पुष्पीय पादपो में लैंगिक जनन-पारिभाषिक शब्दावली (Sexual Reproduction in Floral Plant-Terminology)

पुष्पीय पादपो में लैंगिक जनन-पारिभाषिक शब्दावली (Sexual Reproduction in Floral Plant-Terminology)

नमस्कार, आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस लेख में हम पुष्पीय पादपो में लैंगिक जनन-पारिभाषिक शब्दावली (Sexual Reproduction in Floral Plant-Terminology) के बारे में जानने वाले हैं। किसी विषय विशेष से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषा सहित सूची को पारिभाषिक शब्दावली कहा जाता है। किसी भी विषय को पढ़ने से पहले उसके पारिभाषिक शब्दावली के बारे में हमें जरूर जान लेना चाहिए ।

Reproduction in Floral Plant-Terminology

Pushpiya Padpo me Laigik Janan Paribhashik Shabdavali

1.अन्त:चोल(Intine)-परागकण की आंतरिक सतत पतली भित्ति जो पेंटासेल्युलोज की बनी होती है।

2.मध्यफलभित्ति(Mesocarp)-त्रिस्तरीय पेरीकार्प या फल भित्ति के बीज का स्तर।

3.मीजोगैमी(Mesogamy)-परागनलिका का अध्यावरण से होते हुए भ्रूणकोष में प्रवेश।

4.बीजांडव्दार(Micropyle)-बीजांड के अध्यावरण में स्थित वह छिद्र जिससे प्राय: परागनलिका बीजांड में प्रवेश करती है व जो बीज में भी वैसा ही बना होता है।

5.एकबीजाणुक(Monosporic)-ऐसा भ्रूण कोष जिसके निमार्ण से केवल एकगुरुबीजाणुक भाग लेता है।

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6.उभयलिंगाश्रयी(Monoccious)-नर व मादा दोंनो प्रकार के एकलिंगी पुष्पों को धारण करने वाला पौधा।

7.बीजांडकाय(Nucellus)-बीजांड के बीचो -बीच स्थिर भाग जिसमें भ्रूण कोष विकसित होता है।

8.अणडाशय(Ovary)-पुष्प के मादा जनन भाग अणडप का निचला फैला हुआ भाग जिसमे बीजांड स्थिर होता है ,जो निषेचन के बाद फल में बदल जाता है।

9.बीजांड(Ovary)-अंडाशय में स्थिर गुरुबीजाणुधानी जिसमें अर्धसूत्री विभाजन व्दारा भ्रूण कोष का निर्माण होता है

10.अनिषेकफलन(Parthenocarpy)-बिना निषेचन के फलों का विकास ,ऐसे फल बीज रहित होते हैं व अनिषेक जनन कहलाते हैं।

11.फलभित्ति(Pericarp)-परिपक्व अंडाशय की भित्ति जो निषेचनोपरांत फलभित्ति में बदल जाती है।

12.बीजांडासन(Placenta)-अंडाशय का वह स्थान जहाँ बीजांड लगे होते हैं।

13.बीजांडन्यास(Placentation)-बीजांडासन पर बीजांडो के लगे होने के क्रम अर्थात विन्यास का तरीका।

14.त्रिकर्सलयन(Tripalfusion)-2 ध्रुवीय केन्द्र को के एक नर युग्मक के साथ संलयन से त्रिगुणित भ्रूणपोष कोशिका बनना।

15.परागण (Pollination)-परागकणों के एक पुष्प के परागकोष से उसी पुष्प अथवा उसी प्रजाति के किसी अन्य पुष्पों के वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण की प्रक्रिया।

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16.सिनगैमी(Syngamy)-नर व मादा युग्मकों का संलयन \निषेचन

17.परागकण(Pollen)-परागकोष में बने अगुणित लघुबीजाणु जो नर युग्मकोदभिद का प्रतिनिधित्व करते हैं।

18.बहुभ्रूणता(Polyembryony)-बीज में एक से अधिक भ्रूणों के पास जाने की अवस्था।

19.बरुथीकास्क्यूटेलम(Scutellum)-एकबीजपत्रियों का एकमात्र बीजपत्र।

20.परिपक्वभ्रूणकोष(MatureEmbryoSac)-परिपक्व भ्रूणकोष में 7 कोशिकीय और 8 केन्दीकीय होते है।

21.बीज(Seed)-परिपक्व बीजांड जिसमे भ्रूण स्थित होता है।

22.साइफोनोगैमी(Siphonogamy)-परागनलिका की मदद से नरयुग्मक को मादा युग्मक के पास पहुचाने की क्रिया।

23.पुंकेसर(Stamen)-पुष्प के नर लैंगिक भाग की इकाई जो पुतंतु व परागकोष से बनी हो।

24.टेपीटम(Tapetum)-परागकोष भित्ति का सबसे भीतरी पोषक स्तर जो लघुबीजाणु मातृकोशिका व लघुबीजाणुओं को पोषण प्रदान करता है।25.टेस्टा(Testa)-बीज का बाह्य कवच जो बीजाण्ड के बाहरी अध्यावरण से विकसित होता है।

26.पुष्पासन(Thalamus)-पुष्प वृन्त का ऊपरी फूला हुआ भाग जिस पर पुष्प की चारों भूमियाँ(Whoris) लगी होती है।

27.जीवनक्षमता(Viability)- परागकण अथवा बीजों की अंकुरण करने में सक्षम होने की क्षमता ।

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28.परपरागण(Xenogamy)-वह परागण जिसमें परागकण एक पुष्प के परागकोष से उसी प्रजाति के किसी अन्य पौधे पर स्थित पुष्प के वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरित होते हैं।

29.युग्मनज(Zygote)-लैंगिक जनन में नर व मादा युग्मक के संलयन से बनी द्विगुणित कोशिका।

30.भ्रूणपोषी(Albuminous)-ऐसे परिपक्व बीज जिनमें भ्रूणपोष बना रहता है। जैसे-नारियल,मक्का।

31.एल्यूरॉनपरत(Aleuronelayer)-एकबीजपत्री बीजों में भ्रूणपोष के चारों ओर पायी जाने वाली परत जिसकी कोशिकाओं में एल्यूरॉन होती है।

32.पीढ़ीएकान्तरण(AlternationofGeneration)-पौधों का प्रारूपिक जीवन-चक्र जिसमें द्विगुणित बीजाणुद्भिद पीढ़ी अगुणित युग्मकोद्भिद पीढ़ी से एकान्तरित होती है।

33.ऑटोगैमी(Autogamy)-स्वपरागण का एक प्रकार जिसमें किसी पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरित होते हैं।

34.एकीन(Achene)-एकबीज वाले अस्फुट्नशील सरल फल।

35.कृत्रिमसंकरण(Artificialhybridization)-पादप प्रजनन की ए तकनीक जिसमें दो जनक पौधों के बीच मनुष्य द्वारा परागण कर संकरण कराया जाता है।36.प्रतिमुखकोशिकाएँ(Antipodalcells)-भ्रूणकोष में निभागीय सिरे (बीजाण्डद्वार के विपरीत सिरे) की ओर स्थित कोशिकाएँ जो भ्रूण को पोषण प्रदान करने के बाद नष्ट हो जाती है।

37.परागकोष(Anther)-पुंकेसर का वह भाग जिसमें परागकणों का निर्माण होता है।

38.मुक्ताण्डपी(Apocarpous)-वह बहुअण्डपी अवस्था जिसमें प्रत्येक अण्डप एक-दूसरेसे पृथक होता है

39.असंगजनन(Apomixis)-बिना युग्मक संलयन/निषेचन के बीज का निर्माण।

40.एलर्जन(Allergen)-एलर्जी उत्पन्न करने वाले कारक जैसे परागकण।

41.पुष्पीयपौधे(Angiosperm)-पुष्पीय पौधे जिनमें बीज फल के अन्दर स्थित होता है।42.अण्डप(Carpel)-पुष्प का मादा जनन भाग जो वर्तिकाग्र व अण्डाशय से मिलकर बना होता है।

43.उन्मीलपरागणी(Chasmogamous)-सामान्य पुष्प जिन के परागकोष व वर्तिकाग्र अनावृत (खुले) होते हैं।

44.अनुन्मील्यपरागणी(Cleistogamous)-ऐसे पुष्प जो कभी नहीं खुलते जैसे को मेलाइना।

45.सहविकास(Coevolution)-ऐसा संयुक्त विकास जिसमें एक प्रजाति दूसरी पर चयनात्मक बल लगाती है।

46.प्रांकुरचोल(Coleoptile)- एकबीजपत्री भ्रूण में एकबीजपत्री भ्रूण प्रांकुर व आद्यपत्तियों का सुरक्षात्मक आवरण

47.मूलांकरचोल(Coleorhiza)-एकबीजपत्री भ्रूण में मूलांकुर का सुरक्षात्मक आवरण।

48.बीजपत्र(Cotyledon)-पुष्पीय पौधों के भ्रूण के बीजपत्र,जो अंकुरण व बढ़ते नवांकुर को प्रकाश संश्लेषण प्रारम्भ होने तक पोषण उपलब्ध कराते हैं।49.एकलिंगाश्रयी(Dioecious)-एकलिंगी पुष्प धारण करने वाले नर अथवा मादा पादप डाइथिकस(Dithecous)-द्विपालित परागकोष जिसकी प्रत्येक पालि में दो थीका होते हैं।

51.प्रसुप्ति(Dormancy)-बीजों की वह अवस्था जिसमें वृद्धि रूक जाती है व अनुकूल परिस्थितियाँ होने पर भी अंकुरण नहीं होता है।

52.द्विनिषेचन(Doublefertilization)-पुष्पीय पादपों का विशिष्ट लक्षण जिसमें भ्रूणकोष में सिनगैमी व त्रिकसंलयन के रूप में दो बार संलयन होता है।

53.भ्रूण(Embryo)-युग्मनज के विभाजन में बनी मुक्तजीवी जीवन से पहले की बहुकोशिकीय अवस्था।

54.भ्रूणकोष(Embryosac)-पुष्पीय पौधों का मादा युग्मकोद्भिद।

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55.भ्रूणपोष(Endosperm)-पुष्पीय पौधों का त्रिगुणित पोषक ऊतक जो त्रिकसंलयन के फलस्वरूप बनता है।

56.भ्रूणीयअक्ष(Embryonalaxis)-बीज का भ्रूण जिसमें हाइपोकोटिल,एपीकॉटिल के साथ मूलांकर व प्रांकुर शामिल होते हैं व जो बीजपत्र से जुड़ा होता है।

57.विपुंसन(Emasculation)-पादप प्रजनन प्रक्रिया में मादा जनक पौधे के द्विलिंगी पुष्प से कलिका अवस्था में ही परागकोषों को काटकर अलग कर देना ताकि वर्तिकाग्र पर वांछित प्रकार के परागकण डाले जा सके।

58.बाह्यचोल(Exine)-परागकण की स्पोरोपोलेनिन से बनी बाहरी मोटी भित्ति जिसमें जनन छिद्र होते हैं।

59.भ्रूणविकास(Embryogeny)-युग्मनज से भ्रूण का विकास।

60.निषेचन(Fertilization)-नर व मादा युग्मक का संलयन जिसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्मनज बनता है।

61.पुतंतु(Filament)–पुंकेसर का निचला तंतुवत भाग जिस पर परागकोष लगा रहता है।

62.पुष्प(Flower)-पुष्पीय पौधों में लैंगिक जनन सम्पन्न कर ने हेतु बना प्ररोह का एकरूपान्तरण।

63.फल(Fruit)-परिपक्व अण्डाशय जिसमें प्राय: बीज होते हैं।

64.युग्मक(Gamete)-अगुणित लिंग कोशिका जैसे अण्डकोशिका।65.युग्मकजनन(Gametogenesis)–नर या मादा युग्मकों का निर्माण व विकास।

66.जननछिद्र(Germpore)-परागकण की बाह्य भित्ति एक्जाइन के पतले क्षेत्र जहाँ स्पोरोपोलेनिन नहीं होता और जिनसे परागनलिका निकलती है।

67.जननकोशिका(Generativecell)-द्विकोशिकीय परागकण की छोटी कोशिका जो विभाजित होकर दो नरयुग्मक बनाती है।

68.जीटोनोगैमी(Geitonogamy)-परागकणों का एक पुष्प के परागकोष से उसी पौधे पर स्थित किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र तक स्थानान्तरण (स्वपरागण)।

69.विषमबीजाणुक(Heterosporous)-बीजीय पादप जो दो प्रकार के बीजाणु (लुघबीजाणुवगुरुबीजाणु)बनातेहैं।जैसे जिम्नोस्पर्म व एंजियोस्पर्म।

70.असंगततायाअनिषेच्यता(Incompatibility)-असंगत या अन्तःप्रजनन रोकने की एक युक्ति जिसमें असंगत परागकण का वर्तिकाग्र पर अंकुरण या परागनलिका की वृद्धि अवरोधित हो जाती है।


इस लेख में हमने पुष्पीय पादपो में लैंगिक जनन-पारिभाषिक शब्दावली (Sexual Reproduction in Floral Plant-Terminology) के बारे में जाना। 

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