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प्रोकेरियोटिक कोशिका और यूकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell and Eukaryotic cell)

answerduniya में आपका स्वागत है। क्या आप विज्ञान विषय के विद्यार्थी हैं या आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं जिसमे विज्ञान के प्रश्न आते हैं। अगर हाँ तो यह पोस्ट आपके लिए ही है, क्यूंकि इस पोस्ट में हम जंतु विज्ञान के एक महत्वपूर्ण प्रश्न  प्रोकेरियोटिक कोशिका और यूकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell and Eukaryotic cell) में अंतर के बारे में जानने  वाले हैं । 

(Difference between Prokaryotic cell and Eukaryotic cell)

प्रोकेरियोटिक कोशिका और यूकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell and Eukaryotic cell)

(1) प्रोकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell):- ये सरल रचना वाली कोशिकाएँ हैं जो मात्र एक कोशिका कला (Single cell membrane) से घिरी रहती है। चूँकि इसमें कोशिका कला के अतिरिक्त अन्य कोई कला (Membrane) नहीं होती, अत: इसमें नाभिक (Nucleus) तथा अन्य कोशिकांग (Cell  organelles), जैसे- माइटोकॉण्ड्रिया (Mitochondria), गॉल्जी काय (Golgi body), अन्तः प्रद्रव्यी जालिका (Endoplasmic reticulum), क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast) एवं लाइसोसोम (Lysosome) आदि नहीं पाये जाते हैं। केन्द्रक पदार्थ डी.एन.ए. (D.N.A.) से निर्मित होता है। इसके चारों ओर न्यूक्लिओप्रोटीन (Nucleoprotein) का आवरण नहीं पाया जाता है। इसके न्यूक्लिओइड (Nucleoid) कहते है। केन्द्रक पदार्थ के चारों ओर केन्द्रक झिल्ली का अभाव होता है। केन्द्रिका (Nucleolus) तथा सूत्री उपकरण (Mitotic apparatus) का अभाव होता है। यह प्राय: कार्बोहाइड्रेट तथा अमीनो अम्लों द्वारा बनी कोशिका भित्ति (Cell wall) द्वारा घिरे रहते हैं। इनकी प्लाज्मा झिल्ली (Plasma membrane) से प्राय: मोजोसोम (Mesosome) नामक कुछ अन्तर्वेध (Intrusions) अन्दर की ओर निकले रहते हैं, जिनकी संरचना जटिल होती है। इनमें अमीबीय गति (Amoeboid movement) नहीं पाई जाती है। इसके अतिरिक्त सर्वव्यापी वितरण, शीघ्र वृद्धि, लघु पीढ़ी काल (Short generation period), जीव रासायनिक व्यापकता (Biochemical versatility) एवं जीन सम्बन्धी व्यापकता (Genic flexibility) इनके विशेष गुण हैं। इन कोशिकाओं में राइबोसोम छोटे माप 705 के होते हैं तथा कोशिका विभाजन के समय तर्कु (Spindle) नहीं बनता है। विकास के प्रमाणों से पता चलता है कि प्रोकेरियोटिक कोशिका से ही यूकेरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell) का उद्भव हुआ है। जीवाश्मों में प्रोकेरियोटिक कोशिका तीन अरब पूर्व भी पायी गयी है, जबकि यूकेरियोटिक का उद्भव लगभग एक अरब वर्ष पूर्व हुआ है। प्रोकेरियोटिक कोशिका तथा यूकेरियोटिक कोशिका में प्रमुख समानता यह है कि दोनों में जेनेटिक कोड (Genetic code) तथा प्रोटीन संश्लेषण (Protein synthesis) की क्रिया-विधि समान होती है। इसके अन्तर्गत जीवाणु कोशिका (Bacterial cell), नीले हरे शैवाल (Blue-green algae) तथा पी. पी. एल. ओ. (PPLO Pleuro Pneumonia like Organism) इत्यादि आते हैं।

जानें- शैवाल का  वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi)

(2) यूकेरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell):- ये कोशिकाएँ पूर्ण रूप से सुविकसित होती हैं अर्थात् इनमें केन्द्रक एवं कोशिकांग (Cell organelles) पाये जाते हैं। इस प्रकार की कोशिकाएँ जीवाणु तथा नीली-हरी शैवालों के अतिरिक्त प्राय: सभी जीवधारियों में पायी जाती हैं। केन्द्रक पदार्थ के चारों ओर निश्चित केन्द्रक झिल्ली होती है तथा कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में माइटोकॉण्ड्रिया, क्लोरोप्लास्ट (Chloroplast), गॉल्जीकाय (Golgi body) एवं लाइसोसोम (Lysosome) आदि कोशिकांग (Organelles) होते हैं। इनके कोशिकाद्रव्य (Cytoplasm) में अमीबीय गति (Amoeboid movement) होती है। केन्द्रक (Nucleus) में केन्द्रिका (Nucleoli) होते हैं। एक से अधिक गुणसूत्र (Chromosome) में हिस्टोन पाया जाता है। इन कोशिकाओं के द्वारा सभी प्रकार की उपापचय क्रियाएं की जातीहैं तथा इनका स्वभाव सहयोगी होता है।

प्रोकेरियोटिक कोशिका और यूकेरियोटिक कोशिका में अंतर(Difference between Prokaryotic cell and Eukaryotic cell)

प्रोकेरियोटिक कोशिका (Prokaryotic cell)

1. यह प्रारम्भिक या आद्य (Primitive) कोशिका है।

2. इसकी कोशिका भित्ति (Cell wall) प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट की बनी होती है।

3. इसके कोशिकाद्रव्य में कोशिकांग (Organelles) का अभाव होता है।

4. इन कोशिकाओं में राइबोसोम 70S श्रेणी के होते हैं जो 50S एवं 30S सब यूनिटों (Subunit) के होते हैं।

5. इन कोशिकाओं में वास्तविक केन्द्रक नहीं होता केन्द्रक पदार्थ (क्रोमेटिन) स्वतन्त्र रूप से कोशिका द्रव्य में वितरित रहता है।

5. हिस्टोन (Histone) अनुपस्थित होता है।

7. न्यूक्लिओलस (Nucleolus) एवं सेन्ट्रियोल (Centriole) का अभाव होता है।

8. विभाजन के समय तर्कु (Spindle) नहीं बनता।

9. सूत्री विभाजन असूत्री विभाजन (Amitosis) द्वारा होता है।

10. श्वसनं एवं प्रकाश-संश्लेषण एन्जाइम प्लाज्मा झिल्ली में होते हैं।

11. सूत की लच्छी के समान केवल एक डी.एन.ए. का गुणसूत्र (Chromosome) बना होता है।

पढ़ें- जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

यूकेरियोटिक कोशिका (Eukaryotic cell)

1. यह सुविकसित (Developed) कोशिका है।

2. इसकी कोशिका भित्ति प्राणियों की कोशिका में प्लाज्मा झिल्ली के रूप में पायी जाती है तथा पादप कोशिकाओं

में यह सेलूलोस (Cellulose) की बनी होती है।

3. इसके कोशिकाद्रव्य में एण्डोप्लाज्मिक रेटीकुलम (Endoplasmic reticulum) माइटो काण्डूया। (Mitochondria) गाल्जी काय (Golgi body) लाइसोसोम (Lysosome) एवं प्लैस्टिड (Plastid) आदि होते हैं।

4. इन कोशिकाओं के राइबोसोम 80S श्रेणी के होते हैं तथा 60S एवं 40S सब यूनिटों के होते हैं।

5. इसमें केन्द्रक निश्चित स्थिति में होता है। इसके चारों ओर स्पष्ट केन्द्रक झिल्ली (Nuclear membrane) होती है। इस झिल्ली के अन्दर केन्द्रक पदार्थ होता है।

6. हिस्टोन (Histone) क्रोमेटिन पदार्थ का महत्वपूर्ण घटक है।

7. न्यूक्लिओलस एवं सेन्ट्रिओल पाये जाते हैं।

8. विभाजन के समय तर्कु (Spindle) बनता है।

9. कोशिका विभाजन सूत्री तथा अर्द्धसूत्री दोनों प्रकार से होता है।

10. श्वसन एवं प्रकाश-संश्लेषण एन्जाइम माइटोकॉण्ड्रिया एक क्लोरोप्लास्ट में होता है।

11. केन्द्रक में एक से अधिक गुणसूत्र होते हैं।

इस पोस्ट में हमने (Prokaryotic cell and Eukaryotic cell) के बारे में जाना। जो विभिन्न परीक्षाओं के लिए महत्वपूर्ण है ।

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शैवाल का वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi)

शैवाल का  वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi)

इस पोस्ट में हम शैवाल के वर्गीकरण के बारे में जानने वाले हैं। वनस्पति विज्ञान से सम्बन्धित यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है । जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछा जाता है। यदि आप भी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे है या करने वाले हैं तो आपको ऐसे बेसिक प्रश्नों के उत्तर जरुर आने चाहिए ।  


शैवाल का  वर्गीकरण ( Classification of Algae in Hindi)

Shaival ka Vargikaran

आधुनिक वर्गीकरण (Modern Classification)

आधुनिक शैवाल वैज्ञानिकों (Modern phycologists) ने फ्रिश्च (Fritsch, 1935) द्वारा दिये गये शैवालों के वर्गीकरण में प्रस्तावित 11 वर्गों (Classes) को प्रभाग (Division) का दर्जा (Rank) प्रदान करते हुए 11 प्रभागों को निम्नलिखित प्रकार से वर्गीकृत किया है-


प्रभाग (Division)-[1] सायनोफाइटा (Cyanophyta) नीली-हरी शैवाल

वर्ग (Class) - [1] सायनोफाइसी (Cyanophyceae)
गण (Order) -(1) क्लोरोकोक्केल्स (Chlorococcales)
(2) कैमीसाइफोनेल्स (Chamisiphotales)
(3) ऑसिलोटोरिएल्स (Oscillatoriales)
(4) नॉस्टोकेल्स (Nostocales)
(5) सायटोनिमेल्स (Cytonimales)
(6) स्टाइगोनिमेटेल्स (Stigonimatales)
(7) रिवुलेरिएल्स (Rivulariales)

इन्हें भी जानें- सामान्य ज्ञान के प्रश्न 2023

प्रभाग (Division)-[2] क्लोरोफाइटा (Chlorophyta) हरी शैवाल

वर्ग (Class)- [1] क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)
गण (Order)- (1) वॉलवकिल्स (Volvocales)
(2) क्लोरोकोक्कल्स (Chlorococcales)
(3) यूलोट्राइकेल्स (Ulotrichales)
(4) अल्वेल्स (Ulvales)
(5) ऊडोगोनिएल्स (Oedogoniales)
(6) क्लैडोफोरेल्स (Cladophorales)
(7) कीटोफोरेल्स (Chaetophorales)
(8) जिग्नीमेल्स (Zygnemales)
(9) साइफोनेल्स (Siphonales)

प्रभाग (Division)-[3] कैरोफाइटा (Charophyta) – स्टोनवर्ट

वर्ग (Class)- [1] कैरोफाइसी (Charophyceae)
गण (Order)- (1) कारेल्स (Charales)

प्रभाग (Division) [4] यूग्लीनोफाइटा (Euglenophyta)

गण (Order)- (1) यूग्लीनेल्स (Euglenales)

प्रभाग (Division) [5] पायरोफाइटा (Pyrophyta)

प्रभाग (Division) [6] जैन्थोफाइटा (Xanthophyta)-पीली-हरी शैवाल

वर्ग (Class)- [1] जैन्थोफाइसी (Xanthophyceae)
गण (Order)- (1) हेटेरोसाइफोनेल्स (Heterosiphonales)

प्रभाग (Division)- [7] बैसिलेरियोफाइटा (Bacillariophyta)

वर्ग (Class)- [1] बैसिलेरियोफाइसी (Bacillariophyceae) डायटम

प्रभाग (Division)– [8] क्राइसोफाइटा (Chrysophyta)

प्रभाग (Division) -[9] क्रिप्टोफाइटा (Cryptophyta)

प्रभाग (Division)-[10] फियोफाइटा (Phacophyta)-भूरी शैवाल

वर्ग (Class)- [1] आइसोजेनरेटी (Isogeneratae)
गण (Order)- (1) एक्टोकार्पेल्स (Ectocarpales)
(2) डिक्टियोटेल्स (Dictyotales)

वर्ग (Class)- [2] हेटेरोजेनरेटी (Heterogeneratae)
गण (Order)- (1) लैमिनेरिएल्स (Laminariales)

वर्ग (Class)- [3] साइक्लोस्पोरी (Cyclosporae)
गण (Order)- (1) फ्यूकेल्स (Fucales)

प्रभाग (Division) – [11] रोडोफाइटा (Rhodophyta)–लाल शैवाल

वर्ग (Class)- [1] रोडोफाइसी (Rhodophyceae)
उप-वर्ग (Sub-class)- [1] बैंगिओइडी (Bangioidae) [2] फ्लोरिडी (Florida
गण (Order)- (1) निमेलिओनेल्स (Nemalionales)
(2) सिरेमिएल्स (Ceramiales)

इस पोस्ट में हमने शैवाल का  वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi) के बारे में जाना। जो वनस्पति विज्ञान से जुड़ा एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

उम्मीद करता हूँ कि शैवाल का  वर्गीकरण ( Shaival ka Vargikaran in Hindi) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह पोस्ट अच्छा लगा हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें।

कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi)

 अगर आप विज्ञान के विद्यार्थी हैं तो आपने कवक के बारे में जरुर पढ़ा होगा। कवक एक प्रकार के जीव हैं जो अपना भोजन सड़े गले म्रृत कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। ये संसार के प्रारंभ से ही जगत में उपस्थित हैं। इनका सबसे बड़ा लाभ इनका संसार में अपमार्जक के रूप में कार्य करना है। इनके द्वारा जगत में से कचरा हटा दिया जाता है। कवक को फफूंद भी कहा जाता है। इसे अंग्रेजी में फंगी(Fungi) कहते हैं। क्यूंकि हमारे दैनिक जीवन से जुडी हुयी चीज है इसलिए हमें इसके बारे में जरुर जानना चाहिए तो चलिए जानते हैं कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi) के बारे में , जिससे जुड़े सवाल भी अक्सर परीक्षाओं में देखने को मिल जाते हैं।


कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi)


कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan )

1. कवक सर्वव्यापी (World wild) होते हैं तथा यह अन्य जीवित पोषकों (Living host) पर अथवा सड़े-गले पदार्थों पर मृतोपजीवी (Saprophytic) जीवनयापन करते हैं।

2. इनका शरीर सूकायवत् (Thalloid) होता है अर्थात् इसमें जड़, तना एवं पत्ती का अभाव होता है। सूकाय गैमिटोफाइटिक (Gametophytic) होता है।

3. इनका सूकाय तन्तुवत् (Filamentous) एवं प्राय: शाखित (Branched) होता है तथा यह पट्टयुक्त (Septate) अथवा पट्टरहित (Non-septate) होता है। पट्टरहित सूकाय एककोशिकीय (Unicellular) एवं बहुनाभिकीय (Multinucleated) होता है। ऐसे सूकाय को सीनोसिटिक (Coenocytic) कहते हैं।

4. इनके प्रत्येक तन्तु (Filament) को कवक तन्तु या हाइफी (Hyphae) कहते हैं। बहुत-से हाइफीमिलकर एक कवक जाल (Mycelium) बना लेते हैं। कुछ कवकों में कवक तन्तु (Hyphae) अनुपस्थित होता है तथा वे एककोशिकीय गोलाकार संरचना के रूप में होते हैं। उदाहरण- यीस्ट (Yeast) I

5. इनमें एक स्पष्ट कोशिका भित्ति (Cell wall) पायी जाती है, जो कि फंगस सेल्यूलोज (Fungal cellulose) एवं काइटिन (Chitin) की बनी होती है। काइटिन, एसिटाइल ग्लूकोसैमिन (Acetyl glu- cosamine) का बहुलक  (Polymer) होता है। काइटिन के अलावा कवकों की कोशिकाभित्ति में ग्लूकेन्स  (Glucans) एवं ग्लाइकोप्रोटीन्स (Glycoproteins) भी पाये जाते हैं। कुछ कवकों की कोशिकाभित्ति में मेलानीन (Melanine) नामक वर्णक भी पाये जाते हैं। ये कवकों को पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा प्रदान करती हैं। 

काइटिन एवं ग्लूकेन कवक कोशिका भित्ति के प्रमुख घटक होते हैं। इसके अणु आपस में निश्चित क्रम में जुड़े होते हैं। ये भित्ति को कठोरता, दृढ़ता तथा निश्चित आकार प्रदान करते हैं। कवकों की विभिन्न जातियों में कोशिका भित्ति का रासायनिक संरचना में अंतर पाया जाता है।

इन्हें भी जानें- जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

6. इनमें क्लोरोफिल (Chlorophyll) का अभाव होता है, अत: ये परजीवी (Parasitic), मृतोपजीवी (Saprophytic) अथवा सहजीवी (Symbiotic) जीवनयापन करते हैं।

7. इनकी कोशिकाएँ कशाभिका रहित (Non-flagidate) होती हैं तथा कशाभिका केवल प्रजनन करने वाले जूस्पोर्स (Zoospores) अथवा युग्मकों में ही पाये जाते हैं।

8. इनमें संगृहीत भोज्य पदार्थ (Reserve food materials), तेल की बूंदों (Oil droplet वा ग्लाइकोजन (Glycogen) के रूप में पाया जाता है।

9 इनकी शारीरिक संरचना यूकैरियॉटिक (Eukaryotic) होती है।

10. कवकों में प्रजनन तीनों विधियों के द्वारा होता है-

(i) वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction) 

(ii) अलैंगिक प्रजनन (Asexual reproduction)

(iii) लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction)।

11 वर्धी प्रजनन प्रायः विखण्डन (Fragmentation), द्विभाजन (Binary fission), मुकुलन (Budding) एवं स्क्लेरोशिया (Sclerotia) के द्वारा होता है।

12. अलैंगिक प्रजनन प्राय: जूस्पोर्स (Zoospores), स्पोर्स (Spores), कोनिडिया (Conidia), क्लैमाइडोस्पोर्स (Chlamydospores) एवं ओइडियोस्पोर्स (Oidiospores) के द्वारा होता है।

13. लैंगिक प्रजनन चलयुग्मकी संयुग्मन (Planogametic copulation), युग्मकधानी सम्पर्क (Game- tangial contact), युग्मकधानी संयुग्मन (Gametangial copulation), स्पर्मेटाइजेशन (Spermatization), सोमेटोगैमी (Somatogamy) अथवा आटोगैमी (Autogamy) आदि विधियों द्वारा होता है।

14. स्पष्ट पीढ़ी एकान्तरण (Alternation of generation) पाया जाता है।

 कवकों का पोषण(Kavkon ka Poshan)

कवक परपोषी (Heterotrophic) प्रकृति के होते हैं। यह अपना भोजन या तो जीवित पोषकों (Living hosts) से प्राप्त करते हैं, या तो सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों से प्राप्त करते हैं। इसमें क्रमशः परजीवी (Parasites) तथा मृतोपजीवी (Saprophytes) कहलाते हैं।

(a) मृतोपजीवी (Saprophytes):- ये सड़े-गले कार्बनिक पदार्थों पर उगते हैं। उदाहरण- म्यूकर (Mucor), राइजोपस (Rhizopus), पेनीसीलियम (Penicillium) तथा परजिलस (Aspergillus) |

(b) परजीवी (Parasites):-ये कवक जीवित पोषकों से ही अपना पोषक प्राप्त करते हैं तथा इन पोषकों पर रोग उत्पन्न करते हैं। इन्हें निम्न प्रकारों में विभक्त किये जा सकते हैं-

(1) अनिवार्य परजीवी (Obligate parasites):- ये अपने विकास हेतु जीवित पोषकों (Living hosts) पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण-पक्सीनिया (Puccinia) |

(2) विकल्पी मृतोपजीवी (Facultative saprophytes):- इस प्रकार के परजीवो कवक प्रायः जीवित पोषकों (Living hosts) पर अपना जीवन व्यतीत करते हैं, किन्तु आवश्यकता पड़ने पर कुछ समय के लिए ये अपना जीवन मृतोपजीवी (Saprophytes) की भाँति व्यतीत करते हैं, जैसे-टेफराइना डीफोर्मेन्स (Taphrina deformans) तथा स्मट्स (Smuts) आदि।

(3) विकल्पी परजीवी (Facultative parasites):- कुछ परजीवी कवक अपना जीवन मृतोपजीवियों की भाँति व्यतीत करते हैं, किन्तु परिस्थितिवश ये कवक किसी उपयुक्त पोषक पर परजीवी की भाँति जीवन व्यतीत करने लगते हैं, जैसे—पीथियम (Pithium), फ्यूजेरियम (Fusarium) आदि।

परजीवी कवक पोषकों से अपना भोजन चूषकांगों (Haustoria) द्वारा अवशोषित करते हैं। कुछ कवकों के चूषकांग, गोल घुण्डीदार (Knob shaped) होते हैं, जैसे-एल्ब्यूगो (Albugo) अथवा कुछ कवकों के चूषकांग शाखित होते हैं, जैसे- पेरोनोस्पोरा (Peronospora) आदि।

सहजीवी (Symbiotic)

कुछ कवक उच्च श्रेणी के पौधों के साथ रहते हैं जिनसे दोनों जीवों को लाभ होता है, अत: इसके जीवन को सहजीवन कहते हैं तथा इसमें पाये जाने वाले कवक सहजीवी (Symbiotic) कहलाते हैं।

पढ़ें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

कवकों का प्रजनन (Reproduction of Fungi)

कवकों में जनन तीन विधियों द्वारा होता है-

1. वर्धी प्रजनन (Vegetative reproduction)

2. अलगिक प्रजनन (Asexual reproduction)

3. लैंगिक प्रजनन (Sexual reproduction)

1. वर्धी प्रजनन अथवा कायिक जनन (Vegetative Reproduction)

वर्धी प्रजनन में कवक जाल का कोई भी हिस्सा जनक शरीर से अलग होकर नये कवक का निर्माणक है। इस विधि में कवक तन्तुओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं होते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं-

(1) खण्डन (Fragmentation):- इस विधि में कवकतन्तु कई खण्डों में टूट जाता है और प्रत्येक (Fragment) पुनः वृद्धि करके नया कवक जाल बनाता है।

(2) विभाजन (Fission):- इस विधि में एक कोशिकीय कवक में वृद्धि होती है फिर कोशिका संकुचन से दो बराबर आकार की संतति कोशिकाएँ। बनती हैं।

(3) मुकुलन (Budding):- इस विधि द्वारा जनन एककोशिकीय कवकों में पाया जाता है। इस विधि में जनक कोशिका से एक अतिवृद्धि के रूप में मुकुलन (Bud) दत्पन्न होती है। मुकुलन जनक कोशिका से पृथक् होकर एवं वृद्धि करके एक स्वतंत्र जीव को जन्म देती है।

(4) क्लैमाइडोबीजाणु (Chlamydo- spores):- कुछ कवकों में कवकतन्तुओं की कोशिकाएँ मोटी भित्ति वाले बीजाणुओं में बदल जाती हैं। इन बीजाणुओं को क्लैमाइडोवीजाणु (Chlamydospores) कहते हैं। अनुकूल परि- स्थतियों में बीजाणु अंकुरित होकर नया कवकतन्तु बना देते हैं।

2. अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction)

इनमें बीजाणुओं (Spores) का निर्माण बिनासंलयन के कवकतंतुओं पर सीधे ही हो जाता है। अलैंगिक प्रजनन निम्न विधियों द्वारा होता है-

(i) कोनिडिया द्वारा (By conidia):- ये अचल, गोल, पतली भित्ति वाली एवं एकनाभिकीय संरचना होती है। यह एक विशेष कवक शाखा है, जिसे कर्णाधार (Conidiophore) कहते हैं पर बहिर्जात Conidiophores (Exogenous), रूप से श्रृंखला में विकसित होती है। अनुकूल परिस्थितियों में यह अंकुरित होकर नया कवक तंतु बनाते हैं। उदाहरण— ऐस्परजिलस (Aspergillus) एवं पेनिसिलियम् (Penicillium)।

(ii) चल बीजाणुओं द्वारा (By zoospores):- जूस्पोर्स का निर्माण प्रायः निम्नवर्गीय कवक सदस्यों मे होता है। जूस्पोर्स का निर्माण जूस्पोरेंजियम (Zoosporangium) अथवा बीजाणुधानी में अंतर्जात (Endogenous) रूप से होता है। इन बीजाणुओं में एक या दो कशाभिका (Flagella) पाया जाता है। उदाहरण- ऐक्लिया (Achlya), ऐल्ब्यूगो (Albugo), पाइथियम (Pythium), तथा फाइटोफ्थोरा (Phytophthora) ।

(iii) ऐप्लानोस्पोर्स (Aplanospores):- ये विशेष प्रकार की बीजाणुधानी में बनने वाले कशाभिका रहित बीजाणु होते हैं। उदाहरण-म्यूकर (Mucor) 

(iv) बेसिडियोस्पोर्स (By basidiospores):- बेसिडियोस्पोर्स, बेसिडियम में बहिर्जात (Exogenous) रूप से उत्पन्न होने वाले मोओस्पोर्स हैं। यह अंकुरित होकर नया कवकतन्तु बनाते हैं। उदाहरण-पक्सीनिया

इसे भी पढ़ें- बीज प्रसुप्ति क्या है? प्रकार, प्रभावित कारक, महत्व (Seed dormancy in Hindi)

लैंगिक जनन (Sexual Reproduction)

ड्यूटेरोमाइसिटीज (Deuteromycetes) वर्ग को छोड़कर सभी कवकों में लैगिक जनन पाया जाता है। लैंगिक जनन दो युग्मकों के संलयन (Fusion) से होता है। लैंगिक जनन की क्रिया में तीन स्पष्ट अवस्थाएं प जाती हैं, जो निम्नलिखित हैं-

(i) प्लाज्मोगेमी (Plasmogamy):- यह लैंगिक जनन की प्रथम अवस्था है। इसमें दो युग्मकों के जीवद्रव्य का संलयन होता है। इस क्रिया में दोनों युग्मकों के केन्द्रक एक कोशिका में एक-दूसरे के पास आ जाने हैं, लेकिन आपस में संलयन नहीं करते हैं।

(ii) केन्द्रक संलयन अथवा कैरियोगेमी (Karyogamy):- यह लैंगिक जनन की द्वितीय अवस्था है। इसमें युग्मकों के दोनों अगुणित केन्द्रकों का संलयन होता है और द्विगुणित युग्मनज (Zygote) बनता है।

(iii) अर्धसूत्री विभाजन (Meiosis):- यह लैंगिक जनन की तीसरी एवं अन्तिम अवस्था है। इसमें द्विगुणित केन्द्रक में अर्धसूत्री विभाजन होता है जिसके फलस्वरूप गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है।और पुनः अगुणित अवस्था प्राप्त होती है।

लैंगिक जनन के प्रकार (Types of sexual reproduction)– कवकों में लैंगिक जनन निम्न के प्रकार होते हैं-

1. चलयुग्मकी संयुग्मन (Planogametic copulation):- इस प्रकार के संयुग्मन में संलयन करते वाले युग्मक चल होते हैं तथा इन्हें चलयुग्मक (Planogamete) कहते हैं। इनके संलयन से द्विगुणित युग्मनज का निर्माण होता है । संलयित होने वाले युग्मकों की सरंचना एवं व्यवहार के आधार पर चलयुग्मको संयुग्मन तीन प्रकार का होता है-

(i) समयुग्मकी (Isogamous):- इसमें भाग लेने वाले युग्मक आकार एवं आकृति में समान होते हैं, शरीर क्रियात्मक दृष्टि से भिन्न होते हैं। ऐसे युग्मकों को समयुग्मक (Isogametes) कहते हैं।

(ii) असमयुग्मकी (Anisogamous):- इसमें भाग लेने वाले युग्मक आकारिकीय तथा शरीर क्रियात्मक दोनों तरह से भिन्न होते हैं। ऐसे युग्मकों को असमयुग्मक (Anisogametes) कहते हैं। इनमें नर युग्मक मादा युग्मक की तुलना में छोटे परन्तु अधिक सक्रिय होते हैं।

(iii) विषमयुग्मकी (Oogamous):-  इनमें भाग लेने वाले युग्मकों में से नर युग्मक चल होता है तथा मादा युग्मक (अण्ड) अचल होता है। इसमें भी युग्मक आकारिकीय तथा शरीर क्रियात्मक दोनों तरह से भिन्न होते हैं।

2. युग्मकथानीय सम्पर्क (Gametangial contact):- इसमें नर तथा मादा युग्मकधानियाँ (Gam- etangial) एक-दूसरे के सम्पर्क में आती हैं। नर युग्मकधानी (Antheridium) से केन्द्रक अथवा नर युग्मक मादा युग्मकधानी (Oogonium) में एक नलिका द्वारा या छिद्र के द्वारा स्थानान्तरित हो जाता है तथा नर एवं मादा केन्द्रकों का संलयन हो जाता है।

3. युग्मकथानीय संयुग्मन (Gametangial copulation) :- इसमें नर तथा मादा युग्मक धानियों केसम्पूर्ण पदार्थों का संलयन होता है। इस विधि में दो युग्मकधानियाँ सम्पर्क में आती हैं तथा इनके बीच की भित्ति घुल जाती हैं तथा दोनों के जीवद्रव्य एवं केन्द्रक आपस में मिल जाते हैं।

4. अचलपुंमणु युग्मन (Spermatization):- कवकों के कुछ प्रगत वंशों में लैंगिक अंगों का पूर्ण अभाव होता है। इनमें लैंगिक क्रिया अचल पुंमणु (Spermatia = नर युग्मक) तथा विशिष्ट ग्राही कवक तन्तुओं ( Recetive hyphae = मादा युग्मक) द्वारा पूर्ण होती है। अचल पुंमणु वायु, जल अथवा कीटों द्वारा ग्राही कवक तन्तु तक पहुँचते हैं तथा उससे चिपक जाते हैं। पुंमणु एवं ग्राही कवक तन्तु के मध्य की भित्ति घुल जाती हैं जिसमें पुंमणु के अन्दर का पदार्थ ग्राही कवकतन्तु में चला जाता है। पुंमणु और ग्राही कवक तन्तु के केन्द्रक बिना संलयित हुए जोड़ी बना लेते हैं, इसे केन्द्रकयुग्म (Dikaryon) कहते हैं।

5. काययुग्मन अथवा सोमेटोगेमी (Somatogamy):- कवकों के कुछ प्रगत वंशों, विशेषकर ऐस्कोमाइसिटीज एवं बेसीडियोमाइसिटीज के सदस्यों में लैंगिक अंगों का पूर्ण अभाव होता है। इन कवकों में दो सामान्य कायिक कोशिकाएँ लैंगिक जननांगों के रूप में कार्य करती हैं। इनके संलयन से दोनों कोशिकाओं के केन्द्रक पास आकर केन्द्रकयुग्म (Dikaryon) बना लेते हैं।

FAQs:-

Q. कवक रोग कैसे उत्पन्न करते हैं?

Ans:- कवक कोशिकाएं ऊतकों पर आक्रमण कर सकती हैं और कवक के कार्य को बाधित कर सकती हैं,  प्रतिरक्षा कोशिकाओं या एंटीबॉडी द्वारा प्रतिस्पर्धी चयापचय, विषाक्त मेटाबोलाइट्स (उदाहरण के लिए कैंडिडा प्रजातियां चयापचय के दौरान एसीटैल्डिहाइड, एक कार्सिनोजेनिक पदार्थ का उत्पादन कर सकती हैं)

Q. कवक रोग क्या है?

Ans:- फंगल संक्रमण, या माइकोसिस, कवक के कारण होने वाली बीमारियां हैं।

Q. कवक में किसकी कमी होती है?

Ans:- कवक में क्लोरोफिल की कमी होती है और प्रकाश संश्लेषण में संलग्न नहीं होते हैं।

इस पोस्ट में हमने कवक के लक्षण , पोषण और प्रजनन के बारे में जाना। जो परिक्षापयोगी है।

उम्मीद करता हूँ कि कवकों के लक्षण (Kavkon ke lakshan in Hindi) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पोस्ट को शेयर अवश्य करें।


जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

हम दैनिक जीवन में अक्सर जीवाणु के बारे में सुनते रहते हैं जिसे अंग्रेजी में बैक्टीरिया(Bacteria) कहते हैं। जिसे हम सभी नुकसान कारक ही मानते हैं । लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस जीवाणु के लाभ भी हो सकते हैं। इस पोस्ट में हम जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria) के बारे में जानेंगे। जिसमे जीवाणु से होने वाले लाभ और हानि के बारे में बताया जा रहा है।


जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria)

जीवाणु हमारे लिए विभिन्न प्रकार से उपयोगी होने के साथ-साथ हानिकारक भी होते हैं। अत: जीवाणु के
आर्थिक महत्व का अध्ययन हम निम्नलिखित दो शीर्षकों के अन्तर्गत करेंगे-
(A) लाभदायक जीवाणु, (B) हानिकारक जीवाणु

(A) लाभदायक जीवाणु (Useful Bacteria)

(a) कृषि के क्षेत्र में (In field of agriculture) - ये भूमि की उर्वरता को निम्नलिखित क्रियाओं के द्वारा
बढ़ाते हैं—
(i) N, स्थिरीकरण द्वारा (By N2 fixation)- कुछ जीवाणु भूमि में स्वतन्त्र रूप से जैसे- क्लॉस्ट्रिडियम
(Clostridium) और ऐजोटोबैक्टर (Azotobactor) या लेग्यूमिनोसी कुल की जड़ों में जैसे- राइजोबियम
(Rhizobium) उपस्थित रहकर N, स्थिरीकरण के द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।
(ii) नाइट्रीकारी जीवाणु द्वारा (By nitrifying bacteria) - ये अमोनिया को नाइट्राइट और नाइट्राइट
को नाइट्रेट में बदलकर भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं। उदाहरण— नाइट्रोसोमोनास (Nitrosomonas
नाइट्रोवॅक्टर (Nitrobactor) |
(iii) मृत जीवों को सड़ाना (Decomposition of death organism) – मृत जीवों को सड़ाकर अपघटक भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाते हैं।

(b) डेयरी उद्योग में (In dairy industry)- दूध में उपस्थित लैक्टिक ऐसिड जीवाणु दूध को लैक्टोर
शर्करा को दही या लैक्टिक ऐसिड में बदलते हैं, जिससे मक्खन प्राप्त किया जाता है।

(c) सिरका उद्योग में (In vineger industry)- सिरका उद्योग में ऐसीटोबैक्टर ऐसीटी (Acetobactar
acei) जीवाणु के द्वारा शर्करा के घोल को सिरके में बदला जाता है।

(d) रेशे की रेटिंग में (In ratting of fibres)- विभिन्न पौधों के तनों के रेशों को अलग करने को रेटि
कहते हैं। जूट, पटसन, सन, अलसी इत्यादि के रेशों को, इनके पौधों को पानी में सड़ाकर प्राप्त किया जाता है
इस क्रिया में जलीय जीवाणु क्लॉस्ट्रिडियम ब्यूटीरिकम (Clostridium butyricum) कार्य करती है।

(e) तम्बाकू और चाय उद्योग में (In tobacco and tea industry )- इन दोनों उद्योगों में चाय तप
तम्बाकू की पत्तियों को जीवाणुओं के द्वारा किण्वित कराया जाता है तथा अच्छी खुशबू (Flavour), क्वालिटी के
चाय व तम्बाकू प्राप्त की जाती है। मायकोकोकस कॉण्डिसैन्स (Mycococcus condisans) द्वारा चाय क
पत्तियों पर किण्वन क्रिया द्वारा क्यूरिंग (Curing) किया जाता है।

(f) चमड़ा उद्योग में (In leather industry)- चमड़ा उद्योग में वसा आदि पदार्थों का विघटन जीवाणु
के द्वारा कराया जाता है।

(g) औषधि उद्योग में (In medicine industry)- दवा उद्योग में कुछ प्रमुख ऐण्टिबायोटिक (प्रतिजैविक
तथा कुछ प्रमुख प्रकीण्व जीवाणुओं से प्राप्त किये जाते हैं और बीमारियों को ठीक करने के लिए प्रयोग में त
जाते हैं। प्रतिजैविक (Antibiotic) सूक्ष्मजीवों (Microorganism) द्वारा उत्पन्न जटिल रासायनिक पदार्थ हैं,
दूसरे सूक्ष्मजी़ीवों को नष्ट करते हैं। जीवाणुओं द्वारा उत्पादित कुछ ऐण्टिबायोटिक निम्नलिखित हैं-

(i) पॉलिमिक्सिन (Polymyxin)- इसे बैसिलस पॉलिमिक्सा (Bacillus polymyxa) नामक ग्राम
ऋणात्मक जीवाणु से प्राप्त किया जाता है।
उपर्युक्त के अलावा कुछ जीवाणु हमारे शरीर में भी सहजीवी रूप में पाये जाते हैं। जैसे-ई. कोलाई (E,
col) हमारे आँत में विटामिन संश्लेषण का कार्य करता है। कुछ जीवाणु सड़े-गले पदार्थों को अपघटित करके
हमारी मदद करते हैं।

(ii) बैसिट्रेसिन (Bacitracin)- इसे बैसिलस सबटिलिस (B. subtilis) नामक ग्राम धनात्मक जीवाणु
से प्राप्त किया जाता है।

(B) हानिकारक जीवाणु (Harmful Bacteria)

इनकी हानिकारक क्रियाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) बीमारियाँ (Diseases)- ये मनुष्य, जानवरों तथा पौधों में बीमारियाँ पैदा करते हैं।
(a) जन्तुओं की बीमारियाँ (Animal diseases)- सामान्यतः मनुष्य तथा दूसरे जन्तुओं के शरीर में
पाये जाने वाले परजीवी जीवाणु कोई न कोई बीमारी फैलाते हैं। कुछ प्रमुख जीवाणु रोग तथा उनके कारक
निम्नलिखित हैं-

रोग का नाम- ट्यूबरकुलोसिस (T.B.)
कारक जीवाणु का नाम- मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis)

रोग का नाम- प्लेग (Plague)
कारक जीवाणु का नाम- पाश्चुरेला पेस्टिस (Pasteurella pestis)

रोग का नाम- डिफ्थीरिया (Diphtheria)
कारक जीवाणु का नाम-  कोरिनीबैक्टीरियम डिफ्थेरी (Corynebacterium diphtheriae)

रोग का नाम- टायफॉइड (Typhoid)
कारक जीवाणु का नाम- साल्मोनेला टायफी (Salmonella typhii)

रोग का नाम- कॉलरा (Cholera)
कारक जीवाणु का नाम- विब्रियो कॉलेरी(Vibrio cholerae)

रोग का नाम- निमोनिया (Pneumonia)
कारक जीवाणु का नाम- डिप्लोकोक्कस न्यूमोनी (Diplococcus pneumoniae)

रोग का नाम- भोजन जहर (Food Poisoning)
कारक जीवाणु का नाम- क्लॉस्ट्रिडियम बाटुलिनम (Clostridium botulinum)

रोग का नाम- कुष्ठ रोग (Leprosy)
कारक जीवाणु का नाम-  मायकोबैक्टीरियम लेप्री (Mycobacterium leprae)

रोग का नाम- टीटेनस (Lock Jaw)
कारक जीवाणु का नाम- क्लॉस्ट्रिडियम टिटैनी (Clostridium tetani)


रोग का नाम- सिफिलिस (Syphilis)
कारक जीवाणु का नाम- ट्रीपोनीमा पैलिडुम (Treponema pallidum)

रोग का नाम- मेनिन्जाइटिस (Meningitis)
कारक जीवाणु का नाम- नीसेरिया मेनिंजीटाइडिस (Neisseria meningitides)

जानवरों के रोग 

रोग का नाम- भेड़ का एन्थ्रेक्स रोग
कारक जीवाणु का नाम- बैसिलस एन्थेसिस (Bacillus anthracis)

रोग का नाम- जानवरों का काला पैर रोग (Black leg of animals)
कारक जीवाणु का नाम- क्लॉस्ट्रिडियम चूवी (Clostridium chauvei)

पौधों की बीमारियाँ

रोग का नाम- नीबू का कैंकर रोग (Citrus canker)
कारक जीवाणु का नाम- जन्थोमोनास सिट्टी (Kanthomonas citri)


रोग का नाम- ब्लाइट ऑफ राइस (Blight of rice)
कारक जीवाणु का नाम- जैन्थोमोनास ओराइजी (Xoryzae)

रोग का नाम- आलू का शिथिल रोग (Potato wilt)
कारक जीवाणु का नाम- स्यूडोमोनास सोलनेसीरम (Pseudomonas solanacearum)

रोग का नाम- वीन ब्लाइट (Bean blight)
कारक जीवाणु का नामजैन्थोमोनास फेजिओली (X plhaseoli)

रोग का नाम- काटन का ब्लैक आर्म रोग (Black arm of cotton)
कारक जीवाणु का नाम- जन्थोमोनास मालवेसीरम (X malyacearum)

रोग का नाम- पोटेटो स्कैब (Potato scab)
कारक जीवाणु का नाम- स्ट्रोटोमाइसिस स्कैबीज (Streptomyces scabies)

(2) विनाइट्रीकरण (Denitrification)- विनाइट्रीकरण वह क्रिया है, जिसमें उपयोगी नाइट्रोजन के
यौगिकों को पुनः अमोनिया और N, में बदल दिया जाता है। कुछ जीवाणु इस क्रिया के द्वारा भूमि की उर्वरा शक्ति
को कम करते हैं। कुछ जीवाणु जैसे- थायोबैसिलस डीनाइट्रीफिकेन्स (Thiopbacillus denitrificaus
और माइक्रोकोकस डीनाइट्रीफिकेन्स (Micrococus denitrificans) नाइट्रेट को स्वतन्त्र नाइट्रोजन
अमोनिया में बदल देते हैं।

(3) भोजन को विषावत करना (Food poisoning)- कुछ जीवाणुओं द्वारा भोज्य पदार्थों के उत्तयो
को विषैले पदार्थों में बदल दिया जाता है, जिससे भोजन जहरीला हो जाता है और खाने वाले की मृत्यु हो जह
है। क्लॉस्ट्रिडियम बॉटुलिनम (Clostridium botulinum) मांस एवं दूसरे अधिक प्रोटीन वाले शाकों को ऋ
कर देता है।

उपर्युक्त लाभकर तथा हानिकर क्रियाओं के आधार पर जीवाणु हमारे मित्र एवं शत्रु दोनों हैं।

इस पोस्ट में हमने जीवाणुओं का आर्थिक महत्त्व (Economic Importance of Bacteria) के बारे में जाना। जो कॉलेज की परीक्षाओं में एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

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मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee)

क्या आपको कभी मधुमक्खी ने काटा है? क्या आप जानना चाहते हैं की मधुमक्खी विष क्या होता है? मधुमक्खी के काटने पर इसका उपचार(treatment) कैसे करें? ये जानने के नीचे लिखे content आपके लिए बहुत उपयोगी होने वाला है.

मधुमक्खी की विषाक्तता (Toxicity of - honey bee)– 



भारतवर्ष में मधुमक्खियों की पाँच जातियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें एपिस डार्सेटा (Apis dorsata), एपिस इंडिका (Apis indica), एपिस फ्लोरिया (A. flora), मेलिपोना इरिडिपेन्निस (Melipona iridipennis) तथा एपिस मेलिफेरा (A. mellifera), इन मधुमक्खियों में बहुरूपता (Polymorphism) एवं श्रम विभाजन (Divison of labour) स्पष्ट एवं अच्छी विकसित अवस्था में पाया जाता है। 

बहुरूपी प्रकारों की रानी (Oueen), एवं श्रमिक (Workers) मधुमक्खियों में दंशक उपकरण (Sting ap paratus) पाया जाता है। दंश उपकरण में एक जोड़ी अम्लीय विष ग्रंथि (Acid venom gland) एक क्षारीय ग्रंथि (AI kaline gland) एक मजबूत पेशीय बल्ब तथा काइटिन युक्त डंक (Chtinized sting) पाए जाते हैं ।

मधुमक्खी विष (Honey bee poison)  

मधुमक्खी के विष में हिस्टामीन (Histamine) एवं मैलिटिन (Melli tine) नामक विशिष्ट प्रोटीन पाए जाते हैं। इन प्रोटीन्स के अतिरिक्त हायलूरोनाइडेज़ (Hyluronidase), फॉस्फो लाइपेज (Phosphohlipase) ए एवं बी, ऐपामीन (Apa mine) एवं पेप्टाइडेज (Peptidaze) पाए जाते हैं । 

विष के लक्षण (Symptoms of Venom ) 

मधुमक्खी एवं बर्र कीट जब किसी भी मनुष्य को काटते हैं तब डंक की सहायता से वह घाव बनाता है और घाव के अंदर गहराई तक जाकर यह डंक विष को अंदर पहुँचाने में सहायता करता है। विष के शरीर में प्रवेश करने पर निम्नलिखित लक्षण परिलक्षित होते हैं.  

  1.  काटने वाले भाग में दर्द, लालिमा तथा सूजन दिखाई देता है। 
  2.  दर्द युक्त एवं कभी-कभी घातक अभिक्रियाएँ होती 
  3.  मुख, गले, चेहरे, गर्दन या भुजाओं पर लेरिंग्स (Larynx) या ग्रसनी (Pharynx) का सूजन तथा अवरोध निर्मित हो जाता है।

मक्खियों के द्वारा अनेकों डंक के प्रहार से पेट में विसंगति एवं उल्टी होना तथा डायरिया के साथ मूर्छा होने की क्रिया दिखाई देती है। यदि दंश घातक नहीं होता है, तब इसका प्रभाव 24 घंटों तक रहता है। तीव्र अभिक्रियाओं की स्थिति से 2-15 मिनट में मृत्यु हो सकती है।

उपचार (Treatment) 

  1.  डंक को शरीर से बाहर निकाल देना चाहिए तथा वहाँ पर चीरा लगाकार टिंचर आयोडीन लगा देना चाहिए । 
  2.  स्थानीय भाषा में दंश पर एवं चारों ओर एन्टीहिस्टामिन (Antihistamine) औषधि का उपयोग करना चाहिए। 
  3.  बहुगुणित डंक दंश में हाइड्रोकार्टिसोन (Hydro cortisone) को अंतःशिरायी (Intravenosuly) रूप से देने से लाभ होता है। 
  4.  पित्ती एवं सूजन में कैल्सियम को अंतः शिरायी रूप (Intravenously) देने से लाभ होता है ।
इस पोस्ट में हमने मधुमक्खी के विष, मधुमक्खी के काटने से क्या होता है उसके के क्या उपाय हैं के बारे में जाना।

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स्तनधारियों के श्वसन (Mammalian respiration)

हेलो दोस्तों , इस आर्टिकल में हम स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जानने वाले हैं। आपने श्वसन तंत्र के बारे में सुना होगा और आप जानते भी होंगे क्यूंकि मनुष्य को जीवित रहने के लिए सबसे जरुरी सांस लेना है। और श्वसन तंत्र श्वास से सम्बन्धित है। अगर आप श्वसन तंत्र के बारे में नहीं भी जानते हैं तो आपको श्वसन तंत्र के बारे में जरुर जानना चाहिए।  इस आर्टिकल में स्तनधारियों के श्वसन के बारे में जानकारी दी जा रही है। 

स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)


स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)

स्तनधारियों सहित समस्त स्थलीय तथा कुछ जलीय वर्टीब्रेट प्राणीयों में वायवीय श्वसन हेतु मुख्य श्वसनांग एक जोड़ी फेफड़े तथा श्वसन मार्ग बाह्य नासाछिद्र, नासिका वेश्म (Nasal number)अतनासाचिद्र (Internal nares) ग्रसनी (Pharynx), श्वासनलिका (Trachea) एवं श्वसन नलिकाएँ श्वसन तंत्र का निर्माण करते हैं। स्तनियों में एक जोड़ी कोमल गुलाबी, लचीली सक्षम तथा स्पंजी फेफड़े वक्षीय गुहा के मिडियास्टिनम के दोनों ओर एक-एक पाये जाते हैं। 

श्वसन मार्ग (Respiratory path):- श्वसन मार्ग वातावरण O युक्त गैसों को फेफड़े तक ले जाने तथा फेफड़े से CO, युक्त गैसों को वापस शरीर से बाहर निकालने का कार्य करते हैं ये अंग निम्नानुसार होते हैं।

इन्हें भी जानें- 100+ जीव विज्ञान प्रश्न (Biology question in hindi)

(i) बाह्य नासाछिद्र (External nares) - मुख में ठीक एक जोड़ी बाह्य नासाछिद्र उपस्थित होते हैं जो आपस में नासा पट्ट (Nasal septam) द्वारा पृथक होते हैं।

(ii) नासिका वेश्म (Nasal chamber):- प्रत्येक बाह्य नाशाछिद्र एक नालिकाकार श्वसन मार्ग में खुलती है जो प्रछाण (Vestibule) व प्राण भाग (Olfactory) दो भागों में विभक्त होती है और ग्रसनी के पृष्ठ भाग नेसोफैरिंग्स (Nassopharynx) में खुलती है नासिका वेश्म या नासा मार्ग में कठोर रोम या वाइब्रिसी (Vibrisae) पाये जाते हैं जो कुल तथा अन्य कणों को रोकने का कार्य करते हैं जबकि नासा मार्ग के श्लेष्मीकला (Mucous membrane ) को आवरण मार्ग को नम बनाये रखने तथा बाह्य वायु के तापमान को शरीर के आंतरिक तापमान के बराबर लाने का कार्य करते हैं।

(iii) ग्रसनी (Phanynx):- यह श्वसन तंत्र तथा आ नाल का संयुक्त भाग होता है। जिसमें तीन भाग नेसोफेक्ि ओरोफैरिक्स एवं लैरिंगोफैरिक्स में होते हैं। इसके नेसोफैरिक्स भाग में आंतरिक नासाछिद्र खुलते हैं तथा निचला भाग लैरिंगोफैरिक्स में एक कष्ठ या लैरिक्स (Larynx) नामक संरचना पायी जाती है जो थायरॉइड (Thyroid), क्रिकॉयड (Cricoid) तथा एरिटिनॉयड (Arytenoid) नामक उपास्थियों से मिलकर बनी होती है। लैरिंक्स से वायु के एक निश्चित दाब के साथ बहाव से स्तनियों में विभिन्न प्रकार के आवाज उत्पन्न होते हैं तथा मनुष्य में भाषा का विकास हुआ है। 

(iv) श्वासनलिका (Trachea):- यह लैरिक्स से जुड़ी हुई एक अर्द्धपारदर्शक उपस्थित नलिका है जो ग्रीवा से न्यलकर वृत्तीय गुहा में पहुंचती है और दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है जिन्हें श्वासनलिकाएँ या ब्रोंकाई Bronchiकहते हैं। प्रत्येक ब्रोंकाई अब अपने ओर के फेफड़े में प्रवेश करती है और फेफड़े के भीतर छोटी-छोटी शाखाओं में विभक्त होकर श्वसनीय वृक्ष (Bronchial tree) का निर्माण करती है।

सरीसृपों में श्वासनाल की लम्बाई ग्रीवा या गर्दन की लम्बाई के अनुसार अलग-अलग होती है। पत्तियों में यह असामान्य रूप से अधिक लम्बी होती है तथा कॉर्टिलेजिनस ट्रेकियल रिंग्स (Cartilaginous tracheal rings) द्वारा घिरी रहती है एवं कैल्सीफाइड तथा आसीफाइड होती है। मुख्य श्वसनांग या फेफड़े (Main respiratory organs or lung) स्तनियों में फेफड़े अत्यंत विकसितस्पंजी तथा प्रत्यास्थ संरचना होती है जो बाहर से कई पालियों में स्पष्ट रूप से विभाजित होती है। मनुष्य तथा सभी स्तनियों के बाँये फेफड़े में समान्यतः 04 पाली (Lobes) होती है

जबकि दाँये फेफड़े में मनुष्यों में तीन पाली व खरगोश में 04 पाली होती हैबाँये फेफड़े का अगला पिण्ड छोटा होता है तथा इसे बाँया अग्र पिण्ड (Left anterior lobe) और पीछे वाला पिण्ड लगभग तीन गुना बड़ा होता है तथा उसे वाम पश्च पिण्ड (Left posterior lobe) कहते हैं। दाँये फेफड़े के पिण्ड (Lobes) क्रमशः आगे से पीछे की ओर इस प्रकार होते हैं

1. अग्र एजाइगस पिण्ड (Anterior Azygos Lobe):- यह सबसे छोटा होता है। 

2. दायाँ अग्र पिण्ड (Right posterior Lobe):- यह पहले से कुछ बड़ा होता है।

3. दायाँ पश्च पिण्ड (Right Posterior Lobe):- यह सबसे बड़ा होता है। 

4. पश्च एजाइगस (Posterior azygos):- यह अनं एजाइगस से कुछ बड़ा होता है। स्तनी का फेफड़ा काफी मात्रा में गैसों के आदान-प्रदान के लिए बना होता है


स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)


स्तनियों के फेफड़ा एक जटिल शाखित श्वसन वृत्त के समान होते हैं जो भीतरी ब्रोंकस के बारबार विभाजन से बनती है। विभाजित पतली शाखाएँ ब्रोंकियोल्स कहलाती है, ब्रॉकियोल्स विभाजित होकर एल्वियोलर डक्ट बनाती है। प्रत्येक एल्वियोलर डक्ट के अन्तिम सिरे फूलकर छोटे-छोटे वायुकोष या एल्विओलाई (Air sacs or Alveoli) बनाते हैं। एल्विओलाई के चारों ओर पतली रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है।

फेफड़े के चारों ओर एक दोहरे पर्त वाली झिल्ली प्लूरा (Pluera) पायी जाती है। प्लूरा की एक पर्व फेफड़े से तथा दूसरी पतं वृत्तीय गुहा (Thorasic cavity) की भीतरी सतह से चिपकी रहती हैप्लूरा के दोनों स्तरों के मध्य एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिससे फेफड़ों के फूलने व सिकुड़ने पर रगड़ नहीं होती है।

पढ़ें- जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology)

सहायक श्वसनांग (Accessory Respiratory organ):- यद्यपि जलीय कशेरुकियों के मुख्य श्वसनांग गिल्स और स्थलीय कशेरुकियों के फेफड़े होते हैं फिर भी अन्य उपस्थित संरचनाएँ भी जल या वायु से सीधे गैसों का आदान-प्रदान करने में सहायक होते हैं। इन्हें सहायक श्वसनांग कहते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं

Respitory organ of mammals


 1. पीतक कोष और ऐलेंटॉइस (yolk sac and allantois):– लगभग सभी भौणिक कशेरुकी भोजन के लिए पीतक के अवशोषण के अतिरिक्त पीतक कोष का उसके पीतक संवहन सहित गैसीय विनिमय के लिए उपयोग करते हैंये गर्भाशय की भित्ति के संपर्क में होने से श्वसन सांधन (Respiratory device) का कार्य करते हैं। ऐलेंटॉइस भी अस्थायी श्वसनांग बन जाती है। 

2. त्वचा (Skin):- उभयचरों की गीली व नम त्वचा के द्वारा श्वसन क्रिया होती है। जो कि सामान्य बात है जबकि सैलामैंडर्स जैसे जन्तु श्वसन के लिए पूर्णतया त्वचा पर ही निर्भर रहते हैं- 

3. एपिथीलियल अस्तर (Epithelial Ciring):- कुछ मछलियों और जलीय उभयचरों में अवस्कर, मलाशय आंत्र तथा मुख ग्रसनी का एपिथीलियल अस्तर अत्यंत संवहनीय होता है। जो श्वसन में सहायक होता है।

4. अवस्कर आशय (Cloacal bladders):- यह सहायक आशय विशेषकर अधिक समय तक जलमग्न रहने पर महत्वपूर्ण श्वसनांगों का कार्य करते हैं

5. तरण आशय (Swim bladders):- कुछ निम्न श्रेणी की मछलियों में फेफड़े के समान कार्य करने वाली अन्य महत्वपूर्ण संरचना तरण आशय होते हैं। इनके द्वारा भी श्वसन का कार्य किया जाता है।

इस आर्टिकल में हमने स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जाना। जो परीक्षा के अलावा सामान्य जीवन में बहुत जरुरी है।

आशा करता हूँ कि स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इस आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology)

अगर आप साइंस के स्टूडेंट हैं या फिर आप किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं और जिसमें विज्ञान से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं तो आपके लिए यह पोस्ट फायदेमंद साबित होगा क्यूंकि इस पोस्ट में जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology) के बारे में बताया जा रहा है। जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में अक्सर पूछे जाते रहते हैं। जंतु विज्ञान स्वयं विज्ञान की एक शाखा है । जंतु विज्ञान की भी विभिन्न शाखाएं हैं जिनके बारे में जानकारी इस पोस्ट के माध्यम से दी जा रही है।

जंतु विज्ञानं की शाखाएं (Branches of Zoology)


प्रश्न:- तितलिओं का अध्ययन कहलाता है
उत्तर- लैपीडेटेरियोलॉजी

प्रश्न:- अस्थियों का अध्ययन किस शाखा में आता  है
उत्तर-आस्टियोलोजी

प्रश्न:- मानव त्वचा का अध्ययन करने वाली विज्ञान की शाखा कहलाती है
उत्तर-डर्मेटोलोजी

प्रश्न:- ऐरेनियोलॉजी' किसका अध्ययन है ?
उत्तर-मकड़ों का अध्ययन

प्रश्न:- पारिस्थितिक विज्ञान इकोलॉजी का किससे सम्बन्ध है
उत्तर-शरीर संरचना और वातावरण

प्रश्न:- रक्त में एंटीबॉडी एवं एंटीजन के अध्ययन को क्या कहते है
उत्तर-सीरोलॉजी

इन्हें भी जानें- अम्ल, क्षार और लवण (Acid, Base and Salt in Hindi)

प्रश्न:- जनसंख्या का अध्ययन कहलाता है
उत्तर-डेमोग्राफी

प्रश्न:- आनुवांशिकी किससे सम्बन्धित है
उत्तर-आनुवांशिकता

प्रश्न:- जेनेटिक्स में किसका अध्ययन किया जाता है
उत्तर- आनुवांशिकता एवं गुणसूत्र

प्रश्न:- ओनकालॉजी किसका अध्ययन है
उत्तर- कैसर

प्रश्न:- टीशयु कल्चर का अध्ययन किसके लिए उपयोगी है
उत्तर- आनुवांशिकी के लिए

प्रश्न:- पीडीयाट्रीक्स निम्न में से किसके अध्ययन से सम्बन्धित है
उत्तर- शिशु रोग

प्रश्न:-जेरेंटोलॉजी निम्न में से किसके अध्ययन से सम्बन्धित है
उत्तर- वृद्ध

प्रश्न:-विज्ञान की शाखा न्यूरोलॉजी से कौन सा अंग का अध्ययन किया जाता है
उत्तर- स्नायु तंत्र

प्रश्न:-ऊतको की रचना के अध्ययन से सम्बन्धित विज्ञान कहलाता है
उत्तर-हिस्टोलॉजी

प्रश्न:-रेशम पालन कहलाता है
उत्तर-सेरीकल्चर

प्रश्न:-मधुमखियों का पालना कहलाता है
उत्तर-एपिक्ल्चर

प्रश्न:- मांसपेशियों का अध्ययन कहलाता है
उत्तर- मायोलॉजी

प्रश्न:- जन्तु और उसके आस पास के वातावरण सम्बन्धी अध्ययन को कहते है
उत्तर-पारिस्थितिकी

प्रश्न:-जीवों के संक्रमण के विरुद्ध प्रतिरोध का अध्ययन किया जरा है
उत्तर-इम्युनोलॉजी

प्रश्न:-पैलीओंठोलॉजी किसका अध्ययन है
उत्तर-जीवाश्म

प्रश्न:-कीड़ो के अध्ययन को कहते है
उत्तर- एन्टोमोलॉजी

प्रश्न:- मछलियों से सम्बन्धित अध्ययन कहलाता है
उत्तर- इक्थियोलॉजी

प्रश्न:- ओर्निथोलॉजी में किसका अध्ययन होता है
उत्तर- पक्षी

प्रश्न:-हिम्टोलॉजी किससे सम्बन्धित है
उत्तर-ऊतक

प्रश्न:-घाव का अध्ययन कहलाता है
उत्तर-ट्रोमेटोलॉजी

प्रश्न:- कैंसर सम्बन्धी रोगों का अध्ययन कहलाता है
उत्तर-  ओंकोलॉजी

प्रश्न:- मोल्सका समुदाय के जन्तुओं के कवच का अध्ययन कहलाता है
उत्तर- कोंकोलॉजी

पढ़ें- सामान्य विज्ञान के प्रश्न-उत्तर

प्रश्न:- वंशागति के नियमों के अध्ययन को कहते है
उत्तर- आनुवांशिकी

प्रश्न:- मनुष्य के वातावरण को सुधारने से नस्ल सुधारना कहलाता है 
उत्तर- यूथेनिक्स

प्रश्न:- निलकाविहीन ग्रन्थियों का अध्ययन करने वाली जन्तु विज्ञान की शाखा को कहते है
उत्तर- एंडोक्राइनोलॉजी

प्रश्न:-उस विज्ञान को जो आनुवांशिकता के नियमों द्वारा मानव जाती की उन्नति का अध्ययन करता है उसे कहते है
उत्तर-युजेनिक्स

प्रश्न:-कीटों से सम्बन्धित जीव विज्ञान की शाखा कहलाती है
उत्तर- इन्टैमोलॉजी

प्रश्न:- जन्तु विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत जन्तु की बाहरी आक्रति एवं बाहरी संरचना का अध्ययन किया जाता है
उत्तर-  माँर्फोलॉजी

प्रश्न:-पीडियाट्रिक्स निम्नलिखित में से किसके अध्ययन से संबंधित हैं
उत्तर-शिशु रोग


इस पोस्ट में हमने जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology) के बारे में जाना। विज्ञान का यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है जो बेसिक जानकारी की दृष्टि से बहुत ही जरुरी है।

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