मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi)

इस आर्टिकल में हम मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi) के बारे में जानेंगे। क्या आपको मशरूम की सब्जी अच्छी लगती है। क्या आपको पता है ये मशरूम कैसी उत्पादित की जाती है। यदि आप नहीं जानते तो इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़ें , आपको मशरूम की खेती की पूरी जानकारी मिल जाएगी। 

मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi)


मशरूम की खेती (Mushroom ki Kheti in Hindi)

भारत में मशरूम की खेती का विस्तार तीव्र गति से हो रहा है। विशेषरूप से हिमाचल प्रदेश, तमिलनाडु एवं उत्तर प्रदेश समेत कुछ अन्य राज्यों में मशरूम उत्पादन में प्रतिवर्ष उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है।

1.पैरा अथवा पैडी स्ट्रॉ मशरूम की खेती (Cultivation of Paddy Straw Mushroom-Volvariella sp.)

बेड निर्माण तथा फसल उगाना (Bed preparation and cropping)-

हमारे छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए धान एक प्रमुख फसल है। अतः यहाँ धान का पैरा आसानी से उपलब्ध रहता है। पैरा का उपयोग बेड निर्माण में किया जाता है। सर्वप्रथम हाथ से काटे गये 3-4 फीट लम्बे, शुष्क तथा निरोगी पैडी स्ट्रॉ के बण्डल बनाये जाते हैं। एक बेड के निर्माण हेतु ऐसे 32 बण्डलों की आवश्यकता होती है तथा प्रत्येक बण्डल में एक से डेढ़ किलोग्राम पैरा होता है। इन बण्डलों को जल (Water) में 8-16 घण्टों तक डुबोकर (Soaked) रखा जाता है। तत्पश्चात् इन्हें बाहर निकालकर स्वच्छ पानी से धोया जाता है। अन्त में बण्डलों को लटकाकर अतिरिक्त पानी निकाल दिया जाता है।

पैरा नहीं बदलें अब पैडी स्ट्रॉ के बण्डलों को एक के ऊपर एक चार स्तरों (Four layers) में रखा जाता है। प्रत्येक स्तर में 8 बण्डल होते हैं। अब स्पॉन बॉटल (Spawn bottle) को खोलकर काँच की छड़ से हिलाकर स्पॉन को बेड के प्रत्येक स्तर के किनारों से 10 सेमी. की दूरी पर छिड़क दिया जाता है। यह छिड़काव (Sprinkling) 23 सेमी. सतत् भीतर की ओर किया जाता है। छिड़के हुए स्पॉन (Spawn) पर बेसन (पिसी लुई चने की दाल) को पतली पर्त छिड़क दी जाती है। इसी प्रकार दूसरी, तीसरी तथा चौथी लेयर का निर्माण किया जाता है। चौथे स्तर के निर्माण में थोड़ा-सा अन्तर होता है। चौथे स्तर में स्पॉन (Spawn) का छिड़काव समूची सतह पर एक समान किया जाता है जबकि अन्य स्तरों पर यह किनारों पर अधिक होता हैं।

बेड्स पर गर्म दिनों में 2-3 बार जल का छिड़काव किया जाता है। वर्षा काल में भी एकाध बार जल का छिड़काव आवश्यक है। यदि आवश्यक हो तो 0.1% मेलेथियॉन (Melathion) तथा 0.2% डाइइथेन Z.-78 (Dicthane Z-78) का छिड़काव किया जाता है। इस छिड़काव से कोटों (Insects), पेस्ट्स (Pests) तथा अन्य रोगों से बेड की रक्षा होती है।

कटाई तथा विपणन (Harvesting and Marketing)-

स्पॉनिंग (Spawning) 10-12 दिनों बाद फसल उगने लगती है। मशरूम की कटाई (Harvesting) सामान्यत: बटन स्टेज (Button stage) या फिर कप के फुटने (Rupturing) के तुरन्त बाद की जाती है। फसल को निकालने के 8 घण्टों के भीतर मशरूम का उपयोग कर लेना चाहिए या फिर इन्हें 10-15°C तापमान पर 24 घण्टों तक रख देना चाहिए अन्यथा ये नष्ट हो जाते हैं। इन्हें फ्रिज में एक सप्ताह तक रखा जा सकता है।

ताजा मशरूम को धूप में या फिर ओवन (Oven) में 55° से 60°C तापमान पर 8 घण्टों तक रखकर सूखाया जाता है। सूखने के बाद इन्हें पैक (Packed) कर सील कर दिया जाता है ताकि ये नमी (Moisture) न सोख सकें। मशरूम की पैकिंग प्राय: बटन स्टेज में करना उपयुक्त होता है। आमतौर पर प्रति बेड 3-4 किलोग्राम मशरूम की प्राप्ति की जा सकती है।

2. धींगरी की खेती (Cultivation of Pleurotus sp.)

अधोस्तर का चुनाव (Choice of substratum)- 

प्लूरोटस के खेती के लिए कटे हुए पैडी स्ट्रॉ (Chopped paddy straw) सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। अन्य पदार्थों में मकई की बाल (Maize cob), गेहूँ स्ट्रॉ (Wheat straw), रॉइ स्ट्रॉ (Rye straw), शुष्क घास (Dried grasses) कम्पोस्ट तथा लकड़ी के लट्ठे (Wooden logs) इत्यादि इस्तेमाल किये जा सकते हैं। बेड निर्माण तथा फसल उगाना (Bed preparation and Cropping)-कटे हुए पैडी स्ट्रॉ को 8-12 घण्टे तक पानी के टंकी (Water tank) में डुबोकर रखा जाता है। स्ट्रॉ को बाहर निकालकर स्वच्छ पानी से धोकर, अतिरिक्त पानी निकाल दिया जाता है। अब अधोस्तर (Substratum) को लकड़ी की ट्रे (1×1/2x1/4 मीटर) में रखा जाता है। पूरी ट्रे पर स्पॉन (Spawn) का छिड़काव किया जाता है। स्पॉनिंग (Spawing) के पश्चात् ट्रे को पॉलीथिन शीट से ढँक दिया जाता है। नमी बनाये रखने हेतु जल का छिड़काव दिन में 1 या 2 बार किया जाता है। 10-15 दिनों के बाद मशरूम के फलनकाय (Fruiting bodies) निकलने लगती हैं। जब पॉलीथिन शीट को हटा दिया जाता है। मशरूम की खेती पहले फलनकाय निकलने के 30-45 दिनों के बाद तक जारी रहती है।

बेड पर आवश्यकतानुसार जल का छिड़काव किया जाता है। तापमान 25°C (°5°C) तथा आपेक्षिक आर्द्रता (Relative humidity) 85-90% तक रखी जाती है। वातन (Aeration) की अच्छी व्यवस्था की जाती है तथा रोगनाशकों (0.1% Melathion, 0.2% Diethane Z-78) का छिड़काव किया जाता है।

कटाई तथा विपणन (Harvesting and Marketing)- 

मशरूम की कटाई उस समय की जाती है जब फलनकाय के पाइलियस (Pileus) का व्यास (Diameter) 8-10 सेमी. हो जाए। फसल को मोड़कर (Twisting) तोड़ा जाता है। आवश्यकतानुसार इसका विपणन कच्चा अथवा सूखाकर किया जाता है। मशरूम को धूप या ओवन में सूखाकर पैकिंग सीलिंग की जाती है ताकि ये नमी सोखकर नष्ट न होने पाये।

प्लूरोटस सजोर-काजू नामक प्रजाति 15 से 25 दिनों में तैयार हो जाती है। इसको खेती सरल है तथा इसमें प्रोटीन की मात्रा (Protein content) अत्यधिक होती है। इसमें मानव पोषण के लिए आवश्यक सभी अमीनो अम्ल (Amino acid) भी उपस्थित रहते हैं।

इसके खाद्य गुण (Palatability), स्वाद (Taste), सुगन्ध (Flavour) तथा मांस (Meat) के सदृश होनेके कारण " प्लूरोटस सजोर-काजू" को अत्यधिक पसंद किया जाता है।

मशरूम कृषि का महत्व (Importance of Mushroom Cultivations)

भारत सहित विश्व के अनेक देशों के लिये कुपोषण (Malnutrition) एक गम्भीर समस्या है। विकसित देशों (Developed countries) में जहाँ प्रति व्यक्ति प्राणी प्रोटीन की औसत खपत 31 किलोग्राम प्रतिवर्ष है, वहीं भारत में यह केवल 4 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष है। मशरूम (Mushrooms) प्रोटीन के प्रमुख स्रोत होते हैं। शुष्क भार (Dry weight) के आधार पर विभिन्न मशरूम में प्रोटीन की कुल मात्रा 21 से 30 प्रतिशत तक होती है। प्रोटीन की इतनी मात्रा अन्य स्रोतों, जैसे—अनाज (Cereals), दालों (Pulses), फल (Fruits) तथा सब्जियों (Vegetables) में भी नहीं होती। प्रोटीन के अलावा इसमें कैल्सियम, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम जैसे खनिज तत्व भी अच्छी मात्रा में पाए जाते हैं। सभी आवश्यक अमीनो अम्लों का इनमें समावेश होता है। भारत गरीबी, जनसंख्या वृद्धि तथा कुपोषण की समस्याओं से ग्रस्त है। ऐसी स्थिति में यदि मशरूम को आम जनता खासकर शिशु एवं किशोर युवाओं को उपलब्ध कराया जाए तो उनमें कुपोषण के कारण होने वाली शारीरिक समस्याओं को होने से रोका जा सकता है। मशरूम की खेती को आवश्यक प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए क्योंकि मशरूम न केवल पोषक हैं बल्कि इनकी खेती भी सस्ती है।

मशरूम अपने स्वाद एवं पोषक मान जैसे प्रोटीन, खनिज तत्वों की बहुलता तथा कोलेस्टेरॉलरहित वैल्यू के कारण उच्चवर्गीय भारतीयों के आहार का महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। इससे विविध प्रकार के स्वादिष्ट\ व्यंजन, जैसे-मशरूम पनीर, मशरूम पुलाव, मशरूम ऑमलेट, मशरूम सूप, मशरूम टिक्का आदि बनाये जाते हैं। छोटे एवं बड़े शहरों में इसका प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता जा रहा है।

इस आर्टिकल में हमें मशरूम की खेती और उसके महत्व के बारे में जाना। जो परीक्षा के साथ साथ हमारे दैनिक जीवन की सामान्य जानकरी के लिए बी जरुरी है।

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