बीज प्रसुप्ति क्या है? प्रकार, प्रभावित कारक, महत्व (Seed dormancy in Hindi)

अगर आपने बीज प्रसुप्ति को Search किया है की बीज प्रसुप्ति क्या है और बीज प्रसुप्ति को प्रभावित करने वाले कारक क्या हैं तो यह पोस्ट खासतौर पर आपके लिए ही  बनाया गया है. बीज सुसुप्तावस्था, सुसुप्तावस्था के प्रकारSeed dormancy in Hindi, Definitions of Seed Dormancy

अंकुरण अस्थायी अंतराल के लिए प्रतिबंधित करता हो तो उसे बीज प्रसुप्ति कहा जाता है । Bij Prasupti  को प्रभावित करने वाले कारक तथा बीज प्रसुप्ति को समाप्त करने के उपाय/निवारण की पूरी जानकारी निचे दिए जा रहे हैं. जो आपके लिए बहुत ही Usefull होगा. 

Seed dormancy in hindi


बीज प्रसुप्ति क्या है? बीज प्रसुप्ति को  प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक, महत्व (Seed dormancy in Hindi) 

  • बीज प्रसुप्ति क्या है?
  • बीज प्रसुप्ति क्या होता है? 
  • बीज प्रसुप्ति को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक?
  • बीज प्रसुप्ति को रोकने के उपाय?
  • बीज प्रसुप्ति का महत्त्व?

प्रसुप्ति क्या है ?

वह प्रक्रिया जिसके तहत किसी जीव या उसके अंग की जीवंतता अनुकूल परिस्थितियों की उपस्थिति के पश्चात् भी कुछ आंतरिक परिस्थितिक कारकों के कारण स्वयं को अस्थायी समयावधि के लिए प्रकट नहीं कर पाती हो तो उसे प्रसुप्ति कहते हैं।

बीज प्रसुप्ति क्या है? (What is Seed dormancy in Hindi) –

"यदि यह बीजों से संबंधित होता है तथा उसके अंकुरण अस्थायी अंतराल के लिए प्रतिबंधित करता हो तो उसे बीज प्रसुप्ति कहा जाता है।"

अर्थात् परिपक्व बीज के साहचर्य में वृद्धि, विकास एवं अंकुरण को बढ़ाने वाले सभी कारकों की उपस्थिति के बाद भी यदि अंकुरण की प्रक्रिया कुछ समयान्तराल तक नहीं हो ला पाती हैं। तो उस समयान्तराल को प्रसुप्ति काल (Dor; mant period) तथा प्रक्रिया बीज प्रसुप्ति कहलाती है।

बीज प्रसुप्ति को प्रभावित करने वाले कारण एवं कारक (Causes or factors affecting seed dor mancy) 

एक से अधिक कारकों के समेकित प्रभाव से उत्पन्न होती है, इसके प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं- 

1. बीजकवच का प्रतिरोधी तथा अपारगम्य होना (Resistant and Impermeabily of Seed Coat) 

सोलेनेसी, कॉन्वाल्युलेसी, मालवेसी, लेग्यूमिनोसी, कुकुरबिटेसी आदि कुलों के पौधों के बीज का बीजावरण - Seed Coat) काफी कड़ा होता है तथा जल के प्रति ये अपारगम्य होते हैं। ऐसे बीजों में अंकुरण तब तक नहीं होता  जब तक इनका बीजावरण मिट्टी में उपस्थित सूक्ष्मजीवी  अपघटकों द्वारा अपघटित न कर दिया जाए। 

2. ऑक्सीजन के प्रति अपारगम्यता (Imperme ability to Oxygen) — 

तरुण बीज ऑक्सीजन के प्रति अपारगम्य होते हैं। कुछ घासों तथा एस्ट्रेसी कुल के सदस्यों जैसे जैन्थियम (Xanthium) में बीज प्रसुप्ति का प्रमुख कारण ऑक्सीजन अपारगम्यता ही होती है। बीतते समय के साथ बीजावरण ऑक्सीजन के प्रति पारगम्य होता चला जाता है। 

3. भ्रूण की अपरिपक्वता (Immaturity of Em bryo) — 

अनेक पौधों जैसे ऑर्किड्स, जिन्गो, ऐनीमोन. फ्रेक्सीनस एवं फिकेरया आदि के बीजों में बीज प्रसुप्ति का मुख्य कारण उनके अंदर अपरिपक्व भ्रूण की उपस्थिति होती है। अतः ऐसे बीज एक निश्चित अवधि की विश्रामावस्था में जाने के पश्चात् ही अंकुरित होते हैं। इस अवस्था में इसके भ्रूण का विकास पूर्ण हो जाता है। 

4. यांत्रिक रूप से प्रतिरोधी बीज कवच (Mechani ५० के cally resistant seed coats ) – 

कुछ जंगली पौधों में दृढ़  बीज कवच, एक भ्रूण के विस्तार के लिए भौतिक अवरोध के रूप में कार्य करती है। जैसे— ऐमेरेन्थस (Amaranthus ) में बीज कवच पानी एवं O, के लिए तो पारगम्य होती है, परंतु वह भ्रूण के विकास अथवा विस्तार को रोक देती है। ऐसे बीजों की प्रसुप्ति तभी समाप्त होती है, जब इन्हें कुछ समय के लिए प्रकाश में रखकर शुष्क करने के पश्चात् पानी दिया जाए। 

5. चिलिंग अथवा कम तापक्रम उपचारण क आवश्यकता (Chilling or low temperature require ment) –

 सेब, गुलाब आदि के बीजों को बसंत ऋतु में हार्वेस्ट करने पर वे अंकुरित नहीं हो पाते हैं, क्योंकि उनके अंकुरण के लिए कम ताप उपचार या चिलिंग आवश्यक होता है। ऐसे बीज सम्पूर्ण ठण्ड ऋतु तक प्रसुप्ति अवस्था में रहते हैं, बाद में अंकुरित होते हैं। 

6. प्रकाश संवेदी बीज (Light sensitive seeds) -

 कुछ प्रकार के बीजों में अंकुरण प्रकाश के द्वारा प्रभावित होता है। ऐसे बीजों को फोटोब्लास्टिक (Photoblasticकहते हैं। कुछ बीजों में प्रसुप्ति अधिक प्रकाश मिलने पर  समाप्त हो जाती है। जैसे— शलाद (Lettuce) में लाल प्रकाश (Red light) अंकुरण को उत्प्रेरित करता है। बिगोनिया ( Bigonia) के बीजों को अंकुरित होने के लिए प्रकाश चाहिए। 

7. अंकुरण निरोधक पदार्थों की उपस्थिति - 

कुछ बीजों के बीजावरण, भ्रूणपोष, भ्रूण या फल के गुदा (Pulp) में वृद्धि निरोधक पदार्थ (Growth inhibitors) उपस्थिति होते हैं। इनकी उपस्थिति बीजों को प्रसुप्तवस्था में ही रखती है। जब कभी ये बीजों से बाहर निकल जाते हैं तो ही अंकुरण की क्रिया होती है।  

8. ऑफ्टर राइपेनिंग (After ripening) — 

कुछ पौधों के बीजों को अंकुरण से पहले कुछ समय के लिए शुष्क तापमान पर रखना आवश्यक होता है। शुष्क अवस्था के पश्चात् ही भ्रूण (Embryo) के अंकुरण की प्रक्रिया ऑफ्टर राइपेनिंग (After ripening) कहलाती है। यह बीज में जिबरेलिन (Gibberellin) की अल्प उपस्थिति के कारण होती है। 

बीज प्रसुप्ति को समाप्त करने के उपाय (Methods of removing Seed dormancy) 

प्रसुप्तावस्था के विभिन्न स्थितियों को समाप्त करने के निम्नलिखित उपायों में से आवश्यकतानुसार किसी भी तरीके   को अपनाया जा सकता है -

1. खरोचन विधि (Scarification) - 

इस विधि के अंतर्गत कठोर बीज कवचों को खरोचकर मुलायम बनाया जा सकता है। इससे आसानी से अंकुरण हो सकता है। यह कार्य यांत्रिक विधियों द्वारा किया जाता है। इसके अलावा, गंधक का अम्ल के उपचार से बीज कवच पतले पड़ जाते हैं उनमें अंकुरण होने लगता है। 

उदाहरण - कद्दू (Gourd), करेला (Bittergourd), धनिया (Coriander), आम (Mango) आदि । 

2. कम ताप उपचार द्वारा (Low temperature treat ) - 

कुछ बीजों को 5-10 डिग्री सेल्सियस तापमान ment) पर रखने से ये अंकुरित हो जाते हैं । इस क्रिया को स्ट्रैटिफिकेशन (Stratification) भी कहते हैं।  

उदाहरण – नाशपाती (Pear), सेब (Apple), चेरी (Cherry) आदि । 

3. तापमान एकान्तरण (Alternating tempera ture) - 

कुछ बीजों के भ्रूणों में प्रसुप्ति पायी जाती है, जिसे उनको उचित तापमान 30-40 डिग्री से. तथा निम्न तापमान 5-10 डिग्री से. पर रखने से दूर की जा सकती है। 

4. दाब उपचार ( Pressure temperature ) - 

स्वीट क्लीवर एवं अल्फाल्फा के प्रसुप्ति बीजों को अन्य वायुमण्डलीय दाब पर उपचारित करके उन्हें अंकुरित किया जा सकता है। 

5. प्रकाश एवं ताप (Light and temperature) - 

लाल प्रकाश अंकुरण की प्रक्रिया को तेज करती है, लेकिन उच्च ताप लाल प्रकाश की आवश्यकता को कम करती है। 

6. रासायनिक उपचार या हॉर्मोन उपचार (Chemi cals or Hormone treatment) – 

वृद्धि नियामक पदार्थों  को उपचार के कारण उन बीजों में अंकुरण कराया जा सकता है, जो कि शीतन (Chilling) ऑफ्टर राइपेनिंग (After ripening) या प्रकाश- उपचार चाहते हैं । 

अनेक रासायनिक पदार्थ जैसे- पोटैशियम नाइट्रेट, थायोयूरिया, जिबरेलिन्स, एथिलीन आदि के उपचार से बीजों में प्रसुप्ति नष्ट हो जाती है और ये बीज अंकुरण कर सकते हैं। 

7. पादप ऊतक संवर्धन अथवा भ्रूण संवर्धन द्वारा (By plant tissue culture or embryo culture) – 

भ्रूण (Embryo) की अपरिपक्वता के कारण अगर प्रसुप्तावस्था होती हो तो उसे समाप्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन भ्रूण संवर्धन (Embryo culture) या पादप ऊतक संवर्धन तकनीक का प्रयोग कर नये पौधिका (Plantlet) तथा उससे नये पौधे को परिवर्धित किया जा सकता है। 

प्रसुप्ति अथवा प्रसुप्तावस्था का महत्व (Signifi cance of Dormancy ) 

(i) प्रसुप्ति के कारण बीजों तथा पौधों के प्रबंधकों का प्रकीर्णन आसान हो जाता है जिसके कारण इनको संग्रहण तथा वितरण के लिए समुचित समय मिल जाता है। 

(ii) प्रसुप्तावस्था के कारण बीज आसानी से प्रतिकूल समय को सह पाने की क्षमता पाए जाते हैं। 

(iii) उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले पौधों के बीजों में अपारगम्यता तथा प्रतिरोधकता के गुण के कारण बीज को अत्यधिक तापमान में रहने के बाद भी हानि नहीं हो पाती है। 

(iv) प्रसुप्ति के अध्ययन पश्चात् आवश्यकतानुसार बीजों के अंकुरण की प्रक्रिया में प्रयुक्त होने वाले समय को घटाया। या बढ़ाया जा सकता है। जैसे बीजों को 2, 4 डाइइन्डॉल ब्यूटाइरिक अम्ल नैप्थेलिन एसीटिक अम्ल 2,4,5 ट्राइक्लोरोफिनॉक्सो एसीटिक अम्ल से उपचारित करने से बीज प्रसुप्ति की अवधि आगे बढ़ जाती है। जबकि इथीलिन क्लोरो हाइड्रीन, थायोसायनेट, थायोयूरिया आदि से बीजों को उपचारित करके प्रसुप्ति को समाप्त किया जा सकता है। 

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