चाय एवं कॉफी उत्पादन एवं महत्त्व (Tea & Coffee Production & Importance)

 चाय एवं कॉफी उत्पादन एवं महत्त्व (Tea & Coffee Production & Importance)

हेलो दोस्तों आप लोगों को तो पता ही है कि आजकल पेय पदार्थो का उपयोग बहुतायत में किया जाता है। जिसमे से चाय एवं कॉफी पेय पदार्थो का भारत में बहुत उपयोग होता है | कुछ लोग तो चाय के आदि भी देखने को मिलेंगे | तो आज हम इस पोस्ट के माध्यम से चाय एवम कॉफी के उत्पादन , उपयोग और आर्थिक लाभ के बारे में जानेगे 

Tea & Coffee Production & Importance

पदार्थ (Beverages)
:- वैसे तरल पदार्थ जो शरीर में पहुँचकर मनुष्य को शक्ति तथा ताजगी एवं संतुष्टि का एहसास कराते हैं पेय पदार्थ (Beverages) कहलाते हैं। कुछ पेय पदार्थ आजकल मानव आहार प्रणाली तथा सश्यता के अंग के रूप में शामिल हो गए हैं जैसे चाय, कॉफी, दूध, फलों के रस, एल्कोहॉलिक पेय आदि। ऐसा लगता है कि भूख के बाद प्यास का स्थान आने से तथा मानव की अन्वेषणात्मक प्रकृति ने अन्य स्रोतों की खोज के क्रम में विविध पेय पदार्थ उसकी आहार-दिनचर्या में शामिल होते चले गए हैं तथा आज बढ़ते-बढ़ते विविध प्रकार के कोला रूपी पेय की ओर अग्रसर हो गए हैं।

पेय पदार्थों के प्रकार (Types of Beverages)- पेय पदार्थों को दो श्रेणियों में विभक्त किया जाता हैं 

  1. नॉन-एल्कोहॉलिक पेय पदार्थ (Non Alcoholic Beverages) -बिना किण्वन की प्रक्रिया का उपयोग किए ही पेय पदार्थ निर्मित होता है तो उसे नॉन-एल्कोहॉलिक पेय (Non-alcohalic beverages) कहते हैं। ऐसे पेय पाचन सक्रियता बढ़ाने ताजगी- स्फूर्ति प्रदान करने वाले लक्षणों से परिपूर्ण होते हैं। उदाहरण- चाय, कॉफी, कोको (Coco), फलों के रस, गन्ना रस आदि।
  2. एल्कोहॉलिक पेय पदार्थ (Alcoholic Beverages )- किण्वन की प्रक्रिया से गुजरकर बनने वाले पेय पदार्थ जिसमें अल्प या अधिक मात्रा में एल्कोहॉल उपस्थित होता हैं, एल्कोहॉलिक पेय पदार्थ कहलाता हैं। उदाहरण- वाइन (Wine)बीयर (Beer) आदि 

अभी तक हमने पेय पदार्थ के बारे में जाना अब हम चाय के उत्पादन और महत्व को जानते है  

चाय का उत्पादन एवं महत्व (Production & Importance of Tea)

चाय (Tea) थीएसी (Theaceae) कुल का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम कैमेलिया सायनेन्सिस ( Camellia sinensis) है जिसे थिया सायनेन्सिस (Thea sinensis) भी कहा जाता है। चाय उत्पादन में भारत विश्व में प्रथम स्थान रखता है। भारत में चाय का उत्पादन 1834 में आसाम से शुरू हुआ।


सीढ़ीनुमा खेती

चाय की खेती (Cultivation of Tea )  

(i)चाय की खेती उष्ण क्षेत्रों में की जाती है। इसके खेती की शुरुआत के लिए पहले बीजों को नर्सरी में लगाया जाता है। नर्सरी में पौधों के एक वर्ष के होने के पश्चात् उसे नये बागान के रूप में विकसित किए जाने वाले स्थल में लगाकर बागान तैयार किया जाता है। इन्हें बड़े वृक्षों के छायादार स्थलों में विकसित किया जाता है। 

(ii)चार वर्ष पश्चात् लगाये गए चाय के पौधों की ऊँचाई दो मीटर के आस-पास हो जाती है। चौथे वर्ष के पश्चात् इन पौधों को काँट-छाँट कर 30-50 से. मी. ऊँचाई वाला बना दिया जाता है, चाय के पौधों की इस ऊँचाई को कर्षण स्तर (Plucking level) कहते हैं।

(iii) तैयार चाय की पत्तियों को तोड़ते समय प्रायः शीर्षस्थ कलिका सहित दो पत्तियों को या 4-5 पत्तियों को तोड़ा जाता है।

 (iv) इसकी शीर्षस्थ कलिकाओं से विशिष्ट एवं सर्वोच्च श्रेणी की चाय तैयार होती है जो कि सुनहली चाय (Golden Tea) के नाम से जानी जाती है। शीर्षस्थ कलिका के बाद स्थित सबसे छोटी पत्ती से ऑरेंज पीको (Orange Peko) , दूसरी पत्ती से पीको सूचोंग (Peko Souechong), चौथी पत्ती से सूचोंग एवं पाँचवी पत्ती से काँगा (Congoue) चाय प्राप्त होती है। 

 (v) भारत तथा श्रीलंका की चाय काली चाय (Black Tea) के नाम से जानी जाती है। विश्व बाजार में चाय व्यापार का 98% काली चाय के अंतर्गत् आता है।

जानें- औषधीय पौधों के नाम और महत्व।

चाय का परिष्करण (Processing of Tea) 

चाय का परिष्करण निम्नलिखित चरणों में पूर्ण होता है 

(i)सबसे पहले तोड़ी तथा एकत्र की गयी चाय की पत्तियों को 12-18 घंटे तक टैंकों में रखकर उसमें गर्म हवा प्रवाहित कर उपचारित किया जाता है जिसके कारण चाय की पत्तियाँ मुलायम तथा कम नमी युक्त हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को मुर्धीकरण या सुखाना (Withering) कहते हैं। 

ii) मुकरण पश्चात् चाय की पत्तियों को रोलर (Roller) में डालकर घुमाया जाता है ताकि ऐंठन से पत्तियों के अन्दर का रस बाहर निकल जाये। इस प्रक्रिया को बेल्लन (Rolling) कहते हैं। बेल्लन पश्चात् पत्तियों को फैलाकर सुखाया जाता "है। इस स्थिति में चाय की पत्तियाँ हरे रंग की ही होती हैं।

(ii)बेल्लन पश्चात् पत्तियों को किण्वित होने दिया जाता है जिसके कारण पत्तियाँ काली हो जाती हैं। किण्वन के क्रम में क्षतिग्रस्त हिस्सों से निकला पॉलिफिनॉल (Polyphe nol), पॉलिफिनॉल ऑक्सिडेज (Polyphenol Oxidase) प्रकीण्व की सहायता से आक्सीकृत होकर ऑर्थोक्वीनोंस (Orthoquinones) नामक पदार्थ में विघटित हो जाता है। इसी की उपस्थिति के कारण चाय का स्वाद मृदु तथा काला हो जाता है। 

(iv) किण्वित चाय में भरपूर ताजगी बनी रह सके इसके लिए उसे ओवन (Oven) द्वारा नियंत्रित ताप पर शुष्कीकृत किया जाता है। 

(v) उपर्युक्त सम्पूर्ण प्रक्रिया से गुजरने के पश्चात् चाय की पत्तियों के विभिन्न आमाप के टुकड़ों को अलग-अलग करके तथा बारीक कणों को भी पृथककृत कर तथा सम्मिश्रित (Blending) कर विभिन्न नामों से पैकिंग कर बाजार में विक्रय हेतु प्रस्तुत कर दिया जाता है।

(vii) भारत की चाय मुख्यत : असम चाय एवं दार्जिलिंग चाय के नाम से जानी जाती है। आसाम चाय कम चमकदार तथा स्वाद में अधिक तीक्ष्णता लिए हुए होती है जबकि दार्जिलिंग चाय चमकदार एवं स्वाद में मृदु होती है।

चाय का महत्व (Importance of tea)

  1. तरल चाय ताजगीदायक एवं स्फूर्तिदायक पेय के रूप में विश्व के सबसे ज्यादा जनसमुदाय द्वारा लिया जाता है। 
  2. अनेक देशों जैसे चीन, थाइलैंड, म्यांमार आदि में चाय की पत्तियों से अचार (Pickles) बनाया जाता है। 
  3. चाय के सुगन्ध एवं स्वाद हेतु चाय के एक्स्ट्रैक्ट का उपयोग टॉफी, चाकलेट एवं अन्य खाद्य पदार्थों के निर्माण में किया जाता है। 
  4. चाय उद्योग उपयोग नहीं किए जा रहे कृषि की दृष्टि से पिछड़े स्थलों पर बागान विकसित करके आर्थिक एवं मानव श्रम के रोजगार को उपलब्ध कराता है। 

यहाँ हमने चाय के महत्व और उपयोग को जाना आगे हम काफी के महत्व एवं उपयोग को जानेगे 

कॉफी का उत्पादन एवं उपयोग (Production & Importance of coffee)

कॉफी रूबिएसी (Rubiaceac) कुल का सदस्य है। कॉफी का मुख्य उत्पादन कॉफिया एराबिका (coffea arabica) से (90%) तथा 9% कॉफी उत्पादन कॉफिया कैनिफोरा (coffea canephora) एवं कुल कॉफी उत्पादन 1% कॉफी उत्पादन कॉफिया लिबेरिका (coffea liberica) से होता है। कॉफी का सबसे ज्यादा उत्पादन ब्राजील तथा कोलम्बिया द्वारा किया जाता है। कॉफी का सबसे बड़ा आयातक देश अमेरिका है।


(Tea & Coffee Production & Importance)


कॉफी की खेती (Cultivation of coffee ) 

 (i) कॉफी की खेती के लिए पहले इसके बीजों को नर्सरी में लगाकर नवोद्भिदों को उगाते हैं। नवोद्भिदों के छह माह की उम्र के हो जाने पर कॉफी बागान के रूप में विकसित किए जाने वाले स्थल पर लगाते हैं। यह स्थल उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में स्थित पहाड़ी ढालानों पर सीढ़ीनुमा खेत बनाकर विकसित किए जाते हैं। 


Tea & Coffee Production & Importance


(ii) कॉफी के पौधों से समुचित कॉफी के उत्पादन के लिए प्रतिवर्ष प्रूनिंग (Pruining) अर्थात् कँटाई-छँटाई आवश्यक होती है तथा प्राय : इस प्रक्रिया को जनवरी-फरवरी में किया जाता है तथा पौधों की ऊँचाई को 01 से 1.5 मीटर तक बनाकर रखते हैं। 

(iii) कॉफी के पौधों में पुष्पन एवं फलन का प्रारम्भ उसके 3-4 वर्ष की उम्र के होने पर होता है तथा उससे कॉफी का उत्पादन 40 वर्ष तक के होते तक प्राप्त किया जाता है। कॉफी बागान में प्रति वर्ष तीन से बारह बार प्रति वर्ष कॉफी के फलों का एकत्रीकरण किया जाता है।

पढ़ें- कोकीन क्या है और कोकीन का उपयोग।

कॉफी का परिष्करण (Processing of Coffee ) 

  1. कॉफी के प्रोसेसिंग प्रक्रिया का प्रारंभ चुने हुए कॉफी के फलों को पानी से भरे टब में डूबाकर की जाती है। जो फल पानी में डूब जाते हैं उन्हें ही आगे परिष्करण की प्रक्रिया से गुजारने के लिए अलग कर लिया जाता है। 
  2.  मशीन की सहायता से फल के बीज तथा गुदा (Pulp) को अलग-अलग कर लिया जाता है। पृथककृत किए गए बीज को पार्चमेन्ट कॉफी (Parchment Coffee) कहा जाता है। 
  3.  बीज को किण्वित कराकर या 2% सोडियम हाइड्रॉक्साइड से उपचारित कर बिल्कुल गुदा रहित कर लिया जाता है तथा उसे तब तक सुखाया जाता है जब तक कि उसमें नमी का स्तर मात्र 12% रह जाये। 
  4.  सुखाये गए कॉफी के बीजों को पॉलिसिंग (Polishing) की प्रक्रिया से गुजारा जाता है। पॉलिस किए गए बीजों को उसके चमक व आकार तथा अमाप के आधार पर उसे विभिन्न श्रेणियों में बाँटा जाता है। 
  5. चयनित तथा पॉलिश किए हुए कॉफी के बीजों को 260°C पर रोस्टिंग मशीन में 4-7 मिनट तक भूना जाता है। भूनने की प्रक्रिया के कारण बीज से उपस्थित हानिकारक रसायन कैफियोटॉनिक अम्ल (Caffeotonic acid) समाप्त हो जाता है एवं बीज अपने आमाप में 30-100 गुना बड़े हो जाते हैं, साथ ही साथ हल्के भी हो जाते हैं। 
  6. बीजों को अतिशीघ्र ठंडा करके वैक्यूम पैक करके कॉफी पावडर के रूप में बाजार में कॉफी बनाने हेतु बेचा जाता

कॉफी का महत्व (Importance of Coffee) 

  1. चाय के बाद यह मध्यम वर्ग तथा उच्चवर्ग के जनमानस का पेय माना जाता है। 
  2. इसके पत्तियों में तथा बीजों में कैफीन होता है जो ताजगी वर्द्धक प्रकृति के कारण इस्तेमाल किया जाता है। 
  3. कॉफी का फल मूत्रवर्द्धक (Diuretic) औषधि के रूप में लाभकारी होता है। 
  4. बीजों में कैफीलाइट नामक प्लास्टिक उत्पादित होता है। 
  5. इसके गुदे से भी पेय तैयार किया जाता है। 
  6. इसके काष्ठ से डंडे, पैकिंग पेटियाँ आदि तैयार की जाती हैं। 
  7. कॉफी की पत्तियों से विशेष प्रकार की शराब निर्मित होती है।

तो ये थी चाय और कॉफी के उत्पादन, उपयोग और महत्त्व से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी, आपको ये पोस्ट कैसा लगा हमें  कमेंट करके आप बता सकते है और अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे। ऐसे और भी पोस्ट पढ़ने के लिए हमारे वेबसाइट आंसर दुनिया डॉट कॉम पर विजिट  कर सकते हैं।

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