पारिस्थितिक तंत्र- संरचना , घटक और विशेषताएं (Ecosystem - Structure, Components and Characteristics)

studypointandcareer.com में आपका स्वागत है। आज के इस आर्टिकल में हम पारिस्थितिक तंत्र की संरचना(structure of ecosystem) और  पारिस्थितिक तंत्र  के घटक साथ पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों को भी जानेंगे और हम आपको बता दें की पारिस्थितिक तंत्र विशेषताएं को विस्तार से इस आर्टिकल से जानने वाले है 

"वातावरण में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव पाए जाते हैं। सभी जीव, अपने चारों ओर के वातावरण से प्रभावित होते हैं। साथ ही सभी जीव अपने वातावरण के साथ एक विशिष्ट तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।"

पारिस्थितिक तंत्र- संरचना , घटक और विशेषताएं  (Ecosystem - Structure, Components and Characteristics)

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पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem)- कोई भी जीव कभी भी अकेले नहीं रहता, बल्कि वह जीवीय समुदाय के रूप में रहता है और समुदाय के जीव अपने वातावरण के विभिन्न जीवीय तथा अजीवीय घटकों से क्रियात्मक रूप से जुड़े रहते हैं अर्थात् जीवीय समुदाय और वातावरण के विभिन्न घटकों के बीच जटिल क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियाओं के कारण ही वातावरण की संरचना हमेशा बदलती रहती है। इसी कारण वातावरण गतिशील (Dynamic ) रहते हैं रचना एवं कार्य की दृष्टि से समुदाय (या विभिन्न जीवों) और वातावरण की मिली जुली इकाई को परितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem or Ecological System) कहते हैं।

परितंत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टेंसले (Tansley, 1935) ने किया था। टेंसले के अनुसार “वातावरण एवं उनमें उपस्थित जैविक तथा अजैविक घटकों की अन्तक्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले तंत्र को ही पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।"

ऊपर हमने जाना पारिस्थितिक तंत्र क्या है? पारिस्थितिक तंत्र शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया  इसकी भी जानकारी ऊपर दिया गया है साथ ही नीचे पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार को विस्तार से बताया गया है.

पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार (Types of the Ecosystem) :- 

पृथ्वी में उपस्थित समस्त पारिस्थितिक तंत्रों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर दो समूहों में बाँटा गया है 

1. प्राकृतिक पारितंत्र (Natural Ecosystem) प्राकृतिक रूप से अपने आप बढ़ाने तथा नियंत्रण होने वाले परितंत्रों को प्राकृतिक पारितंत्र कहते हैं। इसके विकास में मनुष्य का दखल नहीं के बराबर होता है। 

आवास के आधार पर विश्व के प्राकृतिक पारितंत्र को दो समूहों में रखते हैं 

(A) स्थलीय पारितंत्र(Terrestrial Ecosystem)- इस प्रकार के पारितंत्र स्थल पर बनते हैं। प्रमुख स्थलीय पारितंत्र निम्न हैं 

  • घास स्थलों का पारितंत्र (Grassland ecosystem)
  • वन पारितंत्र (Forest ecosystem)
  • मरुस्थलीयं पारितंत्र (Desert ecosystem) 
  • पहाड़ी पारितंत्र (Hilly ecosystem) 


Ecosystem - Structure, Components and Characteristics

2. कृत्रिम परितंत्र (Artificial Ecosystem) इस पारितन्त्र का निर्माण मनुष्य स्वयं अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए करता है। इस कारण इसे मानव निर्मित पारितंत्र भी कहते हैं। जैसे- फसल पारितंत्र (Agro Ecosystem) और अन्तरिक्ष पारितन्त्र (Space Ecosystem)।

ऊपर हमने पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न प्रकार को जाना अब निचे हम पारिस्थितिक तंत्र की संरचना के बारे में विस्तार से जानेगे |

पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं घटक (STRUCTURE AND COMPONENTS OF ECOSYSTEM):- 

संरचना की दृष्टि से प्रायः सभी पारितंत्र एक ही जैसे होते हैं, केवल उनके सदस्य वातावरण के अनुसार बदल जाते हैं। पारिस्थितिक तंत्र जिन वस्तुओं का बना होता है, उन्हें पारिस्थितिक घटक (Ecological Component) कहते हैं, लेकिन वातावरण का वह भाग या परिवर्तन जो पारिस्थितिक तंत्र  को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है, पारिस्थितिक कारक (Ecological factor) कहलाता है। वैसे तो इन दोनों में सूक्ष्म अन्तर होता है, परन्तु अधिकांश घटक, कारक तथा अधिकांश कारक, घटक भी होते हैं।

1. क्रियात्मक घटक (Functional component) प्रसिद्ध पारिस्थितिकी वैज्ञानिक ओडम (Odum) के अनुसार, प्रत्येक परितंत्र कार्यात्मक दृष्टि से निम्नलिखित दो घटकों से बना होता है 

(A) स्वपोषी घटक (Autotrophic Components)-इनके अन्तर्गत पारितंत्र के वे घटक आते हैं, जो भोजन स्वयं बनाते हैं, सभी हरे पौधे इसका उदाहरण हैं। 

(B) परपोषी घटक (Heterotrophic Components)-इनके अन्तर्गत पारितंत्र के वे घटक आते हैं, जो अपना भोजन स्वयं न बनाकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधों से प्राप्त करते हैं। 

2. संरचनात्मक घटक (Structural Components) संरचनात्मक रूप से ये भी पारितंत्र दो घटकों का बना होता है

(A) अजीवीय घटक (Abiotic Components) पारिस्थितिक तंत्र में पाये जाने वाले निर्जीव पदार्थों या घटकों को इस वर्ग में रखते हैं। प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा तथा रासायनिक पदार्थों (कच्चा माल) का होना आवश्यक है। ऊर्जा सूर्य से मिलती है तथा रासायनिक पदार्थ पृथ्वी से प्राप्त होते हैं। ऊपर वर्णित दोनों पदार्थ मिलकर पारिस्थितिक तंत्र का भोजन बनाते हैं, जिससे पारिस्थितिक तंत्र को ऊर्जा मिलती है। पारिस्थितिक तंत्र में पाये जाने वाले अजीवीय घटकों को तीन भागों में बाँट सकते हैं

(i) कार्बनिक पदार्थ-जैसे-कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, आदि। ये ही पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र को ऊर्जा देते हैं। 

(ii) अकार्बनिक पदार्थ-जैसे-ऑक्सीजन नाइट्रोजन, जल, कैल्सियम, फॉस्फोरस, लोहा, आदि ये पदार्थ कार्बनिक पदार्थों को बनाने में सहायता देते हैं। ये पदार्थ कभी भी तंत्र से खत्म नहीं होते, बल्कि इनका नियमित चक्र चलता रहता है, जिससे इनकी मात्राएँ प्रकृति में एक सी बनी रहती हैं। 

(iii) जलवायवीय-तापक्रम, वर्षा तथा पहाड़ आदि इस वर्ग में आते हैं, जो किसी स्थान के वातावरण को निर्धारित करते हैं।

(B) जीवीय घटक (biotic Components)-किसी भी पारिस्थितिक तंत्र जीवी य सदस्यों को इस श्रेणी में रखते हैं। जीवीय घटकों को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा गया है 

(i) उत्पादक (Producer)-इसमें वे जीव आते हैं, जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों से सूर्य की प्रकाश ऊर्जा की सहायता से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा जटिल पदार्थों का निर्माण करते हैं। ये प्राथमिक या मूल उत्पाद कहलाते हैं, क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र में पाये जाने वाले सभी जीव इन्हीं से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इस क्रिया में बने ऑक्सीजन, निकलकर वायुमण्डल में चली जाती है तथा सभी जीवधारियों के श्वसन में काम आती है।

(ii) उपभोक्ता (Consumers)-इसमें वे जीव आते हैं, जो हरे पौधे या उनके द्वारा एकत्रित भोज्य पदार्थों का उपयोग करते हैं। 

उपभोक्ताओं को निम्न तीन भाग में बाँटा गया है – 

(a) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers) इसमें वे जीव आते हैं, जो वनस्पतियों उनके अन्य किसी भाग को खाते हैं। जैसे-भेड़, बकरी, घोड़ा, टिड्डे, या सभी शाकाहारी जन्तु। 

(b) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) -इसमें वे जीव आते हैं, जो शाकाहारी जन्तुओं (प्राथमिक उपभोक्ता) को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। जैसे-भेड़ियाँ, मोर, श्रृंगाल, लोमड़ी।

(c) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers) इसमें वे जीव आते हैं, जो द्वितीय वर्ग के उपभोक्ताओं (मांसाहारी) को खा जाते हैं। इस वर्ग को सर्वश्रेष्ठ उपभोक्ता भी कहते हैं। जैसे-साँप, शेर, बाघ, चीता। 

(iii) अपघटक (Decomposers)-इस वर्ग में मुख्य रूप से जीवाणुओं तथा कवकों को रखा गया है, जो मरे हुए उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं को सड़ाकर साधारण भौतिक तत्वों में बदल देते हैं, जो फिर से वातावरण में मिल जाते हैं, जिन्हें पुनः हरे पौधे अवशोषित करके सूर्य के प्रकाश में भोजन के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। इन पौधों को प्राथमिक उपभोक्ता खाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में यह चक्र चलता रहता है तथा इस तंत् का प्रत्येक जीव एक-दूसरे पर निर्भर रहता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं:-

  • पारिस्थितिकी तंत्र संरचित तथा सुसंगठित तंत्र होता है। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र जीवमंडल में एक सुनिश्चित क्षेत्र धारण करता है। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन होते हैं

तो दोस्तों ये थी पारिस्थितिक तंत्र के बारे में विस्तार से जानकारी, साथ ही हमने जाना पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार, घटक, संरचना एवं विशेषताए | रोजाना इसी तरह ऐसे और भी जानकरी भरे पोस्ट के लिए हमारे वेबसाइट answerduniya.com पर विजिट करते रहिये।

आशा करता हूँ कि पारिस्थितिक तंत्र की यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी, अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

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