प्लाज्मिड क्या है- संरचना, कार्य और प्रकार (What is a Plasmid - Structure, Function and Types)
बायोटेक्नोलॉजी में रीकॉम्बिनेन्ट DNA के - उत्पादन के लिए जो तकनीक उपयोग में लायी जाती है, उसका उद्देश्य किसी इच्छित DNA खण्ड या जीन (Gene) की बहुत सी प्रतियाँ प्राप्त करनी होती हैं। साथ ही साथ .इसके द्वारा उत्पादित प्रोटीन को अधिक मात्रा में प्राप्त किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त इस तकनीक की सहायता से किसी जीव के क्रोमोसोम में किसी विशेष जीन को प्रत्यारोपित किया जाता है, जिससे उसके लक्षण प्रकट हो सकें। इस कार्य को करने के लिए किसी उपयुक्त एवं सक्षम DNA अणु के साथ इच्छित जीन की अनेक प्रतियाँ प्राप्त की जाती हैं। इस तरह से हमें एक वाहक (Vector) की आवश्यकता होती है जो कि प्लाज्मिड (Plasmids) सबसे उपयुक्त रचना के रूप में उपयोग की जाती है।
सबसे पहले लेडरबर्ग (1952) ने प्लाज्मिड (Plasmid) शब्द का उपयोग गुणसूत्र के अतिरिक्त पायी जाने वाली वंशागति की इकाइयों के लिए किया था, किन्तु अबप्लाज्मिडशब्द का उपयोग केवल बैक्टीरिया में पाये जाने वाले गोल DNA के लिए किया जाता है, जो बैक्टीरिया में गुणसूत्रों के अतिरिक्त पाये जाते हैं।
प्लाज्मिड के लक्षण या गुण :-
1.प्लाज्मिडDNA के बने आनुवंशिक तत्व होते हैं।
2. इनमें पुनरावृत्ति की अत्यधिक क्षमता होती हैं।
3.प्लाज्मिडआकार में गुणसूत्रों से छोटे होते हैं।
4. कुछ प्लाज्मिड में एक से दूसरे बैक्टीरिया में स्थानान्तरित होने की क्षमता भी होती है।
5. कुछ प्लाज्मिड बैक्टीरिया के संयुग्मन पर भी नियन्त्रण रखते हैं।
प्लाज्मिड के प्रकार (Types of plasmids):-
प्लाज्मिड के निम्नलिखित प्रकार होते हैं -
1. F अथवा लिंग कारक (F or Sex factor) –
ये प्लाज्मिड बैक्टिीरिया के संयुग्मन में सहायक होते है। जब बैक्टीरिया में संयुग्मन के समय दो विभेद पास-पास आते हैं, तो F + (F plus) विभेद F कारक का स्थानान्तरण F (F minus) कारक में होता है। लिंग कारक का स्थानान्तर कोशिका द्रव्य द्वारा होता है।
2. R अथवा R कारक (R or R factor)-
कारक अर्थात् R प्लाज्मिड बैक्टिीरिया को विभिन्न ऐण्टिबायोटिक्स (Antibiotics) तथा ड्रग के प्रति प्रतिरोधक बनाता है। सन् 1930 में जापान में बैक्टिीरिया शाइजेला (Shigella) जो मानव में डिसेन्ट्री रोग उत्पन्न करता था कुछ विभेदों को पृथक किया गया। वह बैक्टीरिया कुछ ऐण्टिबायोटिक्स के प्रति प्रतिरोध दर्शाता था। इन बैक्टीरिया की प्रतिरोधक क्षमता उनमें उपस्थित R कारक के कारण थी। ये प्लाज्मिड छोटे होते हैं ये प्लाज्मिड भी संयुग्मन द्वारा एक कोशिका से दूसरी कोशिका में स्थानान्तरित हो जाते हैं।
3. Col कारक (Col factor) -
कुछ बैक्टीरिया में कॉलिसिन (Colicin) नामक विषैले पदार्थ उत्पादित होते हैं, जो अन्य बैक्टीरिया को मार देते हैं। बैक्टीरिया में ये गुण विशेष प्लाज्मिड के कारण होता है, जिन्हें कोल प्लाज्मिड्स कहते हैं। कोल कारक भी एक बैक्टीरिया से दूसरे बैक्टीरिया में स्थानान्तरित हो सकते हैं।
प्लाज्मिड्स में पुनरावृत्ति तथा पुनर्योजन (Replication & Recombination in plasmids) :-
प्लाज्मिड के DNA की पुनरावृत्ति भी अर्द्धसंरक्षी (Semi Conser vative) प्रकार से ही होती है। प्लाज्मिड DNA का पुनर्योजन या तो अन्य प्लाज्मिडDNA के साथ या बैक्टीरिया के DNA के साथ हो सकता है।
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में प्लाज्मिड का उपयोग (Use of plasmids in Genetic Engineering) :-
आनुवंशिक अभियान्त्रिकी में प्लाज्मिड एक वेक्टर (Vec tor) की तरह उपयोग में लाये जाते हैं, क्योंकि आनुवंशिक अभियान्त्रिकी, जैव-प्रौद्योगिकी की एक महत्वपूर्ण प्रविधि है। अतः प्लाज्मिड्स का महत्व आजकल बहुत बढ़ गया है। आण्विक जीव विज्ञान (Molecular biology) की प्रयोगशालाओं में जीनों को विलगित तथा संश्लेषित किया जाता है और इनकी पुनरावृत्ति प्लाज्मिड की सहायता से बैक्टीरियल कोशिकाओं में कराई जाती है, क्योंकि प्लाज्मिड DNA की पुनरावृत्ति पर किसी बाहरी DNA (Foreign DNA) की पुनरावृत्ति भी प्लाज्मिड DNA के साथ ही हो जाती है, इसलिए इन प्लाज्मिड्स को वेक्टर या वाहक कहा जाता है।
प्लाज्मिड के लेकर आनुवंशिक अभियान्त्रिकी का पहला प्रयोग सन् 1973 में किया गया था। इसमें R-6-5 प्लाज्मिड से कैनामाइसिन प्रतिरोध (Kanamycin resistance) के जीन निकालकर PSC 101 नामक प्लाज्मिड के DNA में डालकर उन्हें क्लोन (Clone) किया गया था। ऐग्रोबैक्टीरियम ट्यूमिफैशियन्स (Agrobacterium tumifaciense) नामक बैक्टीरिया में पायी जाने वाली प्लाज्मिड-Ti का प्रयोग प्रायः द्विबीजपत्री पौधों में जीन स्थानान्तरण के लिए किया जाता है, क्योंकि यह बैक्टीरिया सभी द्विबीजपत्री को संक्रमित करता है, जिससे Ti प्लाज्मिड में डाले गए जीन्स इस बैक्टीरिया के द्वारा विशिष्ट पौधे तक पहुँचाये जा सकते हैं, संक्रमण के बाद एक ट्यूमर बनता है, जिसे क्रॉउन गाल की कोशिकाओं से संवर्धन द्वारा वे पौधे प्राप्त किये जा सकते हैं, जिसमें Ti- प्लाज्मिड द्वारा दिया गया बाहरी जीन होगा। ऐसे पौधे ट्रॉन्सजेनिक (Transgenic) पौधे कहलाते हैं।
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