जैव-अकार्बनिक रसायन (Bio-Inorganic Chemistry) के सवाल
जैव-अकार्बनिक रसायन के सवाल देखें -
प्रश्न 1. जैव-अकार्बनिक रसायन क्या है?
उत्तर - जैव-अकार्बनिक रसायन (Bio-inorganic chemistry) रसायन विज्ञान की आधुनिकतम शाखा है। इसके अन्तर्गत जैव-रासायनिक प्रक्रियाओं में भाग लेने वाले अकार्बनिक तत्वों एवं यौगिकों का अध्ययन किया जाता है। जैविक प्रक्रियाओं में अकार्बनिक तत्वों एवं यौगिकों के लाभप्रद एवं हानिप्रद भूमिकाओं के निर्धारण में जैव-अकार्बनिक रसायन का महत्वपूर्ण योगदान है।
प्रश्न 2. धातु पोरफायरिन्स किसे कहते हैं?
धातु पोरफायरिन्स की संरचना पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - जैविकीय तन्त्र में उपस्थित धातु आयन वृहद् चक्रीय लिगैण्डों के साथ एक विशेष प्रकार के संकुल बनाते हैं। इन वृहद् चक्रीय लिगैण्डों को पोरफायरिन्स कहते हैं, जो कि पोरफिन के व्युत्पन्न होते हैं। पोरफिन वलय तन्त्र वस्तुतः दीर्घ चक्रीय टेट्रापाइरोल तंत्र होता है, जिसमें संयुग्मित द्विबन्ध पाये जाते हैं। पोरफिन अणु में विभिन्न प्रतिस्थापी समूहों के जुड़ने पर बने व्युत्पन्न को पोरफायरिन्स कहते हैं। इस प्रकार धातु तथा पोरफायरिन्स लिगैण्डों से बने संकुलों को धातु पोरफायरिन्स कहते हैं।
उदाहरण-क्लोरोफिल तथा हीम धातु पोरफायरिन्स का पौधों तथा जन्तुओं के मौलिक जैविक प्रक्रमों में अत्यधिक निकटता से संबंध होता है। इनमें इलेक्ट्रॉन तथा अणुओं को स्थानान्तरित करने की क्षमता पायी जाती है।
पोरफाइरिन अणु - porphyrin molecule |
प्रश्न 3. सूक्ष्म मात्रा (Trace) तत्व से क्या समझते हैं?
सूक्ष्म तत्व पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - वे अकार्बनिक तत्व, जो जैव-रासायनिक (Bio-chemicals) तथा शरीर क्रियात्मक (Physiological) प्रक्रियाओं के लिये आवश्यक होते हैं, किन्तु इन तत्वों की अपेक्षाकृत कम मात्रा की आवश्यकता होती है। ये सूक्ष्म मात्रा तत्व कहलाते हैं। उदाहरण-मॉलिब्डेनम, मैंगनीज, फ्लुओरीन, कोबाल्ट, जिंक, कॉपर, आयोडीन। इसके अतिरिक्त कुछ ऐसे आवश्यक तत्व हैं, जिनकी अतिसूक्ष्म या परासूक्ष्म (Ultratrace) मात्रा हो, आवश्यक होती है। जैसे - निकिल, वैनेडियम, क्रोमियम, सिलीनियम, बोरॉन, टिन, टंगस्टन आदि।
प्रश्न 4. आवयश्क तत्वों के जैविक कार्यों का वर्णन कीजिये।
जैविक तंत्र में निम्न धातु आयनों का योगदान लिखिए- Zn2+, Mg2+ तथा Ca2+
उत्तर - प्रकृति में पाये जाने वाले धातु तथा अधातु तत्व अनेक जैविक प्रक्रियाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैंइन्हें आवश्यक तत्व कहते हैं व अब तक 60 से अधिक तत्वों की उपस्थिति जीवाणु (Bacteria), फफूंद (Fungi), पौधों, पशुओं तथा मनुष्य में ज्ञात की जा चुकी है। इन तत्वों के बिना जीवन का सामान्य रूप से चलना संभव नहीं है। इनमें से कुछ आवश्यक तत्वों के जैविक कार्य या जैव-रासायनिक भूमिकाएँ निम्नानुसार हैं -
- पोटैशियम (K) - यह एक आवश्यक धातु तत्व है। यह अन्तःकोशिकीय तरल का एक मुख्य धनायन है।
- सोडियम (Na) - जैव प्रक्रियाओं में यह एक आवश्यक तत्व है। यह कोशिका में बाह्य तरल (Extra cellular fluid) में उपस्थित धनायनों का प्रमुख भाग है। पर अधिकांशतः क्लोराइड तथा बाइकार्बोनेट आयनों से सम्बद्ध रहता है तथा अम्ल-क्षार साम्य को नियंत्रित रखता है। यह कोशिका भित्ति के दोनों ओर परासरणी दाब (Osmotic pressure) को स्थिर रखता है तथा तन्त्रिकाओं की सुग्राहिता को बनाये रखता है।
- मैग्नीशियम (Mg) - प्राणी कोशिकाओं में Mg++ आयनों की सान्द्रता पायी जाती है। स्वस्थ मनुष्य के शरीर में लाभग 21.00 mg/Mg++ उपस्थित रहता है। रक्त में इसकी मात्रा 2.4 mg/100 ml होती है। Mg++ परासरणी तथा वैद्युत् अपघट्यों के साम्य को बनाये रखता है। Mg++ आयनों द्वारा ATP के साथ संकुल बनाता है। हरे पौधों में पाये जाने वाले क्लोरोफिल के लिए Mg++ आयन महत्वपूर्ण होते हैं।
- कैल्सियम (Ca) - कैल्सियम प्रमुखतः हड्डियों में पाया जाता है। शरीर का 99% हड्डियों में अक्रिस्टलीय कैल्सियम फॉस्फेट तथा क्रिस्टलीय हाइड्रॉक्सी एपेटाइट के रूप में जमा रहता है। यह Car, के रूप में अल्प मात्रा में हड्डियों तथा दाँतों में पाया जाता है। Ca' आयन रक्त के स्कन्दन के लिये अत्यधिक महत्वपूर्ण है। Ca'' आयन हृदय की मांसपेशियों तथा तंत्रिकाओं के सामान्य उत्तेजना के लिए भी महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त Ca++ आयन मांसपेशियों के संकुचन के लिए भी उपयोग होता है।
- क्रोमियम (Cr) - ग्लूकोज उपापचय में इसकी मुख्य भूमिका होती है। यह लिपिड, प्रोटीन तथा कार्बोहाइड्रेट उपापचयन में सहायक होता है।
- मैंगनीज (Mn) - यह अनेक धातु एन्जाइमों (Metallo enzyme) को सक्रिय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे-ऑर्जिनेज, पायरुवेट, कार्बोक्सलेज आदि। इसकी कमी से स्तनधारियों (Mammals) में नपुंसकता हो जाती है।
प्रश्न 5. Co तथा CN हानिकारक प्रभाव उत्पन्न करते हैं। समझाइये।
उत्तर - Fe++ आयन मृदु अम्ल है तथा O2 एक सीमा रेखा क्षार है। O2 की तुलना में CO तथा CN- मृदु क्षार है, अत : 02 की तुलना में CO तथा CN- मृदु क्षार Fe2++ मृदु अम्ल से अधिक प्रबल बन्ध बनाते हैं, जिससे हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होता है। CO तथा CN द्वारा निर्मित संकुल हीमोग्लोबिन की ऑक्सीजन वाहक क्षमता को कम करता है, जिससे मृत्यु होने की संभावना बढ़ जाती है। CO द्वारा निर्मित कार्बोक्सी-हीमोग्लोबिन ऑक्सी हीमोग्लोबिन की अपेक्षा 400 गुना अधिक स्थायी है। इसके अतिरिक्त CN- आयन साइटोक्रोम एन्जाइम तंत्र में बाधा उत्पन्न करता है, जो कि CN- की विषाक्तता उत्पन्न करने का प्रमुख कारण है।
प्रश्न 6. NO तथा co का जैव क्रियाओं में महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - हीमोग्लोबिन अणु का Fe++ आयन एक मृदु अम्ल है। यह मृदु क्षार NO तथा CO के साथ प्रबल बन्ध बनाते हैं, जिससे हीमोग्लोबिन का O2 परिवहन का कार्य बाधित होता है तथा विषाक्त प्रभाव उत्पन्न होता है। सन् 1995 में एक अध्ययन द्वारा NO एवं CO के निम्नलिखित जैविकीय कार्यों को स्पष्ट किया गया है
- NO तथा CO दोनों तंत्रिका कोशों से तंत्रिका संचारण कार्य करते हैं।
- NO मृदु मांसपेशियों के संकुचन तथा शिथिलीकरण में सहायक है।
- शरीर में रोग उत्पादकों (Pathogens) को कम करने में सहायक है।
प्रश्न 7. कॉपर जैविक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक तत्व है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - कॉपर जैविक प्रक्रियाओं के लिए आवश्यक तत्व है। यह जीवधारियों तथा पौधों के लिये आवश्यक तत्व है, किन्तु कॉपर की अधिक मात्रा विषैला प्रभाव उत्पन्न करता है तथा शरीर के लिए हानिकारक होता है। जन्तुओं में कॉपर की कमी से लीवर में आयरन संग्रहण की प्रक्रिया क्षीण होती है, जिससे जन्तुओं में रक्त अल्पता उत्पन्न होती है। कॉपर शरीर में प्रोटीनों को अपने साथ धातु प्रोटीन के रूप में या एन्जाइम के रूप में संयुक्त रखते हैं। कॉपर हीमोग्लोबिन की तरह ऑक्सीजन वाहक का कार्य करता है। मनुष्य में 100-150 mg कॉपर उपस्थित होता है। इसमें शरीर में लगभग 64 mg मांसपेशियों में, 23 mg हड्डियों में तथा 18 mg यकृत में होता है। मनुष्य के रक्त में लगभग 100 mg/ 100 ml कॉपर होता है।
प्रश्न 8. नाइट्रोजन स्थिरीकरण या यौगिकीकरण क्यों आवश्यक है?
उत्तर - वायुमण्डलीय नाइट्रोजन का नाइट्रोजन के यौगिकों में रूपान्तरण को नाइट्रोजन स्थिरीकरण या यौगिकीकरण कहते हैं। वायुमण्डलीय नाइट्रोजन अपेक्षाकृत अक्रिय होता है। वायुमण्डलीय N2 को सक्रिय नाइट्रोजन बनाना होता है। सक्रिय नाइट्रोजन अन्य पदार्थों से क्रिया करके यौगिक बनाता है। नाइट्रोजन को सक्रिय बनाने के लिए ऊर्जा संवर्धित वातावरण आवश्यक है।
उच्च ताप या विद्युत् विसर्जन आवश्यक सक्रियण ऊर्जा प्रदान कर सकते हैं, जिससे N, क्रियाशील होकर यौगिक बनाता है। इसके अतिरिक्त अक्रिय जीवाणु तथा कुछ नील हरित-शैवाल अनुकूल परिस्थितियों में नाइट्रोजन का यौगिकीकरण कर सकते हैं। इस प्रक्रिया में धात्विक एन्जाइम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। नाइट्रोजन उर्वरक कृषि के लिए अत्यन्त आवश्यक है, किन्तु नाइट्रोजन उर्वरकों का उत्पादन अत्यधिक महँगा है। नाइट्रोजन तथापि नील-हरित शैवाल तथा कुछ बैक्टीरिया सामान्य ताप एवं दाब पर N, के यौगिकों में परिवर्तित करने के लिए सक्षम होते हैं। वनस्पतियों तथा जीवों को नाइट्रोजन के यौगिकों की आवश्यकता है, जिसकी पूर्ति नाइट्रोजन चक्र द्वारा होती है।
प्रश्न 9. नाइट्रोजन का स्थिरीकरण नाइट्रोजिनेस द्वारा कैसे होता है ?
नाइट्रोजन स्थिरीकरण पर एक टिप्पणी लिखिए।
उत्तर - नील-हरित शैवाल, वायुमण्डलीय N, का अति सुगमता से स्थिरीकरण करती है। इन शैवालों में नाइट्रोजन फिक्सिंग एन्जाइम होता है, जिसे नाइट्रोजीनेज कहते हैं। नाइट्रोजीनेज एन्जाइम में दो प्रोटीन होते हैं। यह एन्जाइम N, को में परिवर्तित कर देता है। इससे H2 भी उत्पन्न होती है।
N2 +8H+ + 8e- → 2NH3 + H2
स्थिर नाइट्रोजन यौगिकों के उत्पादन के लिए क्रमबद्ध रेखाचित्र |
नाइट्रोजीनेज एन्जाइम में दो घटक पाये जाते हैं, पहला Mo-Fe युक्त प्रोटीन तथा दूसरा Fe युक्त प्रोटीन में दो Mo तथा Fe एवं सल्फाइड, प्रत्येक के लगभग 30 परमाणु होते हैं। इसका मोलर द्रव्यमान लगभग 22,000 होता है। Fe युक्त प्रोटीन में दो संगत उप-इकाइयाँ होती हैं, जिनमें से प्रत्येक में Fe4S4 कलस्टर पाये जाते हैं। नाइट्रोजीनेज के लघु प्रोटीन का जिसमें पदार्थ एवं उर्जा के अणुभार 60-70 mg/mol होता है, जबकि दीर्घ प्रोटीन का अणुभार 200-250 mg/mol होता है। लघु प्रोटीन प्रबल अपचायक का कार्य करती है।
नाइट्रोजीनेज में आयरन, Mo तथा सल्फर प्रमुख तत्व हैं। सल्फर परमाणु अम्ल द्वारा आसानी से हटाये जा सकते हैं। यद्यपि नाइट्रोजीनेज की क्रिया-विधि आज भी अनिश्चित है, परन्तु इसे निम्न प्रकार से समझाया जा सकता है। अपचयन के लिए आवश्यक इलेक्ट्रॉन फेरीडॉक्सिन या प्लेवोडॉक्सिन से नाइट्रोजीनेज स्थानान्तरित होते हैं। इन इलेक्ट्रॉनों का स्रोत पायरुवेट का ऑक्सीकरण है। पहले इलेक्ट्रॉन Fe प्रोटीन को स्थानान्तरित होते हैं। अपचयित Fe प्रोटीन Mo-Fe प्रोटीन के साथ एक संकुल बनाते हैं। समग्र उत्प्रेरकीय चक्र को चित्र द्वारा प्रदर्शित किया गया है।
प्रश्न 10. जैव-रासायनिक क्रियाओं में आवश्यक तत्वों के नाम लिखिये।
जैव रासायनिक क्रियाओं में आवश्यक तत्वों के नाम लिखिए।
उत्तर - जैव-रासायनिक क्रियाओं में आवश्यक तत्वों के नाम निम्नानुसार हैं-1. हाइड्रोजन, 2.ऑक्सीजन, 3. नाइट्रोजन, 4. कार्बन, 5. कैल्सियम, 6. सोडियम, 7. पोटैशियम, 8. मैग्नीशियम, 9. सल्फर, 10. फॉस्फोरस, 11. क्लोरीन, 12. सिलिकॉन, 13. मॉलिब्डेनम, 14. मैंगनीज, 15. फ्लोरीन, 16. कोबाल्ट, 17. जिंक, 18. कॉपर, 19. आयोडीन, 20. निकिल, 21. वैनेडियम, 22. सिलीनियम, 23. टिन, 24. टंगस्टन इत्यादि।
प्रश्न 11. आवश्यक तत्व, लाभदायक तथा विषैला तत्व को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर -
आवश्यक तत्व - वे तत्व, जिनकी उपस्थिति जीवन चक्र को पूरा करने के लिए अपरिहार्य है, आवश्यक तत्व कहलाते हैं। इनकी कमी या अनुपस्थिति से जीवों में रोग उत्पन्न होने लगते हैं, जैसे-K,Ca,Mg, Fe इत्यादि।
लाभदायक तत्व - ऐसे तत्व, जिनकी जीवों में उपस्थिति से वृद्धि तथा प्रजनन में सहायता करते हैं, परन्तु उनकी कड़ी कहते हैं, जैसे-As, Sn, Bi, Ti इत्यादि।
विषैला तत्व - जैव प्रक्रियाओं में कुछ तत्व ऐसे भी होते हैं, जिन्हें हम आवश्यक तथा लाभदायक तत्वों के बीच की अनुपस्थिति से जीवों में कोई बुरा प्रभाव उत्पन्न नहीं होता है, जैसे-AI, Ba, Li, Ag. इत्यादि।
प्रश्न 12. सोडियम पोटैशियम पम्प पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये?
सोडियम पम्प या Na+/K+ पम्प पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर- सोडियम एवं पोटैशियम पौधो के साथ-साथ जन्तुओं में अकार्बनिक अम्लों के लवणों के रूप में प्रोटीनों तथा कार्बनिक अम्लों के लवणों के रूप में पाया जाता है। सोडियम प्रमुख बाह्य कोशिकीय धनायन तथा पोटैशियम प्रमुख अन्तः कोशिकीय धनायन है। सोडियम तथा पोटैशियम के जैविकीय योगदान या जैव रसायन निम्नानुसार होता हैं
- जलयोजन एवं परासरण दाब नियंत्रण- सोडियम तथा पोटैशियम आयनों का शरीर में मुख्य कार्य विभिन्न शरीर द्रवों के सामान्य परासरण दाब को बनाये रखना होता हैं, जिसके माध्यम से द्रवों की अधिक कमी को रोका जाता हैं।
- अम्ल-क्षार साम्य नियंत्रण- बाह्य कोशिकीय द्रव में सोडियम आयन तथा अन्तःकोशिकीय द्रव में पोटैशियम आयन वहाँ उपस्थित दुर्बल अम्लों के साथ लवण बना लेते हैं। ये लवण बफर का कार्य करते है, तथा शरीर में द्रवों का pH नियंत्रित रहता हैं।
- CO2 का संवहन- Na+, K+ तथा C+ तथा आयन गैसीय CO2 के संवहन में मुख्य भूमिका निभाते हैं।
- रक्त श्यानता नियंत्रण- Na+ एवं K+ आयन रक्त प्लाज्मा में ग्लोबुलिन को बनाये रखते हैं तथा प्लाज्मा प्रोटीन में जल की मात्रा को नियंत्रित करते हैं।
- पाचक द्रवों का स्त्राव- रक्त के NaCl के कारण गैस्ट्रिक HCI रक्त के Na+ एवं K+ लवणों से क्षारीय पाचक रसों का स्त्राव होता है।
- प्रोटीन एवं ग्लाइकोजन के संग्रहण में- Na',एवं K लीवर एवं मासपेशियों मे ग्लाइकोजन के संग्रहण के लिए अनुकूल स्थिति निर्मित करता हैं।
- सोडियम पोटैशियम पम्प -प्रत्येक कोशिका की बाह्य झिल्ली की मोटाई लगभग 70A (angstrom) होती है। यह झिल्ली प्रोटीन से बनी होती है तथा कोशिका दोहरी झिल्ली से घिरी होती है। लिपिड दोनों झिल्लियों के मध्य में पाया जाता है। धनायन बिना किसी सुरक्षित आवरण के लिपिड से नहीं गुजर सकते हैं। अतः धनायन कोशिका झिल्ली को लिपिड विलेय सतह प्रदान करते हैं।
सोडियम पोटैशियम पम्प (sodium potassium pump) |
0-15M तथा 0.01M क्रमश : K+ तथा Na+ आयनों की सान्द्रता अधिकांश प्राणी कोशिकाओं के अन्दर होती है। कोशिकाओं के बाहर द्रव्य Na+ में K+ तथा आयनों की सान्द्रता क्रमश: 0-15M/0.004M तथा होती है। इस प्रकार Na+ तथा K+ आयनों के बड़े सान्द्रण प्रवणता के लिये सोडियम पम्प या Na+/K+ पम्प की आवश्यकता होता है। इन आयनों के स्थानान्तरण के लिये आवश्यक ऊर्जा ATP के जल अपघटन द्वारा प्राप्त होती है।
सोडियम पम्प द्वारा Na+ आयनों का कोशिका के बाहर सक्रिय बींगमन तथा K*आयनों का सक्रिय कोशिका के अन्दर प्रवेश किया जाता है। एक ATP अणु के जल-अपघटन से प्राप्त ऊर्जा तीन Na+ आयनों को कोशिका के बाहर करने के लिए, दो K+ आयनों तथा एक H+ आयन को कोशिका के अंदर रखने के लिए पर्याप्त होती है।
कोशिका के अन्दर तथा बाहर Na+ एवं K+ के भिन्न अनुपातों से कोशिका झिल्ली के दोनों ओर विभव उत्पन्न होता है, जो कि तंत्रिका तथा माँसपेशियों के क्रियाओं के लिये आवश्यक है। कोशिका में Na+ आयन ग्लूकोज अणु के साथ प्रवेशित होता है, जिससे उच्च सान्द्रण की स्थिति निर्मित हो जाती है इसीलिये Na+ को कोशिका के बाहर करना आवश्यक होता है। कोशिका के अन्दर ग्लूकोज अणुओं के चयापचय के लिये Kआयन की आवश्यकता होती है। जब कोशिका के अन्दर वाले भाग में Na* तथा बाहर वाले भाग में K आयनों की सान्द्रता अधिक हो जाती है तो एक संरूपण परिवर्तन के द्वारा Na+/K+ पम्प से Na+ आयन कोशिका के बाहर तथा K+ कोशिका के अन्दर हो जाते हैं। यह पम्प उत्क्रमणीय होता है। कोशिका झिल्ली की सोडियम / पोटैशियम ऐडिनोट्राइफॉस्फेटेज एन्जाइम Na+/K+ पम्प की तरह कार्य करते हैं।
आज के इस लेख में हमने जैव-अकार्बनिक रसायन (Bio-Inorganic Chemistry) के सवाल और उनके जवाब के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में जैव-अकार्बनिक रसायन (Bio-Inorganic Chemistry) के सवाल पूछे जाते हैं।
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