तेल प्रदान करने वाले प्रमुख 5 फसल | Major Oil Yielding Crops in Hindi

वसा एवं तेल विशिष्ट प्रकार के कार्बनिक पदार्थ होते हैं, जो कि जल में अविलेय परन्तु कार्बनिक विलायकों (ईथर, क्लोरोफॉर्म, कार्बन टेट्राक्लोराइड, बेंजीन, एसीटोन) में विलेय (घुलनशील) होते है। ये वसीय अम्ल तथा एल्कोहॉल के एस्टर्स (Esters) होते हैं।

Major Oil Yielding Crops in Hindi

तेल या वसा प्रदान करने वाली पांच प्रमुख फसल -मूँगफली (Ground Nut),सरसों (MUSTARD), नारियल (Coconut), तिल (Sesame),सूर्यमुखी (Sunflower)

“प्रकृति में वसा एवं तेल पौधों, जन्तुओं तथा खनिज तत्वों से प्राप्त होते हैं, इन्हें क्रमशः प्राकृतिक वसा एवं तेल (Vegetable fat and oils ) जन्तु वसा या तेल (Animal fat and oils), तथा खनिज तेल (Mineral oil), कहते हैं।”

तेल प्रदान करने वाले प्रमुख 5 फसल:-

1. मूँगफली (Ground Nut)

Botanical Name - एरेकिस हाइपोजिया (Arachis Hypogea)

Family - Papilionaceae (fabaceae).

Common Name – चीना, बादाम, चितिया, बादाम, भुर्रमुंग, नीलकदल, पीनट इत्यादि।

Part Use - (फली)

मूँगफली फैबेसी (fabaceae) अर्थात् पैपिलियो नेसी (Papilionaceae) कुल का सदस्य है। इसका वानस्पतिक नाम एरेकिस हाइपोजिया (Arachis hypo gea, L) है। भारत में मूँगफली की खेती आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि राज्यों में होती है, यह भारत की मुख्य तैलीय खरीफ फसल है।

मूँगफली की खेती (Cultivation of Ground nut)

मूँगफली की खेती बलुई-दोमट, दोमट एवं काली मिट्टी वाले खेतों में सफलतापूर्वक की जाती है। खेत को 5-7 बार जुताई करके भूरभूरी महीन मिट्टी युक्त बनाकर मई के अंतिम सप्ताह या फिर जून के प्रथम सप्ताह में किया जाता है। बोआई के लिए छिलके सहित फल्लियाँ या छिलका हटाकर निकाले गए स्वरूप दानों का उपयोग किया जाता ह।

मूँगफली की उन्नत किस्में दो प्रकार की होती हैं

(a)फैलकर बढ़ने वाली प्रजातियाँ - टाइप - 28, M – B, M –145,M - 179, पंजाब - 1, चित्रा आदि 120 - 135 दिनों में तैयार होती है।

(b) गुच्छे वाली प्रजातियाँ - चन्द्रा, फैजपुरा - 5, अम्बर, कुबेर, प्रकाश, ज्योति, जवाहर, काटिरो, DRG - 17, कौशल आदि ये किस्में 95 – 110 दिनों पककर तैयार हो जाती है।

मूंगफली का महत्व (Importance of Groundnut) –

(i) मूँगफली के दानों को उबालकर, तलकर, भुनकर या पोहे आदि के साथ मिश्रित कर खाया जाता है।
(ii मूँगफली के दानों से दूध, दही, हलवा, पुडिंग, समोसे, चटनी, मक्खन तथा इसे चीनी के साथ निर्मित करके चिकी तैयार किया जाता है।
(iii) इसके दानों की पेराई कर खाद्य तेल निष्कर्षित किया जाता है। इससे वनस्पति घी भी तैयार होता है।
(iv) मूँगफली के पौधे का हरा भाग हरी खाद के रूप में एवं चारे के रूप में प्रयुक्त होता है।
(v) इसकी खल्ली (Oil cake) पशुओं के चारे के रूप में प्रयुक्त होती है साथ ही यह अच्छे खाद के रूप में भी उपयोग किया जाता है।

2. सरसों (MUSTARD)

Botanical Name— ब्रूसिका कैम्पेस्ट्रिस (Brassica Campestris)
Family - क्रुसीफेरी Cruciferae, ब्रैसिकेसी (Brassicaceae)

Common Name - सरसों (Sarson), राई (Rai) ।

Part Use - (बीजों से)

सरसों की किस्में (Varieties of Mustard)—

(i) पीला सरसों या सामान्य सरसों या तोरिया- ब्रेसिका कैम्पेस्ट्रिस (Brassica campestris)
(ii) सफेद सरसों (White Mustard) - ब्रेसिका अल्बा (Brassica alba)
(iii) राई (Rai) ब्रेसिका जंशिया (Brassica juncea)
(iv) काली राई (Black Rai) - ब्रेसिका नाइग्रा (Brassica nigra)
(v) काली सरसों (Black Mustard) - ब्रूसिका नेपस (Brassica napus)

सरसों का महत्व (Importance of Mustard ) –

(i) सरसों का तेल भारत में प्रमुख खाद्य तेल के रूप में प्रयुक्त होता है ।
(ii) सरसों तेल का उपयोग बैलगाड़ियों, मशीनों में स्नेहक (Lubricants) के रूप में प्रयुक्त होता है ।
(iii) यह केश वर्द्धक आयुर्वेदिक तेल, दर्द हारी औषधीय तेल आदि बनाने में उपयोग किया जाता है।
(iv) इसके तेल से साबुन भी बनाया जाता है।
(v)इसका तेल रबर उद्योग में भी अपनी उपयोगिता रखता है।
(vi) इसका तेल अच्छे मालिश तेल के रूप में भी प्रयुक्त होता है। यह थकानहारी तथा चर्मरोग से मुक्ति दिलाता है|
(vii) इसका खल्ली (Oil Cake) उत्तम पशु आहार तथा खाद के रूप में उपयोग किया जाता है।

3. नारियल (Coconut)

Botanical Name - कॉकस न्यूसिफेरा
Cocus nucifera

Family - एरिकेसी (Arecaceae

या पामी (Palmae)

Common Name - नारियल (Coconut)

Part Use - (अंतः फलभित्ति)

इसका वृक्ष मुख्य रूप से केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु में उगाये जाते हैं। इसके फल डूप प्रकृति के होते हैं। इसका मीजोकार्प रेशानुमा (fiberous) होता है रेशेयुक्त फल भित्ति (fruit wall ) होने के कारण फल का प्रकीर्णन जल के द्वारा आसानी से होता है।

तेल का निष्कर्षण (Extraction of oil) –

नारियल का (Endosperm) भ्रूणपोष तेल का उत्कृष्ट स्रोत होता है इसके Endosperm तथा गरी (Coptra) को (Expellers) एक्सपेलस, रोटरी मशीनों (Crotory Mills) में कोल्हू की भाँति अत्यधिक दाब देकर निकाला जाता है। नारियल का तेल वानस्पतिक वसा की श्रेणी के अंतर्गत आता है। यह 24°c या ठोस के रूप में रहता है। इसका साबुनीकरण मान बहुत अधिक होता है। इसके तेल में अनेक प्रकार के वसीय अम्ल (fatty acid ) जैसे- (i) लौरिक अम्ल (Louric acid 45%), (ii) पालमेटिक अम्ल (Palmatic acid 10%) (iii) ओलेइक अम्ल (Oleic acid 8.5%) मिरिस्टिक अम्ल (Myristic acid 14.18%), लिनोलिक अम्ल (Li noleic acid) का मिश्रण होता है।

नारियल का उपयोग (uses of Coconut)­­-

(i) नारियल का तेल उत्तम खाद्य तेल होता है।
(ii)यह केशवर्द्धक तेल के रूप में बालों में लगाने के काम आता है।
(iii) इससे विभिन्न प्रकार के सौंदर्य प्रसाधनों को बनाया जाता है।
(iv)तेल निर्माण के पश्चात् उपोत्पाद के रूप में प्राप्त होने वाले खल्ली (oil Cake) जानवरों का पौष्टिक आहार होता है।

नारियलका महत्व (Importance of Coconut) –

(i) इसमें पोटैशियम, फाइबर, कैल्शियम व मैग्नीशियम भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
(ii) ये कई बीमारियों के इलाज में भी काम आता है।
(iii) नारियल में वसा और कॉलेस्ट्रॉल नहीं होता है, इसलिए यह मोटापे से भी निजात दिलाने में मदद करता है।
(iv) साथ ही, त्वचा को स्वस्थ रखने में भी नारियल बहुत उपयोगी है।
(v)इम्यून सिस्टम के लिए नारियल बेहद ही फायदेमंद होता है। इसमें एंटीवायरल, एंटीफंगल, एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-पैरासाइटिक गुण होते हैं।
(vi)कच्चा नारियल कैल्शियम और मैगनीस को अवशोषित करने के लिए शरीर की क्षमता में सुधार करता है, जिससे हड्डियों का इलाज होता है।

4. तिल (Sesame).

वानस्पत्तिक नांम - सीसेमम इण्डिकम

कुल (Family) - पेडेलिएसी

उपयोगी भाग(Part use) - बीज (Seed)

तिल (Sesamum indicum) एक पुष्पिय पौधा है। इसकी खेती और इसके बीज का उपयोग हजारों वर्षों से होता आया है। तिल वार्षिक तौर पर 50 से 100 से. मी. तक बढता है। फूल 3 से 5 से.मी. तथा सफेद से बैंगनी रंग के पाये जाते हैं। तिल के बीज अधिकतर सफेद रंग के होते हैं,तिल प्रति वर्ष बोया जानेवाला लगभग एक मीटर ऊँचा एक पौधा जिसकी खेती संसार के प्रायः सभी गरम देशों में तेल के लिये होती है।

तिल का महत्व (Importance of Til) –

(i) तिल में कई तरह के लवण जैसे कैल्श‍ियम, आयरन, मैग्नीशियम, जिंक और सेलेनियम होते हैं जो हृदय की मांसपेशि‍यों को सक्रिय रूप से काम करने में मदद करते हैं|
(ii) तिल में डाइट्री प्रोटीन और एमिनो एसिड होता है जो बच्चों की हड्डियों के विकास को बढ़ावा देता है|
(iii) इसके अलावा यह मांस-पेशियों के लिए भी बहुत फायदेमंद है|
(iv) शरीर में खून की मात्रा को सही बनाए रखने में भी मददगार है तिल।
(v) तिल में मौजूद प्रोटीन पूरे शरीर को भरपूर ताकत और एनर्जी से भर देता है. इससे मेटाबोलिज्म भी अच्छी तरह काम करता है।

5. सूर्यमुखी (Sunflower)

वानस्पतिक नाम - हेलिएन्थस एनस

कुल (Family) - एस्टरेसी

उपयोगी भाग (Part use) - बीज (Seed)

फूल की पंखुड़ियाँ पीले रंग की होतीं हैं और मध्य में भूरे, पीत या नीलोहित या किसी किसी वर्णसंकर पौधे में काला चक्र रहता है। चक्र में ही चिपटे काले बीज रहते हैं। बीज से उत्कृष्ट कोटि का खाद्य तेल प्राप्त होता है और खली मुर्गी को खिलाई जाती है।

सूर्यमुखी के बीज विटामिन ई में समृद्ध होते हैं। ये बीज एंटीऑक्सिडेंट हैं जो मानव शरीर के भीतर मुक्त कणों को फैलने से रोकते हैं।

सूरजमुखी के बीज में मौजूद आयरन आपकी मांसपेशियों को ऑक्सीजन भेजता है, जबकि ज़िंक आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करके आपको खांसी और ठंड से बचने में मदद करता है।

सूर्यमुखी का महत्व (Importance ofSunflower) –

(i) सूरजमुखी के बीज में एंटीऑक्सीडेंट, एंटी-इंफ्लेमेटरी के साथ-साथ घाव को भरने का गुण (wound-healing) भी होता है।
(ii) इसमें मौजूद लिगनेन युक्त खाद्य पदार्थ हार्मोन बदलाव से जुड़े कैंसर से बचाव कर सकते हैं, महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के खतरे में इसके लाभ देखे जा सकते हैं। लिगनेन एक प्रकार के पॉलीफेनोल होते हैं, जो एंटीऑक्सीडेंट की तरह काम करते हैं|
(iii) सूरजमुखी के बीज में आयरन, जिंक, कैल्शियम मौजूद होते हैं, जो हड्डियों को स्वस्थ रखने में मदद कर सकते हैं|
(iv) सूरजमुखी के बीज में कैल्शियम व जिंक जैसे पोषक तत्व होते हैं, जो मस्तिष्क विकास में लाभकारी हो सकते हैं|


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