकता है?
उत्तर-क्षारकीय रंजक

प्रश्न:- ग्लाइकोप्रोटीन और ग्लाइकोलिपिड्स के निर्माण का महत्वपूर्ण स्थल है:
उत्तर- गॉल्जी उपकरण

प्रश्न:- गैलेक्टान और मैनेन किसकी कोशिका भित्ति के महत्वपूर्ण घटक हैं?
उत्तर- शैवाल 

प्रश्न:- जीवाणुवीय कशाभिका किससे निर्मित होती है?
उत्तर-आधार पिंड, अंकुश, तंतु

प्रश्न:- कोशिकापंजर किससे निर्मित होता है?
उत्तर- प्रोटीन

प्रश्न:- सजीवों का विशिष्ट गुण क्या है?
उत्तर-चेतना

प्रश्न:- जैव विविधता का अर्थ है-
उत्तर- ज्ञात जीवों की संख्या, ज्ञात जीवों के प्रकार, ज्ञात प्रजातियों की संख्या

प्रश्न:- तारककेन्द्रों में परिधीय सूक्ष्मनलिका की व्यवस्था होती है:
उत्तर- त्रिक रूप में 9

प्रश्न:- पादप कोशिका में आयनों की सांद्रता अधिक होती है:
उत्तर- रिक्तिका में 

प्रश्न:- सूत्रकणिका कोशिका के विद्युत् गृह होते हैं क्योंकि:
उत्तर- यहाँ एटीपी संश्लेषित होते हैं

प्रश्न:- अपनी सतह पर राइबोसोम को धारण करने वाली अंतद्रव्यी जालिका को कहा जाता है:
उत्तर- खुरदरी अंतद्रव्यी जालिका

प्रश्न:- रिक्तिका की झिल्ली को कहा जाता है:
उत्तर- तानलवक

प्रश्न:- प्लाज्मा झिल्ली का सबसे महत्वपूर्ण कार्य है:
उत्तर- इसके आर-पार अणुओं का परिवहन

प्रश्न:- अन्तः झिल्लिका तंत्र किसके कारण निर्मित होता है?
उत्तर- झिल्लीदार अंगको के समन्वित कार्य

प्रश्न:- शैवालों और पादपों की कोशिका भित्ति में समान घटक है:
उत्तर- सेलुलोस

प्रश्न:- एक तारककेंद्र जैसी संरचना, जिसमें से पक्ष्माभ और कशाभ निकलते हैं:
उत्तर- आधारीय शरीर

प्रश्न:- द्विपद नामपद्धति द्वारा प्राप्त गेहूं का सही वैज्ञानिक नाम है?
उत्तर- ट्रिटिकम एस्टीवम

प्रश्न:- वर्ग’ एकत्रित होकर पादपों में क्या निर्मित करते हैं?
उत्तर- प्रभाग

प्रश्न:- सैपिन्डेलीज का कौन सा टैक्सॉन है?
उत्तर- गण

प्रश्न:- फेलिडी और कैनिडी को किस गण में शामिल किया गया है?
उत्तर-कार्निवोरा

प्रश्न:- पर्णपीतक और पीतवर्णक पाए जाते हैं:
उत्तर-हरितलवक में, वर्णलवक में 

प्रश्न:- जल अपघटनी एंजाइम सक्रिय होते हैं:
उत्तर-अम्लीय पीएच पर 

प्रश्न:- कोशिका सिद्धांत किसके द्वारा प्रस्तावित किया गया था?
उत्तर- वनस्पतिविज्ञानी और एक प्राणिविज्ञानी

प्रश्न:- R.B.C का आकार होता है:
उत्तर- गोल और उभयावतल

इस पोस्ट में हमने Neet 2023 Biology question answer in Hindi pdf के बारे में जाना । जो neet की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों के लिए लाभदायक साबित होगा। 

उम्मीद करता हूँ कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें।


मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi)

इस आर्टिकल में हम मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi) के बारे में जानेंगे। क्या आपको मशरूम की सब्जी अच्छी लगती है। क्या आपको पता है ये मशरूम कैसी उत्पादित की जाती है। यदि आप नहीं जानते तो इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़ें , आपको मशरूम की खेती की पूरी जानकारी मिल जाएगी। 

मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi)


मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi)

भारत में मशरूम की खेती का विस्तार तीव्र गति से हो रहा है। विशेषरूप से हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में मशरूम उत्पादन में प्रतिवर्ष उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।

1.पैरा अथवा पैडी स्ट्रॉ मशरूम की खेती (Cultivation of Paddy Straw Mushroom-Volvariella sp.)

बेड निर्माण तथा फसल उगाना (Bed preparation and cropping)-

हमारे छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए धान एक प्रमुख फसल है। अतः यहाँ धान का पैरा आसानी से उपलब्ध रहता है। पैरा का उपयोग बेड निर्माण में किया जाता है। सर्वप्रथम हाथ से काटे गये 3-4 फीट लम्बे, शुष्क तथा निरोगी पैडी स्ट्रॉ के बण्डल बनाये जाते हैं। एक बेड के निर्माण हेतु ऐसे 32 बण्डलों की आवश्यकता होती है तथा प्रत्येक बण्डल में एक से डेढ़ किलोग्राम पैरा होता है। इन बण्डलों को जल (Water) में 8-16 घण्टों तक डुबोकर (Soaked) रखा जाता है। तत्पश्चात् इन्हें बाहर निकालकर स्वच्छ पानी से धोया जाता है। अन्त में बण्डलों को लटकाकर अतिरिक्त पानी निकाल दिया जाता है।

पैरा नहीं बदलें अब पैडी स्ट्रॉ के बण्डलों को एक के ऊपर एक चार स्तरों (Four layers) में रखा जाता है। प्रत्येक स्तर में 8 बण्डल होते हैं। अब स्पॉन बॉटल (Spawn bottle) को खोलकर काँच की छड़ से हिलाकर स्पॉन को बेड के प्रत्येक स्तर के किनारों से 10 सेमी. की दूरी पर छिड़क दिया जाता है। यह छिड़काव (Sprinkling) 23 सेमी. सतत् भीतर की ओर किया जाता है। छिड़के हुए स्पॉन (Spawn) पर बेसन (पिसी लुई चने की दाल) को पतली पर्त छिड़क दी जाती है। इसी प्रकार दूसरी, तीसरी तथा चौथी लेयर का निर्माण किया जाता है। चौथे स्तर के निर्माण में थोड़ा-सा अन्तर होता है। चौथे स्तर में स्पॉन (Spawn) का छिड़काव समूची सतह पर एक समान किया जाता है जबकि अन्य स्तरों पर यह किनारों पर अधिक होता हैं।

बेड्स पर गर्म दिनों में 2-3 बार जल का छिड़काव किया जाता है। वर्षा काल में भी एकाध बार जल का छिड़काव आवश्यक है। यदि आवश्यक हो तो 0.1% मेलेथियॉन (Melathion) तथा 0.2% डाइइथेन Z.-78 (Dicthane Z-78) का छिड़काव किया जाता है। इस छिड़काव से कोटों (Insects), पेस्ट्स (Pests) तथा अन्य रोगों से बेड की रक्षा होती है।

कटाई तथा विपणन (Harvesting and Marketing)-

स्पॉनिंग (Spawning) 10-12 दिनों बाद फसल उगने लगती है। मशरूम की कटाई (Harvesting) सामान्यत: बटन स्टेज (Button stage) या फिर कप के फुटने (Rupturing) के तुरन्त बाद की जाती है। फसल को निकालने के 8 घण्टों के भीतर मशरूम का उपयोग कर लेना चाहिए या फिर इन्हें 10-15°C तापमान पर 24 घण्टों तक रख देना चाहिए अन्यथा ये नष्ट हो जाते हैं। इन्हें फ्रिज में एक सप्ताह तक रखा जा सकता है।

ताजा मशरूम को धूप में या फिर ओवन (Oven) में 55° से 60°C तापमान पर 8 घण्टों तक रखकर सूखाया जाता है। सूखने के बाद इन्हें पैक (Packed) कर सील कर दिया जाता है ताकि ये नमी (Moisture) न सोख सकें। मशरूम की पैकिंग प्राय: बटन स्टेज में करना उपयुक्त होता है। आमतौर पर प्रति बेड 3-4 किलोग्राम मशरूम की प्राप्ति की जा सकती है।

2. धींगरी की खेती (Cultivation of Pleurotus sp.)

अधोस्तर का चुनाव (Choice of substratum)- 

प्लूरोटस के खेती के लिए कटे हुए पैडी स्ट्रॉ (Chopped paddy straw) सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अन्य पदार्थों में मकई की बाल (Maize cob), गेहूँ स्ट्रॉ (Wheat straw), रॉइ स्ट्रॉ (Rye straw), शुष्क घास (Dried grasses) कम्पोस्ट तथा लकड़ी के लट्ठे (Wooden logs) इत्यादि इस्तेमाल किये जा सकते हैं। बेड निर्माण तथा फसल उगाना (Bed preparation and Cropping)-कटे हुए पैडी स्ट्रॉ को 8-12 घण्टे तक पानी के टंकी (Water tank) में डुबोकर रखा जाता है। स्ट्रॉ को बाहर निकालकर स्वच्छ पानी से धोकर, अतिरिक्त पानी निकाल दिया जाता है। अब अधोस्तर (Substratum) को लकड़ी की ट्रे (1×1/2x1/4 मीटर) में रखा जाता है। पूरी ट्रे पर स्पॉन (Spawn) का छिड़काव किया जाता है। स्पॉनिंग (Spawing) के पश्चात् ट्रे को पॉलीथिन शीट से ढँक दिया जाता है। नमी बनाये रखने हेतु जल का छिड़काव दिन में 1 या 2 बार किया जाता है। 10-15 दिनों के बाद मशरूम के फलनकाय (Fruiting bodies) निकलने लगती हैं। जब पॉलीथिन शीट को हटा दिया जाता है। मशरूम की खेती पहले फलनकाय निकलने के 30-45 दिनों के बाद तक जारी रहती है।

बेड पर आवश्यकतानुसार जल का छिड़काव किया जाता है। तापमान 25°C (°5°C) तथा आपेक्षिक आर्द्रता (Relative humidity) 85-90% तक रखी जाती है। वातन (Aeration) की अच्छी व्यवस्था की जाती है तथा रोगनाशकों (0.1% Melathion, 0.2% Diethane Z-78) का छिड़काव किया जाता है।

कटाई तथा विपणन (Harvesting and Marketing)- 

मशरूम की कटाई उस समय की जाती है जब फलनकाय के पाइलियस (Pileus) का व्यास (Diameter) 8-10 सेमी. हो जाए। फसल को मोड़कर (Twisting) तोड़ा जाता है। आवश्यकतानुसार इसका विपणन कच्चा अथवा सूखाकर किया जाता है। मशरूम को धूप या ओवन में सूखाकर पैकिंग सीलिंग की जाती है ताकि ये नमी सोखकर नष्ट न होने पाये।

प्लूरोटस सजोर-काजू नामक प्रजाति 15 से 25 दिनों में तैयार हो जाती है। इसको खेती सरल है तथा इसमें प्रोटीन की मात्रा (Protein content) अत्यधिक होती है। इसमें मानव पोषण के लिए आवश्यक सभी अमीनो अम्ल (Amino acid) भी उपस्थित रहते हैं।

इसके खाद्य गुण (Palatability), स्वाद (Taste), सुगन्ध (Flavour) तथा मांस (Meat) के सदृश होनेके कारण " प्लूरोटस सजोर-काजू" को अत्यधिक पसंद किया जाता है।

मशरूम कृषि का महत्व (Importance of Mushroom Cultivations)

भारत सहित विश्व के अनेक देशों के लिये कुपोषण (Malnutrition) एक गम्भीर समस्या है। विकसित देशों (Developed countries) में जहाँ प्रति व्यक्ति प्राणी प्रोटीन की औसत खपत 31 किलोग्राम प्रतिवर्ष है, वहीं भारत में यह केवल 4 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है। मशरूम (Mushrooms) प्रोटीन के प्रमुख स्रोत होते हैं। शुष्क भार (Dry weight) के आधार पर विभिन्न मशरूम में प्रोटीन की कुल मात्रा 21 से 30 प्रतिशत तक होती है। प्रोटीन की इतनी मात्रा अन्य स्रोतों, जैसे—अनाज (Cereals), दालों (Pulses), फल (Fruits) तथा सब्जियों (Vegetables) में भी नहीं होती। प्रोटीन के अलावा इसमें कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम जैसे खनिज तत्व भी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। सभी आवश्यक अमीनो अम्लों का इनमें समावेश होता है। भारत गरीबी, जनसंख्या वृद्धि तथा कुपोषण की समस्याओं से ग्रस्त है। ऐसी स्थिति में यदि मशरूम को आम जनता खासकर शिशु एवं किशोर युवाओं को उपलब्ध कराया जाए तो उनमें कुपोषण के कारण होने वाली शारीरिक समस्याओं को होने से रोका जा सकता है। मशरूम की खेती को आवश्यक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए क्योंकि मशरूम न केवल पोषक हैं बल्कि इनकी खेती भी सस्ती है।

मशरूम अपने स्वाद एवं पोषक मान जैसे प्रोटीन, खनिज तत्वों की बहुलता तथा कोलेस्टेरॉलरहित वैल्यू के कारण उच्चवर्गीय भारतीयों के आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। इससे विविध प्रकार के स्वादिष्ट\ व्यंजन, जैसे-मशरूम पनीर, मशरूम पुलाव, मशरूम ऑमलेट, मशरूम सूप, मशरूम टिक्का आदि बनाये जाते हैं। छोटे एवं बड़े शहरों में इसका प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

इस आर्टिकल में हमें मशरूम की खेती और उसके महत्व के बारे में जाना। जो परीक्षा के साथ साथ हमारे दैनिक जीवन की सामान्य जानकरी के लिए बी जरुरी है।

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शैवाल का वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi)

शैवाल का  वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi)

इस पोस्ट में हम शैवाल के वर्गीकरण के बारे में जानने वाले हैं। वनस्पति विज्ञान से सम्बन्धित यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है । जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है। यदि आप भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है या करने वाले हैं तो आपको ऐसे बेसिक प्रश्नों के उत्तर जरुर आने चाहिए ।  


शैवाल का  वर्गीकरण ( Classification of Algae in Hindi)

Shaival ka Vargikaran

आधुनिक वर्गीकरण (Modern Classification)

आधुनिक शैवाल वैज्ञानिकों (Modern phycologists) ने फ्रिश्च (Fritsch, 1935) द्वारा दिये गये शैवालों के वर्गीकरण में प्रस्तावित 11 वर्गों (Classes) को प्रभाग (Division) का दर्जा (Rank) प्रदान करते हुए 11 प्रभागों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया है-


प्रभाग (Division)-[1] सायनोफाइटा (Cyanophyta) नीली-हरी शैवाल

वर्ग (Class) - [1] सायनोफाइसी (Cyanophyceae)
गण (Order) -(1) क्लोरोकोक्केल्स (Chlorococcales)
(2) कैमीसाइफोनेल्स (Chamisiphotales)
(3) ऑसिलोटोरिएल्स (Oscillatoriales)
(4) नॉस्टोकेल्स (Nostocales)
(5) सायटोनिमेल्स (Cytonimales)
(6) स्टाइगोनिमेटेल्स (Stigonimatales)
(7) रिवुलेरिएल्स (Rivulariales)

इन्हें भी जानें- सामान्य ज्ञान के प्रश्न 2023

प्रभाग (Division)-[2] क्लोरोफाइटा (Chlorophyta) हरी शैवाल

वर्ग (Class)- [1] क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)
गण (Order)- (1) वॉलवकिल्स (Volvocales)
(2) क्लोरोकोक्कल्स (Chlorococcales)
(3) यूलोट्राइकेल्स (Ulotrichales)
(4) अल्वेल्स (Ulvales)
(5) ऊडोगोनिएल्स (Oedogoniales)
(6) क्लैडोफोरेल्स (Cladophorales)
(7) कीटोफोरेल्स (Chaetophorales)
(8) जिग्नीमेल्स (Zygnemales)
(9) साइफोनेल्स (Siphonales)

प्रभाग (Division)-[3] कैरोफाइटा (Charophyta) – स्टोनवर्ट

वर्ग (Class)- [1] कैरोफाइसी (Charophyceae)
गण (Order)- (1) कारेल्स (Charales)

प्रभाग (Division) [4] यूग्लीनोफाइटा (Euglenophyta)

गण (Order)- (1) यूग्लीनेल्स (Euglenales)

प्रभाग (Division) [5] पायरोफाइटा (Pyrophyta)

प्रभाग (Division) [6] जैन्थोफाइटा (Xanthophyta)-पीली-हरी शैवाल

वर्ग (Class)- [1] जैन्थोफाइसी (Xanthophyceae)
गण (Order)- (1) हेटेरोसाइफोनेल्स (Heterosiphonales)

प्रभाग (Division)- [7] बैसिलेरियोफाइटा (Bacillariophyta)

वर्ग (Class)- [1] बैसिलेरियोफाइसी (Bacillariophyceae) डायटम

प्रभाग (Division)– [8] क्राइसोफाइटा (Chrysophyta)

प्रभाग (Division) -[9] क्रिप्टोफाइटा (Cryptophyta)

प्रभाग (Division)-[10] फियोफाइटा (Phacophyta)-भूरी शैवाल

वर्ग (Class)- [1] आइसोजेनरेटी (Isogeneratae)
गण (Order)- (1) एक्टोकार्पेल्स (Ectocarpales)
(2) डिक्टियोटेल्स (Dictyotales)

वर्ग (Class)- [2] हेटेरोजेनरेटी (Heterogeneratae)
गण (Order)- (1) लैमिनेरिएल्स (Laminariales)

वर्ग (Class)- [3] साइक्लोस्पोरी (Cyclosporae)
गण (Order)- (1) फ्यूकेल्स (Fucales)

प्रभाग (Division) – [11] रोडोफाइटा (Rhodophyta)–लाल शैवाल

वर्ग (Class)- [1] रोडोफाइसी (Rhodophyceae)
उप-वर्ग (Sub-class)- [1] बैंगिओइडी (Bangioidae) [2] फ्लोरिडी (Florida
गण (Order)- (1) निमेलिओनेल्स (Nemalionales)
(2) सिरेमिएल्स (Ceramiales)

इस पोस्ट में हमने शैवाल का  वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi) के बारे में जाना। जो वनस्पति विज्ञान से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

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कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi)

 अगर आप विज्ञान के विद्यार्थी हैं तो आपने कवक के बारे में जरुर पढ़ा होगा। कवक एक प्रकार के जीव हैं जो अपना भोजन सड़े गले म्रृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। ये संसार के प्रारंभ से ही जगत में उपस्थित हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ इनका संसार में अपमार्जक के रूप में कार्य करना है। इनके द्वारा जगत में से कचरा हटा दिया जाता है। कवक को फफूंद भी कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में फंगी(Fungi) कहते हैं। क्यूंकि हमारे दैनिक जीवन से जुडी हुयी चीज है इसलिए हमें इसके बारे में जरुर जानना चाहिए तो चलिए जानते हैं कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi) के बारे में , जिससे जुड़े सवाल भी अक्सर परीक्षाओं में देखने को मिल जाते हैं।


कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi)


कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan )

1. कवक सर्वव्यापी (World wild) होते हैं तथा यह अन्य जीवित पोषकों (Living host) पर अथवा सड़े-गले पदार्थों पर मृतोपजीवी (Saprophytic) जीवनयापन करते हैं।

2. इनका शरीर सूकायवत् (Thalloid) होता है अर्थात् इसमें जड़, तना एवं पत्ती का अभाव होता है। सूकाय गैमिटोफाइटिक (Gametophytic) होता है।

3. इनका सूकाय तन्तुवत् (Filamentous) एवं प्राय: शाखित (Branched) होता है तथा यह पट्टयुक्त (Septate) अथवा पट्टरहित (Non-septate) होता है। पट्टरहित सूकाय एककोशिकीय (Unicellular) एवं बहुनाभिकीय (Multinucleated) होता है। ऐसे सूकाय को सीनोसिटिक (Coenocytic) कहते हैं।

4. इनके प्रत्येक तन्तु (Filament) को कवक तन्तु या हाइफी (Hyphae) कहते हैं। बहुत-से हाइफीमिलकर एक कवक जाल (Mycelium) बना लेते हैं। कुछ कवकों में कवक तन्तु (Hyphae) अनुपस्थित होता है तथा वे एककोशिकीय गोलाकार संरचना के रूप में होते हैं। उदाहरण- यीस्ट (Yeast) I

5. इनमें एक स्पष्ट कोशिका भित्ति (Cell wall) पायी जाती है, जो कि फंगस सेल्यूलोज (Fungal cellulose) एवं काइटिन (Chitin) की बनी होती है। काइटिन, एसिटाइल ग्लूकोसैमिन (Acetyl glu- cosamine) का बहुलक  (Polymer) होता है। काइटिन के अलावा कवकों की कोशिकाभित्ति में ग्लूकेन्स  (Glucans) एवं ग्लाइकोप्रोटीन्स (Glycoproteins) भी पाये जाते हैं। कुछ कवकों की कोशिकाभित्ति में मेलानीन (Melanine) नामक वर्णक भी पाये जाते हैं। ये कवकों को पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। 

काइटिन एवं ग्लूकेन कवक कोशिका भित्ति के प्रमुख घटक होते हैं। इसके अणु आपस में निश्चित क्रम में जुड़े होते हैं। ये भित्ति को कठोरता, दृढ़ता तथा निश्चित आकार प्रदान करते हैं। कवकों की विभिन्न जातियों में कोशिका भित्ति का रासायनिक संरचना में अंतर पाया जाता है।

इन्हें भी जानें- जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

6. इनमें क्लोरोफिल (Chlorophyll) का अभाव होता है, अत: ये परजीवी (Parasitic), मृतोपजीवी (Saprophytic) अथवा सहजीवी (Symbiotic) जीवनयापन करते हैं।

7. इनकी कोशिकाएँ कशाभिका रहित (Non-flagidate) होती हैं तथा कशाभिका केवल प्रजनन करने वाले जूस्पोर्स (Zoospores) अथवा युग्मकों में ही पाये जाते हैं।

8. इनमें संगृहीत भोज्य पदार्थ (Reserve food materials), तेल की बूंदों (Oil droplet वा ग्लाइकोजन (Glycogen) के रूप में पाया जाता है।

9 इनकी शारीरिक संरचना यूकैरियॉटिक (Eukaryotic) होती है।

10. कवकों में प्रजनन तीनों विधियों के द्वारा होता है-

(i) वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) 

(ii) अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction)

(iii) लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction)।

11 वर्धी प्रजनन प्रायः विखण्डन (Fragmentation), द्विभाजन (Binary fission), मुकुलन (Budding) एवं स्क्लेरोशिया (Sclerotia) के द्वारा होता है।

12. अलैंगिक प्रजनन प्राय: जूस्पोर्स (Zoospores), स्पोर्स (Spores), कोनिडिया (Conidia), क्लैमाइडोस्पोर्स (Chlamydospores) एवं ओइडियोस्पोर्स (Oidiospores) के द्वारा होता है।

13. लैंगिक प्रजनन चलयुग्मकी संयुग्मन (Planogametic copulation), युग्मकधानी सम्पर्क (Game- tangial contact), युग्मकधानी संयुग्मन (Gametangial copulation), स्पर्मेटाइजेशन (Spermatization), सोमेटोगैमी (Somatogamy) अथवा आटोगैमी (Autogamy) आदि विधियों द्वारा होता है।

14. स्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of generation) पाया जाता है।

 कवकों का पोषण(Kavkon ka Poshan)

कवक परपोषी (Heterotrophic) प्रकृति के होते हैं। यह अपना भोजन या तो जीवित पोषकों (Living hosts) से प्राप्त करते हैं, या तो सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। इसमें क्रमशः परजीवी (Parasites) तथा मृतोपजीवी (Saprophytes) कहलाते हैं।

(a) मृतोपजीवी (Saprophytes):- ये सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर उगते हैं। उदाहरण- म्यूकर (Mucor), राइजोपस (Rhizopus), पेनीसीलियम (Penicillium) तथा परजिलस (Aspergillus) |

(b) परजीवी (Parasites):-ये कवक जीवित पोषकों से ही अपना पोषक प्राप्त करते हैं तथा इन पोषकों पर रोग उत्पन्न करते हैं। इन्हें निम्न प्रकारों में विभक्त किये जा सकते हैं-

(1) अनिवार्य परजीवी (Obligate parasites):- ये अपने विकास हेतु जीवित पोषकों (Living hosts) पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण-पक्सीनिया (Puccinia) |

(2) विकल्पी मृतोपजीवी (Facultative saprophytes):- इस प्रकार के परजीवो कवक प्रायः जीवित पोषकों (Living hosts) पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर कुछ समय के लिए ये अपना जीवन मृतोपजीवी (Saprophytes) की भाँति व्यतीत करते हैं, जैसे-टेफराइना डीफोर्मेन्स (Taphrina deformans) तथा स्मट्स (Smuts) आदि।

(3) विकल्पी परजीवी (Facultative parasites):- कुछ परजीवी कवक अपना जीवन मृतोपजीवियों की भाँति व्यतीत करते हैं, किन्तु परिस्थितिवश ये कवक किसी उपयुक्त पोषक पर परजीवी की भाँति जीवन व्यतीत करने लगते हैं, जैसे—पीथियम (Pithium), फ्यूजेरियम (Fusarium) आदि।

परजीवी कवक पोषकों से अपना भोजन चूषकांगों (Haustoria) द्वारा अवशोषित करते हैं। कुछ कवकों के चूषकांग, गोल घुण्डीदार (Knob shaped) होते हैं, जैसे-एल्ब्यूगो (Albugo) अथवा कुछ कवकों के चूषकांग शाखित होते हैं, जैसे- पेरोनोस्पोरा (Peronospora) आदि।

सहजीवी (Symbiotic)

कुछ कवक उच्च श्रेणी के पौधों के साथ रहते हैं जिनसे दोनों जीवों को लाभ होता है, अत: इसके जीवन को सहजीवन कहते हैं तथा इसमें पाये जाने वाले कवक सहजीवी (Symbiotic) कहलाते हैं।

पढ़ें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

कवकों का प्रजनन (Reproduction of Fungi)

कवकों में जनन तीन विधियों द्वारा होता है-

1. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction)

2. अलगिक प्रजनन (Asexual reproduction)

3. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction)

1. वर्धी प्रजनन अथवा कायिक जनन (Vegetative Reproduction)

वर्धी प्रजनन में कवक जाल का कोई भी हिस्सा जनक शरीर से अलग होकर नये कवक का निर्माणक है। इस विधि में कवक तन्तुओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं-

(1) खण्डन (Fragmentation):- इस विधि में कवकतन्तु कई खण्डों में टूट जाता है और प्रत्येक (Fragment) पुनः वृद्धि करके नया कवक जाल बनाता है।

(2) विभाजन (Fission):- इस विधि में एक कोशिकीय कवक में वृद्धि होती है फिर कोशिका संकुचन से दो बराबर आकार की संतति कोशिकाएँ। बनती हैं।

(3) मुकुलन (Budding):- इस विधि द्वारा जनन एककोशिकीय कवकों में पाया जाता है। इस विधि में जनक कोशिका से एक अतिवृद्धि के रूप में मुकुलन (Bud) दत्पन्न होती है। मुकुलन जनक कोशिका से पृथक् होकर एवं वृद्धि करके एक स्वतंत्र जीव को जन्म देती है।

(4) क्लैमाइडोबीजाणु (Chlamydo- spores):- कुछ कवकों में कवकतन्तुओं की कोशिकाएँ मोटी भित्ति वाले बीजाणुओं में बदल जाती हैं। इन बीजाणुओं को क्लैमाइडोवीजाणु (Chlamydospores) कहते हैं। अनुकूल परि- स्थतियों में बीजाणु अंकुरित होकर नया कवकतन्तु बना देते हैं।

2. अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction)

इनमें बीजाणुओं (Spores) का निर्माण बिनासंलयन के कवकतंतुओं पर सीधे ही हो जाता है। अलैंगिक प्रजनन निम्न विधियों द्वारा होता है-

(i) कोनिडिया द्वारा (By conidia):- ये अचल, गोल, पतली भित्ति वाली एवं एकनाभिकीय संरचना होती है। यह एक विशेष कवक शाखा है, जिसे कर्णाधार (Conidiophore) कहते हैं पर बहिर्जात Conidiophores (Exogenous), रूप से श्रृंखला में विकसित होती है। अनुकूल परिस्थितियों में यह अंकुरित होकर नया कवक तंतु बनाते हैं। उदाहरण— ऐस्परजिलस (Aspergillus) एवं पेनिसिलियम् (Penicillium)।

(ii) चल बीजाणुओं द्वारा (By zoospores):- जूस्पोर्स का निर्माण प्रायः निम्नवर्गीय कवक सदस्यों मे होता है। जूस्पोर्स का निर्माण जूस्पोरेंजियम (Zoosporangium) अथवा बीजाणुधानी में अंतर्जात (Endogenous) रूप से होता है। इन बीजाणुओं में एक या दो कशाभिका (Flagella) पाया जाता है। उदाहरण- ऐक्लिया (Achlya), ऐल्ब्यूगो (Albugo), पाइथियम (Pythium), तथा फाइटोफ्थोरा (Phytophthora) ।

(iii) ऐप्लानोस्पोर्स (Aplanospores):- ये विशेष प्रकार की बीजाणुधानी में बनने वाले कशाभिका रहित बीजाणु होते हैं। उदाहरण-म्यूकर (Mucor) 

(iv) बेसिडियोस्पोर्स (By basidiospores):- बेसिडियोस्पोर्स, बेसिडियम में बहिर्जात (Exogenous) रूप से उत्पन्न होने वाले मोओस्पोर्स हैं। यह अंकुरित होकर नया कवकतन्तु बनाते हैं। उदाहरण-पक्सीनिया

इसे भी पढ़ें- बीज प्रसुप्ति क्या है? प्रकार, प्रभावित कारक, महत्व (Seed dormancy in Hindi)

लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

ड्यूटेरोमाइसिटीज (Deuteromycetes) वर्ग को छोड़कर सभी कवकों में लैगिक जनन पाया जाता है। लैंगिक जनन दो युग्मकों के संलयन (Fusion) से होता है। लैंगिक जनन की क्रिया में तीन स्पष्ट अवस्थाएं प जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(i) प्लाज्मोगेमी (Plasmogamy):- यह लैंगिक जनन की प्रथम अवस्था है। इसमें दो युग्मकों के जीवद्रव्य का संलयन होता है। इस क्रिया में दोनों युग्मकों के केन्द्रक एक कोशिका में एक-दूसरे के पास आ जाने हैं, लेकिन आपस में संलयन नहीं करते हैं।

(ii) केन्द्रक संलयन अथवा कैरियोगेमी (Karyogamy):- यह लैंगिक जनन की द्वितीय अवस्था है। इसमें युग्मकों के दोनों अगुणित केन्द्रकों का संलयन होता है और द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनता है।

(iii) अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis):- यह लैंगिक जनन की तीसरी एवं अन्तिम अवस्था है। इसमें द्विगुणित केन्द्रक में अर्धसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है।और पुनः अगुणित अवस्था प्राप्त होती है।

लैंगिक जनन के प्रकार (Types of sexual reproduction)– कवकों में लैंगिक जनन निम्न के प्रकार होते हैं-

1. चलयुग्मकी संयुग्मन (Planogametic copulation):- इस प्रकार के संयुग्मन में संलयन करते वाले युग्मक चल होते हैं तथा इन्हें चलयुग्मक (Planogamete) कहते हैं। इनके संलयन से द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है । संलयित होने वाले युग्मकों की सरंचना एवं व्यवहार के आधार पर चलयुग्मको संयुग्मन तीन प्रकार का होता है-

(i) समयुग्मकी (Isogamous):- इसमें भाग लेने वाले युग्मक आकार एवं आकृति में समान होते हैं, शरीर क्रियात्मक दृष्टि से भिन्न होते हैं। ऐसे युग्मकों को समयुग्मक (Isogametes) कहते हैं।

(ii) असमयुग्मकी (Anisogamous):- इसमें भाग लेने वाले युग्मक आकारिकीय तथा शरीर क्रियात्मक दोनों तरह से भिन्न होते हैं। ऐसे युग्मकों को असमयुग्मक (Anisogametes) कहते हैं। इनमें नर युग्मक मादा युग्मक की तुलना में छोटे परन्तु अधिक सक्रिय होते हैं।

(iii) विषमयुग्मकी (Oogamous):-  इनमें भाग लेने वाले युग्मकों में से नर युग्मक चल होता है तथा मादा युग्मक (अण्ड) अचल होता है। इसमें भी युग्मक आकारिकीय तथा शरीर क्रियात्मक दोनों तरह से भिन्न होते हैं।

2. युग्मकथानीय सम्पर्क (Gametangial contact):- इसमें नर तथा मादा युग्मकधानियाँ (Gam- etangial) एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं। नर युग्मकधानी (Antheridium) से केन्द्रक अथवा नर युग्मक मादा युग्मकधानी (Oogonium) में एक नलिका द्वारा या छिद्र के द्वारा स्थानान्तरित हो जाता है तथा नर एवं मादा केन्द्रकों का संलयन हो जाता है।

3. युग्मकथानीय संयुग्मन (Gametangial copulation) :- इसमें नर तथा मादा युग्मक धानियों केसम्पूर्ण पदार्थों का संलयन होता है। इस विधि में दो युग्मकधानियाँ सम्पर्क में आती हैं तथा इनके बीच की भित्ति घुल जाती हैं तथा दोनों के जीवद्रव्य एवं केन्द्रक आपस में मिल जाते हैं।

4. अचलपुंमणु युग्मन (Spermatization):- कवकों के कुछ प्रगत वंशों में लैंगिक अंगों का पूर्ण अभाव होता है। इनमें लैंगिक क्रिया अचल पुंमणु (Spermatia = नर युग्मक) तथा विशिष्ट ग्राही कवक तन्तुओं ( Recetive hyphae = मादा युग्मक) द्वारा पूर्ण होती है। अचल पुंमणु वायु, जल अथवा कीटों द्वारा ग्राही कवक तन्तु तक पहुँचते हैं तथा उससे चिपक जाते हैं। पुंमणु एवं ग्राही कवक तन्तु के मध्य की भित्ति घुल जाती हैं जिसमें पुंमणु के अन्दर का पदार्थ ग्राही कवकतन्तु में चला जाता है। पुंमणु और ग्राही कवक तन्तु के केन्द्रक बिना संलयित हुए जोड़ी बना लेते हैं, इसे केन्द्रकयुग्म (Dikaryon) कहते हैं।

5. काययुग्मन अथवा सोमेटोगेमी (Somatogamy):- कवकों के कुछ प्रगत वंशों, विशेषकर ऐस्कोमाइसिटीज एवं बेसीडियोमाइसिटीज के सदस्यों में लैंगिक अंगों का पूर्ण अभाव होता है। इन कवकों में दो सामान्य कायिक कोशिकाएँ लैंगिक जननांगों के रूप में कार्य करती हैं। इनके संलयन से दोनों कोशिकाओं के केन्द्रक पास आकर केन्द्रकयुग्म (Dikaryon) बना लेते हैं।

FAQs:-

Q. कवक रोग कैसे उत्पन्न करते हैं?

Ans:- कवक कोशिकाएं ऊतकों पर आक्रमण कर सकती हैं और कवक के कार्य को बाधित कर सकती हैं,  प्रतिरक्षा कोशिकाओं या एंटीबॉडी द्वारा प्रतिस्पर्धी चयापचय, विषाक्त मेटाबोलाइट्स (उदाहरण के लिए कैंडिडा प्रजातियां चयापचय के दौरान एसीटैल्डिहाइड, एक कार्सिनोजेनिक पदार्थ का उत्पादन कर सकती हैं)

Q. कवक रोग क्या है?

Ans:- फंगल संक्रमण, या माइकोसिस, कवक के कारण होने वाली बीमारियां हैं।

Q. कवक में किसकी कमी होती है?

Ans:- कवक में क्लोरोफिल की कमी होती है और प्रकाश संश्लेषण में संलग्न नहीं होते हैं।

इस पोस्ट में हमने कवक के लक्षण , पोषण और प्रजनन के बारे में जाना। जो परिक्षापयोगी है।

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जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

हम दैनिक जीवन में अक्सर जीवाणु के बारे में सुनते रहते हैं जिसे अंग्रेजी में बैक्टीरिया(Bacteria) कहते हैं। जिसे हम सभी नुकसान कारक ही मानते हैं । लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस जीवाणु के लाभ भी हो सकते हैं। इस पोस्ट में हम जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria) के बारे में जानेंगे। जिसमे जीवाणु से होने वाले लाभ और हानि के बारे में बताया जा रहा है।


जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

जीवाणु हमारे लिए विभिन्न प्रकार से उपयोगी होने के साथ-साथ हानिकारक भी होते हैं। अत: जीवाणु के
आर्थिक महत्व का अध्ययन हम निम्नलिखित दो शीर्षकों के अन्तर्गत करेंगे-
(A) लाभदायक जीवाणु, (B) हानिकारक जीवाणु

(A) लाभदायक जीवाणु (Useful Bacteria)

(a) कृषि के क्षेत्र में (In field of agriculture) - ये भूमि की उर्वरता को निम्नलिखित क्रियाओं के द्वारा
बढ़ाते हैं—
(i) N, स्थिरीकरण द्वारा (By N2 fixation)- कुछ जीवाणु भूमि में स्वतन्त्र रूप से जैसे- क्लॉस्ट्रिडियम
(Clostridium) और ऐजोटोबैक्टर (Azotobactor) या लेग्यूमिनोसी कुल की जड़ों में जैसे- राइजोबियम
(Rhizobium) उपस्थित रहकर N, स्थिरीकरण के द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
(ii) नाइट्रीकारी जीवाणु द्वारा (By nitrifying bacteria) - ये अमोनिया को नाइट्राइट और नाइट्राइट
को नाइट्रेट में बदलकर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। उदाहरण— नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas
नाइट्रोवॅक्टर (Nitrobactor) |
(iii) मृत जीवों को सड़ाना (Decomposition of death organism) – मृत जीवों को सड़ाकर अपघटक भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।

(b) डेयरी उद्योग में (In dairy industry)- दूध में उपस्थित लैक्टिक ऐसिड जीवाणु दूध को लैक्टोर
शर्करा को दही या लैक्टिक ऐसिड में बदलते हैं, जिससे मक्खन प्राप्त किया जाता है।

(c) सिरका उद्योग में (In vineger industry)- सिरका उद्योग में ऐसीटोबैक्टर ऐसीटी (Acetobactar
acei) जीवाणु के द्वारा शर्करा के घोल को सिरके में बदला जाता है।

(d) रेशे की रेटिंग में (In ratting of fibres)- विभिन्न पौधों के तनों के रेशों को अलग करने को रेटि
कहते हैं। जूट, पटसन, सन, अलसी इत्यादि के रेशों को, इनके पौधों को पानी में सड़ाकर प्राप्त किया जाता है
इस क्रिया में जलीय जीवाणु क्लॉस्ट्रिडियम ब्यूटीरिकम (Clostridium butyricum) कार्य करती है।

(e) तम्बाकू और चाय उद्योग में (In tobacco and tea industry )- इन दोनों उद्योगों में चाय तप
तम्बाकू की पत्तियों को जीवाणुओं के द्वारा किण्वित कराया जाता है तथा अच्छी खुशबू (Flavour), क्वालिटी के
चाय व तम्बाकू प्राप्त की जाती है। मायकोकोकस कॉण्डिसैन्स (Mycococcus condisans) द्वारा चाय क
पत्तियों पर किण्वन क्रिया द्वारा क्यूरिंग (Curing) किया जाता है।

(f) चमड़ा उद्योग में (In leather industry)- चमड़ा उद्योग में वसा आदि पदार्थों का विघटन जीवाणु
के द्वारा कराया जाता है।

(g) औषधि उद्योग में (In medicine industry)- दवा उद्योग में कुछ प्रमुख ऐण्टिबायोटिक (प्रतिजैविक
तथा कुछ प्रमुख प्रकीण्व जीवाणुओं से प्राप्त किये जाते हैं और बीमारियों को ठीक करने के लिए प्रयोग में त
जाते हैं। प्रतिजैविक (Antibiotic) सूक्ष्मजीवों (Microorganism) द्वारा उत्पन्न जटिल रासायनिक पदार्थ हैं,
दूसरे सूक्ष्मजी़ीवों को नष्ट करते हैं। जीवाणुओं द्वारा उत्पादित कुछ ऐण्टिबायोटिक निम्नलिखित हैं-

(i) पॉलिमिक्सिन (Polymyxin)- इसे बैसिलस पॉलिमिक्सा (Bacillus polymyxa) नामक ग्राम
ऋणात्मक जीवाणु से प्राप्त किया जाता है।
उपर्युक्त के अलावा कुछ जीवाणु हमारे शरीर में भी सहजीवी रूप में पाये जाते हैं। जैसे-ई. कोलाई (E,
col) हमारे आँत में विटामिन संश्लेषण का कार्य करता है। कुछ जीवाणु सड़े-गले पदार्थों को अपघटित करके
हमारी मदद करते हैं।

(ii) बैसिट्रेसिन (Bacitracin)- इसे बैसिलस सबटिलिस (B. subtilis) नामक ग्राम धनात्मक जीवाणु
से प्राप्त किया जाता है।

(B) हानिकारक जीवाणु (Harmful Bacteria)

इनकी हानिकारक क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) बीमारियाँ (Diseases)- ये मनुष्य, जानवरों तथा पौधों में बीमारियाँ पैदा करते हैं।
(a) जन्तुओं की बीमारियाँ (Animal diseases)- सामान्यतः मनुष्य तथा दूसरे जन्तुओं के शरीर में
पाये जाने वाले परजीवी जीवाणु कोई न कोई बीमारी फैलाते हैं। कुछ प्रमुख जीवाणु रोग तथा उनके कारक
निम्नलिखित हैं-

रोग का नाम- ट्यूबरकुलोसिस (T.B.)
कारक जीवाणु का नाम- मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis)

रोग का नाम- प्लेग (Plague)
कारक जीवाणु का नाम- पाश्चुरेला पेस्टिस (Pasteurella pestis)

रोग का नाम- डिफ्थीरिया (Diphtheria)
कारक जीवाणु का नाम-  कोरिनीबैक्टीरियम डिफ्थेरी (Corynebacterium diphtheriae)

रोग का नाम- टायफॉइड (Typhoid)
कारक जीवाणु का नाम- साल्मोनेला टायफी (Salmonella typhii)

रोग का नाम- कॉलरा (Cholera)
कारक जीवाणु का नाम- विब्रियो कॉलेरी(Vibrio cholerae)

रोग का नाम- निमोनिया (Pneumonia)
कारक जीवाणु का नाम- डिप्लोकोक्कस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae)

रोग का नाम- भोजन जहर (Food Poisoning)
कारक जीवाणु का नाम- क्लॉस्ट्रिडियम बाटुलिनम (Clostridium botulinum)

रोग का नाम- कुष्ठ रोग (Leprosy)
कारक जीवाणु का नाम-  मायकोबैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae)

रोग का नाम- टीटेनस (Lock Jaw)
कारक जीवाणु का नाम- क्लॉस्ट्रिडियम टिटैनी (Clostridium tetani)


रोग का नाम- सिफिलिस (Syphilis)
कारक जीवाणु का नाम- ट्रीपोनीमा पैलिडुम (Treponema pallidum)

रोग का नाम- मेनिन्जाइटिस (Meningitis)
कारक जीवाणु का नाम- नीसेरिया मेनिंजीटाइडिस (Neisseria meningitides)

जानवरों के रोग 

रोग का नाम- भेड़ का एन्थ्रेक्स रोग
कारक जीवाणु का नाम- बैसिलस एन्थेसिस (Bacillus anthracis)

रोग का नाम- जानवरों का काला पैर रोग (Black leg of animals)
कारक जीवाणु का नाम- क्लॉस्ट्रिडियम चूवी (Clostridium chauvei)

पौधों की बीमारियाँ

रोग का नाम- नीबू का कैंकर रोग (Citrus canker)
कारक जीवाणु का नाम- जन्थोमोनास सिट्टी (Kanthomonas citri)


रोग का नाम- ब्लाइट ऑफ राइस (Blight of rice)
कारक जीवाणु का नाम- जैन्थोमोनास ओराइजी (Xoryzae)

रोग का नाम- आलू का शिथिल रोग (Potato wilt)
कारक जीवाणु का नाम- स्यूडोमोनास सोलनेसीरम (Pseudomonas solanacearum)

रोग का नाम- वीन ब्लाइट (Bean blight)
कारक जीवाणु का नामजैन्थोमोनास फेजिओली (X plhaseoli)

रोग का नाम- काटन का ब्लैक आर्म रोग (Black arm of cotton)
कारक जीवाणु का नाम- जन्थोमोनास मालवेसीरम (X malyacearum)

रोग का नाम- पोटेटो स्कैब (Potato scab)
कारक जीवाणु का नाम- स्ट्रोटोमाइसिस स्कैबीज (Streptomyces scabies)

(2) विनाइट्रीकरण (Denitrification)- विनाइट्रीकरण वह क्रिया है, जिसमें उपयोगी नाइट्रोजन के
यौगिकों को पुनः अमोनिया और N, में बदल दिया जाता है। कुछ जीवाणु इस क्रिया के द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति
को कम करते हैं। कुछ जीवाणु जैसे- थायोबैसिलस डीनाइट्रीफिकेन्स (Thiopbacillus denitrificaus
और माइक्रोकोकस डीनाइट्रीफिकेन्स (Micrococus denitrificans) नाइट्रेट को स्वतन्त्र नाइट्रोजन
अमोनिया में बदल देते हैं।

(3) भोजन को विषावत करना (Food poisoning)- कुछ जीवाणुओं द्वारा भोज्य पदार्थों के उत्तयो
को विषैले पदार्थों में बदल दिया जाता है, जिससे भोजन जहरीला हो जाता है और खाने वाले की मृत्यु हो जह
है। क्लॉस्ट्रिडियम बॉटुलिनम (Clostridium botulinum) मांस एवं दूसरे अधिक प्रोटीन वाले शाकों को ऋ
कर देता है।

उपर्युक्त लाभकर तथा हानिकर क्रियाओं के आधार पर जीवाणु हमारे मित्र एवं शत्रु दोनों हैं।

इस पोस्ट में हमने जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria) के बारे में जाना। जो कॉलेज की परीक्षाओं में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

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मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee)

क्या आपको कभी मधुमक्खी ने काटा है? क्या आप जानना चाहते हैं की मधुमक्खी विष क्या होता है? मधुमक्खी के काटने पर इसका उपचार(treatment) कैसे करें? ये जानने के नीचे लिखे content आपके लिए बहुत उपयोगी होने वाला है.

मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee)– 



भारतवर्ष में मधुमक्खियों की पाँच जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें एपिस डार्सेटा (Apis dorsata), एपिस इंडिका (Apis indica), एपिस फ्लोरिया (A. flora), मेलिपोना इरिडिपेन्निस (Melipona iridipennis) तथा एपिस मेलिफेरा (A. mellifera), इन मधुमक्खियों में बहुरूपता (Polymorphism) एवं श्रम विभाजन (Divison of labour) स्पष्ट एवं अच्छी विकसित अवस्था में पाया जाता है। 

बहुरूपी प्रकारों की रानी (Oueen), एवं श्रमिक (Workers) मधुमक्खियों में दंशक उपकरण (Sting ap paratus) पाया जाता है। दंश उपकरण में एक जोड़ी अम्लीय विष ग्रंथि (Acid venom gland) एक क्षारीय ग्रंथि (AI kaline gland) एक मजबूत पेशीय बल्ब तथा काइटिन युक्त डंक (Chtinized sting) पाए जाते हैं ।

मधुमक्खी विष (Honey bee poison)  

मधुमक्खी के विष में हिस्टामीन (Histamine) एवं मैलिटिन (Melli tine) नामक विशिष्ट प्रोटीन पाए जाते हैं। इन प्रोटीन्स के अतिरिक्त हायलूरोनाइडेज़ (Hyluronidase), फॉस्फो लाइपेज (Phosphohlipase) ए एवं बी, ऐपामीन (Apa mine) एवं पेप्टाइडेज (Peptidaze) पाए जाते हैं । 

विष के लक्षण (Symptoms of Venom ) 

मधुमक्खी एवं बर्र कीट जब किसी भी मनुष्य को काटते हैं तब डंक की सहायता से वह घाव बनाता है और घाव के अंदर गहराई तक जाकर यह डंक विष को अंदर पहुँचाने में सहायता करता है। विष के शरीर में प्रवेश करने पर निम्नलिखित लक्षण परिलक्षित होते हैं.  

  1.  काटने वाले भाग में दर्द, लालिमा तथा सूजन दिखाई देता है। 
  2.  दर्द युक्त एवं कभी-कभी घातक अभिक्रियाएँ होती 
  3.  मुख, गले, चेहरे, गर्दन या भुजाओं पर लेरिंग्स (Larynx) या ग्रसनी (Pharynx) का सूजन तथा अवरोध निर्मित हो जाता है।

मक्खियों के द्वारा अनेकों डंक के प्रहार से पेट में विसंगति एवं उल्टी होना तथा डायरिया के साथ मूर्छा होने की क्रिया दिखाई देती है। यदि दंश घातक नहीं होता है, तब इसका प्रभाव 24 घंटों तक रहता है। तीव्र अभिक्रियाओं की स्थिति से 2-15 मिनट में मृत्यु हो सकती है।

उपचार (Treatment) 

  1.  डंक को शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए तथा वहाँ पर चीरा लगाकार टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए । 
  2.  स्थानीय भाषा में दंश पर एवं चारों ओर एन्टीहिस्टामिन (Antihistamine) औषधि का उपयोग करना चाहिए। 
  3.  बहुगुणित डंक दंश में हाइड्रोकार्टिसोन (Hydro cortisone) को अंतःशिरायी (Intravenosuly) रूप से देने से लाभ होता है। 
  4.  पित्ती एवं सूजन में कैल्सियम को अंतः शिरायी रूप (Intravenously) देने से लाभ होता है ।
इस पोस्ट में हमने मधुमक्खी के विष, मधुमक्खी के काटने से क्या होता है उसके के क्या उपाय हैं के बारे में जाना।

उम्मीद करता हूँ कि  मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित  होगा , अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें।

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

जीवन की कल्पना श्वसन के बिना नहीं हो सकती है। श्वसन में मनुष्य ऑक्सीजन ग्रहण करता है यह ऑक्सीजन उसे पेड़ पौधों से प्राप्त होता है। अनेक प्रकार के पेड़ पौधे एक स्थान पर होते हैं तो उसे वन कहते हैं। वनों में कई प्रकार के वन होते  हैं। ऊष्ण कटिबंध वन उनमे से एक प्रकार है। जिसके बारे में हम इस पोस्ट में जानने वाले हैं।

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

ऐसे वन उष्ण एवं गर्म जलवायु वाले भागों में पाये जाते हैं। यहाँ पर अत्यंत घने, ऊँचे, वृक्ष, झाड़ियाँ एवं काष्ठीय आरोही या लाइनस पौधे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों, कटीले वृक्षों वाले जंगलों एवं शुष्क क्षेत्रों में कहीं-कहीं पाये जाते हैं। इस प्रकार उष्ण कटिबंधीय वन दो प्रकार के होते हैं 

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests), 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests) 

इन्हें भी जानें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests):- ऐसे बनों में वर्षा अधिक होने के कारण आर्द्रता (Moisture) काफी अधिक होती हैआर्द्रता के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं--- 

1. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबाहार वन (Tropical wet evergreen forests):- 250 सेमी वार्षिक वर्षा से अधिक वर्षा दर वाले भारतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के वन स्थित हैं। इस प्रकार के वन भारत के दक्षिणी हिस्सों मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ भाग तथा उपरी हिस्सों मुख्यत : पश्चिम बंगाल, असम एवं उड़ीसा के कुछ भागों में पाये जाते हैं। इन वनों के वृक्षों की ऊँचाई 40-60 मीटर से अधिक होती है। इस वन के वृक्ष सदाबहार प्रवृत्ति के तथा चौड़ी पत्ती वाले होते हैं। यहाँ काष्ठीय लता तथा उपरिरोही (Epiphytes) की बहुतायत होती है। 

उदाहरण- साल या शोरिया (Shorea), डिप्टेरोकार्पस (Dipterocarpus), आम (Mangifera), मेसुआ (Mesia), होपिया (Hopea), बाँस, इक्जोरा (Ixora), टायलोफोरा (Tylophora) आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय नम अर्द्ध-सदाबहार वन (Tropi cal moist semi-evergreen forests):- इन वनों का विस्तार 200-250 सेमी तक वार्षिक वर्षा स्तर वाले क्षेत्रों में मिलता है। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर, बंगाल एवं पूर्वी उड़ीसा तथा आसाम में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में हैं। इन वनों में कुछ पर्णपाती वृक्षों की जातियाँ भी पायी जाती हैं, इसलिए इन्हें अर्द्ध सदाबहार वन कहते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले कुछ पौधे पर्णपाती तो होते हैं, लेकिन पत्ती रहित अवस्था अल्पकालिक होती है। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया पैनीकुलाटा (Terminalia paniculata) साल (Shorea robhusta), कचनार (Bauhinal), आम (Mengiphera); मैलोटस (Mallotus), टिनोस्पोरा (Tinospora), एण्ड्रोपोगॉन (Andropogon), आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical most deciduous forests):- औसतन 100 से 200 सेमी वर्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस प्रकार के वन मिलते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार अण्डमान द्वीप समूह, मध्य प्रदेश के जबलपुर, मण्डला, छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तरगुजरात के डाँग, महाराष्ट्र के थाने, रत्नागिरी, कर्नाटक के केनरा, बंगलौर एवं पश्चिमी क्षेत्र, तमिलनाडु के कोयम्बटूर तथा निलंबुर व चापनपाड़ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जाते हैंये वन उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगालआसाम, हिमांचल प्रदेश आदि राज्यों के कुछ भागों में पाये जाते हैंदक्षिणी आर्द्र पर्णपाती वनों की मुख्य वृक्ष सागौन (Teak) है, जबकि उत्तरी आई पर्णपाती वन की प्रमुख वृक्ष साल है। सागौन वन में कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के कुछ वन क्षेत्रों में डायोस्पायरॉस (Dlospyros)जिजिफस (Zizyphus)कैसिया (Cas sia)स्टिरियोस्पर्मम (Stereospermum), ऐल्बिजिया (Albizzia), सायजिजियम (Syzygium), सेड्रेला (Cedrella) साथ-साथ मिश्रित रहते हैं।

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समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन(Littoral and Swamp Forest):- समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन क्षेत्र भारत के 67.00 वर्ग किलोमीटर में फैला के वन समुद्र तट पर उदाहरणतः पूर्वी व पश्चिमी समुद्र तट तथा बड़ी-बड़ी नदियों, जैसे- गंगा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी के डेल्टाओं के ज्वारीय अनूपों में पाये जाते हैं। ये क्षेत्र नरम गाद के बने होते हैं, जिनमें राइजोफोरा (Rhizophora), सोन्नैरेशिया (Sonneratia) इत्यादि के मैंग्रोव वन उगते हैं। इस जलाक्रान्त पारिस्थितियों में वानस्पतियों के क्षय से दुर्गन्ध आने लगती है। अपेक्षाकृत अन्तस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ भूमि पर ज्वारीय जल आता रहता है, ज्वारीय वन (Tidal forests) पाये जाते हैं। यहाँ हेरिशियेरा (Haritiera), वेस्पेशिया (Thespesia), वाड़ (Palm) विभिन्न जातियाँ तथा अन्य क्षूप उगते हैं। 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests):- ऐसे वनों में औसत वर्षा अत्यंत कम होती है, जिसके कारण यहाँ का तापमान काफी अधिक हो जाता है। पौधों के प्रकृति के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं 

1. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical dry deciduous forests):- औसत 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले भारतीय क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन मिलते हैं तथा समस्त भारतवर्ष के वन क्षेत्र के 1/3 भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा भारतीय प्रायद्वीप के अधिकांश भागों में हैं। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया टोमेन्टोसा (Terminalia tomentosa), इमली (Temarindus indica), साल (Shorea robhnusia), बेल (Aegle marmelos), बेर आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय कटीले वन (Tropical thorn forests):- ये वन 25-70 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में पर्णपाती वनों के स्थान पर कटीले वन पाये जाते हैं। 

उदाहरण- अकेशिया निलोटिका, अ. सुन्द्रा, प्रोसेपिस सिनेरिया, बेर (Zicyphus), नागफनी (Opum tia) बारलेरिया, यूफोर्बिया की प्रजातियाँ हिन्दरोपोगॉन लेक्टाना आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Tropi. cal thorn evergreen forests):- इस प्रकार के वन क्षेत्रों में 75-100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस प्रकार के वन तमिलनाडु के पूर्वी भाग में, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के समुद्री किनारों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के वनों में वृक्षों की पत्तियाँ चर्मिल (Coriaceous) होती है। इस क्षेत्र में बाँस का अभाव, लेकिन घास पाया जाता है। वृक्ष की ऊँचाई 9-15 मीटर तक होती है। सबसे ऊचे वृक्षों में स्ट्रिक्नॉस नक्स वोमिका (Strychnos mcx vomica), सैम्पिडस इमार्जिनेटस (Spindus emarginatus) में कैरिसा कैरान्डास (carissa carandas), इक्जोरा पार्विफ्लोरा (xara parviflora) आदि।

इस पोस्ट में हमने ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) के बारे में जाना। जो वनों के एक प्रकार में से एक है।

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स्तनधारियों के श्वसन (Mammalian respiration)

हेलो दोस्तों , इस आर्टिकल में हम स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जानने वाले हैं। आपने श्वसन तंत्र के बारे में सुना होगा और आप जानते भी होंगे क्यूंकि मनुष्य को जीवित रहने के लिए सबसे जरुरी सांस लेना है। और श्वसन तंत्र श्वास से सम्बन्धित है। अगर आप श्वसन तंत्र के बारे में नहीं भी जानते हैं तो आपको श्वसन तंत्र के बारे में जरुर जानना चाहिए।  इस आर्टिकल में स्तनधारियों के श्वसन के बारे में जानकारी दी जा रही है। 

स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)


स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)

स्तनधारियों सहित समस्त स्थलीय तथा कुछ जलीय वर्टीब्रेट प्राणीयों में वायवीय श्वसन हेतु मुख्य श्वसनांग एक जोड़ी फेफड़े तथा श्वसन मार्ग बाह्य नासाछिद्र, नासिका वेश्म (Nasal number)अतनासाचिद्र (Internal nares) ग्रसनी (Pharynx), श्वासनलिका (Trachea) एवं श्वसन नलिकाएँ श्वसन तंत्र का निर्माण करते हैं। स्तनियों में एक जोड़ी कोमल गुलाबी, लचीली सक्षम तथा स्पंजी फेफड़े वक्षीय गुहा के मिडियास्टिनम के दोनों ओर एक-एक पाये जाते हैं। 

श्वसन मार्ग (Respiratory path):- श्वसन मार्ग वातावरण O युक्त गैसों को फेफड़े तक ले जाने तथा फेफड़े से CO, युक्त गैसों को वापस शरीर से बाहर निकालने का कार्य करते हैं ये अंग निम्नानुसार होते हैं।

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(i) बाह्य नासाछिद्र (External nares) - मुख में ठीक एक जोड़ी बाह्य नासाछिद्र उपस्थित होते हैं जो आपस में नासा पट्ट (Nasal septam) द्वारा पृथक होते हैं।

(ii) नासिका वेश्म (Nasal chamber):- प्रत्येक बाह्य नाशाछिद्र एक नालिकाकार श्वसन मार्ग में खुलती है जो प्रछाण (Vestibule) व प्राण भाग (Olfactory) दो भागों में विभक्त होती है और ग्रसनी के पृष्ठ भाग नेसोफैरिंग्स (Nassopharynx) में खुलती है नासिका वेश्म या नासा मार्ग में कठोर रोम या वाइब्रिसी (Vibrisae) पाये जाते हैं जो कुल तथा अन्य कणों को रोकने का कार्य करते हैं जबकि नासा मार्ग के श्लेष्मीकला (Mucous membrane ) को आवरण मार्ग को नम बनाये रखने तथा बाह्य वायु के तापमान को शरीर के आंतरिक तापमान के बराबर लाने का कार्य करते हैं।

(iii) ग्रसनी (Phanynx):- यह श्वसन तंत्र तथा आ नाल का संयुक्त भाग होता है। जिसमें तीन भाग नेसोफेक्ि ओरोफैरिक्स एवं लैरिंगोफैरिक्स में होते हैं। इसके नेसोफैरिक्स भाग में आंतरिक नासाछिद्र खुलते हैं तथा निचला भाग लैरिंगोफैरिक्स में एक कष्ठ या लैरिक्स (Larynx) नामक संरचना पायी जाती है जो थायरॉइड (Thyroid), क्रिकॉयड (Cricoid) तथा एरिटिनॉयड (Arytenoid) नामक उपास्थियों से मिलकर बनी होती है। लैरिंक्स से वायु के एक निश्चित दाब के साथ बहाव से स्तनियों में विभिन्न प्रकार के आवाज उत्पन्न होते हैं तथा मनुष्य में भाषा का विकास हुआ है। 

(iv) श्वासनलिका (Trachea):- यह लैरिक्स से जुड़ी हुई एक अर्द्धपारदर्शक उपस्थित नलिका है जो ग्रीवा से न्यलकर वृत्तीय गुहा में पहुंचती है और दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है जिन्हें श्वासनलिकाएँ या ब्रोंकाई Bronchiकहते हैं। प्रत्येक ब्रोंकाई अब अपने ओर के फेफड़े में प्रवेश करती है और फेफड़े के भीतर छोटी-छोटी शाखाओं में विभक्त होकर श्वसनीय वृक्ष (Bronchial tree) का निर्माण करती है।

सरीसृपों में श्वासनाल की लम्बाई ग्रीवा या गर्दन की लम्बाई के अनुसार अलग-अलग होती है। पत्तियों में यह असामान्य रूप से अधिक लम्बी होती है तथा कॉर्टिलेजिनस ट्रेकियल रिंग्स (Cartilaginous tracheal rings) द्वारा घिरी रहती है एवं कैल्सीफाइड तथा आसीफाइड होती है। मुख्य श्वसनांग या फेफड़े (Main respiratory organs or lung) स्तनियों में फेफड़े अत्यंत विकसितस्पंजी तथा प्रत्यास्थ संरचना होती है जो बाहर से कई पालियों में स्पष्ट रूप से विभाजित होती है। मनुष्य तथा सभी स्तनियों के बाँये फेफड़े में समान्यतः 04 पाली (Lobes) होती है

जबकि दाँये फेफड़े में मनुष्यों में तीन पाली व खरगोश में 04 पाली होती हैबाँये फेफड़े का अगला पिण्ड छोटा होता है तथा इसे बाँया अग्र पिण्ड (Left anterior lobe) और पीछे वाला पिण्ड लगभग तीन गुना बड़ा होता है तथा उसे वाम पश्च पिण्ड (Left posterior lobe) कहते हैं। दाँये फेफड़े के पिण्ड (Lobes) क्रमशः आगे से पीछे की ओर इस प्रकार होते हैं

1. अग्र एजाइगस पिण्ड (Anterior Azygos Lobe):- यह सबसे छोटा होता है। 

2. दायाँ अग्र पिण्ड (Right posterior Lobe):- यह पहले से कुछ बड़ा होता है।

3. दायाँ पश्च पिण्ड (Right Posterior Lobe):- यह सबसे बड़ा होता है। 

4. पश्च एजाइगस (Posterior azygos):- यह अनं एजाइगस से कुछ बड़ा होता है। स्तनी का फेफड़ा काफी मात्रा में गैसों के आदान-प्रदान के लिए बना होता है


स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)


स्तनियों के फेफड़ा एक जटिल शाखित श्वसन वृत्त के समान होते हैं जो भीतरी ब्रोंकस के बारबार विभाजन से बनती है। विभाजित पतली शाखाएँ ब्रोंकियोल्स कहलाती है, ब्रॉकियोल्स विभाजित होकर एल्वियोलर डक्ट बनाती है। प्रत्येक एल्वियोलर डक्ट के अन्तिम सिरे फूलकर छोटे-छोटे वायुकोष या एल्विओलाई (Air sacs or Alveoli) बनाते हैं। एल्विओलाई के चारों ओर पतली रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है।

फेफड़े के चारों ओर एक दोहरे पर्त वाली झिल्ली प्लूरा (Pluera) पायी जाती है। प्लूरा की एक पर्व फेफड़े से तथा दूसरी पतं वृत्तीय गुहा (Thorasic cavity) की भीतरी सतह से चिपकी रहती हैप्लूरा के दोनों स्तरों के मध्य एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिससे फेफड़ों के फूलने व सिकुड़ने पर रगड़ नहीं होती है।

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सहायक श्वसनांग (Accessory Respiratory organ):- यद्यपि जलीय कशेरुकियों के मुख्य श्वसनांग गिल्स और स्थलीय कशेरुकियों के फेफड़े होते हैं फिर भी अन्य उपस्थित संरचनाएँ भी जल या वायु से सीधे गैसों का आदान-प्रदान करने में सहायक होते हैं। इन्हें सहायक श्वसनांग कहते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं

Respitory organ of mammals


 1. पीतक कोष और ऐलेंटॉइस (yolk sac and allantois):– लगभग सभी भौणिक कशेरुकी भोजन के लिए पीतक के अवशोषण के अतिरिक्त पीतक कोष का उसके पीतक संवहन सहित गैसीय विनिमय के लिए उपयोग करते हैंये गर्भाशय की भित्ति के संपर्क में होने से श्वसन सांधन (Respiratory device) का कार्य करते हैं। ऐलेंटॉइस भी अस्थायी श्वसनांग बन जाती है। 

2. त्वचा (Skin):- उभयचरों की गीली व नम त्वचा के द्वारा श्वसन क्रिया होती है। जो कि सामान्य बात है जबकि सैलामैंडर्स जैसे जन्तु श्वसन के लिए पूर्णतया त्वचा पर ही निर्भर रहते हैं- 

3. एपिथीलियल अस्तर (Epithelial Ciring):- कुछ मछलियों और जलीय उभयचरों में अवस्कर, मलाशय आंत्र तथा मुख ग्रसनी का एपिथीलियल अस्तर अत्यंत संवहनीय होता है। जो श्वसन में सहायक होता है।

4. अवस्कर आशय (Cloacal bladders):- यह सहायक आशय विशेषकर अधिक समय तक जलमग्न रहने पर महत्वपूर्ण श्वसनांगों का कार्य करते हैं

5. तरण आशय (Swim bladders):- कुछ निम्न श्रेणी की मछलियों में फेफड़े के समान कार्य करने वाली अन्य महत्वपूर्ण संरचना तरण आशय होते हैं। इनके द्वारा भी श्वसन का कार्य किया जाता है।

इस आर्टिकल में हमने स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जाना। जो परीक्षा के अलावा सामान्य जीवन में बहुत जरुरी है।

आशा करता हूँ कि स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इस आर्टिकल को शेयर जरुर करें।