हेलो दोस्तों , इस आर्टिकल में हम स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जानने वाले हैं। आपने श्वसन तंत्र के बारे में सुना होगा और आप जानते भी होंगे क्यूंकि मनुष्य को जीवित रहने के लिए सबसे जरुरी सांस लेना है। और श्वसन तंत्र श्वास से सम्बन्धित है। अगर आप श्वसन तंत्र के बारे में नहीं भी जानते हैं तो आपको श्वसन तंत्र के बारे में जरुर जानना चाहिए। इस आर्टिकल में स्तनधारियों के श्वसन के बारे में जानकारी दी जा रही है।
स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration)
स्तनधारियों सहित समस्त स्थलीय तथा कुछ जलीय वर्टीब्रेट प्राणीयों में वायवीय श्वसन हेतु मुख्य श्वसनांग एक जोड़ी फेफड़े तथा श्वसन मार्ग बाह्य नासाछिद्र, नासिका वेश्म (Nasal number)अतनासाचिद्र (Internal nares) ग्रसनी (Pharynx), श्वासनलिका (Trachea) एवं श्वसन नलिकाएँ श्वसन तंत्र का निर्माण करते हैं। स्तनियों में एक जोड़ी कोमल गुलाबी, लचीली सक्षम तथा स्पंजी फेफड़े वक्षीय गुहा के मिडियास्टिनम के दोनों ओर एक-एक पाये जाते हैं।
श्वसन मार्ग (Respiratory path):- श्वसन मार्ग वातावरण O युक्त गैसों को फेफड़े तक ले जाने तथा फेफड़े से CO, युक्त गैसों को वापस शरीर से बाहर निकालने का कार्य करते हैं ये अंग निम्नानुसार होते हैं।
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(i) बाह्य नासाछिद्र (External nares) - मुख में ठीक एक जोड़ी बाह्य नासाछिद्र उपस्थित होते हैं जो आपस में नासा पट्ट (Nasal septam) द्वारा पृथक होते हैं।
(ii) नासिका वेश्म (Nasal chamber):- प्रत्येक बाह्य नाशाछिद्र एक नालिकाकार श्वसन मार्ग में खुलती है जो प्रछाण (Vestibule) व प्राण भाग (Olfactory) दो भागों में विभक्त होती है और ग्रसनी के पृष्ठ भाग नेसोफैरिंग्स (Nassopharynx) में खुलती है नासिका वेश्म या नासा मार्ग में कठोर रोम या वाइब्रिसी (Vibrisae) पाये जाते हैं जो कुल तथा अन्य कणों को रोकने का कार्य करते हैं जबकि नासा मार्ग के श्लेष्मीकला (Mucous membrane ) को आवरण मार्ग को नम बनाये रखने तथा बाह्य वायु के तापमान को शरीर के आंतरिक तापमान के बराबर लाने का कार्य करते हैं।
(iii) ग्रसनी (Phanynx):- यह श्वसन तंत्र तथा आ नाल का संयुक्त भाग होता है। जिसमें तीन भाग नेसोफेक्ि ओरोफैरिक्स एवं लैरिंगोफैरिक्स में होते हैं। इसके नेसोफैरिक्स भाग में आंतरिक नासाछिद्र खुलते हैं तथा निचला भाग लैरिंगोफैरिक्स में एक कष्ठ या लैरिक्स (Larynx) नामक संरचना पायी जाती है जो थायरॉइड (Thyroid), क्रिकॉयड (Cricoid) तथा एरिटिनॉयड (Arytenoid) नामक उपास्थियों से मिलकर बनी होती है। लैरिंक्स से वायु के एक निश्चित दाब के साथ बहाव से स्तनियों में विभिन्न प्रकार के आवाज उत्पन्न होते हैं तथा मनुष्य में भाषा का विकास हुआ है।
(iv) श्वासनलिका (Trachea):- यह लैरिक्स से जुड़ी हुई एक अर्द्धपारदर्शक उपस्थित नलिका है जो ग्रीवा से न्यलकर वृत्तीय गुहा में पहुंचती है और दो शाखाओं में विभक्त हो जाती है जिन्हें श्वासनलिकाएँ या ब्रोंकाई Bronchiकहते हैं। प्रत्येक ब्रोंकाई अब अपने ओर के फेफड़े में प्रवेश करती है और फेफड़े के भीतर छोटी-छोटी शाखाओं में विभक्त होकर श्वसनीय वृक्ष (Bronchial tree) का निर्माण करती है।
सरीसृपों में श्वासनाल की लम्बाई ग्रीवा या गर्दन की लम्बाई के अनुसार अलग-अलग होती है। पत्तियों में यह असामान्य रूप से अधिक लम्बी होती है तथा कॉर्टिलेजिनस ट्रेकियल रिंग्स (Cartilaginous tracheal rings) द्वारा घिरी रहती है एवं कैल्सीफाइड तथा आसीफाइड होती है। मुख्य श्वसनांग या फेफड़े (Main respiratory organs or lung) स्तनियों में फेफड़े अत्यंत विकसितस्पंजी तथा प्रत्यास्थ संरचना होती है जो बाहर से कई पालियों में स्पष्ट रूप से विभाजित होती है। मनुष्य तथा सभी स्तनियों के बाँये फेफड़े में समान्यतः 04 पाली (Lobes) होती है
जबकि दाँये फेफड़े में मनुष्यों में तीन पाली व खरगोश में 04 पाली होती हैबाँये फेफड़े का अगला पिण्ड छोटा होता है तथा इसे बाँया अग्र पिण्ड (Left anterior lobe) और पीछे वाला पिण्ड लगभग तीन गुना बड़ा होता है तथा उसे वाम पश्च पिण्ड (Left posterior lobe) कहते हैं। दाँये फेफड़े के पिण्ड (Lobes) क्रमशः आगे से पीछे की ओर इस प्रकार होते हैं
1. अग्र एजाइगस पिण्ड (Anterior Azygos Lobe):- यह सबसे छोटा होता है।
2. दायाँ अग्र पिण्ड (Right posterior Lobe):- यह पहले से कुछ बड़ा होता है।
3. दायाँ पश्च पिण्ड (Right Posterior Lobe):- यह सबसे बड़ा होता है।
4. पश्च एजाइगस (Posterior azygos):- यह अनं एजाइगस से कुछ बड़ा होता है। स्तनी का फेफड़ा काफी मात्रा में गैसों के आदान-प्रदान के लिए बना होता है
स्तनियों के फेफड़ा एक जटिल शाखित श्वसन वृत्त के समान होते हैं जो भीतरी ब्रोंकस के बारबार विभाजन से बनती है। विभाजित पतली शाखाएँ ब्रोंकियोल्स कहलाती है, ब्रॉकियोल्स विभाजित होकर एल्वियोलर डक्ट बनाती है। प्रत्येक एल्वियोलर डक्ट के अन्तिम सिरे फूलकर छोटे-छोटे वायुकोष या एल्विओलाई (Air sacs or Alveoli) बनाते हैं। एल्विओलाई के चारों ओर पतली रक्त केशिकाओं का जाल फैला रहता है।
फेफड़े के चारों ओर एक दोहरे पर्त वाली झिल्ली प्लूरा (Pluera) पायी जाती है। प्लूरा की एक पर्व फेफड़े से तथा दूसरी पतं वृत्तीय गुहा (Thorasic cavity) की भीतरी सतह से चिपकी रहती हैप्लूरा के दोनों स्तरों के मध्य एक तरल पदार्थ भरा रहता है जिससे फेफड़ों के फूलने व सिकुड़ने पर रगड़ नहीं होती है।
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सहायक श्वसनांग (Accessory Respiratory organ):- यद्यपि जलीय कशेरुकियों के मुख्य श्वसनांग गिल्स और स्थलीय कशेरुकियों के फेफड़े होते हैं फिर भी अन्य उपस्थित संरचनाएँ भी जल या वायु से सीधे गैसों का आदान-प्रदान करने में सहायक होते हैं। इन्हें सहायक श्वसनांग कहते हैं। ये निम्न प्रकार के होते हैं
1. पीतक कोष और ऐलेंटॉइस (yolk sac and allantois):– लगभग सभी भौणिक कशेरुकी भोजन के लिए पीतक के अवशोषण के अतिरिक्त पीतक कोष का उसके पीतक संवहन सहित गैसीय विनिमय के लिए उपयोग करते हैंये गर्भाशय की भित्ति के संपर्क में होने से श्वसन सांधन (Respiratory device) का कार्य करते हैं। ऐलेंटॉइस भी अस्थायी श्वसनांग बन जाती है।
2. त्वचा (Skin):- उभयचरों की गीली व नम त्वचा के द्वारा श्वसन क्रिया होती है। जो कि सामान्य बात है जबकि सैलामैंडर्स जैसे जन्तु श्वसन के लिए पूर्णतया त्वचा पर ही निर्भर रहते हैं-
3. एपिथीलियल अस्तर (Epithelial Ciring):- कुछ मछलियों और जलीय उभयचरों में अवस्कर, मलाशय आंत्र तथा मुख ग्रसनी का एपिथीलियल अस्तर अत्यंत संवहनीय होता है। जो श्वसन में सहायक होता है।
4. अवस्कर आशय (Cloacal bladders):- यह सहायक आशय विशेषकर अधिक समय तक जलमग्न रहने पर महत्वपूर्ण श्वसनांगों का कार्य करते हैं
5. तरण आशय (Swim bladders):- कुछ निम्न श्रेणी की मछलियों में फेफड़े के समान कार्य करने वाली अन्य महत्वपूर्ण संरचना तरण आशय होते हैं। इनके द्वारा भी श्वसन का कार्य किया जाता है।
इस आर्टिकल में हमने स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) के बारे में जाना। जो परीक्षा के अलावा सामान्य जीवन में बहुत जरुरी है।
आशा करता हूँ कि स्तनधारियों के श्वसन (mammalian respiration) का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इस आर्टिकल को शेयर जरुर करें।