जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

जंतु विज्ञान का एक महत्वपूर्ण टॉपिक जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE) है। जिसके बारे में जानकारी इस पोस्ट में दी जा रही है। कॉलेज के सिलेबस के अलावा प्रतियोगी परीक्षाओं में जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE) से सम्बंधित सवाल पूछे जाते हैं। अगर आप जैव भू-रासायनिक चक्र के बारे ने जानना चाहते हैं तो इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़ें।

जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

जैव भू-रासायनिक चक्र (Jaiv bhu rasayanik chakra)

वातावरण में उपस्थित भौतिक पदार्थ पौधों की जैविक पौधों की जैविक क्रियाओं (Vital activities) के द्वारा जटिल कार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित हो जाते हैं। ये पदार्थ विभिन्न प्रकार के परपोषी जीवों के द्वारा खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किये जाते हैं। जीवों एवं पौधों की मृत्यु के पश्चात् सूक्ष्म जीवों (Micro-organism) के द्वारा होने वाली अपघटन क्रिया के फलस्वरूप ये भौतिक पदार्थ पुनः मृदा एवं वातावरण में वापस पहुँच जाते हैं। इस प्रकार वातावरण से इन तत्वों का जीवों के शरीर में पहुँचने की प्रक्रिया को ही जैव भू-रासायनिक चक्र (Bio-) geochemical cycle) या खनिज चक्रीकरण (Mineral cycling) अथवा पदार्थों का चक्रण (Cycling of matter) कहते हैं। 

पारिस्थितिक तंत्र में विभिन्न पदार्थों के चक्रीकरण को उनकी प्रवृत्ति के आधार पर दो प्रकारों में बाँटा गया है

(1) गैसीय चक्र (Gaseous cycle ) - इस चक्र में चक्रीकरण (Cycling) करने वाले पदार्थों का मुख्य स्रोत या संग्राहक (Reservoir) वायुमण्डल (Environment) तथा महासागर (Oceans) होता है, जिसमें पदार्थों का चक्रीकरण मुख्यतः गैस के रूप में होता है। कार्बन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन एवं नाइट्रोजन चक्र इसके प्रमुख उदाहरण हैं। 

(2) अवसादी चक्र (Sedimentary cycle) - इस चक्र में चक्रीकरण करने वाले पदार्थों का मुख्य स्रोत मृदा (soil) या पृथ्वी की विभिन्न चट्टानों अर्थात् स्थलमंडल (Stratosphere) है। फॉस्फोरस, कैल्सियम और सल्फर चक्र इसके उदाहरण हैं। ये पदार्थ जल के साथ द्रव के रूप में उत्पादकों द्वारा ग्रहण किये जाते हैं।  इस चक्र के द्वारा खनिजों का चक्रीकरण (Cycling of minerals) होता है। 

उपर्युक्त दोनों प्रकार के चक्र में जैविक (Biotic) एवं अजैविक (Abiotic) घटक भाग लेते हैं तथा ये ऊर्जा के प्रवाह (Flow of energy) द्वारा संचालित किये जाते हैं एवं दोनों प्रकार के चक्र जल चक्र (Water cycle) या हाइड्रोलॉजिकल चक्र (Hydrological cycle) द्वारा बंधे हुए (Tied) होते हैं।

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कार्बन चक्र (CARBON CYCLE)

कार्बन जीवधारियों के शरीर का निर्माण करने वाले सभी कार्बनिक पदार्थों (Organic substances) जैसे कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates), वसा (Fats), एवं प्रोटीन्स (Preteins) आदि का आवश्यक एवं मुख्य संघटक तत्व होता है। प्रकृति में कार्बन का मुख्य स्रोत वातावरण (Atmosphere) एवं जल (Water) होता है। अजैविक घटकां (Abiotic components) में यह कार्बोनेट युक्त चूना पत्थरों (Carbonated limes stones) वायु (0.03%), तथा जल ( 0.1% ) कोयला (Coal) एवं पेट्रोलियम (Petroleum) पदार्थों में पाया जाता है। जैविक घटकों (Biotic components) में यह कार्बनिक पदार्थों में पाया जाता है।.

हरे पौधे (Green plants) प्रकाश-संश्लेषण (Photosynthesis) क्रिया के समय वातावरण में उपस्थित कार्बन को CO2 के रूप में ग्रहण करके कार्बोहाइड्रेट्स (Carbohydrates) का निर्माण करते हैं। 

6CO₂ + 12H₂0 Chlorophyll Light > C6H12O6 + 6H₂O+60₂

प्रकाश-संश्लेषण के समय निर्मित कार्बनिक पदार्थ पादप के शरीर का निर्माण करते हैं। इनमें से कार्बनिक पदार्थों की कुछ कार्बन को पौधे श्वसन (Respiration) की क्रिया के द्वारा CO2 के रूप में उत्सर्जित कर देता है। बचे हुए कार्बनिक पदार्थों को शाकाहारी जन्तु ( Herbivorous animals) खा लेते हैं। फलतः कार्बन शरीर के कार्बनिक पदार्थों के साथ शाकाहारियों में चला जाता है। ये शाकाहारी कुछ कार्बन को CO2 के रूप में त्याग देते हैं, जबकि कुछ कार्बन मांसाहारी जन्तु ( Carnivorous animals) द्वारा ग्रहण कर लिया जाता है। अत : कार्बन कार्बनिक यौगिकों के रूप में उत्पादकों के द्वारा ग्रहण करके खाद्य श्रृंखला के सर्वोच्च उपभोक्ताओं (Top consumers) तक पहुँचाती हैं। ये भी कुछ कार्बन को श्वसन द्वारा CO2 के रूप में निकालते हैं। अब अन्त में कुछ कार्बन उन उत्पादको ( Producers) तथा उपभोक्ताओं (Consumers) में रह जाता है, जो खाद्य श्रृंखला का भाग नहीं बन पाते, जब ये मरते हैं, तो अपघटक (Decomposers) इनके कार्बनिक यौगिकों को अपघटित करके इन्हें CO, और ह्यूमस (Humus) में बदल देते हैं। यह CO, वायु या जल में चली जाती है और ह्यूमस पृथ्वी तथा जल में रह जाता है। इन दोनों को पौधे पुनः ग्रहण कर लेते हैं और उपर्युक्त चक्र फिर से प्रारम्भ हो जाता है।

कुछ कार्बनिक यौगिकों का कार्बन जैविक ईंधन (Biotic fuel) उदाहरण- लकड़ी (Wood), जीवाश्मीय ईंधन (Fossil Fuels) जैसे-कोयला, पेट्रोलियम आदि या दूसरे ज्वलनशील पदार्थों को जलाने पर CO2 के रूप में मुक्त होकर वायु में आ जाता है और कार्बनिक चक्रीकरण (Corbon cycling) में भाग लेता है। जीवाश्मीय ईंधन का निर्माण मृतजीवों (जन्तुओं और पादपों) के शरीर के ही भूमि में दब जाने के कारण शरीर में संचित कार्बनिक पदार्थों से होता है।

नाइट्रोजन चक्र (NITROGEN CYCLE)

प्रकृति में नाइट्रोजन विभिन्न रूपों में पायी जाती है। मृदा में कार्बनिक नाइट्रोजन जीवों के मृत शरीर के अपघटन से प्राप्त होती है। मृत शरीर में मिलने वाली जटिल प्रोटीन (Complex protein) अपघटित होकर अमीनो अम्ल में बदल जाते हैं। इसी प्रकार यूरिया भी मृदा में मिल जाती है। पौधे जड़ों के द्वारा इनका अवशोषण (Absorption) करते हैं अथवा सूक्ष्मजीवों (Microorganisms ) के द्वारा यह अमोनिया में बदल जाते हैं, इस क्रिया को अमोनीकरण (Ammonification) कहते हैं। इसी प्रकार मृदा में अकार्बनिक नाइट्रोजन भी NO2 तथा NO, के रूप में पायी जाती है, जिनका उपयोग जड़ों के द्वारा किया जाता है। वायुमण्डल में 4/5 भाग N, होती है। जीवधारी इस स्वतन्त्र नाइट्रोजन का उपयोग नहीं कर पाते हैं। पौधे N2 की NH3 या NO3 के रूप में ही उपयोग करते हैं। ये यौगिक नाइट्रोजन स्थिरीकरण जीवाणुओं के द्वारा ग्रहण किये जाते हैं। ये नाइट्राइट पौधों के शरीर के अन्दर नाइट्रोजनी यौगिक बनाते हैं। इन पेड़-पौधों का उपयोग जीव-जन्तु करते हैं। इन पौधों एवं जन्तुओं की मृत्यु के पश्चात् जीवाणुओं अथवा अन्य सूक्ष्मजीवों में अपघटन की क्रिया के पश्चात् N2 स्वतन्त्र रूप से अथवा NH; के रूप में वातावरण तक पुनः पहुँच जाती हैं।


नाइट्रोजन चक्र (nitrogen cycle)


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फॉस्फोरस चक्र (PHOSPHORUS CYCLE) 

फॉस्फोरस जीवों का एक महत्वपूर्ण पदार्थ है। यह नाभिकीय अम्लों, फॉस्फोलिपिड्स, ATP, ADP और कई महत्वपूर्ण यौगिकों का एक घटक है। हरचिन्सन (1944) के अनुसार, प्राकृतिक जलस्रोतों में फॉस्फोरस और नाइट्रोजन 1:23 के अनुपात में पाये जाते हैं। जीवमण्डल के जैविक घटकों में फॉस्फोरसफॉस्फेट आयनों के रूप में प्रवेश करता हैये फॉस्फेट आयन पौधों द्वारा अवशोषित किये जाते हैं तथा विभिन्न यौगिकों से होते हुए उपभोक्ताओं और अपघटकों में स्थानान्तरित हो जाते हैं। उपभोक्ताओं में यह फॉस्फेट कार्बोनिक यौगिकों के रूप में प्रवेश करते हैं। जब उत्पादकों और उपभोक्ताओं की मृत्यु होती है, तो अपघटक उनके शरीर में उपस्थित फॉस्फोरस को फॉस्फेट आयन के रूप में मुक्त कर देते हैं, जिसका उपयोग पौधे पुनः करते

कई चट्टानों और जन्तुओं के कवचों जैसे-कोरल, मोलस्क आदि में फॉस्फेट पाया जाता है, जिसका उपयोग पौधे करते हैं। आजकल फॉस्फेट का उपयोग घरेलू अपमार्जकों के रूप में किया जाता है। जल में घुलकर यह पारिस्थितिक तंत्र में प्रवेश कर सकता है।

फॉस्फोरस चक्र (PHOSPHORUS CYCLE)


मृदा में भी फास्फेट उपस्थित होते हैं, जो कि फॉस्फेट युक्त चट्टानों के अपरदन से मुक्त होता है। चट्टानों के अपरदन एवं जीवों के मृत शरीर शरीर के अपघटन से मुक्त फॉस्फोरस एवं कैल्शियम जल के साथ समुद्र में पहुँचकर वहाँ पर एकत्रित होकर चट्टानों का निर्माण करते हैं। इस प्रकार फॉस्फोरस, फॉस्फोरस चक्र से अलग हो जाता है। इन चट्टानों के विघटन के फलस्वरूप फॉस्फोरस पुन : जल में घुल जाता है। यह जल में घुलित फॉस्फोरस पौधों के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता हैइस प्रकार फॉस्फोरस चक्र जारी रहता है।

इस पोस्ट में हमने जैव भू-रासायनिक चक्र  (Jaiv bhu rasayanik chakra) के बारे में जाना। जो जंतु विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्नों में से एक है।

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