क्रिस्टल क्षेत्र से सम्बंधित महत्वपूर्ण सवाल - जवाब
क्रिस्टल क्षेत्र - क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत (सीएफटी) के टूटने का वर्णन करता है पतित इलेक्ट्रॉन ऑर्बिटल राज्यों में, आमतौर पर डी या एफ ऑर्बिटल्स, एक स्थैतिक विद्युत क्षेत्र के कारण जो एक आसपास के आवेश वितरण (आयनों पड़ोसियों) द्वारा उत्पादित होता है।
क्रिस्टल क्षेत्र से सम्बंधित महत्वपूर्ण सवाल
Q.1 क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त के प्रमुख विशेषताओं तथा सीमाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर- क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत- इस सिद्धान्त का प्रतिपादन सर्वप्रथम एच. बेथे (H. Bethe) ने सन् 1929 तथा जे. एच. वानब्लेक (J.H. Vanvleck) ने सन् 1932 में आयनिक क्रिस्टलों के अध्ययन लिए किया। इसी कारण इसे क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त कहते हैं। ऑरगेल ने सन् 1952 में क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त का उपयोग संकुलों में धातु-लिगैण्ड बंधन की प्रकृति समझाने के लिए किया। इस सिद्धांत के अनुसार संकुल में धातु आयन तथा लिगैण्ड के मध्य पाया जाने वाला आकर्षण पूर्णतः स्थिर-वैद्युत या आयनिक (Electrostatic or ionic) होता है।
इस सिद्धांत के अनुसार, लिगैण्ड बिन्दु आवेश या बिन्दु द्विध्रुव (Point charge or point dipoles) होता है। ये लिगैण्ड धातु आयन के आस-पास सममित व्यवस्था में धातु आयन पर विद्युतीय विभव क्षेत्र का निर्माण करते हैं, जो केन्द्रीय धातु आयन के d-ऑर्बिलों पर प्रतिकर्षी प्रभाव डालते हैं।
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत की मुख्य विशेषताएँ / मुख्य परिकल्पनाएँ -
- संकुल लवणों में केन्द्रीय धातु आयन धनायन होता है, जिसके रिक्त कक्षकों को लिगैण्ड इलेक्ट्रॉन प्रदान करता है।
- लिगैण्ड पर असहभाजित इलेक्ट्रॉन जोड़ा होने के कारण इसे बिन्दु आवेश के रूप में माना जाता है, जैसे-H0 तथा NH3.
- कक्षकों की आपेक्षिक ऊर्जाएँ सदैव समान नहीं होती हैं, यह भिन्न लिगैण्ड के लिए भिन्न होती हैं।
- (iv) केन्द्रीय धातु आयन तथा लिगैण्डों में विपरीत आवेश होने के कारण दोनों के मध्य आयनिक बन्ध कार्य करने लगता है।
- जटिल यौगिकों के स्पेक्ट्रा विभिन्न त कक्षकों की विभिन्न ऊर्जाओं के मध्य इलेक्ट्रॉनिक संक्रमण के आधार पर समझाये जा सकते हैं।
- लिगैण्ड के ऋणावेशित इलेक्ट्रॉन धनायन के संयोजकता इलेक्ट्रॉन को प्रतिकर्षित करते हैं, जिससे कक्षकों की सम्भ्रशता (degeneracy) समाप्त होकर ये कक्षक विभिन्न ऊर्जा स्तर प्राप्त कर लेते हैं, साथ ही संयोजकता इलेक्ट्रॉन उन
- उप-सहसंयोजी यौगिक व चुम्बकीय गुण लिगैण्ड द्वारा d कक्षक के विस्फुटन (splitting) की मात्रा पर निर्भर करता है। d कक्षकों का विस्फुटन अधिक होने पर अयुग्मित इलेक्ट्रॉनों की संख्या में कमी हो जाती है तथा चुम्बकीय गुण भी कम हो जाता हैं.
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धांत की मुख्य सीमाएँ -
क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त हालाँकि जटिल लवणों के निर्माण को समझाने में सफल रहा, किन्तु निम्नलिखित कमियों से मुक्त रहा -
- विभिन्न लिगैण्डों की आपेक्षिक शक्ति के निर्धारण का आधार संतोषजनक नहीं रहा है।
- लिगैण्ड कक्षकों की अपेक्षा धातु कक्षकों पर पूर्णरूपेण विचार किया गया।
- विभिन्न लिगैण्डों की आपेक्षिक शक्ति के निर्धारण का आधार संतोषजनक नहीं है।
Q.2 क्रिस्टल क्षेत्र विभाजन या विस्फुटन ऊर्जा क्या है ? इसे प्रभावित करने वाले कारकों को संक्षेप में लिखिए।
क्रिस्टल तंत्र विपाटन ऊर्जा (C.E.S.E.) को प्रभावित करने वाले कारकों का उदाहरण सहित वर्णन कीजिए।
उत्तर- स्थिर विद्युत् क्षेत्र में धातु आयन के d कक्षक, लिगैण्ड रूपी बिन्दु आवेश के प्रभाव से पृथक् हो जाते हैं और उनकी ऊर्जा में परिवर्तन हो जाता है। यह बिखराव विस्फुटन कहलाती है तथा ऊर्जा में परिवर्तन विस्फुटन ऊर्जा कहलाती है। इस प्रक्रिया में विभिन्न लिगैण्डों के प्रभाव से विभिन्न तरंगदैर्घ्य का प्रकाश अवशोषण होता है, जो स्पेक्ट्रम द्वारा ज्ञात होता है।
धातु के d कक्षकों का त्रिविम विन्यास के कारण उनमें ऊर्जा परिवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। फलस्वरूप t2g कक्षक(तीन) और eg कक्षक (दो) इस प्रकार अलग-अलग ऊर्जा क्षेत्र में आ जाते हैं।
विस्फुटन ऊर्जा को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(अ) धातु आयन की प्रकृति,
(ब) लिगैण्ड की प्रकृति,
(स) संकुल की ज्यामिति ।
(अ) धातु आयन की प्रकृति -
(i) समान धातु पर आवेशों की भिन्नता- धातु आयन में आवेश की वृद्धि से आयन का आकार छोटा हो जाता , इससे अधिक आवेश युक्त धनायन लिगैण्ड को अधिक ध्रुवित कर सकता है, फलस्वरूप दोनों आयनों के निकट आने - अधिक विपाटन हो जाता है अर्थात् 10D, में वृद्धि हो जाती है। जैसे-
[Fe(H2O)6]++, Fe++ 10Dq के मान 10400 cm-1
[Fe(H2O)6]++, Fe+++ 10Dq के मान 13700 cm-1
(ii) भिन्न धातु आयनों पर भिन्न आवेश- 10D, के मान आवेश के परिमाण के समानुपाती होता है। दो भिन्न धातु पर आवेशों की संख्या भिन्न किन्तु इलेक्ट्रॉनों की संख्या समान होता है अर्थात् अधिक आवेश वाले धातु आयनों के लिए 10D, का मान अधिक होता है। जैसे-
[V(H2O)6]++ 10Dq = 12400 cm-1
[Ga(H2O)6]+++ 10Dq = 17400 cm-1
(iii) भिन्न धातु आयनों पर समान आवेश-जब दो भिन्न धातु आयन समान आवेश रखते हैं, तो एक ही संक्रमण श्रेणी होने पर उनमें उपस्थित d इलेक्ट्रॉनों की संख्या भिन्न होगी। d इलेक्ट्रॉनों की संख्या जैसे -
[CO(H2O)6]++ 10Dq के मान 9300 cm-1
[Ni(H2O)6]++ 10Dq के मान 8500 cm-1
(ब) लिगैण्ड की प्रकृति - केन्द्रीय धातु आयन के d कक्षकों को विभिन्न लिगैण्ड विभिन्न प्रमाण में विस्फुटित करते हैं । केन्द्रीय धातु आयन के d कक्षकों का विस्फुटन करने वाले लिगैण्ड तथा अपेक्षाकृत कम विस्फुटन करने वाले लिगैण्ड दुर्बल लिगैण्ड कहे जाते हैं। CN- आयन A का अधिक मान देने से प्रबल लिगैण्ड तथा CI आयन A का कम मान देने से दुर्बल लिगैण्ड कहा जाता है। लिगैण्डों को उनकी विस्फुटन क्षमता (splitting power) के क्रम में रखे जाने पर यह श्रेणी स्पेक्ट्रो रसायन श्रेणी कहलाती है। कुछ लिगैण्डों का उनकी बढ़ती हुई विस्फोटन ऊर्जा A (क्षमता) के अनुसार क्रम है।
I- < Br- Cl- <F- <OH- <C2O4-- <H2O <Gly < ED.A4- etc.
(स) संकुल की ज्यामिति - अष्टफलकीय संकुल की अपेक्षा समचतुष्फलक संकुल के लिए 10D, का मान कम होता है, जबकि समतल वर्गाकार संकुल के लिए यह मान अधिक होता है । इस प्रकार के मान विभिन्न ज्यामितियों के लिए निम्न क्रम में पाये जाते हैं.
समतल वर्गाकार > अष्टफलकीय > समचतुष्फलकीय
Q 3. क्रिस्टल क्षेत्र सिद्धान्त द्वारा संकुल यौगिकों के रंगीन गुण को समझाइए।
उत्तर- संकुल यौगिकों पर श्वेत प्रकाश डालने पर श्वेत प्रकाश का कुछ भाग संकुल द्वारा शोषित हो जाता है। यह शोषित प्रकाश 10 Dq अर्थात् क्रिस्टल क्षेत्र स्थायीकरण ऊर्जा के बराबर होता है। यदि संकुल द्वारा अवशोषण दृश्य क्षेत्र में होता है, तो संकुल के रंग की घोषणा करना संभव होता है।
स्पेक्ट्रम का दृश्य क्षेत्र 4000A से 7000A तरंगदैर्घ्य के मध्य होता है। अवशोषण के अतिरिक्त शेष रंग ही संकुल का रंग होता है, जैसे -
(i) [Ti(H2O)6]+++ के लिए दृश्य क्षेत्र में 10Dq का मान लगभग 20000 cm-1 है। इसका अर्थ है कि यह संकुल नीला-हरा रंग शोषित करेगा।
(ii) हाइड्रेटेड कॉपर (II) सल्फेट (CuSO4.5H2O) में [Cu(H2O)6]2+ आयन होता है, इसलिए यह नीला (Blue) होता है, क्योंकि यह पीले (Yellow) रंग के प्रकाश को अवशोषित करता है.
(iii) टेट्राऐमीन कॉपर (II) सल्फेट [Cu(NH3)6]2+ का रंग बैंगनी होता है, क्योंकि यह पीले - हरे प्रकाश को अवशोषित करता है।