पारिस्थितिक तंत्र क्या हैं(What is Ecology)- ecology in Hindi

पारिस्थितिक तंत्र क्या हैं? Ecology in Hindi - What is Ecology| Paristhitik Tantra Kya hai

ए. जी. टैन्सले (A.G. Tansely) ने इकोसिस्टम (Ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1935 में में किया था।

पारिस्थितिक तंत्र, पारिस्थितिकी (Ecology) की वह मूल क्रियात्मक इकाई है, जिसमें जैवीय समुदाय (Bio logical community) अपने पर्यावरण से परस्पर संबंधित होता है।

क्लार्क (1954) के अनुसार, पारिस्थितिक तन्त्र समुदाय एवं वातावरण की क्रियात्मक सक्रियता है। 

ओडम (Odum, 1963) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) पारिस्थितिकी (Ecology) की आधारभूत कार्यात्मक इकाई (Basic functional unit) है।”

Paristhitik Tantra Kya hai

Ecology in Hindi


पारिस्थितिकीय तंत्र के घटक (Components of Ecosystem)

Components of Ecosystem
  1. जैविक कारक (Abiotic factors)
    • उत्पादक
    • उपभोक्ता
    • अपघटक
  2. अजैविक कारक (Biotic factors)
    • मृदा
    • दाब
    • ताप
    • मौसम

पर्यावरणीय कारक (Environmental factors)

  1. अजैविक कारक (Abiotic factors) 
  2. जैविक कारक (Biotic factors)
    1. भौतिक (Physical)
      1. ताप (Temperature)
      2. प्रकाश (Light) 
      3. जल (Water) 
      4. आर्द्रता (Humidity) 
      5. मृदा (Soil) 
      6. प्रवाह / दबाव (Current and pressure)
    2. रासायनिक (Chemical)
      1. वायुमण्डलीय गैसें (Atmospheric gases) 
      2. pH (H+ ion concentration) 
      3. माध्यम के पोषक तत्व (Nutrients )
        1. वृहत् पोषक तत्व (Macro-nutrients )
        2. सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro-nutrients)
Environmental factors

जैविक घटक (Biological Component)- 

  1. उत्पादक (Producers), 
  2. उपभोक्ता (Consumers), 
  3. विघटक (Decomposers)। 

1. उत्पादक (Producers)-

ये इकोस्टिम के स्वजीवी जीव (हरे पादप) हैं, जो सरल अकार्बनिक यौगिकों से जटिल कार्बनिक पदार्थों के रूप में अपना भोजन बनाने में समर्थ होते हैं। उदाहरण- हरे पौधे। 

इकोसिस्टम के अन्तर्गत छोटे सूक्ष्म पादप (पादप प्लवक Phytoplankton) या जड़ वाले पेड़-पौधे तथा उथले जल में तैरने वाले पौधे सम्मिलित हैं पादप प्लवक तालाबों या पोखरों में उस गहराई तक पाये जाते हैं। जहाँ तक कि प्रकाश की किरणें पहुँच पाती हैं। ये लगभग सभी प्रकार के जल में पाये जाते हैं। विभिन्न इकोसिस्टम में पाये जाने वाले पेड़-पौधे आकृति एवं संरचना में अत्यधिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं, जैसे- घास Grass) मैदानों में, वृक्ष जंगलों में तथा तैरने वाले पादप तालाब व झीलों के पानी में पाये जाते हैं। 

2. उपभोक्ता (Consumers) - 

ये परपोषी जीव हैं, जो अपने भोजन के लिए उत्पादक पर निर्भर होते हैं। ये मुख्यतः एक इकोसिस्टम में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्राणी हैं। उपभोक्ताओं को विभिन्न वर्गों में रखा जा सकता है - 

(i) शाकाहारी प्राणी इकोसिस्टम के प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) कहलाते हैं। ये केवल वनस्पति का सेवन करते हैं। मृग या शशक वन के, चूहा बगीचों का तथा प्रोटोजोअन्स, क्रस्टेशियन्स एवं मोलस्क पोखर, तालाब व समुद्र के प्राथमिक उपभोक्ता हैं। कीट, कृन्तक प्राणी तथा जुगाली करने वाले पशु स्थलीय पर्यावरण के मुख्य शाकाहारी उपभोक्ता है। प्राथमिक उपभोक्ता, प्राथमिक मांसभक्षी प्राणियों या द्वितीयक उपभोक्ताओं के भोजन के काम आते हैं। . 

(ii) प्राथमिक मांसभक्षी प्राणी द्वितीयक उपभोक्ता (Sec ondary consumers) कहलाते हैं। ये शाकाहारी प्राणियों का भक्षण करते हैं। जैसे- कुत्ता, बिल्ली, लोमड़ी आदि। 

(iii) द्वितीयक मांसभक्षी प्राणी (Secondary consum ers) या वे प्राणी जो मांसभक्षी प्राणियों का भक्षण करते हैं, तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary consumers) कहलाते हैं, जैसे- शेर, चीता आदि। एक इकोसिस्टम के उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के सरलतम सम्बन्ध को “खाद्य शृंखला” (food chain) कहते हैं तथा उस जटिल सम्बन्ध का जिसमें कि विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता एक ही प्रकार के उत्पादक से अपना भोजन ग्रहण करते हैं“खाद्य जाल" (food web) कहते हैं। उदाहरणार्थ- लकड़बग्घा, शेर द्वारा छोड़े गये शिकार के अवशेषों को अपना भोजन बनाता है। गिद्ध भी नीचे आकार शेर द्वारा छोड़े हुए अवशेषों को अपना भोजन बनाता है। 

3. विघटक या अपघटक (Decomposers) - 

इकोसिस्टम के इस घटक के अन्तर्गत सूक्ष्म जीव आते हैं, जो मृत व क्षय होते हुए पेड़-पौधों व जन्तुओं का भक्षण करते हैं और उनको सरल कार्बनिक यौगिकों में विघटित कर देते हैं। ये सरल यौगिक वायुमण्डल में विमुक्त हो जाते है, जो उत्पादकों द्वारा खाद्य पदार्थों के संश्लेषण के उपयोग में आते हैं। 

उदाहरण- बैक्टीरिया, वाइरस 

क्लार्क (Clarke) ने इकोसिस्टम में एक अन्य प्रकार के घटक का उल्लेख किया है, जिसके अन्तर्गत परिवर्तक (Transformers) रखे गये हैं।

अजैविक घटक (Abiotic Components)-

  1. ताप (Temperature),
  2. प्रकाश (Light)
  3. जल (Water),
  4. आर्द्रता (Humidity),
  5. मृदा या मिट्टी (Soil),
  6. दाब (Pressure)।

1. ताप (Temperature) - 

सभी जीवधारियों को गर्मी सूर्य के प्रकाश के विकिरण द्वारा प्राप्त होती है और इसी ऊर्जा से सभी जैविक क्रियाएँ चलती हैं। ताप वास्तव में वातावरण की ऊष्मा को नापने का पैमाना है। विभिन्न भागों में ताप अलग-अलग होता है। इस प्रकार कुछ रेगिस्तानी क्षेत्रों में दिन में 85°C तक का उच्चतम तापमान है, पृथ्वी की सतह के धरातल से प्रत्येक 150 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 1°C के हिसाब से तापमान कम होता जाता है। तापक्रम ठण्डे समुद्रों में 3°C स्वच्छ जलों में 0°C तथा साइबेरिया के भू-भागों में 7°C से भी नीचे चला जाता है।

2. प्रकाश (Light) - 

सूर्य प्रकाश का मुख्य स्रोत है, वास्तव में प्रकाश द्वारा संश्लेषित ऊर्जा ही सभी जीवधारियों के जीवन का मूलभूत आधार हैकॉस्मिक किरणें (Cos mic rays), गामा व X-किरणों (Gama and X-rays), अल्ट्रा-वाइलेट (पराबैंगनी इन्फ्रारेड किरणें, ताप तरंगें (Heat-waves) विद्युत चुम्बकीय तरंगें आदि भी सूर्य से पृथ्वी पर निरन्तर विकिरित होती रहती हैं। 

प्रकाश के प्रभाव (Effect of Light)

  1. प्रकाश का उपापचय पर प्रभाव, 
  2. प्रकाश का जन्तुओं के रंजन और शरीर रचना पर प्रभाव, 
  3. प्रकाश का वृद्धि और परिवर्तन पर प्रभाव
  4. प्रकाश का प्रचलन पर प्रभाव, 
  5. प्रकाश का उपापचय (Metabolismपर प्रभाव, 
  6. दृष्टि (Vision) पर प्रकाश का प्रभाव। 

3. जल (Water)-

जल सीधे या परोक्ष रूप में समस्त जैव-भूमण्डल (Biosphere) के जीवधारियों के लिए आवश्यक है। पृथ्वी का लगभग 73 प्रतिशत भाग जल से ढँका हुआ है। समुद्रों के समस्त भागों और गहराइयों में कोई न कोई जीवधारियों का समूह अवश्य पाया जाता है। पृथ्वी के स्वच्छ जल के स्रोत, जिनमें पोखर, झीलें, नदियाँ आदि सम्मिलित हैं। प्रत्येक जीवधारियों को जल की आवश्यकता होती है। स्थल पर पौधों का वितरण प्रत्यक्ष रूप से जल पर निर्भर होता है विशेष प्रकार के वनस्पति एवं जन्तुओं के वितरण में भी अप्रत्यक्ष रूप से जल की उपलब्धता का महत्व होता है।

जल के प्रभाव (Effect of Water) (i) जल जीवधारियों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल की कमी के कारण जन्तुओं और पौधों में जल संरक्षण (Water-conservation) के लिए अनेकों अनुकूलन पाये जाती है। (ii) कुछ स्थलीय जन्तु पर्याप्त जल में ही प्रजनन परिवर्धन और वृद्धि करते हैं। 

4. आर्द्रता (Humidity)- 

यह दो प्रकार से दर्शाया जाता है 

1. सम्पूर्ण आर्द्रता (Absolute humidity)- एक निश्चित स्थान पर वायु की प्रति इकाई में उपस्थित जल की मात्रा का भार सम्पूर्ण आर्द्रता (Absolute humidity) कहलाता है। 

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative humidity) - सापेक्ष आर्द्रता को समान ताप और दाब पर संतृप्त बिन्दु की आर्द्रता की तुलना में किसी स्थान या मौसम में, वायु में जल वाष्प की वास्तविक प्रतिशत मात्रा दर्शाती है

5. मृदा या मिट्टी (Soil) - 

साधारणतः पृथ्वी की ऊपरी सतह, जिसमें अधिकांश वनस्पतियाँ और जन्तु स्थायी रूप से निवास करते हैं उसे मृदा या मिट्टी कहते हैं। लेकिन ऊपरी परत के अतिरिक्त मिट्टी के निर्माण में मौसम कार्बनिक पदार्थों और जीवधारियों का भी योगदान है।

Various areas of soil profile of a tropical forest


6. दाब (Pressure) – 

वायुमण्डल में बढ़ती हुई ऊँचाइयों के साथ-साथ वायुमण्डलीय दाब घटता है और तल में बढ़ती हुई गहइराई के कारण दाब बढ़ता है। वायु दाब परिवर्तनों के प्रभाव- ऊँचाई के साथ दाब में होने वाली कमियाँ होती है। पौधों तथा असमपाती प्राणियों का पर्वतों पर वितरण कम दाब से नहीं, बल्कि अन्य प्रतिकूल कारकों द्वारा सीमित है।

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