छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और आदिवासी (Tribes and Tribals of Chhattisgarh in Hindi)

छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और आदिवासी (Tribes and Tribals of Chhattisgarh)

नमस्कार आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में हम छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और आदिवासी (Tribes and Tribals of Chhattisgarh in Hindi) के बारे में जानेंगे। जनगणना 2011 के अनुसार छत्तीसगढ़ जनजाति की कुल जनसंख्या 7822902 है जो कुल जनसंख्या का 30.6 % है जनजाति में लिंगानुपात 1020 है इनकी साक्षरता दर 50.11% है।

देश में कई प्रकार की कला संस्कृति  इतिहास पुरातत्ववेत्ता प्राक्रतिक  स्तिथि  प्राक्रतिक  आपदाये जलवायु विद्यमान है । ठीक उसी प्रकार से छत्तीसगढ़ की भी अपनी कला संस्कृति इतिहास प्राक्रतिक आपदाये जलवायु और कई प्रकार की जनजातियाँ  भी विद्यमान है, यहाँ की लोककला संस्कृति के भी विभिन्न स्वरुप देखने को मिलते है छत्तीसगढ़ की जनजातियों को छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा अनेको प्रावधान दिए गये है , इस प्रावधान के स्वरूप जनजातियों को कुछ भागो में विभक्त किया गया है जैसे कुछ विषेश प्रावधान की जनजातियाँ है-बैगा,भतरा, गोंड़, नागेसियाँ इत्यादि। इन विशेष जनजातियों की ओर छत्तीसगढ़ सरकार ने बहुत ही ध्यान दिया है छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ अपने आप में एक अलग ही महत्व है। 

Tribes and Tribals of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ की जनजातियो की छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा संविधान के अनुसार  342 के तहत भारत सरकार द्वारा जनजातियों की सूचि में 42 जनजातियों को शामिल किया गया है छत्तीसगढ़ 1 नवम्बर सन 2000 को अस्तित्व में आया जहा पर छत्तीसगढ़ की जनसँख्या की बात करे तो 2011 में इसकी  कुल जनसंख्या 2,55,45,198 थी जिसमे अनुसूचित जन जातियों की जनसंख्या 78,22,902 थी.अर्थात राज्य की कुल जनसंक्या का 30.60 प्रतिशत  अनुसूचित जनसंख्या की थी।

ऐतिहासिक महत्व :

छत्तीसगढ़ की जनजातियों में बहुत सारे ऐतिहासिक महत्व है जैसे की पुरातात्वत्विक स्थल है जो की छत्तीसगढ़ की जनजातियों को अपनी धरोहर में संजोये हुए है सिंघनपुर की गुफाये, एक जनजातियों का ही पुराना स्थल है जहां एक ओर है जोगीमारा की गुफाये, जिसमे छत्तीसगढ़ की कला संस्कृति का वर्णन है इस प्रकार से अनेको जनजातीय कलाए है जो की अपने एक अलग ही, महत्त्व रखती है . जहाँ उत्तर कोशल की सरयू तट पर विद्यमान है जिसकी राजधानी अयोध्या थी दक्षिण कोशल विन्द्याचल पर्वत माला के तट पर फैला हुआ था तो उत्तर में परजा जनजाति तो दक्षिण बस्तर में मुंडा, बैगा की जनजाति पायी जाती है | 

हमने छत्तीसगढ़ के ऐतिहासिक महत्व के बारे मैं पढ़ा , आगे हम छत्तीसगढ़ के विभिन्न जातियों एवं उसको कितने भागो मैं बांटा गया हैं उसके बारे मैं पढेंगे |

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छत्तीसगढ़ की जनजातियों को कई भागो में बांटा गया है- 

  • सामाजिक 
  • आर्थिक
  • भोगोलिक 
  • भाषा 
  • जनसंख्या  

(1)सामाजिक :–  सामाजिक के आधार पर छत्तीसगढ़ की जनजातियों के बहुत सारे आधार है जहाँ पर वे अपना सामाजिक कार्य करते है जैसे शादी, मृत्यु, सामाजिक क्रियाकलाप, गोत्र, परिवार, लोक कला, लोक संस्कृति, युवा, गृह, शिशु जन्म, वहाँ के रहन-सहन, वेशभूषा, वातावरण सामाजिक परिवेश इस प्रकार से छत्तीसगढ़ के सामाजिक परिदृश्य का वर्णन किया  गया है।

हमने छत्तीसगढ़ के जनजातियों का सामाजिक आधार एवं संस्कृति के बारे में पढ़ा, आगे हम छत्तीसगढ़ के जनजातियों के आर्थिक परिवेश के बारे में जानेंगे। 


(2)आर्थिक :-  आर्थिक परिवेश की बात करे तो छत्तीसगढ़ की जनजातियों आर्थिक रूप से अपने आप में पिछड़ी हुयी है जैसे की –आय ,रोजगार ,खान-पान , शिक्षा के क्षेत्र में , रोजगार की दृष्टी से देखा जाए तो छत्तीसगढ़ की जनजातियों को कुछ ख़ास रोजगार नहीं मिल पाते जिससे की वे अपने आजीविका ठीक ढंग से चला नहीं पाते और प्राक्रतिक संसाधनों पर ही निर्भर रहते है छत्तीसगढ़ की सरकार ने जनजातियों के रोजगार में वृद्धि किया है जैसे –महुवा बीज संग्रहण ,तेंदू पत्ता संग्रहण, पशुपालन, मछली पालन , कूकूट पालन, आदि पर रोजगार के अवसर बढाये है |


हमने छतीसगढ़ के जनजातीय की आर्थिक परिस्थिति सरकारी रोजगार योजना के बारे में पढ़ा आगे हम छत्तीसगढ़ के भोगोलिक आधार के बारे में जानेगें |


(3)भोगोलिक :–  भोगोलिक आधार की बात करे तो उत्तर में सरगुजिहा, कामार, धूरवा, परजा, बैगा, इन सभी जनजातियाँ पायी जाती है सरगुजा अंबिकापुर की पहाड़ी, बलरामपुर इन सभी स्थानों पर पाए जाते है, और अगर छत्तीसगढ़ के मध्य क्षेत्रों की बात करे तो यहाँ पर रायपुर , दुर्ग बिलासपुर, मुंगेली, रायगढ़, कोरबा, जैसे क्षेत्रों में हल्बा, कमार भुंजिया, अगार, बैगा कोंध ,कंवर ,बिंझवार धनवार जैसी जनजातियाँ पायी जाती है और इसके दक्षिणी क्षेत्र की बात करे तो बस्तर नारायणपुर सुकमा बीजापुर में गदबा दोरला सिंघा आदि जनजातियाँ पायी जाती है।  

हमने छत्तीसगढ़ के जनजातीय के भौगोलिक आधार कहा – कहा पर कौन –कौन से जातियाँ पायी जाती है इसके बारे में पढ़ा आगे हम छत्तीसगढ़ के विभिन्न भाषाओं के बारे में पढेंगे |

(4)भाषा -  छत्तीसगढ़ की जनजातियों में भाषाओँ का भी अपना अलग योगदान है छत्तीसगढ़ की जनजातियों में 93 प्रकार की बोलियों का वर्णन है छत्तीसगढ़ की जनजातियों को बोलियों के आधार पर 3 वर्गों में बंटा गया है आर्य ,मुंडा और द्रविन भाषा परिवार मुंडा भाषा परिवार में –कोरवा ,गदबा, मांझी, कोरकू ,निहाल पंडो आदि मुंडा भाषा परिवार में बनता गया है । द्रविन भाषा परिवार में अबुझमारिया, भुंजिया दोरला दंडामी मारिया उरानो कुरुख आदि भाषा बोली जाती है। आर्य भाषा परिवार में हल्बी ,सदरी ,भतरी ओडिया मागधी बोली बोली जाती है । 

हमने छत्तीसगढ़ के जनजातियों के 93 प्रकार के बोलियों के बारे मैं पढ़ा आगे हम छत्तीसगढ़ के जनसंख्या का वर्णन करेंगे

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(5)जनसँख्या :-  छत्तीसगढ़ की जनजातियों में  राज्य की कुल जनसंख्या 2,08,33,803 है। राज्य में कुल 44 अनुसूचित जातियाँ निवास करती है और इस प्रकार राज्य की कुल जनसंख्या का 11.6 प्रतिशत हिस्सा अनुसूचित जाति का है। छत्तीसगढ़ राज्य में सर्वाधिक अनुसूचित जाति वाला जिला रायपुर एवं सबसे कम अनुसूचित जाति वाला जिला दंतेवाड़ा है।नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य की कुल जनसंख्या 2001 के जनगणना के अनुसार 20833803 थी । जिनमें अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 6616596 है जो राज्य की कुल जनसंख्या का 31.76% है। देश के कुल अनुसूचित जनजातियों का 8.44 % जनसंख्या छत्तीसगढ़ राज्य में निवासरत है।


छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और आदिवासी की पूरी जानकारी 

1) बैगा

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - बैगा छत्तीसगढ़ की एक विशेष पिछड़ी जनजाति हैछत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या वर्ष 1981 में 43359 आंकी गई थी जो राज्य की जनजातीय जनसंख्या का 0.93 प्रतिशत थीराज्य में बैगा जनजाति के लोग मुख्यत : बिलासपुर और कवर्धा जिले में पाये जाते हैं। 

2. उत्पत्ति - बैगा जनजाति के उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैरसेल, ग्रियर्सन आदि ने इन्हें भूमिया, भूईया का एक अलग हुआ समूह माना है। किवदन्तियों के अनुसार ब्रम्हाजी ने सृष्टि की रचना की तब दो व्यक्ति उत्पन्न किये। एक को ब्रम्हाजी ने नागर (हल) पकड़ाया यह नागर लेकर खेती करने लगा गोंड कहलाया। दूसरे को ब्रम्हाजी ने टंगिया (कुल्हाड़ी) दिया। यह कुल्हाड़ी लेकर जंगल काटने चला गया, चूंकि उस समय वस्त्र नहीं था, अत : यह नंगा बैगा कहलाया। इनके वंशज बैगा कहलाए।

3. भौतिक संस्कृति - बैगा जनजाति के लोग पहाड़ी व जंगली क्षेत्र के दुर्गम स्थानों में गोंड, भूमिया, आदि के साथ निवास करते हैं। इनके घर मिट्टी के होते हैं, जिस पर घासफूस या देशी खपरैल की छप्पर होती है। दीवाल की पुताई सफेद या पीली मिट्टी से करते हैंघर की फर्स महिलाएं गोबर और मिट्टी से लीपती है। इनके घर में अनाज रखने की मिट्टी की कोठी, धान कुटने का मूसल, बाहना, अनाज पीसने का जांता, बांस के टोकरी, सूपा, रसोई में मिट्टी एल्युमिनियम, पीतल के कुछ बर्तन, ओढ़ने बिछाने के कपड़े, तीर-धनुष, टंगिया, मछली पकड़ने की कुमनी, ढुट्टी, वाद्य यंत्र में ढोल, नगाड़ा, टिसकी आदि होते हैं।

4. लोक कलाएँ - इनके प्रमुख लोक नृत्य करमा, विवाह में बिलमा नाच, दशहरा में झटपट नाचते हैं। छेरता इनका नृत्य नाटिका है। इनके प्रमुख लोक गीत करमा गीत, ददरिया, सुआगीत, विवाह गीत, माता सेवा, फाग आदि है। इनके प्रमुख वाद्य यंत्र, मांदर, ढोल, टिमकी, नगाड़ा, किन्नरी, टिसकी आदि हैं।

2) भूमिया/ भुइहर/ भारिया

जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - भूमिया, भूइंहर छत्तीसगढ़ की एक जनजाति हैअलग-अलग क्षेत्र में स्थानीय बोली में अंतर के कारण अलग अलग उपजाति के रूप में पहचाने जाते हैं। म.प्र. के छिंदवाड़ा, सिवनी जिले में भारिया या भरिया जबलपुर, मंडला, बिलासपुर, शहड़ोल में भूमिया, सरगुजा रायगढ, बिलासपुर के कुछ क्षेत्र में भूइयाँ, भूइंहर कहलाते हैं। इस जनजाति की एक आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक रूप में पिछड़ी हुई उपजाति पांडों के नाम से सरगुजा और बिलासपुर जिले में निवामरत है। छत्तीसगढ़ में भूमिया, भूइहर, पांडों आदि को जनसंख्या वर्ष 1981 की जनगणना में 73289 आंकी गई थी जो जनजातीय जनसंख्या का 1.58 प्रतिशत है। भूमिया, भुईयाँ, पाण्डों के अलग-अलग उपजाति नाम से सरगुजा, जशपुर, रायगढ़ आदि जिले में पाये जाते हैं। छिंदवाड़ा जिले के पातालकोट घाटी में निवासरत भारिया परिवारों को भारत सरकार द्वारा विशेष पिछड़ी जनजाति घोषित किया गया है।

2 उत्पत्ति - * भूमिया, भुइंहर, भारिया, पांडो, जनजाति के उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। किवदंतियों के आधार पर ये अपनी उत्पत्ति पांडवों से मानते हैं। अर्जुन ने "भरू" घास को मंत्र शक्ति से सैनिक बनाया था। इन्हीं को भारिया तथा पांडो लोग अपना पूर्वज मानते हैं। भूमिया उपजाति के अनुसार सर्वप्रथम भगवान महादेव ने भूमि का निमार्ण किया फिर इसमें अपने त्रिशूल से नदी, पहाड़, वृक्ष व पशु पक्षी बनाये बाद में इस भूमि के उपयोग हेतु एक पुरुष तथा एक स्त्री बनाई। इनके पुत्र हुए एक पुत्र भूमि पूजन तथा देवी-देवता की पूजा का कार्य करने लगा भूमिया कहलाया। अन्य पुत्र खेती, शिकार आदि करने लगे वेड, कोल, आदि हुए। भूमिया को संताने विंध्याचल मे जबलपुर, सिवनी, मंडला, शहडोल, सरगुजा, छिंदवाड़ा से तरफ गये यह माना जाता

3) भुंजिया

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - भुंजिया छत्तीसगढ़ की एक अल्प जनसंख्या वाली जनजाति है राज्य में इनकी आबादी वर्ष 1981 के जनगणना के अनुसार 8524 आंकी गई थी जो प्रदेश की जनजातीय जनसंख्या 0.18 प्रतिशत थी। भुंजिया जनजाति छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के गरियाबंद तहसील में पाई जाती हैइनकी जनसंख्या उड़ीसा के कालाहांडी जिले में भी है। 

2. उत्पत्ति - भुंजिया जनजाति के उत्पत्ति का ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैदंतकथा अनुसार चौखुटिया भुंजिया जनजाति की उत्पत्ति हल्बा पुरुष और गोंड महिला के विवाह से उत्पन्न माना जाता हैरिजले ने चिन्दा भुंजिया की उत्पत्ति विंझवार व गोंड जाति के विवाह से माना है।

3.समस्याएं - इनकी प्रमुख समस्या आर्थिक है। कृषि भूमि असिंचित होने के कारण उत्पादन कम होता है अतः अभावग्रस्त जीवन जीते हैंशिक्षण की कमी, अंधविश्वास, कुपोषण आदि समस्याएं भी इनमें व्याप्त है।

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4) बिंझवार

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - बिंझवार छत्तीसगढ़ की एक जनजाति हैराज्य में इनकी आबादी वर्ष 1981 के जनगणना अनुसार 82080 आंकी गई थी जो कुल जनजातीय जनसंख्या का 1.77 प्रतिशत थी। बिंझवार जनजाति प्रदेश में मुख्यत : महासमुंद, रायपुर, बिलासपुर, रायगढ़ जिले में पाई जाती है। 

2. उत्पत्ति - बिंझवार जनजाति के उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अभिलेख नहीं है। दंतकथाओं के आधार पर ये अपनी उत्पत्ति विन्धयाचल पर्वत से मानते हैं ये विन्धयकूप से लंबा प्रवासित होकर आये। लंबा का अर्थ या तो बालाघाट स्थित लंबा या बिलासपुर के लाफागढ़ से लगाया जा सकता हैकुछ विद्वान इन्हें बैगा जनजाति से अलग हुआ एक भूस्वामी समूह मानते हैं जो स्थाई कृषि करने लगे। किवदंती के अनुसार ये अपनी उत्पत्ति बारह भाई बेतकार से भी मानते हैं। विंध्यवासिनी के बारह पुत्र बेतकार धनुविद्या का अभ्यास कर रहे थे। छोटे भाई का एक तीर पुरी के जगन्नाथ मंदिर के दरवाजे में जा लगा। दरवाजा बंद हो गया। जिसे कोई भी खोल न सका। बारह भाई बेतकार वहाँ आये, छोटे भाई ने अपने हाथों से खींचकर तीर निकाल दिया। इससे वहाँ का राजा प्रसन्न हुआ और उन्हें जमीन प्रदान किये। बिंझवार जनजाति इसी को अपना पूर्वज मानते हैं।

5) धनवार

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - धनवार जनजाति के लोग छत्तीसगढ़ के कोरबा, बिलासपुर, सरगुजारायपुर एवं रायगढ़ जिले में निवास करते हैं। वर्ष 1981 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 33886 थी, जो प्रदेश के जनजातीय जनसंख्या का 0.73 प्रतिशत थी। 

2. उत्पत्ति - धनवार जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में कोई ऐतिहासिक प्रमाण उपलब्ध नहीं हैदंतकथाओं के अनुसार पुराने जमाने में युद्ध में धनुष बाणों का उपयोग किया जाता था, जो आदिवासियों द्वारा तैयार किये जाते थे। धनुष में "धनु" में एवं बाण के "वार" शब्द से ही धनवार शब्द का प्रचलन हुआ है और धनुष बाण तैयार करने वाले आदिवासी धनवार कहलाने लगे।

6) गोड

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - गोंड जनजाति छत्तीसगढ़ में ही नहीं वरन् भारत की सबसे बड़ी जनजाति समूह है। छत्तीसगढ़ के अतिरिक्त ये मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, बिहार, उड़िसा, कर्नाटक, पश्चिमी बंगाल, गुजरात तथा उत्तरप्रदेश में पाये जाते हैंछत्तीसगढ़ में इनकी जनसंख्या वर्ष 1981 की जनगणना में 25, 55, 208 आंकी गई थी जो राज्य की कुल जनजातीय जनसंख्या का 55.05 प्रतिशत थीइनका प्रमुख निवास क्षेत्र बस्तर, कांकेर, दंतेवाड़ा, धमतरी, बिलासपुर, कोरबा, सरगुजा, कोरिया, कवर्धा, आदि जिले हैं। प्रदेश के अन्य जिले में इनकी जनसंख्या कम है। 

2. उत्पत्ति - गोंड जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में कोई ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैगोंड शब्द की व्युत्पत्ति तेलगु (द्रविड़) भाषा के "कोण्ड" अर्थात् पर्वत से हुई अत : कोण्ड (पर्वत) के निवासी गोंड कहलायें, दूसरी अवधारणा यह है कि गोंड शब्द की उत्पत्ति “गोढ” शब्द से हुई। बिहार एवं पश्चिमी बंगाल का क्षेत्र के "गोढ" कहलाता हैसंभवत : यहां के रहवासी गोड कहलाये। अत : यह भी कहा जा सकता है कि गोंड जनजाति पूर्वी क्षेत्र से मध्य क्षेत्र की ओर घने जंगलों, पर्वतों एवं कुछ मैदानों क्षेत्र की ओर बढ़ती गई. भाषा वैज्ञानिक साक्ष्य इनके दक्षिण भारत से मध्य क्षेत्र में आने का संकेत देती हैं। "गोंड" जनजाति का मध्यप्रदेश में ऐतिहासिक महत्व है मध्यप्रदेश के गोंडवाना क्षेत्र में इस जनजाति का शासन एवं आधिपत्य था। रानी दुर्गावती इस जनजाति की वीर महिला शासक थागोंड जनजाति द्रविड़ भाषा परिवार की गोंडी बोली बोलते हैं।

7) हलबा

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - हलवा जनजाति छत्तीसगढ़ की एक प्रमुख जनजाति है। प्रदेश में इनकी जनसंख्या वर्ष 1981 की जनगणना के अनुसार 225376 श्री जो राज्य की कुल जनजातीय जनसंख्या का 4.86 प्रतिशत थी। हल्वा जनजाति प्रदेश में मुख्यतः बस्तर, कांकेर, दंतेवाड़ा, दुर्ग, धमतरी, राजनांदगांव जिले में निवासरत हैं। 

2. उत्पत्ति - हलबा जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में ठोस प्रमाण नहीं है, किंतु कुछ विद्वानों और दंतकथाओं के अनुसार हल्बा जनजाति की उत्पत्ति से संबंधित निम्न अवधारणा में पाई जाती है। 

1. पं.गंगाधर सामन्त शर्मा समाजशास्त्री अनुसार हल्बा जनजाति को हल से कृषि कला में निपुण होने के कारण कालान्तर में हलबा (हल वाहक) कहलायें। इन शब्दों का समर्थन डा. गियर्सन ने भी किया 

2. इस जनजाति के लोगों में किवंदति पाई जाती है, कि हलबा जाति का उत्पत्ति का संबंध महाभारत काल के रूक्मिणी हरण के प्रसंग से जोड़ते हैहरण के समय बलराम ने बल और पराक्रम मे शत्रुक्षों को रोक दिया था, मे बलराम के पराक्रम से प्रभावित होकर हरण में शामिल सिपाहियों ने उनके अस्त्र हल एवं मूसल को अपना लिया, उन्हीं निपाहियों की संतानें कालान्तर में ये हल ने धान की खेती करके प्राप्त धान को मुसल से "बहाना" में कूद का ‘‘चिवड़ा’ बनाने लगे। हल बाहना और मूमल से संलग्न कार्यों के कारण इनकी की व्युत्पत्ति में हल+बा में हलबा कहलाये 

8) कंवर

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - कंवर छत्तीसगढ़ की एक मुख्य जनजाति है। वर्ष 1981 की जनगणनानुसार कंवर जनजाति की कुल जनसंख्या 552199 आंकी गई थी जो राज्य की कुल जनजातीय जनसंख्या का 11.90 प्रतिशत थीये मुख्यतः, रायगढ़, कोरिया, सरगुजा, रायपुर, महासमुंद एवं राजनांदगांव जिले में पाई जाती है। बिलासपुर संभाग में "कंवर जनजाति" की बसाहट सर्वाधिक है। 

2. उत्पत्ति - कंवर जनजाति की उत्पत्ति के संबंध में ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैकिवदन्तियों के आधार पर कंवर की उत्पत्ति महाभारत के कौरववंशी राजा दुर्योधन से बताते हैंकुरुक्षेत्र में महासंग्राम के बाद शेष बचे कौरव स्वयं को बचाने के प्रयास में इधर उधर, जंगलों में प्राणों की रक्षा हेतु जा छिपे और जंगलों में ही अपना जीवन यापन करने लगे। ये कौरव ही कालांतर में "कं वर" कहलाये। इस प्रकार से स्वयं को कुरुवंशी एवं चंद्रवंशी कहते हैं। कंवर की एक उपजाति तंवर जो छत्तरी भी कहलाते हैं, बिलासपुर जिले में इनकी 7 जमींदारियां भी थी, जो रतनपुर राज्य के अधीन थी ये हैं, कोरबा, छुरी, चांदा, लाफा, उपरोड़ा, मतिन ओर पेंड्रा।

9) खैरवार

1. जनसंख्या एवं भौगोलिक वितरण - में खैरवार छत्तीसगढ़ की एक अल्पसंख्यक जनजाति है। इनकी अधिकांश जनसंख्या बिहार व म.प्र. में पाई जाती है। उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, उत्तर प्रदेश में भी इनकी जनसंख्या निवासरत हैछत्तीसगढ़ में वर्ष 1981 की जनगणना के अनुसार इनकी जनसंख्या 8375 आंकी गई थी। इनकी जनसंख्या मुख्यतः सरगुजा, कोरिया, बिलासपुर, जशपुर आदि जिले में निवास करते हैं। म.प्र. के पन्ना, छतरपुर मे ये "कोन्दर" कहलाते हैं। 

2. उत्पत्ति - खैरवार जनजाति के उत्पत्ति संबंधी ऐतिहासिक प्रमाण का अभाव है। कालोनिल डाल्टन के अनुसार खैरवार शब्द खैर वृक्ष से बना है। गोंड जाति के व्यक्ति जो खैर वृक्ष से कत्था बनाते थे, खैरवार कहलाये। रसेल ने छोटा नागपुर (बिहार) के खैरवारों की उत्पत्ति चेरो और संथाल जो कत्था बनाते थे से माना है। किवदंती के अनुसार खैरवार जनजाति के लोग अपनी उत्पत्ति सूर्यवंश के महाराज हरिशचंद्र के पुत्र रोहिताश्व से मानते हैं।

उपसंहार :–  इस प्रकार से हमने छत्तीसगढ़ की जनजातियों को इस पोस्ट के माध्यम से बताया है कि हमारे छत्तीसगढ़ की जनजातियों में किस प्रकार से विभिन्नताए पाए जाती है और जनजातियाँ छत्तीसगढ़ की पहचान व अमूल्य धरोहर है। छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ अपने आप में एक अलग पहचान बनाये हुए है।

हमने सीखा :-

इस आर्टिकल में हमने छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और आदिवासी (Tribes and Tribals of Chhattisgarh in Hindi) के बारे में विस्तार से जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में छत्तीसगढ़ की जनजातियाँ और आदिवासी (Tribes and Tribals of Chhattisgarh in Hindi) से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको आर्टिकल अच्छा लगा हो तो आर्टिकल को शेयर जरुर करें।


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