सायनोबैक्टीरिया क्या है- लक्षण, संरचना एवं प्रजनन (What is Cyanobacteria - Characteristics, Structure and Reproduction)

सायनोबैक्टीरिया क्या है ? सायनोबैक्टीरिया की संरचना एवं प्रजनन विधियों का वर्णन कीजिए।

हेल्लो दोस्तों आज के इस लेख में हम सायनोबैक्टीरिया क्या है ? संरचना एवं प्रजनन विधियों का वर्णन आदि के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे। सायनोबैक्टीरिया क्या है ? से सम्बंधित सारे सवालों के जवाब नीचे दिया गया है.

इस पोस्ट से पहले जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) क्या हैं? के बारे में आर्टिकल लिखा गया है जिसे आप लिंक पर क्लिक करके फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं।

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Table of content: -

  • सायनोबैक्टीरिया क्या हैं (Cyanobacteria)
  • सायनोबैक्टीरिया के लक्षण (Characters of Cyanobacteria) 
  • सायनोबैक्टीरिया की संरचना (Cell structure of cyanobacteria) 
  • सायनोबैक्टीरिया में प्रजनन (Reproduction in cyanobacteria) 
  • सायनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Cyanobacteria)


सायनोबैक्टीरिया क्या हैं (Cyanobacteria)

सायनोबैक्टेरिया शैवाल (Algae) तथा जीवाणु दोनों के बीच का सेतु जीव माना जाता है, क्योंकि यह दोनों के लक्षणों का धारक होता है। ये जीवाणुओं की तरह प्रोकैरियोटिक तथा शैवालो की तरह प्रकाश-संश्लेषण करने की क्षमता वाले जीवों होते हैं। ये जीवाणुओं की तरह सरल संरचना प्रदर्शित करते हैं तथा दोनों विखण्डन द्वारा गुणित होते हैं। इन्हीं लक्षणों के आधार पर बैक्टीरिया के अंतर्राष्ट्रीय कोड (International code of nature of bacteria, 1978) के अनुसार नील हरित शैवालों को सायनोबैक्टीरिया नाम दिया गया।

सायनोबैक्टीरिया के लक्षण (Characters of Cyanobacteria) 


(i) सायनोबैक्टीरिया एककोशिकीय या बहुकोशिकीय तन्तुवत ग्राम ऋणात्मक (gram negative) प्रकृति वाले रंगीन (Pigmental) जीवाणु हैं, जिसमें क्लोरोफिल a, कैरोटिनाइड्स, सी-फायकोसायनिन तथा सी-फायकोइरीथ्रिन नामक प्रकाश-संश्लेषी वर्णक पाए जाते हैं। ये ऐसे जीवाणु हैं जो प्रकाश संश्लेषण में हाइड्रोजन के स्रोत के रूप में पानी का प्रयोग करते हैं। 

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(ii) इनकी कोशिका प्रोकैरियोरिक होती है तथा उनमें माइटोकॉन्ड्रिया, गोल्जीबॉडी जैसे कोशिकांगों का पूर्णतः अभाव होता है।

(iii) केन्द्रक पदार्थ गुणसूत्र के रूप में सुसंगठित न होकर स्वतंत्र DNA के रूप में होता है।

(iv) इनमें जननांग (Sex organas) तथा चलनशील वर्धी एवं प्रजनन कोशिकाएँ अनुपस्थित होती हैं उनमें लैंगिक जनन नहीं होता है। 

(v) सायनोबैक्टीरिया में प्रजनन वर्धी प्रजनन की प्रमुख विधियाँ हैं। विखण्डन (fission) तथा खण्डन वर्धी प्रजनन को प्रमुख विधियाँ हैं। 

(vi) कुछ तन्तुवत सायनोबैक्टेरिया में अपेक्षाकृत बड़ी गोलाकार कोशिकाएँ पायी जाती हैं जिसे हेटेरोसिस्ट (Hetero. cyst) कहते हैं। हेटेरोसिस्ट युक्त सायनोबैक्टेरिया में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता होती है। 

(vii) इनकी कोशिकाओं की कोशिकाभित्ति के मुख्य घटक भी म्यूकोपॉलिमर्स होते हैं। इनका प्रमुख वर्णक C. फायकोसायनिन (C-phycocyanin) होता है।

सायनोबैक्टीरिया की संरचना (Cell structure of cyanobacteria) 


(i) प्रत्येक कोशिका के बाहरी म्यूकोपॉलिसैकेराइड का बना श्लेष्मीय आच्छद (Mucilagenous sheath) होता है।

(ii) प्लाज्मा झिल्ली त्रिस्तरीय तथा लाइपोप्रोटीन की बनी होती है। 

(iii) परिधीय क्षेत्र में C-फायकोसायनिन तथा C- फाइकोइरीथ्रिन नामक वर्णक युक्त थाइलेकॉयड (Thylakoid) अर्थात् प्रकाश संश्लेषीय लैमिली (Photosynthetic lamellae) की बहुलता के कारण यह क्षेत्र वर्गीकृत क्षेत्र (Pig mented region) के रूप में परिलक्षित होता है। 

(iv) कोशिकाद्रव्य में भोज्य पदार्थों के रूप में सायनो फाइसयन स्टार्च (cyanphycean starch) सायनोफाइसियन ग्रेन्यूज्स (cyanophycean granules), प्रोटीन कणिकाओं के रूप में ऑस्मोफिलिक बॉडीज (Osmophillic bodies), मेटाक्रोमैटिन ग्रेन्यूल्स (metachromatin granules), उपस्थित रहते हैं। 

(v) 70s प्रकार के राइबोसोम्स पूरे कोशिकाद्रव्य में चारों ओर बिखरे हुए रहते हैं। न्यूक्लिअस के बदले केवल DNA के सूक्ष्म तंतु अनियमित रूप से विपरीत अवस्था में पाये जाते हैं। DNA के साथ-साथ RNA भी पाया जाता हैं।

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सायनोबैक्टीरिया में प्रजनन (Reproduction in cyanobacteria) 


सायनोबैक्टीरिया में केवल वर्धी तथा अलैंगिक प्रजनन ही होता है 

(a) वर्धी प्रजनन (Vegetative Reproduction) - यह विखण्डन, खण्डन अथवा हार्मोगोन्स के द्वारा होता है। 

(1) विखण्डन (Fission)- इस प्रकार के वर्धी प्रजनन में कोशिका में वलयकार उभार स्पष्ट रूप से उपस्थित कोशिका को दो बराबर भागों में विभक्त कर देता है। इस प्रक्रिया में आनुवंशिक तथा अन्य जीवद्रव्यीय पदार्थ भी दो भागों में बँट जाते हैं।

उदाहरण - एककोशिकीय सायनोबैक्टीरिया 

1. खण्डन (Fragmentation ) - इस विधि में सायनोबैक्टीरिया के तन्तु या कॉलोनी दुर्घटना अथवा यांत्रिक क्षति के कारण छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त हो जाते हैं तथा प्रत्येक खण्ड नये तन्तु या कॉलोनी का निर्माण करते हैं। 

उदाहरण – सिलिन्ड्रोस्पर्मम (cylindrospermum)। 

2. हॉर्मोगोन्स द्वारा (By Harmogones) – तन्तु रूपों के ट्राइकोम्स शीथ (sheeth) के अंदर ही छोटे-छोटे भागों (Segments) में विभक्त हो जाते हैं जो कि हॉर्मोगोनिया कहलाते हैं। कुछ सायनोबैक्टीरिया में हार्मोगोन्स मोटी भित्ति वाले हो जाते हैं जिससे हार्मोस्पोर्स (hormospores) विकसित होते हैं जो कि आगे चलकर स्वतंत्र तन्तु में परिणत हो जाते हैं। 

उदाहरण – वेस्टिएला (Westiella), ऑसिलेटोरिया (Osellatoria), नॉस्टॉक (Nostock)। 

अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction) - सायनोबैक्टीरिया में अलैंगिक जनन निम्न प्रकार के बीजाणुओं के बनने के कारण होता है – 

(a)एकाइनीट्स द्वारा (By Akinetes) — ये वर्धी कोशिकाओं के वृद्धि करने तथा समस्त कोशिका के मोटी भित्ति से घिर जाने के फलस्वरूप बनती हैं। ये अनुकूल दशा के आगमन पर अंकुरित होकर नया तन्तु बनाते हैं। 

उदाहरण - एनाबीना (Anabaena) 

(b) एण्डोस्पोर्स द्वारा (By Endospores) – ये कोशिका के अंदर विभाजनों के फलस्वरूप मोटी भित्ति वाले बीजाणु के रूप में बनते हैं। कोशिका से निकलने के बाद अंकुरित होकर ये नये तन्तु का निर्माण करते हैं। 

उदाहरण - कैमीसायफन (Chamaesiphon), डर्मोकार्प (Dermocarpa) 

(c) एक्सोस्पोर द्वारा (By Exospore) - कैमीसायफन इनक्रस्टैन्स (Chamaesiphon incrustans) में कोशिका का जीवद्रव्य बाहर आकर जीवाणु में बदल जाता है जिसे एक्सोस्पोर कहते हैं जो कि विकसित होकर नये तंतु का निर्माण करता है। 

(d) नैनोसायटस द्वारा (By nanocytes)- एफैनोथीका (Aphanotheca), माइक्रोसिस्टिस (Microcystis) आदि में कोशिका में जीवद्रव्यीय विभाजन के फलस्वरूप अत्यंत छोटी-छोटी इकाई रचनाओं के रूप में बीजाणु बनते हैं जिसे नैनोसाइट (nanocyte) कहते हैं। प्रत्येक नैनोसाइट से एक-एक तंतु विकसित होता है। 

सायनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Cyanobacteria)- 

सायनोबैक्टीरिया के सदस्य जैविक समुदाय के लिए लाभदायक तथा हानिकारक दोनों प्रकार से अपना महत्व प्रदर्शित करते हैं।

(A) लाभदायक महत्व (Useful Importance ) – 


(i) सायनोबैक्टीरिया के लगभग 22 तंतुनुमा काय वाले सदस्य जैसे- नॉस्टॉक (Nostoc), एनाबीना (Anabaena), ऑलोसिरा (Aulosira), एराबिनॉप्सिस (Arabinopsis), कैलोथ्रिक्स (Calothrix), सायटोनीमा (Scytonema) आदि वातावरण के N, को नाइट्रोजन यौगिक में बदलकर N2 स्थिरीकरण (N, Fixation) का कार्य करते हैं तथा भूमि के उपजाऊपन को बढ़ाते हैं। 

(ii) नॉस्टॉक (Nostoc ), एनाबीना (Anabaena), सायटोनीमा (Scytonema) आदि के कुछ स्पीसीज अनुपजाऊ ऊसर जमीन (infertile alkalina soil) को उपजाऊ जमीन में परिवर्तित कर देते हैं। 

(iii) नॉस्टॉक कम्यून (Nostoc commune) को उबालकर सूप (Soup) के रूप में चीन में पीया जाता है। 

(iv) ऑलोसिरा फर्टीलिस्सिमा (Aulosira Feritl issima) अम्लीय प्रकृति के अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ के भूमि में परिवर्तित कर देता है।

(B)हानिकारक महत्व (Harmful Importance) - 


(1) सायनोबैक्टीरिया के कुछ सदस्य स्वीमिंग पूल के फ्लोर के संगमरमर, टाइल्स, दीवारों के प्लास्टर आदि पर उगकर एवं वृद्धि करके उसकी उपयोगिता को कम कर देते हैं तथा इनकी उपस्थिति को नगन्य करने में आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। 

(ii) सायनोबैक्टीरिया के कुछ सदस्य जैसे माइक्रोसिस्टिस (Microcystis), एनाबीना (Anabaena) आदि तालाब, झील, जल संग्राहक टैंक आदि में अभिवृद्धि करके पानी को संदूषित करने का कार्य करते हैं जिसके कारण पानी के पीने से गैस्ट्रिक बीमारियाँ (Gartric trouble) विकसित होती हैं ।

(iii) माइक्रोसिस्टिस (Microcystis), एनाबीना (Ana bacna) आदि तेजी से वृद्धि करके तालाब, झील आदि के जल की सतह पर अपनी उपस्थिति की एक मोटी परत 'निर्मित करते हैं जिसे वाटर ब्लूम (Water bloom) कहते हैं। ये ऑक्सीजन की कमी होने पर भी तेजी से वृद्धि करते हैं। इनकी मोटी परत के कारण निमग्न पौधे (Submerged plants) तथा जलीय जन्तु (aquatic animals) मर जाते हैं तथा कालान्तर में पानी से दुर्गन्ध आने लगती है। माइक्रोसिस्टिस टॉक्सिका (Microcystis toxica) की उपस्थिति पानी को जहरीला बना देती है।

(iv) नगर निगम के जल छनन संयंत्र (water filteration plant) के फिल्टर में कुछ सायनोबैक्टीरिया विकसित होकर उसे खराब कर नगर निगम को अत्यधिक आर्थिक हानि पहुँचाते हैं।

सायनोबैक्टीरिया से जुडी FAQs -

1. सायनोबैक्टीरिया का वर्तमान नाम क्या है?

नाम साइनोबैक्टीरीया (उनके रंग से आता है यूनानी : κυανός , romanized : kyanós , जलाया 'ब्लू'), उन्हें अपने अन्य नाम दे रही है, " नीली हरी शैवाल",

2. सायनोबैक्टीरिया की कोशिका भित्ति किसकी बनी होती है?

कोशिकाभित्ति (cell wall) – सायनोबैक्टिरिया की कोशिका भित्ति द्विस्तरीय होती है । (अ) बाह्यकोशिका भित्ति – यह लाइपोपोलीसैकेराइड की बनी होती है ।

3. काई को विज्ञान की भाषा में क्या कहते हैं?

सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है अर्थात कह सकते हैं कि सूर्य का प्रकाश होने पर ही यह उक्त स्थान में पाया जाता है।

4. शैवाल का वैज्ञानिक नाम क्या है?

अल्वा (UIva) को साधारण सलाद (sea lettuce) कहते हैं। नीलहरित शैवाल का नया नाम सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) दिया गया है।



ऊपर आपने  सायनोबैक्टीरिया क्या है ? सायनोबैक्टीरिया के लक्षण, सायनोबैक्टीरिया की संरचना, सायनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्व के बारे में जाना। विज्ञान का यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

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