Population Ecology (जनसंख्या पारिस्थितिकी) - प्रकार, गुण, वृद्धि

जनसंख्या पारिस्थितिकी का वर्णन कीजिए (Describe population ecology in Hindi)

Population Ecology in Hindi : नमस्कार, आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में  जनसंख्या पारिस्थितिकी के बारे में बताया गया है। जनसंख्या पारिस्थितिकी (Population ecosystem) एक विशेष जीव जाति की संख्या जो कि एक विशेष क्षेत्र में पायी जाती है, उसे समष्टि (Population) कहते हैं।

Population Ecology in Hindi

पॉपुलेशन (Population) शब्द की उत्पत्ति एक लैटिन शब्द पॉपुलस (Populous) से हुई है, जिसका अर्थ किसी जाति समूह या समाज के लोगों से है, जैसे किसी तालाब में पाये जाने वाले मेढ़क की संख्या। पॉपुलेशन शब्द का सामान्य उपयोग जनसंख्या के लिए किया जाता है, किन्तु बायोलॉजी की दृष्टि से पॉपुलेशन का अर्थ एक विशेष प्रदेश में स्थित एक ही जाति या घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित जातियों के जीवों (जन्तु अथवा पेड़-पौधे) का एक समुच्चय (Assemblage) से है।

population ecology in Hindi

Describe population ecology in Hindi

"एक अकेला जीव इकोतंत्र (ecosystem) की आधारभूत कार्यशील इकाई (Fundamental functional unit) है, जो कि वातावरण से सीधे सम्बन्धित रहती है। इन जीवों की संख्या तथा वितरण का अध्ययन “पॉपुलेशन इकोलॉजी" कहलाता है।"

जनसंख्या पारिस्थितिकी (Population Ecology) के प्रकार 

क्लार्क (Clark, 1954) के अनुसार, समष्टि दो प्रकार की होती है -

(i) एक प्रजाति समष्टि (Single species population) - इसमें प्राणी या जीव की एक ही स्पीशीज होती है। 

(ii) मिश्रित प्रजातिय समष्टि (Mixed species population) - इसमें जीवों या प्राणी की कई स्पीशीज होती हैं।

समष्टि के गुण (Characteristics of Population) -

प्रत्येक समष्टि के कुछ विशेष गुण होते हैं। ये गुण किसी एक प्राणी के न होकर पूरे समूह के होते हैं। मुख्य गुण निम्नलिखित हैं 

1. समष्टि घनत्व (Population Density) -

समष्टि घनत्व किसी भी समष्टि का मुख्य लक्षण होता है, किसी निश्चित अवधि में प्रत्येक इकाई क्षेत्र या आयतन में जीवों की संख्या को समष्टि घनत्व (Population density) कहते हैंसमष्टि घनत्व की इकाई विभिन्न क्षेत्र में भिन्न-भिन्न होती है। यदि जीवों की कुल संख्या को N से, इकाई की संख्या को S द्वारा निरूपित करें, तो समष्टि का घनत्व D, निम्न प्रकार से होगा

समष्टि घनत्व को दो प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं -

(i) क्रूड घनत्व (Crude density)-यह कुछ क्षेत्र या आयतन के प्रत्येक इकाई में जीवों की संख्या को प्रदर्शित करता है। 

(ii) इकोलॉजिकल घनत्व (Ecological density) यह उस क्षेत्र या आयतन के उस इकाई में जीवों की संख्या है, जिसमें वास्तविक रूप से जीव रहते हैं। 

इकोलॉजिकल घनत्व को ज्ञात करना -

a. समष्टि में विभिन्न प्रावस्थाओं वाले जीवों को गिनना इस विधि से विभिन्न जीवधारियों की अलग-अलग जनसंख्या एक निश्चित क्षेत्र एवं समय पर ज्ञात हो जाती है। यह विधि बड़े जन्तुओं की समष्टि घनत्व ज्ञात करने के लिए की जाती है, परन्तु यह विधि जन्तुओं की अपेक्षा पादपों के लिए अधिक व्यावहारिक है।

b. सैम्पलिंग विधि - इस विधि में अनेक सैम्पल लिये जाते हैं तथा प्रत्येक सैम्पल के एक इकाई में उपस्थित जीवों की गिनती की जाती है। इस विधि को कई बार दोहराते हैं। प्राप्त सभी परिणामों को जोड़कर सैम्पल की संख्या से औसत निकाल लेते हैं। स्थलीय जन्तुओं में यही कार्य छोटे-छोटे सैम्पलिंग इकाई के क्षेत्र में किया जाता है। उदाहरणार्थ-पैरामीशियम के एक लीटर से प्रयोग करता हुआ मनुष्य, पैरामीशियम को भली प्रकार हिलाता है, फिर शीघ्र एक घन लीटर द्रव निकाल लेता है, और इस सैम्पल में पैरामीशियम की संख्या ज्ञात कर लेता है। इस प्रकार नये सेम्पलों की संख्या में सम्पूर्ण आयतन में तथा एक घन सेमी में पैरामीशियम की संख्या ज्ञात कर लेता है।

c. यादुच्छिक प्रतिचयन अथवा निदर्शन विधिकुछ सीमा तक जीवसंख्या का घनत्व जीव संख्या के कुछ भाग का प्रतिचयन (Sampling) करने से भी किया जा सकता हैइस प्रकार से पूरी जीव संख्या का अनुमान लगाया जा सकता है। बहुत गतिशीलता वाले जन्तु में प्रतिचयन (Random sampling) के लिये क्षेत्र काफी बड़ा होना चाहिए, जैसे-मछलियों, उड़ने वाले कीट, पक्षी इत्यादि। 

d. टैगिंग तथा पुनर्गणना करना - बड़े आकार के जन्तुओं जैसे-गिलहरी एवं पक्षियों आदि की गणना करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में जन्तुओं को एक निश्चित संख्या में पकड़कर उनको टैग करके छोड़ दिया जाता है। अगले दिन उसी क्षेत्र में पुनः उतने ही संख्या में जन्तुओं को पकड़कर इनमें टैग किए गए जन्तुओं की गणना की जाती है। इस प्रकार टैग किये तथा बिना टैग किए गए जन्तुओं के समानुपात द्वारा समष्टि घनत्व ज्ञात कर ली जाती है।समष्टि वृद्धि-समष्टि घनत्व के अध्ययन से समष्टि के स्वभाव का पता चलता है, तथा इससे समष्टि की मृत्यु दर एवं जन्म-दर भी ज्ञात होती है।

समष्टि वृद्धि (population growth) -

समष्टि घनत्व के अध्ययन से समष्टि के स्वभाव का पता चलता है, तथा इससे समष्टि की मृत्यु दर एवं जन्म-दर भी ज्ञात होती है। समष्टि का घनत्व जन्म दर, मृत्यु-दर एवं प्रजनन दर पर निर्भर करती है -

(i) जन्म दर (Birth rate) - "किसी समष्टि की जन्म-दर को इस प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है “एक निश्चित अवधि में किसी समष्टि द्वारा उत्पन्न नये जीवों की औसत संख्या को जन्म-दर कहते हैं।" उत्तम परिस्थितियों में एक इकाई अवधि में उत्पन्न होने वाले नये जीवों की अधिकतम संख्या को अधिकतम जन्म-दर (Maxi mum birth rate) या पोटेंशियल जन्म-दर (Potential natality) कहते हैं। जीवों में अधिकतम जन्म-दर उनके शरीर क्रियात्मक कारकों, जैसे - लैंगिक रूप से परिपक्व नर एवं मादा जीव की संख्या, मादा जीवों का समानुपात तथा एक निश्चित इकाई समय में मादा द्वारा उत्पन्न अण्डों या शिशुओं की संख्या आदि से निर्धारित होता है। किसी भी समष्टि की अधिकतम जन्म-दर सदैव ही स्थिर रहती है।

वास्तविक या पारिस्थितिक जन्म-दर (Actual or ecological birth rate) - किसी एक निश्चित समय में समष्टि में उत्पन्न नये जीवों की वास्तविक संख्या के योग को वास्तविक या पारिस्थितिक जन्म-दर कहते हैं। यह अधिकतम जन्म-दर से कम होती है, क्योंकि किसी भी समष्टि में सभी मादाओं की जनन क्षमता समान नहीं होती और उनमें उत्पन्न सभी अण्डों में अण्ड भेदन (hatching) भी नहीं हो पाता तथा अण्ड भेदन के फलस्वरूप निकले समस्त लार्वा प्रौढ़ में परिवर्तित नहीं हो पाते।

(ii) मृत्यु-दर (Death rate or Mortality) "किसी समष्टि में इकाई समय में मरने वाले जीवों की संख्या को मृत्यु दर कहते हैं। मृत्यु दर दो प्रकार के होते हैं।"(i) न्यूनतम तथा (ii) वास्तविक मृत्यु-दर। किसी भी समष्टि में मृत्यु के संयोग को उत्तरजीविता वक्र (Survival ship curve) द्वारा सरलतापूर्वक प्रदर्शित किया जा सकता है। इस वक्र को बनाने के लिए समष्टि के उत्तर जीवियों को कल के साथ आलेखित किया जाता है। 

उत्तरजीवित वक्र तीन प्रकार के होते हैं -

 (a) विकर्ण चक्र (Diagonal curve)-जब समष्टि में विभिन्न आयु वाले जीवों की मृत्यु-दर समान होती है तो एक सीधी विकर्ण रेखा (Straight diagonal line) के रूप में होती है। जैसे- हाइड्रा, माइस तथा अनेक प्रौढ़ पक्षियों के लिए बनाया जाता है।

 (b) उत्तल वक्र (Convex curve)-जब अधिकांश जीव अपना बायोटिक पोटेन्शियल (Biotic potential) पूरा कर लेते हैं और वृद्धावस्था में मृत्यु को प्राप्त करते हैं तो चक्र अत्यधिक उत्तल (Convex) होता है। बायोटिक पोटेन्शियल के पहुंचने तक लगभग यह क्षैतिज (Horizontal) रूप से चलता है और उसके बाद तीव्रता से नीचे की ओर मुड़ जाता है। इस तरह का चक्र मनुष्यों में पाया जाता है।

(c) अवतल वक्र (Concave curve)-जब अधिकांश जीव अपना बायोटिक पोटेन्शियल पूर्ण करने से काफी पहले मर जाते हैं, तो चक्र अत्यधिक अवतल (Concave) होता है। जैसे-ऑयस्टर्स अन्य कशेरूक जन्तु तथा मछलियों में।

2. वयस वितरण (Age distribution) - 

यह विभिन्न वयस वर्गों में समष्टि के जीवों की संख्या है। आपेक्षिक रूप से भिन्न युवा एवं वृद्ध जीवों की संख्या वाली समष्टियाँ भिन्न मृत्यु-दर, जन्म-दर व अन्य भिन्न पूर्वेक्षण प्रदर्शित

3. जैवीय विभव (Biotic potential) -

किसी समष्टि के वयस वितरण (Age distribution) के स्थायी होने तथा सभी वातावरण सम्बन्धी परिस्थितियाँ अनुकूल होने पर समष्टि को वृद्धि करने की समस्या या अंतनिर्हित शक्ति (inherent power) का जैवीय विभव (Biotic potential) या प्रजननीय विभव (Reproductive potential) कहते हैं। 

4. वृद्धि प्रतिरूप (Growth pattern)-

का आकार एवं संयोजन सदैव परिवर्तित होता रहता है। आकार एवं संयोजन दोनों वृद्धि की दर पर निर्भर करते हैं । समष्टियाँ वृद्धि विशिष्ट निशिष्ट प्रतिरूप प्रदर्शित करती हैं, जिन्हें वृद्धि प्रतिरूप (Growth pattern) कहते हैं। 

वृद्धि प्रतिरूप यह दो प्रकार के होते हैं -

(i) J-आकार का वृद्धि प्रतिरूप (J-shaped Growth pattern)-इस प्रकार की वृद्धि प्रतिरूप में चक्रवृद्धि ब्याज के समान शुरू में समष्टि के घनत्व (Density) में तेजी से वृद्धि होती है, किन्तु वातावरणीय प्रतिरोध तथा अन्य सीमाकारी कारकों के प्रभाव में आने पर यह सहसा रुक जाती हैं।

(ii) S- आकार का सिग्मॉइड वृद्धि प्रतिरूप (S-shaped of Sigmoid Growth pattern) - इस प्रकार के वृद्धि प्रतिरूप में समष्टि एक अनुकूल क्षेत्र को घेरकर प्रारम्भ में तो धीरे-धीरे वृद्धि करती है उसके बाद यह तेजी से वृद्धि करती है और अन्त में वातावरणीय प्रतिरोध के बढ़ने से एक सन्तुलन स्तर पर स्थापित हो जाती है और अब यह मंद गति से वृद्धि करना प्रारम्भ कर देती है। इस प्रकार का वृद्धि प्रतिरूप सामान्य रूप से यीस्ट कोशिकाओं तथा मानव समष्टि में देखने को मिलता है। समय और समष्टि के घनत्व का ग्राफ बनाने पर समष्टि की वृद्धि S-आकार का

5. समष्टि का परिक्षेपण (Population dispersal)

समष्टि के जीवों का अथवा उसकी जनन उत्पादी अवस्थाओं का भीतर प्रवेश अथवा बाहरी विकास को समष्टि का परिक्षेपण कहते हैं। ये तीन प्रकार के होते हैं 

(i) अप्रवासन (Immigration) - किसी क्षेत्र की एक ही जाति के सदस्यों द्वारा किया गया प्रवास, जिससे उनके वापस लौटने की सम्भावना न हो, अप्रवास कहलाता है।

(ii) उत्प्रवासन (Emigration) - किसी नये क्षेत्र में समष्टि के जीवों के प्रकीर्णन को उत्प्रवास कहते हैं। इनमें उन्हें मूल क्षेत्र में वापस आने की इच्छा नहीं होती है। 

(iii) प्रवसन (Migration) - किसी एक क्षेत्र से जीवों का दूसरे क्षेत्र में कुछ समय के लिए आना-जाना प्रवास कहलाता है। इस प्रकार के प्रवास में पूर्ण समष्टि प्रभावित होती है। जैसे-पक्षियों का अलग-अलग ऋतुओं में प्रवास।

6. समष्टि वितरण (Population distribution) 

समष्टि में जीवों के परिक्षेपण को समष्टि का वितरण कहते हैं। इसके कारण समष्टि की आन्तरिक रचना एव अन्य गुणों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है, समष्टि का वितरण कहते हैं। इसके कारण समष्टि की आन्तरिक रचना एवं अन्य गुणों पर व्यापक प्रभाव पड़ता है। समष्टि के जीवों में वितरण के तीन प्रतिरूप देखने को मिलते हैं। 

समष्टि के जीवों में वितरण तीन प्रतिरूप होता है -

(i) समान वितरण (Uniform distribution)-इसमें समष्टि के जीव लगभग समान रूप से वितरित होते हैं। इस प्रकार का वितरण समष्टियों के जीवों के बीच तीव्र प्रतिस्पर्धा के कारण उत्पन्न होता है।

(ii) अनियमित वितरण (Random distribution) इस प्रकार के वितरण में जीव न तो एक जगह एकत्रित होकर झुंड में रहते हैं और न ही वे समान रूप से वितरित होते हैं इस प्रकार का वितरण प्रायः असमान वातावरण के कारण होता है। 

(iii) झुरमुट अथवा झुण्ड वितरण (Clumped distribution)-इसमें जीव प्रायः झुण्ड बनाकर रहते हैं, जो सपूंजन (Aggregation) की विभिनन अवस्थाएँ प्रदर्शित करते हैं किन्त एक समष्टि में एक ही प्रकार के पुंज बनाकर रहते हैं।

7. समष्टि उच्चावचन (Population fluctuations) -

"किसी विशेष क्षेत्र में समष्टि के स्थापित होने के पश्चात् साम्यावस्था में पहुँचने पर इसकी संख्या समय समय पर साम्यावस्था से कम या अधिक होती रहती है इसी को समष्टि का उच्चावचन कहते हैं।" समष्टि में यह उच्चावचन पारिस्थितिक पर्यावरण में होने वाले परिवर्तन अथवा अन्तरा या अंतरजातीय प्रतिक्रयाओं के फलस्वरूप होता है। 

समष्टि का उच्चावचन यह दो प्रकार का होता है -

(i) मौसमी उच्चावचन (Seasonal fluctuations) यह मौसमी परिवर्तनों से उत्पन्न अनुकूलन द्वारा नियमित है। जैसे- वर्षा ऋतु में मक्खी तथा मच्छरों की वृद्धि।

(ii) वार्षिक उच्चावचन (Annual Fluctuations) भौतिक कारकों में वार्षिक परिवर्तनों के कारण समष्टियों में होने वाले उच्चावचन को वार्षिक उच्चावचन कहते हैं। जैसे-तापक्रम, वर्षा आदि।

इस आर्टिकल में हमने  जनसंख्या पारिस्थितिकी (population ecology in Hindi) के बारे में जाना। विश्व के लिए जनसँख्या नियंत्रण एक बहुत बड़ा मुद्दा है। जिस पर सभी देश काम कर रहे हैं ।

उम्मीद करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगी अगर आपको आर्टिकल पसंद आये तो आर्टिकल को शेयर अवश्य करें।

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