परशुराम की प्रतीक्षा कविता की विशेषताएँ | Parshuram ki Pratiksha Kavita ki Visheshta
नमस्कार, आंसर दुनिया में आपका स्वागत है। महाकवि रामधारी सिंह दिनकर द्वारा रचित 'परशुराम की प्रतिक्षा' एक प्रबंध काव्य है। सन् 1962 में नेफा युद्ध में भारत की हुई पराजय के कारणों को कवि ने एक सिपाही के माध्यम से खोजने का प्रयास किया है। अक्टूबर 1962 में जब चीन ने भारत पर आक्रमण किया उससे पहले चीन मित्रता का ढोंग कर रहा था। इसी से आहात होकर कवी रामधारी सिंह दिनकर जी ने यह "परशुराम की प्रतीक्षा" नाम की कविता की रचना की और युवाओं को सन्देश देना चाहा कि आपने देश की रक्षा के लिए युद्ध करना गलत नहीं।
'परशुराम की प्रतीक्षा' कविता की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
'परशुराम की प्रतीक्षा' कविता की विशेषताएँ -
- कविता खड़ी बोली हिन्दी में लिखी गयी है।
- कविता में प्रतीकों का प्रयोग बड़ा ही सटीक हुआ है।
- सम्पूर्ण कविता ओजस्विता लिए हुए हैं।
- शब्दालंकार तथा अर्थालंकार की प्रधानता है।
- काव्य वक्रता पूरी कविता में दिखाई देती है।
- कवि कहना चाहते हैं कि गाँधीवाद की रक्षा के लिए शस्व धारण आवश्यक है।
- कविता में कथानक नहीं है।
- तुष्टिकरण का विरोध किया गया है।
- दिनकर जी ने इस कविता के माध्यम से ईमानदारी के साथ कर्त्तव्यपालन का सन्देश भी दिया है।
- कविता मुक्तक शैली में है।
- इसमें अकर्मण्यों पर तीखा व्यंग किया गया है।
- तत्कालीन राजनीति की भर्त्सना की गयी है।
- स्वाधीनता का महत्व कविता में स्पष्ट है।
- सम्पूर्ण कविता की रचना पौराणिक कथा को आधार बनाकर की गई है।
- कविता में साम्प्रदायिक समन्वय का भाव स्पष्ट परिलक्षित होता है।
परशुराम की प्रतीक्षा दिनकर जी की सुप्रसिद्ध का व्यकृति है। कवि का स्वाभिमान सौभाग्य पौरुष से मिलकर नए भावी व्यक्ति की प्रतीक्षा में रत दिखाई देता है।
सतत जागरूकता परिस्थितियों के संदर्भ में समकालीनता एवं व्यवहारिक चिंतन एक कवि के लिए आवश्यक है। प्रस्तुत रचना भारत-चीन युद्ध के पश्चात लिखी गई थी।
है एक हाथ में परशु, एक में कुश है।आ रहा नये भारत का भाग्य-पुरुष है।
परशुराम की प्रतीक्षा कविता के माध्यम से कवि भारत के उन तत्कालीन संतों व महापुरुषों पर व्यंग करते हैं, जिन्होंने अनेक शताब्दियों से भारतवासियों को अहिंसा, दया व ममता का पाठ पढ़ाते हुए शस्त्र प्रयोग को पाश्विक कार्य मानने तथा शारीरिक बल का प्रयोग न करने की शिक्षा दी है और लोगों को आक्रमणकारियों का सामना करने में असमर्थ बना दिया है, जो आत्मबल को श्रेष्ठ व शारीरिक बल के प्रयोग को निकृष्ट मानते हैं।
उनके उपदेश ने जनता की तेजस्विता, विपत्तियों से लड़ने की शक्ति और कर्मठता दूर कर दी। इस प्रकार जिस व्यक्ति में वीरता और पौरुष का भाव रहता है, उसमें समस्त गुण रहते हैं, वे हँसते हैं। सारे गुणों का निवास तलवार अर्थात् पराक्रम में ही रहता है।
जहाँ वीर भाव नहीं होता है, वहाँ पुण्य हार जाता है और पाप की विजय होती है। सम्मान को नष्ट होने से बचाना ही जीवन है, अतः स्पष्ट रूप से यह कहा जा सकता है कि कवि ने वर्तमान सन्दर्मों में भी वीरता को सर्वोच्च स्थान दिया है।
तो ये थी 'परशुराम की प्रतीक्षा' की कुछ विशेषताएँ और अन्य जानकारी जो आपको हिंदी विषय में ज्ञान को उजागर करने में मदद करता हैं |
इस आर्टिकल में हमने कवि रामधारी सिंह दिनकर जी द्वारा रचित कविता "परशुराम की प्रतीक्षा" की विशेषताओं के बारे में जाना।
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