इस पोस्ट में हम जीन विनिमय क्या है के बारे में जानेंगे। जीन विनिमय जीवों के कोशिकाओं में होनी वाली गुणसूत्रीय प्रक्रिया है। एक जोड़ी समजात गुणसूत्र के क्रोमैटिड्स के संगत खण्डों में जीन विनिमय के फलस्वरूप सहलग्न जीन्स में पुनः संयोग की प्रक्रिया को जीन विनिमय (Crossing over) कहते हैं। जीवों में अपने पैतृक लक्षणों से मेल खाना इसी जीन विनिमय के कारण होता है।
जीन विनिमय क्या है (What is Crossing Over in Hindi)
Table of content:
- क्रॉसिंग ओवर के प्रकार (Types of Crossing over)
- क्रॉसिंग ओवर की प्रक्रिया (Mechanism of Crossing over)
- जीन विनिमय की विशेषताएँ (Characteristics of Crossing Over)
- जीन विनिमय के सिद्धांत (Theories of crossing over)
- क्रॉसिंग ओवर को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Crossing over)
मॉर्गन के अनुसार, सहलग्न जीन वंशागति के समय, पीढ़ी से केवल पैतृक संयोग ही बनाते हैं तथा गुणसूत्र पर उपस्थित सभी जीन पीढ़ी-दर-पीढ़ी एक समूह में वंशागत होते हैं, परन्तु कुछ संतति जीवों से जीन्स के नये संयोग भी देखने को मिलते हैं, अर्थात् यहाँ सहलग्न जीन्स पृथक हो गये हैं और इनके स्थान पर युग्मविकल्पी जीन्स के नये संयोग बने हैं।
परिभाषा (Definition)- "जीन विनिमय- वह प्रक्रिया जिसके द्वारा जीन्स एक गुणसूत्र (Chromosome) से अपने दूसरे समजात गुणसूत्र पर उपस्थित जीन्स के साथ अदला-बदली करते है, जीन विनिमय कहलाते हैं।"
दुसरे शब्दों में-
"वह भौतिक क्रिया, जिसमें दो समजात गुणसूत्रों के अर्द्ध-गुणसूत्रों के बीच उनके कुछ भाग का सहलग्न जीन्स के साथ आदान-प्रदान होना, जीन विनिमय (Crossing over) कहलाता है।"
उदाहरण- ड्रोसोफिला में पुनः संयोग-धूसर (Grey) शरीर तथा लुप्तावशेषी (Vestigeal) पंखों वाली मक्खी (BBvv) तथा काले (Black) शरीर व लम्बे (Long) पंखों वाली मक्खी (bbvv) के संकरण से F, पीढ़ी में उत्पन्न सभी | F मक्खियों का काले शरीर व लुप्तावशेषी पंखों वाली अप्रभावी (Recessive) मक्खियों (bbvv) से परीक्षार्थ संकरण (Test cross) करने पर चार प्रकार की संतति मक्खियाँ मिलेगी
पढ़ें- लिंग सहलग्नता क्या है।
क्रॉसिंग ओवर के प्रकार (Types of Crossing over)
(a) एकल क्रॉस ओवर (Single Cross over)- जब गुणसूत्र युग्म पर केवल एक ही किएज्मा बने या क्रॉसिंग ओवर केवल एक ही बिन्दु पर हो तो इसे एकल क्रॉस ओवर कहते हैं।
(b) डबल क्रॉस ओवर (Double Cross over)- जब गुणसूत्र युग्म पर दो किएज्मा बने या दो क्रॉसिंग ओवर हो तो इसे डबल क्रॉस ओवर कहते हैं।
(c) बहु क्रॉस ओवर (Multiple Cross over)- जब गुणसूत्र युग्म पर तीन या अधिक किएज्मा बने या अधिक बिन्दुओं पर क्रॉसिंग ओवर हो तो मल्टीपल क्रॉस ओवर कहलाता है।
(d) वर्धी क्रॉस ओवर (Somatic Cross over)- जब वर्धी कोशिकाओं में क्रॉसिंग ओवर होता है तो इसे वर्धी क्रॉस ओवर कहते हैं।
क्रॉसिंग ओवर की प्रक्रिया (Mechanism of Crossing over) –
(i) युग्मन (Synapsis)-
अर्द्धसूत्री विभाजन की प्रथम अवस्था प्रोफेज-1 की जायगोटीन उपावस्था दोनों जनकों के गुणसूत्र एक-दूसरे के निकट आकर लम्बाई में जोड़ियाँ बना लेते हैं। यह प्रक्रिया गुणसूत्र के एक सिरे से शुरू होकर चेन (Zip) की तरह से दूसरे सिरे तक चलता है, इसे Synapsis कहा जाता है। गुणसूत्रों की यह अवस्था बाईवेलेंट कहलाती है।
(ii) द्विगुणन (Duplication)
प्रोफेज-1की पैकिटीन उपावस्था में बाईवेलेंट का प्रत्येक गुणसूत्र सेण्ट्रोमीयर के अलावा सम्पूर्ण लम्बाई में दो क्रोमैटिडों में बँट जाता है। अब प्रत्येक बाईवेलेंट चार क्रोमैटिडो वाला बन जाता है, इसे टेट्राड कहते हैं। इनमें एक ही गुणसूत्र के क्रोमैटिड Sister Chromatid कहलाते हैं तथा बाईवेलेंट के अलग-अलग गुणसूत्रों के क्रोमैटिड्स को Non-Sister Chromatid कहा जाता है।
(iii) जीन वनिमय (Crossing over)-
प्रोफेज-1 की डिप्लोटीन (Diplotene) अवस्था में जब युग्मित गुणसूत्र अलग होना प्रारम्भ करते हैं तब भीतरी क्रोमैटिड के टुकड़ों में विनिमय होता है। जिससे बाईवेलेंट गुणसूत्रों के चारों क्रोमैटिड में से अन्दर वाले Non-Sister Chromatid के बीच उनके कुछ भागों की अदला-बदली हो जाती है, इस क्रिया को जीन विनिमय कहते हैं, जबकि दोनों बाहरी Non-Sister Chromatid अपनी मूल अवस्था में रहते हैं।
जानें- प्रोटीन का वर्गीकरण।
जीन विनिमय की विशेषताएँ (Characteristics of Crossing Over)
- चार क्रोमैटिडों में केवल दो में Crossing over होगा तथा शेष दो अपना वास्तविक रूप बनाए रखेंगे।
- बाईवेलेंट के सिर्फ Non-Sister क्रोमैटिडों में Crossing over होगा। एक ही गुणसूत्र के क्रोमैटिडों में क्रॉसिंग ओवर नहीं होगा।
- किएज्मेटा की संख्या बाईवेलेंट की लम्बाई पर निर्भर होगी अर्थात् गुणसूत्र जितने लम्बे होंगे, उतनी ही अधिक किएज्मेटा बनने की सम्भावना होगी।
- गुणसूत्रों पर जीन्स जितनी दूरी पर स्थित होंगे, उतनी उनकी क्रॉसिंग ओवर के द्वारा पृथक् हो जाने की सम्भावना अधिक होगी।
जीन विनिमय के सिद्धांत (Theories of crossing over)
(i) क्लासिकल थ्योरी या दो प्लेन सिद्धांत (Classi cal theory or two plane theory)
एल. डब्ल्यू शार्प (L.W.Sharp) ने 1934 में इस सिद्धांत के अनुसार किएज्मा का निर्माण आनुवंशिक विनिमय (Genetic Crossing-over) को बढ़ाता है। किएज्मेटा (Chiasmata) एक बिन्दु है, जहाँ समजात (Homolo gous), किन्तु सिस्टर नहीं (Non-Sister) अर्द्ध-गुणसूत्रों का आकस्मिक भौतिक विनिमय होता है। इस प्रकार की परिकल्पना में अर्द्ध-गुणसूत्रों के आस-पास (Adjacent) के लूप (Loop) का इक्वेशनल (Equational) जिसमें सिस्टर अर्द्ध-गुणसूत्र पृथक होते हैं एवं रिडक्शनल (Reductional) जिसमें अर्द्ध-गुणसूत्र पृथक नहीं होते, इसे दो प्लेन सिद्धान्त (Two plane theory) कहते हैं, जिनमें समीपवर्ती (Ad jacent) विभिन्न समतलों (Planes) एक-दूसरे के समकोण (Right angle) पर उपस्थित होते हैं।
(ii) किएज्मा प्रकार सिद्धांत या एक समतल सिद्धांत (Chiasma type theory or one plane theory) -
EA.Janssens, 1909 इस सिद्धान्त में, विनिमय विखण्डन (Breakage) के कारण होता है, जो कि समजात गुणसूत्रों से प्राप्त हुए नॉन-सिस्टर अर्द्ध-गुणसूत्रों (Non-Sister Chromatids) को आदान-प्रदान या पुर्नसंयोजन के बाद होता है।
पढ़ें- हार्मोन क्या है।
क्लासिकल (Classical) या दो समतल सिद्धांत (Two plane theory) की अब केवल ऐतिहासिक महत्ता है एवं सभी प्रायोगिक प्रमाण 'किएज्मा प्रकार सिद्धांत' या 'एक समतल सिद्धांत' के पक्ष में जाते हैं।
(iii) प्रिकॉसिटी सिद्धांत (Precosity theory)
C.D. Darlington के प्रिकॉसिटी सिद्धांत (Precosity theory) के आधार पर, डार्लिन्गटन (Darlington) ने - इसकी यह व्याख्या की है कि तनाव बल (Strain) का परिणाम, विनिमय (Crossing over), सिस्टर अर्द्ध-गुणसूत्रों (Sister Chromatids) तथा समजात गुणसूत्रों के कुण्डलित होने के कारण होता है।
(iv) बैलिंग्स की परिकल्पना (Belling's Hypoth esis)-
John Belling, 1928 तथा कॉपी चॉइस मॉडल (Copy choice modal)- कॉपी चॉइस मॉडल का अर्थ यह है कि एक नया संश्लेषित हुआ पुत्री अर्द्ध-गुणसूत्र, (Daughter Chromatids), एक खास दूरी द्वारा कॉपी (Copy) हुए गुणसूत्र के द्वारा व्युत्पन्न (Derived) होता है तथा बाद में दूसरे समजात गुणसूत्र पर जुड़ जाता (Switch ing) है। यह मॉडल DNA द्विगुण (DNA Replication) के कान्जर्वेटिव मोड (Conservative Mode) को बताता हैं।
(v) संकर DNA मॉडल (Hybrid DNA model) या हॉलीडे का मॉडल (Hollidays model-1960)-
इस मॉडल में नान-सिस्टर अर्द्ध-गुणसूत्रों (Non-sister chromatids) के समजात से प्रत्येक दो DNA डुप्लेक्सेस (DNA duplexes) का एक सूत्र (Strand) टूटता (Break) है। इन विखण्डनों (Breakages) से एक सूत्र (Single Strand) निकलकर पूरक बेस युग्मन (Complementary base pairing) के साथ क्रॉसवाइज (Crosswise) जोड़ा बनाते हैं और इस प्रकार इसे DNA संकर मॉडल (DNA Hybrid model) का नाम दिया गया है।
क्रॉसिंग ओवर को प्रभावित करने वाले कारक (Factors affecting Crossing over)
- उम्र बढ़ने के साथ किएज्मा बनने की आवृत्ति घट जाती है।
- तापक्रम बढ़ने से किएज्मा निर्माण की आवृत्ति बढ़ जाती है।
- विविध रसायनों के प्रभाव से भी किएज्मा की आवृत्ति घटती है।
- जीन्स के बीच की दूरी बढ़ने या घटने पर किएज्मा निर्माण की आवृत्ति बढ़ती या पटती है।
उदाहरण - 1. ड्रोसोफिला में पुनः संयोग-धूसर (Grey) शरीर तथा लुप्तावशेषी (Vestigeal) पंखों वाली मक्खी (BBvv) तथा काले (Black) शरीर व लम्बे (Long) पंखों वाली मक्खी (bbvv) के संकरण से F, पीढ़ी में उत्पन्न सभी मक्खियों का काले शरीर व लुप्तावशेषी पंखों वाली अप्रभावी (Recessive) मक्खियों (bbvv) से परीक्षार्थ संकरण (Test cross) करने पर चार प्रकार की संतति मक्खियाँ मिलेगी -
- धूसर शरीर लुप्तावशेषी पंखों वाली - 41.5%
- काला शरीर, लम्बे पंखों वाली - 41.5%
- काला शरीर, लुप्तावशेषी पंख - 8.5%
- धूसर शरीर, लम्बे पंख - 8.5%
इस पोस्ट में हमने जीन विनिमय क्या है (what is Crossing over) जीन विनिमय के प्रकार ,जीन विनिमय की प्रक्रिया आदि के बारे में जाना। जीन विनिमय से सम्बंधित प्रश्न विभिन्न परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।
उम्मीद करता हूँ कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा ,अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।