समष्टि (Population) और उनके लक्षण (Population and Characters in Hindi)

समष्टि या जनसंख्या क्या होता है | Population and their Characters in Hindi

नमस्कार, आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। समष्टि पारिस्थितिकी एक जाति के जीवों का अध्ययन है जिसमें जीवों के मध्य होने वाली परस्पर निर्भरता (Dependency) एवं एकत्रीकरण (Aggregation) जैसी क्रियाओं तथा इन क्रियाओं को नियंत्रित करने वाले समस्त कारकों का अध्ययन किया जाता है। किसी विशिष्ट समय तथा क्षेत्र में एक ही प्रकार के जाति के व्यष्टियों या जीवों (Individuals) की कुल संख्या को समष्टि या जनसंख्या (Population) कहते हैं। आज के इस आर्टिकल में हम समष्टि के बारे ने विस्तृत रूप से  जानेंगे। बहुत सारी परीक्षाओं में समष्टि से जुड़े प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। उन सभी प्रश्नों को दृष्टिगत रखते हुए इस आर्टिकल को लिखा गया है। इसलिए इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़ें।

समष्टि (Population) और उनके लक्षण (Population and Characters in Hindi)

Characters of Population in Hindi

Population and their Characters:

  • समष्टि के लक्षण (Characters of Population) 
  • समष्टि घनत्व (Population density) 
  • जन्म-दर (Birth rate or Natality)
  • मृत्यु-दर (Death rate or mortality)
  • आयु का वयस वितरण (Age distribution) 
  • आयु स्तूप (Age pyramid)
  • समष्टि या प्रकीर्णन प्रसरण (Population dis persal)
  • जैविक विभव (Biotic potential)
  • समष्टि वृद्धि स्वरूप (Population growth forms or pattern) 
  • समष्टि उच्चावचन (Population fluctua tion)
  • समष्टि साम्यावस्था (Population equilibri ums)

समष्टि या जनसंख्या के लक्षण (Characters of Population) - 

समष्टि एक समान जाति के जीवधारियों का विशिष्ट क्षेत्र में उसका संगठित समूह होता है, जिसकी उपस्थिति उसकी कई विशेषताओं अर्थात् लक्षणों पर निर्भर करती है। एक समष्टि में प्रायः निम्नलिखित लक्षण होते हैं 

  1. समष्टि घनत्व (Population density) 
  2. जन्म-दर (Birth rate ornatality) 
  3. मृत्यु-दर (Death rate or mortality) 
  4. आयु या वयस वितरण (Age distribution) 
  5. आयु स्तूप (Age pyramid) 
  6. समष्टि प्रसरण (Population dispersal) 
  7. जैविक विभव (Biotic potential) 
  8. समष्टि वृद्धि स्वरूप (Population growth forms or patterns) 
  9. समष्टि उच्चावचन (Population fluctuation) 
  10. समष्टि साम्यावस्था (Population equilibrium)

1. समष्टि घनत्व (Population density) 

समष्टि घनत्व जनसंख्या के आकार को दर्शाता है। किसी दिए हुए समय में किसी निश्चित क्षेत्र में जनसंख्या की कुल संख्या उस क्षेत्र का समष्टि घनत्व कहलाता है। इसे निकालने के लिए जीवों की कुल संख्या को क्षेत्र की इकाई की संख्या से विभाजित करते हैं –

आबादी घनत्व = जीवों की कुल संख्या/क्षेत्रफल

किसी इकाई क्षेत्र की जनसंख्या घनत्व जब अधिकतम या चरम बिन्दु पर पहुँच जाती है तो उसे घनत्व की संतृप्त अवस्था (Saturation point of density) कहते हैं। जब किसी क्षेत्र का क्षेत्रफल एवं उसकी आबादी का अनुपात जीव भार के आधार पर मापा जाता है तो उसे अशोधित घनत्व (Crude density) कहा जाता है। जब किसी क्षेत्र में आबादी उसकी क्षमता से अधिक हो जाती है तो उसे अत्यधिक आबादी (Over population) कहते हैं। इस अवस्था के आने पर जीवन की गुणवत्ता में कमी आने लगती है क्योंकि अपनी ही तरह के जीवों के बीच भोजन, आवास एवं प्राकृतिक संसाधनों की कमी होने लगती है।

    किसी विशिष्ट पर्यावरणीय परिस्थिति में किसी जीव की नई व्यष्टियों के पैदा होने की दर को जन्म-दर कहते हैं। जन्म-दर को निम्न सूत्र की सहायता से ज्ञात किया जाता है

जन्म-दर = जन्म लिए जीवों की संख्या/ समय

किसी भी जाति के जनसंख्या को बनाये रखने के लिए जन्म-दर अत्यन्त महत्वपूर्ण होता है। यह जीवों की प्रजनन क्षमता तथा अन्य कारकों जैसे—भोज्य पदार्थों की उपलब्धता, जातीय गुण, वंशानुक्रम गुण आदि अनेक कारकों का सीधा असर जन्म-दर पर पड़ता है।

3. मृत्यु-दर (Death rate or mortality)-

प्राकृतिक अवस्था में एक इकाई समय में किसी क्षेत्र में उपस्थित एक समष्टि में मृत जीवों की संख्या को मृत्यु-दर कहते हैं। यह आयु समूह के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। आयु में में वृद्धि के साथ-साथ मृत्यु-दर भी बढ़ती जाती है।

मृत्यु-दर = समष्टि के मृतकों की संख्या/ निर्धारित समय

4. आयु का वयस वितरण (Age distribution) –

अधिकतर जनसंख्या में जीव अलग-अलग उम्र के होते हैं। विभिन्न आयु समूहों वाले जीवों की उपस्थिति उस जनसंख्या का उम्र वितरण कहलाता है। जनसंख्या में विभिन्न उम्र के जीव मिलकर उसकी प्रजनन स्थिति को निश्चित करते हैं। आयु संरचना का प्रभाव श्रम-शक्ति, कार्य क्षमता, प्रजनन आदि पर पड़ता है। आयु संरचना को तीन अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है

पूर्व प्रजनन काल (Pre re productive age), प्रजनन काल (Reproductive age) एवं उत्तर प्रजनन काल (Post reprodutive age)। किसी स्थायी समष्टि में तीनों वयस वर्गों के जीव समान अनुपात में होते हैं। युवा प्रजननीय वयस वर्ग का अधिक अनुपात में होना, तेजी से बढ़ती जनसंख्या का तथा युवा वयस वर्ग का कम अनुपात में होना, घटती हुई समष्टि का परिचायक माना जाता है। 

जानें- पारिस्थितिकी क्या है।

5. आयु स्तूप (Age pyramid)-

विभिन्न जीवों में जीवन विस्तार की विभिन्न विविधताओं के आनुपातिक सम्बन्ध का चित्रात्मक निरूपण आयु पिरामिड (Age-pyra mid) कहलाता है। चौड़े आकार वाले पिरामिड (Broad base pyramid) में पूर्व प्रजनन काल के जीवों का प्रतिशत सबसे अधिक होता है। घण्टाकार पिरामिड (Bell-shaped pyramid) में पूर्व प्रजनन काल तथा प्रजनन काल अर्थात् दोनों के जीवों की संख्या लगभग समान होती है तथा उत्तर प्रजनन काल के जीवों का प्रतिशत सबसे कम रहता है। कलश की संरचना वाले पिरामिड (Urn-shaped) में पूर्व प्रजनन काल के जीवों का प्रतिशत प्रजनन एवं उत्तर प्रजनन काल की तुलना में कम रहता है।

6. समष्टि या प्रकीर्णन प्रसरण (Population dis persal)-

यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विनष्ट समष्टि पुनः स्थापित होकर साम्यावस्था में आती है या उसकी ओर जाने का प्रयास प्रदर्शित करती है। वास्तव में समष्टि प्रसरण वह क्रिया है जिसके द्वारा कोई समष्टि अपने आवास में वृद्धि करती है। यह गहराई से प्रजनन की प्रक्रिया से जुड़ा होता है ले क्योंकि बिना प्रजनन के प्रसरण अर्थात् परिक्षेपण नहीं हो ‘क सकता है। समष्टि परिक्षेपण तीन विधियों के द्वारा होता है 

  1. अप्रवास, जीवों का बाहर से किसी समष्टि में आना, 
  2. इमाइग्रेशन (परित्यागन); जीवों का किसी समष्टि से बाहर जाना तथा 
  3. प्रवसन (Migration); निश्चित अन्तराल f के लिए बहिर्गमन तथा उसका अन्तर्गमन होना। 

7. जैविक विभव (Biotic potential)-

प्रत्येक जनसंख्या की अन्तर्निष्ठ शक्ति (Inherent power) होती है जिसके कारण वह प्रजनन तथा वृद्धि करता है। यदि सभी पर्यावरणीय दशाएँ अनुकूल होती हैं तो जीव में भी वंश वृद्धि की दर भी अधिकतम होती है। यह क्षमता ही जनसंख्या विभव (Population potential) या जैविक विभव (Biotic potential) कहलाती है। लेकिन ऐसी स्थिति काल्पनिक स्थिति मानी जाती है, क्योंकि ऐसी स्थिति देखने में नहीं आ पाती जहाँ पर्यावरणीय परिस्थितियाँ प्रजनन क्षमता को प्रभावित नहीं कर पाती हों। यथार्थ में यह स्थिति नितान्त असम्भव लगती है। अत : जैविक शक्ति को प्रजनन सामर्थ्य (Reproductive potential) कहते हैं। इसे निम्नांकित सूत्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है.

8. समष्टि वृद्धि स्वरूप (Population growth forms or pattern) –

समष्टि के वृद्धि करने के ढंग या तरीके को वृद्धि स्वरूप कहते हैं। इन्हें ग्राफीय निरुपण से प्राप्त वक्राकार आवृत्ति को वृद्धि वक्र कहते हैं। अनुकूल परिस्थितियों के चलते रहने से प्रारम्भिक अवस्था में जनसंख्या धीरे-धीरे बढ़ती रहती है तथा फिर तीव्र गति से बढ़कर अधिकतम स्तर पर पहुँच जाती है। इस अधिकतम स्तर पर पहुँचने के बाद जनसंख्या स्थिरता का प्रदर्शन करने लगती है, यही स्थिति समष्टि की पूर्ण वहन क्षमता (Carrying capacity) कहलाती है। इसके बाद जनसंख्या में कमी आने लगती है। यह कमी धीरे-धीरे या तीव्र गति से होती है। 

जानें- परासरण सिद्धांत।

9. समष्टि उच्चावचन (Population fluctua tion)-

प्राकृतिक अवस्था में किसी जगह की समष्टि स्थिर नहीं रह सकती है। कई कारणों से इसमें हास या वृद्धि होती रहती हैजलवायवीय परिवर्तन से पर्यावरणीय कारकों में जो बदलाव होता है उसका सीधा असर जनसंख्या पर पड़ता है जैसे—वर्षा ऋतु में जल तथा तापमान के अनुकूल होने के कारण खरपतवारों (Weeds) की वृद्धि अचानक काफी बढ़ जाती है। इसी तरह की स्थिति मच्छरों की जनसंख्या में वर्षा ऋतु में देखने को मिलती है। भोजन एवं स्थान की उपलब्धता समष्टि के जीवों के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा आदि अनेक ऐसे कारण हैं जिसके चलते आबादी में वार्षिक परिवर्तन होते रहते हैं। 

पर्यावरण में होने वाले अकस्मात् परिवर्तन जैसे-भूकम्प, ज्वालामुखी विस्फोट, महामारी बाढ़, सूखा, आग आदि के द्वारा आवासों के नष्ट होने के कारण बहुत सी मौतें हो जाती हैं। अर्थात् भोजन एवं स्थान जीव-जन्तु की जनसंख्या को सीमित करने का मुख्य कारक होता है। किसी समष्टि में साम्यावस्था में पहुँचने के बाद भी इसकी संख्या साम्यावस्था स्तर से कम या अधिक होती रहती है। साम्यावस्था की संख्या में कमी या अधिकता होने की क्रिया को समष्टि उच्चावचन कहते हैं। यह समष्टि का विशिष्ट गुण होता है तथा पर्यावरणीय कारकों पर निर्भर करता है। 

10. समष्टि साम्यावस्था (Population equilibriums)-

किसी नये परिवेश में पहुँचने पर समष्टि के सदस्यों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है। समयान्तराल पश्चात यह वृद्धि दर एक निश्चित संख्या के आस-पास आकर रुक जाती है, जिसे चरम सीमा कहते हैं तथा समष्टि के जीवों की संख्या चरम सीमा पर स्थिर रहती है। यह अवस्था साम्यावस्था कहलाती है। इस अवस्था में जन्म-दर तथा मृत्यु-दर लगभग बराबर होती है। प्रायः समष्टि साम्यावस्था में रहने का प्रयास करती है।


आज के इस आर्टिकल में हमने समष्टि या जनसंख्या क्या है, समष्टि के लक्षण जन्म दर, मृत्यु दर आदि के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में समष्टि से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगी, अगर आपको आर्टिकल अच्छा लगे तो आर्टिकल को शेयर अवश्य करें।

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