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ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

जीवन की कल्पना श्वसन के बिना नहीं हो सकती है। श्वसन में मनुष्य ऑक्सीजन ग्रहण करता है यह ऑक्सीजन उसे पेड़ पौधों से प्राप्त होता है। अनेक प्रकार के पेड़ पौधे एक स्थान पर होते हैं तो उसे वन कहते हैं। वनों में कई प्रकार के वन होते  हैं। ऊष्ण कटिबंध वन उनमे से एक प्रकार है। जिसके बारे में हम इस पोस्ट में जानने वाले हैं।

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

ऐसे वन उष्ण एवं गर्म जलवायु वाले भागों में पाये जाते हैं। यहाँ पर अत्यंत घने, ऊँचे, वृक्ष, झाड़ियाँ एवं काष्ठीय आरोही या लाइनस पौधे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों, कटीले वृक्षों वाले जंगलों एवं शुष्क क्षेत्रों में कहीं-कहीं पाये जाते हैं। इस प्रकार उष्ण कटिबंधीय वन दो प्रकार के होते हैं 

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests), 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests) 

इन्हें भी जानें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests):- ऐसे बनों में वर्षा अधिक होने के कारण आर्द्रता (Moisture) काफी अधिक होती हैआर्द्रता के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं--- 

1. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबाहार वन (Tropical wet evergreen forests):- 250 सेमी वार्षिक वर्षा से अधिक वर्षा दर वाले भारतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के वन स्थित हैं। इस प्रकार के वन भारत के दक्षिणी हिस्सों मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ भाग तथा उपरी हिस्सों मुख्यत : पश्चिम बंगाल, असम एवं उड़ीसा के कुछ भागों में पाये जाते हैं। इन वनों के वृक्षों की ऊँचाई 40-60 मीटर से अधिक होती है। इस वन के वृक्ष सदाबहार प्रवृत्ति के तथा चौड़ी पत्ती वाले होते हैं। यहाँ काष्ठीय लता तथा उपरिरोही (Epiphytes) की बहुतायत होती है। 

उदाहरण- साल या शोरिया (Shorea), डिप्टेरोकार्पस (Dipterocarpus), आम (Mangifera), मेसुआ (Mesia), होपिया (Hopea), बाँस, इक्जोरा (Ixora), टायलोफोरा (Tylophora) आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय नम अर्द्ध-सदाबहार वन (Tropi cal moist semi-evergreen forests):- इन वनों का विस्तार 200-250 सेमी तक वार्षिक वर्षा स्तर वाले क्षेत्रों में मिलता है। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर, बंगाल एवं पूर्वी उड़ीसा तथा आसाम में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में हैं। इन वनों में कुछ पर्णपाती वृक्षों की जातियाँ भी पायी जाती हैं, इसलिए इन्हें अर्द्ध सदाबहार वन कहते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले कुछ पौधे पर्णपाती तो होते हैं, लेकिन पत्ती रहित अवस्था अल्पकालिक होती है। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया पैनीकुलाटा (Terminalia paniculata) साल (Shorea robhusta), कचनार (Bauhinal), आम (Mengiphera); मैलोटस (Mallotus), टिनोस्पोरा (Tinospora), एण्ड्रोपोगॉन (Andropogon), आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical most deciduous forests):- औसतन 100 से 200 सेमी वर्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस प्रकार के वन मिलते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार अण्डमान द्वीप समूह, मध्य प्रदेश के जबलपुर, मण्डला, छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तरगुजरात के डाँग, महाराष्ट्र के थाने, रत्नागिरी, कर्नाटक के केनरा, बंगलौर एवं पश्चिमी क्षेत्र, तमिलनाडु के कोयम्बटूर तथा निलंबुर व चापनपाड़ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जाते हैंये वन उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगालआसाम, हिमांचल प्रदेश आदि राज्यों के कुछ भागों में पाये जाते हैंदक्षिणी आर्द्र पर्णपाती वनों की मुख्य वृक्ष सागौन (Teak) है, जबकि उत्तरी आई पर्णपाती वन की प्रमुख वृक्ष साल है। सागौन वन में कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के कुछ वन क्षेत्रों में डायोस्पायरॉस (Dlospyros)जिजिफस (Zizyphus)कैसिया (Cas sia)स्टिरियोस्पर्मम (Stereospermum), ऐल्बिजिया (Albizzia), सायजिजियम (Syzygium), सेड्रेला (Cedrella) साथ-साथ मिश्रित रहते हैं।

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समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन(Littoral and Swamp Forest):- समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन क्षेत्र भारत के 67.00 वर्ग किलोमीटर में फैला के वन समुद्र तट पर उदाहरणतः पूर्वी व पश्चिमी समुद्र तट तथा बड़ी-बड़ी नदियों, जैसे- गंगा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी के डेल्टाओं के ज्वारीय अनूपों में पाये जाते हैं। ये क्षेत्र नरम गाद के बने होते हैं, जिनमें राइजोफोरा (Rhizophora), सोन्नैरेशिया (Sonneratia) इत्यादि के मैंग्रोव वन उगते हैं। इस जलाक्रान्त पारिस्थितियों में वानस्पतियों के क्षय से दुर्गन्ध आने लगती है। अपेक्षाकृत अन्तस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ भूमि पर ज्वारीय जल आता रहता है, ज्वारीय वन (Tidal forests) पाये जाते हैं। यहाँ हेरिशियेरा (Haritiera), वेस्पेशिया (Thespesia), वाड़ (Palm) विभिन्न जातियाँ तथा अन्य क्षूप उगते हैं। 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests):- ऐसे वनों में औसत वर्षा अत्यंत कम होती है, जिसके कारण यहाँ का तापमान काफी अधिक हो जाता है। पौधों के प्रकृति के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं 

1. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical dry deciduous forests):- औसत 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले भारतीय क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन मिलते हैं तथा समस्त भारतवर्ष के वन क्षेत्र के 1/3 भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा भारतीय प्रायद्वीप के अधिकांश भागों में हैं। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया टोमेन्टोसा (Terminalia tomentosa), इमली (Temarindus indica), साल (Shorea robhnusia), बेल (Aegle marmelos), बेर आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय कटीले वन (Tropical thorn forests):- ये वन 25-70 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में पर्णपाती वनों के स्थान पर कटीले वन पाये जाते हैं। 

उदाहरण- अकेशिया निलोटिका, अ. सुन्द्रा, प्रोसेपिस सिनेरिया, बेर (Zicyphus), नागफनी (Opum tia) बारलेरिया, यूफोर्बिया की प्रजातियाँ हिन्दरोपोगॉन लेक्टाना आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Tropi. cal thorn evergreen forests):- इस प्रकार के वन क्षेत्रों में 75-100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस प्रकार के वन तमिलनाडु के पूर्वी भाग में, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के समुद्री किनारों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के वनों में वृक्षों की पत्तियाँ चर्मिल (Coriaceous) होती है। इस क्षेत्र में बाँस का अभाव, लेकिन घास पाया जाता है। वृक्ष की ऊँचाई 9-15 मीटर तक होती है। सबसे ऊचे वृक्षों में स्ट्रिक्नॉस नक्स वोमिका (Strychnos mcx vomica), सैम्पिडस इमार्जिनेटस (Spindus emarginatus) में कैरिसा कैरान्डास (carissa carandas), इक्जोरा पार्विफ्लोरा (xara parviflora) आदि।

इस पोस्ट में हमने ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) के बारे में जाना। जो वनों के एक प्रकार में से एक है।

उम्मीद करता हूँ कि ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें। 

भारतीय कृषि से संबंधित सवाल (Indian agriculture related questions in Hindi)

भारतीय कृषि से संबंधित सवाल (Indian agriculture related questions)

नमस्कार, आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। इस लेख में भारतीय कृषि से संबंधित सवाल के बारे में बताया जा रहा है। चूँकि भारत एक कृषि प्रधान देश है। इसलिए आज भी भारत की अधिकतर आबादी खेती किसानी (कृषि ) पर निर्भर हैं. आज के इस लेख में हम भारतीय कृषि की विशेषताएँ, कृषि उत्पादन बढ़ाने में सिंचाई का महत्व, उर्वरक के उपयोग से कृषि उत्पादकता पर प्रभाव एवं माइक्रो सिंचाई प्रणाली  के बारे में सामान्य जानकारी जानेंगे. बहुत से कम्पटीशन एग्जाम में भारतीय कृषि से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं।

Indian Agriculture General Knowledge in Hindi  Answer Duniya

भारतीय कृषि भारतीय कृषि की विशेषताएँ (Characteristics of Indian Agriculture) 

भारत मुख्यतः एक कृषि प्रधान देश है जिसमें लोगों के आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन में कृषि की प्रमुख भूमिका है। यहाँ तक कि सत्ताधारी दल का भविष्य और सरकार की सफलता कृषि उत्पादन की मात्रा और जन साधारण के लिए सस्ते दाम पर खाद्यान्नों की उपलब्धता पर निर्भर करती है। नीचे भारतीय कृषि की कुछ प्रमुख विशेषताओं का विवरण दिया जा रहा है।

  1. भारतीय कृषि निर्वाहक किस्म की है जिसका मुख्य उद्देश्य देश की विपुल आबादी की खाद्य आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। 
  2. यहाँ किसान फसलों का चयन राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय बाजारों के लिए अतिरेक उत्पादन के बजाय अपनी घरेलू जरूरतों को ध्यान में रखकर करते हैं। 
  3. हाल में यह व्यापारिक और बाजारोन्मुख हो रही है जिसमें देश के विकसित क्षेत्रों और बड़े कृषकों की प्रमुख भूमिका है। 
  4. भारतीय कृषि पर जनसंख्या का बड़ा दबाव है। 
  5. देश की लगभग 70% जनसंख्या कृषि एवं सम्बद्ध व्यवसायों से जीवन यापन करती है। 
  6. इससे कृषि पर बढ़ते दबाव का सहज अनुमान लगाया जा सकता है। 
  7. भारतीय कृषि में खाद्यान्नों के कृषि की प्रधानता है जो कुल कृषित क्षेत्र का 76% भाग और संपूर्ण कृषि उत्पादन का 80% भाग प्रदान करते हैं। 
  8. इनमें चावल, गेहूँ, ज्वार-बाजरा, चना, मक्का एवं दालें सम्मिलित हैं जिससे देश की विशाल आबादी (2001 में 1028.8 मिलियन) को भोजन मिलता है। 
  9. कृषि में फसलों की विविधता पाई जाती है।
  10. कभी-कभी तो एक ही खेत में एक साथ चार-पाँच फसलें बोई जाती हैं। 
  11. ऐसा प्रतिकूल मौसमी दशाओं में कुछ न कुछ उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए किया जाता है। इस प्रकार के मिश्रित शस्यन से प्रति हेक्टेयर कृषि उत्पादन घट जाता है। 
  12. भारत के भौगोलिक क्षेत्र के लगभग 54% भाग पर कृषि की जाती है (संयुक्त राज्य अमेरिका 16.3%, जापान 14.9%, चीन 11.8% और कनाडा 4.3%)। 
  13. यहाँ की जलवायु दशाएँ विशेषकर तापमान वर्ष भर फसलों के उगाने के लिए उपयुक्त है। 
  14. जनसंख्या के दबाव के कारण मैदानी भागों में तो वनों का लगभग सफाया कर दिया गया है।
  15.  कृषित क्षेत्र अपने सर्वोच्च स्तर को पहुँच गया है और कतिपय क्षेत्रों में तो इसमें घटाव की प्रवृत्ति देखी जा रही है।
  16. भारतीय कृषि में चारा फसलों पर (कृषित क्षेत्र का 4%) बहुत कम ध्यान दिया जाता है। 
  17. चारा फसल और अच्छे चरागाहों के अभाव से डेरी फार्मिंग पर बुरा असर पड़ा है। 
  18. यहाँ विश्व में मवेशियों की सबसे बड़ी संख्या पाई जाती है परन्तु पशु उत्पादों में इसका स्थान नगण्य है। 
  19. भारतीय कृषि सरकार की उपेक्षा और सौतेले व्यवहार का शिकार रही है। आज भी विशद् ग्रामीण अंचल के बजाय उद्योगों और नगरीय क्षेत्रों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। 
  20. अभी भी कृषि उत्पादों के लिए लाभकारी मूल्य, जोतने वाले का भूमि पर स्वामित्व, फसल बीमा आदि के लक्ष्य नहीं प्राप्त किए जा सके हैं। 
  21.  कुछ प्रगति के बावजूद आज भी देश की कृषि अर्थव्यवस्था पारंपरिक है। 
  22. हजारों वर्ष पहले शुरू की गई आत्मभरित, जाति आधारित, अनुपस्थाता एवं पराश्रयिक जमींदारी अर्थव्यवस्था में नवीनीकरण एवं सुधार की गति बहुत धीमी है।
  23. भारतीय कृषि छोटी भूजोतों, अवैज्ञानिक कृषि पद्धति, सिंचाई की कम सुविधाओं, रासायनिक, जैव एवं प्राकृतिक उर्वरकों के कम उपयोग, नाशी जीव एवं बीमारियों से भेद्यता, कृषि उपजों के कम लाभकारी मूल्य, कृषकों की गरीबी और बुनियादी सुविधाओं की कमी जैसी अनेकों समस्याओं से ग्रस्त है। 
  24. भारतीय कृषि में राष्ट्रीय एवं प्रादेशिक स्तर पर सुस्पष्ट कृषि भूमि उपयोग नीति का अभाव पाया जाता है। 
  25. किसी फसल का चुनाव किसानों की मर्जी पर है। इससे अक्सर विभिन्न फसलों के उत्पादन की अतिरेकता या कमी देखी जाती है। 
  26. बाजार एवं भंडारण सुविधाओं के अभाव, विचौलियों और दलालों के कारण किसानों को कृषि उत्पादन का सही मूल्य नहीं मिल पाता है। 
  27. भारत में कृषि को सम्मानजनक पेशा नहीं माना जाता है। 
  28. यही कारण है कि नवयुवक कृषि के बजाय छोटी सरकारी नौकरी को अधिक महत्व देते हैं। 
  29. भारत में हरित क्रांति 1967-68 में हुआ।
  30. भारत में हरित क्रांति के जन्मदाता एम.एस. स्वामीनाथन को माना जाता है।
  31. जिप्सम मृदा सुधारक माना जाता है।
  32. भारतीय सब्जी शोध संस्थान वाराणसी में है।
  33. केसर का सबसे अधिक उत्पादन जम्मू कश्मीर में होता है।
  34. कपास अनुसन्धान संस्थान मुंबई (महाराष्ट्र) में है ।

कृषि उत्पादन बढ़ाने में सिंचाई का महत्व -

भारत में नियोजित विकास के प्रारम्भ से ही सिंचाई को हमेशा प्राथमिकता सूची में रखा गया है। बड़ी, मध्यम और छोटी सिंचाई परियोजनाओं के द्वारा सिंचाई के विकास के लिये बुनियादी ढांचा तैयार करने के लिये सार्वजनिक और निजी, दोनों क्षेत्रों में वृहत स्तर पर निवेश हुआ है। इसके परिणामस्वरूप कुल सिंचाई क्षमता में व्यापक वृद्धि हुई है। सभी स्रोतों के द्वारा देश की कुल सिंचाई क्षमता का पहले 11.35 करोड़ हेक्टेयर होने का अनुमान लगाया गया था, अब पुनः 13.99 मिलियन हेक्टेयर आंकी गई है। 

जिसमें अभी तक हम इस क्षमता का करीब 64 प्रतिशत ही लाभ उठा पाए हैं। देश में सृजित क्षमता का बहुत कम लाभ उठा पाने की वजह से वास्तविक सिंचित क्षेत्र केवल करीब 5.5 करोड़ हेक्टेयर (2000-01) है जो कुल जुताई क्षेत्र का करीब 40 प्रतिशत है। इस तरह 60 प्रतिशत क्षेत्र की फसलें अब भी वर्षा पर निर्भर हैं जिससे कुल कृषि उत्पादन में अनिश्चितता बनी रहती है।

माइक्रो सिंचाई प्रणाली -

भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत बड़ा योगदान है। कोई भी कृषि प्रधान देश जल संरक्षण के बेहतर उपाय किये बिना अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ नहीं कर सकता। वर्तमान समय में कृषि, उद्योग एवं नागरिक आवश्यकतों की पूर्ति के लिए जल की माँग दिनों-दिन बढ़ती

उर्वरक के उपयोग से कृषि उत्पादकता पर प्रभाव -

गत 4-5 वर्षों से उर्वरकों के उपयोग में वृद्धि होने के बावजूद खाद्यान्न का कुल उत्पादन 200 मिलियन टन के आस-पास ही रहा है। उत्पादन के स्थिर रहने का कारण है। पूर्वी क्षेत्रों में सबसे कम खाद की खपत की जाती है, जबकि उत्तर में सबसे अधिक । लेकिन, फिर भी कुल मिलाकर यही प्रवृत्ति उभरती हुई दिख रही है, कि भारत के सभी क्षेत्रों में उर्वरक का उपयोग वास्तविक रूप से स्थिर या कम हो गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि कमी का कारण मानसून का खराब होना हो सकता है; क्योंकि पानी के बिना उर्वरक का पूरा-पूरा उपयोग नहीं हो पाता है।

इस लेख में हमने भारतीय कृषि सामान्य ज्ञान के बारे में विस्तार से जाना, अनेक प्रतिस्पर्धी परीक्षा में भारतीय कृषि से संबंधित सवाल पूछे गए हैं और पूछे जाते हैं। 

उम्मीद है कि भारतीय कृषि से संबंधित सवाल का यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा, यदि आपको लेख पसंद आये तो लेख को शेयर अवश्य करें।