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100+ जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi)

जीव विज्ञान प्रश्न (Biology One Liner question)

इस पोस्ट में हम 100+ जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi) के बारे में जानेंगे। विभिन्न परीक्षाओं में जीव विज्ञान से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। पूर्व में परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों की प्रकृति के आधार पर यह पोस्ट संग्रहित किया है। अगर आप सामान्य ज्ञान बढ़ाने के लिए भी यह पोस्ट पढ़ रहे हैं तो आपको लाभ अवश्य होगा।

जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi)


100+ जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi)

1.जीव विज्ञान क्या है?
उत्तर-जीवधारियों (पादप एवं जन्तु) के अध्ययन को जीव विज्ञान कहते है।

2.जन्तु विज्ञान किसे कहते है?
उत्तर- जन्तुओं के अध्ययन को जन्तु विज्ञान कहते है।

3.प्राणियों को कितने भागों में बाँटा जाता है?
उत्तर- प्राणियों को दो भागों में बाँटा गया है- 1.अकशेरुकी, 2.कशेरुकी

4.प्रोटोजोआ संघ के ऐसे दो प्राणी का नाम बताइये जो स्वपोषी है।
उत्तर- युग्लीना, और वॉलवॉक्स

5.मलेरिया दिवस कब मनाया जाता है?
उत्तर- 29 अगस्त

6.संघ प्रोटोजोआ का विशिष्ट लक्षण क्या है?
उत्तर- इस संघ के जन्तु छिद्र (Pore) युक्त होते है।

7.नाल तंत्र (Canal system) किस संघ में पाया जाता जाता है?
उत्तर- पोरीफेरा संघ में

8.टोटिपोटेन्ट कोशिकाये क्या है?
उत्तर- यह शरीर में उपस्थित वह भ्रूणीय अवस्था की अमीबोसाइट्स कोशिकाये होती है जो आवश्कतानुसार किसी भी अन्य प्रकार की कोशिका में बदल जाती है।

9.वीनस फूलों की डालिया किसे कहते है?
उत्तर- यूप्लैक्टैला

जानें- जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology)
10.हायलोनीमा को साधारण तौर पर किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर- ग्लास रोप स्पंज को

11.किसी अलवण जलीय पोरीफेरा का नाम बतायें।
उत्तर- स्पांजिला

12.सामान्य बाथ स्पंज किसे कहते है।
उत्तर- यूस्पॉन्जिला

13.सीलेण्ट्रेटा के अन्दर पायी जाने वाले गुहा का नाम बताइये।
उत्तर- सीलेन्ट्रान

14.ओबेलिया का सामान्य नाम क्या है?
उत्तर- सी- फर

15.फीताकृमि के लार्वा को क्या कहते है?
उत्तर- ब्लेडरवर्म या सिस्टीसरकस

16.केंचुए में कोकुन कहाँ बनता है?
उत्तर- क्लाइटेलम में बनता है।

17.नेरीस की लैंगिक अवस्था को क्या कहते है?
उत्तर- हैटिरोनेरीस

18.कोशिका का श्वसन स्थल है।
उत्तर- माइटोकॉड्रिया

19.मानव का शुक्राणु बना होता है।
उत्तर- गॉल्जीकाय

20. नेरीस की लार्वा को कहते है।
उत्तर- ट्रोकोफोर लार्वा

21.केन्द्रिका किस कार्य में सहायता करती है?
उत्तर- प्रोटीन संश्लेषण

22. गॉल्जीकाय किन कोशिकओं में अत्यधिक पाये जाते है?
उत्तर- ग्रन्थि कोशिका में

23.अर्द्धसूत्री विभाजन में लम्बी अवस्था होती है।
उत्तर- पूर्वावस्था (Prophase)

24.रोग चिकित्सा विज्ञान में ट्यूमर को कहते है।
उत्तर- न्यूप्लाज्म

25.ध्रुव काय निर्मित होती है।
उत्तर- अण्डाणुजनन में

26.मानव त्वचा का अध्ययन करने वाली विज्ञान की शाखा कहलाती है
उत्तर- : डर्मेटोलोजी

27.अस्थियों का अध्ययन किस शाखा में आता है?
उत्तर-आस्टियोलोजी

28. ‘उड़ान वाले जीवों’ के अध्ययन को क्या कहा जाता हैं? 
उत्तर- एरोबायोलॉजी

29.‘कंकाल यानि हड्डियों’ के अध्ययन को क्या कहा जाता हैं? 
उत्तर- ओस्टियोलॉजी

30.  मनुष्य के अतरिक्त ऐसा कौन सा जानवर है जो अलग-अलग रंगों की पहचान कर सकता है ?
उत्तर- बन्दर

31.  तारा मछली किसका प्रचलित नाम है ?
उत्तर-  एस्टेरियस.

32. सबसे खतरनाक पक्षी कौन सा है ?
उत्तर- कैसोबरी बर्ड

33. सबसे सुस्त जानवर कौन सा है ?
उत्तर- स्लॉथ ( दक्षिण अमेरिका ).

34.  संसार में सबसे अधिक पशु किस देश में हैं ?
उत्तर- भारत में

35. सबसे जहरीली मछली कौन सी होती है ?
उत्तर- स्टोन मछली (हिन्द, प्रशांत महासागर).

36. सबसे तेज रफ़्तार किस मछली में है ?
उत्तर- सेल फिश मछली की, 90Km/घंटा.

37.कौन सी मछली करंट पैदा करती है ?
उत्तर- टारपीडो, इलेक्ट्रिक ईल मछली.

38.सबसे खातरनाक मछली कौन सी होती है ?
उत्तर- शार्क जो मछलियों का राजा कहलाती है.

39. कौन सा जीव पानी नही पीता ?
उत्तर- अमेरिका का कंगारू रैट (कंगारू चूहे ).

40. विश्व का सबसे महंगा पशु कौन सा होता है ?
उत्तर- रेस का घोडा.

पढ़ें- जलोद्भिद पौधे के आकारिकीय अनुकूलन
41.विश्व का कौन सा ऐसा पक्षी है जो बाघ की तरह बोलता है ?
उत्तर- विर्टन पक्षी (दक्षिण अमेरिका)

42. कौन सा ऐसे पक्षी है जो बच्चे पैदा कर दूध पिलाता है ?
उत्तर- चमगादड. 

43. किस मक्खी का भोजन मनुष्य खाता है ?
उत्तर- मधुमक्खी का.

44.मनुष्‍य के जीवन काल में कितने दाँत दो बार विकसित होते हैं
उत्तर- 20

45. मानव शरीर में पाचन का अधिकांश भाग किस अंग में सम्‍पन्‍न होता है
उत्तर- छोटी आँत

46. मनुष्‍य में पाचन क्रिया कहाँ प्रारंभ होती है 
उत्तर- मुख

47.विभिन्‍न जातियों के एक्‍स सीटू संरक्षण के लिए निम्‍न में से कौन-सा उद्दिष्‍ट है 
उत्तर- जर्मप्‍लाज्‍म बैंक

48. विलोपन की कगार पर सर्वाधिक संकटापन एशिया का शीर्ष परभक्षी है
उत्तर- ढोल

49. डार्विन फिचिंज का प्रयोग किस समूह के लिए किया जाता है
उत्तर- पक्षियों के लिए

50. कौन-सा भाग हाथी के गजदंत के रूप में बदलता है
उत्तर- दूसरा कृन्‍तक

51. अधिकांश कीट (Insects) श्‍वसन कैसे करते हैं
उत्तर- वातक तंत्र से

52. पांडा भी उसी कुल का है, जिसका/की है
उत्तर- भालू

53. फीरोमोन्‍स पाए जाते हैं
उत्तर- कीटों में

54. मैमथ पूर्वज हैं 
उत्तर- हाथी का

55. किस समूह के जीवों का डूबने से हुई मृत्‍यु का पता लगाने में महत्‍व है 
उत्तर- डायटम


56. डायनोसॉरस थे 
उत्तर-  सरीसृप जो लुप्‍त हो गए

57. कूटक (Keel) किसमें नहीं पाया जाता है
उत्तर- कूटक (Keel) किसमें नहीं पाया जाता है

58. हरित ग्रन्थियाँ सम्‍बन्धित हैं
उत्तर- उत्‍सर्जन से

59. स्‍तनपायी के उत्‍सर्जनीय उत्‍पाद मूत्र में अधिकता में पाये जाते हैं
उत्तर- यूरिक अम्‍ल

60. वह स्‍तनधारी जो खतरे के संकेत के समय गेंद के समान हो जाता है
उत्तर- कंटक चूहा

61.व्‍हेल के ह्दय में कितने चैम्‍बर होते है 
उत्तर- 4

62. वह एकमात्र पक्षी जो पीछे की ओर उड़ता है
उत्तर- गुंजन पक्षी

63. पावो क्रिस्‍टेशस किसका वैज्ञानिक नाम है
उत्तर-  मोर

64. सबसे बड़ा उड़ने में असमर्थ पक्षी जो सबसे तेज गजि से दौड़ सकता है, वह है
उत्तर- ऑस्ट्रिच

65. पेंगुइन चिडि़या कहाँ पायी जाती है 
उत्तर- अण्‍टार्कटिका

66. आर्कियोप्‍टेरिक्‍स है
उत्तर- जुरैसिक युग का सर्वपुरातन पक्षी

67. न्‍यूजीलैंड में पाया जाने वाला उड्डयनहीन पक्षी है 
उत्तर- किवी

68. डुगोन्‍ग नामक समुद्री जीव जो कि विलोपन की कगार पर है, क्‍या है
उत्तर- स्‍तनधारी

69. पृथ्‍वी पर विशालतम जीवित पक्षी है 
उत्तर- शुतुरमुर्ग

70. किसकी उपस्थिति के कारण गिरगिट (Chameleon) रंग बदलती है
उत्तर- वर्णकीलवक

71. पहला क्‍लोन पशु ‘डॉली’ कौन-सा पशु था
उत्तर- भेड़

72.घोंसला बनाने वाला एक मात्र साँप है
उत्तर- किंग कोबरा

73.शार्क मछली में कितनी हड्डियाँ होती हैं
उत्तर- शार्क मछली में हड्डियाँ नहीं होती हैं

74. जल से बाहर निकाले जाने पर मछलियाँ मर जाती हैं, क्‍योंकि 
उत्तर- वे श्‍वास नहीं ले पाती हैं

75. मच्‍छरों के नियन्‍त्रण हेतु प्रयोग होने वाली कीटभक्षी मछली है 
उत्तर- गेम्‍बूसिया

76.सबसे विषैली मछली है
उत्तर- पाषाण मछली

77. संसार में किस जीव की संख्‍या सर्वाधिक है 
उत्तर- मछली

78. ‘जेनेटिक्‍स’ किसका अध्‍ययन है
उत्तर- आनुवंशिकता और विचरण

79. DNA अंगुली छाप का प्रयोग किसकी पहचान के लिए किया जाता है
उत्तर- बलात्‍कारी, माता-पिता, चोर

80. ‘जीन’ शब्‍द किसने बनाया था
उत्तर- जी. मेण्‍डल

इन्हें भी जानें- सामान्य विज्ञान के प्रश्न-उत्तर

81. वर्णान्‍धता वाले व्‍यक्ति को लाल रंग दिखायी देगा
उत्तर-  हरा

82.  मनुष्‍य में कौन से क्रोमोसोम के मिलने से बालक का जन्‍म होगा
उत्तर-  पुरूष का Y व स्‍त्री का X

83. बच्‍चों के लिंग निर्धारण के लिए उत्‍तरदायी क्रोमोसोम होता है
उत्तर- पिता का

84. DNA का डबल हेलिक्‍स मॉडल (Double Helix Model) किसने दिया 
उत्तर-  वाटसन व क्रिक ने

85. दो भिन्‍न समुदायों के बीच का संक्रान्ति क्षेत्र कहलाता है
उत्तर-   इकोटोन

86. मैंग्रोव वनों पर वैश्विक तापन का क्‍या प्रभाव होगा
उत्तर-  मैंग्रोव के विशाल क्षेत्र जल मग्‍न हो जायेंगे

87. सर्वाधिक जैव विविधता कहाँ पायी जाती है
उत्तर-  उष्‍णकटिबंधीय वर्षा वनों में

88. ‘वैश्विक विरासत का वन’ माना जाता है
उत्तर-   पश्चिम बंगाल में सुन्‍दर वन

89. प्रकृति के सन्‍तुलन को तय करने वाला मुख्‍य कारक है
उत्तर-  मानव गतिविधियाँ

90. भारत में पारिस्थितिक असन्‍तुलन कौन एक प्रमुख कारण है
उत्तर-  वनोन्‍मूलन

91. रेड डाटा बुक उन जातियों के बारे में जानकारी देती है, जो
उत्तर- संकटापन्‍न हैं

92. पृथ्‍वी का विशालतम पारिस्थितिक तंत्र है
उत्तर-  जलमंडल

93.भारत में वन अनुसंधान संस्‍थान कहाँ स्थित है
उत्तर- देहरादून

94.राष्‍ट्रीय वानस्‍पतिक उद्यान कहाँ पर स्थित है
उत्तर- लखनऊ

95.रेगिस्‍तान में पैदा होने वाले पौधे कहलाते हैं 
उत्तर- जीरोफाइट्स

96.कौन-सा कृषि कार्य पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्‍त है
उत्तर- कार्बनिक कृषि

97.सौर ऊर्जा का सबसे बड़ा यौगिकीकरण कौन है 
उत्तर- हरे पौधे

98.संवहनी पौधों में पानी ऊपर किससे जाता है
उत्तर- जाइलम टिशू

99.कोशिका की आत्‍महत्‍या की थैली कहलाता है
उत्तर- लाइसोसोम

100.कौन-सी फसल मृदा को नाइट्रोजन से भरपूर कर देती है 
उत्तर- मटर

इस पोस्ट में हमने जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi) के बारे में जाना। विभिन्न परीक्षाओं में पूछे गए प्रश्नों और आने वाले परीक्षाओं में संभावित पूछे जाने वाले प्रश्नों का समावेश इस पोस्ट में किया गया है।
आशा करता हूँ कि जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें।

बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन में अन्तर (Differences between Guttation & Transpiration in hindi)

आज के इस पोस्ट में हम जानेंगे  बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन में अन्तर (Differences between Guttation & Transpiration) और बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन की क्रिया कैसे संपन्न होता है।

बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन


बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन में अन्तर (Differences between Guttation & Transpiration)

सं.क्र. बिन्दुस्राव या बिन्दुस्रावन (Guttation) वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)
1. इसमें जलीय विलयन बूंदों के रूप में बाहर निकल हैं। बूँदें काफी समय तक स्पष्ट दिखाई देती हैं। वाष्पोत्सर्जन में शुद्ध जल जलवाष्प के रूप में निष्कासित होता है।
2. यह जलरन्ध्रों (Hydathodes) के द्वारा होता है। यह रन्ध्र, वातरन्ध्र, उपत्वचा आदि के द्वारा होता है।
3. यह प्राय: देर रात्रि पश्चात् या प्रातःकाल में होता है। यह दिन में अधिक तथा सभी स्थलीय पौधों में होता है। यह शाकीय, क्षूपीय तथा काष्ठीय अर्थात् सभी प्रकार के पौधों में होता है।
4. इसके द्वार की रक्षक कोशिकाओं में स्लथ तथा स्फीत होने की प्रक्रिया नहीं होती है। रंध्रो के रक्षक कोशिकाओं में स्लथ तथा स्फीत होने की प्रक्रिया क्रियाशील होती है। फलस्वरूप रंध्र बंद होता एवं खुलता है।
5. इस क्रिया में निष्काषित जल में खनिजों की प्रचुरता होती है। इस क्रिया में निष्काषित जल शुद्ध होता है।
6. मूल दब रात्रि में अधिक होने के कारण यह क्रिया होती है। इसका मूल दब से कोई सम्बन्ध नहीं है।
7. बिन्दुस्रावन की दर में वृद्धि होने के कारण पौधे मुर्झाते नहीं है। वस्पोत्सर्जन की दर में वृद्धि होने से पौधे मुर्झा जाते है।

बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन में अन्तर (Differences between Guttation & Transpiration)

 बिन्दुस्त्रावण ( Guttation) - जलरन्ध्रों (Hydathodes) द्वारा पत्तियों के किनारे या पत्तियों के शिखर पर जल का बूँदों के रूप में स्रावित होना, बिन्दुस्रावण कहलाता है। यह क्रिया तब होती है जब अधिक मात्रा में जल अवशोषण तथा अपेक्षाकृत कम मात्रा में वाष्पोत्सर्जन हो रहा होता है। पारिस्थितिक अर्थात् जलवायवीय दृष्टि से जब वातावरण में अधिक आर्द्रता तथा मृदा में जल भरपूर मात्रा में होता है, तब यह क्रिया होती है। उदाहरण कोलोकेसिया (Colocasia), नास्टरशियम (Nastertium), पिस्टिया (Pistia), टमाटर (Tomato) आदि।

 वाष्पोत्सर्जन (Transpiration)- पौधों द्वारा अवशोषित जल का मात्र 5 से 10 प्रतिशत ही उनके द्वारा अपनी विभिन्न उपापचयिक क्रियाओं में उपयोग किया जाता है तथा शेष 90-95% जल पौधे के वायवीय भाग द्वारा जलवाष्प के रूप में निकाल दिया जाता है। पौधे के वायवीय भागों से उनके ऊतक में स्थित जल का जलवाष्प के रूप में वातावरण में निष्कासन की क्रिया वाष्पोत्सर्जन (Transpiration) कहलाती है। एक जल को जलवाष्प में परिणत होने में 540 कैलोरी ताप ऊर्जा की आवश्यकता होती है।

तो हमने ऊपर जाना बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन में अन्तर और बिन्दुस्रावण तथा वाष्पोत्सर्जन की परिभाषा आशा है आपको हमारा यह पोस्ट अच्छा लगा होगा । अगर आपको लगता है की इसे पड़ना चाहिए तो  कृपया  अपने दोस्तों के साथ इस पोस्ट को शेयर करे ।

 "धन्यवाद "

मानव नेत्र का सचित्र वर्णन, नोट्स PDF, भाग और कार्य

नमस्कार दोस्तों, आपका स्वागत है आज के पोस्ट के माध्यम से हम मानव नेत्र के बारे में जानेंगे, मानव नेत्र हमारे शरीर का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है जिसकी सहायता से आज हम इस संसार को देख पा रहे है। अतः आप मानव नेत्र के बारे में जानने के लिए पूरा पोस्ट जरुर पढिएगा। 

जिसमे हम मानव नेत्र, मानव नेत्र का सचित्र वर्णन, मानव नेत्र के भाग निम्न प्रकार से है, मानव नेत्र की क्रियाविधि, समंजन क्षमता, मानव नेत्र के कार्य, दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन के बारे में जानेंगे तो कृपया पूरा  जरुर पढिएगा।

मानव नेत्र (Human Eye)

मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय (Sense Organs) है। यह हमें इस अद्भुत संसार तथा हमारे चारों ओर के रंगों को देखने योग्य बनाता है। आँखें बंद करके हम वस्तुओं को उनकी गंध, स्वाद, उनके द्वारा उत्पन्न ध्वनि या उनको स्पर्श करके, कुछ सीमा तक पहचान सकते हैं,  तथा आँखों को बंद करके रंगों को पहचान पाना असंभव है। इस प्रकार समस्त ज्ञानेंद्रियों में मानव नेत्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें हमारे चारों ओर के रंगबिरंगे संसार को देखने योग्य बनाता है।

मानव नेत्र का सचित्र वर्णन (Pictograph of Human Eye)

manav netra picture in hindi

मानव नेत्र के भाग निम्न प्रकार से है (The parts of the human eye are as follows)-

रेटिना (Retina):यह रक्त पटल के नीचे एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है जिसमें अधिक संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएं होती है। इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही परदे, जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं, पर प्रतिबिंब बनाता है। 

कॉर्निया (cornea): यह नेत्र के सामने श्वेत पटल के मध्य का कुछ उभरा हुआ पारदर्शी भाग होता है। प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं।

नेत्र गोलक (eyeball) : नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। 

परितारिका (iris) : यह कार्निया के पीछे एक अपारदर्शक मांसपेशियों की बनी रचना है। इसके बीच में छिद्र होता है तथा अधिकांश भाग काला होता है। यह पुतली के साईज को नियंत्रित करता है ।

पुतली (pupil): परितारिका के बीच वाले छिद्र को पुतली कहते हैं। इसकी मांसपेशियों में संकुचन व प्रसरण से पुतली का आकार परिवर्तित हो जाता है। प्रकाश में पुतली का आकार छोटा व अँधेरे में आकार बढ़ जाता है।

लेंस (Lens): आईरिस के पीछे एक मोटा लचीला उत्तल लैंस होता है जिसे नेत्र लैंस कहते हैं। मांसपेशियों पर तनाव को परिवर्तित कर इस लैंस की वक्रता त्रिज्या को परिवर्तित किया जा सकता है। इससे वस्तु का उल्टा, छोटा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है।

कचाभ द्रव (vitreous): नेत्र लैस एवं स्वच्छ मण्डल के बीच के स्थान में एक पारदर्शक पतला द्रव भरा रहता है। जिसे जलीय द्रव कहते है। यह आँख की गोलाई बनाने के लिये उचित दबाव बनाये रखता है। काॅर्निया व अन्य भागों को पोषण यही से मिलता है।

रक्त पटल (choroid) : यह श्वेत पटल के नीचे अन्दर की ओर एक काले रंग की झिल्ली होती है। इसके पृष्ठ भाग में बहुत सी रक्त की धमनी एवं शिराएँ होती है, जो नेत्र को आक्सीजन व पोषण प्रदान करती है। आँख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण कर भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरूद्ध करती है।

मानव नेत्र की क्रियाविधि (Mechanism of human eye):-

मानव नेत्र एक कैमरे की भाँति है। इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही परदे, जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं, पर प्रतिबिंब बनाता है। प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं। 

यह झिल्ली नेत्र गोलक के अग्र पृष्ठ पर एक पारदर्शी उभार बनाती है। नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है। क्रिस्टलीय लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर फोकसित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है। 

कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है जिसे परितारिका कहते हैंपरितारिका गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के साइज़ को नियंत्रित करता है। पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। 

अभिनेत्र लेंस रेटिना पर किसी वस्तु का उलटा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। रेटिना एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है जिसमें बृहत् संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं। प्रदीप्ति होने पर प्रकाश-सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिगनल उत्पन्न करती हैं।

ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है तथा अंततः इस सूचना को संसाधित करता है जिससे कि हम किसी वस्तु को जैसा है, वैसा ही देख लेते है।

समंजन क्षमता (accommodative ability):-

नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?

अभिनेत्र लेंस रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है। इसकी वक्रता में कुछ सीमाओं तक पक्ष्माभी पेशियों द्वारा रूपांतरण किया जा सकता हैअभिनेत्र लेंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है। जब पेशियाँ शिथिल होती हैं तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है। इस प्रकार इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। इस स्थिति में हम दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख पाने में समर्थ होते हैं।

जब आप आँख के निकट की वस्तुओं को देखते हैं तब पक्ष्माभी पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। इससे अभिनेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाती हैअभिनेत्र लेंस अब मोटा हो जाता है। परिणामस्वरूप, अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी घट जाती है। इससे हम निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।

अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है। तथापि अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती। किसी छपे हुए पृष्ठ को आँख के अत्यंत निकट रख कर उसे पढ़ने का प्रयास कीजिए। आप अनुभव करेंगे कि प्रतिबिंब धुँधला है या इससे आपके नेत्रों पर तनाव पड़ता है। किसी वस्तु को आराम से सुस्पष्ट देखने के लिए आपको इसे अपने नेत्रों से कम से कम 25 cm दूर रखना होगा। वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना किसी तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं। 

इसे नेत्र का निकट बिंदु भी कहते हैंकिसी सामान्य दृष्टि के तरुण वयस्क के लिए निकट बिंदु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती हैवह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु (far Point) कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता हैइस प्रकार, आप नोट कर सकते हैं कि एक सामान्य नेत्र 25cm से अनंत दूरी तक रखी सभी वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है। - कभी-कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद (cataract) कहते हैंइसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाता है। मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के पश्चात दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।

मानव नेत्र के कार्य (Functions of The Human Eye in Hindi)

  • मानव नेत्र का प्रमुख कार्य रंगों को पहचानना होता है।
  • मानव नेत्र के द्वारा हम वस्तुयो को देख सकते है । 
  • नेत्र की सहायता से ही मनुष्य अपनी सभी दैनिक कार्यो को करता है अर्थात यह कहा जा सकता है की मनुष्य की  सम्पूर्ण दैनिक क्रियाकलापों के संचालन में नेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है । 

दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन (vision defects and their correction)

कभी-कभी नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता खो सकते हैं। ऐसी स्थितियों व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नहीं देख पाते। नेत्र में अपवर्तन दोषों के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती है।

प्रमुख रूप से दृष्टि के तीन सामान्य अपवर्तन दोष होते हैं। ये दोष हैं -

 (1.) निकट दृष्टि (Myopia),

 (2.) दीर्घ दृष्टि (Hypermetropia) 

  (3.) जरा दूरदृष्टिता (Presbyopia)।

 इन दोषों को उपयुक्त गोलीय लेंस के उपयोग से संशोधित किया जा सकता है। हम इन दोषों तथा उनके संशोधन के बारे में संक्षेप में नीचे चर्चा करेंगे।

(1.) निकट दृष्टि दोष (Near sightedness)

निकट दृष्टि दोष को निकटदृष्टिता (Near sightedness) भी कहते हैं। निकट दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता हैऐसा व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तुओं को ही सुस्पष्ट देख पाता हैनिकट दृष्टि दोषयुक्त नेत्र में किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल (रेटिना) पर न बनकर     दृष्टिपटल के सामने बनता है।

Near sightedness in hindi


इस दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं - 

(i) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना।

(ii) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।

दूर करने के  उपाय (remedies to remove)- इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस (अपसारी लेंस) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है। 

उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस वस्तु के प्रतिबिंब को वापस दृष्टिपटल (रेटिना) पर ले आता है तथा इस प्रकार इस दोष का संशोधन हो जाता है । 

(2.)  दीर्घ-दृष्टि दोष (Far-sightedness) 

दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर दृष्टिता (Far-sightedness) भी कहते हैं। दीर्घ दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता हैपरंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट बिंदु सामान्य निकट बिंदु ( 25 cmसे दूर हट जाता हैऐसे व्यक्ति को आराम से सुस्पष्ट पढ़ने के लिए पठन सामग्री को नेत्र से 25 cm से काफ़ी अधिक दूरी पर रखना पड़ता हैइसका कारण यह है कि पास रखी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल (रेटिना) के पीछे फोकसित होती हैं ।

Far-sightedness in hindi


  इस दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं :

 (1) अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना  । 

 (ii) नेत्र गोलक का छोटा हो जाना। 

दूर करने के  उपाय (remedies to remove)- इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस (उत्तल लेंस) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है। इसे  उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं। 


(c) जरा दूरदृष्टिता ( Zara foresight)-

आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती हैअधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदु दूर हट जाता हैसंशोधक चश्मों के बिना उन्हें पास की वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट देखने में कठिनाई होती है। इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते हैंयह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता हैकभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकने के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती हैसामान्य प्रकार के द्विफोकसी लेंसों में अवतल तथा उत्तल दोनों लेंस होते हैं। ऊपरी भाग अवतल लेंस होता हैयह दूर की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता हैनिचला भाग उत्तल लेंस होता हैयह पास की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायक होता है।


बीज प्रसुप्ति क्या है? प्रकार, प्रभावित कारक, महत्व (Seed dormancy in Hindi)

अगर आपने बीज प्रसुप्ति को Search किया है की बीज प्रसुप्ति क्या है और बीज प्रसुप्ति को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं तो यह पोस्ट खासतौर पर आपके लिए ही  बनाया गया है. बीज सुसुप्तावस्था, सुसुप्तावस्था के प्रकारSeed dormancy in Hindi, Definitions of Seed Dormancy

अंकुरण अस्थायी अंतराल के लिए प्रतिबंधित करता हो तो उसे बीज प्रसुप्ति कहा जाता है । Bij Prasupti  को प्रभावित करने वाले कारक तथा बीज प्रसुप्ति को समाप्त करने के उपाय/निवारण की पूरी जानकारी निचे दिए जा रहे हैं. जो आपके लिए बहुत ही Usefull होगा. 

Seed dormancy in hindi


बीज प्रसुप्ति क्या है? बीज प्रसुप्ति को  प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक, महत्व (Seed dormancy in Hindi) 

  • बीज प्रसुप्ति क्या है?
  • बीज प्रसुप्ति क्या होता है? 
  • बीज प्रसुप्ति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक?
  • बीज प्रसुप्ति को रोकने के उपाय?
  • बीज प्रसुप्ति का महत्त्व?

प्रसुप्ति क्या है ?

वह प्रक्रिया जिसके तहत किसी जीव या उसके अंग की जीवंतता अनुकूल परिस्थितियों की उपस्थिति के पश्चात् भी कुछ आंतरिक परिस्थितिक कारकों के कारण स्वयं को अस्थायी समयावधि के लिए प्रकट नहीं कर पाती हो तो उसे प्रसुप्ति कहते हैं।

बीज प्रसुप्ति क्या है? (What is Seed dormancy in Hindi) –

"यदि यह बीजों से संबंधित होता है तथा उसके अंकुरण अस्थायी अंतराल के लिए प्रतिबंधित करता हो तो उसे बीज प्रसुप्ति कहा जाता है।"

अर्थात् परिपक्व बीज के साहचर्य में वृद्धि, विकास एवं अंकुरण को बढ़ाने वाले सभी कारकों की उपस्थिति के बाद भी यदि अंकुरण की प्रक्रिया कुछ समयान्तराल तक नहीं हो ला पाती हैं। तो उस समयान्तराल को प्रसुप्ति काल (Dor; mant period) तथा प्रक्रिया बीज प्रसुप्ति कहलाती है।

बीज प्रसुप्ति को प्रभावित करने वाले कारण एवं कारक (Causes or factors affecting seed dor mancy) 

एक से अधिक कारकों के समेकित प्रभाव से उत्पन्न होती है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 

1. बीजकवच का प्रतिरोधी तथा अपारगम्य होना (Resistant and Impermeabily of Seed Coat) 

सोलेनेसी, कॉन्वाल्युलेसी, मालवेसी, लेग्यूमिनोसी, कुकुरबिटेसी आदि कुलों के पौधों के बीज का बीजावरण - Seed Coat) काफी कड़ा होता है तथा जल के प्रति ये अपारगम्य होते हैं। ऐसे बीजों में अंकुरण तब तक नहीं होता  जब तक इनका बीजावरण मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीवी  अपघटकों द्वारा अपघटित न कर दिया जाए। 

2. ऑक्सीजन के प्रति अपारगम्यता (Imperme ability to Oxygen) — 

तरुण बीज ऑक्सीजन के प्रति अपारगम्य होते हैं। कुछ घासों तथा एस्ट्रेसी कुल के सदस्यों जैसे जैन्थियम (Xanthium) में बीज प्रसुप्ति का प्रमुख कारण ऑक्सीजन अपारगम्यता ही होती है। बीतते समय के साथ बीजावरण ऑक्सीजन के प्रति पारगम्य होता चला जाता है। 

3. भ्रूण की अपरिपक्वता (Immaturity of Em bryo) — 

अनेक पौधों जैसे ऑर्किड्स, जिन्गो, ऐनीमोन. फ्रेक्सीनस एवं फिकेरया आदि के बीजों में बीज प्रसुप्ति का मुख्य कारण उनके अंदर अपरिपक्व भ्रूण की उपस्थिति होती है। अतः ऐसे बीज एक निश्चित अवधि की विश्रामावस्था में जाने के पश्चात् ही अंकुरित होते हैं। इस अवस्था में इसके भ्रूण का विकास पूर्ण हो जाता है। 

4. यांत्रिक रूप से प्रतिरोधी बीज कवच (Mechani ५० के cally resistant seed coats ) – 

कुछ जंगली पौधों में दृढ़  बीज कवच, एक भ्रूण के विस्तार के लिए भौतिक अवरोध के रूप में कार्य करती है। जैसे— ऐमेरेन्थस (Amaranthus ) में बीज कवच पानी एवं O, के लिए तो पारगम्य होती है, परंतु वह भ्रूण के विकास अथवा विस्तार को रोक देती है। ऐसे बीजों की प्रसुप्ति तभी समाप्त होती है, जब इन्हें कुछ समय के लिए प्रकाश में रखकर शुष्क करने के पश्चात् पानी दिया जाए। 

5. चिलिंग अथवा कम तापक्रम उपचारण क आवश्यकता (Chilling or low temperature require ment) –

 सेब, गुलाब आदि के बीजों को बसंत ऋतु में हार्वेस्ट करने पर वे अंकुरित नहीं हो पाते हैं, क्योंकि उनके अंकुरण के लिए कम ताप उपचार या चिलिंग आवश्यक होता है। ऐसे बीज सम्पूर्ण ठण्ड ऋतु तक प्रसुप्ति अवस्था में रहते हैं, बाद में अंकुरित होते हैं। 

6. प्रकाश संवेदी बीज (Light sensitive seeds) -

 कुछ प्रकार के बीजों में अंकुरण प्रकाश के द्वारा प्रभावित होता है। ऐसे बीजों को फोटोब्लास्टिक (Photoblasticकहते हैं। कुछ बीजों में प्रसुप्ति अधिक प्रकाश मिलने पर  समाप्त हो जाती है। जैसे— शलाद (Lettuce) में लाल प्रकाश (Red light) अंकुरण को उत्प्रेरित करता है। बिगोनिया ( Bigonia) के बीजों को अंकुरित होने के लिए प्रकाश चाहिए। 

7. अंकुरण निरोधक पदार्थों की उपस्थिति - 

कुछ बीजों के बीजावरण, भ्रूणपोष, भ्रूण या फल के गुदा (Pulp) में वृद्धि निरोधक पदार्थ (Growth inhibitors) उपस्थिति होते हैं। इनकी उपस्थिति बीजों को प्रसुप्तवस्था में ही रखती है। जब कभी ये बीजों से बाहर निकल जाते हैं तो ही अंकुरण की क्रिया होती है।  

8. ऑफ्टर राइपेनिंग (After ripening) — 

कुछ पौधों के बीजों को अंकुरण से पहले कुछ समय के लिए शुष्क तापमान पर रखना आवश्यक होता है। शुष्क अवस्था के पश्चात् ही भ्रूण (Embryo) के अंकुरण की प्रक्रिया ऑफ्टर राइपेनिंग (After ripening) कहलाती है। यह बीज में जिबरेलिन (Gibberellin) की अल्प उपस्थिति के कारण होती है। 

बीज प्रसुप्ति को समाप्त करने के उपाय (Methods of removing Seed dormancy) 

प्रसुप्तावस्था के विभिन्न स्थितियों को समाप्त करने के निम्नलिखित उपायों में से आवश्यकतानुसार किसी भी तरीके   को अपनाया जा सकता है -

1. खरोचन विधि (Scarification) - 

इस विधि के अंतर्गत कठोर बीज कवचों को खरोचकर मुलायम बनाया जा सकता है। इससे आसानी से अंकुरण हो सकता है। यह कार्य यांत्रिक विधियों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, गंधक का अम्ल के उपचार से बीज कवच पतले पड़ जाते हैं उनमें अंकुरण होने लगता है। 

उदाहरण - कद्दू (Gourd), करेला (Bittergourd), धनिया (Coriander), आम (Mango) आदि । 

2. कम ताप उपचार द्वारा (Low temperature treat ) - 

कुछ बीजों को 5-10 डिग्री सेल्सियस तापमान ment) पर रखने से ये अंकुरित हो जाते हैं । इस क्रिया को स्ट्रैटिफिकेशन (Stratification) भी कहते हैं।  

उदाहरण – नाशपाती (Pear), सेब (Apple), चेरी (Cherry) आदि । 

3. तापमान एकान्तरण (Alternating tempera ture) - 

कुछ बीजों के भ्रूणों में प्रसुप्ति पायी जाती है, जिसे उनको उचित तापमान 30-40 डिग्री से. तथा निम्न तापमान 5-10 डिग्री से. पर रखने से दूर की जा सकती है। 

4. दाब उपचार ( Pressure temperature ) - 

स्वीट क्लीवर एवं अल्फाल्फा के प्रसुप्ति बीजों को अन्य वायुमण्डलीय दाब पर उपचारित करके उन्हें अंकुरित किया जा सकता है। 

5. प्रकाश एवं ताप (Light and temperature) - 

लाल प्रकाश अंकुरण की प्रक्रिया को तेज करती है, लेकिन उच्च ताप लाल प्रकाश की आवश्यकता को कम करती है। 

6. रासायनिक उपचार या हॉर्मोन उपचार (Chemi cals or Hormone treatment) – 

वृद्धि नियामक पदार्थों  को उपचार के कारण उन बीजों में अंकुरण कराया जा सकता है, जो कि शीतन (Chilling) ऑफ्टर राइपेनिंग (After ripening) या प्रकाश- उपचार चाहते हैं । 

अनेक रासायनिक पदार्थ जैसे- पोटैशियम नाइट्रेट, थायोयूरिया, जिबरेलिन्स, एथिलीन आदि के उपचार से बीजों में प्रसुप्ति नष्ट हो जाती है और ये बीज अंकुरण कर सकते हैं। 

7. पादप ऊतक संवर्धन अथवा भ्रूण संवर्धन द्वारा (By plant tissue culture or embryo culture) – 

भ्रूण (Embryo) की अपरिपक्वता के कारण अगर प्रसुप्तावस्था होती हो तो उसे समाप्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन भ्रूण संवर्धन (Embryo culture) या पादप ऊतक संवर्धन तकनीक का प्रयोग कर नये पौधिका (Plantlet) तथा उससे नये पौधे को परिवर्धित किया जा सकता है। 

प्रसुप्ति अथवा प्रसुप्तावस्था का महत्व (Signifi cance of Dormancy ) 

(i) प्रसुप्ति के कारण बीजों तथा पौधों के प्रबंधकों का प्रकीर्णन आसान हो जाता है जिसके कारण इनको संग्रहण तथा वितरण के लिए समुचित समय मिल जाता है। 

(ii) प्रसुप्तावस्था के कारण बीज आसानी से प्रतिकूल समय को सह पाने की क्षमता पाए जाते हैं। 

(iii) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधों के बीजों में अपारगम्यता तथा प्रतिरोधकता के गुण के कारण बीज को अत्यधिक तापमान में रहने के बाद भी हानि नहीं हो पाती है। 

(iv) प्रसुप्ति के अध्ययन पश्चात् आवश्यकतानुसार बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले समय को घटाया। या बढ़ाया जा सकता है। जैसे बीजों को 2, 4 डाइइन्डॉल ब्यूटाइरिक अम्ल नैप्थेलिन एसीटिक अम्ल 2,4,5 ट्राइक्लोरोफिनॉक्सो एसीटिक अम्ल से उपचारित करने से बीज प्रसुप्ति की अवधि आगे बढ़ जाती है। जबकि इथीलिन क्लोरो हाइड्रीन, थायोसायनेट, थायोयूरिया आदि से बीजों को उपचारित करके प्रसुप्ति को समाप्त किया जा सकता है। 

अम्ल, क्षार और लवण (Acid, Base and Salt in Hindi)

रसायन विज्ञान (Chemistry) में अम्ल, क्षार और लवण (Acid, Base and Salt) एक प्रमुख विषय वस्तु है जो रसायन विज्ञान के अन्य विषयवस्तु को भी प्रभावित करता है और रसायन विज्ञान में इसके बेसिक जानकारी के बिना आगे नहीं बढ़ा सकता है। इसी आवश्यकता को ध्यान में रखकर अम्ल, क्षार और लवण (Acids, Bases and Salts in Hindi) का यह लेख संग्रहित किया गया है जो विद्यार्थियों के लिए सहायक साबित होगा।

क्षार और लवण

अम्ल, क्षार और लवण (Acids, Bases and Salts in Hindi)

सभी तत्वों की अपनी अलग अलग प्रकृति होती है , तत्वों की प्रकृति को स्वाद के अनुसार जान सकते हैं , किसी तत्व के साथ क्रिया कराने पर कैसा परिणाम आता इसके आधार पर या लिटमस पेपर पर डालकर जान सकते हैं। इनकी प्रकृति तीन प्रकार की होती है-

  1. अम्ल (Acid)
  2. क्षार (Base)
  3. लवण (Salt)

अम्ल (Acid) :-

एक एसिड एक पदार्थ है जिसका pH 7.0 से कम होता है, जो इसे प्रोटॉन डोनर बनाता है। अम्ल आमतौर पर स्वाद में खट्टे होते हैं और अन्य पदार्थों, जैसे धातु या क्षार के साथ रासायनिक प्रतिक्रिया कर सकते हैं। एसिड के सामान्य उदाहरणों में हाइड्रोक्लोरिक एसिड, सल्फ्यूरिक एसिड और साइट्रिक एसिड शामिल हैं। एसिड का उपयोग अक्सर विभिन्न औद्योगिक और प्रयोगशाला प्रक्रियाओं में किया जाता है, जैसे कि उर्वरकों, प्लास्टिक और रंगों के उत्पादन में और धातुओं के शुद्धिकरण में।

इसके अलावा, कुछ खाद्य पदार्थों के संरक्षण के लिए खाद्य उद्योग में और कुछ दवाओं के उत्पादन के लिए दवा उद्योग में एसिड का उपयोग किया जाता है। एसिड हानिकारक हो सकता है अगर गलत तरीके से लिया जाता है या संभाला जाता है, और उनके साथ काम करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।

अम्ल वह पदार्थ होता है जो जल में घुलकर H+ आयन देता है अम्ल को अंग्रेजी में एसिड कहा जाता है जो लैटिन भाषा के "accre" शब्द से बना है जिसका अर्थ है 'खट्टा'। अम्ल एक रासायनिक यौगिक है जिसका pH मान से काम होता है। वे रासायनिक पदार्थ जो इलेक्ट्रान ग्रहण करते हैं अम्ल कहलाते हैं।

उदाहरण:-

  • हाइड्रोक्लोरिक अम्ल जलीय विलयन में आयनित होता है
  • शीतल पेय में कार्बोनिक अम्ल
  • नीम्बू और कई फलों में एस्कॉर्बिक अम्ल
  • नाइट्रिक अम्ल
  • सल्फ्यूरिक अम्ल
  • एसिटिक अम्ल
  • इमली में टार्टरिक अम्ल
  • सेब में मैलिक अम्ल
  • फास्फोरिक अम्ल
  • दूध में लैक्टिक अम्ल
  • टमाटर में ऑक्सेलिक अम्ल

अम्ल के उपयोग (Uses of acid)

  1. अकार्बनिक अम्ल के साथ धातु की प्रतिक्रिया होने पर हाइड्रोजन गैस निकलती है।
  2. मूत्र में यूरिक अम्ल की मात्रा 5% होती है। यूरोक्रोम के कारण मूत्र का रंग पीला होता है तथा अमोनिया के कारण इसमें गंध होता है।
  3. संचायक सेल में सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग किया जाता है।
  4. आक्जेलिक अम्ल की सहायता से दाग धब्बे साफ किया जाता है।
  5. सल्फ्यूरिक अम्ल का उपयोग पेट्रोलियम के शोधन में, कई प्रकार के विस्फोट बनाने में, औषधियां और रंग बनाने में आदि।।
  6. एसीटिक अम्ल का उपयोग जीवाणुनाशक के रूप में, सिरका निर्माण में, एसीटोन बनाने में, किया जाता है
  7. खाने की चीजों में फ्लेवर के रूप में सिट्रिक अम्ल का प्रयोग किया जाता है
  8. साइट्रिक अम्ल का उपयोग: धातुओं को साफ करने में, खाद्य पदार्थों व दवाओं के निर्माण में, कपडा उद्योग में, आदि।
  9. खाद्य पदार्थों और फलों के संरक्षण में भी इस अम्ल का प्रयोग किया जाता है.

क्षार (Base):-

क्षार (Base) एक ऐसा पदार्थ है जिसका pH 7.0 से अधिक होता है। क्षार, एसिड को बेअसर (Neutralize) कर सकते हैं और कई अन्य रसायनों के साथ अत्यधिक क्रियाशील होते हैं। क्षार के सामान्य उदाहरणों में सोडियम हाइड्रॉक्साइड, पोटेशियम हाइड्रॉक्साइड और कैल्शियम हाइड्रॉक्साइड शामिल हैं।

क्षार का उपयोग अक्सर विभिन्न औद्योगिक और प्रयोगशाला प्रक्रियाओं में किया जाता है, जैसे साबुन और डिटर्जेंट के उत्पादन में, कागज और वस्त्रों के निर्माण में, और पानी और कचरे के उपचार में। इसके अलावा, खाद्य उद्योग में फलों और सब्जियों के संरक्षण के लिए और कुछ दवाओं के उत्पादन के लिए दवा उद्योग में क्षार का उपयोग किया जाता है।

क्षार एक ऐसा पदार्थ है, जिसे जल में मिलाने पर जल का pH मान 7 से अधिक हो जाता है। क्षार अम्लीय पदार्थों को OH- देता है। क्षार स्वाद में कड़वा होता है क्षार लाल लिटमस पत्र को नीला कर देता है । सभी क्षारक जल में धुलते नही है और जो जल में घुलनशील होते है उन्हें क्षार कहते है। क्षार वे पदार्थ होते हैं जो प्रोटान ग्रहण करते हैं।

उदाहरण:-

  • मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड – Mg(OH)2 :-
  • अमोनियम हाइड्रोक्साइड – NH4OH
  • केल्शियम हाइड्रोक्साइड – Ca(OH)2
  • सोडियम हाइड्रोक्साइड – NAOH
  • पोटेशियम हाइड्रोक्साइड – KOH
  • सोडियम कार्बोनेट – Na2CO3
  • सोडियम बाई कार्बोनेट – NaHCO₃
  • सीज़ियम हाइड्रोक्साइड – CsOH
  • सोडियम हाइड्रोक्साइड –NaOH
  • बेरियम हाइड्रोक्साइड – Ba(OH)2(H2O)x

क्षार के उपयोग (Uses of acid):-

  1. सोडियम हाइड्रोक्साइड (NAOH) :- साबुन बनाने और पेट्रोलियम शुद्धिकरण करने में
  2. पोटैशियम हाइड्रोक्साइड (KOH) :- नहाने का साबुन या मुलायम साबुन बनाने में
  3. कैल्शियम हाइड्रोक्साइड (CA(OH)2 ) :- पुताई वाले चुने के पानी में और ब्लीचिंग पाउडर बनाने में
  4. मैग्निशियम हाइड्रोक्साइड Mg(OH)2 :- पेट की अम्लता को दूर करने में
  5. अमोनियम हाइड्रोक्साइड NH4OH :- कपडे के दाग धब्बे दूर करने में
  6. सोडियम कार्बोनेट – Na₂CO3 :- खारे पानी को मीठे पानी में बदलने के लिए

लवण (Salt):-

लवण (Salt) वह यौगिक है जो किसी अम्ल के एक, या अधिक हाइड्रोजन परमाणु को किसी क्षारक के एक, या अधिक धनायन से प्रतिस्थापित करने पर बनता है। लवण अक ऐसा यौगिक है जिसमे अम्ल और क्षार दोनों के गुण सम्मिलित होते हैं। लवण अम्ल और क्षार के उदासीनीकरण का परिणाम है । लवण स्वाद में नमकीन होते हैं।

उदहारण:-

  • पोटेशियम क्लोराइड (KCL)
  • सोडियम क्लोराइड (NaCl)
  • फेरस क्लोराइड (FeCl2)
  • सोडियम सल्फेट (Na2SO4)
  • अमोनियम क्लोराइड (NH4Cl)
  • कॉपर सल्फेट (CuS04)
  • पोटैशियम फेरोसायनाइड K2[Fe(CN)6]

लवण के उपयोग (Uses of Salt):-

  1. सोडियम क्लोराइड (NaCl) का उपयोग खाने के नमक के रूप में तथा रसोई गैस के निर्माण के समय में
  2. सोडियम कार्बोनेट का जल की सतही कठोरता को दूर करने में
  3. प्लास्टर ऑफ़ पेरिस का टूटी हड्डी को जोड़ने में
  4. ब्लीचिंग पाउडर का पीने के पानी को संक्रमण मुक्त करने में
  5. सोडियम बाई कार्बोनेट का आग बुझाने के लिए
  6. सोडियम हाईड्रा का कागज के निर्माण में
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जैव विकास - जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली (Evolution - Biology Terminology in Hindi)

विकास - जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली (Evolution - Biology Terminology)

हेलो दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। इस लेख में हम जैव विकास - जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली (Evolution - Biology Terminology in hindi) के बारे में जानेंगे। इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए गए है। जीवों में विकास कैसे होता है, उसके क्या आधार हैं, विकास के लिए किन तत्वों की आवश्यकता होती है इन सब के बारे में जैव विकास में पढ़ा जाता  है । जैव विकास को पढ़ने से पहले हमें जैव विकासस से जुड़े पारिभाषिक शब्दावली के बारे में  जान लेना चाहिए जिससे हमें जैव विकास पढ़ने में आसानी हो। इस लेख में हम  जैव विकास -पारिभाषिक शब्दावली के बारे में बताया गया है।

Evolution - Biology Terminology in hindi


Vikas Paribhashik Shabdavali

1. अजीवात जनन (Abiogenesis )-सिध्दांत, जिसके अनुसार जीवों की उत्पत्ति अजैविक पदार्थों से होती है।

2. अनुकूलन (Adaptation)- जीव के शारीरिक (आकारिकीय व आन्तरिक शारीरिकीय), कार्यात्मक व व्यवहारात्मक लक्षण/परिवर्तन जो उसे किसी पर्यावरण विशेष में सफलता से जीवनयापन हेतु उपयुक्त बनाते हैं।

3.अनुकूली विकिरण (Adaptive radiation)-एक सामान पूर्वजों से विभिन्न प्रकार की प्रजातियों का विकास जो अपने अपने पर्यावासों हेतु अनुकूलित होती है।

4.एलोपेट्रिक स्पेसिएशन (Allopatric speciation)- भौगोलिक रूप से पृथक्कित समष्टियों से नई प्रजातियों की उत्पत्ति ।

5. तुल्यरूप अंग (Analogous organs) - कार्यों की समानता लेकिन संरचना व उद्भव की असमानता, अभिसारी विकास (convergent evolution) की परिचायक।

इसे पढ़ेवंशागति के सिद्धान्त - पारिभाषिक शब्दावली

6.बिग बैंग ( Big Bang)- एबी लैमेत्रे (Abbe Lemaitree) द्वारा 1931 में प्रस्तावित अधिकांश वैज्ञानिकों को मान्य परिकल्पना जिसके अनुसार एक अत्यंत सघन ब्रह्माणडीय पदार्थ में हुए महाविस्फोट से ही पूरे ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति हुई। है, जिसमें निहारिकाएँ(Galaxies) एक दूसरे से दूर जा रही है।

7. जैव-भूगोल (Bio-geography) - विज्ञान की वह शाखा जिसमें पृथ्वी पर फ्लोरा व फॉना (fauna) के वितरण का अध्ययन किया जाता है।

8. द्विपद चलन (Bipedalism) - दो पैरों पर सीधा खड़ाहोकर चलना।

9. बॉटलनेक प्रभाव (Bottleneck effect)- अपवाह (genetic drift) का कारण, तब उत्पन्न होता है आनुवंशिक जब अधिकांश जीनोटाइप प्राकृतिक आपदा या मानवीय दखल के कारण नई पीढ़ी के निर्माण से वंचित रह जाते हैं।

10. शाखायी अवरोहण (Branching Descent)- विकास अर्थात् पूर्वजों से आकारिक व आनुवंशिक रूप से जीव भिन्न संततियों का विकास या अवतरण का रूप शाखायी। (Branching) है, सीढ़ी समान नहीं।

11.रासायनिक विकास (Chemical Evolution ) - आद्य पृथ्वी पर सरल अकार्बनिक तत्वों से दीर्घ अणुओं व प्रथम जीवन विकास।

12. अभिसारी विकास (Convergent Evolution)-एकसमान पर्यावरणीय परिस्थितियों हेतु या समान कार्य करने हेतु विभिन्न पूर्वज परम्पराओं (ancestry) वाले जीवों में विकसित हुई समानताएँ, तुल्यरूपी अंग अभिसारी विकास के परिचायक हैं।

13. महाद्वीपीय अपवाह (Continentral Drift)-महाद्वीपोंका प्लेट टेक्टोनिक्स या अन्य कारकों से एक-दूसरे से दूर होना।

14. सीलाकैन्थ (Coelacanth)- एक जीवित जीवाश्म मछली जिसे विलुप्त मान लिया गया था, लोबफिन के नाम से जानी जाने वाली इन मछलियों से ही आज के उभयचरों का विकास हुआ है।

15. सह-विकास (Co-Evolution)- संयुक्त विकास जिसमें एक प्रजाति दूसरे पर चयनात्मक बल (Selective pressure) आरोपित करती है।

16. साझा पूर्वज (Common Ancestor)-कम से कम दो वंश परम्पराओं (line of disecent) के समान पूर्वज।

17. विदारक चयन (Disruptive Selection)- प्राकृतिक चयन का वह परिणाम जिसमें औसत जीनोटाइप की अपेक्षा दो अतिकारी फीनोटाइप ( estreme phenotype) का चयन होता है, जिससे एक प्रजाति के दो भिन्न रूप प्रकट होते हैं।-होता है, जिससे एक प्रजाति के दो भिन्न रूप प्रकट होते।

18. दिशात्मक चयन (Directional Selection) - प्राकृतिक चयन का वह परिणाम जिसमें एक अतिकारी फीनोटाइप चयन होता है जिससे एक नये रूप का चयन हो जाता है जैसे औद्योगिक मीलनता में।

19. अपसारी विकास (Divergent Evolution)-एक प्रकार की संरचना का विभिन्न प्रकार के जीवों में विभिन्न आवश्यकताओं के अनुसार विभिन्न रूपों में विकसित होना यह समरूपता (Homology) अपसारी विकास (Divergen evolution) है।

20. डायनासोर (Dinosaurs) - मीजोजोइक विशेषतः जुरैसिक पीरियड में पृथ्वी पर राज करने वाले भीमकाय सरीसृप जो लगभग 65 मिलियन वर्ष पूर्व अचानक विलुप्त हो गये।

21. विकास (Evolution)- समय के साथ विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों के लिए अनुकूलन हेतु आनुवंशिक व बाह्य लक्षणों में हुए बदलाव के कारण समान पूर्वजों से भिन्न जीवों का अवतरण।

22. विलुप्त (Extinct)- किसी प्रजाति या समूह का पूर्णरूप से समाप्त / लुप्त हो जाना।

23. उपयुक्तता (Fitness)- किसी जीव की प्रजनन कर अपने जीन/एलील को अगली पीढ़ी तक पहुँचने की क्षमता, जिसे अन्य जीवों की इसी प्रकार के पर्यावरण में प्रजनन करने की क्षमता की तुलना में आँका जाता है।

24. जीवाश्म (Fossil)- पृथ्वी की भू-पर्पटी (Earth crust) में संरक्षित किसी जीव के अवशेष/ चिन्ह।

25. जीवाश्मी अभिलेख (Fossil Record) - प्राचीन समय / भूतकाल के अवशेषों के अभिलेख को जीवन का इतिहास बताते हैं।

26. संस्थापक प्रभाव (Founder effect)- किसी समष्टि के केवल केंचुए जीवों, जो जनक समष्टि से भिन्न जीन आवृतियाँ प्रदर्शित करते हैं, के संयोग के कारण नई पीढ़ी के उत्पादन की आनुवंशिक अपवाह (genetic drift) की प्रक्रिया (जनक समष्टि प्रायः किसी आपदा या अन्य कारण से अगली पीढ़ी के निर्माण से वंचित रहती है)।

27. जीन प्रवाह (Gene flow) - अन्तः प्रजनन द्वारा दो समष्टियों के बीच-जीन की साझेदारी।

इसे पढ़े - वंशागति का आण्विक आधार - पारिभाषिक शब्दावली

28. जीन पूल (Gene pool)-किसी समष्टि के सभी जीवों की सभी एलिल व जीन।

29. अनुवंशिक अपवाह (Genetic Drift)- किसी समष्टि की एलील आवृत्तियों में यादृच्छिक बदलाव के कारण होने वाली विकास की क्रिया, जो प्रायः छोटी समष्टि में होती है, जब केवल कुछ जीव प्रजनन कर पाते हैं।

30. भू-वैज्ञानिक समय सारणी (Geological time scale)- चट्टानों व उनमें दबे जीवाश्मों से संबंधों के आधार पर तैयार पृथ्वी का इतिहास जिसमें पुरानी समयावधियों को दर्शाया गया है।

31. होमीनिड (Hominid)- कुल होमीनिड के सदस्य जिसमें आस्ट्रेलोपिथकिन्स व होमो वंश शामिल है।

32. होमीनॉइड (Hominoid)- कपि, मनुष्य व उनके निकट पूर्वजों का समूह।

33. समजातता (Homology)- विभिन्न जीवों के अंगों/ संरचनाओं की समानता जो उसके समान पूर्वजों से विकसित होने के कारण होती है तथा आण्विक स्तर पर भी हो सकती है।

34.समजात अंग (Homologous Organ)- विभिन्न जीवों के अंग जो विभिन्न कार्य करने के कारण अलग-अलग प्रकार से अनुकूलित होते हैं मगर संरचना में समान होते हैं।

35. मैक्रोइवोल्यूशन (Macro-Evolution)-बड़े विकासीय बदलाव जैसे नई प्रजाति की उत्पत्ति।

36. माइक्रोइवोल्यूशन (Micro-Evolution)-समष्टि की जीन आवृत्तियों में समय के साथ होने वाला बदलाव।

37. जीवाश्म विज्ञान (Palaeontology) - जीवाश्मों के अध्ययन से सम्बन्धित जीव विज्ञान की शाखा।

38. समानान्तर विकास (Parallel Evolution)- समान जीव समूहों में रचनाओं की समानताएँ जिनमें पूर्वज समान नहीं होते।

39. समष्टि (Population)- किसी भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाने वाला एक समान (एक ही प्रजाति) के जीवों के समूह (किसी विशिष्ट समय।

इसे पढ़े - जैव समष्टि - पारिभाषिक शब्दावली

40. समष्टि आनुवंशिकी (Population Genetics)-समष्टि में जीन आवृत्तियों व उसके बदलावों का अध्ययन

41. प्राइमेट (Primate)- स्तनधारियों के गण प्राइमेटा से सदस्य जैसे- लीमर, बन्दर, कपि व मनुष्य।

42. प्रजाति (Species)-एक समान जीवों का समूह (इन सभी समष्टियाँ) जो आपस में अन्तःप्रजनन कर प्रजननक्षम जीव बनाते हैं। वर्गीकरण की सबसे छोटी इकाई।

43. स्थायीकारी चयन (Stabilizing selection)-प्रकृतिक चयन का प्रकार जिसमें औसत फोनोटाइप का चयन होता है तथा अतिकारी फोनोटाइप (Extreme phenotype) समाप्त होते जाते हैं।

इस लेख में हमने जैव विकास - जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली (Evolution - Biology Terminology in Hindi) के बारे में जाना। अगर आप जैव विकास का अध्ययन करने वाले हैं या आपके पाठ्यक्रम में जैव विकास दिया गया है तो आपको जैव विकास - जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली (Evolution - Biology Terminology in Hindi) का यह लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।

आशा है आपको यह लेख पसन्द आया होगा अगर लेख उपयोगी लगे तो, लेख को शेयर अवश्य करें।

कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)

कोशिका (Cell) को जीव शरीर का सबसे छोटा हिस्सा माना जाता है। इस प्रकार इसकी संरचना भी काफी जटिल होती है, इस पोस्ट में हम आपको कोशिका की पूरी संरचना (Full Cell Structure in Hindi)को विस्तार से बताने वाले है।

Structure of the Cell in Hindi: इस पोस्ट में कोशिका के सभी भाग के बारे में भी बताया गया है।

structure of cells in hindi

कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)

  • कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)
  • कोशिका (Cell) किसे कहते है?
  • संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under Compound Microscope)
  • (1) कोशिका कला या प्लाज्मा झिल्ली (Cell membrane or Plasma membrane)
  • (2) केन्द्रक (Nucleus)
  • (3) कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)
  • कोशिकांग (Cell organelles)
  • (A) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)
  • (B) लाइसोसोम (Lysosome)
  • (C) गॉल्जी उपकरण (Golgi Apparatus)
  • (D) राइबोसोम (Ribosome)
  • (E) तारक-परिकेन्द्र (Centriole)
  • (F) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endo plasmic Reticulum – E।R।)
  • (G) लवक (Plastids)
  • (H) रिक्तिका (Vacuoles)

कोशिका की संरचना (Structure of the Cell in Hindi)

कोशिका (Cell) किसे कहते है?

"कोशिका (Cell) सजीवों के शरीर की एक रचनात्मक और क्रियात्मक इकाई है और प्राय: स्वत: जनन में समर्थ है।" यह विभिन्न पदार्थों का वह छोटे-से-छोटा संगठित रूप है जिसमें वे सभी क्रियाएँ होती हैं जिन्हें सामूहिक रूप से हम जीवन करते हैं।

‘कोशिका‘ का अंग्रेजी शब्द सेल (Cell) लैटिन भाषा के ‘शेलुला‘ शब्द से लिया गया है जिसका अर्थ ‘एक छोटा कमरा‘ है। कुछ सजीव जैसे जीवाणुओं के शरीर एक ही कोशिका से बने हुए होते हैं, उन्हें एककोशकीय जीव कहते हैं जबकि कुछ सजीव जैसे मनुष्य का शरीर अनेक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है उन्हें बहुकोशकीय सजीव कहते हैं। कोशिका की खोज रॉबर्ट हूक ने 1665 ई। में किया। 1839 ई। में श्लाइडेन तथा श्वान ने कोशिका सिद्धान्त प्रस्तुत किया जिसके अनुसार सभी सजीवों का शरीर दो या दो से अधिक कोशिकाओं से मिलकर बना होता है तथा सभी कोशिकाओं की उत्पत्ति पहले से उपस्थित किसी कोशिका से ही होती है।

कोशिका की संरचना का दो शीर्षकों के अन्तर्गत अध्ययन करते हैं-

(अ) संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under compound microscope)।

(ब) इलेक्ट्रॉम सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under an Electron microscope)।

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी में कोशिका की संरचना (Structure of cell under Compound Microscope)

संयुक्त सूक्ष्मदर्शी यन्त्र (Compound Microscope) से जन्तु कोशिका का अध्ययन करने में कोशिका की संरचना अत्यन्त सरल दिखाई देती है। कोशिका (Cell) में प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) से घिरा हुआ जीवद्रव्य (Protoplasm) होता है। कोशिका के मध्य में एक केन्द्रक (Nucleus) होता है जो एक केन्द्रक कला (Nuclear membrane) से घिरा होता है। केन्द्रक के भीतर का जीवद्रव्य, केन्द्रक द्रव्य (Nucleoplasm) तथा केन्द्रक के बाहर शेष जीवद्रव्य कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) कहलाता है। केन्द्रक में केन्द्रिका (Nucleolus) होती है। इनकी संख्या एक से अधिक होती है। कोशिका द्रव्य में केवल गाल्जी काय (Golgi body), अनेक सूक्ष्म एवं लम्बे माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria) के अतिरिक्त एक सेन्ट्रोसोम (Centrosome) तथा लाइसोसोम (Lysosome), राइबोसोम (Ribosome) तथा अनेक धानियाँ (Vacuoles) दिखायी पड़ती हैं। सभी कोशिकांग (Organelles) को कोशिकाद्रव्य में से निकालने के पश्चात् एक आधात्री (Matrix) शेष बचती है इसको हायलोप्लाज्म (Hyaloplasm) कहते हैं।

Electron Structure of an Eukaryotic animal cell

(1) कोशिका कला या प्लाज्मा झिल्ली (Cell membrane or Plasma membrane)

सभी कोशिकाओं में प्लाज्मा झिल्ली पाई जाती है। प्रकाश सूक्ष्मदर्शी के अन्तर्गत यह दिखाई नहीं देती है, लेकिन इलेक्ट्रॉन सूक्ष्मदर्शी के अन्तर्गत देखने पर यह लगभग 100 A मोटी एक दोहरी झिल्ली है। कहीं-कहीं पर यह केन्द्रक झिल्ली (Nuclear membrane) से अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum) द्वारा सम्बन्धित रहती है। वनस्पति कोशिकाओं में कोशिका भित्ति (Cell wall) पायी जाती है तथा यह सेल्यूलोज की बनी होती है। प्लाज्मा झिल्ली कोशिका की बाह्य सीमा ही नहीं बनाती है बल्कि जीवद्रव्य (Protoplasm) एवं ऊतक द्रव्य के मध्य एक गतिशील रोधक (Dynamic barrier) का कार्य भी करती है, इसमें होकर कुछ विलयन (Solutions) एवं विलायक (Solvents) ही आ जा सकते हैं।

(2) केन्द्रक (Nucleus)

यह कोशिका की विभिन्न जैव क्रियाओं का अध्ययन करता है। कोशिका का नियन्त्रण कक्ष (Controlling room) कहलाता है। केन्द्रक के चारों ओर एक सरन्ध्र (Porous), पारगम्य (Permeable) केन्द्रक झिल्ली (Nuclear membrane) होती है जो केन्द्रक को चारों ओर कोशिका द्रव्य से पृथक् रखती है। केन्द्रक के मध्य में केन्द्रक रस (Nuclear sap or karyolymph) भरा रहता है जिसमें केन्द्रक के अन्य अंग-केन्द्रिका Nucleolus) एवं केन्द्रिका (Nucleoli) की संख्या जाति (Species) एवं गुणसूत्रों के समुच्चयों (Set of chromosomes) के अनुसार पाई जाती है।

(3) कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm)

कोशिका झिल्ली एवं केन्द्रक के मध्य का भाग जिस तरल पदार्थ से भरा होता है उसे कोशिकाद्रव्य कहते हैं।

Cell emphasizing the details of its structure

कोशिकांग (Cell organelles)

कोशिकाद्रव्य में विभिन्न कार्यों के लिए कोशिकांग पाये जाते है।

Ultra structure of typical animal cell under electron microscope

(A) माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria)

इनकी आकृतिक संरचना, सूत्राकार या छड़ों (Filamentous or rod) के समान होती है। इसका व्यास 54 एवं लम्बाई 3 u होती है। इनका आकार बदलता रहता है, इनकी संख्या 500–5,00,000 तक हो सकती है। यह दोहरी भित्ति वाली लचीली संरचना, जिसमें अन्दर की ओर क्रिस्टी (Cristae) नामक वलन (Folds) होते हैं। यह भोजन की रासायनिक ऊर्जा (Chemical energy) को अधिक शक्तिशाली एवं उपयोगी ATP में परिवर्तित कर देती है।

(B) लाइसोसोम (Lysosome)

ये कोशिकाद्रव्य में बिखरे हुए पाये जाते हैं। इनका व्यास 0।4 से 0।84 तक हो सकता है। यह वृत्ताकार होते हैं, आकार अनियमित भी हो सकता है। यह लाइपोप्रोटीन की झिल्ली द्वारा परिबद्ध (Bound) होते हैं। (Organelle) है।

(C) गॉल्जी उपकरण (Golgi Apparatus)

यह कोशिका के उपापचय (Metabolism) में भाग लेने वाला महत्वपूर्ण कोशिकांग होते है। स्त्रावी कोशिकाओं (Secretory cells) में इनकी संख्या अत्यधिक होती है।

(D) राइबोसोम (Ribosome)

यह पिन के आकार की सूक्ष्म संरचनाएँ हैं। यह अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (E।R।) के चारों कोशिकाद्रव्य में पाये जाते हैं। इनमें कोशिका की प्रोटीन एवं एन्जाइम का संश्लेषण होता है। इनको कोशिका की प्रोटीन फैक्ट्री (Protein factory) भी कहते हैं।

(E) तारक-परिकेन्द्र (Centriole)

सूत्री विभाजन (Mitotic division) के समय तारक किरणों (Astral rays) के केन्द्र में छोटा-सा तारक परिकेन्द्र पाया जाता है। यह कोशिका की विश्रामावस्था में निष्क्रिय लेकिन विभाजन के समय सक्रिय (Active) हो जाता है।

(F) अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endo plasmic Reticulum – E।R।)

कोशिकाद्रव्य की आधात्री (Matrix) में झिल्ली द्वारा परिबद्ध नालिका जाल के रूप में पाया जाता है। स्तनी प्राणियों के परिपक्व रक्ताणुओं (Erythrocytes) के अतिरिक्त यह सभी प्रकार की कोशिकाओं में पाया जाता है।

(G) लवक (Plastids)

सामान्यतः यह पादप कोशिकाओं में पाये जाते हैं, परन्तु यह प्राणी कोशिकाओं जैसे कि कशाभिक प्रोटोजोआ (Flagellate protozoans) में भी पाये जाते हैं। पौधों में पाये जाने वाले लवकों में हरितलवक (Chloroplast) सबसे महत्वपूर्ण होता है और हरा रंग प्रदान करता है। इनका व्यास 46 प्र तथा मोटाई 3।1 4 होती है।

(H) रिक्तिका (Vacuoles)

नई पादप कोशिकाओं एवं प्राणी कोशिकाओं में रिक्तिका नहीं पाई जाती है। यदि पायी भी जाती हैं, तो आकार में बहुत ही छोटी तथा संख्या में एक से अधिक रिक्तिकाएँ हो सकती हैं। रिक्तिका जल या जल में घुले पदार्थों से भरी होती हैं। रिक्तिका, कोशिकाद्रव्य से एक झिल्ली द्वारा पृथक् रहता है, इसे टोनोप्लास्ट (Tonoplast) कहते हैं। टोनोप्लास्ट अपने आर-पार जाने वाले पदार्थों का चयन करता है। रिक्तिका कोशिका में निश्चित् दाब (Pressure) बनाए रखते हैं एवं पदार्थों का भी संचय करते हैं।

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पोषण के प्रकार (Types of Nutrition in Hindi)

नमस्कार, आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस आर्टिकल में हम पोषण के प्रकार (Types of Nutrition in Hindi) के बारे में विस्तारपूर्वक जानने वाले हैं। किसी भी सजीव चाहे वह वह पादप हो या जन्तु सभी को कार्य करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है और शरीर की क्रियाएं जैसे ग्रहण, पाचन और उत्सर्जन के लिए भी ऊर्जा की जरुरत पड़ती है, यह ऊर्जा हमें भोज्य पदार्थों से मिलता है, इसे ही पोषण कहा जाता है। इस आर्टिकल में पोषण और पोषण के प्रकार के बारे में बताया जा रहा है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पोषण सम्बंधित पूछे जा रहे प्रश्नों को ध्यान में रख कर यह आर्टिकल लिखा गया है।

पोषण के प्रकार (Types of Nutrition in Hindi)

Types of Nutrition in Hindi











पोषण के प्रकार (Poshan ke Prakar)

पोषण (Nutrition)- पोषण वह क्रिया है, जिसके द्वारा जीव भोज्य पदार्थों का निर्माण या संश्लेषण अथवा ग्रहण तथा उपयोग करते है। इसके द्वारा जीव विभिन्न कार्यों को करने के लिये ऊर्जा प्राप्त करते है।

जीवों में पोषण के कौन-कौन से प्रकार होते है?

जीवों में पोषण की दो विधि होता है-

1.स्वपोषी (Autotrophic Nutrition)

2.विषमपोषण (Heterotrophic Nutrition)

1.स्वपोषी (Autotrophic Nutrition)- 

वह पोषण, जिसमें जीव अपने भोज्य पदार्थों का संश्लेषण स्वयं करता है, ऐसा पोषण करने वाले जीव को स्वपोषी कहते है। उदाहरण- पेड़- पौधे

2.विषमपोषण (Heterotrophic Nutrition)- 

वह पोषण है, जिसमें जीव अपने भोज्य पदार्थों का संश्लेषण स्वयं नहीं करते बल्कि ये, इन्हें दूसरे जीवों से प्राप्त करते है, ऐसा पोषण करने वाले जीवों को विषमपोषी कहते है। उदाहरण- सभी जीव- जन्तु, कवक, कुछ जीवाणु आदि।

जानें- पादप ऊतक- पारिभाषिक शब्दावली।

विषम पोषण के प्रकार-

  1. पूर्णभोजी (Holozoic Nutrition)
  2. मृतोपजीवी (Saprozoic Nutrition)
  3. मलभोजी (Coprozoic)
  4. परजीवी (Parasite Nutrition)

1.पूर्णभोजी पोषण (Holozoic Nutrition)- 

इस पोषण में जन्तु भोज्य पदार्थों को निगलकर अन्तर्ग्रहित करते है। इसके बाद भोजन का शरीर के अन्दर पाचन, अवशोषण तथा स्वांगीकरण होता है। पूर्णभोजी पोषण कई मुख्य समूहों में बँटा होता है।

(A) शाकाहारी (Herbivorous)- इस समूह में वे जन्तु आते है, जो पौधे या उनके भागों को भोजन के रूप में उपयोग करते है जैसे- भेड़, बकरी, हिरण, हाथी आदि।

(B) मांसाहारी (Carnivorous)- इस समूह में वे जन्तु आते है, जो दूसरे जन्तुओं के द्वारा अपना भोजन बनाते है जैसे- हाइड्रा, शेर, चीता आदि।

(C) सर्वाहारी (Omnivorous)- इस समूह में वे जन्तु आते है, जो पादपों तथा जन्तुओं दोनों को भोजन के रूप में उपयोग करते है, जैसे- कुत्ता, मनुष्य, भेड़िया आदि।

(D) रक्तभक्षी (Sanguivorous) - इस समूह में वे जन्तु आते है, जो अन्य जन्तुओं का रक्त चूसकर अपना पोषण प्राप्त करते है। जैसे- जोंक, मच्छर आदि।

(E) स्वजाति (Cannibalistic)- इस समूह में वे जन्तु आते है, जो अपनी ही जाती के जन्तुओं को खा जाते है। जैसे- गिद्ध

(F) स्कैवेन्जर्स (Scavenge)- इस समूह में वे जन्तु आते है, जो मृत जन्तुओं के मांस को भोजन के रूप में उपयोग करते है। जैसे- चींटी, चील आदि।.

पढ़ें- वन पारिस्थतिकी तंत्र।

2.मृतोपजीवी (Saprozoic Nutrition)- 

इस पोषण में जन्तु सड़े- गले निर्जीव पदार्थों से निकले तरल कार्बनिक पदार्थों को पोषक पदार्थों के रूप में शरीर की बाहरी सतह से अवशोषित करके पोषण प्राप्त करते है, ऐसा पोषण करने वाले जन्तु को मृतोपजीवी कहलाता है।जैसे- विषाणु, कवक आदि।

3.मलभोजी (Coprozoic)- 

वह पोषण है, जिसमें जीव भोजन के रूप में मल तथा विष्ठा को ग्रहण करता है। जैसे- सुअर आदि।

4.परजीवी (Parasite Nutrition)- 

यह वह पोषण है, जिसमें एक जन्तु जिसे परजीवी कहते है किसी दूसरे जीवित जन्तु जिसे पोषक (Host) कहते है, से अपना भोजन ग्रहण करता है। 

यह दो प्रकार के होते है-

(a)बाह्य परजीवी (Ectoparasite)-वे परजीवी जो पोषक के शरीर के बाहर रहकर अपना भोजन ग्रहण करते है, उसे बाह्य परजीवी कहते है। जैसे- जोंक, जूँ आदि।

(b)अन्तः परजीवी(Endoparasite)- वे परजीवी जो पोषक के शरीर के अन्दर रहकर अपना भोजन ग्रहण करते है, उसे अन्तः परजीवी कहते है। जैसे- एस्केरिस, प्लाजमोडियम आदि।

इस आर्टिकल में हमने पोषण के प्रकार के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पोषण से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। 

उम्मीद करता हूँ कि पोषण के प्रकार का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो इस आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology

जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology


नमस्कार,आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस  पोस्ट में आपको जैव प्रौद्योगिकी से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली दिया जा रहा है । इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए जा रहे हैं। जैव प्रोद्योगिकी जीव विज्ञान की ही एक शाखा है जिसके अंतर्गत जीवाणुओं की ऊतक या कोशिका का उपयोग करके नए जीवों का उत्पादन किया जाता है। इन जीवों का उत्पादन सामान्य दाब, निम्न ताप एवं उदासीन नमी या जल में इन नए जीवों का उत्पादन होता है। अगर आप जैव प्रोद्योगिकी जिसे अंगेजी में Biotechnology कहा जाता है इस विषय में स्नातक की पढाई करना चाहते हैं तो आपको जैव प्रौद्योगिकी-पारिभाषिक शब्दावली (Biotechnology-Terminology) के बारे में जरुर जान लेना चाहिए।



Biotechnology - Biology Terminology

Jaiva Praudyogikee Paribhashik Shabdavali

1. जीन क्लोनिंग (Gene cloning) - पुनर्योगज D.N.A. के पोषक कोशिका में प्रवेश के बाद परपोषी कोशिका का संवर्धन जिससे वांछित जीन की भी क्लोनिंग होती है।

2. निवेशी निष्क्रियता (Insertional Inactivation) - रंग पैदा करने वाले जीन उत्पाद, जैसे- बीटा गैलेक्टो साइडेज को कोडित करने वाले जीन में वांछित जीन निवेशित कर पुनर्योगजों की पहचान करना।

3. लाइगेज (Ligase) - D.N.A. खण्डों को जोड़ने वाला एन्जाइम।

4. न्यूक्लिएज (Nuclease) - नाभिकीय अम्ल (DNA/ RNA) का पाचन करने वाला एन्जाइम।

5.ओरी (Ori) - प्लाज्मिड या वाहक का वह स्थल जहाँ से प्रतिकृतिकरण प्रारम्भ होता है।

6.प्लाज्मिड (Plasmid ) - जीवाणुओं के गुणसूत्रों से बाहर के गोलाकार स्व-प्रतिकृतिकरण करने वाले डी.एन.ए. अणु।

7.पुनर्योगज डी.एन.ए. तकनीक (Recombinant DNA Technology) - बाह्य या विजातीय डी.एन.ए. को दूसरे जीव के डी.एन.ए. से जोड़कर काइमेरिक डी. एन. ए. बनाने की प्रक्रिया या जेनेटिक इंजीनियरिंग।

8. पश्च विषाणु (Retro Virus) - आर.एन.ए. विषाणु जिनमें डी.एन.ए. निर्माण हेतु रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज एन्जाइम पाया जाता है।

9. वाहक / संवाहक (Vector) - डी.एन.ए. अणु जिसमें उचित पोषक कोशिका के अंदर प्रतिकृतिकरण की क्षमता होती है तथा जिसमें विजातीय डी.एन.ए. निवेशित (Insert) किया जा सकता है।

10. जी.एम.ओ. (GMO) - जेनेटिकली मॉडीफाइड आर्गेनिज्म या ट्रांसजेनिक जिनके जीनों में फेरबदल कर कोई कार्यशील विजातीय डी.एन.ए. प्रविष्ट करा दिया गया हो, जैसे बी.टी. पौधे।

12. जीन थेरेपी (Gene Therapy) - त्रुटिपूर्ण या विकारयुक्त जीन को सामान्य कार्यशील जीन द्वारा प्रतिस्थापित कर रोग - उपचार।

13. ह्यूम्यूलिन (Humulin) - यू. एस की एलि लिली कम्पनी द्वारा पुनर्योगज तकनीक से उत्पादित मानव इंसुलिन का ब्रांड नाम।

14.p 53 जीन (p53 जीन) - कोशिका विभाजन के नियन्त्रण के लिए यह जीन कोशिका चक्र को रोकती है।

15. पेटेन्ट (Patent) - सरकार द्वारा किसी वस्तु/प्रक्रिया के खोजकर्ता को दिया जाने वाला अधिकार जो अन्य व्यक्तियों को व्यावसायिक उपयोग से रोकता है।

16. खोजी (Probe) - न्यूक्लियोटाइड के छोटे 13-30 क्षारक युग्म लम्बे खण्ड है जो रेडियोएक्टिव अणुओं से चिन्हित करने पर पूरक खण्डों की पहचान हेतु प्रयोग किये जाते हैं।

17. प्रोइंसुलिन (Proinsulin) - इंसुलिन का पूर्ववर्ती अणु जिसमें एक अतिरिक्त C-पेप्टाइड होता है तथा इसके निकलने (प्रसंस्करण) से इंसुलिन बनता है।

18.जीन लाइब्रेरी (Gene library) - जीव के DNA के सभी जीनों को किसी वाहक के DNA के साथ समाकित करके क्लोनों का मिश्रण बना लेन।

19.DNA रिकॉम्बिनेंट तकनीक (DNA Recombinent Technology) - वह तकनीक जिसके अंतर्गत किसी मनचाहे DNA का कृत्रिम रूप से निर्माण करते है।

इसे पढ़ेवंशागति के सिद्धान्त - पारिभाषिक शब्दावली

इसे पढ़े - वंशागति का आण्विक आधार - पारिभाषिक शब्दावली

20.ट्रांसफॉर्मेशन(Transformation) - जब किसी स्वतंत्र DNA को बैक्टीरियल सेल में स्थानान्तरित करने की क्रिया।

21.रोगी थेरैपी (Patient Therapy) - इस थेरैपी में प्रभावित ऊतक में स्वस्थ जीनों का प्रवेश करा दिया जाता है।

22.भ्रूण थेरैपी (Embryo Therapy) -इस थेरैपी में दोषी जीन का पता लग जाने पर ,जायगोट बनने के बाद भ्रूण की आनुवंशिक संरचना को बदला जाता है।

23.सोमोक्लोनल विभिन्नताए (Somoclonal Variation) - कृत्रिम संवर्धन माध्यम कोशिकाओं अथवा ऊतको में होने वाली आकस्मिक एवं प्राकृतिक विभिन्नताओ को ही सोमोक्लोनल विभिन्नताए कहते है

24. हैटरोकेरियान(Heterokaryon) - ऐसी कोशिकाए जिसमे दो भिन्न -भिन्न कोशिकाओ में नाभिक होता है।

25.संकर कोशिका (Hybrid Cell) - कोशिका - संयोजन से बने हैटरोकेरियान में अंततः समससूत्रण विभाजन से बने सेल को संकर कोशिका कहते है।

इस पोस्ट में हमने जैव प्रौद्योगिकी- जीवविज्ञान पारिभाषिक शब्दावली | Biotechnology - Biology Terminology के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में जैव प्रौद्योगिकी से जुड़े सवाल अक्सर पूछे जाते रहते हैं। 

उम्मीद करता हूँ कि जैव प्रौद्योगिकी-पारिभाषिक शब्दावली (Biotechnology Terminology) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा ,अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें। धन्यवाद !!

पुष्पक्रम के सारे प्रकार की जानकारी | Types of Inflorescences in Hindi

आपने अगर ध्यान से फूल के पौधे (flower plants) को देखा होगा तो आपको समझ आएगा की फूल के पौधे में फूल एक जैसे क्रम में नहीं लगे होते हैं। फूल या पुष्प के पौधे में लगने के इसी क्रम को वैज्ञानिकों ने कुछ अलग-अलग भागों या प्रकारों (Types) में बांटा है। जिसके बारे में इस पोस्ट में सारी जानकारी दी गयी है।

पुष्पक्रम (Inflorescence): पेड़ या पौधे में पुष्पों या फूलों के लगने के क्रम कोपुष्पक्रम(Inflorescence) कहा जाता है।

पुष्पक्रम के प्रकार | Types of Inflorescences and Technical Terms in Hindi

पुष्पक्रम एवं उसके प्रकारों से सम्बन्धित तकनीकी शब्द (Technical Terms Related to Inflorescence and Their Types)

Types of Inflorescences in Hindi

पुष्पक्रम के प्रकार (Types of Inflorescences in Hindi)

पुष्पक्रम के चार प्रकार होते है: -

1. असीमाक्षी पुष्पक्रम (Racemose Inflorescence)-

पुष्पीय अक्ष की वृद्धि अनिश्चित प्रकार की होती है तथा उस पर पुष्पों के लगने का क्रम अग्राभिसारी (Acropetal) होता है। ये निम्नलिखित प्रकार के होते हैं-

Racemose inflorescence in hindi

(i) असीमाक्ष (Raceme)–

पुष्पीय अक्ष पतला, लम्बा तथा सवृन्ती पुष्पों वाला । उदाहरण -मूली (Raphanus), सरसों (Mustard)।
शूकी (Spike) –

पुष्पीय अक्ष लम्बा, पतला तथा अवृन्ती पुष्पों वाला । उदाहरण-चिड़चिड़ी (Achyranthes) \

(ii) मंजरी (Catkin)

पुष्पीय अक्ष लम्बा तथा झूलता हुआ (Pendulous) एवं एकलिंगी पुष्पों वाला होता है। उदाहरण-शहतूत (Mulberry)।

(iii) शूकिका (Spikelet)-

पुष्पीय अक्ष लम्बा, पतला तथा उसके प्रत्येक पुष्प उत्पत्ति स्थान से छोटे-छोटे शूकी पुष्पों का समूह जो कि पेलिया (Palaca), लेम्मा (Lemma) युक्त । प्रत्येक समूह विशेष बन्ध्य ग्लूम (Sterile glume) से घिरा हुआ। उदाहरण-ग्रैमिनी (Gramineae) कुल के पुष्पक्रम।

(iv) समशिख (Corymb)–

पुष्पीय अक्ष छोटा, सभी पुष्प एक रेखा (Single plane) में लगे हुए तथा पुष्पों के वृन्तों (Pedicels) की लम्बाई असमान होती है। उदाहरण – चाँदनी (Iberis)।

(v) छत्रक (Umbel) -

पुष्पीय अक्ष छोटा, सभी पुष्प एक ही रेखा में लगे, पुष्पा के वृन्तों की लम्बाई समान होती है। उदाहरण-अम्बेलीफेरी (Umbelliferae) कुल के पुष्पक्रम।

(vi) मुण्डक (Capitulum)-

पुष्पीय अक्ष चपटा होता है। नीचे की ओर अनेक सहपत्रों का समूह होता है, परन्तु ऊपर अनेक छोटे-छोटे पुष्पक (Florets) लगे होते हैं। ये रश्मि पुष्पक (Ray florets) एवं बिम्ब पुष्पक (Disc florets) के रूप में विभेदित हो सकते हैं । उदाहरण - कम्पोजिटी (Compositae) कुल के पुष्पक्रम ।

(vii) स्थूल मंजरी (Spadix) -

पुष्पीय अक्ष लम्बा, मोटा तथा मांसल । पुष्पों का समूह एक या अनेक बड़े आकृति वाले रंगीन पत्ती की तरह के सहपत्र (Spathe) से ढँके होते हैं। उदाहरण- केला (Musa), कोलोकेशिया (Colocasia)।

2. ससीमाक्षी पुष्पक्रम (Cymose Inflorescence) -

पुष्पीय अक्ष निश्चित वृद्धि वाला तथा उससे लगे रहने वाले पुष्पों का क्रम पश्चाभिसारी (Basipetal) । शीर्षस्थ कलिका (Apical bud) या कक्षस्थ कलिका (Axillary bud) एक पुष्पीय शाखा में परिणत होकर पुष्प में समाप्त हो जाता है तथा क्रमिक पुष्पीय शाखाओं का निर्माण न हो पाता हो तो उसे क्रमश : एकल शीर्षस्थ (Solitary terminal) एवं एकल कक्षस्थ (Solitary axillary) कहा जाता है।

Cymose inflorescence in hindi

(i) एकशाखी ससीमाक्ष (Monochasial or Uniparous cyme ) – 

निश्चित वृद्धि वाले मुख्य पुष्पीय अक्ष से निकलने वाली क्रमिक पुष्पीय शाखाएँ एक-एक के क्रम में सभी क्रमिक पुष्पीय शाखाएँ केवल दायीं या बायीं दिशा में परिवर्द्धित होती हों तो उसे कुण्डलाकार एकशाखी ससीमाक्ष (Helicoid uniparous cyme) जैसे-जंकस (Juncus) में और अगर एकान्तर क्रम में विकसित होती हों, तो उसे वृश्चिकी एकशाखी ससीमाक्ष (Scorpioid uniparous cyme) कहा जाता है। उदाहरण- रैननकुलस (Ranunculus)।

(ii) युग्मशाखी ससीमाक्ष (Dichasial or Biparous cyme) - 

निश्चित वृद्धि वाले मुख्य पुष्पीय अक्ष से दो-दो के क्रम में क्रमिक पुष्पीय शाखाओं (Successive floral branches) का विकास । उदाहरण - बोगेनविलिया (Bougainvillea), सागौन (Teak), इक्जोरा (Ixora) । -

(iii) बहुशाखी ससीमाक्ष (Polychasial or Multiparous cyme) – 

निश्चित वृद्धि वाले मुख्य पुष्पीय शाखा से एक समय में दो से अधिक क्रमिक पुष्पीय शाखाओं का विकास । उदाहरण मदार (Calotropis), काका टुण्डी (Asclepias)।

3. संयुक्त पुष्पक्रम (Compound Inflorescence)-

मुख्य पुष्पीय अक्ष से कोई पुष्प लगा नहीं रहता बल्कि यह शाखित होता है। शाखा से लगे पुष्पों के क्रम के अनुसार इसके प्रकार निर्धारित किये जाते हैं-

Compound inflorescence in hindi

(i) संयुक्त ससीमाक्ष या पैनिकल (Compound raceme or Panicle)-

प्रत्येक शाखा से ससीमाक्ष (Raceme) क्रम में पुष्प । उदाहरण- गुलमोहर (Delonix) ।

(ii) संयुक्त शूकी (Compound spike) - 

प्रत्येक शाखा से शूकी की तरह पुष्प उदा.- गेहूं (Wheat)।

(iii) संयुक्त छत्रक (Compound umbel)-

प्रत्येक शाखा से छत्रक (Umbel) के क्रम में पुष्पों का विन्यासित होना। उदाहरण – धनिया (Coriander)।

(vi) संयुक्त समशिख (Compound corymb)-

प्रत्येक शाखा से समशिख क्रम में पुष्प लगे हुए। उदाहरण- पाइरस (Pyrus) ।

4. विशिष्ट पुष्पक्रम (Specialised Inflorescence) -

ससीमाक्षी या असीमाक्षी पुष्पक्रम में स्पष्टतः विभेदन नहीं या दोनों के सम्मिश्रित लक्षण या पुष्पीय अक्ष या पुष्पीय भागों का विशिष्ट रूप में रूपान्तरण।

Specialised Inflorescence in hindi

(i) कटोरिया (Cyathium) - 

सहपत्र चक्र (Involucre) संयुक्त रूप से प्यालेनुमा आकृति के रूप में परिवर्तित। केन्द्र में एक सवृन्ती मादा पुष्प तथा परिधि की ओर अनेक सवृन्ती नर पुष्पों की उपस्थिति । उदाहरण- यूफोर्बिया (Euphorbia)।

(ii) उदुम्बरक (Hypanthodium) - 

पुष्पीय अक्ष रूपान्तरित होकर मांसल, खोखले एक छिद्रयुक्त (Ostiolate) रचना के रूप में । आन्तरिक गुहा (Internal cavity) के आधार में अनेक मादा पुष्पों (Female flowers) तथा शीर्ष क्षेत्र में अनेक नर पुष्पों (Male flowers) की उपस्थिति। उदाहरण-अंजीर (Fig), बरगद (Banyan) ।

(iii) कुटचक्रक (Verticillaster) - 

पुष्पीय अक्ष असीमाक्षी प्रकार का होता है, लेकिन प्रत्येक पर्वसन्धि से पहले युग्मशाखी सीमाक्ष (Dichasial cyme) तथा उसके बाद एकशाखी वृश्चिकी सीमाक्ष क्रमों में क्रमिक पुष्प विकसित होते हैं।

उदाहरण-लेबिएटी (Labiatae) कुल के पुष्पक्रम।