Showing posts with label Environment. Show all posts
Showing posts with label Environment. Show all posts

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

जीवन की कल्पना श्वसन के बिना नहीं हो सकती है। श्वसन में मनुष्य ऑक्सीजन ग्रहण करता है यह ऑक्सीजन उसे पेड़ पौधों से प्राप्त होता है। अनेक प्रकार के पेड़ पौधे एक स्थान पर होते हैं तो उसे वन कहते हैं। वनों में कई प्रकार के वन होते  हैं। ऊष्ण कटिबंध वन उनमे से एक प्रकार है। जिसके बारे में हम इस पोस्ट में जानने वाले हैं।

ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests)

ऐसे वन उष्ण एवं गर्म जलवायु वाले भागों में पाये जाते हैं। यहाँ पर अत्यंत घने, ऊँचे, वृक्ष, झाड़ियाँ एवं काष्ठीय आरोही या लाइनस पौधे उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों, कटीले वृक्षों वाले जंगलों एवं शुष्क क्षेत्रों में कहीं-कहीं पाये जाते हैं। इस प्रकार उष्ण कटिबंधीय वन दो प्रकार के होते हैं 

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests), 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests) 

इन्हें भी जानें- जैव भू-रासायनिक चक्र (BIO-GEOCHEMICAL CYCLE)

(I) उष्ण कटिबंधीय आर्द्र वन (Tropical moist forests):- ऐसे बनों में वर्षा अधिक होने के कारण आर्द्रता (Moisture) काफी अधिक होती हैआर्द्रता के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं--- 

1. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबाहार वन (Tropical wet evergreen forests):- 250 सेमी वार्षिक वर्षा से अधिक वर्षा दर वाले भारतीय क्षेत्रों में इस प्रकार के वन स्थित हैं। इस प्रकार के वन भारत के दक्षिणी हिस्सों मुख्यतः महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ भाग तथा उपरी हिस्सों मुख्यत : पश्चिम बंगाल, असम एवं उड़ीसा के कुछ भागों में पाये जाते हैं। इन वनों के वृक्षों की ऊँचाई 40-60 मीटर से अधिक होती है। इस वन के वृक्ष सदाबहार प्रवृत्ति के तथा चौड़ी पत्ती वाले होते हैं। यहाँ काष्ठीय लता तथा उपरिरोही (Epiphytes) की बहुतायत होती है। 

उदाहरण- साल या शोरिया (Shorea), डिप्टेरोकार्पस (Dipterocarpus), आम (Mangifera), मेसुआ (Mesia), होपिया (Hopea), बाँस, इक्जोरा (Ixora), टायलोफोरा (Tylophora) आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय नम अर्द्ध-सदाबहार वन (Tropi cal moist semi-evergreen forests):- इन वनों का विस्तार 200-250 सेमी तक वार्षिक वर्षा स्तर वाले क्षेत्रों में मिलता है। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर, बंगाल एवं पूर्वी उड़ीसा तथा आसाम में एवं अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में हैं। इन वनों में कुछ पर्णपाती वृक्षों की जातियाँ भी पायी जाती हैं, इसलिए इन्हें अर्द्ध सदाबहार वन कहते हैं। इन वनों में पाये जाने वाले कुछ पौधे पर्णपाती तो होते हैं, लेकिन पत्ती रहित अवस्था अल्पकालिक होती है। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया पैनीकुलाटा (Terminalia paniculata) साल (Shorea robhusta), कचनार (Bauhinal), आम (Mengiphera); मैलोटस (Mallotus), टिनोस्पोरा (Tinospora), एण्ड्रोपोगॉन (Andropogon), आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन (Tropical most deciduous forests):- औसतन 100 से 200 सेमी वर्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में इस प्रकार के वन मिलते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार अण्डमान द्वीप समूह, मध्य प्रदेश के जबलपुर, मण्डला, छत्तीसगढ़ के रायपुर, बस्तरगुजरात के डाँग, महाराष्ट्र के थाने, रत्नागिरी, कर्नाटक के केनरा, बंगलौर एवं पश्चिमी क्षेत्र, तमिलनाडु के कोयम्बटूर तथा निलंबुर व चापनपाड़ आदि क्षेत्रों में पाये जाते हैं। जाते हैंये वन उत्तरप्रदेश, झारखंड, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगालआसाम, हिमांचल प्रदेश आदि राज्यों के कुछ भागों में पाये जाते हैंदक्षिणी आर्द्र पर्णपाती वनों की मुख्य वृक्ष सागौन (Teak) है, जबकि उत्तरी आई पर्णपाती वन की प्रमुख वृक्ष साल है। सागौन वन में कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र तथा मध्य प्रदेश के कुछ वन क्षेत्रों में डायोस्पायरॉस (Dlospyros)जिजिफस (Zizyphus)कैसिया (Cas sia)स्टिरियोस्पर्मम (Stereospermum), ऐल्बिजिया (Albizzia), सायजिजियम (Syzygium), सेड्रेला (Cedrella) साथ-साथ मिश्रित रहते हैं।

पढ़ें- जंतु विज्ञान की शाखाएं (Branches of Zoology)

समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन(Littoral and Swamp Forest):- समुद्रतटीय एवं दलदलीय वन क्षेत्र भारत के 67.00 वर्ग किलोमीटर में फैला के वन समुद्र तट पर उदाहरणतः पूर्वी व पश्चिमी समुद्र तट तथा बड़ी-बड़ी नदियों, जैसे- गंगा, महानदी, गोदावरी, कृष्णा व कावेरी के डेल्टाओं के ज्वारीय अनूपों में पाये जाते हैं। ये क्षेत्र नरम गाद के बने होते हैं, जिनमें राइजोफोरा (Rhizophora), सोन्नैरेशिया (Sonneratia) इत्यादि के मैंग्रोव वन उगते हैं। इस जलाक्रान्त पारिस्थितियों में वानस्पतियों के क्षय से दुर्गन्ध आने लगती है। अपेक्षाकृत अन्तस्थलीय क्षेत्रों में जहाँ भूमि पर ज्वारीय जल आता रहता है, ज्वारीय वन (Tidal forests) पाये जाते हैं। यहाँ हेरिशियेरा (Haritiera), वेस्पेशिया (Thespesia), वाड़ (Palm) विभिन्न जातियाँ तथा अन्य क्षूप उगते हैं। 

(II) उष्ण कटिबंधीय शुष्क वन (Tropical dry forests):- ऐसे वनों में औसत वर्षा अत्यंत कम होती है, जिसके कारण यहाँ का तापमान काफी अधिक हो जाता है। पौधों के प्रकृति के आधार पर ये वन तीन प्रकार के होते हैं 

1. उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन (Tropical dry deciduous forests):- औसत 100 सेमी वार्षिक वर्षा वाले भारतीय क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन मिलते हैं तथा समस्त भारतवर्ष के वन क्षेत्र के 1/3 भाग का प्रतिनिधित्व करते हैं। भौगोलिक दृष्टि से इन वनों का विस्तार पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश तथा भारतीय प्रायद्वीप के अधिकांश भागों में हैं। 

उदाहरण- टर्मिनेलिया टोमेन्टोसा (Terminalia tomentosa), इमली (Temarindus indica), साल (Shorea robhnusia), बेल (Aegle marmelos), बेर आदि। 

2. उष्ण कटिबंधीय कटीले वन (Tropical thorn forests):- ये वन 25-70 सेमी वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में मिलते हैं। वर्षा की कमी के कारण इन प्रदेशों में पर्णपाती वनों के स्थान पर कटीले वन पाये जाते हैं। 

उदाहरण- अकेशिया निलोटिका, अ. सुन्द्रा, प्रोसेपिस सिनेरिया, बेर (Zicyphus), नागफनी (Opum tia) बारलेरिया, यूफोर्बिया की प्रजातियाँ हिन्दरोपोगॉन लेक्टाना आदि। 

3. उष्ण कटिबंधीय शुष्क सदाबहार वन (Tropi. cal thorn evergreen forests):- इस प्रकार के वन क्षेत्रों में 75-100 सेमी औसत वार्षिक वर्षा होती है। इस प्रकार के वन तमिलनाडु के पूर्वी भाग में, आंध्रप्रदेश तथा कर्नाटक के समुद्री किनारों में पाये जाते हैं। इस क्षेत्र के वनों में वृक्षों की पत्तियाँ चर्मिल (Coriaceous) होती है। इस क्षेत्र में बाँस का अभाव, लेकिन घास पाया जाता है। वृक्ष की ऊँचाई 9-15 मीटर तक होती है। सबसे ऊचे वृक्षों में स्ट्रिक्नॉस नक्स वोमिका (Strychnos mcx vomica), सैम्पिडस इमार्जिनेटस (Spindus emarginatus) में कैरिसा कैरान्डास (carissa carandas), इक्जोरा पार्विफ्लोरा (xara parviflora) आदि।

इस पोस्ट में हमने ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) के बारे में जाना। जो वनों के एक प्रकार में से एक है।

उम्मीद करता हूँ कि ऊष्ण कटिबंधीय वन (Tropical forests) का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह पोस्ट पसंद आया हो तो इस पोस्ट को शेयर जरुर करें। 

रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi)

रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plants in Hindi)

नमस्कार, answerduniya.com में आपका स्वागत है। इस लेख में हम प्रकृति में पाए जाने विभिन्न रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi) के बारे में जानने वाले हैं। भारत वन सम्पदा से समृद्ध देश है। भारत के वनों में बहुत ही उपयोगी पेड़ पौधे पाए जाते हैं। इस लेख में हम ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi) के बारे में जानेंगे। जिससे जुड़े प्रश्न अनेक परीक्षाओं में पूछे जाते हैं। प्राकृतिक रंग वनस्पति/ पेड़- पौधों से प्राप्त किया जाता है। ऐसे पौधे जिससे रंग प्राप्त किये जाते है ऐसे पौधे को रंग उत्पादक पौधे कहते है। रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi) के बारे में जानने के लिए इस लेख को पूरा अवश्य पढ़ें।

Color Producing Plant in Hindi


Rang Utpadak Paudhe

पौधे के विभिन्न भागों में पाये जाने वाले कुछ प्राकृतिक रंग-

(A) काष्ठ से प्राप्त होने वाले रंग

1.हिमैटाक्सीलीन (Haematoxylin)- हिमैटाक्सीलॉन कम्पेचिएनम  नामक लेग्यूमिनस पौधे के अन्तः काष्ठ से प्राप्त किया जाता है और कोशिकाओं के केन्द्रक के अलावा सिल्क, ऊन और कॉटन के रंगने के काम आता है।

2.सैण्टेलीन (Santalin)- यह रंग लेग्यूमिनोसी कुल के टेरोकर्पन सैण्टेलिन नामक पौधे  के काष्ठ और जड़ से प्राप्त होता है तथा अफ्रीका के लोगों द्वारा त्वचा और कपड़ा रंगने के काम आता है।

3.कत्था (Catechu)-यह लेग्यूमिनोसी कुल के एकैसिया कटेचू नामक पौधे के अन्तः काष्ठ सी प्राप्त किया जाता है, यह कागज रंगने के काम आता है। यह पान के साथ भी खाया जाता है।

जानें- पर्यावरण के महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरी [2022]

(B) पत्तियों से प्राप्त होने वाले रंग

1.नील (Indigo)- यह रंग लेग्यूमिनोसी कुल के इण्डिगोफेरा टिन्क्टोरिया और इण्डिगोफेरा अरेका की पत्तियों से प्राप्त होता है और सूती रेयॉन तथा ऊनी कपड़ों के रंगने के काम आता है। यह इंक, पेण्ट इत्यादि में भी प्रयोग किया जाता है। इस पौधे की खेती किया जाता है।

2.वोड (Woad)- यह रंग इसेटिस टिन्क्टोरिया की पत्तियों से प्राप्त किया जाता है, और सूती रेयॉन तथा ऊनी कपड़ों के रंगने के काम आता है। यह इंक, पेण्ट इत्यादि में भी प्रयोग किया जाता है।

3.मेंहदी (Henna)- यह लाइथ्रेसी कुल के पौधे लाउसोनिया एल्बा की पत्तियों से प्राप्त लिया जाता है। यह बच्चों तथा औरतों द्वारा हाथ, पैर और अंगुलियों के रंगने के काम आता है।

(C)जड़ या कन्द से प्राप्त होने वाले पौधे

1.गुलाब मदार (Rose madder)- रुबिया टिन्क्टोरियम और रुबिया कार्डिफोलिआ की जड़ों से एक प्रकार का लाल रंग प्राप्त होता है जो कपड़ा रंगने काम आता है।

2. इंडिया मलबेरी( Indian mulberry)- रुबिएसी कुल के मोरिण्डा साइट्रीफोलिया के जड़ों की छाल से एक प्रकार का पीला रंग होता है, जो कपड़ा तथा कागज रंगने के काम आता है इसे ग्रेट मोरिण्डा, नोनी, बीच मलबेरी चीस फल के नाम से जाना जाता है।

3.हल्दी (Curcumin)- यह जिन्जीबरेसी कुल की कुरकुमा लोन्गा पौधे के कन्द से प्राप्त किया जाता है तथा खाने के सामानों तथा सभी कपड़ा रंगने के काम आता है।

पढ़ें- वन पारिस्थितिक तंत्र।

(D)कुछ अन्य महत्वपूर्ण से प्राप्त होने वाले रंग

1. कुसुम (Carthamus tinctorius)- कुसुम के पुष्प से लाल रंग प्राप्त किया जाता है और केक आदि रंगने के काम आता है।

2.केसर (Crocus sativus)- केशर के पुष्प से रंग प्राप्त किया जाता है, जो कपड़ा, बिस्कुट, चावल तथा सब्जियों को रंगीन तथा स्वादिष्ट बनाने के काम आता है।

3.टर्मिनेलिया चेबुला- इस पौधे  के फल से पीला तथा काला रंग प्राप्त किया जाता है।

4.बिक्सा ऑरेलाना- इस पौधे  के बीज से चमकीला पीला रंग प्राप्त होता है, जो मक्खन, घी आदि को रंगने के काम आता है।

5.लाइकेन (Laiken)- प्रेमेलिया एम्फोलोडस से कपड़ा रंगने तथा लाइकेन रोसेला से लिटमस रंगने का रंग प्राप्त किया जाता है।

इस लेख में हमने कुछ महत्वपूर्ण रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi) के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में महत्वपूर्ण रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi) से जुड़े सवाल पूछे जाते रहे हैं।

आशा करता हूँ कि महत्वपूर्ण रंग उत्पादक पौधे (Color Producing Plant in Hindi) का यह लेख आपके लिये लाभकारी साबित होगा, यदि आपको यह लेख पसंद आये तो इस लेख को शेयर अवश्य करें।


रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? इसके प्रमुख स्रोत (What is radioactive pollution? its main source)

रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है ? इसके प्रमुख स्रोतों का संक्षिप्त विवरण दीजिये।


नमस्कार दोस्तों answerduniya.com में आपका स्वागत है आज के इस आर्टिकल में हम रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? रेडियोधर्मी प्रदूषण के स्रोत क्या हैं इसके बारे में जानेंगे। रेडियोधर्मी प्रदूषण रेडियोएक्टिव किरणों के कारण होता है। भविष्य में रेडियोधर्मी प्रदूषण के बहुत अधिक बढ़ने की संभावना है इसलिए रेडियोधर्मी प्रदुषण रोकने के कारगर उपाय किये जाने जरुरी है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी रेडियोधर्मी प्रदूषण से सम्बंधित सवाल पूछे जाते हैं । रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है?जानने के लिए इस आर्टिकल को पूरा जरुर पढ़ें।

Radioactive Pollution


रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radioactive Pollution) 

रेडियोऐक्टिव प्रदूषण वह है, जो रेडियोऐक्टिव किरणों (radioactive rays) से होता है। ये किरणें एक विशेष प्रकार की किरणें होती हैं, जो रेडियोऐक्टिव पदार्थों से निकलती हैं। ये किरणें मुख्यतः तीन प्रकार की होती हैं- अल्फा (α), बीटा (β), गामा(γ) । इन रेडियोऐक्टिव पदार्थों का उपयोग आजकल परमाणु ऊर्जा को प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है। शान्ति काल में इस ऊर्जा से विद्युत् का उत्पादन किया जाता है, जबकि युद्धकाल में इसका उपयोग विनाश के लिए बमों के रूप में किया जाता है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत (Sources of Radioactive Pollution)- 

(1) चिकित्सा में उपयोग होने वाली किरणों से प्राप्त प्रदूषण-आजकल चिकित्सा में भी रेडियोऐक्टिव किरणों का उपयोग विभिन्न बीमारियों को ठीक करने के लिए किया जा रहा है । ये किरणें जीव शरीर को प्रभावित कर रही हैं। जैसे- X- किरणें (x-rays ) । 

आजकल PETS (Position Emission Tomographic Scanning), लेसर (LASER = Light Amplified by Stimulated Emission of Radiation), सोनोग्राफी (Sonography) इत्यादि चिकित्सकीय युक्तियों का प्रयोग रोगों के उपचार में किया जा रहा है। इन सभी युक्तियों में कुछ तरंगों को शरीर में भेजा जाता है। हालाँकि ये तरंगें उपचार के लिए प्रयोग की जाती हैं, लेकिन ये शरीर के ऊतकों एवं कोशिकाओं को प्रभावित भी करती हैं और कभी-कभी कैंसर जैसे खतरनाक बीमारी भी पैदा करती हैं ।

(2) नाभिकीय शस्त्रों से प्रदूषण- आजकल नाभिकीय या परमाणु बमों द्वारा परमाणु ऊर्जा को पैदा करने के लिए यूरेनियम-235, प्लूटोनियम-239, स्ट्रान्शियम-90, सीजियम-137, आयोडीन- 131, इत्यादि रेडियोऐक्टिव पदार्थों का प्रयोग किया जा रहा है, जो रेडियोऐक्टिव विकिरण पैदा कर प्रदूषण फैला रहे हैं । 

(3) परमाणु भट्ठियाँ और ईंधन- परमाणु भट्ठियों में उपयोग किये जाने वाले पदार्थों से प्राप्त विकिरण प्रदूषण पैदा करता है। इसके अलावा इनके अपशिष्टों को भी जल स्रोतों एवं वातावरण में मिलाया जा रहा है, जिनसे निकला विकिरण रेडियोऐक्टिव प्रदूषण पैदा कर रहा है।

(4) शोधकार्यों में उपयोग में लाये गये रेडियोऐक्टिव पदार्थों से प्राप्त विकिरण भी प्रदूषण पैदा करते हैं।

(5) प्राकृतिक विकिरण– अन्तरिक्ष किरणों (Cosmic rays), सूर्य का विकिरण एवं पृथ्वी में स्थित न्यूक्लियोइड्स, जैसे— रेडियम-224, यूरेनियम- 235, यूरेनियम- 233, थोरियम- 232, रेडॉन 22, कार्बन-14 और पोटैशियम- 40 भी रेडियो विकिरण छोड़ते हैं, जिनसे रेडियोऐक्टिव प्रदूषण पैदा होता है।

(6) अन्य स्रोत– आजकल परमाणु बिजली घरों में रेडियोऐक्टिव पदार्थों का उपयोग हो रहा है, जिनसे निकले अपशिष्टों के विकिरण प्रदूषण पैदा कर रहे हैं।


इस आर्टिकल में हमने रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? रेडियोधर्मी प्रदूषण के प्रमुख स्रोत क्या हैं के बारे में जाना। रेडियोधर्मी प्रदुषण रेडियोएक्टिव पदार्थों से निकलने वाले रेडियो एक्टिव किरणों के कारण होता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? से जुड़े जुड़े प्रश्न पूछे जाते रहे हैं।

उम्मीद करता हूँ कि रेडियोधर्मी प्रदूषण क्या है? का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगी अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो आर्टिकल को शेयर जरुर करें।  

सामान्य विज्ञान के प्रश्न-उत्तर | General Science Questions and Answers in Hindi

हमारे इर्दगिर्द जो घटित हो रहा है, उसके बारे में कि वह क्यों और कैसे होता है, विज्ञान हमें स्पष्ट एवं सुव्यवस्थित जानकारी देता है। क्यों और कैसे जैसे प्रश्नों का उत्तर जानने के बाद कभी-कभी तो आश्चर्य होता है, क्योंकि तब हमें इस बात का अंदाजा नहीं होता कि छोटी-सी दिखने वाली घटना के पीछे कितनी लंबी प्रक्रिया काम करती है। आगे दी जा रही जानकारी आपको जरूर हैरानी में डालेगी, ऐसा हमें विश्वास है।

विज्ञान के सामान्य प्रश्नों के उत्तर science questions in Hindi

निचे विज्ञान के सामान्य प्रश्नों के उत्तर है ऐसे सामान्य प्रश्नों के उत्तर कभी -कभी हमें नहीं पता होते तो आइये पढ़ते है कुछ ऐसे ही सामान्य प्रश्नों के उत्तर -

science questions in hindi

general science questions and answers in Hindi 

01-चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार कम क्यों हो जाता है?

उत्तर :- पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है। इस कार्य के लिए पृथ्वी। कुछ बल लगाना पड़ता है। यही बल वस्तु का भार कहलाता है। जब कोई भी वस्तु चंद्रमा पर होती है, तो उसका भार चंद्रमा के आकर्षण बल पर निर्भर करता है। चंद्रमा का आकर्षण बल पृथ्वी के आकर्षण बल का छठा भाग होता है। यही कारण है कि चंद्रमा पर किसी वस्तु का भार कम अर्थात पृथ्वी पर वस्तु के भार का 1/6 भाग हो जाता है।

02-चलती बस से उतरते समय तुम आगे की ओर क्यों गिर पड़ते हो?

उत्तर :- जब तुम बस में बैठकर यात्रा कर रहे होते हो, तो तुम्हारा शरीर भी बस की गति के साथ-साथ गति-अवस्था में रहता है। बस के रुकने पर बस से उतरते समय जब तुम अपने पांव नीचे जमीन पर रखते हो, तो तुम्हारा निचला भाग विराम अवस्था में आ जाता है अर्थात स्थिर हो जाता है। दूसरी ओर, तुम्हारे शरीर का ऊपरी भाग गति-अवस्था में ही बना रहता है। बस, इसीलिए तुम आगे की ओर गिर पड़ते हो।

03-वृक्ष की शाखाओं को हिलाने पर फल जमीन पर ही गिरते हैं, ऊपर क्यों नहीं जाते?

उत्तर :- पृथ्वी प्रत्येक वस्तु को अपनी ओर खींचती है। पृथ्वी के इस आकर्षण बल का नाम गुरुत्वाकर्षण भी है। चंद्रमा की तुलना में पृथ्वी का आकर्षण बल छह गुना अधिक होता है।जब तुम वृक्ष की शाखाओं को हिलाते हो, तो फल शाखाओं से टूटकर अलग हो जाते हैं। इन फलों को पृथ्वी गुरुत्वाकर्षण के कारण अपनी ओर खींच लेती है। ये फल ऊपर इसलिए नहीं जा पाते क्योंकि चंद्रमा का आकर्षण - बल पृथ्वी से कम है तथा वह इसे प्रभावित नहीं कर पाता ।

04-खाली ट्रक की तुलना में सामान से भरे हुए ट्रक को रोकना कठिन क्यों?

उत्तर :- संसार की प्रत्येक वस्तु अवस्था परिवर्तन (विराम से गति तथा गति से विराम में आना) का विरोध करती है, इस अवस्था परिवर्तन के विरोध करने के गुण को जड़त्व कहा जाता है। खाली ट्रक की तुलना में सामान से भरे हुए ट्रक का जड़त्व अधिक होता में है । किसी भी गति करती हुई वस्तु का जड़त्व जितना अधिक होगा, उसे रोकने के लिए तुम्हें उतना ही अधिक बल लगाना पड़ेगा। यही कारण है कि खाली ट्रक के बजाय सामान से भरे हुए ट्रक को रोकना कठिन होता है ।

05-नदी की अपेक्षा समुद्र के पानी में तुम आसानी से क्यों तैर सकते हो?

उत्तर :- किसी वस्तु के एकांक आयतन की संहति को उस वस्तु का घनत्व कहते हैं। नदी की अपेक्षा समुद्र के पानी का घनत्व अधिक होता है। जब तुम समुद्र के पानी में तैर रहे होते हो, तो तुम्हारे द्वारा हटाए गए पानी का भार नदी में तैरने पर हटाए गए पानी के भार से ज्यादा होता है। अतः समुद्र के पानी में तुम्हारे भार में नदी की अपेक्षा अधिक कमी आ जाती है। दूसरी ओर, अधिक घनत्व के कारण से समुद्र के पानी में उत्प्लावन-बल (वस्तु को द्रव में डुबोने पर द्रव द्वारा उस पर ऊपर की ओर लगाया गया बल) भी अधिक लगता है जिससे तुम आसानी से तैर सकते हो ।

06-लोहे का बना हुआ जहाज पानी में तैरता है परंतु लोहे की सुई पानी में क्यों डूब जाती है?

उत्तर :- किसी भी वस्तु के पानी में तैरने के लिए यह जरूरी है कि उसके द्वारा हटाए गए पानी का भार उसके भार से अधिक हो । लोहे का बना हुआ जहाज जब पानी में चलता है, तो उसके द्वारा हटाए गए पानी का भार उसके (जहाज के) भार से अधिक होता है अतः जहाज पानी में तैरता है। दूसरी ओर, सुई पानी में डालने पर अपने भार से कम भार का ही पानी हटा पाती है अतः पानी में डूब जाती है।

07-पानी भरने से गुब्बारा क्यों फूल जाता है?

उत्तर :- किसी वस्तु गुब्बारे में पानी भरने पर उसकी सतह पर यही बल कार्य करता है जिसके कारण गुब्बारा फूल जाता है। जैसे-जैसे तुम गुब्बारे में अधिक पानी डालते हो, गुब्बारा और अधिक फूलता जाता है। ऐसा इसलिए होता है कि प्रणोद बढ़ जाता है क्योंकि यह द्रव की ऊंचाई पर निर्भर करता है।

08-नमकीन पानी में अंडा क्यों तैरता है?

उत्तर :- आमतौर पर पानी का घनत्व कम होता है किंतु नमक मिलाते ही पानी का घनत्व बढ़ जाता है। जब घनत्व बढ़ जाएगा, तब उत्प्लावन-बल (वस्तु को द्रव में डुबोने पर द्रव द्वारा उस पर ऊपर की ओर लगाया गया बल) भी अधिक हो जाता है। इसी कारण से नमकीन पानी में अंडा तैरता रहता है ।

09-रेगिस्तान में ऊंट आसानी से क्यों चल सकता है?

उत्तर :- ऊंट के पैर नीचे से चौड़े होते हैं जिससे पैरों का क्षेत्रफल अधिक होता है। इस वजह से जमीन पर प्रभावित क्षेत्रफल बढ़ जाता है तथा दबाव कम होने के कारण ही ऊंट रेगिस्तान में रेत पर आसानी से चल पाता है।

10-तुम पानी में सिर या पैर के बल ही छलांग क्यों लगाते हो?

उत्तर :- जब कोई वस्तु द्रव में डाली जाती है, तो द्रव उस वस्तु पर ऊपर की ओर उत्प्लावन-बल लगाता है। अतः जब तुम सिर या पैर के बल पानी में छलांग लगाते हो, तो पानी का उत्प्लावन-बल तुम्हारे सिर या पैरों पर ऊपर की ओर लगता है। यदि तुम पानी के समानांतर छलांग लगाओगे, तो यह बल शरीर पर लगेगा जिससे शरीर को चोट लगने की आशंका रहती ।

11-बर्फ पानी में क्यों तैरती है?

उत्तर :- बर्फ ठोस है, फिर भी वह पानी में तैरती है । है न, अचरज की बात। तो, सुनो! बर्फ का घनत्व पानी के घनत्व से कम होता है। जब बर्फ को पानी में डाला जाता है, तो वह कुछ पानी हटाती है। इस पानी के आयतन का भार बर्फ के भार से अधिक होता है। इसीलिए बर्फ पानी में तैरती हैं।

12-गरम चाय या दूध डालने से कभी-कभी कांच का गिलास टूट क्यों जाता है?

उत्तर :- जब तुम गिलास में गरम चाय या दूध डालते हो, तो गिलास का भीतरी तल उष्मा ग्रहण करके फैल जाता है। इसके विपरीत गिलास के बाहर के भाग का ताप भीतरी भाग से कम होने के कारण उसमें फैलाव नहीं या कम होता है। दोनों तलों में ताप के इस अंतर के कारण ही कभी-कभी कांच का गिलास टूट जाता है।

13-रेल की पटरियों में जोड़ों के बीच खाली स्थान क्यों छोड़ा जाता है?

उत्तर :- रेलगाड़ी जब पटरी पर चलती है, तो पहियों तथा पटरी के बीच में एक. प्रकार का घर्षण होता है । इस घर्षण से बहुत अधिक मात्रा में ऊष्मा निकलती है जिसके कारण रेल की पटरी फैलती है । पटरी के इस फैलाव के लिए स्थान देने के उद्देश्य से ही कहीं-कहीं खाली स्थान छोड़ा जाता है। यदि स्थान नहीं छोड़ा जाएगा, तो पटरी के फैलाव से वह टेढ़ी-मेढ़ी हो जाएगी और रेलगाड़ी पटरी से उतर जाएगी ।

14-बोतल को गरम करने पर फंसी हुई डाट आसानी से बाहर क्यों निकल जाती है?

उत्तर :- ऊष्मा प्रदान करने से वस्तु में प्रसार होता है। इसी सिद्धांत का उपयोग करके जब कांच की बोतल को गरम किया जाता है, तो उसमें प्रसार हो जाता है। प्रसार के कारण ही बोतल के मुंह में फंसी डाट आसानी से बाहर निकल जाती है।

15-थर्मस बोतल में गरम वस्तु गरम और ठंडी वस्तु ठंडी क्यों रहती है?

थर्मस बोतल कांच की बनी होती है और कांच उष्मा का कुचालक होता है। कुचालक ऐसे पदार्थ होते हैं जिनमें से उष्मा-चालन आसानी से नहीं होता। कांच की बोतल की दोनों दीवारों के बीच निर्वात (बिना वायु का स्थान) होने से उष्मा बोतल के अंदर की दीवार से बाहर नहीं आ पाती। इसके अतिरिक्त बोतल की चमकदार बाहरी दीवारें उष्मा की विकिरण किरणों को परावर्तित करके बाहरी सतह पर ही रोक लेती हैं। अत : थर्मस बोतल में गरम वस्तु गरम और ठंडी वस्तु ठंडी रहती है।

16-खाना पकाने के बरतन नीचे से काले और ऊपर से चमकदार क्यों होते हैं?

उत्तर :- काली वस्तु उष्मा को जल्दी से सोख लेती है। अतः खाना पकाने के बरतनों के पेंदे काले रखे जाते हैं ताकि बरतन अधिक उष्मा को सोखकर शीघ्र खाना पका दें । बरतनों की ऊपरी सतह चमकदार इसलिए रखी जाती है ताकि बरतनों में से उष्मा का स्थानांतरण न हो सके।

17-बर्फ को बोरी या बुरादे में ही क्यों रखते हैं?

उत्तर :- बोरी और बुरादे में तमाम छिद्र होते हैं और उन छिद्रों में वायु भरी रहती है । वायु उष्मा की कुचालक होती है जो बाहर की उष्मा को अंदर बर्फ तक आने से रोकती है। इस प्रकार बर्फ पिघल नहीं पाती। यही कारण है कि बर्फ को बोरी या बुरादे में ही रखते हैं।

18-रेगिस्तान में दिन के समय गरमी और रात के समय ठंड क्यों होती है?

उत्तर :- रेगिस्तान में रेत की अधिकता रहती है। रेत उष्मा का अच्छा अवशोषक है। अत : दिन के समय सूर्य की उष्मा को अवशोषित करके रेगिस्तान गरम हो जाता है और वहां गरमी होती है। रेगिस्तान विकिरण द्वारा अपनी उष्मा को निकालकर रात में ठंडा हो जाता है जिससे रात के समय वहां ठंड होती है।

19-चिड़ियां सर्दियों में अपने पंख क्यों फैलाए रहती हैं?

उत्तर :- जब सर्दियां शुरू होती हैं, तो अक्सर चिड़ियां अपने पंख फैलाए हुए देखी जा सकती हैं। जब चिड़ियां पंख फैलाकर बैठती हैं, तो उनके शरीर तथा पंखों के बीच में हवा की परत आ जाती है। हवा उष्मा की कुचालक है जो चिड़ियों के शरीर की उष्मा को बाहर जाने से रोकती है। इस प्रकार चिड़ियां सर्दी के कुप्रभाव से स्वयं को बचाने में सक्षम हो जाती हैं। यही कारण है कि चिड़ियां सर्दियों में अपने पंख फैलाए रहती हैं।

20-दो पतले कंबल एक मोटे कंबल की तुलना में अधिक गरम क्यों होते हैं?

उत्तर :- दो पतले कंबल ओढ़ने से उनके बीच में हवा की एक परत बन जाती है। हवा ऊष्मा की कुचालक होती है जो शरीर की उष्मा को बाहर नहीं जाने देती और शरीर को सर्दी के प्रकोप से बचाती है। एक मोटे कंबल में हवा की कोई परत नहीं होती जिससे वह अधिक गरम नहीं रहता ।

21-सब्जी की गरम पतीली को चूल्हे से उतारने के लिए कपड़े का प्रयोग क्यों करते हैं?

उत्तर :- कपड़े में अनेक छिद्र मौजूद रहते हैं जिनमें वायु भरी होती है । वायु ऊष्मा की कुचालक है । वह आग की ऊष्मा को तुम्हारे हाथ तक नहीं पहुंचने देती । इस प्रकार तुम्हारा हाथ सुरक्षित रहता है। तभी तो, सब्जी की गरम पतीली को चूल्हे से उतारने के लिए कपड़े का प्रयोग करते हैं ।

22-कच्चे मकान सर्दियों में गरम और गरमियों में ठंडे क्यों रहते हैं?

उत्तर :- कच्चे मकान मिट्टी के बने होते हैं। मिट्टी ऊष्मा की कुचालक होती है। कुचालक होने के कारण सर्दियों में मिट्टी मकान के अंदर की उष्मा को बाहर नहीं निकलने देती तथा यही मिट्टी गरमियों में बाहर की उष्मा को अंदर नहीं आने देती। अतः कच्चे मकान सर्दियों में गरम और गरमियों में ठंडे रहते हैं।

23-साइकिल की ट्यूब गरमियों में प्राय: फट क्यों जाती है?

उत्तर :- साइकिल की ट्यूब में हवा भरी होती है। गरमी के मौसम में गरम होकर ट्यूब की हवा फैलती है। ट्यूब को फैलने के लिए कुछ स्थान चाहिए। जब उसे यह स्थान नहीं मिल पाता, तब वह ट्यूब को फाड़ देती है।

24-अधिक ऊंचाई पर उड़ते हुए पक्षियों की छाया पृथ्वी पर क्यों नहीं बनती?

उत्तर :- सूर्य प्रकाश का बहुत बड़ा स्रोत है, जबकि पक्षी बहुत छोटे । पक्षियों की घटती हुई छाया और बढ़ती हुई उपछाया बनती है। पक्षियों के पृथ्वी से अधिक ऊंचाई पर उड़ने के कारण छाया घटकर रास्ते में ही खो जाती है। उपछाया अधिक बड़ी लेकिन बहुत हल्की होने के कारण दिखाई नहीं पड़ती। यही कारण है कि अधिक ऊंचाई पर उड़ते हुए पक्षियों की छाया पृथ्वी पर नहीं बनती।

25-सूखे बालों में कंघी करने से चट-चट की आवाज क्यों सुनाई देती है?

उत्तर :- जब आप सूखे बालों में कंघी करते हैं, तो घर्षण पैदा होता है। इस घर्षण से बालों तथा कंघी में विपरीत आवेश आ जाता है। जब अधिक मात्रा में आवेश जमा हो जाता है, तो बीच की वायु में बहुत अधिक तनाव पैदा हो जाता है । इस प्रकार वायु में आवेश का विसर्जन होता है जिससे तुम्हें चट-चट की आवाज सुनाई देती है।

26-जब बादल गरज रहे हों और बिजली चमक रही हो, तो तुम्हें किसी पेड़ के नीचे क्यों नहीं जाना चाहिए?

उत्तर :- रगड़ के कारण वायु तथा बादलों के बीच में आवेश उत्पन्न हो जाता है। जब आवेशित बादल ऊंचे पेड़ों के पास से गुजरते हैं, तो पेड़ों पर विपरीत आवेश आ जाने से आकर्षण होता है। आवेश के प्रवाहित होने से तड़ित भी उत्पन्न होती है। यह तड़ित जब किसी पेड़ पर गिरती है, तो नीचे खड़े व्यक्ति को हानि पहुंच सकती है। अत : ऐसी अवस्था में किसी पेड़ के नीचे नहीं जाना चाहिए।

27-सूखे बालों में रगड़ा हुआ प्लास्टिक का पेन कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर क्यों खींच लेता है?

उत्तर :- जब तुम सूखे बालों में प्लास्टिक का पेन रगड़ते हो, तो रगड़ के कारण घर्षण (स्थिर) विद्युत पैदा होती है। इस घर्षण - विद्युत के कारण ही प्लास्टिक का पेन कागज के छोटे-छोटे टुकड़ों को अपनी ओर खींच लेता है।

28-कपड़े से रगड़ने के बाद वायु से भरा गुब्बारा दीवार से क्यों चिपक जाता है?

उत्तर :- जब तुम गुब्बारे को कपड़े से रगड़ते हो, तो उस स्थान पर आवेश उत्पन्न हो जाता है। आवेशित - गुब्बारा दीवार के निकट लाने पर विपरीत आवेश उत्पन्न करता है और आकर्षित होकर दीवार से चिपक जाता है ।

29-घरों में बिजली के तारों के ऊपर प्लास्टिक या रबड़ के खोल क्यों चढ़े होते हैं?

उत्तर :- जिस तार में से बिजली आ रही होती है, उसे छूने से तुम्हें झटका लग सकता है। इस झटके से बचने के लिए तारों पर प्लास्टिक या रबड़ के खोल चढ़ाए जाते हैं । प्लास्टिक तथा रबड़ दोनों ही विद्युत के कुचालक अर्थात विद्युतरोधी होते हैं जिनमें बिजली प्रवेश नहीं कर पाती। अतः इनको छूने पर भी तुम्हें झटका नहीं लग सकता ।

30-बिजली के बल्बों में पतला तार ही क्यों प्रयोग किया जाता है?

उत्तर :- चालक का वह गुण जिसके द्वारा विद्युत धारा के प्रवाह का विरोध किया जाता है, प्रतिरोध कहलाता है। पतले तार का प्रतिरोध अधिक होता है, जबकि मोटे तार का प्रतिरोध कम होता है। अतः बिजली के बल्बों में पतला तार ही प्रयोग किया जाता ।

31-अंधेरे कमरे में किसी छोटे छेद से आते हुए सूर्य के प्रकाश में हवा में उपस्थित धूल के कण इधर-उधर गति करते हुए क्यों दिखाई पड़ते हैं?

उत्तर :- जब अंधेरे कमरे में किसी छोटे छेद से सूर्य के प्रकाश में धूल के कण (अणु) आते हैं, तब वे लगातार गति करते हैं। इस प्रकार वायु के अणु धूल के कणों के साथ मिलकर टकराते हैं। इस टकराव के कारण ही धूल-कणों में अनियमित-गति उत्पन्न होती है और वे इधर-उधर गति करते हुए दिखाई पड़ते हैं।

32-वर्षा की बूंदें गोल क्यों होती हैं?

उत्तर :- पानी की संरचना छोटे-छोटे अणुओं से मिलकर होती हैं। ये अणु परस्पर एक-दूसरे को आकर्षित करते हैं। इसी आकर्षण के कारण ही पानी सिकुड़ता है और कम स्थान घेरना चाहता है। बूंदें पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण नीचे गिरती हैं किंतु पानी के अणु पृष्ठ-तनाव द्वारा आपस में इकट्ठा होते हैं। इसी वजह से बूंदें गोल आकार ग्रहण कर लेती हैं ।

33-साइकिल के टायर खुरदरे क्यों होते हैं?

उत्तर :- जब एक तल दूसरे तल पर गति करता है, तो उस गति का विरोधक-बल उत्पन्न हो जाता है। इसे घर्षण बल कहते हैं । घर्षण बल जितना अधिक होता है, वस्तु उतनी ही सरलता से गति कर सकती है। - साइकिल के टायर भी खुरदरे इसीलिए बनाए जाते हैं ताकि घर्षण-बल अधिक रहे और साइकिल सुविधाजनक ढंग से चल सके । खुरदरे तल पर घर्षण समतल की अपेक्षा अधिक रहता है।

34-कांच की गोली खुरदरे तल की अपेक्षा समतल पर अधिक दूरी तक क्यों लुढ़कती है?

उत्तर :- खुरदरे तल पर घर्षण समतल की तुलना में अधिक होता है। अतः जब कांच की गोली खुरदरे तल पर लुढ़कती है, तो घर्षण अधिक होने के कारण शीघ्र रुक जाती है। दूसरी ओर, यही गोली जब समतल पर लुढ़कती है तो घर्षण कम होने से अधिक दूरी तक जाती है।

35-भारी गाड़ियों के टायर अधिक चौड़े क्यों होते हैं?

उत्तर :- अधिक चौड़े टायरों का क्षेत्रफल अधिक होता है जिससे घर्षण अधिक होता है और दाब कम हो जाता है। अतः गाड़ी की गति बढ़ जाती है। बस, इसीलिए भारी गाड़ियों के टायर अधिक चौड़े बनाए जाते हैं ।

36-मकान की नींव दीवार की अपेक्षा चौड़ी क्यों होती है?

उत्तर :- तल का क्षेत्रफल जितना कम होगा, दबाव भी उतना ही बढ़ जाएगा। अतः क्षेत्रफल घटाने से दबाव में वृद्धि होगी। इसीलिए मकान बनवाते समय नींव चौड़ी रखी जाती है ताकि तल का क्षेत्रफल अधिक रहे। अधिक क्षेत्रफल रहने से दीवार का दबाव कम पड़ेगा।

37-कुएं से पानी निकालने के लिए घिरनी का उपयोग क्यों किया जाता है?

उत्तर :- कुएं से पानी निकालने के लिए घिरनी का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण यह है कि घिरनी के द्वारा बल लगाने की दिशा ऊपर की अपेक्षा नीचे हो जाती है। इससे पानी भरने में सुविधा रहती है तथा कम बल से अधिक कार्य हो जाता है।

38-कभी-कभी कील की अपेक्षा पेंच का प्रयोग क्यों किया जाता है?

उतार :- जब लकड़ी के साथ कुंडा लगाना हो, तो अक्सर पेंच का प्रयोग किया जाता है। पेंच कुंड़े को तख़्ते से कील की अपेक्षा अधिक मजबूती से जोड़े रखता है। इसका कारण यह है कि पेंच का तल चूड़ीदार होता है जबकि कील का तल समतल है। पेंच इन चूड़ियों के कारण अधिक शक्ति से अपना कार्य करता है।

39-ट्रक आदि पर सामान लादने के लिए ढलवां रखे हुए लकड़ी के तख्ते का प्रयोग क्यों किया जाता है?

उत्तर :- यदि किसी भारी वस्तु को उठाना हो, तो एक मजबूत छड़ लेकर उसका एक सिरा वस्तु के नीचे लगा देते हैं और छड़ को किसी ईंट आदि पर टिका कर दूसरे सिरे पर बल लगाते हैं। इस प्रकार भारी वस्तु को उठाने में आसानी हो जाती है। इस छड़ को उत्तोलक या लीवर कहते हैं। ट्रक आदि पर सामान लादने के लिए ढलवां रखे हुए लकड़ी के तख्ते का प्रयोग किया जाता है जो कि उत्तोलक ही है। ऐसा करने से कम बल लगाकर अधिक भार उठाया जा सकता है।

40-डिब्बे का ढक्कन खोलने के लिए चम्मच का प्रयोग क्यों करते हैं?

उत्तर :- डिब्बे का ढक्कन खोलने के लिए तुम चम्मच का उपयोग उत्तोलक के रूप में ही करते हो । चम्मच के किनारे को ढक्कन के नीचे रखा जाता है तथा दूसरे किनारे पर हाथ से नीचे को दबाकर बल लगाया जाता है। इस प्रकार चम्मच द्वारा बने उत्तोलक में बल भुजा भार भुजा से बड़ी होती है। अतः कम बल लगाने से बंद हुआ ढक्कन सरलता से खुल जाता है ।

41-झाड़ू में लंबी डंडी क्यों लगाते हैं?

उत्तर :- उत्तोलक के सिद्धांत के अनुसार यदि बल भुजा भार भुजा से बड़ी हो, तो कम बल से अधिक कार्य हो सकता है। झाड़ू में लंबी डंडी इसीलिए लगाई जाती है ताकि बल भुजा बड़ी हो जाए और कम बल लगाना पड़े। इसके अतिरिक्त बिना झुकें ही सफाई भी हो जाती है।

42-चंद्रमा प्रतिदिन एक ही समय पर उदय क्यों नहीं होता?

उत्तर :- चंद्रमा पृथ्वी का एक उपग्रह है जो उसके गिर्द 29 दिनों में एक बार परिक्रमा पूरी करता है। पृथ्वी अपने अक्ष पर 24 घंटे में एक बार घूमती है। जितने समय में पृथ्वी अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करती है, उतने समय में चंद्रमा पृथ्वी के गिर्द अपने मार्ग में कुछ आगे निकल जाता है। अतः तुम चंद्रमा को पृथ्वी द्वारा अपने अक्ष पर एक परिक्रमा करने तथा उस दूरी को तय करने के बाद देखते हो जो दूरी चंद्रमा आगे निकल चुका है। यही कारण है कि चंद्रमा प्रतिदिन एक ही समय पर उदय नहीं होता।

43-अधिक देर तक धूप में बैठने पर शरीर का रंग काला क्यों हो जाता है?

उत्तर :- धूप में मनुष्य का शरीर गहरे रंग के वर्णक बनाता है। ये वर्णक सूर्य के प्रकाश की किरणों को सोख लेते हैं। यदि शरीर में प्रकाश-किरणों को सोख लेने वाले वर्णक बनाने की शक्ति विज्ञान न होती, तो सूर्य की गरमी के कारण त्वचा झुलस जाती। अधिक तेज धूप में शरीर अधिक वर्णक बनाता है। यही कारण है कि देर तक धूप में बैठे रहने से शरीर का रंग काला हो जाता है।

45-सर्दी में तुम्हें कंपकंपी क्यों लगती है?

उत्तर :- सर्दी के मौसम में वातावरण ठंडा हो जाता है। अतः तुम्हें कंपकंपी लगती है। कंपकंपी होने से तुम्हारी मांसपेशियों को अधिक काम करना पड़ता है, जिसके कारण ऊर्जा पैदा होती है। इस प्रकार शरीर का ताप (37°C) समान बना रहता है और यह कम नहीं हो पाता।

46-पहाड़ों पर दाल क्यों नहीं गलती?

उत्तर :- तुम जिस पृथ्वी पर रहते हो, वहां पर वायु का दबाव अत्यधिक है। जानते हो, तुम्हारे शरीर पर भी निरंतर 14 टन वायु का दबाव पड़ता रहता है। जैसे-जैसे तुम ऊंचाई पर जाते हो, इस दबाव में कमी आती रहती है । पहाड़ों पर भी वायु का दबाव कम हो जाता है। दाल को पकाने में यही वायुमंडलीय-दबाव कार्य करता है। क्योंकि पहाड़ों पर वायुमंडलीय दबाव कम होता है अत: दाल पकाने में कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

47-तारे टिमटिमाते हुए नजर क्यों आते हैं?

उत्तर :- तुम जिस वायुमंडल में सांस लेते हो, उसमें विभिन्न घनत्व वाली अनेक परतें पाई जाती हैं। इन्हीं परतों से गुजरकर तारों का प्रकाश तुम तक पहुंचता है। वायु के कारण वायुमंडल की परतें भी हिलती रहती हैं। यही कारण है कि जब तारों का प्रकाश इन परतों से गुजरकर तुम तक आता है, तो तारे टिमटिमाते हुए नजर आते हैं ।

48-आकाश नीला क्यों दिखाई देता है?

उत्तर :- सूर्य के प्रकाश में सात रंग पाए जाते हैं। जब सात रंगों वाला सूर्य का प्रकाश वायुमंडल के कणों से टकराता है, तो रंगों में विचलन की क्रिया प्रारंभ हो जाती है। बैंगनी, नीले और आसमानी रंग का विचलन सबसे अधिक होता है और शेष रंगों (हरा, पीला, नारंगी तथा लाल) का विचलन कम। उपर्युक्त तीन रंगों के विचलन से लगभग नीले रंग की ही उत्पत्ति होती है। अतः आकाश नीला दिखाई देता है।

49-रंगीन कपड़ा रात्रि को क्यों नहीं खरीदना चाहिए?

उत्तर :- सूर्य का प्रकाश सात रंगों से मिलकर बना है- बैंगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल । किसी वस्तु का रंग, रंगों के परावर्तन तथा अवशोषण के कारण होता है। अतः जो कपड़ा तुम दिन में पहनते हो, वह रात को अलग रंग का दिखाई देता है क्योंकि रात्रि का प्रकाश कृत्रिम (बनावटी) होता है। इसमें प्राय: सूर्य के प्रकाश की भांति सात रंगों का क्रम नहीं पाया जाता। इसीलिए, रात्रि में कपड़ा खरीदते समय रंग की भूल हो जाने के कारण कपड़ा नहीं खरीदना चाहिए। ।

50-इंद्रधनुष वर्षा के बाद ही क्यों दिखाई देता है?

उत्तर :- कांच के तिकोने टुकड़े को प्रिज्म या त्रिपार्श्व कहते हैं। जब सूर्य का प्रकाश प्रिज्म के एक फलक (सिरे) पर पड़ता है, तो विचलित होकर यह सात रंगों में विभाजित हो जाता है । यह क्रिया विक्षेपण कहलाती है। इंद्रधनुष का बनना भी प्रकाश के इसी विक्षेपण का एक उदाहरण है। वर्षा के बाद वायुमंडल में पानी की बूंदें उपस्थित रहती हैं। जब सूर्य का प्रकाश इन बूंदों पर गिरता है, तो बूंदें प्रिज्म का काम करने लगती हैं और सूर्य के प्रकाश को सात रंगों में विभाजित कर देती हैं। अतः इंद्रधनुष बन जाता है। वर्षा के पूर्व वायुमंडल में नमी न रहने के कारण इंद्रधनुष का बनना असंभव घटना है।

आशा है की आपको सारे प्रश्न रोचक और मजेदार लगे होंगे ।

ऐसे ही सामान्य प्रश्नों के उत्तर कभी-कभी हमसे नहीं बन पाते अर्थात उसका सही उत्तर नहीं बता पाते अगर आपको ऊपर  के  सारे प्रश्न अच्छे लगे होंगे, तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें। 

"धन्यवाद"
7 वी सामान्य विज्ञान प्रश्न उत्तर
सामान्य विज्ञान प्रश्न उत्तर PDF
विज्ञान के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
8 वी सामान्य विज्ञान प्रश्न उत्तर
जीव विज्ञान के प्रश्न उत्तर
सामाजिक विज्ञान के प्रश्न उत्तर
500 science general knowledge question answer in hindi
general science in hindi
science questions with answers
science gk questions with answers
science question answer in english
gk questions in hindi
general science questions and answers in hindi
general science questions and answers in hindi for competitive exams
general science objective questions and answers in hindi
general science objective questions and answers in hindi for competitive exams
social science general knowledge questions and answers in hindi
general science questions answer
general knowledge science questions and answers in hindi

वन पारिस्थितिकी तंत्र (Forest Ecosystem) | van ka paristhitik tantra

वन के इकोतंत्र का वर्णन कीजिए | forest ecosystem in hindi

नमस्कार दोस्तों, आज के इस पोस्ट में हम वन के पारिस्थितिक तंत्र के बारे में जानेंगे। वन के पारिस्थितिक तंत्र में पेड़ पौधे प्रमुख होते हैं। वन के पारिस्थितिक तंत्र में पेड़ पौधों के साथ जीव जंतु ,पक्षी, जीवाणु, रोगाणु इत्यादि पाए जाते हैं। जो आपस में जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए एक दूसरे पर आश्रित होते हैं। जिससे पर्यावरण संतुलित रहता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC,STATE PCS, RRB, NTPC, RAILWAY, BANKING,CDS इत्यादि में वन पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं। वन पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े सभी महत्वपूर्ण सवालों के लिए वन पारिस्थितिक तंत्र के इस पोस्ट को अंत तक जरुर पढ़ें।

forest ecosystem in hindi

1. अजैवीय घटक (Abiotic components) -

इसके अंतर्गत वन भूमि एवं वातावरण में स्थित अकार्बनिक एवं कार्बनिक पदार्थ आते हैं। वन में विभिन्न प्रकार के मिनरल एवं पत्ते भी समशीतोष्ण वनों में पाए जाते हैं।

2. जैवीय घटक (Biotic components) -

वन पारिस्थितिक तंत्र में निम्नलिखित जैवीय घटक (Biotic components) होते हैं -

(i) उत्पादक (Producers) -

इसके अंतर्गत सभी पौधों एवं घास आदि की हरी पत्तियाँ आती हैं जो कि प्रकाश संश्लेषण कर भोजन का निर्माण करती है। ऊँचे वृक्ष सूर्य प्रकाश का सबसे अधिक उपयोग करके भोजन का निर्माण करते हैं, जबकि बचे हुए प्रकाश को घास शाक आदि उपयोग कर भोजन निर्माण करते हैं।

(ii) उपभोक्ता (Consumers) –

वनों में निम्नलिखित मुख्य उपभोक्ता पाये जाते हैं -

(a) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) -

इस श्रेणी के अन्तर्गत शाकाहारी कीट, खरगोश, हिरन, हाथी, सूअर, घोड़े आदि आते हैं। ये उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन को ग्रहण करते हैं।

(b) द्वितीयक उपभोक्ता ( Secondary corisumers) -

ये प्राथमिक उपभोक्ता को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं. अर्थात् ये प्राथमिक मांसाहारी जंतु होते हैं। इस श्रेणी में बिल्ली, भेड़ियासाँप, चील, गिद्ध आदि आते हैं।

(c) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary consumers) -

इस श्रेणी के जन्तु मांसाहारी होते हैं और प्राथमिक एवं द्वितीयक उपभोक्ताओं को भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। वे बड़े आकार के मांसाहारी जन्तु होते हैं। जैसे- शेर, चीता आदि ।

जानें- NEET 2023 PHYSICS MCQ IN HINDI 

(iii) अपघटक (Decomposers) -

जब उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं की मृत्यु हो जाती है तो उसके मृत शरीर को अपघटित करके अपने भोजन के रूप में उपयोग करते हैं और पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त रखते हैं। ये शरीर के जटिल कार्बनिक पदार्थों को साधारण यौगिक एवं तत्वों में परिवर्तित करके उसको मृदा में मिलाने में सहायक होते हैं। इस श्रेणी में सूक्ष्म जीव जैसे- बैक्टीरिया एवं फफूँद (Fungi) आते हैं।

आज के इस पोस्ट में हमने वन पारिस्थितिक तंत्र के बारे में विस्तार से जाना। वन पारिस्थितिक तंत्र के पर्यावरण संतुलन में सहायक है। विभिन्न परीक्षा में वन पारिस्थितिक तंत्र से सम्बंधित सवाल पूछे जाते हैं।

आशा करता हूँ कि यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी ,अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

तालाब का पारिस्थितिक तंत्र (What is the ecosystem of the pond)

तालाब का पारिस्थितिक तंत्र है? (What is the ecosystem of the pond? | pond ecosystem in hindi

नमस्कार दोस्तों, इस आर्टिकल में हम तालाब का पारिस्थितिक तंत्र के बारे में जानेंगे। पृथ्वी पर सभी जीवों एवम पादपों के जीवन के लिए पारिस्थितिक तंत्र बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। आज इसी पारिस्थितिक तंत्र के एक रूप तालाब का पारिस्थितिक तंत्र के बारे में विस्तार से जानेंगे। जलीय पारिस्थितिकी तंत्र (Water ecosystem) - जलीय पारिस्थितिकी तंत्र को समझने के लिए यहाँ पर तालाब के इकोतंत्र का वर्णन किया जा रहा है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC,STATE PCS, RRB, NTPC, RAILWAY, CDS इत्यादि में पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं।

talab ka paristhitik tantra

Talab ka Paristhitik Tantra | pond ecosystem in hindi

1. अजैविक घटक (Abiotic components) -

जलाशय में तापमान, प्रकाश, जल का pH मूल अकार्बनिक पदार्थ जैसे-जल, कार्बन, कार्बन डाइ ऑक्साइड, आक्सीजन, नाइट्रोजन, कैल्शियम, फॉस्फेट आदि तथा मूल कार्बनिक पदार्थ जैसे—अमीनो अम्ल, कार्बोनिक अम्ल आदि अजैवीय घटक हैं।

ये पोषक तत्व घोल अथवा कणों के रूप में पाये जाते हैं। तालाब के जल में CO2, O2 तथा अन्य गैसें व अकार्बनिक तत्व घुले रहते हैं। कुछ अजैविक घटक तालाब के निचले स्तर में पाये जाते हैं। सूर्य की ऊर्जा द्वारा CO2, जल तथा अजैविक घटकों की उपस्थिति में हरे जलीय पौधे - प्रकाश संश्लेषण द्वारा भोजन का निर्माण करते हैं, जो विभिन्न जीवों के लिए आवश्यक होता है। इन पौधों व जीवों की मृत्यु के पश्चात् जटिल पदार्थ विघटित होकर अजैविक घटकों के रूप में पुन : पानी में मिल जाते हैं और यह पारिस्थितिक तंत्र बराबर चलता रहता है।

2. जैविक घटक (Biotic components) -

स्वच्छ जल के जलाशय में जैवीय घटक के अन्तर्गत पाये जाने वाले जीवों को निम्नलिखित तीन श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है - जैसे- उत्पादक (Producers), उपभोक्ता (Consumers) तथा अघटनकर्त्ता (Decomposers) आते हैं, जिनका वर्णन निम्न प्रकार है -

पढ़ें- वन का पारिस्थितिक तंत्र क्या है?

(1) उत्पादक (Producers) -

तालाब इकोसिस्टम के प्रथम उत्पादक जलीय पौधे होते हैं, ये निम्न क्रम में बनते हैं -

(a) पादप-प्लवक (Phoytoplankton)-

ये अत्यन्त सूक्ष्म तैरने वाले पौधे हैं, जो जलाशय के उन सभी भागों में पाये जाते हैं, जहाँ प्रकाश पहुँचता है। इनमें से अधिकांश शैवाल (Algae) हैं तथा इनकी अधिकता होने पर जल का रंग हरा प्रतीत होता है। ये अति सूक्ष्म होते हैं। तालाब में जहाँ तक प्रकाश की किरणें प्रवेश पाती हैं वहाँ तक इनकी संख्या काफी अधिक होती है। उदाहरण- माइक्रोसिस्टिस (Microcystis), युग्लीना (Euglena), वालवॉक्स (Vol vox), ऐनाबीना (Anabaena)।

(b) रेशेदार शैवाल (Filamentous Algae) -

इसमें विभिन्न प्रकार के तन्तुमय शैवाल सम्मिलित हैं। पानी पर तैरते हुए तथा किनारों की ओर घना जाल बनाते हुऐ तालाबों में पाये जाते हैं। उदाहरण- ऊडोगोनियम (Oodogonium), स्पाइरोगोगायरा (Spirogyra), कारा (Chara) आदि।

(c) निमग्न पादप (Submerged plants) -

ये पौधें जड़ों द्वारा तालाब की जमीन में लगे होते हैं। उदाहरण हाइड्रिला (Hydrela), वैलिसनेरिया (Vallisneria)। -

(d) निर्गत पादप (Emergent plants) -

इस पादप की जड़ें पानी के अन्दर तथा शेष भाग पानी के ऊपर निकला होता है। उदाहरण - रीड़ (Reed)।

(e) सतह पर तैरने वाले पादप (Surface of float ing plants) -

ये पौधे पानी की सतह पर तैरते रहते हैं। उदाहरण - पिस्टिया (Pistia)।

जानें- पारिस्थितिक तंत्र-  सरंचना घटक और विशेषताएं।

(2) उपभोक्ता (Consumers) -

इसमें जलाशय में पाये जाने वाले जन्तु सम्मिलित हैं, जो प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक उपभोक्ता हैं। ताल में पाये जाने वाले विभिन्न प्राणियों का समूह उपभोक्ता होता है।

(a) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) -

ये पादपों को खाते हैं। इन्हें निम्न वर्गों में बाँटा जाता है -

(i) प्राणी प्लवक (Zooplankton) -

ये ताल के अन्दर लहरों के साथ तैरते उतरते रहते हैं। उदाहरण - साइक्लोप्स (Cyclops), डैफ्निया (Daphnia), कोपीपोड (Copep ods) और रोटिफर (Rotifer)।

(ii) तरणक (Naktones) -

ये अपने चलन अंग (Locomotory organs) की सहायता से तैरते हैं।

(iii) नितलक (Benthos) -

ताल (pond) के तल पर रहने वाले हैं।

(b) द्वितीयक तथा तृतीयक उपभोक्ता (Second ary and Tertiary consumers) -

ये शाकाहारी जलीय जन्तु का भक्षण करते हैं। उदाहरण- मछली, मेढक, पानी का साँप।

(c) सर्वोच्च उपभोक्ता (Higher consumers) -

ये द्वितीयक तथा तृतीयक उपभोक्ताओं का भक्षण करते हैं। उदाहरण- बड़ी मछली, बगुला, कछुआ।

(3) अपघटक (Decomposers) -

जलीय पौधें तथा जन्तुओं के मरने के बाद उनके सूक्ष्मजीवी (Mircroo rganisms ) उनके कार्बनिक पदार्थों को साधारण तत्वों में बदल देते हैं।


आज के इस आर्टिकल में हमने तालाब का पारिस्थितिक तंत्र के बारे में विस्तार से जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में तालाब का पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े सवाल पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि तालाब का पारिस्थितिक तंत्र का यह आर्टिकल आपके लिये उपयोगी साबित होगा, यदि आपको आर्टिकल पसंद आये तो आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

पारिस्थितिक तंत्र क्या हैं(What is Ecology)- ecology in Hindi

पारिस्थितिक तंत्र क्या हैं? Ecology in Hindi - What is Ecology| Paristhitik Tantra Kya hai

ए. जी. टैन्सले (A.G. Tansely) ने इकोसिस्टम (Ecosystem) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1935 में में किया था।

पारिस्थितिक तंत्र, पारिस्थितिकी (Ecology) की वह मूल क्रियात्मक इकाई है, जिसमें जैवीय समुदाय (Bio logical community) अपने पर्यावरण से परस्पर संबंधित होता है।

क्लार्क (1954) के अनुसार, पारिस्थितिक तन्त्र समुदाय एवं वातावरण की क्रियात्मक सक्रियता है। 

ओडम (Odum, 1963) के अनुसार, “पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem) पारिस्थितिकी (Ecology) की आधारभूत कार्यात्मक इकाई (Basic functional unit) है।”

Paristhitik Tantra Kya hai

Ecology in Hindi


पारिस्थितिकीय तंत्र के घटक (Components of Ecosystem)

Components of Ecosystem
  1. जैविक कारक (Abiotic factors)
    • उत्पादक
    • उपभोक्ता
    • अपघटक
  2. अजैविक कारक (Biotic factors)
    • मृदा
    • दाब
    • ताप
    • मौसम

पर्यावरणीय कारक (Environmental factors)

  1. अजैविक कारक (Abiotic factors) 
  2. जैविक कारक (Biotic factors)
    1. भौतिक (Physical)
      1. ताप (Temperature)
      2. प्रकाश (Light) 
      3. जल (Water) 
      4. आर्द्रता (Humidity) 
      5. मृदा (Soil) 
      6. प्रवाह / दबाव (Current and pressure)
    2. रासायनिक (Chemical)
      1. वायुमण्डलीय गैसें (Atmospheric gases) 
      2. pH (H+ ion concentration) 
      3. माध्यम के पोषक तत्व (Nutrients )
        1. वृहत् पोषक तत्व (Macro-nutrients )
        2. सूक्ष्म पोषक तत्व (Micro-nutrients)
Environmental factors

जैविक घटक (Biological Component)- 

  1. उत्पादक (Producers), 
  2. उपभोक्ता (Consumers), 
  3. विघटक (Decomposers)। 

1. उत्पादक (Producers)-

ये इकोस्टिम के स्वजीवी जीव (हरे पादप) हैं, जो सरल अकार्बनिक यौगिकों से जटिल कार्बनिक पदार्थों के रूप में अपना भोजन बनाने में समर्थ होते हैं। उदाहरण- हरे पौधे। 

इकोसिस्टम के अन्तर्गत छोटे सूक्ष्म पादप (पादप प्लवक Phytoplankton) या जड़ वाले पेड़-पौधे तथा उथले जल में तैरने वाले पौधे सम्मिलित हैं पादप प्लवक तालाबों या पोखरों में उस गहराई तक पाये जाते हैं। जहाँ तक कि प्रकाश की किरणें पहुँच पाती हैं। ये लगभग सभी प्रकार के जल में पाये जाते हैं। विभिन्न इकोसिस्टम में पाये जाने वाले पेड़-पौधे आकृति एवं संरचना में अत्यधिक भिन्नता प्रदर्शित करते हैं, जैसे- घास Grass) मैदानों में, वृक्ष जंगलों में तथा तैरने वाले पादप तालाब व झीलों के पानी में पाये जाते हैं। 

2. उपभोक्ता (Consumers) - 

ये परपोषी जीव हैं, जो अपने भोजन के लिए उत्पादक पर निर्भर होते हैं। ये मुख्यतः एक इकोसिस्टम में पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के प्राणी हैं। उपभोक्ताओं को विभिन्न वर्गों में रखा जा सकता है - 

(i) शाकाहारी प्राणी इकोसिस्टम के प्राथमिक उपभोक्ता (Primary consumers) कहलाते हैं। ये केवल वनस्पति का सेवन करते हैं। मृग या शशक वन के, चूहा बगीचों का तथा प्रोटोजोअन्स, क्रस्टेशियन्स एवं मोलस्क पोखर, तालाब व समुद्र के प्राथमिक उपभोक्ता हैं। कीट, कृन्तक प्राणी तथा जुगाली करने वाले पशु स्थलीय पर्यावरण के मुख्य शाकाहारी उपभोक्ता है। प्राथमिक उपभोक्ता, प्राथमिक मांसभक्षी प्राणियों या द्वितीयक उपभोक्ताओं के भोजन के काम आते हैं। . 

(ii) प्राथमिक मांसभक्षी प्राणी द्वितीयक उपभोक्ता (Sec ondary consumers) कहलाते हैं। ये शाकाहारी प्राणियों का भक्षण करते हैं। जैसे- कुत्ता, बिल्ली, लोमड़ी आदि। 

(iii) द्वितीयक मांसभक्षी प्राणी (Secondary consum ers) या वे प्राणी जो मांसभक्षी प्राणियों का भक्षण करते हैं, तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary consumers) कहलाते हैं, जैसे- शेर, चीता आदि। एक इकोसिस्टम के उत्पादकों एवं उपभोक्ताओं के सरलतम सम्बन्ध को “खाद्य शृंखला” (food chain) कहते हैं तथा उस जटिल सम्बन्ध का जिसमें कि विभिन्न प्रकार के उपभोक्ता एक ही प्रकार के उत्पादक से अपना भोजन ग्रहण करते हैं“खाद्य जाल" (food web) कहते हैं। उदाहरणार्थ- लकड़बग्घा, शेर द्वारा छोड़े गये शिकार के अवशेषों को अपना भोजन बनाता है। गिद्ध भी नीचे आकार शेर द्वारा छोड़े हुए अवशेषों को अपना भोजन बनाता है। 

3. विघटक या अपघटक (Decomposers) - 

इकोसिस्टम के इस घटक के अन्तर्गत सूक्ष्म जीव आते हैं, जो मृत व क्षय होते हुए पेड़-पौधों व जन्तुओं का भक्षण करते हैं और उनको सरल कार्बनिक यौगिकों में विघटित कर देते हैं। ये सरल यौगिक वायुमण्डल में विमुक्त हो जाते है, जो उत्पादकों द्वारा खाद्य पदार्थों के संश्लेषण के उपयोग में आते हैं। 

उदाहरण- बैक्टीरिया, वाइरस 

क्लार्क (Clarke) ने इकोसिस्टम में एक अन्य प्रकार के घटक का उल्लेख किया है, जिसके अन्तर्गत परिवर्तक (Transformers) रखे गये हैं।

अजैविक घटक (Abiotic Components)-

  1. ताप (Temperature),
  2. प्रकाश (Light)
  3. जल (Water),
  4. आर्द्रता (Humidity),
  5. मृदा या मिट्टी (Soil),
  6. दाब (Pressure)।

1. ताप (Temperature) - 

सभी जीवधारियों को गर्मी सूर्य के प्रकाश के विकिरण द्वारा प्राप्त होती है और इसी ऊर्जा से सभी जैविक क्रियाएँ चलती हैं। ताप वास्तव में वातावरण की ऊष्मा को नापने का पैमाना है। विभिन्न भागों में ताप अलग-अलग होता है। इस प्रकार कुछ रेगिस्तानी क्षेत्रों में दिन में 85°C तक का उच्चतम तापमान है, पृथ्वी की सतह के धरातल से प्रत्येक 150 मीटर की ऊँचाई पर लगभग 1°C के हिसाब से तापमान कम होता जाता है। तापक्रम ठण्डे समुद्रों में 3°C स्वच्छ जलों में 0°C तथा साइबेरिया के भू-भागों में 7°C से भी नीचे चला जाता है।

2. प्रकाश (Light) - 

सूर्य प्रकाश का मुख्य स्रोत है, वास्तव में प्रकाश द्वारा संश्लेषित ऊर्जा ही सभी जीवधारियों के जीवन का मूलभूत आधार हैकॉस्मिक किरणें (Cos mic rays), गामा व X-किरणों (Gama and X-rays), अल्ट्रा-वाइलेट (पराबैंगनी इन्फ्रारेड किरणें, ताप तरंगें (Heat-waves) विद्युत चुम्बकीय तरंगें आदि भी सूर्य से पृथ्वी पर निरन्तर विकिरित होती रहती हैं। 

प्रकाश के प्रभाव (Effect of Light)

  1. प्रकाश का उपापचय पर प्रभाव, 
  2. प्रकाश का जन्तुओं के रंजन और शरीर रचना पर प्रभाव, 
  3. प्रकाश का वृद्धि और परिवर्तन पर प्रभाव
  4. प्रकाश का प्रचलन पर प्रभाव, 
  5. प्रकाश का उपापचय (Metabolismपर प्रभाव, 
  6. दृष्टि (Vision) पर प्रकाश का प्रभाव। 

3. जल (Water)-

जल सीधे या परोक्ष रूप में समस्त जैव-भूमण्डल (Biosphere) के जीवधारियों के लिए आवश्यक है। पृथ्वी का लगभग 73 प्रतिशत भाग जल से ढँका हुआ है। समुद्रों के समस्त भागों और गहराइयों में कोई न कोई जीवधारियों का समूह अवश्य पाया जाता है। पृथ्वी के स्वच्छ जल के स्रोत, जिनमें पोखर, झीलें, नदियाँ आदि सम्मिलित हैं। प्रत्येक जीवधारियों को जल की आवश्यकता होती है। स्थल पर पौधों का वितरण प्रत्यक्ष रूप से जल पर निर्भर होता है विशेष प्रकार के वनस्पति एवं जन्तुओं के वितरण में भी अप्रत्यक्ष रूप से जल की उपलब्धता का महत्व होता है।

जल के प्रभाव (Effect of Water) (i) जल जीवधारियों को अनेक प्रकार से प्रभावित करता है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में जल की कमी के कारण जन्तुओं और पौधों में जल संरक्षण (Water-conservation) के लिए अनेकों अनुकूलन पाये जाती है। (ii) कुछ स्थलीय जन्तु पर्याप्त जल में ही प्रजनन परिवर्धन और वृद्धि करते हैं। 

4. आर्द्रता (Humidity)- 

यह दो प्रकार से दर्शाया जाता है 

1. सम्पूर्ण आर्द्रता (Absolute humidity)- एक निश्चित स्थान पर वायु की प्रति इकाई में उपस्थित जल की मात्रा का भार सम्पूर्ण आर्द्रता (Absolute humidity) कहलाता है। 

2. सापेक्ष आर्द्रता (Relative humidity) - सापेक्ष आर्द्रता को समान ताप और दाब पर संतृप्त बिन्दु की आर्द्रता की तुलना में किसी स्थान या मौसम में, वायु में जल वाष्प की वास्तविक प्रतिशत मात्रा दर्शाती है

5. मृदा या मिट्टी (Soil) - 

साधारणतः पृथ्वी की ऊपरी सतह, जिसमें अधिकांश वनस्पतियाँ और जन्तु स्थायी रूप से निवास करते हैं उसे मृदा या मिट्टी कहते हैं। लेकिन ऊपरी परत के अतिरिक्त मिट्टी के निर्माण में मौसम कार्बनिक पदार्थों और जीवधारियों का भी योगदान है।

Various areas of soil profile of a tropical forest


6. दाब (Pressure) – 

वायुमण्डल में बढ़ती हुई ऊँचाइयों के साथ-साथ वायुमण्डलीय दाब घटता है और तल में बढ़ती हुई गहइराई के कारण दाब बढ़ता है। वायु दाब परिवर्तनों के प्रभाव- ऊँचाई के साथ दाब में होने वाली कमियाँ होती है। पौधों तथा असमपाती प्राणियों का पर्वतों पर वितरण कम दाब से नहीं, बल्कि अन्य प्रतिकूल कारकों द्वारा सीमित है।

रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव (ill effects of radioactive pollution.)

रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभावों को संक्षेप में समझाइये। Briefly explain the ill effects of radioactive pollution.


नमस्कार दोस्तों, anwerduniya.com में आपका स्वागत है । आज के इस पोस्ट में हम रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव के बारे में जानेंगे। रेडियोधर्मी प्रदूषण, रेडियो एक्टिव पदार्थों से निकालने वाले रेडियो एक्टिव किरणों के कारण होता है । रेडियो एक्टिव किरणें तीन प्रकार की होती हैं- अल्फ़ा, बीटा और  गामा । आज हम इन्ही पदार्थों से होने वाले रेडियो धर्मी प्रदुषण के दुष्प्रभाव के बारे में जानेंगे। रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव के बारे में अच्छे से जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें।
side effects of radioactive pollution


रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव

(1) ल्यूकेमिया तथा हड्डी कैंसर (Leukemia and Bone Cancer)- प्राय : सभी नाभिकीय के विस्फोटकों के द्वारा रेडियोधर्मी स्ट्रांशियम-90 (Stotium) तथा सीजियम-137 मुक्त होता है जिससे वायु, जल तथा भूमि का प्रदूषण होता है । यह वर्षा के बूँदों के द्वारा गिरकर घास में प्रवेश करता है, जो दूध देने वाली गाय, भैंस, बकरियों आदि के द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रवेश करता है। शरीर में पहुँचने पर यह सभी हड्डियों से मिल जाता है और ल्यूकेमिया व हड्डी कैंसर नामक भयानक रोग उत्पन्न करता है। 

(2) प्रजनन (Reproduction) -रेडियोऐक्टिव विकिरण के फलस्वरूप जीव की प्रजनन क्षमता क्षीण हो जाती है तथा असामयिक बुढ़ापे की अवस्था को प्राप्त कर वे मर जाते हैं। 

(3) महामारियों में वृद्धि (Spread of Epidemics)- रेडियोधर्मी विकिरण के बाद मनुष्य में रोगजनक बैक्टीरिया व विषाणु (bacteria and viruses) के प्रति एण्टीटॉक्सिन्स उत्पन्न करने की क्षमता कम हो जाती है। 

(4) जीन्स में परिवर्तन (Changes in Genes) - रेडियोऐक्टिव विकिरण के फलस्वरूप जीवों के जर्मिनल कोशिकाओं के जीन्स में उत्परिवर्तन (mutation) उत्पन्न हो जाते हैं जिससे विकृत एवं विकलांग शिशुओं का जन्म हो सकता है।

(5) तन्त्रिका तन्त्र (nervous system) - रेडियोऐक्टिव विकिरण के बाद केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र भी प्रभावित होता है, जिससे संवेदी तन्त्रिकाओं की कोशिकाएँ कभी भी उत्तेजित हो जाती हैं।

इस पोस्ट में हमने रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं अगर हमें इसकी सामान्य जानकारी भी पता रहेगी तो हम इसका उत्तर आसानी से दे सकते हैं  

उम्मीद करता हूँ कि रेडियोधर्मी प्रदूषण के दुष्प्रभाव का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगी, अगर आपको यह पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

भूमि सुधार के प्रमुख उपाय (Major Measures of Land Reforms in Hindi)

भूमि सुधार के प्रमुख उपाय लिखिये।(Major Measures of Land Reforms)

नमस्कार दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। इस लेख में हम प्रमुख भूमि सुधारों के उपाय के बारे में जानने वाले  हैं । चूंकि भारत एक कृषि प्रधान देश है इसलिए भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का बहुत बड़ा योगदान है और कृषि के लिए अच्छी उपजाऊ भूमि की आवश्यकता होती है। एक ही भूमि पर लगातार कृषि करने और उर्वरकों का प्रयोग करने से भूमि अनुपजाऊ होने लगती है जिससे पैदावार घटने लगती  है और कृषकों की आमदनी में कमी आती है। इसके लिए हमें प्रमुख भूमि सुधारों के उपाय को अपनाना चाहिए जिससे फसलों की पैदावार में कमी न हो।

Major Measures of Land Reforms in Hindi



भूमि सुधार के उपाय-

(1) फसलों को हेर-फेर कर बोना या फसल चक्र (Crop rotation) अपनाना जिससे कि भूमि की विभिन्न स्तरों का उपयोग होता रहे तथा मिट्टी की उर्वरा शक्ति भी बनी रहे। 

(2) पशुओं के चरने पर नियंत्रण करना, जिससे भूमि खुली न रह सके। 

(3) बाँध बनाकर बाढ़ तथा जल के बहाव द्वारा होने वाली मृदा की हानि को रोकना। 

(4) ढलान वाली जगहों पर सीढ़ीदार खेतों को बनाना, जिससे जल के बहाव को कम करके, भूमि के कटाव को रोका जा सके। 

(5) पहाड़ी क्षेत्रों में ढलान के विपरीत जुताई करना तथा पौधों को लगाना। 

(6) कृषि योग्य भूमि पर शहरीकरण तथा औद्योगिकीरण को रोकना। 

(7) कीटनाशकों, खरपतवारनाशकों का कम से कम उपयोग करना। 

(8) प्राकृतिक खादों पर निर्भरता को बढ़ाना। 

(9) अपशिष्ट पदार्थों का निपटान- कारखानों एवं शहरों से निकलने वाले विषैले एवं हानिकारक अपशिष्टों को प्रभावशाली ढंग से समाप्त किया जाना चाहिए।\

आज के इस पोस्ट में हमने भूमि सुधार के प्रमुख उपाय (Major Measures of Land Reforms) के बारे में जाना।  विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भूमि सुधार के प्रमुख उपाय के बारे में प्रश्न पूछा जाता है।

उम्मीद करता हूँ कि भूमि सुधार के प्रमुख उपाय का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (Noise Pollution Control Measures in Hindi)

ध्वनि प्रदूषण के नियंत्रण के उपायों को लिखिये। (dhwani pradushan niyantran)

नमस्कार दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। आज के इस लेख में हम ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (Noise Pollution Control Measures in Hindi) के बारे में जानने वाले हैं। विश्व की जनसंख्या में दिन- प्रतिदिन वृद्धि होती जा रही है। जिसके कारण पर्यावरण के विभिन्न घटकों ,जो मानव जीवन के लिए आवश्यक हैं उन पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है। उनमें से एक प्रमुख है ध्वनि - जिससे मानव आपस में सम्प्रेषण का कार्य  करते हैं।  ध्वनि के अधिक होने पर भी वातावरण में नकारात्मक भाव उत्पन्न  होते हैं जिसका मानव स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भी ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (Noise Pollution Control Measures in Hindi) से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं।

   
Noise Pollution Control Measures in Hindi





उत्तर- ध्वनि प्रदूषण के नियंत्रण के उपाय- ध्वनि प्रदूषण को पूरी तरह समाप्त कर देना सम्भव नहीं है, लेकिन निम्नलिखित उपायों के द्वारा हम इसे कम अवश्य कर सकते हैं-

(1) उद्योगों तथा कल-कारखानों को आबादी से दूर स्थापित करना चाहिए। 

(2) शोर करने वाले वाहनों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए। जापान में लाउडस्पीकर के प्रयोग पर पूर्णत : प्रतिबन्ध है और इसका प्रयोग करने से पूर्व सरकार से इसकी अनुमति लेनी पड़ती है, जबकि हमारे देश में लोग कभी भी लाउडस्पीकर पूरी आवाज में बजाते रहते हैं।

(3) हॉर्नों को आवश्यकता से अधिक नहीं बजाना चाहिए। जापान में स्वचालित वाहनों द्वारा सामान्य दशाओं में हॉर्न बजाने पर पूर्णतः प्रतिबन्ध लगा हुआ है।

(4) कारखानों तथा उद्योगों में शोर शोषक दीवालों ( noise absorbing wall) का निर्माण करना चाहिए । यंत्रों तथा उपकरणों की बियरिंग में मफलरों का प्रयोग करना चाहिए। 

(5) ऐसी मशीनों, जिनका शोर कम करना सम्भव न हो, के साथ काम करने वाले व्यक्तियों को ध्वनि अवशोषक वस्त्रों, कर्ण बन्दकों (earmuffs) का प्रयोग अनिवार्य रूप से करना चाहिए।

(6) ऐसे उपकरणों का प्रयोग करना चाहिए जो कम शोर करते हैं । 

(7) अनावश्यक शोर नहीं करना चाहिए तथा ध्वनि विस्तारक उपकरणों, T.V., रेडियो, कूलर का आवश्यकतानुसार ही प्रयोग करना चाहिए। 

(8) सड़क के किनारे तथा उद्योगों के चारों तरफ वृक्षों को लगाकर भी ध्वनि प्रदूषण को कम किया जा सकता है ।

(9) हवाई अड्डों, रॉकेटों तथा यानों के शोर को नियन्त्रित करना चाहिए । जापान में ध्वनि प्रदूषण को कम करने के लिए टोकियो शहर के अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर जहाजों का आवागमन रात्रि 10:00 बजे से प्रातः 4:00 बजे तक बन्द रहता है ।

(10) ध्वनि शोषक सड़कों तथा इमारतों के निर्माण की तकनीक को बढ़ावा देना चाहिए ।


इस लेख के माध्यम से हमने ध्वनि प्रदूषण को कम करने के विभिन्न उपायों के बारे में जाना।  ध्वनि प्रदूषण से जुड़े प्रश्न  अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि ध्वनि प्रदूषण नियंत्रण के उपाय (Noise Pollution Control Measures in Hindi) का यह लेख आपके लिए परीक्षा की तैयारी और साथ ही पर्यावरण सुरक्षा व पर्यावरण जागरूकता में मदद करेगा। यदि आपको यह लेख अच्छा लगा हो तो लेख को शेयर जरुर करें। धन्यवाद

जल चक्र क्या है (water cycle kya hai)

जल चक्र पर टिप्पाणी लिखिए।

हेलो दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। क्या आप जल चक्र के बारे में जानना  चाहते हैं तो आप सही वेबसाइट में आये हैं क्योंकि आज के इस आर्टिकल में  हम जानने वाले है जल चक्र क्या है साथ ही जल चक्र का चित्र (water cycle diagram) आपको देखने को मिलेगा तो चलिए जानते है.

water cycle kya hai

जल चक्र पृथ्वी पर उपलब्ध जल के एक रूप से दूसरे में परिवर्तित होने और एक भण्डार से दूसरे भण्डार या एक स्थान से दूसरे स्थान को गति करने की चक्रीय प्रक्रिया है जिसमें कुल जल की मात्रा का क्षय नहीं होता बस रूप परिवर्तन और स्थान परिवर्तन होता है। अतः यह प्रकृति में जल संरक्षण के सिद्धांत की व्याख्या है।

Water Cycle (जल चक्र)

जल चक्र (Water Cycle) — जल चक्र में वातावरण में जल का प्रवाह निम्नलिखित अवस्थाओं एव प्रक्रियाओं के द्वारा पूर्ण होता है.

(a) चूँकि भूमि में जल का प्रमुख स्रोत वर्षा या जलवाष्प का अवक्षेपण है। अतः भूमि में जल वर्षा (rain), ओस (Dew) अथवा बर्फ (Snow) के रूप में अवक्षेपित होता है।

(b) भूमि की सतह एवं उस पर स्थित जल स्रोतों, जैसे- झील, समुद्र, झरने, आदि से यह जल सीधे वाष्पीकरण (Evaporation) क्रिया द्वारा जलवाष्प के रूप में वायुमण्डल में वापस पहुँच जाता है।

(c) पौधों में उपस्थित जल वाष्पोत्सर्जन (Trans poration) क्रिया के द्वारा तथा जन्तु के शरीर में उपस्थित • जलं वाष्पीकरण (Evaporation) क्रिया द्वारा जलवाष्प के रूप में वापस पहुँच जाता है।

(d) वायुमण्डल में उपस्थित जलवाष्प बादल (Cloud) का रूप ले लेता है तथा ठंडे होने एवं संघनन (Conden sation) के पश्चात् यह जल की बूँदों, ओस तथा बर्फ के रूप में पुन : भूमि पर वापस आ जाता है। इस जल का कुछ भाग बहकर नदी, तालाबों, पोंखरों तथा समुद्र में एकत्र हो जाता है तथा शेष भाग भूमि के द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। पौधे इसी भूमिगत जल का उपयोग करते हैं। जीव जन्तु भूमिगत जल एवं भूमि पर उपस्थित जल स्रोतों के जल का उपयोग करते हैं। यह प्रक्रिया निरन्तर जारी रहती हैं।

जल की अवस्थाएँ (water conditions)

  • हिम (ठोस) 
  • द्रव (पानी) 
  • वाष्प (गैस) 
  • अतिशीतित जल (सुपरकुल्ड वाटर)

इस पोस्ट में हमने जल चक्र क्या है के बारे में विस्तृत रूप से जाना। जल चक्र पृथ्वी पर मानव जीवन के लिए बहुत ही आवश्यक प्रक्रिया है। इसलिए जल चक्र के बारे में हम सब को अवश्य जानना चाहिए। साथ ही अनेक परीक्षाओं में भी जल चक्र से संबंधित सवाल पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि जल चक्र क्या है का यह पोस्ट आपके लिए उपयोगी साबित होगा अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरूर करें। 

पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल और जवाब (Important questions and answers related to the environment)

पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल और जवाब | paryavaran ke sawal

नमस्कार साथियों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। आज के इस लेख में हम आपके लिए लेकर आये हैं- पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल और जवाब (Important questions and answers related to the environment) जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं को ध्यान में रखते हुए लिखा गया है। यह लेख आपकी परीक्षा की तैयारी को दृष्टिगत रखते हुए संग्रहित किया गया है। सफलता की प्राप्ति हेतु एक बार इसका अध्ययन अवश्य करें। 



Important questions and answers related to the environmen

प्रश्न 1. पर्यावरण क्या है? इसके विभिन्न घटकों का वर्णन कीजिये।

उत्तर- पर्यावरण (Environment)- पर्यावरण, पृथ्वी की सतह के ऊपर उपस्थित वह क्षेत्र होता है, जहाँ पर जीवधारी निवास करते हैं। वास्तव में पर्यावरण एक व्यापक शब्द है जिसका तात्पर्य उस सम्पूर्ण भौतिक और जैविक व्यवस्था से है, जिसमें जीवधारी निवास करते हैं, वृद्धि करते हैं तथा अपनी स्वाभाविक प्रवृत्तियों का विकास करते हैं। 

पर्यावरण के घटक (Components of Environment)- प्राकृतिक पर्यावरण निम्नलिखित दो घटकों से मिलकर बना होता है - 

(1) भौतिक घटक,

(2) जैविक घटक।

(1) भौतिक घटक (Physical Components) - इसके अन्तर्गत पर्यावरण के उन घटकों को शामिल किया गया है, जो निर्जीव होते हैं। इन्हें अजैविक घटक (Abiotic Components) कहते हैं।

उदाहरण - भूमि, वायु, जल, प्रकाश आदि। 

भौतिक पर्यावरण तीन भागों में बँटा होता है – 

(i) जलमण्डल, (ii) स्थलमण्डल, (iii) वायुमण्डल 

(i) जल मण्डल (Hydrosphere) - इसमें जीवमण्डल के जल सभी स्रोत सम्मिलित होते हैं,

जैसे- समुद्र, नदियाँ, तालाब तथा भूमि पर स्थित अन्य जल स्रोत।

(ii) स्थलमण्डल (Lithosphere)- इसमें सभी ठोस सम्मिलित होते हैं, जैसे- चट्टानें, मृदा तथा खनिज आदि। 

(iii) वायुमण्डल (Atmosphere) – यह गैसों तथा वायु का मण्डल है, जो जल तथा स्थल दोनों मण्डलों को घेरे रहता है। 

(2) जैविक घटक (Biotic Components)- पर्यावरण में उपस्थित सभी प्रकार के जीव-जन्तु एवं पेड़-पौधे आपस में मिलकर पर्यावरण के जैविक घटक का निर्माण करते हैं। पृथ्वी के आस-पास एक सीमित क्षेत्र में जीवन उपस्थित होता है। ये जीवधारी पृथ्वी से ऊपर 6 कि.मी. की ऊँचाई तक वायुमण्डल में तथा पृथ्वी से 6 से 7 किमी. नीचे समुद्र तथा महासागरों की तलछटी में जीव उपस्थित होते हैं।

पढ़ें- मृदा अपरदन क्या है।



प्रश्न 2. सामाजिक पर्यावरण से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर - सामाजिक पर्यावरण (Social Environment) - "यह मानव निर्मित पर्यावरण होता है जिसके अन्तर्गत मनुष्य के विभिन्न क्रिया-कलाप आते हैं, जो कि पर्यावरण के जैविक एवं अजैविक घटकों को प्रभावित करते हैं।"

सामाजिक पर्यावरण के अन्तर्गत मानव की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, उसका सांस्कृतिक, राजनीतिक परिवेश, सोच तथा नैतिक मूल्यों का निर्वहन आता है।


प्रश्न 3. जैविक एवं अजैविक पर्यावरण किन कारणों से जनसंख्या के आकार को प्रभावित करता है ?

उत्तर- जैविक एवं अजैविक पर्यावरण निम्न कारणों से जनसंख्या के आकार को प्रभावित करता है- 

  1. पोषक पदार्थों की उपलब्धता, 
  2. उपलब्ध स्थान (आवास एवं अन्य कार्य), 
  3. अन्य जीवों के साथ पारस्परिक क्रिया,
  4. जलवायु।

प्रश्न 4. पर्यावरण का अर्थ व्यापक रूप में समझाइये।

उत्तर- पर्यावरण शाब्दिक रूप से दो शब्दों से मिलकर बना है- परि + आवरण "पर्यावरण"।

‘परि' का अर्थ है- 'चारों ओर', आवरण का अर्थ है- 'ढके हुए'। इस प्रकार "पर्यावरण से तात्पर्य उस सब कुछ है जो किसी भौतिक अथवा अभौतिक वस्तु को चारों ओर से ढके हुए है।" अतः "वे सभी दशाएँ जो एक प्राणी के अस्तित्व के लिए आवश्यक हैं अथवा उसको चारों ओर से घेरे हुए हैं, उसका पर्यावरण कहलाती हैं।"

हर्सकोविट्स के अनुसार, "पर्यावरण उन समस्त दशाओं और प्रभावों का योग है, जो प्राणी के जीवन और विकास पर प्रभाव डालती है।"

रॉस के अनुसार, "पर्यावरण कोई भी वह बाहरी शक्ति है, जो हमको प्रभावित करती है। इस प्रकार पर्यावरण से तात्पर्य मनुष्य के चारों और की उस परिस्थितियों से है, जो उसकी क्रियाओं को प्रभावित करती है।"


जानें- रेडियोधर्मी प्रदूषण पर निबंध।


प्रश्न 5.  पर्यावरण के प्रमुख तत्व कौन-कौन से होते हैं ? संक्षेप में समझाइये। 

उत्तर - पर्यावरण के तत्व (Elements of Environments)-  पर्यावरण के प्रमुख तत्व निम्नांकित हैं- 

(1) भूमि के स्वरूप (Lands Forms) - पृथ्वी की सतह के ऊपर और उसके भीतर आंतरिक शक्तियों के क्रियाशील होने के कारण धरातल पर जो स्वरूप बनते हैं, उन्हें स्थल रूप कहते हैं।

(2) जल राशियाँ (Water Bodies) - पृथ्वी, मनुष्य के लिए जितनी आवश्यक है, उतना ही महत्वपूर्ण है। जैसे- जलाशयों का होना। पृथ्वी के प्रमुख जलाशय हैं-सागर, नदियाँ, झीलें और नाले। (3) जलवायु (Climate) - मानव पर प्रभाव डालने वाले तत्वों में जलवायु का सर्वोच्च स्थान होता है। वायु मण्डल की दशा, वर्षा, नमी, वायु, दाब के वार्षिक औसत को जलवायु कहते हैं।

(4) प्राकृतिक वनस्पति (natural vegetation) - प्राकृतिक वनस्पति सामान्यतः जलवायु पर निर्भर करती है और इसका परोक्ष अथवा अपरोक्ष रूप से मनुष्य पर प्रभाव पड़ता है, जो सीधे रूप से जलवायु का प्रभाव ही है। 

(5) गिट्टियाँ (Soils) - मिट्टी, प्राकृतिक वातावरण का एक प्रमुख तत्व है। मनुष्य ने अपनी उपयोगितानुसार इसे कई प्रकारों में विभाजित किया है। 

(6) खनिज पदार्थ (Mineral Resources) - पृथ्वी के विभिन्न भागों में भिन्न-भिन्न प्रकार के खनिज पाये जाते हैं। मानव की आर्थिक स्थिति को ये काफी प्रभावित करती हैं। ये किसी राष्ट्र के सम्पन्न या गरीब होने के सूचक भी हैं। 

(7) पशु जगत (Animal Life) -जीव-जन्तु भी प्राकृतिक पर्यावरण के अभिन्न तत्व हैं। ये मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं को भी प्रभावित करते हैं।



प्रश्न 6. "प्राचीन भारतीय परंपराएँ पर्यावरण के अनुकूल थीं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।

उत्तर – प्राचीन भारतीय परंपराएँ निम्नलिखित कारणों से पर्यावरण के अनुकूल थीं -

  1. प्राचीन काल से ही लोगों में प्रकृति के प्रति प्रेमआस्था तथा अनन्य श्रद्धा थी।
  2. भारतीय दर्शन व प्राचीन धर्म-ग्रंथ एवं शास्त्रों में पर्यावरण के घटकों—जल, वायु, भूमि, वृक्षों आदि को देव स्वरूप मानकर इनकी पूजा-अर्चना की जाती रही है।
  3. नदियों को माँ स्वरूप माना जाता रहा है। जैसे—गंगा, यमुना एवं सरस्वती।
  4. पर्वतों को देवस्वरूप मानकर उनके प्रति आदर व आस्था प्रकट की जाती रही है।
  5. कुछ वृक्षों के गुणों को देखकर उन्हें पूजनीय तथा रक्षणीय माना जाता है। उदाहरण- तुलसी, नीम, पीपल, आँवला, गूलर, बरगद आदि।
  6. भारतीय जीवन एवं संस्कृति में वृक्षों एवं वनों की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका, मानव को आध्यात्मिक व आत्मिक उन्नति प्रदान करने वाली मानी जाती रही है। सृष्टि के विषय में दो अवधारणाओं का विकास कर भारतीय समाज ने पर्यावरण की रक्षा की-
    • देवता—जल देवता, अग्नि देवता, वायु देवता, पूज्यनीय वृक्ष, जैसे—बरगद, पीपल, नीम, तुलसी आदि।
    • माता–सृष्टि माता, गोमाता, धरती माता, गंगा माता, तुलसी माता, भारत माता।

इस प्रकार हम देखते हैं कि हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति एवं परम्पराएँ पर्यावरण के अनुकूल थीं।



प्रश्न 7. जनसंख्या वृद्धि के कारणों का उल्लेख कीजिये। 

उत्तर- जनसंख्या वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं – 

  • जन्म-दर में वृद्धि होना।
  • मृत्यु दर में कमी होना।
  • रोगों पर नियन्त्रण होना (Control of Disease) - संचरण महामारी उत्पन्न करने वाले रोगों के उपचार की औषधियों की खोज, महामारी पर नियंत्रण आदि के कारण मृत्यु दर में कमी आ गई, जिसके कारण मनुष्य की औसत आयु में भी वृद्धि हो गई।
  • उच्च प्रजनन दर (Higher reproductive rate)- मनुष्य की प्रजनन क्षमता में वृद्धि होना भी जनसंख्या में वृद्धि का प्रमुख कारण है।
  • कम उम्र में विवाह होना तथा कम उम्र में ही जनन की दृष्टि से परिपक्व हो जाना।
  • प्राकृतिक प्रकोपों से सुरक्षित हो जाना। 
  • कृषि की तकनीकों में सुधार होना, जिसके कारण जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ खाद्य सामग्री के उत्पादन में भी वृद्धि होती गई। 
  • निम्न सामाजिक स्तर (low social status)  
  • निरक्षरता (Illiteracy)। 
  • सामाजिक कुरीतियाँ तथा अन्धविश्वास।
  • रोगों एवं महामारियों पर नियंत्रण। 
  • उद्योगों का विकास एवं शहरीकरण। 
  • अप्रवासन (immigration)आदि।

प्रश्न 8. जल के प्रमुख स्रोतों का वर्णन कीजिए। 

उत्तर- जल के प्रमुख स्रोत निम्नलिखित है – 

(1) वर्षा जल (धरातलीय जल-rain water) - यह मानसूनी वर्षा से प्राप्त जल है। इसी से नदियों, जलाशयों, नहरों आदि को जल की पूर्ति होती है।

(2) भूमिगत जल (well water)- वर्षा जल का लगभग 22% चट्टानों के छिद्रों व दरारों तथा भूमि की मृदा से रिसकर धरातल में प्रवेश कर जाता है। उदाहरण- कुएँ, पाताल तोड़ कुएँ, ट्यूबवेल, पहाड़ों की हैण्डपम्प आदि का जल 

(3) नदी जल (river water)- वर्षा तथा बर्फ पहाड़ों के पिघलने से जल एक धारा के रूप में प्रवाहित होकर मैदानी क्षेत्र में नदियों में बहता रहता है। 

(4) समुद्री जल (sea water)- यह पृथ्वी का सबसे बड़ा जल स्रोत होता है। वर्षा जल तथा बर्फ पिघलने से उत्पन्न जलनदियों के माध्यम से अंततः समुद्र में पहुँच जाता है। समुद्री जल खारा होता है।

पढ़ें- जल प्रदूषण क्या है।



प्रश्न 9. कम्पोस्ट खाद क्या है ? इसे किस प्रकार तैयार किया जाता है ? 

उत्तर- कम्पोस्ट खाद (Compost manure) - "पशुओं के गोबर, पौधों के अवशेष पदार्थों, घास-पात अन्य कचरों तथा मनुष्य के मल-मूत्र इत्यादि को सड़ाकर बनायी गई खाद को कम्पोस्ट खाद कहते हैं।"

कम्पोस्ट खाद बनाने की विधि - कम्पोस्ट खाद बनाने की अनेक विधियाँ हैं। यहाँ पर इन्दौर विधि का वर्णन किया जा रहा है। 

इन्दौर विधि (Indore Method)- कम्पोस्ट बनाने की इस विधि को इन्दौर में डॉ. हॉवर्ड ने विकसित किया था। इस विधि से कम्पोस्ट तैयार करने के लिए 4.21×0.9x0.6 मीटर नाप के 33 गड्ढे बनाये जाते हैं। दो-दो गड्ढों की जोड़ी बनाते हैं तथा एक जोड़ी गड्ढों की दूरी 3.60 मीटर रखी जाती है। इसमें उपयोग में आने वाले पदार्थ हैं- 

(1) पशुओं का गोबर तथा मूत्र। 

(2) लकड़ी की राख।

(3) पत्तियाँ, घास, खरपतवार, भूसा आदि।

(4) जल तथा वायु

विधि—सर्वप्रथम गड्ढे के धरातल पर पहले भारी कार्बनिक पदार्थों की 15 सेमी की तह लगाते हैं। इसके ऊपर राख छिड़क देते हैं फिर 5 सेमी. गोबर की पर्त लगा देते हैं। इसके ऊपर दिन में कई बार पानी छिड़क कर सारे पदार्थ को नम बनाये रखते हैं। इस प्रकार परतों के ऊपर परत लगाते जाते हैं तथा गड्ढों को भर लेते हैं।

गड्ढों को पूरा न भरकर 1/4 भाग खाली छोड़ देते हैं ताकि खाद की पलटाई में सुविधा रहे। तीन सप्ताह के बाद प्रथम पलटाई करते हैं फिर प्रथम पलटाई के पश्चात् द्वितीय  पलटाई दो सप्ताह बाद की जाती है। इस पलटाई में गड्ढों की खाद आपस में बदलकर पलटी जाती है तथा पानी का छिड़काव किया जाता है। तीसरी पलटाई में खाद को गड्ढे से बाहर निकाला जाता है। यह खाद 3-4 महीने में तैयार होती है। 

इस विधि में गोबर कम लगता है तथा समय भी कम लगता है। इस विधि में पानी अधिक लगता है तथा पलटने की क्रिया में काफी मजदूर लगते हैं। इस विधि को वायवीय विधि कहते हैं।


प्रश्न 10. समष्टि उच्चावचन से आप क्या समझते हैं ? 

उत्तर- समष्टि उच्चावचन (Population Fluctuation) - किसी समष्टि के साम्यावस्था में पहुँचने के बाद इसकी संख्या साम्यावस्था स्तर से कम या अधिक होती रहती है। साम्यावस्था की संख्या में कमी या अधिकता होने की क्रिया को समष्टि उच्चावचन पर्यावरण कहते हैं। समष्टि उच्चावचन में होने वाले परिवर्तनों या अन्तर्जातीय और प्रतिक्रियाओं के फलस्वरूप होता है। समष्टि उच्चावचन कहते हैं। समष्टि उच्चावचन समष्टि का एक विशिष्ट गुण है और सम्भवतः यह जलवायु सम्बन्धी नियन्त्रण के कारण होता है।

पढ़ें-


प्रश्न 11. प्रवासन क्या है ? इसके प्रमुख कारण लिखिये। 

उत्तर- प्रवासन (Migration) - प्रवासन में जीव एक क्षेत्र को छोड़कर दूसरे क्षेत्र में जाते हैं और कुछ समय बाद ये प्रारम्भिक क्षेत्र में पुनः लौट आते हैं। जीवों में प्रवासन निम्नलिखित कारणों से हो सकता है - 

  1. शत्रुओं से रक्षा के लिये। 
  2. भीड़ से बचने के लिए। 
  3. भोजन की तलाश।
  4. सन्तानोत्पत्ति के लिए उपयुक्त वातावरण की तलाश।
  5. उपयुक्त वातावरण-तेज हवाओं के कारण कीट तथा जल-धाराओं के कारण मछलियाँ प्रवासन करती हैं।

प्रश्न 12. तीव्र गति से बढ़ती हुई मानव जनसंख्या के नियंत्रण के उपाय लिखिए। 

उत्तर - जनसंख्या नियन्त्रण के लिए निम्न उपायों को अपनाया जा सकता है -

  1. विवाह की आयु में वृद्धि करना।
  2. जन्म दर को कम करना।
  3. शिक्षा का प्रसार करके निम्न रूढ़ियों तथा धर्मान्धता को हटाना -
    • सन्तान भगवान की देन का विचार।
    • कन्यादान पुण्य का कार्य माना जाना।
    • पुत्र पैदा होने से ही मोक्ष का मिलना।
    • अधिक सन्तान द्वारा आय का बढ़ना।
    • सन्तान की देख-रेख भगवान द्वारा होना।
  4. लोगों को जनसंख्या वृद्धि की भयावहता को समझाना।
  5. परिवार नियोजन के तरीकों का उपयोग।
  6. एक से अधिक महिलाओं से शादी पर प्रतिबन्ध।


प्रश्न 13. भारतवर्ष में स्वास्थ्य सेवाओं के कार्यक्रमों के संचालन में संलग्न किन्हीं पाँच संस्थाओं के नाम लिखिये।

उत्तर - शासन के द्वारा चलाये जा रहे कार्यक्रमों के अतिरिक्त कई राष्ट्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्वयं सेवी संस्थाएँ इस जनकल्याणी कार्यक्रम में वृहद् पैमाने पर सहयोग दे रही हैं।

कुछ प्रमुख संस्थाएँ निम्न हैं -

भारतीय रेड क्रॉस सोसाइटी,

  1. विश्व स्वास्थ्य संघ (W.H.O.) 
  2. भारतीय परिवार नियोजन संघ, 
  3. भारतीय सेवक समाज,
  4. भारतीय ब्लाइण्ड रिलीफ सोसाइटी 
  5. भारतीय क्षय रोग एसोसियेशन, 
  6. केन्द्रीय समाज कल्याण विभाग।

प्रश्न 14. भूमि को भौगोलिक दृष्टि से कितने भागों में बाँटा गया है ?

उत्तर - भौगोलिक दृष्टिकोण से भूमि को छ : भागों में बाँटा गया है -

  1. उत्तरी पर्वतीय प्रदेश - हिमालय पर्वत के पश्चिम से पूर्व तक।
  2. विशाल मैदान - सतलज, गंगा और ब्रम्हपुत्र के मैदान।
  3. थार मरुस्थल - पश्चिमी राजस्थान में निम्न भूमि का प्रदेश।
  4. दक्षिण का पठार - दक्षिण भारत के 16 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला त्रिभुजाकार पठार।
  5. तटीय मैदान - दक्षिणी पठार के दोनों ओर स्थित मैदान।
  6. द्वीप - भारत के समुद्री तटों के समीप समुद्र में उपस्थित द्वीप।

प्रश्न 15. वाहनों से उत्सर्जित गैसों के नाम तथा उसके हानिकारक प्रभाव लिखिये। 

उत्तर - वाहनों से मुख्यत : निम्नलिखित गैसें उत्सर्जित होती हैं - 

(1) कार्बन-मोनो ऑक्साइड - यह श्वसन क्रिया में बाधा पहुँचाती है।

 (2) नाइट्रोजन के ऑक्साइड - यह प्रकाश रासायनिक धुंध का निर्माण करती है। (3) हाइड्रोकार्बन - पौधों को नुकसान, आँख व नाक की श्लेष्मा ग्रंथियों का उत्तेजित होना। फेफड़ों का कैन्सर होना।

आज के इस लेख में हमने पर्यावरण से जुड़े महत्वपूर्ण सवाल और जवाब (Important questions and answers related to the environment) के बारे में जाना जो विभिन्न परीक्षाओं में को ध्यान में रखकर लिखा गया है ।

आशा करता हूँ कि यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगी ,अगर आपको लेख पसंद आये तो लेख को शेयर जरुर करें।