मसाले के उपयोग और उनके महत्व (Name and importance of spice plants)
आज के इस आर्टिकल में मसाले देने वाले पौधों के उपयोग और उनके महत्व के बारे में साथ ही जड़ों एवं भूमिगत भागों से प्राप्त मसाले की विस्तार पूर्वक जानकारी दिया गया है. मसालों का व्यापार आज सभी देशों में किया जाता है मसाले का उपयोग हम घर में, होटल में, और जितने भी लोग खाना बनाते है वे सभी खाने में मसाले का उपयोग करते है. मसाला के कारण हमारा खाना टेस्टी और मजेदार बनता है मसाले का अलग ही महत्व है.
मसाले एक बिज, फल, जड़, और छाल और अन्य भाग से प्राप्त किया जाता है मसाले मुख्य रूप से हमारे भोजन को स्वादिष्ट बनाने या रंगीन करने के लिए उपयोग में लिया जाता हैं. मसालों को जड़ी और बूटी से अलग रखा गया है मसाले पौधों के पत्ते, फूल या तने हैं भी प्राप्त होता है. मसाला का उपयोग मुख्य रूप से खाने में किया जाता है.
importance of spice plants
मसाले मुख्यतः : एरोमैटिक (Aromatic) वानस्पतिक पदार्थ होते हैं, जिनमें विशेष प्रकार के वाष्पशील सुगन्धि तेल (Volatile essential oil), एल्केलॉइड्स (Alkaloids एवं जल में विलेय रंग या वर्णन (Pigments) पाए जाते है जो कि भोजन को एक विशिष्ट सुगन्ध (Flavour) प्रदान करते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें अवाष्पशील तेल (No Volatile Oil) एवं जल में विलेय रासायनिक पदार्थ पाये जाते हैं, जिसके कारण भोजन को विशिष्ट स्वाद मिलता है
मसाला उत्पादन की बात करे तो हमारा भारत देश 75% योगदान देता है भारत से ही अलग अलग देशो में मसालों को भेजा जाता है. भारतीय मसाला अनुसंधान संस्थान, कोझीकोड, केरल में हैं यह विशेष रूप से दस मसाला फसलों का अनुसंधान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है इसमें कुछ मसालों के नाम भी हैं जैसे काली मिर्ची, दालचीनी, इलाइची, हल्दी, और भी बहुत सारे है.
मसालों का महत्व (Significance of Spices)
- मसाले भोजन को स्वादिष्ट बनाते हैं।
- ये भोजन को विशेष सुगंध (Flavour) प्रदान करते हैं।
- ये भोजन या भोज्य पदार्थ की अरुचिकर गन्ध (un pleasant odour) को दूर करके भोजन को सुरुचिकर हैं।
- मसालों में उपस्थित रासायनिक पदार्थ जठर ग्रंथियों (Gastric glands) को उद्दीपित करके जठर रस के स्राव बढ़ाते हैं । इस गुण के कारण मसालों को खाद्य अनुबन्ध (Food adjunct) कहते हैं।
- मसालों का उपयोग औषधि निर्माण में भी किया जाता है।
- मसालों में प्रति ऑक्सीकारक गुण (Anti-oxi dant Property) भी होती है, जिसके कारण इसका उपयोग आचार व चटनी को परिरक्षित (Preserve) रखने के लिये किया जाता है।
जड़ों एवं भूमिगत भागों से प्राप्त मसाले
1. हींग (Asafoetida)
स्थानीय नाम (Venacular name) - हींग
वानस्पतिक नाम (Botanical name)- फेरूला ऐसाफीटिडा (Ferula asfoetida)
कुल का नाम (Name of family) - अम्बेलीफेरी (Umbelliferae)
हींग, फेरूला ऐसाफीटिडा नामक पौधे की जड़ों से निकलने वाला रेजिन (Resin) होता है। यह अफगानिस्तान का मूल निवासी पौधा है तथा इसे भारत सहित अन्य देशों में वहीं से आयात किया जाता है। हमारे देश में फेरूला (Ferula) की कुछ प्रजातियाँ पंजाब एवं कश्मीर के कुछ क्षेत्रों में उगती हैं परन्तु व्यावसायिक एवं आर्थिक दृष्टि से ये अधिक लाभकारी नहीं है।
फेरूला एसाफीटिडा का पौधा बहुवर्षीय शाक के रूप में होता है तथा इसकी जड़ें गाजर के समान मोटी तथा मांसल होती है, जड़ों में गाढ़ा भूरा अथवा लाल रंग का रेजिन (Resin) पाया जाता है, जिसे जड़ों में चीरा लगा प्राप्त किया जाता है। यही रेजिन ही हींग के रूप में उपयोग किया जाता है। इस रेजिन में कुछ सल्फर यौगिक (Suphur Compounds) पाये जाते हैं, जिसके कारण रेजिन की एक विशेष तेज गंध एवं स्वाद होता है।
उपयोग (Uses) –
- इसे भोजन एवं अचार को सुस्वाद एवं सुगन्धित बनाने के लिए उपयोग किया जाता है।
- यह वातहर (Carminative), पाचक (Digestive), शामक (Sedative), मूत्रवर्द्धक (Diuretic) एवं ऐंठन रोधी (Anti spasmadic) पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इसका उपयोग उदरशूल (Colic), डिस्पेप्सिया (Dyspepsia), हिस्टीरिया (Hysteria), हैजा (Cholera) एवं अपच के इलाज में भी किया जाता है।
- यह आयुर्वेदिक औषधियों जैसे हींग बटी, हिंगाष्टक चूर्ण, योगराज गुग्गल आदि का मुख्य घटक है।
(2) अदरक (Ginger) -
स्थानीय नाम (Venacular name) - अदरक।
वानस्पतिक नाम (Botanical name) - जिन्जिबर ऑफिसिनेल (Zingiber officinale)
कुल का नाम (Name of family) - जिन्जीबरेसी (Zingiberaceae)
अदरक, जिन्जिबर ऑफिसिनेल (Zingiber officinale) नामक बहुवर्षीय शाकीय पौधे का भूमिगत रूपान्तरित तना (Underground modified stem) होता है, जिसे प्रकन्द (Rhizome) कहते हैं। इसका मूल निवास दक्षिण-पूर्वी एशिया (South-eastern Asia) है। प्राचीनकाल में यह एशिया के दक्षिण पूर्वी उष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में जंगली घास के रूप में उगता था, परन्तु उपयोगी होने के कारण आज इसकी खेती की जाने लगी। भारतवर्ष एवं चीन में प्राचीनकाल से ही इसका उपयोग किया जा रहा है।
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आज भारतवर्ष, जमाइका, जापान, दक्षिण चीन, ताइवान एवं ऑस्ट्रेलिया अदरक उत्पादक के प्रमुख केन्द्र है। अकेले भारतवर्ष में सम्पूर्ण विश्व के 50% अदरक का उत्पादन होता है तथा आज भारत अदरक का सबसे बड़ा निर्यातक देश है। भारतवर्ष में अदरक की सबसे अधिक उपज 70%देश है। भारतवर्ष में अदरक की सबसे अधिक उपज 70% केरल में होती है। इसके अतिरिक्त पश्चिम बंगाल, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ एवं कर्नाटक में अदरक की खेती होती है।
रासायनिक एवं औषधीय महत्व (Chemical & Medicinal Properties ) - अदरक में 1 से 3% वाष्पशील तेल (Volatile oil) होता है, जिसका मुख्य घटक जिन्जिबेरीन (Zingiberene-C15H24) होता है। अदरक का विशेष तीखा स्वाद जिन्जिबेरॉन (Zingiberone-Cin H403) जिन्जिबेरॉन की उपस्थिति के कारण होता है, यह अपच, पेट दर्द तथा पेट से संबंधित बीमारियों के इलाज में अपनी औषधीय महत्व रखता है।
उपयोग (Uses ) –
- इसके प्रकन्द (Rhizome) का उपयोग मसाले के रूप में तथा अचार बनाने के लिए किया जाता है।
- इसके तेल का उपयोग पेय पदार्थों या विशिष्ट खाद्य पदार्थों को सुगन्धित करने हेतु किया जाता है।
- घी, चीनी के साथ इसके पीसे भाग को गर्म करके खाने में सर्दी में राहत मिलती है।
- अदरक का उपयोग सूप (Soup) तथा सब्जी में खुशबू एवं तीखापन लाने के किया जाता है।
- इसका सेवन रक्त वाहिकाओं को चौड़ा करने का काम करता है, अतः शरीर को गर्मी का अनुभव होता है। यह उत्सवेदन की प्रक्रिया को बढ़ाता है। फलस्वरूप शरीर के तापमान को कम करने में सहायता करता है।
- इसके सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है। इसके प्रकन्द के शल्क को हटाकर तथा सुखाकर सोंठ तैयार किया जाता है। अदकर या सोंठ का उपयोग आमाशय की गड़बड़ियों, मंदाग्नि, उल्टी आदि की स्थितियों में उपचार हेतु किया जाता है।
- इसके प्रकन्द को पतले-पतले टुकड़ों में काटकर में शक्कर के साथ उबालने के पश्चात् संरक्षित कर सेवन करते हैं।
- अदरक वायुसारी एवं कफोत्सारक होता है, इसका काढ़ा बनाकर या चाय के साथ सेवन किया जाता है।
(3) हल्दी (Turmeric) –
स्थानीय नाम (Venacular name) – हल्दी
वानस्पतिक नाम (Botanical name) - कुरकुमा डोमेस्टिका (Curcuma domestica), कुरकुमा लोंगा (Curcuma longa)
कुल का नाम (Name of family) - जिन्जिबरेसी (Zingiberaceae)
हल्दी एक बहुवर्षीय शाकीय पौधा है जिसके प्रकन्द का उपयोग मसाले के रूप में किया जाता है। इसकी उत्पत्ति दक्षिण-पूर्वी एशिया में हुई थी। प्राचीनकाल से ही हल्दी की खेती की जा रही है। 400-500AD के संस्कृत ग्रंथों में हल्दी का उल्लेख है। इसकी खेती गर्म एवं आर्द्र जलवायु वाले भागों में की जाती है। भारतवर्ष के अतिरिक्त हल्दी की खेती उष्णकटिबन्धीय देशों जैसे- चीन, श्रीलंका, ताइवान, इण्डोनेशिया आदि में की जाती है।
हल्दी की खेती के लिये नम व उष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है। जलोढ़ अथवा उपजाऊ दोमट मिट्टी इसके लिये सबसे उपयुक्त होती है। इसके लिये अत्यधिक वर्षा अथवा भली-भाँति सिंचित भूमि आवश्यक होती है। पौधों को उगाने के लिये हल्दी के प्रकन्द के छोटे से कलिकायुक्त भाग को भूमि के अन्दर 3" नीचे गाड़ दिया जाता है। हमारे देश में हल्दी की बोआई अप्रैल से जुलाई के मध्य की जाती है और दिसम्बर-जनवरी तक इसकी फसल तैयार हो जाती है। पत्तियों का पीला होकर सुख जाना फसल तैयार होने की सूचक होती है।
इसी समय पौधों को खोदकर प्रकन्द अलग कर दिया जाता है। इसके बाद प्रकन्द की प्रोसेसिंग (Processing) की जाती है। इसके लिये सर्वप्रथम प्रकन्द को पानी में उबाला जाता है, जिससे इसमें विशेष प्रकार का स्वाद आ जाता है। इस प्रकार उबले हुए प्रकन्दों को 10-15 दिन धूप में अच्छी तरह सुखाकर इसकी पॉलिश की जाती है।
रासायनिक एवं औषधीय महत्व (Chemical & Medicinal Value) - हल्दी के प्रकन्द से एरोमैटिक गन्ध आती है, जिसमें तीव्र कड़वा स्वाद होता है। प्रकन्द में वाष्पशील तेल पाया जाता है, जिसमें तीव्र कीटोन-टर्मीरॉन (Ketone-turmeron) उपस्थित होता है। हल्दी का पीला रंग इसमें उपस्थित कीटोनिक रंजक (Ketonic dye), कुरकुमिन (Curcumin) नामक यौगिक की उपस्थिति के कारण होता है। यह पदार्थ एक कोलेगोजेन (Cholagogene) की भाँति कार्य करता है, जिसके कारण मूत्राशय (Galbladder) में संकुचन होता है। इसके अतिरिक्त हल्दी में प्रोटीन (6.3%), वसा (5.15%), खनिज (3.5%), कार्बोहाइड्रेट्स (69.4% ) आदि पाये जाते हैं।
उपयोग (Uses)-
- हल्दी एक महत्वपूर्ण खाद्य उपबन्ध (food adjunct) इसका उपयोग खाद्य पदार्थों को रंग देने तथा उसे स्वादिष्ट बनाने में किया जाता है।
- यह त्वचा को सुन्दरता प्रदान करता है।
- इसमें प्रतिजैविक गुण होते हैं, अतः त्वचा एवं चेहरे पर इसका लेप लगाया जाता है।
- हल्दी में उत्तेजक (Stimulant), वातहर (Carmi native) एवं कफोत्सारक (Expectorent) गुण होते हैं।
निष्कर्ष - यहाँ हमने जाना मसाले के उपयोग और उनके महत्व साथ ही हमने जाना की जड़ों एवं भूमिगत भागों से प्राप्त मसाले और रासायनिक एवं औषधीय महत्व को जाना और मसाले के उपयोग और उनके महत्व आपको अच्छा लगा हो तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे रोजाना इसी तरह के पोस्ट पाने के लिए हमारे वेबसाइट में विजिट करते रहिये.