नमस्कार दोस्तों, आपका स्वागत है आज के पोस्ट के माध्यम से हम मानव नेत्र के बारे में जानेंगे, मानव नेत्र हमारे शरीर का एक अभिन्न और महत्वपूर्ण अंग है जिसकी सहायता से आज हम इस संसार को देख पा रहे है। अतः आप मानव नेत्र के बारे में जानने के लिए पूरा पोस्ट जरुर पढिएगा।
जिसमे हम मानव नेत्र, मानव नेत्र का सचित्र वर्णन, मानव नेत्र के भाग निम्न प्रकार से है, मानव नेत्र की क्रियाविधि, समंजन क्षमता, मानव नेत्र के कार्य, दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन के बारे में जानेंगे तो कृपया पूरा जरुर पढिएगा।
मानव नेत्र (Human Eye)
मानव नेत्र एक अत्यंत मूल्यवान एवं सुग्राही ज्ञानेंद्रिय (Sense Organs) है। यह हमें इस अद्भुत संसार तथा हमारे चारों ओर के रंगों को देखने योग्य बनाता है। आँखें बंद करके हम वस्तुओं को उनकी गंध, स्वाद, उनके द्वारा उत्पन्न ध्वनि या उनको स्पर्श करके, कुछ सीमा तक पहचान सकते हैं, तथा आँखों को बंद करके रंगों को पहचान पाना असंभव है। इस प्रकार समस्त ज्ञानेंद्रियों में मानव नेत्र सबसे अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह हमें हमारे चारों ओर के रंगबिरंगे संसार को देखने योग्य बनाता है।
मानव नेत्र का सचित्र वर्णन (Pictograph of Human Eye)
मानव नेत्र के भाग निम्न प्रकार से है (The parts of the human eye are as follows)-
कॉर्निया (cornea): यह नेत्र के सामने श्वेत पटल के मध्य का कुछ उभरा हुआ पारदर्शी भाग होता है। प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं।
नेत्र गोलक (eyeball) : नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है।
परितारिका (iris) : यह कार्निया के पीछे एक अपारदर्शक मांसपेशियों की बनी रचना है। इसके बीच में छिद्र होता है तथा अधिकांश भाग काला होता है। यह पुतली के साईज को नियंत्रित करता है ।
पुतली (pupil): परितारिका के बीच वाले छिद्र को पुतली कहते हैं। इसकी मांसपेशियों में संकुचन व प्रसरण से पुतली का आकार परिवर्तित हो जाता है। प्रकाश में पुतली का आकार छोटा व अँधेरे में आकार बढ़ जाता है।
लेंस (Lens): आईरिस के पीछे एक मोटा लचीला उत्तल लैंस होता है जिसे नेत्र लैंस कहते हैं। मांसपेशियों पर तनाव को परिवर्तित कर इस लैंस की वक्रता त्रिज्या को परिवर्तित किया जा सकता है। इससे वस्तु का उल्टा, छोटा एवं वास्तविक प्रतिबिम्ब बनता है।
कचाभ द्रव (vitreous): नेत्र लैस एवं स्वच्छ मण्डल के बीच के स्थान में एक पारदर्शक पतला द्रव भरा रहता है। जिसे जलीय द्रव कहते है। यह आँख की गोलाई बनाने के लिये उचित दबाव बनाये रखता है। काॅर्निया व अन्य भागों को पोषण यही से मिलता है।
रक्त पटल (choroid) : यह श्वेत पटल के नीचे अन्दर की ओर एक काले रंग की झिल्ली होती है। इसके पृष्ठ भाग में बहुत सी रक्त की धमनी एवं शिराएँ होती है, जो नेत्र को आक्सीजन व पोषण प्रदान करती है। आँख में आने वाले प्रकाश का अवशोषण कर भीतरी दीवारों से प्रकाश के परावर्तन को अवरूद्ध करती है।
मानव नेत्र की क्रियाविधि (Mechanism of human eye):-
मानव नेत्र एक कैमरे की भाँति है। इसका लेंस-निकाय एक प्रकाश-सुग्राही परदे, जिसे रेटिना या दृष्टिपटल कहते हैं, पर प्रतिबिंब बनाता है। प्रकाश एक पतली झिल्ली से होकर नेत्र में प्रवेश करता है। इस झिल्ली को कॉर्निया या स्वच्छ मंडल कहते हैं।
यह झिल्ली नेत्र गोलक के अग्र पृष्ठ पर एक पारदर्शी उभार बनाती है। नेत्र गोलक की आकृति लगभग गोलाकार होती है तथा इसका व्यास लगभग 2.3 cm होता है। नेत्र में प्रवेश करने वाली प्रकाश किरणों का अधिकांश अपवर्तन कॉर्निया के बाहरी पृष्ठ पर होता है। क्रिस्टलीय लेंस केवल विभिन्न दूरियों पर रखी वस्तुओं को रेटिना पर फोकसित करने के लिए आवश्यक फोकस दूरी में सूक्ष्म समायोजन करता है।
कॉर्निया के पीछे एक संरचना होती है जिसे परितारिका कहते हैंपरितारिका गहरा पेशीय डायफ्राम होता है जो पुतली के साइज़ को नियंत्रित करता है। पुतली नेत्र में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है।
अभिनेत्र लेंस रेटिना पर किसी वस्तु का उलटा तथा वास्तविक प्रतिबिंब बनाता है। रेटिना एक कोमल सूक्ष्म झिल्ली होती है जिसमें बृहत् संख्या में प्रकाश सुग्राही कोशिकाएँ होती हैं। प्रदीप्ति होने पर प्रकाश-सुग्राही कोशिकाएँ सक्रिय हो जाती हैं तथा विद्युत सिगनल उत्पन्न करती हैं।
ये सिग्नल दृक् तंत्रिकाओं द्वारा मस्तिष्क तक पहुँचा दिए जाते हैं। मस्तिष्क इन सिग्नलों की व्याख्या करता है तथा अंततः इस सूचना को संसाधित करता है जिससे कि हम किसी वस्तु को जैसा है, वैसा ही देख लेते है।
समंजन क्षमता (accommodative ability):-
नेत्र की समंजन क्षमता से क्या अभिप्राय है?
अभिनेत्र लेंस रेशेदार जेलीवत पदार्थ का बना होता है। इसकी वक्रता में कुछ सीमाओं तक पक्ष्माभी पेशियों द्वारा रूपांतरण किया जा सकता हैअभिनेत्र लेंस की वक्रता में परिवर्तन होने पर इसकी फोकस दूरी भी परिवर्तित हो जाती है। जब पेशियाँ शिथिल होती हैं तो अभिनेत्र लेंस पतला हो जाता है। इस प्रकार इसकी फोकस दूरी बढ़ जाती है। इस स्थिति में हम दूर रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख पाने में समर्थ होते हैं।
जब आप आँख के निकट की वस्तुओं को देखते हैं तब पक्ष्माभी पेशियाँ सिकुड़ जाती हैं। इससे अभिनेत्र लेंस की वक्रता बढ़ जाती हैअभिनेत्र लेंस अब मोटा हो जाता है। परिणामस्वरूप, अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी घट जाती है। इससे हम निकट रखी वस्तुओं को स्पष्ट देख सकते हैं।
अभिनेत्र लेंस की वह क्षमता जिसके कारण वह अपनी फोकस दूरी को समायोजित कर लेता है समंजन कहलाती है। तथापि अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी एक निश्चित न्यूनतम सीमा से कम नहीं होती। किसी छपे हुए पृष्ठ को आँख के अत्यंत निकट रख कर उसे पढ़ने का प्रयास कीजिए। आप अनुभव करेंगे कि प्रतिबिंब धुँधला है या इससे आपके नेत्रों पर तनाव पड़ता है। किसी वस्तु को आराम से सुस्पष्ट देखने के लिए आपको इसे अपने नेत्रों से कम से कम 25 cm दूर रखना होगा। वह न्यूनतम दूरी जिस पर रखी कोई वस्तु बिना किसी तनाव के अत्यधिक स्पष्ट देखी जा सकती है, उसे सुस्पष्ट दर्शन की अल्पतम दूरी कहते हैं।
इसे नेत्र का निकट बिंदु भी कहते हैंकिसी सामान्य दृष्टि के तरुण वयस्क के लिए निकट बिंदु की आँख से दूरी लगभग 25 cm होती हैवह दूरतम बिंदु जिस तक कोई नेत्र वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है, नेत्र का दूर-बिंदु (far Point) कहलाता है। सामान्य नेत्र के लिए यह अनंत दूरी पर होता हैइस प्रकार, आप नोट कर सकते हैं कि एक सामान्य नेत्र 25cm से अनंत दूरी तक रखी सभी वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकता है। - कभी-कभी अधिक आयु के कुछ व्यक्तियों के नेत्र का क्रिस्टलीय लेंस दूधिया तथा धुँधला हो जाता है। इस स्थिति को मोतियाबिंद (cataract) कहते हैंइसके कारण नेत्र की दृष्टि में कमी या पूर्ण रूप से दृष्टि क्षय हो जाता है। मोतियाबिंद की शल्य चिकित्सा के पश्चात दृष्टि का वापस लौटना संभव होता है।
मानव नेत्र के कार्य (Functions of The Human Eye in Hindi)
- मानव नेत्र का प्रमुख कार्य रंगों को पहचानना होता है।
- मानव नेत्र के द्वारा हम वस्तुयो को देख सकते है ।
- नेत्र की सहायता से ही मनुष्य अपनी सभी दैनिक कार्यो को करता है अर्थात यह कहा जा सकता है की मनुष्य की सम्पूर्ण दैनिक क्रियाकलापों के संचालन में नेत्र का महत्वपूर्ण योगदान होता है ।
दृष्टि दोष तथा उनका संशोधन (vision defects and their correction)
कभी-कभी नेत्र धीरे-धीरे अपनी समंजन क्षमता खो सकते हैं। ऐसी स्थितियों व्यक्ति वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट नहीं देख पाते। नेत्र में अपवर्तन दोषों के कारण दृष्टि धुँधली हो जाती है।
प्रमुख रूप से दृष्टि के तीन सामान्य अपवर्तन दोष होते हैं। ये दोष हैं -
(1.) निकट दृष्टि (Myopia),
(2.) दीर्घ दृष्टि (Hypermetropia)
(3.) जरा दूरदृष्टिता (Presbyopia)।
इन दोषों को उपयुक्त गोलीय लेंस के उपयोग से संशोधित किया जा सकता है। हम इन दोषों तथा उनके संशोधन के बारे में संक्षेप में नीचे चर्चा करेंगे।
(1.) निकट दृष्टि दोष (Near sightedness)
निकट दृष्टि दोष को निकटदृष्टिता (Near sightedness) भी कहते हैं। निकट दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति निकट रखी वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता है, परंतु दूर रखी वस्तुओं को वह सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का दूर बिंदु अनंत पर न होकर नेत्र के पास आ जाता हैऐसा व्यक्ति कुछ मीटर दूर रखी वस्तुओं को ही सुस्पष्ट देख पाता हैनिकट दृष्टि दोषयुक्त नेत्र में किसी दूर रखी वस्तु का प्रतिबिंब दृष्टिपटल (रेटिना) पर न बनकर दृष्टिपटल के सामने बनता है।
इस दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं -
(i) अभिनेत्र लेंस की वक्रता का अत्यधिक होना।
(ii) नेत्र गोलक का लंबा हो जाना।
दूर करने के उपाय (remedies to remove)- इस दोष को किसी उपयुक्त क्षमता के अवतल लेंस (अपसारी लेंस) के उपयोग द्वारा संशोधित किया जा सकता है।
उपयुक्त क्षमता का अवतल लेंस वस्तु के प्रतिबिंब को वापस दृष्टिपटल (रेटिना) पर ले आता है तथा इस प्रकार इस दोष का संशोधन हो जाता है ।
(2.) दीर्घ-दृष्टि दोष (Far-sightedness)
दीर्घ-दृष्टि दोष को दूर दृष्टिता (Far-sightedness) भी कहते हैं। दीर्घ दृष्टि दोषयुक्त कोई व्यक्ति दूर की वस्तुओं को तो स्पष्ट देख सकता हैपरंतु निकट रखी वस्तुओं को सुस्पष्ट नहीं देख पाता। ऐसे दोषयुक्त व्यक्ति का निकट बिंदु सामान्य निकट बिंदु ( 25 cmसे दूर हट जाता हैऐसे व्यक्ति को आराम से सुस्पष्ट पढ़ने के लिए पठन सामग्री को नेत्र से 25 cm से काफ़ी अधिक दूरी पर रखना पड़ता हैइसका कारण यह है कि पास रखी वस्तु से आने वाली प्रकाश किरणें दृष्टिपटल (रेटिना) के पीछे फोकसित होती हैं ।
इस दोष के उत्पन्न होने के कारण हैं :
(1) अभिनेत्र लेंस की फोकस दूरी का अत्यधिक हो जाना ।
(ii) नेत्र गोलक का छोटा हो जाना।
दूर करने के उपाय (remedies to remove)- इस दोष को उपयुक्त क्षमता के अभिसारी लेंस (उत्तल लेंस) का उपयोग करके संशोधित किया जा सकता है। इसे उत्तल लेंस युक्त चश्मे दृष्टिपटल पर वस्तु का प्रतिबिंब फोकसित करने के लिए आवश्यक अतिरिक्त क्षमता प्रदान करते हैं।
(c) जरा दूरदृष्टिता ( Zara foresight)-
आयु में वृद्धि होने के साथ-साथ मानव नेत्र की समंजन क्षमता घट जाती हैअधिकांश व्यक्तियों का निकट-बिंदु दूर हट जाता हैसंशोधक चश्मों के बिना उन्हें पास की वस्तुओं को आराम से सुस्पष्ट देखने में कठिनाई होती है। इस दोष को जरा दूरदृष्टिता कहते हैंयह पक्ष्माभी पेशियों के धीरे-धीरे दुर्बल होने तथा क्रिस्टलीय लेंस के लचीलेपन में कमी आने के कारण उत्पन्न होता हैकभी-कभी किसी व्यक्ति के नेत्र में दोनों ही प्रकार के दोष निकट दृष्टि तथा दूर-दृष्टि दोष हो सकते हैं। ऐसे व्यक्तियों को वस्तुओं को सुस्पष्ट देख सकने के लिए प्रायः द्विफोकसी लेंसों (Bi-focal lens) की आवश्यकता होती हैसामान्य प्रकार के द्विफोकसी लेंसों में अवतल तथा उत्तल दोनों लेंस होते हैं। ऊपरी भाग अवतल लेंस होता हैयह दूर की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायता करता हैनिचला भाग उत्तल लेंस होता हैयह पास की वस्तुओं को सुस्पष्ट देखने में सहायक होता है।