दीप्तिकालिता क्या है- प्रकार, क्रिया-विधि और महत्व (What is Photoperiodism- Types, Mechanism and Significance)

आज के इस आर्टिकल  में हम दीप्तिकालिता - प्रकार, क्रिया-विधि और महत्व के बारे में जानेंगे। जीव विज्ञान का यह सवाल प्राय:परीक्षाओं में पूछा जाता है इसलिये दीप्तिकालिता के बारे जानना बहुत जरुरी है ,जिससे आप परीक्षाओं में सहज महसूस कर सकें, विज्ञान में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये विज्ञान के इन बेसिक को जानना बहुत  जरुरी है  तो आइये जानते हैं दीप्तिकालिता और इससे जुडी महत्वपूर्ण जानकारी।

दीप्तिकालिता क्या है- प्रकार, क्रिया-विधि और महत्व (What is Photoperiodism - Types, Mechanism and Significance)

TABLE OF CONTENT-

  • दीप्तिकालिता की परिभाषा  (Definition of Photoperiodism) 
  • क्रांतिक अवधि (Critical Period)
  • दीप्तिकालिता के आधार पर पौधों के प्रकार (Types of plants on the basis of photoperiodism) 
  • प्रकाश उद्दीपनों का ग्रहण तथा पुष्पन का प्रारंभ (Perception of light stimulus and initiataion of flowering) 
  • दीप्तिकालिता का महत्व (Importance of photoperiodism) 


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दीप्तिकालिता (Definition of Photoperiodism) -पुष्पन की क्रिया के लिए आवश्यक प्रकाश की समयावधि अथवा दिन एवं रात की आपेक्षिक समयावधि जो कि पुष्पन की क्रिया के लिए आवश्यक होती है, उसे दीप्तिकाल (Photoperiod) कहकर सूचित किया जाता है तथा वह क्रिया जिसके कारण प्रकाश तथा अंधकार अंतरालों के अनुक्रिया के फलस्वरूप पौधों में पुष्पन का प्रारंभ होता है, प्रकाशकालिता या दीप्तिकालिता (Photoperiodism) कहलाती है।

खोज - दीप्तिकालिता की खोज गार्नर एवं एलार्ड (Garner and Allard) ने सन  1920 में की थी 

प्रयोगों के क्रम में पाया कि ये प्रजातियाँ अपनी अच्छी कायिक वृद्धि (Vegetative growth) के बावजूद भी ग्रीष्म  ऋतु में पुष्प उत्पन्न नहीं कर पाती है, लेकिन इन प्रजातियों को शीतऋतु में ग्रीन हाउस में उगाने पर उनमें पुणन एवं फलन (Fruiting) होता है। इस प्रयोग के आधार पर इन वैज्ञानिकों ने प्रकाश कालों का पुष्पन के परिप्रेक्ष्य में अध्ययन किया तथा पाया कि पुष्पन क्रिया के लिए विशिष्ट दिवा अवधि (Day length) आवश्यक होती है। पुणन के आवश्यक दिवा अवधि के लिए इन वैज्ञानिकों ने फोटोपिरियड (Photoperiod) तथा पुष्पन का अभिप्रेरण करने वाली इस क्रिया को  दीप्तिकालिता (Photoperiodism) नाम दिया।

क्रांतिक अवधि (Critical Period)- 

अंधकार की वह अवधि जिसमें लघु दिवसीय तथा दीर्घ दिवसीय पौधों में पुष्पन नहीं हो पाती अर्थात उससे कम अंधकार अवधि होने पर दीर्घ दिवसीय पौधों में तथा उससे अधिक अंधकार अवधि होने पर लघु दिवसीय पौधों में पुष्पन की क्रिया होती हो तो उसे क्रांतिक अवधि कहते हैं। 

दीप्तिकालिता के आधार पर पौधों के प्रकार (Types of plants on the basis of photoperiodism) 

प्रकाशकाल अर्थात दीप्तिकाल के अंतराल का पुष्पन पर पड़ने वाले प्रभाव के आधार पर पौधों को निम्नलिखित प्रकारों में बाँटा जाता हैं 

(a) लघु दिवसीय पौधे (Short day plants)- ऐसे पौधे जो क्रांतिक अवधि की तुलना में कम प्रकाश अवधि की उपस्थिति में पुष्पन का प्रदर्शन करते हैं तो उन्हें लघु दिवसीय पौधे (Short day plants) या अल्प प्रदीप्तिकाली धि पौधे या लम्बी रात्रि वाले पौधे (Long night plants) कहते हैं।

उदाहरण- तम्बाकू (Tobacco), सोयाबीन (Soyabean), जैन्थियम (Xanthium), डाहलिया (Dahlia), गुल-ए-दाउदी (Chrysanthemum), धान (Paddy), चिनोपोडियम (Chenopodium) आदि।

(b) दीर्घ दिवसीय पौधे (Long day plants)- ऐसे पौधे जिन्हें पुष्पन के लिए क्रांतिक अवधि से अधिक प्रकाश काल चाहिए, दीर्घ दिवसीय पौधे या दीर्घ प्रदीप्तिकाली पौधे कहलाते हैं। ऐसे पौधों को लम्बी अवधि वाले दिन तथा लघु अवधि वाली रातें पुष्पन को अभिप्रेरित करने के लिए चाहिए।

उदाहरण- पालक (Spinach), चुकन्दर (Beat), गेहूँ (Wheat), मूली (Radish), शलाद (Lettuce), अल्फा अल्फा (Alfa alfa), हेनबेन (Henbane), लार्कस्पर (Larkspur) आदि।

(c) दिवस निरपेक्ष पौधे (Day neutral plants or Indeterminate plants)- ऐसे पौधे जो अपने वर्धी वृद्धि के पूर्ण होने के बाद पुष्पित होने लगते हों अर्थात जिन्हें पुष्पन के लिए किसी विशेष दीप्तिकाल (Photoperiod) की आवश्यकता नहीं होती तथा वे किसी भी प्रकाशकाल की उपस्थिति में पुष्प उत्पन्न करने में सक्षम होते हैं, दिवस निरपेक्ष पौधे (Day neutral plants) कहलाते हैं। 

उदाहरण- मक्का (Maize), टमाटर (Tomato), कपास (Cotton), सूर्यमुखी (Sunflower), मिर्च (Pep per), खीरा (Cucumber) इत्यादि।


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प्रकाश उद्दीपनों का ग्रहण तथा पुष्पन का प्रारंभ (Perception of light stimulus and initiataion of flowering) - 

जैन्थियम (Xanthium) एवं अन्य पौधों ( (सोयाबीन आदि) पर किए गए प्रयोगों से यह सिद्ध हो चुका है कि पत्ती ही वह मुख्य स्थल है जहाँ पुष्पन हेतु प्रकाश उद्दीपक का अवशोषण होता है तथा पत्तियों में ही पुष्पीय हॉर्मोन फ्लोरीजेन (Florigen) संश्लेषित होता है। ये पुष्पीय हॉर्मोन एक स्थान से दूसरे स्थान को संवहित भी होते हैं।

1. जैन्थियम पौधे के सभी पत्तियों को हटा देने के बाद जब उसे उपयुक्त मात्रा में लघु दिवसीय प्रकाश दिया गया तो उसमें पुष्पन नहीं हुआ। 

2. सभी पत्तियाँ या केवल एक पत्ती रहने पर यदि उपयुक्त प्रकाश दिया गया तो सभी पत्तियों के कक्ष स्थल में कलिकाएँ उत्पन्न हुई तथा पुष्प बने। 

3. सभी पत्तियों या पत्तियाँ विहीन स्थिति में दीर्घ दिवसीय प्रकाश दिया गया तो पुष्पन का अभिप्रेरण नहीं हुआ। 

4. अनेक पत्ती युक्त पौधों के केवल एक पत्ती में लघु दिवसीय प्रकाश तथा सभी पौधों में दीर्घ दिवसीय प्रकाश के बाद भी सभी पत्तियों के कक्ष में पुष्प उत्पन्न हुए। 

5. जब किसी जैन्थियम(Xanthium) के पौधे के किसी शाखा को प्रेरण चक्र (उपयुक्त प्रकाश अवधि) द्वारा उद्दीपित करने के पश्चात् किसी अन्य पौधे की शाखा के साथ ग्राफ्टिंग (Grafting) अर्थात रोपण द्वारा जोड़ देने पर पुष्पीय उद्दीपन का दूसरे पौधे में भी स्थानान्तरण हो जाता है।

पत्तियों द्वारा सही प्रकाश उद्दीपक को ग्रहण कर लेने पर पुष्पन की क्रिया होती है, पत्ती विहीन स्थिति में नहीं होती तथा ग्राफ्टिंग की स्थिति अनुपचारित पौधे में उद्दीपक का स्थानांतरण होता है। अर्थात पत्ती उद्दीपक ग्रहण करते हैं तथा उद्दीपक के कारण संश्लेषित होने वाला पुष्पीय हॉर्मोन एक स्थल से दूसरे स्थल पर संवहित होता है। पुष्पन के क्रम में संभावित अवस्थाओं को अग्रलिखित रूप से प्रदर्शित किया जा सकता है

Demonstration of steps involved for flowering

दीप्तिकालिता का महत्व (Importance of photoperiodism) 

  1. पुष्पन के लिए आवश्यक प्रकाश अवधि का ज्ञान होने पर कन्द (Tuber), शल्क कन्द (Bulbs), घनकंद (Corms), प्रकन्द (Rhizome), आदि वाले फसलों की मात्रा ऐसे फसल को कायिक अवस्था में रखकर बढ़ायी जा सकती है। 
  2. कायिक फसल (Vegetative crops) को अधिक अवधि तक वर्की अवस्था में ही रखा जा सकता है। 
  3. ताप तथा प्रकाश को परिवर्तित करके एकवर्षीय पौधों को साल भर में दो या तीन बार उगाया जा सकता है तथा इसी प्रकार द्विवर्षीय पौधे को एकवर्षीय के रूप में भी वृद्धि कराया जा सकता है। 
  4. प्रकाश चक्र के सही अभिप्रेरण से बहुवर्षीय पौधे में वर्ष भर पुष्पन कराया जा सकता है। 
  5. पादप अभिजनक (Plant-breeders) द्वारा कृत्रिम रूप से अभिप्रेरित पुष्पन के कारण अन्तर्जातीय के संकरण (Inter-specific cross) कराया जा सकता है।
इस पोस्ट में हमने दीप्तिकालिता के बारे में विस्तार से जाना ,प्रतियोगी परीक्षाओं में भी  प्राय: इससे सम्बंधित  प्रश्न पूछे जाते  हैं, उम्मीद है दीप्तिकालिता से जुडी पर्याप्त जानकारी आपको इस पोस्ट से  मिल गई होगी, अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी तो  इसे शेयर जरुर करें 

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