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वित्तीय विवरणों का निर्वचन, उद्देश्य, और प्रकार (Interpretation, Purpose, and Types of Financial Statements)

वित्तीय विवरणों का विश्लेषण एवं निर्वचन (vittiya vivarano ka vishleshan)

नमस्कार दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। आज के इस आर्टिकल में  वित्तीय विवरणों के निर्वचन,उद्देश्य,आवश्यकता,प्रकार से सम्बंधित पूरी जानकारी आपके लिए लाये है वित्तीय विवरणों का निर्वचन क्यों जरूरी है वित्तीय विवरणों का उदेश्य क्या है साथ ही वित्तीय विवरणों का निर्वचन की क्यों आवश्यकता पढ़ती है और वित्तीय विवरणों का निर्वचन के कितने प्रकार होते है।

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वित्तीय विवरणों का विश्लेषण एवं निर्वचन की आवश्यकता होती है वित्तीय विवरणों में सन्निहित वित्तीय सूचनाओं को समझने के क्रम में तथा फ़र्म के संचालन संबंधी निर्णयों को लेने के लिए विवेचनात्मक परीक्षण की प्रक्रिया को वित्तीय विवरण विश्लेषण कहते हैं। यह मूलभूत रूप से वित्तीय विवरण में दिए गए विभिन्न संख्याओं और तथ्यों के बीच संबंधों का अध्ययन तथा व्याख्या है जिससे किसी भी फ़र्म की लाभप्रदता और प्रचालन कार्यक्षमता दृष्टिगत होती है जो वित्तीय स्थिति एवं भविष्य परिदृश्य के मूल्यांकन में सहायक होती हैं।

वित्तीय विवरणों का महत्व उनकी रचना में नहीं, वरन् उनके विश्लेषण एवं निर्वचन में निहित है। इसीलिए यह कहा जाता है कि वित्तीय विवरण अपने में लक्ष्य नहीं होते, वरन् वे तो साधन मात्र हैं। स्पष्ट है कि वित्तीय विवरण अंकों के समूह मात्र हो हैं। इनको समझाने के लिए इनका विश्लेषण करना होता है।

Table of content: -

  • वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का आशय (MEANING OF ANALYSIS OF FINANCIAL STATEMENTS) 
  • वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के उद्देश्य (OBJECTIVES OF FINANCIAL STATEMENT ANALYSIS) 
  • वित्तीय विवरणों के विश्लेषण की आवश्यकता (NEED OF FINANCIAL STATEMENT ANALYSIS) 
  • वित्तीय विवरणों का निर्वचन (INTERPRETATION OF FINANCIAL STATEMENTS) 
  • वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के प्रकार (TYPES OF FINANCIAL STATEMENT ANALYSIS) 

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का आशय (MEANING OF ANALYSIS OF FINANCIAL STATEMENTS) 

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का आशय वित्तीय विवरणों में दी गई सूचनाओं के आलोचनात्मक परीक्षण की व्यवस्थित प्रक्रिया से है जिससे उन सूचनाओं को समझा जा सके, उनके आधार पर निष्कर्ष निकाले जा सकें तथा उचित निर्णय लिए जा सकें। इसके लिए इन विवरणों में दिए विभिन्न वित्तीय तथ्यों और समंकों के मध्य सम्बन्ध स्थापित किया जाता है तथा उसके आधार पर प्रवृत्तियों, परिणामों तथा परिस्थितियों के सम्बन्ध में निर्वचन किया जाता है इसकी कुछ मुख्य परिभाषाएं निम्न प्रकार हैं. वित्तीय विवरणों के विश्लेषण को अलग अलग लोगो के अपने तरीके से परिभाषित किया जो नीचे दिया गया हैं.

(1) जॉन एन. मायर के अनुसार - “वित्तीय विवरण विश्लेषण वृहत् रूप में किसी व्यवसाय के विभिन्न विवरणों के एक समूह द्वारा प्रकट किए वित्तीय कारकों के मध्य सम्बन्धों का अध्ययन है। इसके साथ ही यह विवरणों की एक श्रृंखला में दिखलाई गई इन कारकों की प्रवृत्ति का अध्ययन भी है। 

(2) बेलवर्ड नीडलैस के अनुसार - “वित्तीय विवरण विश्लेषण में उन सभी तकनीकों को शामिल किया जाता है जो इन विवरणों के प्रयोगकर्ताओं द्वारा वित्तीय विवरणों में महत्वपूर्ण सम्बन्ध दिखाने के लिए प्रयोग की जाती है । कुल मिलाकर वित्तीय विश्लेषण में कुछ निश्चित योजनाओं के आधार पर तथ्यों का विभाजन करना, निश्चित परिस्थितियों अनुसार उनकी वर्ग रचना तथा सुविधाजनक एवं आसान रूप में पढ़ने तथा समझने योग्य रूप में उन्हें प्रस्तुत करना शामिल है।

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के कुछ मुख्य उद्देश्य हैं आज इस पोस्ट में हमने वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का उद्देश्य दिये है.

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के उद्देश्य (OBJECTIVES OF FINANCIAL STATEMENT ANALYSIS) 

यद्यपि वित्तीय विवरणों का प्रत्येक प्रयोगकर्ता अपने दृष्टिकोण को ध्यान में रखकर विश्लेषण करता है, फिर भी वित्तीय विवरण विश्लेषण के कुछ महत्वपूर्ण उद्देश्य निम्न प्रकार हैं : -

(1) लाभदायकता अथवा अर्जन क्षमता का निर्धारण (Determination of Profitability or Earning Capacity) - वित्तीय विवरणों के आधार पर व्यावसायिक इकाई की लाभ-अर्जन क्षमता की गणना की जा सकती है तथा इसकी भांवी सम्भावनाओं का अनुमान लगाया जा सकता है। अंशधारी, विनियोक्ता एवं ऋणदाता वर्ग इस गणना में विशिष्ट रुचि रखता है। 

(2) प्रवन्धकीय कार्यकुशलता का निर्धारण (Determination of Managerial Efficiency) – वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के आधार पर उपक्रम के विभिन्न विभागों तथा समग्र रूप से कार्यकुशलता का मापन हो सकता है। इससे विभिन्न विभागों अथवा कार्यों में प्रबन्धकीय कार्यकुशलता की जानकारी मिलती है।

(3) शोधन क्षमता की जानकारी (Knowledge of Solvency) - वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य फर्म की दीर्घकालीन एवं अल्पकालीन शोधन क्षमता का पता लगाना है। इसके आधार पर ही फर्म की साख योग्यता (Credit Worthiness ) का निर्धारण होता है। 

(4) पूर्वानुमान एवं बजट (Making Forecasts and Preparing Budgets) - वित्तीय विवरणों की भूत एवं वर्तमान की सूचनाओं के आधार पर भविष्य में वित्तीय आवश्यकताओं एवं निष्पादन का अनुमान लगाया जा सकता है तथा बजट तैयार किए जा सकते हैं। 

(5) फर्मों की आपसी तुलना (Inter-firm Comparison) – वित्तीय विवरणों की प्रवृत्तियों एवं निष्कर्षो के आधार पर विभिन्न फर्मों की आपस में तुलना की जा सकती है। 

(6) वित्तीय कमियों की जानकारी (Knowledge of Financial Weaknesses) — वित्तीय विवरणों के विश्लेषण का उद्देश्य के विश विभिन्न वित्तीय कमियों की जानकारी प्राप्त करना भी होता है, जिससे सुधार प्रयास किए जा सकें। 

(7) विकास सम्भावनाओं का निर्धारण (Determination of Growth Prospects) - वित्तीय विवरणों का विश्लेषण फर्म की तथा इसके विभिन्न विभागों की विकास सद्भावनाओं को निर्धारित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है। 

ऊपर हमने जाना कि वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के क्या उद्देश्य हैं अब जानते है कि इसकी आवश्यकता क्यों पढ़ती है चलिए इसको भी जानते है.

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण की आवश्यकता (NEED OF FINANCIAL STATEMENT ANALYSIS) 

विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार के निर्णयों की दृष्टि से वित्तीय विवरणों का विश्लेषण आवश्यक हो जाता है। इस सन्दर्भ में आवश्यकता के मुख्य बिन्दु निम्न प्रकार हैं :-

(1) अंश पूंजी विश्लेषण (Share Capital Analysis) — अंशधारी विभिन्न पहलुओं से अंश पूंजी एवं उससे सम्बन्धित विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करता है। अंशधारी यह जानना चाहता है कि क्या कम्पनी लाभांश के भुगतान, पूंजी वृद्धि एवं पूंजी की सुरक्षा की दृष्टि से उसकी आशाओं की पूर्ति कर रहा है ? अन्य कम्पनियों की तुलना में इस कम्पनी की स्थिति क्या है? उसे इस कम्पनी में अपना विनियोग बनाये रखना चाहिये या उसमें कमी या वृद्धि करनी चाहिये। कुल मिलाकर अंश पूंजी विश्लेषण में अंशों के मूल्य व्यवहार तथा कम्पनी की लाभांश नीति के सम्बन्ध में विश्लेषण किया जाता है। में 

(2) ऋण विश्लेषण (Debt Analysis ) - ऋण विश्लेषण की आवश्यकता इस दृष्टि से की जाती है कि क्या कम्पनी ऋण पर व्याज़ का उचित प्रकार से भुगतान कर रही है या नहीं? ऋण-समता अनुपात क्या है ? ऋणों के शोधन की दृष्टि से कम्पनी की तरलता की स्थिति क्या है ? 

(3) साख विश्लेषण (Credit Analysis) – साख विश्लेषण की आवश्यकता आपूर्तिकर्ताओं को होती है। आपूर्तिकर्ता यह विश्लेषण करता है कि समय पर भुगतान सुनिश्चित होता रहे। इस दृष्टि से तरल अनुपात, चालू अनुपात इत्यादि का अध्ययन किया जाता है। 

(4) लाभांश निर्णय (Dividend Decisions) – कम्पनी द्वारा लाभांश निर्णय की दृष्टि से भी वित्तीय विश्लेषण की आवश्यकता होती है ? लाभांश भुगतान का अंशों के मूल्यों, कम्पनी की तरलता तथा भविष्य में पूंजी प्राप्ति पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।

(5) नियामक अनुपालन (Regulatory Compliance) — अनेक नियामक व्यवस्थाओं के अनुपालन की दृष्टि से भी वित्तीय विश्लेषण आवश्यक हो जाता है। इनमें सेबी, स्कन्ध विपणियों, कम्पनी मामलों के विभाग, कम्पनी रजिस्ट्रार इत्यादि द्वारा वित्तीय विश्लेषणों का प्रयोग किया जाता है, जिससे यह निश्चित हो सके कि कम्पनी द्वारा नियामक प्रावधानों का पालन किया जा रहा है। 

(6) व्यवसाय संचालन विश्लेषण (Business Operation Analysis)– कम्पनी की लाभदायकता के विश्लेषण के आधार पर व्यवसाय संचालन का विश्लेषण किया जाता है, जिसमें यह मूल्यांकन किया जाता है कि प्रतियोगिता में कम्पनी की स्थिति क्या है? नये उत्पादों को प्रारम्भ करने या उत्पाद मिश्रण में परिवर्तन का कम्पनी की लाभदायकता पर क्या प्रभाव पड़ रहा है। 

(7) बिलय एवं अधिग्रहण (Mergers and Acquisition)– कम्पनियों के विलय एवं अधिग्रहण का निर्णय लेने, कम्पनी की सम्पत्तियों एवं दायित्वों का मूल्यांकन करने तथा अंशों का मूल्य निर्धारित करने के लिये भी वित्तीय विश्लेषण आवश्यक हो जाता है।

वित्तीय विवरणों का निर्वचन (INTERPRETATION OF FINANCIAL STATEMENTS) 

यह उल्लेखनीय है कि वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के साथ ही इनका निर्वचन भी किया जाता है। यद्यपि व्यवहार में 'विश्लेषण' एवं 'निर्बचन' दोनों एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, लेकिन तकनीकी दृष्टि से इन दोनों में अन्तर है। विश्लेषण प्रथम सीढ़ी है और निर्वचन उसके पश्चात् की सीढ़ी है। विश्लेषण तथ्य ज्ञात करने और जटिल अंकों को सरल भागों में विभाजित करने की प्रक्रिया है, जबकि निर्वचन विश्लेषण के आधार पर उपलब्ध समंकों से निष्कर्ष निकालने तथा उनका महत्व स्पष्ट करने की

व्यवस्था है। इतना अवश्य है कि दोनों एक दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं, क्योंकि विश्लेषण के विना निर्वाचन नहीं हो सकता और निर्वचन के बिना विश्लेषण व्यर्थ है। वित्तीय विवरणों के विश्लेषण एवं निर्वचन की संयुक्त परिभाषाएं निम्न प्रकार हैं : -

(1) कैनेडी एवं मूलर (Kennedy and Muller) के अनुसार, “वित्तीय विवरणों का विश्लेषण एवं निर्वचन एक ऐसा प्रयास है, जिसके द्वारा वित्तीय विवरणों के समंकों का आशय एवं महत्व निर्धारित किया जाता है, जिससे भावी अर्जनों, देय तिथियों पर ऋणों एवं व्याज के भुगतान की योग्यता एवं एक सुदृढ़ लाभांश नीति की लाभदायकता की सम्भावनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सके।" 

(2) स्पाइसर एवं पेगलर के अनुसार, "लेखों के निर्वचन को वित्तीय समंकों के इस प्रकार अनुवाद करने की कला एवं विज्ञान के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिससे व्यवसाय की आर्थिक सुदृढ़ता एवं कमियां उनके कारणों सहित स्पष्ट हो सकें।

तो ऊपर आपने जाना कि वित्तीय विवरणों का निर्वचन कैसे किया जाता है अब आगे जानते है कि वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के कितने प्रकार के होते है नीचे पूरी जानकारी दिया गे है.

वित्तीय विवरणों के विश्लेषण के प्रकार (TYPES OF FINANCIAL STATEMENT ANALYSIS) 

विभिन्न पक्षकार विभिन्न उद्देश्यों के लिए विभिन्न आधारों पर वित्तीय विवरणों का विश्लेषण कर सकते हैं। कुल मिलाकर वित्तीय विवरण विश्लेषण के निम्न प्रकार हो सकते हैं :

(I) विश्लेषण की प्रकृति एवं प्रयुक्त सामग्री के आधार पर ( According to the Nature of Analyst and the Materials Used) इस आधार पर वित्तीय विवरण विश्लेषण निम्न दो प्रकार का हो सकता है : 

(i) बाह्य विश्लेषण ( External Analysis) — यह विश्लेषण उन व्यक्तियों या पक्षकारों द्वारा किया जाता है, जो उपक्रम से जुड़े नहीं होते अर्थात् जिनकी उपक्रम के विस्तृत रिकॉर्ड तक पहुंच नहीं होती। इसका विश्लेषण मुख्यतः प्रकाशित लेखों, संचालक रिपोर्ट तथा अंकेक्षक रिपोर्ट पर आधारित होता है। विनियोक्ता, साख एजेन्सियों, सरकार एजेन्सियों तथा शोधकर्ता इसी प्रकार का विश्लेषण करते हैं। 

(ii) आन्तरिक विश्लेषण (Internal Analysis) – यह विश्लेषण उन व्यक्तियों के द्वारा किया जाता है जिनकी उपक्रम की लेखा पुस्तकों तक पहुंच होती है। ये व्यक्ति संगठन/उपक्रम के सदस्य होते हैं। प्रबन्ध द्वारा उपक्रम की वित्तीय स्थिति तथा कार्यकुशलता के लिए किया जाने वाला विश्लेषण इसी वर्ग में आता है। सामान्यतः आन्तरिक विश्लेषण अधिक विस्तृत एवं विश्वसनीय होता है, क्योंकि इसमें विश्लेषक को सभी प्रकार की आवश्यक सूचनाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती हैं। 

(II) विश्लेषण के उद्देश्य के आधार पर (According to the Objectives of the Analysis) इस आधार पर भी वित्तीय विवरण विश्लेषण निम्न दो प्रकार का हो सकता है : 

(i) दीर्घकालीन विश्लेषण (Long-term Analysis) — दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन की दृष्टि से किया जाने वाला विश्लेषण दीर्घकालीन विश्लेषण कहलाता है। इसमें फर्म की दीर्घकालीन शोधनक्षमता, लाभदायकता तथा वित्तीय स्थायित्व के सम्बन्ध में विश्लेषण किया जाता है। 

(ii) अल्पकालीन विश्लेषण (Short-term Analysis)– इसके अन्तर्गत अल्पकाल में शोधनक्षमता, तरलता, स्थायित्व तथा लाभदायकता, इत्यादि की दृष्टि से विश्लेषण किया जाता है।

(III) कार्यविधि के आधार पर (According to the Modus Operandi) कार्यविधि के आधार पर विश्लेषण के निम्न दो प्रकार होते हैं : 

(i) क्षैतिज या गतिशील विश्लेषण (Horizontal or Dynamic Analysis— यह विश्लेषण एक ही फर्म के विभिन्न वर्षों के विवरणों के आधार पर किया जाता है अतः इसे 'काल माला विश्लेषण' ( time series analysis) या अन्तर फर्म विश्लेषण (intra-firm analysis) भी कहते हैं। दीर्घकालीन प्रवृत्ति विश्लेषण एवं नियोजन की दृष्टि से यह विश्लेषण काफी उपयोगी होता है। तुलनात्मक वित्तीय विवरण, प्रवृत्ति विश्लेषण, कोष प्रवाह विश्लेषण, रोकड़ प्रवाह विश्लेषण, इत्यादि इस प्रकार के विश्लेषण के ही उदाहरण है। 

(ii) लम्बवत् या स्थिर विश्लेषण (Vertical or Static Analysis ) – इस विश्लेषण में एक विशिष्ट वर्ष के वित्तीय विवरणों के आधार पर ही विश्लेषण किया जाता है। इस प्रकार का विश्लेषण एक निश्चित तिथि पर वित्तीय समंकों का विश्लेषण करता है। अतः इसे स्थिर विश्लेषण भी कहते हैं। इस विश्लेषण के आधार पर एक वर्ष में एक उपक्रम के विभिन्न विभागों या विभिन्न उपक्रमों का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है। इस दृष्टि से इसे क्रॉस-सैक्शन विश्लेषण (Cross-section analysis) भी कहा जाता है।


इस आर्टिकल में हमने वित्तीय विवरणों का निर्वचन, उद्देश्य, और प्रकार के बारे में विस्तार से जाना। वित्तीय विवरण व्यवसाय, उद्योग, या ऑफिस में वित्त सम्बन्धी होने वाले सभी कार्यों का लेखा-जोखा है। वित्तीय विवरण जितना बड़ा और भरी  होता है, लाभ की सम्भावना भी उतनी ही बढ़ जाती है।

उम्मीद करता हूँ कि वित्तीय विवरणों का निर्वचन, उद्देश्य, और प्रकार सम्बन्धी यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी सिद्ध होगा ,यदि आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

प्रबंधकीय लेखाविधि क्या हैं? | प्रमुख विशेषताएँ | What are Managerial Accounting? salient features

प्रबंधकीय लेखाविधि से आशय और विशेषताएँ

नमस्कार, आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। बहुत से लोगो को प्रबंधकीय लेखाविधि जैसे विषय पर परेशानी होती है, तो किसी को यह प्रक्रिया बिलकुल भी समझ में नही आता. हम इस पोस्ट के जरिये आपको प्रबंधकीय लेखाविधि और प्रमुख विशेषताएँ  के बारे में सरल भाषा में सफलता पूर्वक समझायेंगे।

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प्रबंधकीय लेखाविधि परिचय - प्रारम्भ में लेखा विधि का कार्य व्यापारिक लेंन-देनों का लेखन करना तथा उसके आधार पर परिणामो को लाभ हनी खता तथा चिट्टे के रूप में प्रस्तुत करना होता था, लेकिन प्रबंध विज्ञान एवं तकनीको के विकास के साथ ‘प्रबंध’ और ‘लेखाविधि’ एक दुसरे के निकट आ गए तथा लेखा विधि के विश्लेष्ण तथा निर्वचन प्रबंन्धकीय क्रियाओ के आधार और मार्गदर्शक बन गये तथा लेखाविधि की एक नवीन शाखा ‘प्रबंधकीय लेखाविधि’ का विकास हो गया| 

प्रबंधकीय लेखाविधि क्या हैं? | प्रमुख विशेषताएँ पोस्ट से पहले हमने वित्तीय विवरण क्या है? प्रकार और सीमाएँ के ऊपर पहले से आर्टिकल लिख चुके है आप इस पोस्ट के बाद वित्तीय विवरण क्या है? प्रकार और सीमाएँ को जरुर पढ़े.

प्रबंधकीय लेखाविधि का आशय(Meaning of Managerial Accounting)

प्रब्म्धाकीय लेखाविधि दो शब्दों – ‘प्रबंधकीय’ और ‘लेखाविधि’ का संयोग है| प्रबंधकीय का अर्थ ‘प्रबंध की दृष्टि’ से अथवा प्रबंध के लिए होता है| दुसरे शब्दों में, प्रबन्ध का कार्य नियोजन, निर्देशन एवं निमंत्रण करना होता है| इस दृष्टि से की जाने वाली व्यवस्था को प्रबंधकीय कहा जाता है| लेखाविधि या लेखांकन व्यवसाय के विभिन्न वित्तीया व्यवहारों का लेखन, संपादन और प्रस्तुति है| इस प्रकार लेखाविधि के उस स्वरूप, व्यवस्था एवं तकनीको को प्रबंधकीय लेखाविधि कहा जाता है जो व्यवसाय के संबंध में प्रबंध को उन सभी लेखांकन सूचनाओ को उपलब्ध कराता है जो प्रबंध को नियोजन करने , निर्देशन देने एवं नियंत्रण करने में सहायता करती है| प्रबंधकीय लेखाविधि की कुछ प्रमुख परिभाषाएं अग्र प्रकार है : 

1.एंग्लो -अमेरिकन उत्पादकता परिषद् के अनुसार, ‘‘प्रबंधकीय लेखाविधि, लेखांकन सूचनाओ का इस रूप में प्रस्तुतिकरण है जो प्रबंध को उपक्रम की निति निर्धारित करने तथा दिन प्रतिदिन के संचलन में सहायता करता है|’’

इस परिभाषा के अनुसार, लेखांकन सूचनाओ के ऐसे विशिष्ट प्रश्तुतीकरन को प्रबंधकीय लेखाविधि कहा गया है जो प्रबंध को निर्णय लेने और कार्य करने में सहायता कर सके| 

जरुर पढ़े - जीन क्लोनिंग क्या है पूरी जानकारी

2.रॉबर्ट एन. एंथोनी के अनुसार - ‘‘प्रबंधकीय लेखाविधि का सम्बन्ध लेखा सूचनाओ से है जो प्रबंध के लिए उपयोगो होती है|’’

एंथोनी ने प्रबंधकीय लेखाविधि को लेखांकन सूचनाओ और प्रबंध के रूप में उनकी प्रतियोगिता के रूप में परिब्जषित किया है|

3.जे. बेट्टी के शब्दों में - ‘‘प्रबंधकीय लेखाशास्त्र शब्द का प्रयोग उन लेखांकन विधियों, प्रणाली और तकनीको का वर्णन करने के लिए किया जाता है जिन्हें विशिष्ट गया एवं योग्यता के साथ प्रयोग करने से प्रबंध को अपने कार्य अर्थात लाभों को अधिकतम करने या हानियो को न्यूनतम करने में सहायता मिलती है|’’

जे. बेट्टी - ने स्पस्ट किया कि प्रबंध का मुख्य उद्देश्य फार्म के लाभों को अधिकतम करना या हानियों को न्यूनतम करना है| इस दृष्टि से लेखांकन की उन सभी तकनीको और व्यवस्थायो प्रबंधकीय लेखाविधि में शामिल करते हैं जो प्रबंध को उचित निर्णय लेने में सहायता करता हैं| इसके लिए प्रबंध अपनी विशिष्ट योग्यता एवं ज्ञान का भि प्रयोग करता है जो विभिन्न विषयों जैसे सांख्यिकीय तकनीको, अर्थशाश्त्र, विधि इत्यादि के क्षेत्र में हो सकती हैं|  

प्रबंधकीय लेखाविधि के विशेषताएँ (Features of Managerial Accounting)

1. समन्वित पद्धति (Integrated System)—प्रवन्धकीय लेखाविधि एक समन्वित व्यवस्था है जिसमें सूचनाओं के सकछन, विश्लेषण और निर्णयन में अनेक विषयों की तकनीकों का प्रयोग किया जाता है। इन विषयों में लागत लेखा विधि, वित्तीय लेखा-विधि, वित्तीय प्रवन्ध, सांडियको अर्थशास्त्र, व्यावसायिक औद्योगिक मनोविज्ञान इत्यादि शामिल हैं। 

2. भविष्य से अधिक सम्बन्धित (More Concerned with Puture)-प्रबन्धकीय लेखाविधि भविष्य से अधिक सम्बन्धित है। यह ठीक है कि ऐतिहासिक समकों के आधार पर विश्लेषण और निर्वाचन किया जाता है, लेकिन प्रबन्धकीय लेखाविधि के प्रयोग का महत्वपूर्ण उद्देश्य भविष्य के लिए नीति निर्धारित करना, पूर्वानुमान करना, नियोजन करना, बजट बनाना इत्यादि है।

3. चयनात्मक प्रकृति (Selective Nature) प्रबन्धकीय लेखाविधि चयनात्मक प्रकृति की होती है। इसके अन्तर्गत सर्वश्रेष्ठ योजनाओं तथा सबसे अधिक नामकारी और सर्वश्रेष्ठ विकल्पों का चुनाव किया जाता है। इसी प्रकार प्रबन्ध के समक्ष सभी सूचनाओं को न रखकर केवल उन्हीं सूचनाओं को रखा जाता है जो प्रबन्ध की जानकारी और निर्णय के लिए महत्वपूर्ण है। 

4. लागत तत्वों की प्रकृति के अध्ययन पर विशेष बल (More Emphasis on the Nature of Elements of Cast) -प्रवन्धकीय लेखाविधि में लागत तत्वों और उनकी प्रकृति के अध्ययन का विशेष महत्व है। इस दृष्टि से सम्पूर्ण लागत को स्वागत परिवर्तनशील लागत और अर्द्ध-परिवर्तनशील लागतों में बांटा जाता है। प्रबन्धकीय लेखाविधि की अनेक तकनीक जैसे प्रमाप लागत विधि, सीमावर्ती लागत विधि तथा लागत मात्रा विश्लेषण इत्यादि नागत तत्वों के विश्लेषण से ही सम्बन्धित है। 

5. कारण और प्रभाव का विश्लेषण (Cause and Effect Analysis) प्रबन्धकीय लेखाविधि किसी भी तथ्य के कारण एवं प्रभाव के विश्लेषण पर विशेष जोर देती है। वित्तीय लेखांकन लाभ या हानि की राशि बताकर ही छोड़ देता है, जबकि प्रवन्धकीय लेखाविधि में यह विश्लेषण भी किया जाता है कि हानि के क्या कारण रहे? लाभ में किन घटकों का सहयोग रहा? विभिन्न वर्षो में लाभ और हानि की क्या प्रवृत्ति रही? और विभिन्न निर्णयों का वित्तीय परिणामों या वित्तीय स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा ? 

6. नियम सुनिश्चित और सर्वव्यापी नहीं (Rules not Precise and Universal) - प्रवन्धकीय लेखाविधि के नियम पूरी तरह निश्चित और सर्वव्यापी नहीं होते हैं। यद्यपि प्रबन्धकीय लेखाविधि को तकनीके समान होती हैं, लेकिन उनके प्रयोग करने, उनसे निष्कर्ष निकालने और उन्हें प्रस्तुत करने में प्रत्येक उपक्रम अपनी आवश्यकता के अनुसार और लेखापाल अपनी योग्यता के अनुसार अलग-अलग नियम बना सकता है।

इस पोस्ट में हमने लेखाशास्त्र के विषय प्रबंधकीय लेखाविधि के बारे में विस्तार से जाना। विभिन्न परीक्षाओं में प्रबंधकीय लेखाविधि से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं। और विशेष कर अकाउंट के विद्यार्थियों के लिए प्रबंधकीय लेखाविधि की यह विशेष उपयोगी है 

आशा है की आपकी प्रबंधकीय लेखाविधि  से सम्बंधित सभी सवालों के जवाब आपको इस पोस्ट के माध्यम से मिल गए होंगे। यदि आपको पोस्ट लाभकारी प्रतीत हो तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

वित्तीय विवरण क्या है? प्रकार और सीमाएँ (What is Financial Statement? Types and Limitations)

वित्तीय विवरण क्या है? वित्तीय विवरणों की सीमाएँ

आज हम इस पोस्ट में  वित्तीय विवरण क्या है, और वित्तीय विवरणों की सीमाएँ यह कितने होते है और उन सीमाओं का क्या आशय है। इन सब की जानकारी के बारे में बताया गया है। विभिन्न ऑफिस ,स्कूल, कॉलेज तथा संस्थान में पैसों की लेंन-देंन की जानकारी का कार्य वित्तीय विवरण कहलाता है।

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लेखांकन प्रक्रिया में व्यवसाय से सम्बन्धित विभिन्न व्यवहारों का लेखन, वर्गीकरण और संक्षिप्तीकरण किया जाता है। संक्षिप्तीकरण की प्रक्रिया में उपक्रम की लाभदायक और वित्तीय स्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास किया जाता है। वित्तीय विवरण लेखांकन प्रक्रिया में संक्षिप्तीकरण का ही परिणाम है जो व्यवसाय की लाभदायक एवं वित्तीय स्थिति के बारे में विविध सूचनाएं प्रदान करते हैं। 

किसी व्यापार, व्यक्ति या अन्य इकाई के वित्तीय विवरण (financial statement) से आशय उसकी गतिधियों के औपचारिक रिकार्ड से है।

यद्यपि वित्तीय विवरणों को उपयोगकर्ताओं की उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए अत्यधिक सावधानी से बनाया जाता है, 

वित्तीय विवरणों की परिभाषाएं(DEFINITIONS OF FINANCIAL STATEMENTS) 

वित्तीय विवरणों की परिभाषाएं प्रमुख विद्वानों के द्वारा निम्न प्रकार दी गई हैं : 

स्मिथ एवं एसबर्न के अनुसार, “वित्तीय लेखांकन के अन्तिम उत्पाद के रूप में वित्तीय विवरण एक व्यावसायिक संस्थान के लेखों द्वारा तैयार किए जाते हैं जिनका उद्देश्य उद्यम की वित्तीय स्थिति तथा उसके हाल ही के कार्यकलापों के परिणाम को प्रकट करना और आय के द्वारा किए गए कार्यों का एक विश्लेषण करना होता है।'' 

एन्थोनी के अनुसार, “वित्तीय विवरण मूलतः वार्षिक रूप से प्रस्तुत अन्तरिम रिपोर्ट तथा एक उद्यम के जीवन के एक खण्ड का कुल मिलाकर थोड़ा बहुत या ऐच्छिक लेखांकन अवधि कुछ हद तक एक वर्ष का प्रतिबिम्बन होता है। 

जॉन एन. मेयर के अनुसार, “वित्तीय विवरण एक उद्यम के खातों के सारांश, तुलन पत्र में परिसम्पत्तियों, दायित्वों तथा निश्चित तिथि पर पूंजी की स्थिति को एक विशिष्ट अवधि के दौरान और संचालन के परिणाम आय विवरण को दर्शाते हैं।"

वित्तीय विवरणों के प्रकार (TYPES OR PACKAGE OF FINANCIAL STATEMENTS) 

वित्तीय विवरणों में निम्न को शामिल किया जाता है : 

1. आय विवरण (Income Statement) अथवा व्यापारिक एवं लाभ-हानि खाता या लाभ-हानि विवरण जो अवधि में उपक्रम के कार्य संचालन के वित्तीय परिणामों अथवा अर्जन को दर्शाता है। 

2. स्थिति विवरण (Position Statement) अथवा आर्थिक चिट्ठा—जो एक लेखांकन अवधि के अन्त में व्यावसायिक उपक्रम की वित्तीय स्थिति को स्पष्ट करता है। 

3. अन्य विवरण - जैसे प्रतिधारित लाभों का विवरण, कोष प्रवाह विवरण, रोकड़ प्रवाह विवरण, समता में परिवर्तन का विवरण इत्यादि। संक्षेप में वित्तीय विवरणों के ढांचे (Anatomy) को निम्न चार्ट द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है

वित्तीय विवरणों की सीमाएँ (Limitations of Financial Statements)

1.वर्तमान स्तिथि में प्रतिबिंबित नहीं करता – वित्तीय विवरणों को ऐतिहासिक लागत के आधार पर तैयार किया जाता है। चूँकि धन की क्रय सकती बदलती रहती है। अत: वित्तीय विवरणों में दर्शायी गई परिसंपत्तिया एवं दवित्यो के मूल्य चालू या वर्तमान बाजार स्तिथि को नहीं दर्शाते है। \

2.परिसंपत्तिया वशुली नहीं जा सकती – लेखांकन को विशेष रूढ़ियो के आधार पर किया जाता है। कुछ परिसंपत्तिया संभवतः कथित मूल्य पर वशुली नहीं जा सकती हैं। तुलन पत्र में दर्शाई गई परिसंपत्तिया केवल असमाप्त या परिशोधन लागत प्रदर्शित करती हैं। 

3.पक्षपाती – वित्तीय विवरण अभिलिखित तथ्यों, संकल्पों तथा प्रयुक्त परम्पराओं का परिणाम होते है और मूल्य निर्णय लेखाकार या लेखापात के द्वारा विभिन्न स्थितियों में किया गया होता है। अतएव परिणाम में पक्षपात या एकाग्रता देखि जा सकती हैं। 

4.समुचित सुचना – वित्तीय विवरण समुचित या कुल सूचना दर्शाते हैं न कि विशिष्ट सूचना। अतएव, वे शायद उपयोग कर्ता को निर्णय लेने में तब तक सन्तुष्ट नही कर सकते जब तक कि उनके अनुकुल दबाव न हो। 

5.अनिवार्य सूचना का अभाव – वित्तीय विवरण या तुलन पत्र बाजार से संबन्धित हनि, समझौते के उल्लंघन के बारे में सूचना या जानकरी नहीं  देते है। 

6.गुणवत्तापुर्ण या गुणात्मक सूचना की कमी – वित्तीय विवरणों में केवल आर्थिक जनकरि समाहित होती है। औद्योगिक संबंधो, औद्योगिक वातावरण, श्रम सम्बन्धों, कार्य एवं श्रम की गुणवत्ता, आदि जैसी गुणात्मक जनकरि नहीं होती हैं।

7.ये केवल अंतरिम रिपोर्ट हैं – वित्तीय विवरण जैसे – लाभ व हानि खाता केवल अंतरिम लाभों को दर्शाते हैं, न कि अंतिम लाभों को। अंतिम लाभ केवल तभी जाने जा सकते हैं जब उद्यम का परिसमापन हो, परिसंपत्तिया बिके और दायित्यो का भुगतान किया गया हो। 

निष्कर्ष - आज हमने वित्तीय विवरणों की सीमाओं के बारे में जाना है। आशा है इस उत्तर को पढ़कर आपके सारे दिक्कत दूर हो गये होंगे।  

उम्मीद करता हूँ कि यह पोस्ट आपके लिये उपयोगी साबित होगा, अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।


वित्तीय विवरणों की सीमाएँ से सम्बंधित FAQs

1. वित्तीय विवरण से आप क्या समझते हो?

ये विवरण-पत्र किसी न किसी रूप में वित्तीय स्थिति प्रकट कहते है। (चाहे वह संपत्तियों तथा दायित्वों के बारे में हो या लाभ तथा हानि के बारे में हो या कोषों, रोकड़ या कार्यशील पूंजी के बारे में हो) अतः इन्हें वित्तीय विवरण पत्र कहा जाता है।

2. वित्तीय विवरण क्या है और इसका महत्व?

प्रबंधकों को नीति-निर्धारण करने में भी ये वित्तीय विवरण काफी सहायता देते है। अतः वित्तीय लेखे प्रबंधकीय नीतियों में सुधार, संचालन में कुशलता तथा लाभप्रद क्रियाओं के निष्पादन में महत्वपूर्ण स्थान रखते है। बैंक तथा ग्राहक का संबंध गोपनीय एवं महत्वपूर्ण संबंध होता है।