एड्स कारक, रोग के संचरण, उपचार एवं रोकथाम

एड्स क्या है? इस रोग को उत्पन्न करने वाले कारक, रोग के संचरण, उपचार एवं रोकथाम के उपाय बताइये।

aids kya hai


उत्तर - एड्स (A. D. S.) एक विषाणु जनित मानव रोग है। इस संक्रमण के बाद की स्थिति है, जिसमें मानव अपने प्राकृतिक प्रतिरक्षण क्षमता खो देता है। एच.आई.वी. संक्रमण को एड्स की स्थिति तक पहुंचने में 8 से 10 वर्ष या इससे भी अधिक समय लग सकता है। एच.आई.वी से ग्रस्त व्यक्ति अनेक वर्षों तक बिना किसी विशेष लक्षणों के बिना रह सकते हैं।

एड्स के कारण – 

एड्स रोग HIV वाइरस से होता है, HIV का पूरा नाम ह्यूमेन इम्यूनो वाइरस है। एड्स वाइरस एक रिट्रोवाइरस (Retrovirus) है, जिसमें आनुवंशिक पदार्थ RNA होता है। एड्स का पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यूनो डिफिसियेन्सी सिण्ड्रोम है। इस रोग में T कोशिका (T Cell) का अभाव होता है, जो अन्य क्रिम्फोसाइट को सक्रिय करती है। इस रोग से पीड़ित व्यक्ति लगभग 3 वर्ष में मर जाता है। एड्स रोग के उपचार की विधि अभी तक ज्ञात नहीं है। इसके समान एक अन्य रोग भी पाया जाता है, जिसे एड्स रिलेटेड कॉम्प्लेक्स (A.R.C.) कहते हैं। 

एड्स की संचरण (transmission of aids) -

(1) मैथुन या सहवास द्वारा 
(2) दूषित इंजेक्शन से 
(3) रक्त दान द्वारा 
(4) अंग प्रतिरोपण द्वारा
(5) कृत्रिम वीर्य संकरण से
(6) माता से शिशु में होता है।

एड्स रोग के लक्षण- 

एड्स का विषाणु मानव शरीर की सहायक कोशिकाओं को (जो कि लिम्फोसाइट्स को सक्रिय करती है) मार देता है। इस कारण शरीर में प्रतिरक्षियों के निर्माण पर प्रतिकूल असर होता है तथा रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है। लसिका ग्रन्थियों में सूजनबुखार, भार कम होना, कमजोरी आदि इसके प्रमुख लक्षण हैं। इस रोग के कारण रोगी की तीन वर्ष में मृत्यु हो जाती है। 

एड्स का उपचार- 

अभी तक इस रोग के निवारण के लिए कोई उपचार नहीं है। एक बार यह रोग होने पर उस व्यक्ति का बचना असम्भव है। फिर भी प्रतिरक्षा उत्तेजन विधि द्वारा शरीर में इस विषाणु की निरोधक कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि की जा सकती है। 

एड्स का नियन्त्रण- 

एड्स को फैलने से रोकने के लिए निम्नलिखित उपाय काम में लाने चाहिए-

(1) लोगों को एड्स के घातक परिणामों की सूचना देनी चाहिए।

(2) इन्जेक्शन लगाने वाली सिरिंज एक बार प्रयोग करने के बाद फेंक देना चाहिए।

(3) रुधिर देने वाले व्यक्तियों, प्रतिरोपण के लिए वृक्क, यकृत, नेत्र का कॉर्निया, वीर्य या वृद्धि हॉमोन का दान करने वाले व्यक्तियों तथा गर्भधारण करने वाली स्त्रियों का निरीक्षण अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

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