परासरण सिद्धान्त | Transpiration All Theory Question Answer in Hindi | Answer Duniya

Transpiration All Theory Question Answer in Hindi 

आज के इस लेख में हम जानेंगे परासरण सिद्धान्त के बारे में. परासरण की क्रिया प्रकृतिक व कृतिम दोनों रूप से महत्वपूर्ण मानी जाती हैं, इस क्रिया में विलायक अर्धपारगम्य झिल्ली से होते हुए अधिक सांद्रता से कम सांद्रता की ओर जाता हैं. निचे इस लेख में आपको कई महत्वपूर्ण सिद्धांत के बारे में भी जानकारी दी गयी हैं. 

Transpiration All Theory Question Answer in Hindi

1. परासरण सिद्धान्त क्या हैं? ( What Is Osmotic Theory In Hindi):-

परासरण सिद्धान्त (परासरण सिद्धान्त) वॉन मॉल (Von Mohl, 1856) के द्वारा दिया गया। वॉन मॉल के अनुसार रक्षक कोशिकाओं के क्लोरोप्लास्ट द्वारा प्रकाश संश्लेषण के दौरान परासरणीय रूप से सक्रिय (Osmotically Active) पदार्थों का निर्माण किया जाता है। ये पदार्थ रक्षक कोशिका के परासरण दाब (Osmotic Pressure) को बढ़ा देते हैं। 

बढ़े परासरण दाब के कारण रक्षक कोशिकाओं में सहायक कोशिकाओं से जल का अन्तःपरासरण होता है जिसके कारण रक्षक कोशिकाएँ आशून (Turgid) हो जाती हैं तथा रन्ध्र खुल जाते हैं। रात्रि में ये पदार्थ श्वसन की क्रिया में प्रयुक्त हो जाते हैं। अतः रक्षक कोशिकाओं (Guard Cells) का परासरण दाब घट जाता है। परासरण दाब के कम होने के कारण रक्षक कोशिकाओं से जल बाह्य परासरण द्वारा सहायक कोशिकाओं में चला जाता है तथा रन्ध्र बन्द हो जाते हैं। इसे प्रकाश संश्लेषणीय सिद्धान्त (Photo Synthetic Theory) भी कहते हैं।


2. स्टार्च-शर्करा परिवर्तन सिद्धान्त क्या हैं? (What Is Starch Sugar Interconversion Theory In Hindi):- 

स्टार्च-शर्करा परिवर्तन सिद्धान्त लॉयड (Lioyd, 1908) के द्वारा दिया गया। सायरे (Sayre, 1926) ने माना कि कम Ph(क्षारीय माध्यम) होने पर रन्ध्र खुलते हैं तथा अधिक Ph (अम्लीय) होने पर रन्ध्र बन्द होते हैं। स्टीवर्ड (Steward, 1964) ने माना कि रक्षक कोशिकाओं में ग्लूकोस मोनो फॉस्फेट का परिवर्तन ग्लूकोज एवं अकार्बनिक फॉस्फेट में होने से ही उसका परासरण दाब बढ़ता है। 

स्टार्च-शर्करा परिवर्तन सिद्धान्त रन्ध्रों के खुलने एवं बन्द होने की व्याख्या कुछ इस प्रकार करता है दिन में जब प्रकाश संश्लेषण की क्रिया होती है तो रक्षक कोशिकाओं में जल और कार्बन डाइऑक्साइड से शर्करा का निर्माण होता है तथा संचित स्टार्च या मण्ड भी फॉस्फोराइलेज (Phosphorylase) एन्जाइम की उपस्थिति में शर्करा (ग्लूकोज) में परिवर्तित हो जाता है। यह क्रिया क्षारीय माध्यम (Ph = 4) में होती है, क्योंकि दिन में कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के अधिकतर भाग का उपयोग शर्करा बनने में होता है। शर्करा बनने से रक्षक कोशिकाओं के रस (Sap) का सान्द्रण बढ़ जाता है, जिससे ये कोशिकाएँ संलग्न सहायक कोशिकाओं से परासरण द्वारा जल अवशोषित करती हैं तथा अन्त में स्फीत (Turgid) हो जाती हैं। 

>>परासरण से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल - क्लिक करें


3. सक्रिय K' आयन परिवहन सिद्धान्त क्या हैं? (What Is Active K* Transport Theory In Hindi):-

इस सिद्धान्त को लेविट (Levitt, 1974) ने प्रस्तुत किया। इसके विस्तृत व्याख्या का श्रेय फ्यूजिनों (Fugino, 1957) एवं फिशर (Fisher, 1968) को जाता है। इस सिद्धान्त के अनुसार K* आयन का रक्षक कोशिकाओं के अन्दर जाने और बाहर आने के कारण रन्ध्र खुलते एवं बन्द होते हैं। इस सिद्धान्त के अनुसार रन्ध्रीय गति निम्नानुसार होती हैं—(1) रक्षक कोशिकाओं में मैलिक अम्ल का संश्लेषण सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में होती है। 

या फिर ये संचित स्टार्च से बनते हैं। (Ii) मैलिक अम्ल विघटित होकर H' एवं मैलेट आयन (HCO,) बनाते हैं। H' आयन रक्षक कोशिकाओं से बाहर की ओर गति करते हैं तथा उसके बदले में K* आयन आते हैं। (Iii) H' एवं ' आयनों की अदला-बदली में लगने वाली ऊर्जा ATP से प्राप्त होती है। (Iv) रक्षक कोशिकाओं में K' की सान्द्रता बढ़ने से उसका परासरण दाब (OP) बढ़ जाता है जिससे संलग्न सहायक कोशिकाओं से अन्तःपरासरण द्वारा जल रक्षक कोशिकाओं में पहुँचता है जिससे रक्षक कोशिकाओं की आशूनता (Turgidity) बढ़ जाती है तथा रन्ध्र खुल जाते हैं।

 (V) कोवान तथा उनके सहयोगियों (Cowan Etal, 1982) का मानना है कि सायटोकायनिन रन्ध्रों के खुलने को अभिप्रेरित करते हैं जबकि एब्सिसिक अम्ल (Abscissic Acid-ABA) पर रन्ध्रों का बन्द होना निर्भर करता है, क्योंकि यह K' अन्तर्ग्रहण का निरोधक होता है। एब्सिसिक अम्ल CO2 की उपस्थिति या अम्लीय परिस्थितियों में क्रियाशील हो जाता है।


4. जैववाद  सिद्धान्त क्या हैं? ( What Is Vital Theories In Hindi):-

इस सिद्धान्त के प्रवर्तकों का मानना यह है कि रसारोहण की क्रिया जीवित कोशिकाओं द्वारा होती है। यह साबित हो जाने के बाद कि जीवित कोशिकाएँ रसारोहण में भाग नहीं लेतीं, इन सिद्धान्तों का सिर्फ ऐतिहासिक तथा शैक्षणिक महत्व रह गया है। प्रमुख जैववाद निम्नलिखित हैं 

इन्हें पढ़े - जल अनुक्रमण या जलारम्भी अनुक्रमण


5. रिले पम्प सिद्धान्त क्या हैं? (What Is Relay Pump Theory In Hindi):-

गॉडलेवस्की (Godlewski, 1984) ने यह मत व्यक्त किया कि जायलम पैरेनकायमा में पम्पिंग क्रिया (Pumping Ac Tion) से रसारोहण होता है तथा यह पम्पिंग क्रिया जायलम पैरेनकायमा तथा मज्जा किरणों (Medullary Rays) के बीच परासरण दाब में लयबद्ध परिवर्तन (Rhythmic Change) के कारण होती है। इस सिद्धान्त को गॉडलेवस्की सिद्धान्त भी कहते हैं। स्ट्रॉसबर्गर (Strasburger, 1893) ने इसे अस्वीकार करते हुए मत व्यक्त किया कि जीवित कोशिकाओं में विषैले पदार्थों (पिक्रिक अम्ल आदि) से नष्ट करने पर भी रसारोहण होता है।


6. स्पन्दन सिद्धान्त क्या हैं? (What Is Pulsation Theory In Hind):-

स्पन्दन सिद्धान्त को बोसवाद (Bose's Theory) भी कहते हैं। भारतीय भौतिक जैवशास्त्री सर जे. सी. बोस (Sir J.C. Bose, 1923) ने यह कहा कि कॉटक्स के सबसे अन्दर की कोशिकाओं जो अन्तस्त्वचा (Endodermis) के ठीक बाहर रहती है के द्वारा जल रस नीचे की कोशिका से ऊपर की कोशिका की ओर संवहित होता है। 

इसे दर्शाने के लिए जे. सी. बोस ने गैल्वेनोमीटर तथा नीड्ल युक्त विद्युत् उपकरण (Electri Cal Probe) लिया।गैल्वेनोमीटर का एक तार सुई (Needle) तथा दूसरा तार पत्ती से जोड़ा गया। सुई को तने में धीरे-धीरे डाला गया तथा उसमें होने वाले परिवर्तनों को देखा गया तो, जब सुई कॉर्टेक्स के सबसे अन्दर की कोशिकाओं के सम्पर्क में आई तो गैल्वेनोमीटर का सूचक तेजी से हिलने लगा। 

बोस के अनुसार लयबद्ध स्पन्दन के दौरान कोशिकाओं में क्रमशः प्रसार (Expansion) एवं संकुचन (Contraction) होता रहता है तथा स्पन्दन करती हुई कोशिका जल को जायलम वाहिनियों के अन्दर पम्प करके ढकेल देती है। अनेक वैज्ञानिकों ने इस वाद को यह कहकर अस्वीकार कर दिया कि अन्तस्त्वचा के बाहर की कोशिकाओं को नष्ट करने पर भी रसारोहण होता रहता है तथा रसारोहण के लिए जितना स्पन्दन (230-240 पल्सटिंग कोशिकाएँ प्रति सेकण्ड) होना चाहिए उससे बहुत कम स्पन्दन कॉर्टेक्स की कोशिकाओं में पाया जाता है।


7. केशकीय बलवाद क्या हैं? ( What Is Capillary Force Theory In Hindi ) 

केशकीय बलवाद सिद्धान्त बोएहम (Boehm, 1809) द्वारा दिया गया। इस सिद्धान्त के अनुसार वाहिकाएँ (Vessels) केश नलिका (Capillary Tube) की तरह कार्य करती हैं, जिनमें केशाकर्षण बल के कारण जल ऊपर चढ़ता है। इस मत को भरपूर समर्थन इसलिए नहीं मिल पाया, क्योंकि वाहिकाओं का व्यास केशनली के व्यास से अधिक होता है। इतना ही नहीं बड़े वृक्षों के जायलम का व्यास अपेक्षाकृत बड़ा होता है, अतएव बड़े वृक्षों में रसारोहण की व्याख्या इस सिद्धान्त के अनुसार नहीं की जा सकती है। 

सभी आदर्श स्थितियों को समक्ष रख लें तो केशिकत्व के कारण उत्पन्न वायुमण्डलीय दाब जड़ से स्तम्भ तक केवल 34 फीट ऊँचाई तक ऊपर पहुंचा सकता है, इससे अधिक ऊँचे पौधों में होने वाले रसारोहण की क्रिया की व्याख्या इस केशिकत्व बल सिद्धान्त (Capillary Force Theory) द्वारा सम्भव नहीं हो पाता है। इस सिद्धान्त को वैज्ञानिकों ने इस आधार पर भी अस्वीकार किया कि कैपिलरी बल से जल एक मीटर तक ही ऊपर चढ़ सकता है, क्योंकि जायलम वाहिनियों का व्यास 0.3 Mm. होता है।

यदि आज के इस  पोस्ट में परासरण सिद्धान्त के साथ साथ अन्य सिद्धांत की जानकारी उपयोगी और महत्वपूर्ण लगी हो तो कृपया इस परासरण सिद्धान्त पोस्ट को शेयर जरूर करें. 

Subjects -


Active Study Educational WhatsApp Group Link in India

Share -