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ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

जीवन की कल्पना श्वसन के बिना नहीं हो सकती है। श्वसन में मनुष्य ऑक्सीजन ग्रहण करता है यह ऑक्सीजन उसे पेड़ पौधों से प्राप्त होता है। अनेक प्रकार के पेड़ पौधे एक स्थान पर होते हैं तो उसे वन कहते हैं। वनों में कई प्रकार के वन होते  हैं। ऊष्ण कटिबंध वन उनमे से एक प्रकार है। जिसके बारे में हम इस पोस्ट में जानने वाले हैं।

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

ऐसे वन उष्ण एवं गर्म जलवायु वाले भागों में पाये जाते हैं। यहाँ पर अत्यंत घने, ऊँचे, वृक्ष, झाड़ियाँ एवं काष्ठीय आरोही या लाइनस पौधे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों, कटीले वृक्षों वाले जंगलों एवं शुष्क क्षेत्रों में कहीं-कहीं पाये जाते हैं। इस प्रकार उष्ण कटिबंधीय वन दो प्रकार के होते हैं 

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests), 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests) 

इन्हें भी जानें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests):- ऐसे बनों में वर्षा अधिक होने के कारण आर्द्रता (Moisture) काफी अधिक होती हैआर्द्रता के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं--- 

1. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबाहार वन (Tropical wet evergreen forests):- 250 सेमी वार्षिक वर्षा से अधिक वर्षा दर वाले भारतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के वन स्थित हैं। इस प्रकार के वन भारत के दक्षिणी हिस्सों मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ भाग तथा उपरी हिस्सों मुख्यत : पश्चिम बंगाल, असम एवं उड़ीसा के कुछ भागों में पाये जाते हैं। इन वनों के वृक्षों की ऊँचाई 40-60 मीटर से अधिक होती है। इस वन के वृक्ष सदाबहार प्रवृत्ति के तथा चौड़ी पत्ती वाले होते हैं। यहाँ काष्ठीय लता तथा उपरिरोही (Epiphytes) की बहुतायत होती है। 

उदाहरण- साल या शोरिया (Shorea), डिप्टेरोकार्पस (Dipterocarpus), आम (Mangifera), मेसुआ (Mesia), होपिया (Hopea), बाँस, इक्जोरा (Ixora), टायलोफोरा (Tylophora) आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय नम अर्द्ध-सदाबहार वन (Tropi cal moist semi-evergreen forests):- इन वनों का विस्तार 200-250 सेमी तक वार्षिक वर्षा स्तर वाले क्षेत्रों में मिलता है। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर, बंगाल एवं पूर्वी उड़ीसा तथा आसाम में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में हैं। इन वनों में कुछ पर्णपाती वृक्षों की जातियाँ भी पायी जाती हैं, इसलिए इन्हें अर्द्ध सदाबहार वन कहते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले कुछ पौधे पर्णपाती तो होते हैं, लेकिन पत्ती रहित अवस्था अल्पकालिक होती है। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया पैनीकुलाटा (Terminalia paniculata) साल (Shorea robhusta), कचनार (Bauhinal), आम (Mengiphera); मैलोटस (Mallotus), टिनोस्पोरा (Tinospora), एण्ड्रोपोगॉन (Andropogon), आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical most deciduous forests):- औसतन 100 से 200 सेमी वर्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस प्रकार के वन मिलते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार अण्डमान द्वीप समूह, मध्य प्रदेश के जबलपुर, मण्डला, छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तरगुजरात के डाँग, महाराष्ट्र के थाने, रत्नागिरी, कर्नाटक के केनरा, बंगलौर एवं पश्चिमी क्षेत्र, तमिलनाडु के कोयम्बटूर तथा निलंबुर व चापनपाड़ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जाते हैंये वन उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगालआसाम, हिमांचल प्रदेश आदि राज्यों के कुछ भागों में पाये जाते हैंदक्षिणी आर्द्र पर्णपाती वनों की मुख्य वृक्ष सागौन (Teak) है, जबकि उत्तरी आई पर्णपाती वन की प्रमुख वृक्ष साल है। सागौन वन में कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के कुछ वन क्षेत्रों में डायोस्पायरॉस (Dlospyros)जिजिफस (Zizyphus)कैसिया (Cas sia)स्टिरियोस्पर्मम (Stereospermum), ऐल्बिजिया (Albizzia), सायजिजियम (Syzygium), सेड्रेला (Cedrella) साथ-साथ मिश्रित रहते हैं।

पढ़ें- जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology)

समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन(Littoral and Swamp Forest):- समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन क्षेत्र भारत के 67.00 वर्ग किलोमीटर में फैला के वन समुद्र तट पर उदाहरणतः पूर्वी व पश्चिमी समुद्र तट तथा बड़ी-बड़ी नदियों, जैसे- गंगा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी के डेल्टाओं के ज्वारीय अनूपों में पाये जाते हैं। ये क्षेत्र नरम गाद के बने होते हैं, जिनमें राइजोफोरा (Rhizophora), सोन्नैरेशिया (Sonneratia) इत्यादि के मैंग्रोव वन उगते हैं। इस जलाक्रान्त पारिस्थितियों में वानस्पतियों के क्षय से दुर्गन्ध आने लगती है। अपेक्षाकृत अन्तस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ भूमि पर ज्वारीय जल आता रहता है, ज्वारीय वन (Tidal forests) पाये जाते हैं। यहाँ हेरिशियेरा (Haritiera), वेस्पेशिया (Thespesia), वाड़ (Palm) विभिन्न जातियाँ तथा अन्य क्षूप उगते हैं। 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests):- ऐसे वनों में औसत वर्षा अत्यंत कम होती है, जिसके कारण यहाँ का तापमान काफी अधिक हो जाता है। पौधों के प्रकृति के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं 

1. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical dry deciduous forests):- औसत 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले भारतीय क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन मिलते हैं तथा समस्त भारतवर्ष के वन क्षेत्र के 1/3 भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा भारतीय प्रायद्वीप के अधिकांश भागों में हैं। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया टोमेन्टोसा (Terminalia tomentosa), इमली (Temarindus indica), साल (Shorea robhnusia), बेल (Aegle marmelos), बेर आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय कटीले वन (Tropical thorn forests):- ये वन 25-70 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में पर्णपाती वनों के स्थान पर कटीले वन पाये जाते हैं। 

उदाहरण- अकेशिया निलोटिका, अ. सुन्द्रा, प्रोसेपिस सिनेरिया, बेर (Zicyphus), नागफनी (Opum tia) बारलेरिया, यूफोर्बिया की प्रजातियाँ हिन्दरोपोगॉन लेक्टाना आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Tropi. cal thorn evergreen forests):- इस प्रकार के वन क्षेत्रों में 75-100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस प्रकार के वन तमिलनाडु के पूर्वी भाग में, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के समुद्री किनारों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के वनों में वृक्षों की पत्तियाँ चर्मिल (Coriaceous) होती है। इस क्षेत्र में बाँस का अभाव, लेकिन घास पाया जाता है। वृक्ष की ऊँचाई 9-15 मीटर तक होती है। सबसे ऊचे वृक्षों में स्ट्रिक्नॉस नक्स वोमिका (Strychnos mcx vomica), सैम्पिडस इमार्जिनेटस (Spindus emarginatus) में कैरिसा कैरान्डास (carissa carandas), इक्जोरा पार्विफ्लोरा (xara parviflora) आदि।

इस पोस्ट में हमने ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) के बारे में जाना। जो वनों के एक प्रकार में से एक है।

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जल चक्र क्या है (water cycle kya hai)

जल चक्र पर टिप्पाणी लिखिए।

हेलो दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। क्या आप जल चक्र के बारे में जानना  चाहते हैं तो आप सही वेबसाइट में आये हैं क्योंकि आज के इस आर्टिकल में  हम जानने वाले है जल चक्र क्या है साथ ही जल चक्र का चित्र (water cycle diagram) आपको देखने को मिलेगा तो चलिए जानते है.

water cycle kya hai

जल चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भण्डार से दूसरे भण्डार या एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करने की चक्रीय प्रक्रिया है जिसमें कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं होता बस रूप परिवर्तन और स्थान परिवर्तन होता है। अतः यह प्रकृति में जल संरक्षण के सिद्धांत की व्याख्या है।

Water Cycle (जल चक्र)

जल चक्र (Water Cycle) — जल चक्र में वातावरण में जल का प्रवाह निम्नलिखित अवस्थाओं एव प्रक्रियाओं के द्वारा पूर्ण होता है.

(a) चूँकि भूमि में जल का प्रमुख स्रोत वर्षा या जलवाष्प का अवक्षेपण है। अतः भूमि में जल वर्षा (rain), ओस (Dew) अथवा बर्फ (Snow) के रूप में अवक्षेपित होता है।

(b) भूमि की सतह एवं उस पर स्थित जल स्रोतों, जैसे- झील, समुद्र, झरने, आदि से यह जल सीधे वाष्पीकरण (Evaporation) क्रिया द्वारा जलवाष्प के रूप में वायुमण्डल में वापस पहुँच जाता है।

(c) पौधों में उपस्थित जल वाष्पोत्सर्जन (Trans poration) क्रिया के द्वारा तथा जन्तु के शरीर में उपस्थित • जलं वाष्पीकरण (Evaporation) क्रिया द्वारा जलवाष्प के रूप में वापस पहुँच जाता है।

(d) वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प बादल (Cloud) का रूप ले लेता है तथा ठंडे होने एवं संघनन (Conden sation) के पश्चात् यह जल की बूँदों, ओस तथा बर्फ के रूप में पुन : भूमि पर वापस आ जाता है। इस जल का कुछ भाग बहकर नदी, तालाबों, पोंखरों तथा समुद्र में एकत्र हो जाता है तथा शेष भाग भूमि के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। पौधे इसी भूमिगत जल का उपयोग करते हैं। जीव जन्तु भूमिगत जल एवं भूमि पर उपस्थित जल स्रोतों के जल का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती हैं।

जल की अवस्थाएँ (water conditions)

  • हिम (ठोस) 
  • द्रव (पानी) 
  • वाष्प (गैस) 
  • अतिशीतित जल (सुपरकुल्ड वाटर)

इस पोस्ट में हमने जल चक्र क्या है के बारे में विस्तृत रूप से जाना। जल चक्र पृथ्वी पर मानव जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक प्रक्रिया है। इसलिए जल चक्र के बारे में हम सब को अवश्य जानना चाहिए। साथ ही अनेक परीक्षाओं में भी जल चक्र से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं।

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पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी [2022] Environment important questions and answers

पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी (paryavaran ke mahatvpurn prashnottari)

नमस्कार दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। क्या आप भी पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी के संग्रह की तलाश में हैं तो आप बिलकुल सही वेबसाइट में आये है क्योंकि आज का यह आर्टिकल पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी के ऊपर लिखा गया हैं इस आर्टिकल में आपको पर्यावरण के 21 महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी दिया गया है. जो अक्सर विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें।

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इस पोस्ट से पहले हमने रेडियोधर्मी प्रदूषण पर निबंध और जल प्रदूषण क्या है जाने पूरी जानकारी के ऊपर पहले से पोस्ट कर चुके है पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते है नीचे दिये प्रश्न में से कुछ सवाल एग्जाम में पूछे जा चुके हैं.

पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी -

प्रश्न 1. पर्यावरण क्या है ? इसके विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिये।

उत्तर- पर्यावरण (Environment)- पर्यावरण, पृथ्वी की सतह के ऊपर उपस्थित वह क्षेत्र होता है, जहाँ पर जीवधारी निवास करते हैं। वास्तव में पर्यावरण एक व्यापक शब्द है जिसका तात्पर्य उस सम्पूर्ण भौतिक और जैविक व्यवस्था से है, जिसमें जीवधारी निवास करते हैं, वृद्धि करते हैं तथा अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते हैं। 

पर्यावरण के घटक (Components of Environment)- प्राकृतिक पर्यावरण निम्नलिखित दो घटकों से मिलकर बना होता है - 

(1) भौतिक घटक 

(2) जैविक घटक 

(1) भौतिक घटक (Physical Components) - इसके अन्तर्गत पर्यावरण के उन घटकों को शामिल किया गया है, जो निर्जीव होते हैं। इन्हें अजैविक घटक (Abjotic Components) कहते हैं।

उदाहरण - भूमि, वायु, जल, प्रकाश आदि। 

भौतिक पर्यावरण तीन भागों में बँटा होता है – 

(i) जलमण्डल, (ii) स्थलमण्डल, (iii) वायुमण्डल

(i) जल मण्डल (Hydrosphere) - इसमें जीवमण्डल के जल सभी स्रोत सम्मिलित होते हैं,

 जैसे- समुद्र, नदियाँ, तालाब तथा भूमि पर स्थित अन्य जल स्रोत।

(ii) स्थलमण्डल (Lithosphere)- इसमें सभी ठोस सम्मिलित होते हैं, जैसे- चट्टानें, मृदा तथा खनिज आदि। 

(iii) वायुमण्डल (Atmosphere) – यह गैसों तथा वायु का मण्डल है, जो जल तथा स्थल दोनों मण्डलों को घेरे रहता है। 

(2) जैविक घटक (Biotic Components)- पर्यावरण में उपस्थित सभी प्रकार के जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधे आपस में मिलकर पर्यावरण के जैविक घटक का निर्माण करते हैं। पृथ्वी के आस-पास एक सीमित क्षेत्र में जीवन उपस्थित होता है। ये जीवधारी पृथ्वी से ऊपर 6 किमी. की ऊँचाई तक वायुमण्डल में तथा पृथ्वी से 6 से 7 किमी. नीचे समुद्र तथा महासागरों की तलछटी में जीव उपस्थित होते हैं। 

इन्हें भी पढ़े - मृदा अपरदन क्या है? क्षरण एवं कारण


प्रश्न 2. सामाजिक पर्यावरण से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर - सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) - यह मानव निर्मित पर्यावरण होता है जिसके अन्तर्गत मनुष्य के विभिन्न क्रिया-कलाप आते हैं, जो कि पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों को प्रभावित करते हैं। 

सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत मानव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उसका सांस्कृतिक, राजनीतिक परिवेश, सोच तथा नैतिक मूल्यों का निर्वहन आता है।

प्रश्न 3. जैविक एवं अजैविक पर्यावरण किन कारणों से जनसंख्या के आकार को प्रभावित करता है ? 

उत्तर- जैविक एवं अजैविक पर्यावरण निम्न कारणों से जनसंख्या के आकार को प्रभावित करता है- 

(1) पोषक पदार्थों की उपलब्धता, 

(2) उपलब्ध स्थान (आवास एवं अन्य कार्य), 

(3) अन्य जीवों के साथ पारस्परिक क्रिया,

(4) जलवायु। 


प्रश्न 4. पर्यावरण का अर्थ व्यापक रूप में समझाइये।

उत्तर- पर्यावरण शाब्दिक रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है-परि + आवरण पर्यावरण ‘परि' का अर्थ है- 'चारों ओर, आवरण का अर्थ है- 'ढके हुए'। इस प्रकार पर्यावरण से तात्पर्य उस सब कुछ है जो किसी भौतिक अथवा अभौतिक वस्तु को चारों ओर से ढके हुए है। अत : वे सभी दशाएँ जो एक प्राणी के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं अथवा उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं, उसका पर्यावरण कहलाती हैं। 

हर्षकोविटस के अनुसार, "पर्यावरण उन समस्त दशाओं और प्रभावों का योग है, जो प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालती है।"

रॉस के अनुसार, "पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है, जो हमको प्रभावित करती है। इस प्रकार पर्यावरण से तात्पर्य मनुष्य के चारों और की उस परिस्थितियों से है, जो उसकी क्रियाओं को प्रभावित करती है।"


प्रश्न 5.  पर्यावरण के प्रमुख तत्व कौन-कौन से होते हैं ? संक्षेप में समझाइये। 

उत्तर - पर्यावरण के तत्व (Elements of Environments)-  पर्यावरण के प्रमुख तत्व निम्नांकित हैं- 

(1) भूमि के स्वरूप (Lands Forms) - पृथ्वी की सतह के ऊपर और उसके भीतर आंतरिक शक्तियों के क्रियाशील होने के कारण धरातल पर जो स्वरूप बनते हैं, उन्हें स्थल रूप कहते हैं।

(2) जल राशियाँ (Water Bodies) - पृथ्वी, मनुष्य के लिए जितनी आवश्यक है, उतना ही महत्वपूर्ण है। जैसे- जलाशयों का होना। पृथ्वी के प्रमुख जलाशय हैं-सागर, नदियाँ, झीलें और नाले। 

(3) जलवायु (Climate) - मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में जलवायु का सर्वोच्च स्थान होता है। वायुमण्डल की दशा, वर्षा, नमी, वायु, दाब के वार्षिक औसत को जलवायु कहते हैं।

(4) प्राकृतिक वनस्पति - प्राकृतिक वनस्पति सामान्यतः जलवायु पर निर्भर करती है और इसका परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है, जो सीधे रूप से जलवायु का प्रभाव ही है। 

(5) मिट्टियाँ (Soils) - मिट्टी, प्राकृतिक वातावरण का एक प्रमुख तत्व है। मनुष्य ने अपनी उपयोगितानुसार इसे कई प्रकारों में विभाजित किया है। 

(6) खनिज पदार्थ (Mineral Resources) - पृथ्वी के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते हैं। मानव की आर्थिक स्थिति को ये काफी प्रभावित करती हैं। ये किसी राष्ट्र के सम्पन्न या गरीब होने के सूचक भी हैं। 

(7) पशु जगत (Animal Life)-जीव-जन्तु भी प्राकृतिक पर्यावरण के अभिन्न तत्व हैं। ये मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं को भी प्रभावित करते हैं। 


प्रश्न 6. प्राचीन भारतीय परंपराएँ पर्यावरण के अनुकूल थीं। इस कथन की विवेचना कीजिए। 

उत्तर – प्राचीन भारतीय परंपराएँ निम्नलिखित कारणों से पर्यावरण के अनुकूल थीं—

(1) प्राचीन काल से ही लोगों में प्रकृति के प्रति प्रेम, आस्था तथा अनन्य श्रद्धा थी। 

(2) भारतीय दर्शन व प्राचीन धर्म-ग्रंथ एवं शास्त्रों में पर्यावरण के घटकों—जल, वायु, भूमि, वृक्षों आदि को देव स्वरूप मानकर इनकी पूजा-अर्चना की जाती रही है। 

(3) नदियों को माँ स्वरूप माना जाता रहा है। जैसे—गंगा, यमुना एवं सरस्वती।

(4) पर्वतों को देवस्वरूप मानकर उनके प्रति आदर व आस्था प्रकट की जाती रही है। 

(5) कुछ वृक्षों के गुणों को देखकर उन्हें पूजनीय तथा रक्षणीय माना जाता है। उदाहरण- तुलसी, नीम, पीपल, आँवला, गूलर, बरगद आदि। 

(6) भारतीय जीवन एवं संस्कृति में वृक्षों एवं वनों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका, मानव को आध्यात्मिक व आत्मिक उन्नति प्रदान करने वाली मानी जाती रही है। सृष्टि के विषय में दो अवधारणाओं का विकास कर भारतीय समाज ने पर्यावरण की रक्षा की-

(i) देवता—जल देवता, अग्नि देवता, वायु देवता, पूज्यनीय वृक्ष, जैसे—बरगद, पीपल, नीम, तुलसी आदि। 

(ii) माता–सृष्टि माता, गोमाता, धरती माता, गंगा माता, तुलसी माता, भारतमाता। इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं परम्पराएँ पर्यावरण के अनुकूल थीं।\


प्रश्न 7. जनसंख्या वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिये। 

उत्तर- जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं – 

(1) जन्म-दर में वृद्धि होना।

(2) मृत्यु दर में कमी होना।

(3) रोगों पर नियन्त्रण होना (Control of Disease) - संचरण महामारी उत्पन्न करने वाले रोगों के उपचार की औषधियों की खोज, महामारी पर नियंत्रण आदि के कारण मृत्यु दर में कमी आ गई, जिसके कारण मनुष्य की औसत आयु में भी वृद्धि हो गई।

(4) उच्च प्रजनन दर (Higher reproductive rate)- मनुष्य की प्रजनन क्षमता में वृद्धि होना भी जनसंख्या में वृद्धि का प्रमुख कारण है।

(5) कम उम्र में विवाह होना तथा कम उम्र में ही जनन की दृष्टि से परिपक्व हो जाना।

(6) प्राकृतिक प्रकोपों से सुरक्षित हो जाना। 

(7) कृषि की तकनीकों में सुधार होना, जिसके कारण जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ खाद्य सामग्री के उत्पादन में भी वृद्धि होती गई। 

(8) निम्न सामाजिक स्तर। 

(9) निरक्षरता। 

(10) सामाजिक कुरीतियाँ तथा अन्धविश्वास।

(11) रोगों एवं महामारियों पर नियंत्रण। 

(12) उद्योगों का विकास एवं शहरीकरण। 

(13) अप्रवासन आदि।

प्रश्न 8. जल के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर- जल के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित है – 

(1) वर्षा जल (धरातलीय जल) - यह मानसूनी वर्षा से प्राप्त जल है। इसी से नदियों, जलाशयों, नहरों आदि को जल की पूर्ति होती है।

(2) भूमिगत जल - वर्षा जल का लगभग 22% चट्टानों के छिद्रों व दरारों तथा भूमि की मृदा से रिसकर धरातल में प्रवेश कर जाता है। उदाहरण- कुएँ, पाताल तोड़ कुएँ, ट्यूबवेल, पहाड़ों की हैण्डपम्प आदि का जल 

(3) नदी जल - वर्षा तथा बर्फ पहाड़ों के पिघलने से जल एक धारा के रूप में प्रवाहित होकर मैदानी क्षेत्र में नदियों में बहता रहता है। 

(4) समुद्री जल - यह पृथ्वी का सबसे बड़ा जल स्रोत होता है। वर्षा जल तथा बर्फ पिघलने से उत्पन्न जलनदियों के माध्यम से अंततः समुद्र में पहुँच जाता है। समुद्री जल खारा होता है।


प्रश्न 9. कम्पोस्ट खाद क्या है ? इसे किस प्रकार तैयार किया जाता है ? 

उत्तर- कम्पोस्ट खाद (Compost manure) - पशुओं के गोबर, पौधों के अवशेष पदार्थों, घास-पात अन्य कचरों तथा मनुष्य के मल-मूत्र इत्यादि को सड़ाकर बनायी गई खाद को कम्पोस्ट खाद कहते हैं। 

कम्पोस्ट खाद बनाने की विधि - कम्पोस्ट खाद बनाने की अनेक विधियाँ हैं। यहाँ पर इन्दौर विधि का वर्णन किया जा रहा है। 

इन्दौर विधि (Indore Method)- कम्पोस्ट बनाने की इस विधि को इन्दौर में डॉ. हॉवर्ड ने विकसित किया था। इस विधि से कम्पोस्ट तैयार करने के लिए 4.21×0.9x0.6 मीटर नाप के 33 गड्ढे बनाये जाते हैं। दो-दो गड्ढों की जोड़ी बनाते हैं तथा एक जोड़ी गड्ढों की दूरी 3.60 मीटर रखी जाती है। इसमें उपयोग में आने वाले पदार्थ हैं- 

(1) पशुओं का गोबर तथा मूत्र। 

(2) लकड़ी की राख।

 (3) पत्तियाँ, घास, खरपतवार, भूसा आदि।

 (4) जल तथा वायु

विधि—सर्वप्रथम गड्ढे के धरातल पर पहले भारी कार्बनिक पदार्थों की 15 सेमी की तह लगाते हैं। इसके ऊपर राख छिड़क देते हैं फिर 5 सेमी. गोबर की पर्त लगा देते हैं। इसके ऊपर दिन में कई बार पानी छिड़क कर सारे पदार्थ को नम बनाये रखते हैं। इस प्रकार परतों के ऊपर परत लगाते जाते हैं तथा गड्ढों को भर लेते हैं।

गड्ढों को पूरा न भरकर 1/4 भाग खाली छोड़ देते हैं ताकि खाद की पलटाई में सुविधा रहे। तीन सप्ताह के बाद प्रथम पलटाई करते हैं फिर प्रथम पलटाई के पश्चात् द्वितीय  पलटाई दो सप्ताह बाद की जाती है। इस पलटाई में गड्ढों की खाद आपस में बदलकर पलटी जाती है तथा पानी का छिड़काव किया जाता है। तीसरी पलटाई में खाद को गड्ढे से बाहर निकाला जाता है। यह खाद 3-4 महीने में तैयार होती है। 

इस विधि में गोबर कम लगता है तथा समय भी कम लगता है। इस विधि में पानी अधिक लगता है तथा पलटने की क्रिया में काफी मजदूर लगते हैं। इस विधि को वायवीय विधि कहते हैं। 


प्रश्न 10. समष्टि उच्चावचन से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर- समष्टि उच्चावचन ( Population Fluctuation) - किसी समष्टि के साम्यावस्था में पहुँचने के बाद इसकी संख्या साम्यावस्था स्तर से कम या अधिक होती रहती है। साम्यावस्था की संख्या में कमी या अधिकता होने की क्रिया को समष्टि उच्चावचन पर्यावरण कहते हैं। समष्टि उच्चावचन में होने वाले परिवर्तनों या अन्तर्जातीय और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। समष्टि उच्चावचन कहते हैं। समष्टि उच्चावचन समष्टि का एक विशिष्ट गुण है और सम्भवतः यह जलवायु सम्बन्धी नियन्त्रण के कारण होता है।

समष्टि उच्चावचन को कनाडा के शशकों की विशिष्ट जाति स्नोसोहेयर और उनके भक्षणकर्ता लिंक्स के उदाहरण से समझ सकते हैं। इस शशक की चरम सीमा, लिंक्स की चरम सीमा के एक वर्ष पूर्व 9-10 वर्षों के अन्तराल पर आती है और लिंक्स इसका शिकार करके पुनः इसे उच्चावचन की स्थिति में ला देता है।


प्रश्न 11. प्रवासन क्या है ? इसके प्रमुख कारण लिखिये। 

उत्तर- प्रवासन (Migration) - प्रवासन में जीव एक क्षेत्र को छोड़कर दूसरे क्षेत्र में जाते हैं और कुछ समय बाद ये प्रारम्भिक क्षेत्र में पुनः लौट आते हैं। जीवों में प्रवासन निम्नलिखित कारणों से हो सकता है - 

(1) शत्रुओं से रक्षा के लिये। 

(2) भीड़ से बचने के लिए। 

(3) भोजन की तलाश।

(4) सन्तानोत्पत्ति के लिए उपयुक्त वातावरण की तलाश।

 (5) उपयुक्त वातावरण-तेज हवाओं के कारण कीट तथा जल-धाराओं के कारण मछलियाँ प्रवासन करती हैं।


प्रश्न 12. तीव्र गति से बढ़ती हुई मानव जनसंख्या के नियंत्रण के उपाय लिखिए। 

उत्तर - जनसंख्या नियन्त्रण के लिए निम्न उपायों को अपनाया जा सकता है -

 (1) विवाह की आयु में वृद्धि करना।  

(2) जन्म दर को कम करना।

(3) शिक्षा का प्रसार करके निम्न रूढ़ियों तथा धर्मान्धता को हटाना -

(i) सन्तान भगवान की देन का विचार। 

(ii) कन्यादान पुण्य का कार्य माना जाना। 

(iii) पुत्र पैदा होने से ही मोक्ष का मिलना। 

(iv) अधिक सन्तान द्वारा आय का बढ़ना।

 (v) सन्तान की देख-रेख भगवान द्वारा होना।

 (4) लोगों को जनसंख्या वृद्धि की भयावहता को समझाना।

 (5) परिवार नियोजन के तरीकों का उपयोग।

 (6) एक से अधिक महिलाओं से शादी पर प्रतिबन्ध।


प्रश्न 13. भारतवर्ष में स्वास्थ्य सेवाओं के कार्यक्रमों के संचालन में संलग्न किन्हीं पाँच संस्थाओं के नाम लिखिये।

 उत्तर - शासन के द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों के अतिरिक्त कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्वयं सेवी संस्थाएँ इस जनकल्याणी कार्यक्रम में वृहद् पैमाने पर सहयोग दे रही हैं। कुछ प्रमुख संस्थाएँ निम्न हैं -

(1) भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी,

(2) विश्व स्वास्थ्य संघ (W.H.O.) 

(3) भारतीय परिवार नियोजन संघ, 

(4) भारतीय सेवक समाज,

(5) भारतीय ब्लाइण्ड रिलीफ सोसाइटी 

(6) भारतीय क्षय रोग एसोसियेशन, 

(7) केन्द्रीय समाज कल्याण विभाग।


प्रश्न 14. भूमि को भौगोलिक दृष्टि से कितने भागों में बाँटा गया है ?

उत्तर - भौगोलिक दृष्टिकोण से भूमि को छ : भागों में बाँटा गया है -

(1) उत्तरी पर्वतीय प्रदेश - हिमालय पर्वत के पश्चिम से पूर्व तक।

(2) विशाल मैदान - सतलज, गंगा और ब्रम्हपुत्र के मैदान। 

(3) थार मरुस्थल - पश्चिमी राजस्थान में निम्न भूमि का प्रदेश।

(4) दक्षिण का पठार - दक्षिण भारत के 16 लाख वर्ग किमी. क्षेत्र में फैला त्रिभुजाकार पठार 

(5) तटीय मैदान - दक्षिणी पठार के दोनों ओर स्थित मैदान। 

(6) द्वीप - भारत के समुद्री तटों के समीप समुद्र में उपस्थित द्वीप।


प्रश्न 15. वाहनों से उत्सर्जित गैसों के नाम तथा उसके हानिकारक प्रभाव लिखिये। 

उत्तर - वाहनों से मुख्यत : निम्नलिखित गैसें उत्सर्जित होती हैं - 

(1) कार्बन-मोनो ऑक्साइड - यह श्वसन क्रिया में बाधा पहुँचाती है।

(2) नाइट्रोजन के ऑक्साइड - यह प्रकाश रासायनिक धुंध का निर्माण करती है। (3) हाइड्रोकार्बन - पौधों को नुकसान, आँख व नाक की श्लेष्मा ग्रंथियों का उत्तेजित होना। फेफड़ों का कैन्सर होना।


प्रश्न 16. एड्स क्या है ? इस रोग को उत्पन्न करने वाले कारक, रोग के संचरण, उपचार एवं रोकथाम के उपाय बताइये। 

उत्तर - एड्स (A. D. S.) एक विषाणु जनित मानव रोग है।

कारण – एड्स रोग HIV वाइरस से होता है, HIV का पूरा नाम ह्यूमेन इम्यूनो वाइरस है। एड्स वाइरस एक रिट्रोवाइरस (Retrovirus) है, जिसमें आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है। एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेन्सी सिण्ड्रोम है। इस रोग में T कोशिका (T Cell) का अभाव होता है, जो अन्य क्रिम्फोसाइट को सक्रिय करती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति लगभग 3 वर्ष में मर जाता है। एड्स रोग के उपचार की विधि अभी तक ज्ञात नहीं है। इसके समान एक अन्य रोग भी पाया जाता है, जिसे एड्स रिलेटेड कॉम्प्लेक्स (A.R.C.) कहते हैं। 

संचरण– (1) मैथुन या सहवास द्वारा (2) दूषित इंजेक्शन से (3) रक्त दान द्वारा (4) अंग प्रतिरोपण द्वारा (5) कृत्रिम वीर्य संकरण से (6) माता से शिशु में होता है।

रोग के लक्षण- एड्स का विषाणु मानव शरीर की सहायक कोशिकाओं को (जो कि लिम्फोसाइट्स को सक्रिय करती है) मार देता है। इस कारण शरीर में प्रतिरक्षियों के निर्माण पर प्रतिकूल असर होता है तथा रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। लसिका ग्रन्थियों में सूजनबुखार, भार कम होना, कमजोरी आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग के कारण रोगी की तीन वर्ष में मृत्यु हो जाती है। 

उपचार- अभी तक इस रोग के निवारण के लिए कोई उपचार नहीं है। एक बार यह रोग होने पर उस व्यक्ति का बचना असम्भव है। फिर भी प्रतिरक्षा उत्तेजन विधि द्वारा शरीर में इस विषाणु की निरोधक कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि की जा सकती है। 

नियन्त्रण- एड्स को फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाने चाहिए-

(1) लोगों को एड्स के घातक परिणामों की सूचना देनी चाहिए।

(2) इन्जेक्शन लगाने वाली सिरिंज एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक देना चाहिए।

(3) रुधिर देने वाले व्यक्तियों, प्रतिरोपण के लिए वृक्क, यकृत, नेत्र का कॉर्निया, वीर्य या वृद्धि हॉमोन का दान करने वाले व्यक्तियों तथा गर्भधारण करने वाली स्त्रियों का निरीक्षण अनिवार्य रूप से करना चाहिए। 

प्रश्न 17. भूमि के स्वरूप में परिवर्तन किन कारणों से होता है ? लिखिये। 

उत्तर- भूमि के स्वरूप में परिवर्तन के प्रमुख कारण निम्नलिखित है-

(1) औद्योगिक अपशिष्ट। 

(2) शहरी अपशिष्टों एवं प्रदूषित जल। 

(3) रासायनिक कीटनाशकों, शाकनाशकों एवं रोगनाशी रसायनों का उपयोग। 

(4) खनन। 

(5) भूमि के उपयोग में परिवर्तन। 

(6) वनों का विनाश। 

(7) अति वर्षा एवं बाढ़। 

(8) सड़कों, रेल लाइनों एवं इमारतों का निर्माण। 

(9) दावाग्नि (वनाग्नि)। 

(10) हानिकारक सूक्ष्म जीवों की उत्पत्ति। 


प्रश्न 18. भूमि सुधार के प्रमुख उपाय लिखिये। 

उत्तर– भूमि सुधार के उपाय-

(1) फसलों को हेर-फेर कर बोना या फसल चक्र (Crop rotation) अपनाना जिससे कि भूमि की विभिन्न स्तरों का उपयोग होता रहे तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहे। 

(2) पशुओं के चरने पर नियंत्रण करना, जिससे भूमि खुली न रह सके। 

(3) बाँध बनाकर बाढ़ तथा जल के बहाव द्वारा होने वाली मृदा की हानि को रोकना। 

(4) ढलान वाली जगहों पर सीढ़ीदार खेतों को बनाना, जिससे जल के बहाव को कम करके, भूमि के कटाव को रोका जा सके। 

(5) पहाड़ी क्षेत्रों में ढलान के विपरीत जुताई करना तथा पौधों को लगाना। 

(6) कृषि योग्य भूमि पर शहरीकरण तथा औद्योगिकीरण को रोकना। 

(7) कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों का कम से कम उपयोग करना। 

(8) प्राकृतिक खादों पर निर्भरता को बढ़ाना। 

(9) अपशिष्ट पदार्थों का निपटान- कारखानों एवं शहरों से निकलने वाले विषैले एवं हानिकारक अपशिष्टों को प्रभावशाली ढंग से समाप्त किया जाना चाहिए। 


प्रश्न 19. वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण क्या है ?

उत्तर- वैश्वीकरण या भूमण्डलीकरण- मेलकॉम वार्टस के अनुसार, भूमण्डलीकरण एक सामाजिक प्रक्रिया है, जिसमें सामाजिक तथा सांस्कृतिक व्यवस्था पर आने वाले भौगोलिक दबाव कम हो जाते हैं। 

भूमण्डलीकरण का कृषि पर प्रभाव- 

(1) अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर खाद्य व कृषि उत्पादों से मात्रात्मक प्रतिबन्ध समाप्त होने से बीजों एवं कच्चे माल की आपूर्ति एवं आवाजाही में वृद्धि। 

(2) निजी कम्पनियों का कृषि सम्बन्धी व्यापार में प्रवेश होना।

(3) कृषि सम्बन्धी नये उत्पादों का उत्पादन। 

(4) कृषि में मात्रा वृद्धि के साथ-साथ गुणवत्ता में सुधार।

(5) किसानों का अपने उत्पादों को अन्तर्राष्ट्रीय मानकों में ढालकर उनके निर्यात से विदेशी मुद्रा का उर्जन। 

(6) जैविक खेती को बढ़ावा मिलना एवं इसके उत्पादों की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में माँग बढ़ना।


प्रश्न 20. जनसंख्या कार्यक्रम के प्रमुख उद्देश्य लिखिये। 

उत्तर- जनसंख्या कार्यक्रम के उद्देश्य-

(1) तात्कालिक उद्देश्य- गर्भ-निरोधक उपायों के विस्तार हेतु स्वास्थ्य एवं बुनियादी ढाँचे का विकास करना। 

(2) मध्यकालीन उद्देश्य- सन् 2010 तक कुल प्रजनन दर को कम करना।

(3) दीर्घकालीन उद्देश्य- सन् 2045 तक स्थायी आर्थिक विकास हेतु स्थिर जनसंख्या उद्देश्य की प्राप्ति।


प्रश्न 21. "बाल विवाह एक बड़ी सामाजिक कुरीति है।" इस कथन की विवेचना कीजिये।

उत्तर– बाल विवाह एक बड़ी भारतीय सामाजिक कुरीति है क्योंकि- (1) भारतवर्ष में विवाह के अयोग्य बच्चों का अपरिपक्व उम्र में ही विवाह हो जाता है, जिससे शारीरिक रूप से कमजोर हो जाते हैं। 

(2) बाल विवाह के परिणामस्वरूप कम उम्र में बच्चे पैदा हो जाते हैं, जिससे जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होती है।

(3) इससे यौन रोगों में वृद्धि होती है। 

(4) इससे बच्चे अपने बच्चों का उचित पालन पोषण नहीं कर पाते हैं। जिसके कारण कुपोषित एवं रोगग्रस्त संतानें उत्पन्न होती हैं। 

(5) इसके कारण परिवार में सामाजिक व आर्थिक विसंगतियाँ उत्पन्न होने लगती हैं।


पर्यावरण से सम्बन्धित महत्वपूर्ण FAQs 

1. जैवभार में कौन सम्मिलित है ?

बायोमास में जैविक रूप से नष्ट किये जा सकने वाला कचरा (जैवकचरा) भी सम्मिलित है जिसको जलाकर ईंधन का काम लिया जा सकता है। किन्तु बायोमास में वे कार्बनिक पदार्थ सम्मिलित नही हैं जो हजारों वर्षों के भूगर्भीय परिवर्तनों के परिणामस्वरूप कोयला या पेट्रोलियम आदि मे बदल गये हैं। वे जीवाश्म ईंधन कहलाते हैं।

2. पहली बार विश्व पर्यावरण दिवस कब मनाया गया था?

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन के दौरान 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में घोषित किया। यह पर्यावरण संरक्षण को एक प्रमुख मुद्दा बनाने वाला पहला विश्व सम्मेलन था। यूएनईपी की स्थापना उसी वर्ष हुई थी। विश्व पर्यावरण दिवस पहली बार 1973 में मनाया गया था।

3. प्रथम विश्व पर्यावरण सम्मेलन कब हुआ था?

पर्यावरण प्रदूषण की समस्या पर सन् 1972 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्टॉकहोम (स्वीडन) में विश्व भर के देशों का पहला पर्यावरण सम्मेलन आयोजित किया। इसमें 119 देशों ने भाग लिया और पहली बार एक ही पृथ्वी का सिद्धांत मान्य किया।

4. सन् 1972 में पर्यावरण सम्मेलन का आयोजन कहाँ किया गया?

मानव पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (स्टॉकहोम सम्मेलन के रूप में भी जाना जाता है) 5-16 जून, 1972 से स्टॉकहोम, स्वीडन में संयुक्त राष्ट्र के तत्वावधान में आयोजित एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन था।


आज के इस आर्टिकल में हमने  पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी के बारे में जाना । विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। इन सभी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए ये आर्टिकल लिखा गया है , जिससे परीक्षा की तैयारी में आपकी मदद हो सके।

उम्मीद करता हूँ कि पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी का यह आर्टिकल आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा , यदि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इस आर्टिकल को शेयर जरुर करें।


मृदा अपरदन क्या है- (What is soil erosion in Hindi)

आज की इस पोस्ट में हम आपको मृदा अपरदन क्या है? एवं उनके कारण के बारे में बतायेंगे | मृदा अपरदन या क्षरण का  मृदा कणों का बाह्य तत्त्वों जैसे वायु, जल या गुरुत्वीय खिंचाव द्वारा पृथक होकर बह जाना होता है । वायु द्वारा मृदा अपरदन मुख्यतः रेगिस्तानी क्षेत्रों में होता है, जहाँ वर्षा की कमी तथा हवा की गति अधिक होती है।  

मृदा अपरदन क्या है (What is soil erosion in Hindi)

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Table of content: -

  • मृदा अपरदन क्या है (What is soil erosion)
  • मृदा अपरदन के प्रकार (types of soil erosion)
  • भारत में मृदा अपरदन के दरें (Rates of Soil Erosion in India)
  • मृदा अपरदन के कारण (Due to soil erosion)
  • मृदा अपरदन रोकने का उपाय (measures to prevent soil erosion)

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मृदा अपरदन क्या है? 

बहते हुए जल, हवा तथा जीव-जन्तुओं व मानव की क्रियाओं द्वारा भू-पटल की ऊपरी उपजाऊ मिट्टी की परत के कट जाने और उड़कर अन्यत्र रूपान्तरित हो जाने को मिट्टी का कटाव या मृदा अपरदन(soil erosion) कहा जाता है।

मृदा अपरदन के प्रकार (types of soil erosion)-

प्राकृतिक क्षरण - यदि मृदा अपरदन(soil erosion) अगर  किसी प्राकृतिक कारण के बिना बाह्य हस्तक्षेप के होता है   तो उसे  प्राकृतिक मृदा अपरदन(soil erosion) कहलाता है । इस मृदा अपरदन(soil erosion) में मृदा-निर्माण तथा मृदा- ह्रास की प्रक्रियायें साथ-साथ होती रहती हैं जिसके कारण एक प्राकृतिक संतुलन बना रहता है तथा वानस्पतिक विकास निरन्तर चलता रहता है | यह एक धीमा परन्तु लगातार चलने वाला रचनात्मक कार्य है। जो संतुलित बनाये रखते है।

त्वरित क्षरण - जब मृदा अपरदन(soil erosion) की प्रक्रिया मानव तथा जानवरों द्वारा सतही भूमि पर आवश्यकता से अधिक दखल देने के कारण तेजी से होती है, तब वह त्वरित भू-क्षरण या मृदा अपरदन कहलाता है। यह क्रिया अधिक विनाशकारी होती है जिसके उपचार हेतु भूमि संरक्षण के उपाय अतिआवश्यक है ताकि मृदा-वनस्पति-पर्यावरण का सम्बन्ध प्रकृति में बना रहे । 

भारत में मृदा अपरदन के दरें (Rates of Soil Erosion in India) -

भारत में सामान्यतः कृषि भूमि से अनुमानित मृदा अपरदन(soil erosion) की दर लगभग 7.5 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष है, परन्तु वर्तमान दर लगभग 20-30 टन प्रति हेक्टेयर प्रति वर्ष तक पहुँच गई है, जिसमें अधिकतम योगदान पर्वतीय क्षेत्रों का है। यह एक चिन्ता का विषय है जिसके लिए तुरन्त संरक्षण की आवश्यकता है |

इन्हें पढ़े - जल प्रदूषण क्या है जाने पूरी जानकारी

(1) जलवायु - जलवायु के अन्तर्गत वर्षा की मात्रा व तीव्रता, तापमान, वायु, सूर्य की ऊष्मा आदि को शामिल किया जाता है। यदि वर्षा की तीव्रता अधिक है, तो भूक्षरण भी अधिक होगा।

(2) मृदा - मृदा के अन्तर्गत मृदा की रचना तथा गठन, घनत्व, जल धारण क्षमता, कार्बनिक पदार्थ, दृढ़ता आदि को शामिल किया जाता है। मृत्तिका या चिकनी मिट्टी की अपेक्षा रेतीली मिट्टी का क्षरण अधिक होता है ।

(3) वनस्पति - वनस्पति के अन्तर्गत शामिल हैं वनस्पति का प्रकार, जाति, घनत्व, परिपक्वता की अवस्था आदि को शामिल किया जाता है। सघन वनस्पति जिसका मूल-तंत्र अच्छा है, उससे मृदा अपरदन कम होता है । 

(4) स्थलाकृति - स्थलाकृति के अन्तर्गत शामिल हैं ढाल की मात्रा एवं लम्बाई, आकृति एवं आकार आदि को शामिल किया जाता है। लम्बे व ढालू भूमि की सतह से मृदा अपरदन अधिक होता है क्योंकि इस पर अपवाह की गति तेज होती है। उत्तल - सतह की अपेक्षा अवतल सतह से मृदा अपरदन कम होता है।

मृदा अपरदन के कारण (Due to soil erosion) -

मृदा कटाव या अपरदन(soil erosion)  के अनेक कारण उत्तरदायी होते हैं, जिसमे से सबसे ज्यादा मृदा अपरदन होता उसका लिस्ट नीचे दिया गया है.

(1) वायु - शुष्क, वनस्पति रहित मरुस्थलीय प्रदेशों में वायु मृदा अपरदन का सबसे बड़ा कारण है। वायु द्वारा मृदा अपदरन वायु की गति पर निर्भर करता है | तेज चलने वाली वायु अधिक मात्रा में अपरदन करती है। राजस्थान में वायु द्वारा सर्वाधिक अपरदन होता है। 

(2) नदी - नदी तीन प्रकार से मृदा अपरदन करती है (i) नदी कटाव द्वारा खड्ड का निर्माण करता है । चम्बल तथा यमुना के अपवाह प्रदेशों में इसके उदाहरण मिलते हैं। (ii) जब नदी अपने मार्ग में परिवर्तन करती है तब आस-पास के इलाके में मृदा अपरदन करती है । कोसी नदी ने कई बार अपना मार्ग बदला है। (iii) बाढ़ के समय नाले का पानी दूर-दूर तक फैल जाता है तथा मृदा की परत को बहाकर ले जाता है। 

(3) मूसलाधार वर्षा - जब मूसलाधार बारिश होती है तब उसका जल तीव्र गति से धरातल पर बहता है और मृदा का अपरदन होता है।

(4) पशुचारण - वनस्पति से पशुओ को चारा मिलता है लेकिन अधिक पशुचारण भी वनस्पति को हानी पहुचती है जिसे मृदा क्षरण होता है मृदा बहकर चली जाती है जिसे मृदा का अपरदन होता है अधिक चराई से वनस्पति का आवरण नष्ट हो जाता है जिसे मिट्टी आवरण रहित हो जाता है तथा मृदा क्षरण होता है |

(5) वनस्पति का नाश - वनस्पति एवं पौधा मिट्टी को जकड के रखती है जिसे मिट्टी सुरक्षित रहती है  वनस्पति वायु के तेज प्रवाह एवं जल के गति को कम करता है जिसेजिन जगहों पर वनस्पति का अधिक नाश करते है वहा मृदा अपरदन अधुइक होता है |

(6) मानव एवं जिव जन्तु - मानव एवं जिव जंतु के कारण से भी बहुत अधिक मृदा अपरदन होता है मानव खेती करने के लिए जोताई खुदाई ,कुए ,नहर ,भवन निर्माण करते है जिसे मृदा अपरदन होता है जिव जंतु भी मृदा अपरदन करते है कई जिव अपने बिल बनाने के लिए करते है जिसके कारण मृदा क्षरण होता है |

मृदा अपरदन रोकने का उपाय (measures to prevent soil erosion) -

वृक्षारोपण - यह मृदा अपरदन रोकने का सबसे अच्छा उपाय है जो वनस्पति बिना मानवीय सहायता से उगते है जंगल में वे सभी वनस्पति प्राकृतिक वनस्पति कहलाते है |जिन जगहों पर अधिक मृदा अपरदन होता है उस जगह पर अधिक वृक्ष रोपण करना चाहिये |

पशुचारण पर प्रतिबंध - पशुचारण के लिए अलग से चारागाहों की व्यवस्था होनी चाहिए | खली खेतो में पशु बिना किसी रोकटोक के घूमते है जिससे उनके खुर से मिट्टी ढीली पद जाती है जिसे मृदा अपरदन होता है इसलिए पशुचारण को सीमित करना चाहिये एवं उनके लिए अन्य व्यवस्था करना चाहिए |

बांध का निर्माण - बाढ़ग्रस्त जगहों पर नदियों में बांध का निर्माण करना चाहिए जिससे मृदा अपरदन को रोका जा सके। बांध बनाने से जल के तीव्र गति कम होती है जिससे मृदा अपरदन कम होता है तथा बांध का निर्माण करने से सिंचाई का भी कार्य किया  जा सकता है।

मृदा अपरदन से जुड़े FAQs

प्रश्न 1 - मृदा अपरदन की मात्रा निर्भर करती है?

उत्तर - मृदा अपरदन (soil erosion) की मात्रा निम्न कारकों पर निर्भर करती है-

प्रत्यक्ष कारक:

  1. वनों की कटाई तथा वन विनास 
  2. अत्यधिक चारागाह के रूप में भूमि का उपयोग 
  3. रासायनिक उर्वरकों तथा कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग 
  4. अवैज्ञानिक सिंचाई पद्धतियां, अतिकृषि, अल्पकृषिफसल चक्र का प्रयोग नहीं करना आदि। 

अप्रत्यक्ष कारक:

  1. बाँधों का निर्माण व बहुउद्देश्यीय परियोजनाएं
  2. जल प्रवाह की समस्या 
  3. नगरीकरण, औद्योगिकरण, निर्माण कार्य व खनन कार्य आदि।

Question - amount of soil erosion depends upon?

Answer - The amount of soil erosion depends on the following factors-

Direct factor:

  • deforestation and deforestation
  • use of land as excessive pasture
  • Excessive use of chemical fertilizers and pesticides
  • Unscientific irrigation practices, over-farming, not using crop rotation, etc.

Indirect factor:

  • Construction of Dams & Multipurpose Projects
  • water flow problem
  • Urbanization, industrialization, construction work and mining work etc.

प्रश्न 2 - अपरदन का मतलब क्या होता है?

उत्तर - अपरदन (Erosion) वह प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानों का विखंडन और परिणामस्वरूप निकले ढीले पदार्थों का जल, पवन, इत्यादि प्रक्रमों द्वारा स्थानांतरण होता है। अपरदन के प्रक्रमों में वायु, जल तथा हिम नद और सागरीय लहरें प्रमुख हैं।

प्रश्न 3 - भूमि अवनयन क्या होता है?

उत्तर - भूमि अवनयन = जब भूमि की गुणवत्ता घटने लगती है, , उसकी उपयोगिता कम होने लगती है और उसकी उत्पादक क्षमता में कमी आ जाती है तब उपजाऊ शक्ति में कमी आने को भूमि अवनयन कहते हैं। भूमि अवनयन के लिए जिम्मेदार कारक इस प्रकार हैं.

प्रश्न 4 - भूमि पृथक्करण के कारण क्या है?

उत्तर - जनसंख्या विस्फोट, औद्योगीकरण, शहरीकरण, वनविनाश, अत्यधिक चराई, झूम कृषि तथा खनन गतिविधियां भूमि संसाधनों के क्षरण के प्रमुख कारण हैं। इनके अतिरिक्त रासायनिक उर्वरकों एवं नाशीजीवनाशकों (पेस्टीसाइड्स) पर आधारित पारम्परिक कृषि भी भूमि क्षरण का एक प्रमुख कारण है।

इस पोस्ट में हमने मृदा अपरदन क्या है, मृदा क्षरण,  मृदा अपरदन के कारण, मृदा अपरदन रोकने के उपाय  के बारे में विस्तार से जाना। 

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रेडियोधर्मी प्रदूषण पर निबंध (Essay on Radioactive Pollution in Hindi)

रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है (rediodharmi pradushan kya hai)

नमस्कार, आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। इस लेख में हम रेडियोधर्मी प्रदुषण क्या है, रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत, रेडियोधर्मी प्रदूषण का दुष्प्रभाव, रेडियो धर्मी प्रदुषण से बचने के उपाय आदि के बारे में विस्तार से जानेंगे। वर्तमान समय में टेक्नोलॉजी का बहुत ही ज्यादा उपयोग किया जा रहा है जिससे रेडियो धर्मी प्रदुषण बढ़ने की सम्भावना बढ़ रही है। रेडियो धर्मी प्रदूषण से जुड़े प्रश्न विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। रेडियो धर्मी प्रदुषण के बारे में अच्छे से जानने के लिए इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।

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रेडियोधर्मी प्रदूषण ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ में जहाँ अनायास या अवांछनीय रेडियोधर्मी पदार्थ की उपस्थिति होती है, उसे रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं। इसका प्रभाव पर्यावरण, जीव जन्तुओं और मनुष्यों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। जिससे लोगों की मृत्यु भी हो जाती है।

Table of content: -

  • रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है?
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव
  • रेडियोधर्मी प्रदूषण के उपाय
  • निष्कर्ष

रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radioactive Pollution) - रेडियोधर्मी प्रदूषण वह है, जो रेडियोऐक्टिव किरणों (radioactive rays) से होता है। ये किरणें एक विशेष प्रकार की किरणें होती हैं, जो रेडियोऐक्टिव पदार्थों से निकलती हैं। ये किरणें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं- अल्फा, बीटा, गामा । इन रेडियोऐक्टिव पदार्थों का उपयोग आजकल परमाणु ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। शान्ति काल में इस ऊर्जा से विद्युत् का उत्पादन किया जाता है, जबकि युद्धकाल में इसका उपयोग विनाश के लिए बमों के रूप में किया जाता है।

ऊपर आपने जाना कि रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? अब जानते है रेडियो धर्मी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत के बारे में किन-किन कारणों से रेडियो धर्मी प्रदूषण होता है इसके बहुत सारे कारण हैं। जो नीचे दिया गया है.

 रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत (Sources of Radioactive Pollution)- 

रेडियो धर्मी प्रदूषण विभिन्न कारणों से होता है इसके बहुत सारे स्रोत हैं जिनके कारण रेडियो धर्मी प्रदूषण होता है। रेडियो धर्मी प्रदूषण के स्रोत निम्नलिखित है-

(1) चिकित्सा में उपयोग होने वाली किरणों से प्राप्त प्रदूषण-आजकल चिकित्सा में भी रेडियोऐक्टिव किरणों का उपयोग विभिन्न बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जा रहा है । ये किरणें जीव शरीर को प्रभावित कर रही हैं। जैसे- X- किरणें (x-rays ) । 

आजकल PETS (Position Emission Tomographic Scaning), लेसर (LASER = Light Amplified by Stimulated Emission of Radiation), सोनोग्राफी (Sonography) इत्यादि चिकित्सकीय युक्तियों का प्रयोग रोगों के उपचार में किया जा रहा है। इन सभी युक्तियों में कुछ तरंगों को शरीर में भेजा जाता है। हालाँकि ये तरंगें उपचार के लिए प्रयोग की जाती हैं, लेकिन ये शरीर के ऊतकों एवं कोशिकाओं को प्रभावित भी करती हैं और कभी-कभी कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी भी पैदा करती हैं ।

(2) नाभिकीय शस्त्रों से प्रदूषण - आजकल नाभिकीय या परमाणु बमों द्वारा परमाणु ऊर्जा को पैदा करने के लिए यूरेनियम-235, प्लूटोनियम-239, स्ट्रान्शियम-90, सीजियम-137, आयोडीन- 131, इत्यादि रेडियोऐक्टिव पदार्थों का प्रयोग किया जा रहा है, जो रेडियोऐक्टिव विकिरण पैदा कर प्रदूषण फैला रहे हैं । 

(3) परमाणु भट्ठियाँ और ईंधन - परमाणु भट्ठियों में उपयोग किये जाने वाले पदार्थों से प्राप्त विकिरण प्रदूषण पैदा करता है। इसके अलावा इनके अपशिष्टों को भी जल स्रोतों एवं वातावरण में मिलाया जा रहा है, जिनसे निकला विकिरण रेडियोऐक्टिव प्रदूषण पैदा कर रहा है।

इन्हें पढ़े - प्राकृतिक संसाधन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

(4) अन्य स्रोत – आजकल परमाणु बिजली घरों में रेडियोऐक्टिव पदार्थों का उपयोग हो रहा है, जिनसे निकले अपशिष्टों के विकिरण प्रदूषण पैदा कर रहे हैं। 

(5) शोधकार्यों में उपयोग में लाये गये रेडियोऐक्टिव पदार्थों से प्राप्त विकिरण भी प्रदूषण पैदा करते हैं।

(6) प्राकृतिक विकिरण – अन्तरिक्ष किरणों (Cosmic rays), सूर्य का विकिरण एवं पृथ्वी में स्थित न्यूक्लियोइड्स, जैसे— रेडियम-224, यूरेनियम- 235, यूरेनियम- 233, थोरियम- 232, रेडॉन 22, कार्बन-14 और पोटैशियम- 40 भी रेडियो विकिरण छोड़ते हैं, जिनसे रेडियोऐक्टिव प्रदूषण पैदा होता है।

रेडियो धर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव- (Side effects of radioactive pollution

ऊपर आपने जाना कि रेडियो धर्मी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत के बारे में अब आगे आपने पड़ने वाले है रेडियो धर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव को रेडियो धर्मी प्रदूषण जीन्स तथा गुणसूत्रों को प्रभावित करते हैं। गुणसूत्र की संरचना तथा जीन्स की स्थिति में परिवर्तन आ जाने से आनुवंशिक रोग हो जाते हैं. इस रेडियो धर्मी प्रदूषण के कारण  मानव स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव पढता है चलिए आगे जानते है.

(A) मानव स्वास्थ्य पर प्रभाव (impact on human health)

(1) ल्यूकेमिया तथा हड्डी कैंसर (Leukemia and Bone Cancer)- प्रायः सभी नाभिकीय के विस्फोटकों के द्वारा रेडियोधर्मी स्ट्रांशियम-90 (Stotium) तथा सीजियम-137 मुक्त होता है जिससे वायु, जल तथा भूमि का प्रदूषण होता है । यह वर्षा के बूँदों के द्वारा गिरकर घास में प्रवेश करता है, जो दूध देने वाली गाय, भैंस, बकरियों आदि के द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है। शरीर में पहुँचने पर यह सभी हड्डियों से मिल जाता है और ल्यूकेमिया व हड्डी कैंसर नामक भयानक रोग उत्पन्न करता है। 

(2) रेडियोऐक्टिव विकिरण के फलस्वरूप जीव की प्रजनन क्षमता क्षीण हो जाती है तथा असामयिक बुढ़ापे की अवस्था को प्राप्त कर वे मर जाते हैं। 

(3) महामारियों में वृद्धि (Spread of Epidemics)- रेडियो धर्मी विकिरण के बाद मनुष्य में रोग जनक बैक्टीरिया व विषाणु (bacteria and viruses) के प्रति एण्टीटॉक्सिन्स उत्पन्न करने की क्षमता कम हो जाती है। 

(4) जीन्स में परिवर्तन (Changes in Genes) रेडियोऐक्टिव विकिरण के फलस्वरूप जीवों के जर्मिनल कोशिकाओं के जीन्स में उत्परिवर्तन (mutation) उत्पन्न हो जाते हैं जिससे विकृत एवं विकलांग शिशुओं का जन्म हो सकता है।

(5) रेडियोऐक्टिव विकिरण के बाद केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र भी प्रभावित होता है, जिससे संवेदी तन्त्रिकाओं की कोशिकाएँ कभी भी उत्तेजित हो जाती हैं।

(6) बाह्य त्वचा पर घाव बन जाती है एवं आँख, आँत व जनन ऊतक प्रभावित होते हैं। इसके तात्कालिक प्रभाव के रूप में आँखों में जलन, डायरिया, उल्टी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। 

(7) तन्त्रिका तन्त्र तथा संवेदी कोशिकाएँ उत्तेजित हो जाती हैं।

इन्हें पढ़े - पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।

(B) जीव जन्तुओं पर प्रभाव (effect on animals)

(1) रेडियोधर्मी पदार्थों से संदूषित घास, दानें आदि खाने से पक्षियों के अण्डों में शिशु नहीं बन पाते।

(2) जल में रेडियोधर्मी पदार्थों के मिलने से जलीय जन्तुओं विशेषकर कीटों के लार्वा एवं अन्य छोटे जीवमरने लगते है।

(3) कीट-पतंगों के जीवनचक्र की विभिन्न अवस्थाओं (प्यूपा, लार्वा आदि) का नष्ट हो जाना, जिसके कारण इनकी प्रजातियों की विलुप्तता का खतरा उत्पन्न हो जाता है।

(C) वनस्पतियों पर प्रभाव (Effects on plants)

(1) वनस्पतियों की प्रचुरता का कम होना।

(2) पेड़-पौधों की प्रकार्यात्मक क्रियाओं, जैसे-रसारोहण, प्रकाश संश्लेषण, श्वसन, पुष्पर तथा जनन में व्यवधान आना। 

(3) पौधों की सतह पर घावों का बनना।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के उपाय (Measures to control radioactive pollution)

  1. परमाण्विक ऊर्जा से संचालित विद्युत् गृहों व रिएक्टरों की स्थापना शहरों तथा आबादी से दूर करना चाहिए।
  2. परमाणु बिजली घरों से उत्पन्न परमाणु कचरे को भूमि के नीचे गहराई में सुरक्षापूर्वक दबा देना चाहिए।
  3. परमाण्विक रिएक्टरों के रख-रखाव के समुचित प्रबन्ध होने चाहिए तथा इनके रख-रखाव में सतर्कता रखनी चाहिए।
  4. परमाणु संयंत्रों की टंकियों एवं पाइप लाइनों की समय-समय पर जाँच करते रहना चाहिए।
  5. परमाणु बमों के निर्माण तथा उनके उपयोग पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए।
  6. विश्व के परमाणु भण्डारों को नष्ट कर देना चाहिए।
  7. परमाणु बमों के परीक्षण पर रोक लगाना चाहिए। 
  8. परमाणु ऊर्जा का उपयोग सही कार्यों में करना चाहिए।

आज के इस लेख में हमने  रेडियो धर्मी प्रदूषण क्या है?  रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत, रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव, रेडियोधर्मी प्रदूषण के उपाय के बारे में जाना। रेडियो धर्मी प्रदूषण से अधिकतर पूछे जाने वाले प्रश्न नीचे दिए जा रहे हैं। जिसका अभ्यास आप अपने परीक्षा की तैयारी के लिए कर सकते हैं।

रेडियो धर्मी प्रदूषण से सम्बंधित FAQs

1. रेडियोधर्मी प्रदूषण किसे कहते हैं तथा इससे क्या हानियां हैं?

प्रकृति में कुछ ऐसे पदार्थ पाए जाते हैं, जो स्वत: ही विघटित होकर एक प्रकार की हानिकारक किरणे उत्सर्जित करते हैं। जैसे – थोरियम आदि ऐसे पदार्थ रेडियोधर्मी पदार्थ कहलाते हैं। इन पदार्थों से निकलने वाली किरणें वायुमंडल को प्रदूषित करती हैं। इन किरणों द्वारा होने वाले प्रदूषण को रेडियोधर्मी प्रदूषण कहते हैं।

2. रेडियोधर्मी प्रदूषण से कौन सी बीमारी होती है?

उच्च मात्रा में विकिरण के संपर्क से 'क्रॉनिक डिज़ीज़िज़' (Chronic Diseases), जबकि अत्यधिक प्रदूषण से कैंसर या यहाँ तक कि अचानक मृत्यु भी हो सकती है। विकिरण की कम मात्रा उन बीमारियों का कारण बन सकती है जो विकिरण संपर्क के समय इतनी गंभीर नहीं होती हैं परंतु समय के साथ विकसित होती है।

3. रेडियोएक्टिव पदार्थ क्या होता है?

रेडियोसक्रियता (रेडियोऐक्टिविटी / radioactivity) या रेडियोधर्मिता वह प्रकिया होती है जिसमें एक अस्थिर परमाणु अपने नाभिक (न्यूक्लियस) से आयनकारी विकिरण (ionizing radiation) के रूप में ऊर्जा फेंकता है। ऐसे पदार्थ जो स्वयं ही ऐसी ऊर्जा निकालते हों विकिरणशील या रेडियोधर्मी (रेडियोऐक्टिव) कहलाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि रेडियोधर्मी प्रदूषण पर निबंध की यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी ,अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर अवश्य करें।

जल प्रदूषण क्या है (What is Water Pollution)

जलप्रदुषण प्रदूषण क्या है (Jal pradushan kya hai)

नमस्कार, आंसर दुनिया के वेब पेज में आपका स्वागत है। जल प्रदूषण अभी के समय में बहुत बढ़ी समस्या बन गया है "जल है तो कल है" ऐसा नारा लगाते है और आज जल प्रदूषण कि सबसे बड़ी समस्या हमारे और आपके सामने बना हुआ है. तो आज के आर्टिकल में  जल प्रदूषण क्या है, जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत और जल प्रदूषण के प्रकार आदि के बारे में बताया जा रहा है। साथ ही जानेंगे कि जल प्रदूषण से जीव जंतु और मनुष्यों को क्या-क्या समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

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जल प्रदूषण (Water Pollution) - जल के निश्चित भौतिक (physical), रासायनिक (chemical) एवं जैविक गुण (biological character) होते हैं, अत : जल के इन लक्षणों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन जिसका मनुष्य (man), जन्तुओं (animals) एवं पौधों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है, जल प्रदूषण (Water pollution) कहलाता है। जल प्रदूषण कारखानों, शहरों, उद्योगों तथा कृषि व अन्य हानिकारक पदार्थों के जल में मिल जाने के कारण होता है। वह स्वयं मनुष्य तथा जीवमण्डल (biosphere) के दूसरे जीवों को बुरी तरह से प्रभावित करता है।

जल प्रदूषण के प्रमुख स्रोत- (Major sources of water pollution)

(1) घरेलू अपमार्ज़क (Household Detergents)- 

आजकल घरों की सफाई, बर्तनों की सफाई, नहाने-धोने में अपमार्जकों का प्रयोग अधिकता से किया जा रहा है, जिसके कारण जल में फॉस्फेट, नाइट्रेट, अमोनियम के यौगिक ऐल्किन बेन्जीन सल्फोनेट (ABS) इत्यादि जल में मिलकर इसे प्रदूषित करते हैं। अनिम्नीकरणीय होने के कारण जल में एकत्र होकर जीवमण्डल को प्रभावित करता है फॉस्फोरस और नाइट्रेट जल में शैवालों की वृद्धि को उत्तेजित कर देते हैं। शैवालों की मृत्यु के बाद अपघटन के कारण जल में दुर्गन्ध पैदा होती है और O2 की कमी हो जाती है कुछ शैवाल विषैले पदार्थ स्रावित करते हैं, जिसके कारण इस जल का उपयोग करने वाले जन्तुओं की मृत्यु सम्भव है।

इन्हें पढ़े - प्राकृतिक संसाधन से जुड़े महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी

(2) वाहित मल ( Sewage)- 

शहरों से निकला मल-मूत्र, कूड़ा-करकट भूमिगत नालियों द्वारा जलाशयों नदियों, झीलों तथा समुद्रों में मिला दिया जाता है । इन पदार्थों से अमोनिया CO, CO2, नाइट्राइट, सल्फाइड, सल्फेट आदि जल में मिल जाते हैं और इसे प्रदूषित करते हैं। कुछ जीवाणु तथा कवक इन पदार्थों का अपघटन करके इन्हें कम हानिकारक पदार्थों में बदल देते हैं|

(3) औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ (Industrial Wastes)-

कारखानों में कच्चे माल के उपयोग के आधार पर अनेक प्रकार के अपशिष्ट बनते हैं, जिन्हें नदियों, नालों, समुद्रों या खुले स्थानों पर छोड़ दिया जाता है जिससे जल प्रदूषित होता है। इन अपशिष्टों में पारा, ताँबा, जस्ता, अम्ल, क्षार, फीनॉल, सायनाइड, फेरस लवण, सल्फाइड, सल्फाइट दवाइयाँ, कीटनाशी तथा दूसरे कई विषैले पदार्थ होते हैं, जिनका बुरा प्रभाव जन्तुओं के स्वास्थ्य पर पड़ता है।

(4) कीटनाशी इत्यादि पदार्थ (Insecticides etc.)- 

कृषि कार्य तथा शहरों में उपयोग होने वाले कीटनाशी जैसे-D.D.T. इत्यादि वर्षा के जल के साथ बहकर जल स्रोतों में मिलकर प्रदूषित करते हैं। D.D.T पौधों के माध्यम से मछलियों में पहुँचकर धीरे-धीरे एकत्र होता रहता है। इन मछलियों को खाने वाले छोटे जन्तुओं की मृत्यु हो जाती है। मनुष्य के शरीर में पहुँचकर D.D.T. तन्त्रिका तन्त्र व जनन ग्रन्थियों को प्रभावित करता है|

(5) तेल (Oil) - 

समुद्र में कई प्रकार के जीव-जन्तु पाये जाते हैं, जो हमारे लिए उपयोगी होते हैं। हमें प्राप्त कुल ऑक्सीजन की लगभग 70% मात्रा समुद्रों से ही प्राप्त होती है। कल-कारखानों से प्रदूषित नदियाँ अपने जल को समुद्र में डालकर इसे प्रदूषित करती हैं| बन्दरगाहों पर समुद्री जलपोत से निकला तेल समुद्र को प्रदूषित करता है। इसके अलावा युद्धकाल में जलपोतों पर किया गया आक्रमण भी जल को प्रदूषित करता है। तेलों के प्रदूषण के कारण आज सैकड़ों प्रकार के समुद्री जीव या तो विलुप्त हो गये हैं या विलुप्त होने की कगार पर हैं|

इन्हें पढ़े - पारिस्थितिकी (Ecology) और पारिस्थितिकी की शाखाएँ

(6) ताप तथा आण्विक बिजली घर ( Thermal and Nuclear Power Station ) - 

आण्विक तथा ताप बिजली घरों की मशीनों को ठण्डा करने के लिए जल का प्रयोग किया जाता है, जिसे उपयोग के बाद जल स्रोतों में छोड़ दिया जाता है, जो जल के ताप को बढ़ा देते हैं जिससे जलीय जीवों को हानि पहुँचती है। इसके अलावा आण्विक बिजली घरों से निकलने वाले अपशिष्टों को भी जल स्रोतों में छोड़ा जाता है जो जल को प्रदूषित करते हैं।

(7) संक्रामक सूक्ष्मजीव (Infective micro organism)- 

नगर पालिकाओं, चमड़े की फैक्ट्रियों इत्यादि से निकला गन्दा जल किसी-न-किसी जल स्त्रोत, जैसे- नदी, नाला, तालाब, झील इत्यादि में छोड़ा जाता है। इस जल में गन्दगी के कारण अनेक प्रकार के जीवाणु और सूक्ष्म जीव पाये जाते हैं, जो हैजा, मियादी बुखार (Typhoid) तथा चर्म रोग पैदा करते हैं। ये रोग इस प्रदूषित जल के द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर फैलते हैं । 

जल प्रदूषण के  प्रकार (Types of Water Pollution)


जल प्रदूषण के प्रकार (Types of Water Pollution)- जल प्रदूषण को वैज्ञानिकों ने विभिन्न प्रकार से वर्गीकृत किया है। जल के लक्षणों (Character) के आधार पर जल प्रदूषण निम्नलिखित प्रकार का होता है-

(1) जल का भौतिक प्रदूषण (Physical pollution of water)-

ऐसा प्रदूषण जिसके कारण जल के भौतिक गुणों (Physical Properties), जैसे- रंग ( colour), गंध (odur), घनत्व (density), स्वाद (taste), गंदलापन ( turbidity) एवं तापीय लक्षणों (thermal properties) में परिवर्तन हो जाता है, उसे भौतिक प्रदूषण कहते हैं|

इन्हें पढ़े -- खाद्य श्रृंखला और खाद्य जाल

(2) जल का रासायनिक प्रदूषण (Chemical pollution of water)- 

इस प्रकार के प्रदूषण के फलस्वरूप जल के रासायनिक गुणों, जैसे- अम्लीयता (acidity) या pH, घुलित ऑक्सीजन (dissolved oxygen or D.O.) एवं अन्य गैसों की मात्रा में परिवर्तन होते हैं । यह प्रदूषण मुख्यतः जल में कार्बनिक (organic) या अकार्बनिक (inorganic) अथवा दोनों प्रकार के पदार्थों के मिल जाने के कारण होता है ।

(3) जल का जैविक प्रदूषण (Biological pollution of water)-

 जल का जैविक प्रदूषण गर्म रक्त वाले प्राणियों ( warm blooded animals), जैसे- मनुष्य (man) पालतू एवं जंगली- जानवरों के द्वारा उत्सर्जित पदार्थों के कारण होता है।

(4) जल का प्रकार्यात्मक प्रदूषण (Physiological pollution of water)- 

जल के प्रकार्यात्मक प्रदूषण विभिन्न प्रकार के रासायनिक कारकों, जैसे- क्लोरीन (CI), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), हाइड्रोजन सल्फाइड (H2S), फीनॉल्स (phenols), मर्केप्टेन्स (mercaptans) एवं हाइड्रॉक्सी बेन्जीन (hydroxybenzene) के कारण होता है।

जल के स्रोत (source) के आधार पर जल प्रदूषण निम्न प्रकार का होता है-

(1) भूमिगत जल प्रदूषण (Underground water pollution), 

(2) सतही जल प्रदूषण (Surface water pollution), 

(3) झीलों के जल का प्रदूषण (Lake water pollution), 

(4) नदियों के जल का प्रदूषण (River water pollution), 

(5) समुद्री जल का प्रदूषण (Sea water pollution) । 

(A) जलीय जन्तुओं पर जल प्रदूषण का प्रभाव-

  • प्रदूषित जल में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है, जिसके कारण जलीय जन्तु ऑक्सीजन के अभाव में मरने लगते हैं।
  • प्रदूषित जल में विभिन्न प्रकार के हानिकारक जीवाणु तथा प्रोटोजोआ उत्पन्न हो जाते हैं, जो जलीय जन्तुओं में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।
  • प्रदूषित जल में शैवालों की संख्या में वृद्धि होती है, जिसके कारण ऑक्सीजन की माँग बढ़ जाती है। जिसके कारण जलीय जन्तुओं को श्वसन में कठिनाई होती है और वे मरने लगते हैं।
  • जल में वाहित मल एवं औद्योगिक अपशिष्टों के विसर्जन के कारण रासायनिक पदार्थों की मात्रा में वृद्धि हो जाती है तथा जल का pH मान बदल जाता है और जल में विशेष प्रकार की वनस्पतियाँ पनपने लगती हैं, जल में कार्बनिक पदार्थों की मात्रा बढ़ती है तथा तालाब धीरे-धीरे सूखने लगते हैं और उसमें पाये जाने वाले जीव-जन्तु मर जाते हैं। 
  • जल के तापीय प्रदूषण से जलाशयों का तापमान बढ़ जाता है जिसके कारण जलीय जन्तु एवं वनस्पतियाँ नष्ट होने लगती हैं। 

(B) जलीय वनस्पतियों पर जल प्रदूषण का प्रभाव- 

  • कृषि रसायनों जैसे- उर्वरकों, पीड़कनाशियों, कवकनाशियों एवं शाकनाशियों को जल में प्रवाहित करने से जल में शैवालों की संख्या में वृद्धि होती है और जल में सूक्ष्म जीवों की संख्या में तेजी से वृद्धि होती है, जिसके कारण जल में ऑक्सीजन की कमी होने लगती है। परिणामस्वरूप जलीय पेड़ पौधे नष्ट होने लगते हैं । 
  • जल में कार्बनिक पदार्थ मुक्त अपशिष्टों, जैसे वाहित मल (सीवेज) के प्रवाहित होने से उसमें जीवाणुओं, शैवालों एवं कवकों की संख्या में वृद्धि होने लगती है, जो अन्य जलीय वनस्पतियों की वृद्धि को रोकते हैं । 
  • जल की सतह पर शैवालों की चादर जैसी बन जाती है। जिसके कारण प्रकाश किरणें जल की सतह तक नहीं पहुँच पाती हैं तथा जलीय पौधों में प्रकाश-संश्लेषण नहीं हो पाता है और वे मरने लगते हैं ।

जल प्रदुषण क्या है? FAQs

1. गांवों में जल प्रदूषण के कारण क्या है?

जल सबसे अधिक औद्योगिक अवशिष्ट के कारण प्रदूषित होता है। चीनी, अल्कोहल, उर्वरक, तेलशोधक, कपड़ा, कागज और लुगदी, कीटनाशक, औषधिक, दुग्ध उत्पाद, ताप विद्युत गृह, चर्म, कार्बनिक तथा अकार्बनिक रसायन, सीमेंट, रबर तथा प्लास्टिक, खाद्य-प्रसंस्करण आदि उद्योग जल प्रदूषण के मुख्य कारक हैं।

2. आप अपने गांव में जल प्रदूषण से कैसे बचेंगे?

जल प्रदूषण को रोकने के कुछ अन्य तरीकों में जल का पुनर्चक्रण एवं पुनः उपयोग भी सम्मिलित है। इससे स्वच्छ एवं मीठे जल की उपलब्धता सुनिश्चित करने में मदद मिलती है। कम गुणवत्ता वाले जल जैसे कि गन्दे पानी को शोधित करने के पश्चात प्राप्त जल को हम विभिन्न उपयोग में ला सकते हैं।

3. जल स्रोत की स्थिति क्या है?

पृथ्वी पर 97 प्रतिशत लवण जल है और 3 प्रतिशत स्वच्छ जल है जिसमें से दो तिहाई भाग से थोड़ा अधिक हिमनद एवं धुव्रीय आइस कैप में जमा हुआ है। शेष बिना जमा स्वच्छ जल कम मात्रा में भूमि के ऊपर या वायु में उपस्थित नमी के साथ मुख्यतः भू जल के रूप में पाया जाता है

4. पानी का मुख्य स्रोत क्या है?

यदि बात पूरी पृथ्वी की है तो स्वाभाविकतः समुद्र ही पानी के मुख्य स्त्रोत है,इनसे ही हवा पानी सोख कर बादल बनाती है, जो बरसते है,फिर नदियां बहती है, सरोवर एवं कुँए भरते है। वैसे, हिमनद, नदियां, सरोवर आदि इंसानों या अन्य प्राणियों के संदर्भ मे पानी के स्त्रोत है।


इस आर्टिकल को पढने के बाद जल प्रदूषण क्या है की  पूरी जानकारी आपको हो गयी होगी जल को दूषित होने से बचाए लोगो को इसके बारे में बताये ताकि सब को जल प्रदूषण से होने वाली समस्याओं के बारे में जानकारी हो और लोग जल प्रदूषण करने से बचे.  

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महत्वपूर्ण जनरल नॉलेज (Important General Information in Hindi)

महत्वपूर्ण जनरल नॉलेज (Important General Information in Hindi)

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम महत्वपूर्ण सामान्य जानकारियों को जानेंगे, सामान्य जानकारियां आज के समय में हर एक व्यक्ति को होना अति आवश्यक हैं. सामान्य जानकारियां हमें जानकार बनाने के साथ साथ हमें समझदार भी बनाता हैं. इतना ही नहीं आज लगभग सभी तरह की प्रतियोगी परीक्षाओ में सामान्य ज्ञान जिसे (GK) भी कहा जाता हैं यह पूछा जाता हैं. आज का दौर प्रतिस्पर्धा  का दौर हैं और ऐसे में आपको नीचे दिए कुछ महत्वपूर्ण सामान्य जानकारियां होनी चाहिए.

Important General Information in Hindi

प्रमुख वर्षों से जुड़ी सामान्य जानकारी का प्रश्न-उत्तर हिंदी में

प्रश्न. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम
उत्तर - 1989

प्रश्न. अब्राहम लिंकन अमेरिका का राष्ट्रपति बना
उत्तर - 1861

प्रश्न. अमेरिकी गृह युद्ध
उत्तर - (1861-1865)

प्रश्न. अमेरिकी का स्वतन्त्रता संग्राम
 उत्तर - (1776-1783)

प्रश्न. अमेरिकी स्वंत्रता
 उत्तर - 1776

पढ़ें- मुग़लकाल से सम्बंधित महत्वपूर्ण जीके 

प्रश्न. आईपीसी (इंडियन पैनेल कोड)
 उत्तर - 1860

प्रश्न. उपभोक्ता सरंक्षण अधिनियम
 उत्तर - 1986

प्रश्न. ऑपरेशन ब्लेक बोर्ड की शुरुआत 
उत्तर - (1987-1988)

प्रश्न. प्रथम खाड़ी युद्ध
उत्तर - 2 अगस्त 1990 - 28 फ़रवरी 1991 संयुक्त राज्य के नेतृत्व में

प्रश्न. द्वितीय खाड़ी युद्ध
 उत्तर - 19 मार्च, 2003 को लड़ा गया था, यह युद्ध अमेरिका एवं इराक के बीच।

प्रश्न. चीनी क्रांति
उत्तर - 1911 (चीनी गणतंत्र बना)

प्रश्न. जर्मनी का एकीकरण
उत्तर - 1990

प्रश्न. जार्ज वाशिंगटन अमेरिका के राष्ट्रपति बने
 उत्तर - 1789

प्रश्न. जुलाई कांति
उत्तर - 1830 (फ्रांस)

जानें- विकासशील देशों की समस्याएं।

प्रश्न. ताशकंद समझौता
 उत्तर - 1966 (भारत और पाकिस्तान के बीच)

प्रश्न. प्रथम विश्व युद्ध
उत्तर - 1914-1918

प्रश्न. द्वितीय विश्व युद्ध
उत्तर - 1939-1945

प्रश्न. नेपोलियन फ्रांस का सम्राट बना
उत्तर - 1804

प्रश्न. पहली राष्ट्रीय शिक्षा नीति
उत्तर - 1968 में

प्रश्न. बंधुआ श्रम उन्मूलन अधिनियम
उत्तर - 1975

प्रश्न. भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम
उत्तर - 1988

प्रश्न. रूस क्रांति (बोल्शेविक क्रांति) 
उत्तर - 1917 (1991 में रुस का विद्यण्डन हो गया)

प्रश्न. लीग ऑफ नेशन (राष्ट संघ) की स्थापना
उत्तर - 1920

प्रश्न. वाटरलू का युद्ध
उत्तर - 1815

प्रश्न. दण्ड प्रक्रिया संहिता
उत्तर - 1973

प्रश्न. सौ वर्षों का युद्ध
उत्तर - 1338 (इंग्लैण्ड और फ्रांस)

प्रश्न. हिटलर जर्मनी का चांसलर बना
उत्तर - 1933

प्रश्न. हिटलर द्वारा आत्म हत्या
उत्तर - 1945

प्रश्न. हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम
उत्तर - 1956

प्रश्न. हिन्दू विवाह अधिनियम
उत्तर - 1955

प्रश्न. जीवन बीमा को राष्ट्रीय कब किया गया ?
उत्तर - 1956

प्रश्न. भारत में सबसे पहली रेलगाड़ी कब चली थी? 
उत्तर - 6 अप्रैल, 1853

प्रश्न. किस वर्ष मानव ने पहली बार चन्द्रमा पर चरण रखे थे?
उत्तर - 1969

प्रश्न. जापान पर परमाणु बम कब गिराया गया था?
उत्तर - 1945

प्रश्न. प्लासी का युद्ध कब हुआ था ?
उत्तर - 1757

आज के इस आर्टिकल में बताये गए सभी वर्ष और दिवस महत्वपूर्ण माने जाते हैं,प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे RRB,NTPC,SSC,UPSC,STATE PSC,UGC NET/JRF, एवं अन्य कई प्रवेश परीक्षाओं में भी  इस प्रकार के प्रश्न पूछे जाते हैं ,यदि आप इस जानकारियों को याद रखते हैं तो यह आगे आने वाली परीक्षाओं में यह आपके लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगा. अगर आपको दी गई जानकारी अच्छी लगी हो तो इस पोस्ट  को शेयर अवश्य करें .

प्राकृतिक संसाधन सम्बंधित प्रश्नोत्तरी (Natural Resources Quiz)

प्राकृतिक संसाधन सम्बंधित प्रश्नोत्तरी (Natural Resources Quiz)

नमस्कार दोस्तों, आंसर दुनिया के वेब पेज में आपका स्वागत है। प्राकृतिक संसाधन से जुड़े कई महत्वपूर्ण सवाल और जवाब नीचे दिए गये हैं प्राकृतिक संसाधन से सम्बन्धित प्रश्न कई प्रतियोगी परीक्षाओ में पूछे जाते हैं | प्राकृतिक संसाधन वे संसाधन हैं जो मानव जाति के कार्यों के बिना मौजूद हैं। दूसरे शब्दों में वो प्राकृतिक पदार्थ, जो अपने अपक्षक्रित मूल प्राकृतिक रूप में मूल्यवान माने जाते हैं, उन्हें प्राकृतिक संसाधन कहते हैं।

Natural Resources Quiz

प्रश्न 1. कृषक कारीगर समाज में मनुष्य के लिए क्या-क्या प्राकृतिक संसाधन रहे होंगे ? एक विस्तृत सूची बनाइए। 

उत्तर- कृषक कारीगर समाज में मनुष्य के लिए अनेक वस्तुएँ प्राकृतिक संसाधनों के रूप में उपलब्ध थीं। उनकी सूची इस प्रकार हैं-जल, पत्थर, कन्द-मूल, खाल, पेड़-पौधे, फल-फूल, रेशेदार पदार्थ, लोहा, अग्नि, बाँस, जानवर, मिट्टी आदि। इनका उपयोग करते-करते मनुष्य आज की सभ्यता तक पहुंचा। 

प्रश्न 2. पिछले दस हजार वर्षों में मानव समाज का प्राकृतिक संसाधनों के साथ रिश्ता कैसे-कैसे बदला है?

उत्तर- पिछले दस हजार वर्षों में मनुष्य ने अनेक नई तकनीकों का सहारा लेकर विभिन्न वस्तुओं का निर्माण किया-मिट्टी को पकाकर वर्तन बनाना, रेशों से कपड़े बनाना, पत्थरों से औजार बनाना, पशुओं का पालन करना, बीजों को बोकर फसल उगाना, जल से सिंचाई करना। इस प्रकार प्राकृतिक संसाधनों के साथ उसका रिश्ता बदलता गया और मानव समाज का विकास होता गया। प्रश्न 

3. प्राकृतिक सम्पदा किस प्रकार संसाधन बनती है ? उदाहरण देकर समझाइए। 

उत्तर- जमीन, जंगल, पानी ये प्राकृतिक सम्पदा हैं। मनुष्य ने इसे ईश्वर का वरदान समझकर इनकेउत्तर अनुचित उपयोग पर रोक लगाई। धीरे-धीरे मनुष्य ने जमीन का उपयोग खेती के लिये किया। पानी पीने के साथ सिंचाई के प्रयोग में लाने लगे। जंगलों से लकड़ी-छाल एकत्र कर झोपड़ियाँ बनायीं। कंद-मूल का प्रयोग खाने के लिए करने लगे। इस प्रकार प्राकृतिक सम्पदा उनके लिए संसाधन बनती गयी। 

प्रश्न 4. प्राकृतिक सम्पदा के बारे में कबीलाई समुदायों में क्या सोच थी और वे उनका उपयोग किस तरह करते थे? 

उत्तर- प्राकृतिक सम्पदा के बारे में कबीलाई समुदायों में ये सोच थी कि ये ईश्वर के वरदान स्वरूप हमें मिले हैं। इनसे हमको आजीविका मिलती है किन्तु इसका अनुचित उपयोग हमें नहीं करना चाहिए। उनकी इसी सोच के कारण प्राकृतिक संसाधन सब लोगों तक पहुँच सका। 

पढ़ें- ऑक्सीजन चक्र और नाइट्रोजन चक्र।

प्रश्न 5. औद्योगिक समाज का प्राकृतिक सम्पदा के प्रति क्या सोच है ? क्या वे भी इस सम्पदा का उपयोग आदिवासी समाज की तरह ही करते हैं ?

उत्तर- औद्योगिक समाज का प्राकृतिक सम्पदा के प्रति यह सोच है कि इसके धरती पर असीम भंडार हैं। जितना चाहे इसका उपयोग हम कर सकते हैं, इससे समाज में उत्पादन की क्षमता बढ़ेगी, रोजगार बढ़ेंगे, औद्योगिक विकास होगा। आदिवासी समाज इसे प्रकृति का उपहार समझकर संतुलित उपयोग पर जोर देता था। औद्योगिक समाज ने उनके विपरीत दोहन करना प्रारंभ कर दिया। 

प्रश्न 6. आज हमारे सामने प्राकृतिक सम्पदा के उपयोग के लिए किस-किस तरह के विचार हैं? 

उत्तर- औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक सम्पदा का दोहन तेजी से हो रहा है। अंधाधुंध उपयोग के कारण प्राकृतिक सम्पदा के भंडार समाप्ति के कगार पर हैं। प्राकृतिक सम्पदा के उपयोग के लिए एक विशेष नीति-निर्धारण की आवश्यकता है। प्राकृतिक सम्पदा के पुन : चक्रीकरण पर विचार करना आवश्यक है। प्राकृतिक सम्पदा के उपयोग और उसकी प्राप्ति की मात्रा में कोई तालमेल नहीं है। जल, भूमि, वायु सभी की उपयोगिता का स्वरूप, मात्रा, उपयोग का आधार, प्रदूषण से बचाव ये हमारे विचारणीय बिन्दु होंगे तभी भविष्य सुरक्षित होगा।

प्रश्न 7. आप इनमें से किसे प्राकृतिक संसाधन मानेंगे ? कारण सहित चर्चा करें-नदी का पानी, बोतल में बंद मिनरल वाटर, डीजल, सिलेंडर में भरा ऑक्सीजन, खनिज तेल, संगमरमर, मुर्गा, गन्ना आदि।

उत्तर- प्राकृतिक संसाधन हैं-नदी का पानी, डीजल, खनिज तेल, संगमरमर। उपरोक्त की प्राप्ति प्रकृति से हुई है। इसलिए ये प्राकृतिक संसाधन माने जायेंगे। नदी, धरातल पर बहने वाली प्राकृतिक स्रोत है। डीजल, परतदार चट्टानों के बीच पाये जाने वाले खनिज तेल से बनता है। खनिज तेल परतदार चट्टानों के बीच पायी जाने वाली वनस्पति व जीव-जन्तुओं के अवशेष से प्राप्त होता है। पृथ्वी के अन्दर पाया जाने वाला चूने का पत्थर, धरातल के ताप एवं दवाव से परिवर्तित होकर संगमरमर बनता है। इस प्रकार प्रकृति से प्राप्त ये पदार्थ ही प्राकृतिक संसाधन माने जायेंगे। \

जानें- मरुद्भिद पौधों के प्रकार और अनुकूलन के प्रकार।

8. अगर हम जंगलों की लकड़ियों का उपयोग करना चाहते हैं तो उनके नवीनीकरण चक्र से कैसे मेल बिठाएँगे? 

उत्तर- यदि हम जंगलों की लकड़ियों का उपयोग करना चाहते हैं तो हमें एक वृक्ष काटने के पहले दस वृक्ष लगाकर उन्हें बड़ा करना होगा। जब वे पर्याप्त बड़े हो जायें तब एक वृक्ष काटना होगा। पौधे को वृक्ष बनने में कम-से-कम 5 या 10 वर्ष लगते हैं काटने में एक दिन का समय लगता है। इसी योजना से नवीनीकरण चक्र से मेल बिठा सकते हैं।

प्रश्न 9. भूजल का नवीनीकरण चक्र किस तरह काम करता है ? हमें भूजल का उपयोग किस तरह करना चाहिए? 

उत्तर- भूजल का नवीनीकरण चक्र बनाने के लिए “वाटर हार्वेस्टिंग" आवश्यक है। वर्षा का जल धरती के अंदर रिसकर जाने से भूजल का स्तर बढ़ता है। सड़क पर दोनों किनारे घास के मैदान छोड़ने चाहिए, जल रिस कर अंदर पहुंचेगा। सड़कों पर सीमेन्ट लगाने से रोकना पड़ेगा इससे जल रिसकर पृथ्वी के अंदर नहीं पहुँच पाता। भूजल का उपयोग करने के पहले उसकी सुरक्षा और स्वच्छता आवश्यक है। नदियों का कचरा निकालकर उसका पुन : उपयोग करना चाहिए। जल शुद्धिकरण का कार्य सतत् होते रहना चाहिए। यही प्राकृतिक नवीनीकरण का आधार है। प्रश्न 

10. तालाबों में मछलियों का नवीनीकरण किस तरह होता है ? हमें उनका उपयोग किस तरह करना चाहिए? 

उत्तर- तालाबों में मछलियों का नवीनीकरण तभी होता है जब मछली अण्डे देती है और फिर नई मछलियों का जन्म होता है। हमें मछली पालन के तालाब का पानी स्वच्छ रखना होगा। तालाब में कीटनाशक का प्रयोग जहाँ तक हो सके नहीं करें। जल प्रदूषण से मछलियाँ तो मरती हैं किन्तु कीटनाशक के प्रयोग से मछली खाने वाला भी मर सकता है। इसलिए स्वच्छता और प्रदूषणविहीन जलाशय का उपयोग आवश्यक है।

इन सभी मूल्यवान संसाधनों के विशेषताओं में चुम्बकीय, गुरुत्वीय, विद्युतीय गुण या बल आदि शामिल हैं। पृथ्वी में सूर्य के प्रकाश, वायुमंडल, जल, थल (सभी खनिजों सहित) के साथ साथ सारे सब्जियों, फसल और पशुओं के जीवन से प्राकृतिक रूप से प्राप्त पदार्थ आदि प्राकृतिक संसाधनों के सूची में शामिल हैं। एक प्राकृतिक संसाधन का मूल्य इस बात पर निर्भर करता है कि कितना पदार्थ उपलब्ध है और उसकी माँग कितनी है।


इस पोस्ट में हमने प्राकृतिक संसाधन सम्बंधित प्रश्नोत्तरी (Natural Resources Quiz) के बारे में जाना।प्राकृतिक संसाधन सम्बंधित प्रश्नोत्तरी (Natural Resources Quiz) का संग्रह विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है।

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