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पारिस्थितिक तंत्र - पारिभाषिक शब्दावली(Ecosystem - Terminology)

पारिस्थितिक तंत्र - पारिभाषिक शब्दावली(Ecosystem -  Terminology)

इस लेख में पारिस्थितिक तंत्र - पारिभाषिक शब्दावली(Ecosystem -  Terminology) के बारे में बताया जा रहा है। किसी भी विषय को जानने या पढ़ने से पहले हमें उससे जुड़े शब्दों के बारे में अवश्य जान लेना चाहिए। किसी विषय विशेष से सम्बंधित महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषा सहित सूची को पारिभाषिक शब्दावली कहा जाता है। इस लेख में पारिस्थितिक तंत्र से जुड़े महत्वपूर्ण शब्दावली को दिया जा रहा है ,जो पारिस्थितिक तंत्र पढ़ने से पहले जरूर जान लेना चाहिए।

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Ecosystem Paribhashik Shabdawali

1. कृषि पारितंत्र (Agroecosystem) - मानव निर्मित फसली क्षेत्र का पारितंत्र है।

2. जैवभार (Biomass) - जीव के शरीर में जैव पदार्थ की मात्रा जिसे प्रायः शुष्क भार के रूप में मापा जाता है।

3. चरम समुदाय (Climax Community) - अनुक्रमण के अन्त में विकसित हुआ स्थायी अधिक विविधता वाला समुदाय पर्यावरण के साथ साम्यावस्था में होता है।

4. उपभोक्ता (Consumer) – पारितंत्र में उत्पादकों के अतिरिक्त अन्य सभी जीव जिनमें शाकाहारी व माँसाहारी जन्तु, व विशेष प्रकार के उपभोक्ता अपघटक भी शामिल है।


5. अपघटक (Decomposer) — वे जीव जो मृत कार्बनिक पदार्थ से अपना पोषण प्राप्त करते हैं जैसे जीवाणु व कवक

6. अपरद (Detritus) – मृत पौधे व जन्तुओं के मृदा में पड़े भाग जैसे पत्तियाँ, पुष्प, जन्तुओं के अपशिष्ट पदार्थ आदि जिस सूक्ष्मजीव वृद्धि करते हैं।

7. अपदाहारी (Detritivore)- अपरदा को खाने वाले जीव जैसे केंचुआ, कुछ लार्वा।

8. पारितंत्र ( Ecosystem)- जैव समुदाय व उसके पर्यावरण के बीच पारस्परिक क्रिया से बना स्वपोषित तंत्र प्रकृति की कार्यात्मक इकाई।

9. खाद्य श्रृंखला (Food Chain) - अपने सरलतम रूप में खाद्य सम्बन्ध जिसमें उत्पादक व उपभोक्ता शामिल हों, पारितंत्र पोषण स्तर दिखाते सम्बन्ध।

10. खाद्य जाल (Food web) – अनेक खाद्य शृंखलाओं के आपस में जुड़ने से बना जाल।।

11. विखण्डन (Fragmentation)- अपरदहारी जीवों का अपरद या डेट्रिटस को खाकर छोटे-छोटे कणों में विभाजित कर जिससे उनका सतही क्षेत्र बढ़ जाता है।

12. ह्यूमस (Hymus) – अपरद पर सूक्ष्मजीवों की क्रिया से बना गहरे रंग का एमार्फस (amorphous) पदार्थ जो धीरे -धीरे खनिज मुक्त कर भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाता है।

13. जलारम्भी अनुक्रमण (Hydrarch)- जलाशयों से प्रारंभ होने वाला प्राथमिक अनुक्रम।

14. कर्कट (Littler) – पौधों से नीचे गिरी पत्तियाँ जो भूमि में पड़ी रहकर अपरद बन जाती है।

15. निक्षालन (Leaching)- अपघटन प्रक्रिया में जल में घुलित पदार्थों लवणों आदि की भूमि के निचले स्तरों में चले जाना।

16. मृदा निर्माण (Pedogenesis) – लाइकेज व अन्य कारकों द्वारा मृदा का निर्माण।

17. पादप प्लवक (Phytoplankton) - जलाशयों में निष्क्रिय रूप से तैरने वाले सूक्ष्म पादप।

18. मूल अन्वेषक प्रजाति ( Pioneer species) - वह प्रजाति जो प्राथमिक अनुक्रमण में सबसे पहले नये पार्यावास में पहुँचती है जैसे लाइकेन।

19. उत्पादकता (Productivity)- जैवभार उत्पादन की दर इसे g प्रति वर्गमीटर प्रतिवर्ष के रूप में प्रदर्शित किया जाता है।

20. प्राथमिक अनुक्रमण (Primary Succession)- ऐसे स्थान में हुआ जहाँ पहले किसी प्रकार की वनस्पति नहीं था जैसे नग्न चट्टान, ठण्डा लावा।

21. द्वितीयक अनुक्रमण (Secondary Succession ) – ऐसे स्थान में हुआ जहाँ पहले के समुदाय किसी कारण से नष्ट हो गए।

22. स्टैंडिंग क्रॉप (Standing Crop) - किसी पोषण स्तर (Trophic level) में नियत समय पर उपलब्ध जैव भार

23. स्टैंडिंग स्टेट (Standing state) - किसी नियम समय पर मृदा में उपस्थित पोषक पदार्थों की मात्रा।

24.शुष्कारम्भी अनुक्रमण (Xerarch)- शुष्क स्थानों जैसे नग्न चट्टान से प्रारम्भ होने वाला प्राथमिक अनुक्रमण।

इस लेख में हमने पारिस्थितिक तंत्र - पारिभाषिक शब्दावली (Ecosystem - Terminology) के बारे में जाना। किसी भी विषय की शुरुआत पारिभाषिक शब्दावली से करनी चाहिए।

आशा करता हूँ कि पारिस्थितिक तंत्र - पारिभाषिक शब्दावली(Ecosystem - Terminology) का यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा। अगर आपको यह लेख पसंद आये तो इस लेख को शेयर जरूर करे।

जनन स्वास्थ्य-पारिभाषिक शब्दावली (Reproductive Health-Terminology)

जनन स्वास्थ्य-पारिभाषिक शब्दावली(Reproductive Health - Terminology)

नमस्कार, आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस आर्टिकल में हम जनन स्वास्थ्य-पारिभाषिक शब्दावली (Reproductive Health-Terminology) के बारे में जानेंगे। जनन स्वास्थ्य जीवविज्ञान का एक टॉपिक है जिससे जुड़े प्रश्न अक्सर प्रतियोगी परीक्षाओं में देखने को मिल जाते हैं। विभिन्न परीक्षाओं को ध्यान में रखकर यह आर्टिकल लिखा गया है। अगर आप जनन स्वास्थ्य पढ़ने वाले हैं तो आपको जनन स्वास्थ्य -पारिभाषिक शब्दावली के बारे में  अवश्य जान लेना चाहिए। 

janan swasthay paribhashik shabdawali

Jann vasthy Paribhashik Shabdawali

1. उल्ब परीक्षण (Amniocentesis) – भ्रूण में गुणसूत्रीय असामान्यताओं को ज्ञात करने की एक विधि जिसका दुरूपयोग भ्रूण के लिंग परीक्षण हेतु किया जाता है।

2. कृत्रिम वीर्य सेचन (Artificial Insemination) - वहतकनीक जिसमें किसी बन्ध्य पति/दाता का वीर्य कृत्रिम रूप से स्त्री की योनि अथवा गर्भाशय में प्रविष्ठ कराया जाता है।

3. सहायक जनन प्रौद्योगिकीयाँ (Assisted Reproductive Technologies ) – वह चिकित्सीय तकनीकें जो बन्ध्य लोगों के लिए सगर्भता के अवसर सुलभ करा देती है।

4. रोधक विधियाँ (Barrier Method) – गर्भ निरोधन के ऐसे उपाय जिसमें किसी यांत्रिक/ भौतिक साधन द्वारा शुक्राणुओं का अण्डकोशिका तक पहुँचना रोक दिया जाता है।

5. गर्भाशयी ग्रीवा टोपी (Cervical Cap) - गर्भ निरोध हेतु रबर/ प्लास्टिक से बनी एक टोपीनुमा रचना जो रोध या बैरियर की भाँति कार्य करती है।

पढ़े - जीवों में जनन - पारिभाषिक शब्दावली

6. डायफ्रॉम (Diaphragms)-गर्भाशयी ग्रीवा पर लगाने वाला एक रोधक निरोध उपाय।

7. भ्रूण स्थानान्तरण (Embryo Transfer)-इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से बने भ्रूण को फैलोपियन नलिका अथवा गर्भाशय में स्थानान्तरित करना।

8. अन्तः कोशिकाद्रव्यीय शुक्राणु अन्तःक्षेपण (ICSI - In tra Cytoplasmic Sperm Injection) – सहायक जनन प्रौद्योगिकी की वह तकनीक जिसमें किसी बन्ध्य पुरुष के एक शुक्राणु को अण्ड कोशिका में इंजैक्ट किया जाता है।

9. बन्ध्यता ( Infertillty) - सन्तान पैदा करने की अक्षमता।

10. शिशु मृत्यु दर (Infant Mortality Rate)- एक वर्ष में प्रति 1000 जीवित शिशु जन्मों पर एक वर्ष के अन्दर मरने वाले शिशुओं की संख्या।

11.अन्तःगर्भाशयी युक्तियाँ (IUD Intra Uterine Device) - गर्भ निरोध की गर्भाशय में स्थापित की जाने वाली युक्तियाँ जो हॉर्मोन्स, कॉपर आधारित होती है। IUCD भी कहलाती है |

12.अन्तः गर्भाशयी वीर्य सेंचन (IUI Intra Uterine In semination ) – पति/दाता से प्राप्त वीर्य को कृत्रिम रूप से स्त्री के गर्भाशय में प्रविष्ट कराना।


पढ़ें- मानव जनन- पारिभाषिक शब्दावली।

13. अन्तः गर्भाशयी स्थानान्तरण (IUT Intra Uterine Transfer)- पात्रे निषेचन से बने 8 से अधिक कोरक खण्डों वाले भ्रूण को स्त्री के गर्भाशय में स्थानान्तरित करना।

14. दुग्धस्रावी अनार्तव (स्तनपान अनार्तव (Lactational Amenorrhea)- प्रसव के कुछ माह बाद तक सक्रिय स्तनपान के कारण माहवारी का अनुपस्थित होना।

15. मातृ मृत्यु दर (MMR-Maternal Mortality Rate) -प्रति 1000 सगर्भता स्थितियों में प्रतिवर्ष होने वाली मृत्यु की संख्या जिसमें सगर्भता अवधि, प्रसव व प्रसव के 42 दिनों के अन्दर हुई मृत्यु शामिल है।

16. सगर्भता का चिकित्सीय समापन (MTP - Medical Ter mination of Pregnancy) – प्रेरित गर्भपात या ऐच्छिक गर्भपात|

17. मुखिय गर्भ निरोधक (Oral Contraceptives)- हॉर्मोनल गोलियाँ जिन्हें गर्भ निरोध हेतु प्रयोग किया जाता है।

18. गोलियाँ (Pills)- गर्भनिरोध हेतु बनी हार्मोनल मुखीय औषधियाँ, एक प्रकार का मुखीय गर्भनिरोधक।

19. बन्ध्याकरण (Sterillzation)-गर्भनिरोध की शल्य चिकित्सीय विधियाँ, जैसे ट्यूबैक्टॉमी व वेसेक्टॉमी।

20. यौन संचरित रोग (STD Sexually Transmitted Dis eases)- प्राथमिक रूप से लैंगिक संपर्क द्वारा संचरित होने वाले रोग जैसे सिफलिस, एड्स आदि |

21. परखनली शिशु / टेस्ट ट्यूब बेबी (Test Tube baby) - पात्रे निषेचन या इन विट्रो फर्टिलाइजेशन व बाद में भ्रूण के गर्भाशय में स्थानान्तरण से विकसित शिशु |

22. वाल्ट (Vault)- रोधक गर्भ निरोध का एक उपाय।

23. रजित रोग (VD Venereal Disease)- यौन संचरित रोगों का ही एक नाम |

24. युग्मनज का अन्तः फैलोपियन नलिका स्थानान्तरण (ZIFT Zygote Intra Fallopian Transfer)- इन विट्रो फर्टिलाइजेशन से विकसित 8 कोशिकीय भ्रूण का फैलोपियन नलिका में स्थानान्तरण।


इस आर्टिकल में हमने जनन स्वास्थ्य-पारिभाषिक शब्दावली (Reproductive Health-Terminology) के बारे  में जाना। विभिन्न प्रतिस्पर्धी परीक्षा में जनन स्वास्थ्य से जुड़े प्रश्न देखने को मिलते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि जनन स्वास्थ्य-पारिभाषिक शब्दावली (Reproductive Health-Terminology) का यह आर्टिकल आपके लिए लाभकारी सिद्ध होगा ,यदि आपको यह आर्टिकल अच्छा लगा हो तो इस आर्टिकल को शेयर अवश्य करें।

जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology in Hindi)

जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology)

हेलो दोस्तों, आपका answerduniya.com में स्वागत है। इस लेख में आपको जन्तु ऊतक से सम्बंधित पारिभाषिक शब्दावली के बारे में जानने वाले हैं। इन पारिभाषिक शब्दावली में उनके साथ उसके अर्थ भी दिए गए है। भ्रूणीय विकास में समान कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहा जाता है। शरीर के निर्माण में सबसे छोटी इकाई कोशिका होती है जंतु के शरीर में ऐसे ही समान प्रकार के कोशिका के समूहों को जंतु ऊतक कहा जाता है। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं जैसे- UPSC, SSC, PCS, RRB, NTPC, RAILWAY, CDS, TET CTET इत्यादि में जन्तु ऊतक और जन्तु ऊतक  से जुड़े पारिभाषिक शब्दावली से जुड़े प्रश्न पूछे जाते रहे हैं। इस लेख में ऐसे ही जन्तु ऊतक के महत्वपूर्ण प्रश्नों का संग्रह किया गया है।

Animal Tissues - Terminology in Hindi

Jantu Utak Paribhashik Shabdavali

1.ऊतक (Tissue)-"लगभग एक ही परिमाण तथा आकर की कोशिकाओं का समूह जो उत्पत्ति, विकास, रचना, कार्य के विचार से एक समान हो, ऊतक कहलाते है।"

2.अंग (Organ)-"एक या एक से अधिक ऊतकों से बने शरीर के उस भाग को जो एक या कई विशिष्ट कार्य करता हैं, अंग कहते हैं।"

3.ऊतक संगठन (Tissue Organization)-"जीव शरीर का यह संगठन जो की कई विशिष्ट कार्य करने वाले ऊतकों का बना होता है, ऊतक संगठन कहलाता है।"

पढ़ें- पादप ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली।

4.अंग तंत्र (Organ System)-"विशिष्ट कार्य करने वाले अंगों के समूह को अंग तंत्र कहते हैं।"

5.शरीर (Body)-"अंग तंत्र मिलकर शरीर का निर्माण करता हैं।"

6.पाचन तंत्र (Digestive System)-भोजन का पाचन तथा अवशोषण का कार्य करता है, पाचन तंत्र कहलाता है।

7.श्वसन तंत्र (Respiratory System)-गैसों के विनियम तथा ग्रहण का कार्य करता है, श्वसन तंत्र कहलाता है।

8.परिसंचण तंत्र (Circulatory System)-शरीर के अन्दर संवहन का कार्य करती है, परिसंचरण तंत्र कहलाता है।

9.उत्सर्जन तंत्र (Excretory System)-उत्सर्जन तंत्र उत्सर्जी पदार्थ को शरीर के बाहर निकलता है।

जानें- मानव जनन - जीव विज्ञान पारिभाषिक शब्दावली।

10.कंकाल तंत्र (Skeletal System)-कंकाल तंत्र शरीर को आधार प्रदान करता है, कोमल अंगों की रक्षा करता है तथा पेशियों को जोड़ने के लिए स्थान देता है।

11.तंत्रिका तंत्र (Nervous System)-तंत्रिका तंत्र सोचने समझाने याद रखने तथा संवेदनाओं को ग्रहण करने का कार्य करता है। मस्तिष्क, मेरुरज्जु तथा इनसे निकलने वाली तंत्रिकाएँ मिलकर तंत्रिका तंत्र का निर्माण करती है।

12.अन्तःस्त्रावी तंत्र (Endocrine System)-शरीर की वृद्धि तथा विकास के अलावा जैविक क्रियाओं का नियंत्रण करता है अन्तःस्त्रावी तंत्र कहलाता है।

13.अध्यावारणी तंत्र (Integumentary System)-यह तंत्र शरीर को वातावरण से सुरक्षा प्रदान करता है। त्वचा और इससे सम्बंधित रचनाएँ अध्यावारणी तंत्र का निर्माण करती है।

14.उपकला ऊतक (Epithelial Tissue)-ऐसा ऊतक जो की विभिन्न प्रकार के आंतरिक अंगों एवं शरीर की स्वतंत्र या बाहरी सतहों पर पाया जाता है, उसे उपकला ऊतक कहते है।

15.सरल उपकला ऊतक(Simple Epithelial Tissue)-सरल उपकला ऊतक कोशिकाओं की केवल एक ही स्तर का बना होता है।

16.संयुक्त उपकला ऊतक (compound Epithelial Tissue)-संयुक्त उपकला ऊतक कोशिका के कई स्तरों व्यवस्थित होती हैं।

17.विशेषीकृत उपकला ऊतक (Specialized Epithelial Tissue)-कुछ उपकला ऊतक कुछ विशिष्ट कार्यों को करने के लिए रूपांतरित होती हैं, विशेषीकृत उपकला ऊतक कहते हैं।

18.संयोजी ऊतक (Connective Tissue)-संयोजी ऊतक वह ऊतक है, जो शरीर ऊतकों के सभी तथा अंगों को जड़ने का कार्य करती है, इसी कारण यह ऊतक अन्य ऊतकों के अनुपात में शरीर के अन्दर बहुत अधिक मात्रा में पाया जाता है।

19.वास्तविक संयोजी ऊतक (Proper Connectiv Tissue)-इस ऊतक में आधात्री बहुत अधिक मात्रा में जेली या अर्द्ध-तरल रूप में पाई जाती है, उसे वास्तविक संयोजी ऊतक है।

20.तंतुमय संयोजी ऊतक (Fibrous Connective Tissue)-इस ऊतक में आधात्री बहुत कम मात्रा में पाई जाती  है, लेकिन रेशे अधिक मात्रा में पाई जाती है।

21.कंकाली संयोजी ऊतक (Skeletal Connective Tissue)-कशेरुकी जंतुओं के शरीर की आकृति तथा आकर स्थिर बनाये रखने के लिए इनके शरीर में एक मजबूत ढांचा पाया जाया है, जिसे कंकाल कहते हैं। यह एक रूपांतरित संयोजी ऊतक का बना होता है, जिसे कंकाली या अवलम्बन ऊतक कहते हैं।

22.संवहनीय संयोजी ऊतक (Vascular Connective Tissue)-रूपांतरित संयोजी ऊतक एक प्रकार का संवहनीय संयोजी ऊतक है, जिसमें मैट्रिक्स तरल होता है, जिसे प्लाज्मा कहते है।


इस लेख में हमने जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology in Hindi) के बारे में जाना । भ्रूणीय विकास में  कोशिका सबसे छोटी इकाई होती है, शरीर में ऐसे ही समान प्रकार के कोशिकाओं के समूह को ऊतक कहा जाता है। विभिन्न परीक्षाओं को दृष्टिगत रखते हुए इस लेख को तैयार किया गया है ।

आशा करता हूँ कि जन्तु ऊतक - पारिभाषिक शब्दावली (Animal Tissues - Terminology in Hindi) का यह लेख आपके लिए उपयोगी साबित होगा , अगर आपको यह लेख पसंद आये तो इस लेख को शेयर अवश्य करें।

ऊडोगोनियम का जीवन-चक्र (Life cycle of Oedogonium in Hindi)

नमस्कार दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। इस लेख में हम ऊडोगोनियम का जीवन-चक्र के बारे में जानने वाले हैं। ऊडोगोनियम ,मुक्त जीवित हरे शैवाल की एक प्रजाति है। ऊडोगोनियम को डब्ल्यू हिल्स ने 1860 में बार पोलैंड के ताजे पानी में देखा था। ऊडोगोनियम यौन प्रजनन विषम है।विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में ऊडोगोनियम के जीवन चक्र से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं । ऊडोगोनियम के जीवन चक्र के बारे में जानने के लिए इस लेख को पूरा जरुर पढ़ें।

वर्गीकृत स्थिति (Systematic Position)

प्रभाग (Division) – थैलोफाइटा (Thallophyta)

अप्रभाग (Sub-division) - ऐल्गी (Algae)

वर्ग (Class) - क्लोरोफाइसी (Chlorophyceae)

गण (Order) – ऊडोगोनिएल्स (Oedogoniales)

कुल (Family) – ऊडोगोनिएसी (Oedogoniaceae)

वंश (Genus) – ऊडोगोनियम (Oedogonium)

प्राप्ति स्थल – ऊडोगोनियम स्थिर मृदुजलीय, सर्वव्यापी हरा शैवाल है जो कि जल संग्राहक के अधोस्तर (Substracturne) से स्थापनांग (Holdfast) से जुड़ा रहता है।

ऊडोगोनियम के जीवन-चक्र का वर्णन कीजिए। (Life cycle of Oedogonium)


ऊडोगोनियम का जीवन-चक्र (Life Cycle of Oedogonium)

ऊडोगोनियम के जीवन-चक्र का वर्णन संरचना एवं प्रजनन के अंतर्गत किया जा रहा है।

Oedogonium tantu

शूकाय संरचना (Thallus Structure)

(i) इसका शूकाय अशाखित, बहुकोशिकीय तंतुओं में बने होते हैं।

(ii) ये तीन तरह की कोशिकाओं यथा ऊपरी अर्द्ध चन्द्राकार अग्रस्थ कोशिका (Apical cell) सबसे निचली / अनियमित आकार की, पर्णहरिम रहित स्थापनांग तथा दोनों के बीच स्थित अंतर्वेशी कोशिकाओं की बनी होती है।

(iii) कुछ अन्तर्वेशी कोशिकाओं में छल्लेनुमा रचना के रूप में गोपक लगे रहते हैं, ऐसी कोशिकाओं को (Cap Cells) गोपक कोशिका कहते हैं।

(iv) प्रत्येक कोशिका एककेन्द्रकीय तथा पायरीनाइडयुक्त जालिकावत (स्थापनांग को छोड़कर) क्लोरोप्लास्ट युक्त होती है। प्रजनन Reproduction) - ऊडोगोनियम अलैंगिक तथा लैंगिक प्रकारों से प्रजनन करता है।

प्रजनन (Reproduction) -

ऊडोगोनियम अलैंगिक तथा लैंगिक प्रकारों से प्रजनन करता है। अलैंगिक प्रजनन अनुकूल परिस्थिति में जलबीजाणुओं (Zoospores) द्वारा तथा प्रतिकूल परिस्थिति में निश्चेष्ट बीजाणु (Arcinete) के द्वारा होता है। जूस्पौर के निर्माण के समय कुछ अन्तर्वेश कोशिकाएँ (Intercalary cells) जूम्पोरेजियम की तरह कार्य करने लगती हैं। अनुकूल परिस्थिति में जूस्पोरेजियम का समस्त आंतरिक भाग रूपान्तरित होकर अर्द्धचन्द्राकार बहुकशाभिकीय रचना अर्थात जूस्पोर में बदल जाता है। कोशिका की भित्ति पर दरार निर्मित होता है उससे होकर जूस्पोरेंजियम का आंतरिक पदार्थ बैलून की तरह के आशय में बाहर आ जाता है। आशय की भित्ति के घुल जाने के बाद जूस्पोर स्वतंत्र रूप से तैरने लगते हैं।

जूस्पोर अंततः अधोस्तर के सम्पर्क में आते हैं, इनकी कुशाभिकाएँ समाप्त हो जाती हैं यह अनुप्रस्थ विभाजन द्वारा बँटकर आधारीय कोशिका (basal cell) तथा अग्रस्थ कोशिका (apical cell) में बँट जाता है। आधारीय कोशिका से स्थापनांग (Hold fast) तथा अग्रस्थ कोशिका क्रमिक रूप से विभाजित होकर नये तंतु में बदल जाती है।

लैंगिक प्रजनन (Sexual Reproduction ) - ऊडोंगोनियम में लैंगिक जनन ऊगैमस (Oogsmous) का होता है। नर जननांग एन्थ्रिडियम (Antheridium) तथा मादा जननांग ऊगोनियम (Oogonium) कहलाता है। इसकी जातियाँ समजालिक तथा विषमजालिक दोनों प्रकारों की होती हैं। लैंगिक जनन एवं जननांग की प्रकृति के आधार पर ऊडोगोनियम की जातियाँ दो प्रकार की होती हैं

(a) मैक्रेण्ड्स प्रकार की जातियाँ (Macrandrous type)

(b) नैनेड्स प्रकार की जातियाँ (Nanandrous type)

मैकेन्ड्स प्रकार में एन्थ्रिडिया तथा ऊगोनिया तंतुओं पर ही बनते हैं जबकि नैनेन्ड्स प्रकार की ऊडोगानियम की जातियों में एन्थ्रिडिया का निर्माण विशेष प्रकार के 2-5 कोशिकीय छोटे तंतुनुमा शाखा में होता है जिसे ड्वार्फ नर या वामन नर (Dwarf male) या नैनन्ड्रियम (Nannan drium) कहते हैं। नैनन्ड्रियम विशिष्ट प्रकार के बहु कशाभिकीय एण्ड्रोस्पोर ( Androspore) से बनते हैं एण्ड्रोस्पोर सामान्य कोशिका के मैकेन्ड्रस प्रकार की जातियों से विकसित होने वाले एन्थ्रिडिया की तरह ही विकसित होते हैं तथा ऊगोनियम (Oogonium) के कोशिकीय भित्ति र (Cell wall) या सपोर्टिंग कोशिका से चिपकने के पश्चात् अंकुरित होकर 2-5 कोशिकीय तंतु अर्थात नैनेन्ड्रियम का निर्माण करते हैं जिनकी कोशिकाएँ एन्थ्रिडियम (Anthe ridium) की तरह कार्य करती हैं तथा उनमें एन्थ्रोजोइड्स र (Antherozoids) बनते हैं।

(a) एन्थ्रिडियम का निर्माण (Development of Anthe ridium) - कोई भी कोशिका जो एन्थ्रिडियम का निर्माण करने वाली होती है उसे एन्थ्रिडियल आरंभक (Anthe ridial initial) कहते हैं। प्रत्येक एन्थ्रिडियम का प्रोटोप्लाज्म एक या दो समसूत्री विभाजन द्वारा बँट जाती है। प्रत्येक माइटोटिक खण्ड अंततः एककेन्द्रकीय बहुकशाभिक * एन्थेरोजोइड में बदल जाता है। नैनेन्ड्स प्रकार की जाति में एन्ड्रोस्पोर ऊगोनियम की भित्ति के संसर्ग में आते हैं अंकुरित होकर 2-5 कोशिकाओं वाली रचना अर्थात वामन नर तंतु (dwarf male) बनाता है। एण्ड्रोस्पोर के विभाजन से बने अग्रस्थ कोशिका से विभाजन पश्चात् एन्थ्रिडिया तथा उससे एन्थ्रोरोजॉइड्स बनते हैं।

(b) ऊगोनियम का निर्माण (Development of Oogonium)- इसका निर्माण किसी भी वर्धी कोशिका से हो. सकता है। कगोनियम के निर्माण के क्रम में सबसे पहले ऊगोनियल मातृ कोशिका लम्बवत् विभाजन द्वारा दो कोशिकाओं मैं बँट जाती है। निचली कोशिका छोटी होती है तथा आधार कोशिका की तरह कार्य करती है जबकि ऊपरी कोशिका फूलकर गोल या अण्डाकार रचना के रूप में ऊगोनियम में बदल जाती है इसका आंतरिक पदार्थ अंनतः एक अण्ड (Egg) में कायान्तरित हो जाता है।

Development of Oogonium


निषेचन एवं नये शूकाय का निर्माण (Fertilization & Development of New Thallus) –

रासायनिक आकर्षण के फलस्वरूप एन्थ्रोजॉइड ऊगोनिया तक पहुँचता है। इसी समय ऊगोनियम में एक छिद्र वन जाते हैं। इस छिद्र से होकर एन्थ्रोजॉइड का केन्द्रक अण्ड के पास जाकर उससे संलयित होकर जायगोट बनाता है। जॉयगोट बाद में मोटी भित्ति से घिर जायगोस्पोर में बदल जाता है। अनुकूल वातावरण आने की स्थिति में इनका केन्द्रक अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा बँटता है तथा 4 केन्द्रकों का निर्माण करता है। प्रत्येक केन्द्रक बहुकोशिकीय जूमियोस्पोर में कायान्तरित हो जाता है। जायगोस्पोर की भित्ति के फटने से ये जूमियोस्पोर वाहर निकलते हैं तथा अलैंगिक जूस्पोर की तरह नये सूकायिक तंतु का निर्माण करते हैं।

जीवन-चक्र पैटर्न (Life Cycle Pattern - Oedogonium)

कडोगोनियम के जीवन-चक्र में चूंकि अगुणित अवस्था ही अधिकतर अवस्थाओं में होती है। अतः ऊडोगोनियम हैप्लॉटिंक (Haplontic) प्रकार का जीवन-चक्र प्रदर्शित करता है।

Life Cycle Pattern

इस लेख में हमने ऊडोगोनियम के जीवन चक्र, ऊडोगोनियम का निर्माण, ऊडोगोनियम का प्रजनन आदि के बारे में जाना । अनेक प्रतियोगी परीक्षाओं में ऊडोगोनियम के जीवन चक्र से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।

आशा करता हूँ कि ऊडोगोनियम के जीवन चक्र से जुड़ा यह लेख आपके लिए लाभकारी साबित होगा ,अगर आपको यह लेख पसंद आये तो इस लेख को शेयर अवश्य करें।

वॉलवॉक्स (Volvox in Hindi) - संरचना, प्रजनन, विशेषताएँ, जीवन चक्र, पुत्री कॉलोनी

नमस्कार दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है। आज के इस आर्टिकल में हम वॉलवॉक्स की संरचना, प्रजनन, विशेषताओं के बारे में जानेंगे। (Volvox - structure, reproduction, characteristics, life cycle, daughter colony in hindi)

वॉलवॉक्स जल में कालोनी बनाकर रहने वाला शैवाल है। कालोनी के सदस्यों की संख्या असंख्य होती है और ये गोलाकार होते हैं। कालोनी के सदस्य कोशिका द्रव के झिल्ली द्वारा एक दूसरे से जुड़े रहते हैं। प्रजनन अलैंगिक और लैंगिक दोनो प्रकार से होता है। (श्रेणि-वाल्वॉक्स) वालवॉक्स की कालोनी को सिनोबियम कहा जाता है। वॉलवॉक्स कालोनी में पाये जाने वाली कोशिकाएं दो की गुणक होती है।

इन्हें भी पढ़े - Pendri Talab Mungeli (एक चमत्कारी तालाब)

वॉलवॉक्स - संरचना, प्रजनन, विशेषताएँ, जीवन चक्र, पुत्री कॉलोनी (Volvox - structure, reproduction, characteristics, life cycle, daughter colony)

The structure of the Volvox

बॉलवॉक्स (Volvox) के सूकाय की संरचना क्लैमाइ डोमोनास (Chlamydomonas) के समान होती है। सीनोबियम की प्रत्येक कोशिका नाशपाती के आकार की (Pear-shaped) होती है। इसकी प्रत्येक कोशिका में एक कपनुमा क्लोरोप्लास्ट (Cup-shaped chloro plast) पाया जाता है, जिसमें एक पाइरीनॉइड (Pyrenoid) उपस्थित रहता है। इसकी प्रत्येक कोशिका में एक नेत्र बिन्दु (Eye spot), दो संकुचनशील रिक्तिका (Contrac tile vacuoles), एक केन्द्रक (Nucleus) तथा अग्रभाग पर दो कशाभिका (Flagella) पाये जाते हैं। केन्द्रक कोशिका के मध्य भाग पर उपस्थित रहता है। इसी प्रकार कशाभिका भी कोशिका के अग्र भाग पर पाये जाते हैं। ये समान लम्बाई वाले होते हैं।

वॉलवॉक्स में अलैंगिक प्रजनन (पुत्री कॉलोनी का निर्माण) (Asexual Reproduction in Volvox) 

(i) अलैंगिक जनन सीनोबियम के पश्च-भाग में विकसित विशेष प्रकार की जनन कोशिकाओं द्वारा होता है, इन्हें गोनिडिया (Gonidia) कहते हैं। यह गोनिडिया अन्य कोशिकाओं की अपेक्षा बड़े व सघन कोशिकाद्रव्य प्रदर्शित करते हैं। इनमें सुस्पष्ट केन्द्रक होता है पर नेत्र बिन्दु (Eye spot) का अभाव होता है। कशाभिकाएँ कोशिका में परिवर्तन के साथ प्रिर जाती हैं। 

Volvox Diagram for Practical

The structure of the Volvox cell


(ii) सर्वप्रथम गोनोडियम के आकार में वृद्धि होती है और इसी के पश्चात् तीन अनुदैर्ध्य विभाजन (Vertical -division) एक के बाद एक होते हैं, जिससे आठ कोशिकाएँ बन जाती हैं और इस अवस्था को प्लैकिया अवस्था (Plakea stage) कहते हैं। सभी नई बनी कोशिकाएँ एक प्लेट में व्यवस्थित रहती हैं। 

(iii) इन 8 कोशिकाओं में एक और अनुदैर्ध्य विभाजन से 16 कोशिकाएँ बन जाती हैं, जो एक खोखले गोलक के रूप में व्यवस्थित रहती हैं। इस खोखली गोलकनुमा रचना में अग्र ध्रुव (Anterior pole) की ओर एक छिद्र होता है, जिसे फायलोपोर (Phialopore) कहते हैं। फायलोपोर सीनोबियम की परिधि दिष्ट (Oriented) होती है। 16 कोशिकाएँ क्रमिक विभाजनों के द्वारा क्रमशः 32, 64 एवं 128 कोशिकाएँ बनाती हैं।

(iv) इस अवस्था में सभी कोशिकाएँ उल्टी व्यवस्थित रहती हैं, क्योंकि इन कोशिकाओं का अग्र नुकीला भाग गोलक के केन्द्र की ओर दिष्ट रहता है। इन कोशिकाओं के सही रूप से व्यवस्थित होने के लिये गोलक में व्यवस्थित कोशिकाओं में प्रतिलोमन (Inversion) होता है। प्रतिलोमन के प्रारम्भ में गोलक एक पश्च-भाग में अर्थात् फॉयलोपोर से विपरीत दिशा में एक संकीर्णन (Con striction) उत्पन्न होता है और इसी के साथ पश्च- भाग की कोशिकाओं को फायलोपोर की ओर ढकेलता है। इसी समय कोशिकाओं के खिसकने से फायलोपोर और अधिक चौड़ा हो जाता है तथा इस विस्थापन (Shifting) के पश्च भाग की कोशिकाएँ फायलोपोर द्वारा बाहर की ओर आ जाती हैं और कोशिकाओं का अग्र नुकीला भाग जो प्रक्रिया के प्रारम्भ में गोलक के केन्द्र की ओर दिष्ट था, सीनोबियम की परिधि की ओर चला जाता है। इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को प्रतिलोमन कहते हैं।

(v) प्रतिलोमन प्रक्रिया के समय पुत्री कॉलोनी की सभी कोशिकाएँ नग्न होती हैं। इस प्रक्रिया के पूर्ण होने के पश्चात् ये सभी कोशिकाएँ कशाभिका (Flagella), कोशिका भित्ति आदि स्रावित कर लेती हैं और इस प्रकार प्रत्येक गोनोडियम के कोशिका भित्ति के अन्दर एक पुत्री कॉलोनी (Daughter colony) का निर्माण होता है। 

एक जनक सीनोबियम (Parent coenobium or colony) के अंदर एक साथ अनेक पुत्री कॉलोनियों का इन गोनिडिया द्वारा निर्माण होता है। पुत्री कॉलोनी कोशिका के अंदर उपस्थित जिलेटिन मैट्रिक्स (Gelatin-matrix) में स्थापित रहती हैं। इन पुत्री कॉलोनियों का विमोचन अधिकतर जनक-मण्डल के विघटन होने से होता है। (vii) प्रत्येक पुत्री कॉलोनी स्वतन्त्र होकर, पोषण प्राप्त कर एवं परिपक्व होकर उपर्युक्त विधि अनुसार फिर से अलैंगिक जनन द्वारा पुत्री कॉलोनी उत्पादित करती है।

वॉलवॉक्स में लैंगिक प्रजनन एवं जीवन चक्र (Sexual Reproduction and Life Cycle of Volvox)

volvox diagram in hindi

volvox coenobium in hindi


वॉलवॉक्स (Volvox) में लैंगिक प्रजनन अण्डयुग्मी (Oogamous) प्रकार का होता है तथा यह वृद्धि अवस्था के अन्तिम चरण में पूर्ण होता है। इसके नर प्रेजननांग (Male sex organ) को ऐन्ब्रीडिया (Antheridia) तथा मादा प्रजननांग (Female sex organ) को ऊगोनिया (Oogania) कहते हैं। नर एवं मादा का निर्माण एक अथवा अलग अलग सूकायों पर होता है। बॉलवॉक्स ऑरेन्स (V.aurens) एकलिंगाश्रयी (Dioecious) तथा वॉ. ग्लोबेटर. (V. globator) उभयलिंगा श्रयी (Monoecious) होता है।

वॉलवॉक्स की विशेषताएँ (characters of volvox)

  1. प्रत्येक प्राणी जगत दो कशाभिकाओं, दो सिकुड़ा हुआ रिक्तिकाएं, क्लोरोप्लास्ट और एक कप जैसे केन्द्रक से बना होता है।
  2. द्विआधारी विखंडन द्वारा अलैंगिक प्रजनन।
  3. एक परिपक्व कॉलोनी खोखला गोला होता है जिसमें कई दैहिक कोशिकाएं या पुत्री कोएनोबियम होते हैं।
  4. जूइड्स को दैहिक और प्रजनन कोएनोबियम में विभेदित किया जाता है।
  5. यौन प्रजनन के दौरान कुछ विशेष कोशिकाएं एथेरिडिया माइक्रोगैमेट्स उत्पन्न करती हैं और अन्य कोशिकाएं आर्कगोनिया मैक्रोगैमेट्स उत्पन्न करती हैं।
  6. पोषण का प्रकार होलोफाइटिक है।
  7. Volvox एक पेलजिक ताजा पानी और बड़ा गोलाकार औपनिवेशिक रूप है जो तालाबों और खाइयों, झीलों के साथ-साथ प्लवक में पाया जाता है।
आज के इस आर्टिकल में हमने वॉलवॉक्स की संरचना, प्रजनन, विशेषताओं के बारे में जाना। विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में वॉलवॉक्स की संरचना, प्रजनन, विशेषताओं से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।

उम्मीद करता हूँ कि  वॉलवॉक्स की संरचना, प्रजनन, विशेषताओं का यह आर्टिकल आपके लिए उपयोगी साबित होगा, अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आये तो आर्टिकल को शेयर जरुर करें।

वॉलवॉक्स की कोशिका संरचना
वॉलवॉक्स के लक्षण हिंदी में
वॉलवॉक्स में प्रजनन का वर्णन
वॉलवॉक्स की बेटी कॉलोनी
वॉलवॉक्स का चित्र"
वॉलवॉक्स का जीवन चक्र
वॉलवॉक्स की आंतरिक संरचना
वॉलवॉक्स का चित्र
वॉलवॉक्स के लक्षण हिंदी में
वॉलवॉक्स का वर्गीकरण
वॉलवॉक्स में प्रजनन का वर्णन
वॉलवॉक्स की बेटी कॉलोनी

माइकोप्लाज्मा क्या हैं? (What is mycoplasma in Hindi)

माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) क्या हैं ? माइकोप्लाज्मा की संरचना (mycoplasma kya hai in hindi)

नमस्कार दोस्तों ANSWERDUNIYA.COM में आपका स्वागत है। क्या आप भी माइकोप्लाज्मा क्या हैं? के बारें में जानना चाहते है. तो आप सही वेबसाइट में आये है क्योंकि आज के इस आर्टिकल में आप जानने वाले है माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) के बारे में, ये ऐसे जीवधारी होते है जिनमें कोशिका भित्ति नहीं पायी जाती है | माइकोप्लाज्मा सूक्ष्म सजीव होते हैं। माइकोप्लाज्मा की खोज नोकार्ड और रॉक्स ने 1898 में की थी। छोटे आकार के प्लाज्मा को माइकोप्लाज्मा (microplasma) कहते हैं. जिसका आकार 10 मिलीमीटर के आसपास होता है। माइकोप्लाज्मा को विभिन्न तापमान, दाब पर उत्पन्न किया जा सकता है और यह 'तापीय' या 'अतापीय' प्लाज्मा हो सकता है। अनेक परीक्षाओं में भी माइकोप्लाज्मा  से जुड़े प्रश्न पूछे जाते हैं।

mycoplasma kya hai in hindi


Table of content: -

  • माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) क्या हैं?
  • माइकोप्लाज्मा के लक्षण तथा संरचना (symptoms and Structure of Mycoplasma)
  • माइकोप्लाज्मा में प्रजनन (Reproduction in Mycoplasma)
  • माइकोप्लाज्मा का महत्व (Importance of Mycoplasma)

माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) क्या हैं?

माइकोप्लाज्मा आकारिकीय बहुरूपता का प्रदर्शन करने वाले कोशिका भित्ति रहित एककोशिकीय प्रोकैरियोटिक सूक्ष्म जीव होते हैं। इन्हें प्रोकैरियोटा जगत के स्कोटोबैक्टीरिया (Scoto bacteria) प्रभाग के मॉलिक्यूटस (Mollicutes) वर्ग के आर्डर तथा कुल के अंतर्गत माइकोप्लाज्मेटेल्स (Mycoplasmatles) माइकोप्लाज्मेटेसी (Mycoplasmataceae) रखा गया है। छोटे आकार के प्लाज्मा को माइकोप्लाज्मा (microplasma) कहते हैं जिसका आकार 10 मिलीमीटर के आसपास होता है। माइक्रोप्लाज्म को विभिन्न तापमान, दाब पर उत्पन्न किया जा सकता है और यह 'तापीय' या 'अतापीय' प्लाज्मा हो सकता है।

mycoplasma-cell


(i) माइकोप्लाज्मा कि खोज पाश्चर (Pasteurs, 1843) ने किया, परन्तु पृथक्कृत करने में असफल रहे। नोकार्ड एवं रॉक्स (Noccard and Roux, 1898) ने इसे पृथक्कृत किया। इसलिए इन्हें माइकोप्लाज्मा के खोज का श्रेय जाता है तथा PPLO (Pleuropneumonia Like Organism) कहा। 

(ii) बोरेल एवं उनके सहयोगियों (Borrel et al. 1910) ने मायकोप्लाज्मा के लिए एस्टेरोकॉकस मायकॉयडिस (Asterococaus mycoides) नाम दिया। 

(iii) माइकोप्लाज्मा नाम नोवाक (Nowak1929) के द्वारा दिया गया।

माइकोप्लाज्मा के लक्षण तथा संरचना (Cularacter and Structure of Mycoplasma)

  1. माइकोप्लाज्मा एककोशिकीय प्रोकैरियोटिक तथा बहुरूपी जीव होते हैं। ये कार्बनिक प्रचुर माध्यम में गोलाभ तंतुल, ताराकार (Stellate), वृत्त (Circle) आदि के रूप में मिलते हैं। इनके इस बहुरूपी गुण के कारण इन्हें पादप जगत का विदूषक (Jokers of Plant Kingdom) कहा जाता है। - 
  2. ये प्रायअचल तथा कोशिका भित्ति विहीन होते. हैं। इनकी कोशिका लिपिड एवं प्रोटीन की बनी एक त्रिस्तरीय इकाई झिल्ली से घिरी होती है। 
  3. ये परजीवी तथा मृतोपजीवी- दोनों प्रकार के हो सकते हैं। 
  4. इसमें दोनों प्रकार के न्यूक्लिक अम्ल अर्थात DNA (4%) तथा RNA (8%) उपस्थित होते हैं।
  5. ये पेनिसिलिन, एम्पिसिलिन आदि प्रतिजैविक के प्रति अत्यंत प्रतिरोधी होते हैं लेकिन क्लोरामफेनिकॉलटेट्रासायक्लिन, इरिथ्रोमायसिन नामक जीवद्रव्य पर क्रियाशील प्रतिजैविकों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होते हैं। 
  6. इसके कोशिका द्रव्य में DNA, RNA के अतिरिक्त राइबोसोम्स (70s), घुलनशील प्रोटीन्स उपापचयी उत्पाद पदार्थ (metabolite) उपस्थित होते हैं। 
  7. संवर्द्धक माध्यम पर मायकोप्लाज्मा तले हुए अंडे की सी कॉलोनी के रूप में दिखते हैं। 
  8. इसका आमाप 330A से 500A होता है। माइकोप्लाज्मा होमिनिस (Mycoplasma hominis) को सबसे छोटा माइकोप्लाज्मा (300A) तथा सूक्ष्मतम जीव की मान्यता दी जाती है। 
  9. माइकोप्लाज्मा कोलेस्टेरॉल तथा कोलेस्टोइस्टर नामक पदार्थ की उपस्थिति में पोषण एवं वृद्धि की प्रक्रियाओं का प्रदर्शन करते हैं।
structure-of-Mycoplasma


माइकोप्लाज्मा में प्रजनन (Reproduction in Mycoplasma) – 

Reproduction in Mycoplasma


मायकोप्लाज्मा में प्रजनन की क्रिया कलिकायन (budding) तथा द्विविखण्डन (Binary Fission) के द्वारा होती है। मायकोप्लाज्मा लेडलेवी (Mycoplasma laidlavi) में प्रजनन की क्रिया का अध्ययन किया गया है। इनके प्रजनन एवं जीवन चक्र में चार अवस्थायें बनती हैं जो कि प्राथमिक कोशाकाय (Primary or elemantary cell body)द्वितीयक कोशा काय (Secondary or Interme diate call body) तृतीयक कोशिका काय (Large or Tertiary cell body) तथा चतुर्थक कोशा काय (Quar ternary cell body) कहलाते है। प्राथमिक कोशा काय ही बढ़कर द्वितीयक कोशाकाय अथवा मध्यस्थ कोशाकाय में परिणत हो जाते हैं। द्वितीयक कोशाकाय से तृतीयक अवस्थ (Large cell body) विकसित होती है जिसके अंदर प्राथमिक

माइकोप्लाज्मा का महत्व (Importance of Mycoplasma)- 

माइकोप्लाज्मा अपने ऋणात्मक महत्व के लिए ही जाना जाता है। इसकी 60 से अधिक ऐसी प्रजातियाँ ज्ञात है जो स्तनधारियों कीटों (insects) तथा पादपों में विभिन्न रोग पैदा करती हैं। माइकोप्लाज्मा के कारण पौंधों में नींबू का ग्रीनिंग रोग, गन्ने का घासी प्ररोह (Grassy shoot disease), चन्दन का स्पाइक रोग, बैंगन का लघुपर्णी रोग (Little leaf disease) जैसे रोग फैलते हैं। माइकोप्लाज्मा के कारण पौधों में बौनापन, पत्तियों में पीलापन (etiolation), पुष्पों का पत्तियों की तरह हो जाना (philloidy), पर्व तथा पत्तियों के अत्यधिक छोटा हो जाने जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं। जन्तुओं में पालतू पशुओं जैसे-गाय, भैस का प्लूरोन्यूमोनिया रोग, भेड़-बकरी का एगलैक्टि रोग प्रमुख हैं। मनुष्यों में जननांग शोथ (Genital inflamation disease), बन्ध्यता (Sterilitly) जैसे रोग माइकोप्लाज्मा के कारण होते हैं।

माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) से सम्बंधित FAQs

1. माइकोप्लाज्मा का दूसरा नाम क्या है?

माइकोप्लाज्मा सूक्ष्मतम, एक कोशिकीय, बहुरूपी, प्रोकैरियोटिक जीव हैं। इन्हें “पादप जगत का जोकर' कहा जाता है। माइकोप्लाज्मा को विभिन्न तापमान, दाब पर उत्पन्न किया जा सकता है और यह 'तापीय' या 'अतापीय' प्लाज्मा हो सकता है।

2. माइकोप्लाज्मा से कौन सा रोग होता है?

  1. चंदन का स्पाइक 
  2. रोग आलू का कुर्चीसम 
  3. रोग कपास का हरीतिमागम 
  4. बैंगन का लघु पर्ण रोग 
  5. गन्ने का धारिया रोग 
  6. ऐस्टर येलो 

3.माइकोप्लाज्मा की कितनी प्रजातियां हैं?

माइकोप्लाज्मा बैक्टीरिया लगभग 200 प्रकार के होते हैं, लेकिन उनमें से अधिकांश हानिरहित होते हैं।


आज के इस पोस्ट में हमने माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) क्या हैं, लक्षण, सरंचना, प्रजनन एवं महत्त्व के बारे में विस्तृत रूप से जाना। माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) विज्ञान का एक महत्वपूर्ण टॉपिक है इसलिए विज्ञान के विद्यार्थियों को माइकोप्लाज्मा (Mycoplasma) क्या हैं के बारे में जरुर जानना चाहिए।

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सायनोबैक्टीरिया क्या है- लक्षण, संरचना एवं प्रजनन (What is Cyanobacteria - Characteristics, Structure and Reproduction)

सायनोबैक्टीरिया क्या है ? सायनोबैक्टीरिया की संरचना एवं प्रजनन विधियों का वर्णन कीजिए।

हेल्लो दोस्तों आज के इस लेख में हम सायनोबैक्टीरिया क्या है ? संरचना एवं प्रजनन विधियों का वर्णन आदि के बारे में विस्तृत रूप से जानेंगे। सायनोबैक्टीरिया क्या है ? से सम्बंधित सारे सवालों के जवाब नीचे दिया गया है.

इस पोस्ट से पहले जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) क्या हैं? के बारे में आर्टिकल लिखा गया है जिसे आप लिंक पर क्लिक करके फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं।

what-is-cyanobacteria-structure-and-description-of-reproduction-methods.

Table of content: -

  • सायनोबैक्टीरिया क्या हैं (Cyanobacteria)
  • सायनोबैक्टीरिया के लक्षण (Characters of Cyanobacteria) 
  • सायनोबैक्टीरिया की संरचना (Cell structure of cyanobacteria) 
  • सायनोबैक्टीरिया में प्रजनन (Reproduction in cyanobacteria) 
  • सायनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Cyanobacteria)


सायनोबैक्टीरिया क्या हैं (Cyanobacteria)

सायनोबैक्टेरिया शैवाल (Algae) तथा जीवाणु दोनों के बीच का सेतु जीव माना जाता है, क्योंकि यह दोनों के लक्षणों का धारक होता है। ये जीवाणुओं की तरह प्रोकैरियोटिक तथा शैवालो की तरह प्रकाश-संश्लेषण करने की क्षमता वाले जीवों होते हैं। ये जीवाणुओं की तरह सरल संरचना प्रदर्शित करते हैं तथा दोनों विखण्डन द्वारा गुणित होते हैं। इन्हीं लक्षणों के आधार पर बैक्टीरिया के अंतर्राष्ट्रीय कोड (International code of nature of bacteria, 1978) के अनुसार नील हरित शैवालों को सायनोबैक्टीरिया नाम दिया गया।

सायनोबैक्टीरिया के लक्षण (Characters of Cyanobacteria) 


(i) सायनोबैक्टीरिया एककोशिकीय या बहुकोशिकीय तन्तुवत ग्राम ऋणात्मक (gram negative) प्रकृति वाले रंगीन (Pigmental) जीवाणु हैं, जिसमें क्लोरोफिल a, कैरोटिनाइड्स, सी-फायकोसायनिन तथा सी-फायकोइरीथ्रिन नामक प्रकाश-संश्लेषी वर्णक पाए जाते हैं। ये ऐसे जीवाणु हैं जो प्रकाश संश्लेषण में हाइड्रोजन के स्रोत के रूप में पानी का प्रयोग करते हैं। 

इन्हें भी पढ़े - माइटोकॉन्ड्रिया की संरचना पर सक्रिय अभिगमन

(ii) इनकी कोशिका प्रोकैरियोरिक होती है तथा उनमें माइटोकॉन्ड्रिया, गोल्जीबॉडी जैसे कोशिकांगों का पूर्णतः अभाव होता है।

(iii) केन्द्रक पदार्थ गुणसूत्र के रूप में सुसंगठित न होकर स्वतंत्र DNA के रूप में होता है।

(iv) इनमें जननांग (Sex organas) तथा चलनशील वर्धी एवं प्रजनन कोशिकाएँ अनुपस्थित होती हैं उनमें लैंगिक जनन नहीं होता है। 

(v) सायनोबैक्टीरिया में प्रजनन वर्धी प्रजनन की प्रमुख विधियाँ हैं। विखण्डन (fission) तथा खण्डन वर्धी प्रजनन को प्रमुख विधियाँ हैं। 

(vi) कुछ तन्तुवत सायनोबैक्टेरिया में अपेक्षाकृत बड़ी गोलाकार कोशिकाएँ पायी जाती हैं जिसे हेटेरोसिस्ट (Hetero. cyst) कहते हैं। हेटेरोसिस्ट युक्त सायनोबैक्टेरिया में नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्षमता होती है। 

(vii) इनकी कोशिकाओं की कोशिकाभित्ति के मुख्य घटक भी म्यूकोपॉलिमर्स होते हैं। इनका प्रमुख वर्णक C. फायकोसायनिन (C-phycocyanin) होता है।

सायनोबैक्टीरिया की संरचना (Cell structure of cyanobacteria) 


(i) प्रत्येक कोशिका के बाहरी म्यूकोपॉलिसैकेराइड का बना श्लेष्मीय आच्छद (Mucilagenous sheath) होता है।

(ii) प्लाज्मा झिल्ली त्रिस्तरीय तथा लाइपोप्रोटीन की बनी होती है। 

(iii) परिधीय क्षेत्र में C-फायकोसायनिन तथा C- फाइकोइरीथ्रिन नामक वर्णक युक्त थाइलेकॉयड (Thylakoid) अर्थात् प्रकाश संश्लेषीय लैमिली (Photosynthetic lamellae) की बहुलता के कारण यह क्षेत्र वर्गीकृत क्षेत्र (Pig mented region) के रूप में परिलक्षित होता है। 

(iv) कोशिकाद्रव्य में भोज्य पदार्थों के रूप में सायनो फाइसयन स्टार्च (cyanphycean starch) सायनोफाइसियन ग्रेन्यूज्स (cyanophycean granules), प्रोटीन कणिकाओं के रूप में ऑस्मोफिलिक बॉडीज (Osmophillic bodies), मेटाक्रोमैटिन ग्रेन्यूल्स (metachromatin granules), उपस्थित रहते हैं। 

(v) 70s प्रकार के राइबोसोम्स पूरे कोशिकाद्रव्य में चारों ओर बिखरे हुए रहते हैं। न्यूक्लिअस के बदले केवल DNA के सूक्ष्म तंतु अनियमित रूप से विपरीत अवस्था में पाये जाते हैं। DNA के साथ-साथ RNA भी पाया जाता हैं।

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सायनोबैक्टीरिया में प्रजनन (Reproduction in cyanobacteria) 


सायनोबैक्टीरिया में केवल वर्धी तथा अलैंगिक प्रजनन ही होता है 

(a) वर्धी प्रजनन (Vegetative Reproduction) - यह विखण्डन, खण्डन अथवा हार्मोगोन्स के द्वारा होता है। 

(1) विखण्डन (Fission)- इस प्रकार के वर्धी प्रजनन में कोशिका में वलयकार उभार स्पष्ट रूप से उपस्थित कोशिका को दो बराबर भागों में विभक्त कर देता है। इस प्रक्रिया में आनुवंशिक तथा अन्य जीवद्रव्यीय पदार्थ भी दो भागों में बँट जाते हैं।

उदाहरण - एककोशिकीय सायनोबैक्टीरिया 

1. खण्डन (Fragmentation ) - इस विधि में सायनोबैक्टीरिया के तन्तु या कॉलोनी दुर्घटना अथवा यांत्रिक क्षति के कारण छोटे-छोटे खण्डों में विभक्त हो जाते हैं तथा प्रत्येक खण्ड नये तन्तु या कॉलोनी का निर्माण करते हैं। 

उदाहरण – सिलिन्ड्रोस्पर्मम (cylindrospermum)। 

2. हॉर्मोगोन्स द्वारा (By Harmogones) – तन्तु रूपों के ट्राइकोम्स शीथ (sheeth) के अंदर ही छोटे-छोटे भागों (Segments) में विभक्त हो जाते हैं जो कि हॉर्मोगोनिया कहलाते हैं। कुछ सायनोबैक्टीरिया में हार्मोगोन्स मोटी भित्ति वाले हो जाते हैं जिससे हार्मोस्पोर्स (hormospores) विकसित होते हैं जो कि आगे चलकर स्वतंत्र तन्तु में परिणत हो जाते हैं। 

उदाहरण – वेस्टिएला (Westiella), ऑसिलेटोरिया (Osellatoria), नॉस्टॉक (Nostock)। 

अलैंगिक प्रजनन (Asexual Reproduction) - सायनोबैक्टीरिया में अलैंगिक जनन निम्न प्रकार के बीजाणुओं के बनने के कारण होता है – 

(a)एकाइनीट्स द्वारा (By Akinetes) — ये वर्धी कोशिकाओं के वृद्धि करने तथा समस्त कोशिका के मोटी भित्ति से घिर जाने के फलस्वरूप बनती हैं। ये अनुकूल दशा के आगमन पर अंकुरित होकर नया तन्तु बनाते हैं। 

उदाहरण - एनाबीना (Anabaena) 

(b) एण्डोस्पोर्स द्वारा (By Endospores) – ये कोशिका के अंदर विभाजनों के फलस्वरूप मोटी भित्ति वाले बीजाणु के रूप में बनते हैं। कोशिका से निकलने के बाद अंकुरित होकर ये नये तन्तु का निर्माण करते हैं। 

उदाहरण - कैमीसायफन (Chamaesiphon), डर्मोकार्प (Dermocarpa) 

(c) एक्सोस्पोर द्वारा (By Exospore) - कैमीसायफन इनक्रस्टैन्स (Chamaesiphon incrustans) में कोशिका का जीवद्रव्य बाहर आकर जीवाणु में बदल जाता है जिसे एक्सोस्पोर कहते हैं जो कि विकसित होकर नये तंतु का निर्माण करता है। 

(d) नैनोसायटस द्वारा (By nanocytes)- एफैनोथीका (Aphanotheca), माइक्रोसिस्टिस (Microcystis) आदि में कोशिका में जीवद्रव्यीय विभाजन के फलस्वरूप अत्यंत छोटी-छोटी इकाई रचनाओं के रूप में बीजाणु बनते हैं जिसे नैनोसाइट (nanocyte) कहते हैं। प्रत्येक नैनोसाइट से एक-एक तंतु विकसित होता है। 

सायनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्व (Economic Importance of Cyanobacteria)- 

सायनोबैक्टीरिया के सदस्य जैविक समुदाय के लिए लाभदायक तथा हानिकारक दोनों प्रकार से अपना महत्व प्रदर्शित करते हैं।

(A) लाभदायक महत्व (Useful Importance ) – 


(i) सायनोबैक्टीरिया के लगभग 22 तंतुनुमा काय वाले सदस्य जैसे- नॉस्टॉक (Nostoc), एनाबीना (Anabaena), ऑलोसिरा (Aulosira), एराबिनॉप्सिस (Arabinopsis), कैलोथ्रिक्स (Calothrix), सायटोनीमा (Scytonema) आदि वातावरण के N, को नाइट्रोजन यौगिक में बदलकर N2 स्थिरीकरण (N, Fixation) का कार्य करते हैं तथा भूमि के उपजाऊपन को बढ़ाते हैं। 

(ii) नॉस्टॉक (Nostoc ), एनाबीना (Anabaena), सायटोनीमा (Scytonema) आदि के कुछ स्पीसीज अनुपजाऊ ऊसर जमीन (infertile alkalina soil) को उपजाऊ जमीन में परिवर्तित कर देते हैं। 

(iii) नॉस्टॉक कम्यून (Nostoc commune) को उबालकर सूप (Soup) के रूप में चीन में पीया जाता है। 

(iv) ऑलोसिरा फर्टीलिस्सिमा (Aulosira Feritl issima) अम्लीय प्रकृति के अनुपजाऊ भूमि को उपजाऊ के भूमि में परिवर्तित कर देता है।

(B)हानिकारक महत्व (Harmful Importance) - 


(1) सायनोबैक्टीरिया के कुछ सदस्य स्वीमिंग पूल के फ्लोर के संगमरमर, टाइल्स, दीवारों के प्लास्टर आदि पर उगकर एवं वृद्धि करके उसकी उपयोगिता को कम कर देते हैं तथा इनकी उपस्थिति को नगन्य करने में आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है। 

(ii) सायनोबैक्टीरिया के कुछ सदस्य जैसे माइक्रोसिस्टिस (Microcystis), एनाबीना (Anabaena) आदि तालाब, झील, जल संग्राहक टैंक आदि में अभिवृद्धि करके पानी को संदूषित करने का कार्य करते हैं जिसके कारण पानी के पीने से गैस्ट्रिक बीमारियाँ (Gartric trouble) विकसित होती हैं ।

(iii) माइक्रोसिस्टिस (Microcystis), एनाबीना (Ana bacna) आदि तेजी से वृद्धि करके तालाब, झील आदि के जल की सतह पर अपनी उपस्थिति की एक मोटी परत 'निर्मित करते हैं जिसे वाटर ब्लूम (Water bloom) कहते हैं। ये ऑक्सीजन की कमी होने पर भी तेजी से वृद्धि करते हैं। इनकी मोटी परत के कारण निमग्न पौधे (Submerged plants) तथा जलीय जन्तु (aquatic animals) मर जाते हैं तथा कालान्तर में पानी से दुर्गन्ध आने लगती है। माइक्रोसिस्टिस टॉक्सिका (Microcystis toxica) की उपस्थिति पानी को जहरीला बना देती है।

(iv) नगर निगम के जल छनन संयंत्र (water filteration plant) के फिल्टर में कुछ सायनोबैक्टीरिया विकसित होकर उसे खराब कर नगर निगम को अत्यधिक आर्थिक हानि पहुँचाते हैं।

सायनोबैक्टीरिया से जुडी FAQs -

1. सायनोबैक्टीरिया का वर्तमान नाम क्या है?

नाम साइनोबैक्टीरीया (उनके रंग से आता है यूनानी : κυανός , romanized : kyanós , जलाया 'ब्लू'), उन्हें अपने अन्य नाम दे रही है, " नीली हरी शैवाल",

2. सायनोबैक्टीरिया की कोशिका भित्ति किसकी बनी होती है?

कोशिकाभित्ति (cell wall) – सायनोबैक्टिरिया की कोशिका भित्ति द्विस्तरीय होती है । (अ) बाह्यकोशिका भित्ति – यह लाइपोपोलीसैकेराइड की बनी होती है ।

3. काई को विज्ञान की भाषा में क्या कहते हैं?

सामान्य बोलचाल की भाषा में शैवाल को काई कहते हैं। इसमें पाए जाने वाले क्लोरोफिल के कारण इसका रंग हरा होता है, यह पानी अथवा नम जगह में पाया जाता है। यह अपने भोजन का निर्माण स्वयं सूर्य के प्रकाश से करता है अर्थात कह सकते हैं कि सूर्य का प्रकाश होने पर ही यह उक्त स्थान में पाया जाता है।

4. शैवाल का वैज्ञानिक नाम क्या है?

अल्वा (UIva) को साधारण सलाद (sea lettuce) कहते हैं। नीलहरित शैवाल का नया नाम सायनोबैक्टीरिया (Cyanobacteria) दिया गया है।



ऊपर आपने  सायनोबैक्टीरिया क्या है ? सायनोबैक्टीरिया के लक्षण, सायनोबैक्टीरिया की संरचना, सायनोबैक्टीरिया का आर्थिक महत्व के बारे में जाना। विज्ञान का यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

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जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) क्या हैं? महत्व What is Plasmolysis? and Importance in hindi

जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) अधिकतर कॉलेज और स्कूल एग्जाम में पूछे ही जाते है क्या आप भी सर्च कर रहे है? जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) क्या हैं? और इसका महत्व तो आप सही वेबसाइट पर आये है आज के इस आर्टिकल में आपको जीवद्रव्य कुंचन से जुड़े  सारे सवालों के जवाब मिल जायेंगे।

जीवद्रव्य कुंचन क्या हैं (jivdravya kunchan kya hai)

plasmolysis-what-is-plasmolysis-and-Importance

plasmolysis diagram

इन्हें भी पढ़े - परासरण क्या है? एवं उसके सिद्धान्त 

जीवद्रव्य कुंचन हाल ही में नवीं क्लास में पुछा गया है what is plasmolysis class 9 इस प्रश्न का जवाब आपको नीचे मिल जायेगा रोजाना कॉलेज और स्कूल से सम्बंधित सवालों के जवाब पाने के लिए बने रहिये हमारे साथ.

जीवद्रव्य कुंचन अर्थात् रसाकुंचन एक जैविक क्रिया होती है। अतिपरासरी बाह्य माध्यम विलयन (Hypertonic extracellular solution) की उपस्थिति में कोशिका में स्थित विलायक के अणुओं के गमन ( Movement) की वह प्रक्रिया जिसके कारण जीवद्रव्य कोशिका भित्ति से अपना संपर्क (Contact) छोड़ने लगता है, जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) कहलाता है।

जीवद्रव्य कुंचन की वह स्थिति जिसमें जीवद्रव्य कोशिका भित्ति के संपर्क से हटना शुरू करता है, प्रारंभिक जीवद्रव्य कुंचन ( Incipient Plasmolysis) कहलाता है। इसी तरह वह अवस्था जिसमें जल के बाह्य परासरण की क्रिया तथा जीवद्रव्य के संकुचन की क्रिया जारी रहती है तो अन्ततः जीवद्रव्य कोशिका भित्ति का साथ पूर्णत : छोड़कर एक स्थान पर सिकुड़कर गोल हो जाता है, इसे प्रत्यक्ष जीवद्रव्य कुंचन (Evident Plasmolysis) कहते हैं । द्रव्यकुंचित कोशिका (Plasmolysed) को अगर अल्पपरासरी विलयन या जल में रख दिया जाए तो जीवद्रव्य अपनी पहली वाली स्थिति में लौट आती है, इस प्रक्रिया को जीवद्रव्य विकुंचन (Deplasmolysis) कहते हैं। यह अन्तः परासरण के कारण सम्भव होता है।

जीवद्रव्य कुंचन का महत्व (Significance of Plasmolysis ) 

  1. जीवद्रव्य कुंचन एक कोशिका की सजीवता का निर्धारण करने में सहायक होता है कि यह जीवित है या अजीवित, क्योंकि जीवित कोशिका ही रसाकुंचन का प्रदर्शन करती है। अजीवित कोशिका में यह क्रिया प्रदर्शित नहीं हो पाती है। 
  2. जीवद्रव्य कुंचन प्लाज्मा झिल्ली के अर्द्धपारगम्यता को सत्यापित करता है। 
  3. जीवद्रव्य कुंचन की प्रक्रिया द्वारा किसी भी जीवित कोशिका के परासरण दाब (O.P.) का मापन किया जा सकता है। 
  4. अचार (नमक अधिक), मुरब्बा (चीनी अधिक) आदि का परिरक्षण जीवद्रव्य कुंचन की प्रक्रिया के कारण सम्भव होता है क्योंकि नमक एवं शक्कर के अधिक सान्द्रण होने पर सक्ष्मजीव के जीवद्रव्य का जीवद्रव्यकंचन हो जाता है।

इन्हें पढ़े - पारगम्यता(Permeability) क्या हैं? प्रकार और सिद्धान्त

जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) से सम्बंधित FAQs 

1. जीव द्रव्य कब और किसने खोजा?

जीवद्रव्य की खोज डुजारडिन ने 1835 में की थी तथा सारकोड नाम दिया।

Question - what is plasmolysis?

Answer - The plasmolysis action is the shrinking of protoplasm away from the cell wall of a plant or bacterium.

प्रश्न - प्लास्मोलिसिस क्या है?

उत्तर - प्लास्मोलिसिस क्रिया एक पौधे या जीवाणु की कोशिका भित्ति से दूर प्रोटोप्लाज्म का सिकुड़ना है।

मै उम्मीद करता हूँ कि जीवद्रव्य कुंचन (Plasmolysis) क्या हैं? और महत्व आपको पसंद आये होगा पोस्ट अच्छा लगा तो अपने स्कूल और कॉलेज के दोस्तों के शेयर करे ताकि ओ भी एग्जाम में पीछे न रहे और पूरी जानकारी मिल सके आज के लिए बस इतना ही आपको किसके ऊपर जानकरी चाहिए कमेंट जरुर करे.

परासरण क्या है? osmosis in hindi | parasaran kya hai

नमस्कार आंसर दुनिया की वेब पेज में आपका स्वागत है। इस आर्टिकल में हम परासरण क्या है? एवं उसके सिद्धान्त और परासरण के महत्त्व के बारे में जानने वाले हैं। (osmosis in hindi) किसी पदार्थ या वस्तु में  अधिक सांद्रण से कम सांद्रण की ओर गति परासरण कहलाती है। विभिन्न परीक्षाओं में परासरण से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते हैं। परासरण के बारे में जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें। osmosis in hindi | parasaran kya hai

परासरण क्या है? (parasaran kya hai)

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परासरण क्या है? (What is Osmosis)

परासरण (Osmosis) – परासरण की प्रक्रिया विशिष्ट प्रकार के कार्यिकी प्रक्रिया है जिसमें विलायक के अणुओं का एकरेखीय प्रवाह उसके उच्च सान्द्रण से निम्न सान्द्रण वाले क्षेत्र की ओर होता है। यह क्रिया भी तब तक होती रहती है, जब तक कि दोनों विलयनों की सान्द्रता बराबर नहीं हो जाती है।

इन्हें भी पढ़े - पारगम्यता(Permeability) क्या हैं? प्रकार और सिद्धान्त 

परासरण (Osmosis) दो भिन्न सान्द्रता वाले घोलों के बीच होने वाली एक विशेष प्रकार की विसरण क्रिया है जो एक अर्धपारगम्य झिल्ली के द्वारा होती है। इसमें विलायक के अणु कम सान्द्रता वाले विलयन से अधिक सान्द्रता वाले विलयन की ओर गति करते हैं।

(i) जब यू-नली (U-tube) में जल एवं शर्करा विलयन के अणुओं के मध्य एक अर्द्धपारगम्य झिल्ली लगा दी जाती है तो इससे केवल जल के अणुओं का विसरण विलेय युक्त विलयन की ओर होता है।

(ii) जब दो अलग-अलग सान्द्रता वाले विलयनों को अर्द्धपारगम्य, झिल्ली के द्वारा अलग किया जाता है, तब उस विलयन में घुलनशील विलेय पदार्थों की उपस्थिति के कारण एक दाब उत्पन्न होता है जिसे परासरण दाब (Osmotic Pressure) कहते हैं ।

(iii) परासरण दाब विलयन (Solution) में उपस्थित विलेय के अणुओं के सीधे उत्क्रमानुपाती (Directly Pro portional) होता है। विलायक में विलेय के अणुओं की संख्या के बढ़ने से विलयन का परासरण दाब बढ़ता है।

इन्हें भी पढ़े - वसंतीकरण क्या हैं? खोज और प्रभावित करने वाले कारक 

(iv) बाह्य माध्यम से विलायक के अणुओं का गमन यदि कोशिका में होता है तो परासरण के इस प्रकार को अन्तः परासरण तथा कोशिका से जल के अणुओं का गमन (Movement) बाह्य माध्यम की ओर होता है तो उसे बहिः परासरण (Exo Osmosis) या बाह्य परासरण कहते हैं।

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(v) परासरण की क्रिया का प्रायोगिक प्रदर्शन आलू की कोशिकाओं से सहजता से किया जा सकता है। इसके लिए एक बड़े आलू को दो भागों में काट लें। एक हिस्से को लेकर उसके बाहरी छिलके को छीलकर (Peel out) हटा लें। चाकू की सहायता से बीच का गूदा (Pulp) निकालकर कपनुमा (Cup-shaped) आकृति बना लें। इस गड्ढे में चीनी या नमक का सान्द्र विलयन डालकर निम्न चित्रानुसार पिन की सहायता से उस पर निशान अंकित कर दें।

इस आलू को जलयुक्त बीकर में रख दें। 4-5 घण्टों बाद निरीक्षण करने पर यह देखने को मिलता है कि गड्ढे में चीनी या नमक के विलयन का तल बढ़ गया है। यह प्रक्रिया जल का आलू की विभेदक पारगम्य झिल्ली से चीनी या नमक के घोल में अन्तः परासरण (Endo-osmosis) के कारण सम्भव होता है। विलयन तथा जल को विपरीत स्थिति में रखकर इसी तरह बहि : परासरण (Exo-osmosis) की क्रिया का प्रदर्शन किया जाता है।

तो ये थी जानकारी परासरण क्या है? एवं उसके सिद्धान्त साथ ही हमने परासरण दाब और अन्य परासरण से जुडी जानकारी को देखा, आगे अब हम जानने वाले हैं परासरण का क्या महत्व हैं और साथ ही हम परासरण से जुडी कुछ महत्वपूर्ण सवाल और उनके जवाब को भी देखने वाले हैं 

परासरण का महत्व (Significance of Osmosis)

  1. मूल रोमों द्वारा जल के अणुओं का अवशोषण परासरण द्वारा सम्भव होता है।
  2. परासरण के कारण पादप शरीर में एक कोशिका से दूसरी कोशिका तक जल का संचयन होता है।
  3. पादप के विभिन्न अंग परासरण के द्वारा स्फीत (Tur gid) रहते हैं, जिससे वे अंग (पत्ती आदि) अपना कार्य अच्छी तरह कर सकते हैं तथा कोशिका झिल्ली कोशिका भित्ति के सम्पर्क में रहती है।
  4. परासरण पौधों को दृढ़ता प्रदान करता है, जिससे वह अपने आकार को बनाए रखता है।
  5. रन्ध्रों का खुलना एवं बन्द होना परासरण पर निर्भर करता है।
  6. जड़ के वृद्धिकारी शीर्ष (Growing Apex) परासरण के कारण स्फीत (Turgid) रहकर मृदा के कणों को भेदने में समर्थ रहते हैं। 
इस आर्टिकल में हमने परासरण क्या है? एवं उसके सिद्धान्त (Osmosis Definition,Significance in Hindi) [2022]  के बारे में जाना।

आपसे निवेदन हैं की इस Osmosis Definition,Significance in Hindi [2022]  की जानकारी को अपने दोस्तों के साथ सोशल मीडिया में शेयर जरुर करें | 


परासरण क्या है ? से सम्बंधित FAQs 

1. परासरण कितने प्रकार के होते हैं?

उत्तर - परासरण की क्रिया दो प्रकार की होती है अन्त: परासरण और बहि: परासरण।

2. परासरण क्या है क्लास नाइंथ?

उत्तर - किसी अर्ध-पारगम्य झिल्ली द्वारा जल के अणुओं का अपनी उच्च सांद्रता वाले क्षेत्र से निम्नतर सांद्रता वाले क्षेत्र में भ्रमण करना परासरण कहलाता है।

3. परासरण दाब का सूत्र क्या होता है?

उत्तर - लेकिन हम जानते है कि C = n/V जहाँ n विलेय के मोलों की संख्या है तथा V विलयन का आयतन (लीटर में) है।

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पारगम्यता क्या है- प्रकार और सिद्धान्त (What is Permeability - Types and Principles)

पारगम्यता क्या है(pargamyata kya hai)

हेलो दोस्तों, answerduniya.com में आपका स्वागत है, इस आर्टिकल में पारगम्यता(Permeability) क्या हैं?, पारगम्यता के प्रकार और पारगम्यता के सिद्धान्त के बारे में जानने वाले है। पारगम्यता दो शब्दों से मिलकर बना है- 'पार' तथा 'गम्य' पार का अर्थ होता है दूसरी तरफ और गम्य का अर्थ होता है- जाना। किसी वस्तु के एक तरफ से दूसरी तरफ जाने की क्षमता पारगम्यता कहलाती है। विभिन्न परीक्षाओं की दृष्टि से  पारगम्यता एक महत्वपूर्ण टॉपिक है । इसलिए हमें पारगम्यता के बारे में जरुर जानना चाहिए। पारगम्यता के बारे में जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा जरुर पढ़ें।

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पारगम्यता क्या है ?

प्रत्येक जीवित कोशिका का जीव द्रव्य बाहरी ओर से कोशिका झिल्ली (Plasma Membrane) द्वारा घिरी रहती है, जो कि कोशिका के जीव द्रव्य को बाहरी वातावरण से विलग (Separate) रखती है। इसी प्लाज्मा झिल्ली द्वारा जल तथा खनिज लवण कोशिका में प्रवेश करते हैं। झिल्लियों की वह क्षमता जिसके द्वारा वे किसी घुलनशील पदार्थ को अपने में होकर आने जाने देती है, पारगम्यता (Permeability) कहलाती है।

इन्हें पढ़े - परासरण क्या है? एवं उसके सिद्धान्त

पारगम्यता के आधार पर झिल्लियों के प्रकार (Types of Membranes on the basis of Permeability)


इन्हें पढ़े - विसरण एवं परासरण में अंतर


1.अपारगम्य झिल्ली (Impermeable Mem brane) - वह झिल्ली जो विलेय या विलायक में से किसी के भी अणुओं को अपने से होकर आने-जाने नहीं देती है, अपारगम्य झिल्ली (Impermeable Membrane) कहलाती है। उदाहरण— सुबेरिकृत कॉर्क कोशिकाओं की भित्ति ।

2.पारगम्य झिल्ली (Permeable Membrane) - जो झिल्लियाँ अपने में से होकर प्रत्येक पदार्थ (विलायक एवं विलेय के अणुओं) को आने-जाने देती हैं, वे पारगम्य झिल्ली कहलाती हैं। उदाहरण- सेल्युलोज की बनी पादपों की कोशिका भित्ति । 

3.अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semi Permeable Mem brane) - वे झिल्लियाँ जो अपने में से केवल विलायक के अणुओं को ही आने-जाने देती हैं अर्थात् विलेय के अणुओं का आवागमन नहीं होने देती हैं, अर्द्धपारगम्य झिल्ली (Semi Permeable Membrane) कहलाती हैं । उदाहरण—अण्डे की झिल्ली।

4.चयनात्मक या वरणात्मक पारगम्य झिल्ली (Selectively or Differentially Permeable Mem brane) - झिल्ली का वह प्रकार जो विलायक के अणुओं के साथ कुछ चयनित विलेयों को भी आर-पार जाने देती हैं, विभेदक पारगम्य या चयनात्मक पारगम्य या वरणात्मक पारगम्य झिल्ली कहलाती हैं। उदाहरण—कोशिका झिल्ली (Cell Membrane), रिक्तिका की झिल्ली (Tonoplast), कोशिकांगों की झिल्लियाँ (Membranes of Cell Organelles) ।

पारगम्यता के सिद्धान्त (Theories of Permeability)- 

पारगम्यता प्लाज्मा झिल्ली की लाक्षणिक विशेषता है, इसकी व्याख्या के लिए दिये गए विभिन्न सिद्धातों में कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं – 

(1) द्वव- मोजैक सिद्धान्त ( Fluid mosaic Theory ) – यह सिद्धान्त नेथन्सान (Nathanson1904) के द्वारा प्रस्तुत किया गया। इसके अनुसार प्लाज्मा झिल्ली लिपिड एवं प्रोटीन के मोजैक के रूप में होती है तथा लिपिड से संबंधता (affinity) प्रदर्शित करने वाले अणु प्लाज्मा झिल्ली के लिपोइडल क्षेत्र (Lipoidal area ) से कोशिका में प्रवेश करते हैं जबकि लिपिड में अघुलनशील पदार्थ प्लाज्मा झिल्ली के प्रोटीनस (Proteinous ) भाग से प्रवेश करते हैं ।


इन्हें पढ़े - परासरण सिद्धान्त क्या हैं?


सिंगर एवं निकोल्सन (Singer & Nicolson, 1972) नामक वैज्ञानिकों के अनुसार, प्लाज्मा झिल्ली की विभेदकीय पारगम्यता (deferential permeability) लिपिड एवं • प्रोटीन, प्रोटीन एवं प्रोटीन तथा लिपिड एवं लिपिड के अणुओं की अंतःक्रियाओं पर निर्भर करता है। कोशिका झिल्ली में उपस्थित आन्तर प्रोटीन (integral protein) आयनों आदि के स्थानान्तरण के समय वाहक (Carrier) एवं एन्जाइम (enzyme) की भाँति कार्य करते हैं।

(2) कोलॉइडल सिद्धान्त (Colloidal Theory) - इस सिद्धान्त के अनुसार कोशिकाद्रव्य (Protoplasm) एवं उनकी प्लाज्मा कला (Plasma membrane) एक पॉलिफेजिक कोलॉइडल तंत्र (Polyphasic colloidal system) के रूप में होती हैं तथा विभिन्न पदार्थों का प्लाज्माकला में प्रवेश कोलॉइडल तंत्र (Colloidal System) की अवस्थाओं में परिवर्तन पर निर्भर करता है। इस सिद्धान्त के अनुसार प्लाज्मा झिल्ली की श्यानता अवस्था (viscosity) प्रतिलोमन एवं विद्युतीय क्रियायें (Electrical reactions) ही कोशिका झिल्ली की पारगम्यता में परिवर्तन के लिए उत्तरदायी होते हैं। 

(3) सूक्ष्मछनन सिद्धान्त (Ultrafiltration theory ) - हॉफमैन (Hoffinan, 1925) के अनुसार कोशिका झिल्ली में अत्यंत सूक्ष्म छिद्र पाए जाते हैं जो कि एक चालिनी (Sieve) या पराछननी (ultrafilter) की तरह कार्य करते हैं। यह छिद्र ग्लूकोज के अणुओं को सुक्रोज के अणुओं की अपेक्षा अधिक तीव्रगति से आर-पार आने-जाने देते हैं। छिद्रों का आकार उसके चारों ओर उपस्थित दशाओं के आधार बनते रहता है।

(4) इलेक्ट्रोकैपिलरी सिद्धान्त (Electrocapillary Theory) - मिकेलिस (Michaelis) तथा लॉयड (Lioyd) जैसे वैज्ञानिकों का मानना है कि कोशिका झिल्ली में उपस्थित सूक्ष्म छिद्रों के चारों ओर आवेशित झिल्ली-प्रोटीन के समूह (charged group of membrane proteins) पाये जाते हैं। धनावेशित कण (Positively charged particles) ऋणावेशित छिद्रों के द्वारा कोशिका झिल्ली से होकर प्रवेश करते हैं जबकि ऋणावेशित कण धनावेशित छिद्रों के द्वारा प्रवेश करते हैं। इसी प्रकार नॉन- इलेक्ट्रोलाइट्स (non electrolytes) के अणु प्लाज्माकला में तभी प्रवेश कर पाते हैं जबकि उनके अणुओं का आकार प्लाज्माकला में उपस्थित छिद्रों की अपेक्षाकृत छोटा होता है।

ऊपर आपने पारगम्यता(Permeability) क्या हैं?पारगम्यता(Permeability) के प्रकार साथ ही  पारगम्यता के सिद्धान्त के बारे में भी जाना।

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पारिस्थितिक तंत्र- संरचना , घटक और विशेषताएं (Ecosystem - Structure, Components and Characteristics)

studypointandcareer.com में आपका स्वागत है। आज के इस आर्टिकल में हम पारिस्थितिक तंत्र की संरचना(structure of ecosystem) और  पारिस्थितिक तंत्र  के घटक साथ पारिस्थितिक तंत्र के कार्यों को भी जानेंगे और हम आपको बता दें की पारिस्थितिक तंत्र विशेषताएं को विस्तार से इस आर्टिकल से जानने वाले है 

"वातावरण में भिन्न-भिन्न प्रकार के जीव पाए जाते हैं। सभी जीव, अपने चारों ओर के वातावरण से प्रभावित होते हैं। साथ ही सभी जीव अपने वातावरण के साथ एक विशिष्ट तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।"

पारिस्थितिक तंत्र- संरचना , घटक और विशेषताएं  (Ecosystem - Structure, Components and Characteristics)

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पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem)- कोई भी जीव कभी भी अकेले नहीं रहता, बल्कि वह जीवीय समुदाय के रूप में रहता है और समुदाय के जीव अपने वातावरण के विभिन्न जीवीय तथा अजीवीय घटकों से क्रियात्मक रूप से जुड़े रहते हैं अर्थात् जीवीय समुदाय और वातावरण के विभिन्न घटकों के बीच जटिल क्रियाएँ होती रहती हैं। इन क्रियाओं के कारण ही वातावरण की संरचना हमेशा बदलती रहती है। इसी कारण वातावरण गतिशील (Dynamic ) रहते हैं रचना एवं कार्य की दृष्टि से समुदाय (या विभिन्न जीवों) और वातावरण की मिली जुली इकाई को परितंत्र या पारिस्थितिक तंत्र (Ecosystem or Ecological System) कहते हैं।

परितंत्र शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग टेंसले (Tansley, 1935) ने किया था। टेंसले के अनुसार “वातावरण एवं उनमें उपस्थित जैविक तथा अजैविक घटकों की अन्तक्रियाओं के फलस्वरूप बनने वाले तंत्र को ही पारिस्थितिक तंत्र कहते हैं।"

ऊपर हमने जाना पारिस्थितिक तंत्र क्या है? पारिस्थितिक तंत्र शब्द का प्रयोग सबसे पहले किसने किया  इसकी भी जानकारी ऊपर दिया गया है साथ ही नीचे पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार को विस्तार से बताया गया है.

पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार (Types of the Ecosystem) :- 

पृथ्वी में उपस्थित समस्त पारिस्थितिक तंत्रों को उनकी उत्पत्ति के आधार पर दो समूहों में बाँटा गया है 

1. प्राकृतिक पारितंत्र (Natural Ecosystem) प्राकृतिक रूप से अपने आप बढ़ाने तथा नियंत्रण होने वाले परितंत्रों को प्राकृतिक पारितंत्र कहते हैं। इसके विकास में मनुष्य का दखल नहीं के बराबर होता है। 

आवास के आधार पर विश्व के प्राकृतिक पारितंत्र को दो समूहों में रखते हैं 

(A) स्थलीय पारितंत्र(Terrestrial Ecosystem)- इस प्रकार के पारितंत्र स्थल पर बनते हैं। प्रमुख स्थलीय पारितंत्र निम्न हैं 

  • घास स्थलों का पारितंत्र (Grassland ecosystem)
  • वन पारितंत्र (Forest ecosystem)
  • मरुस्थलीयं पारितंत्र (Desert ecosystem) 
  • पहाड़ी पारितंत्र (Hilly ecosystem) 


Ecosystem - Structure, Components and Characteristics

2. कृत्रिम परितंत्र (Artificial Ecosystem) इस पारितन्त्र का निर्माण मनुष्य स्वयं अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए करता है। इस कारण इसे मानव निर्मित पारितंत्र भी कहते हैं। जैसे- फसल पारितंत्र (Agro Ecosystem) और अन्तरिक्ष पारितन्त्र (Space Ecosystem)।

ऊपर हमने पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न प्रकार को जाना अब निचे हम पारिस्थितिक तंत्र की संरचना के बारे में विस्तार से जानेगे |

पारिस्थितिक तंत्र की संरचना एवं घटक (STRUCTURE AND COMPONENTS OF ECOSYSTEM):- 

संरचना की दृष्टि से प्रायः सभी पारितंत्र एक ही जैसे होते हैं, केवल उनके सदस्य वातावरण के अनुसार बदल जाते हैं। पारिस्थितिक तंत्र जिन वस्तुओं का बना होता है, उन्हें पारिस्थितिक घटक (Ecological Component) कहते हैं, लेकिन वातावरण का वह भाग या परिवर्तन जो पारिस्थितिक तंत्र  को किसी न किसी रूप में प्रभावित करता है, पारिस्थितिक कारक (Ecological factor) कहलाता है। वैसे तो इन दोनों में सूक्ष्म अन्तर होता है, परन्तु अधिकांश घटक, कारक तथा अधिकांश कारक, घटक भी होते हैं।

1. क्रियात्मक घटक (Functional component) प्रसिद्ध पारिस्थितिकी वैज्ञानिक ओडम (Odum) के अनुसार, प्रत्येक परितंत्र कार्यात्मक दृष्टि से निम्नलिखित दो घटकों से बना होता है 

(A) स्वपोषी घटक (Autotrophic Components)-इनके अन्तर्गत पारितंत्र के वे घटक आते हैं, जो भोजन स्वयं बनाते हैं, सभी हरे पौधे इसका उदाहरण हैं। 

(B) परपोषी घटक (Heterotrophic Components)-इनके अन्तर्गत पारितंत्र के वे घटक आते हैं, जो अपना भोजन स्वयं न बनाकर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पौधों से प्राप्त करते हैं। 

2. संरचनात्मक घटक (Structural Components) संरचनात्मक रूप से ये भी पारितंत्र दो घटकों का बना होता है

(A) अजीवीय घटक (Abiotic Components) पारिस्थितिक तंत्र में पाये जाने वाले निर्जीव पदार्थों या घटकों को इस वर्ग में रखते हैं। प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा तथा रासायनिक पदार्थों (कच्चा माल) का होना आवश्यक है। ऊर्जा सूर्य से मिलती है तथा रासायनिक पदार्थ पृथ्वी से प्राप्त होते हैं। ऊपर वर्णित दोनों पदार्थ मिलकर पारिस्थितिक तंत्र का भोजन बनाते हैं, जिससे पारिस्थितिक तंत्र को ऊर्जा मिलती है। पारिस्थितिक तंत्र में पाये जाने वाले अजीवीय घटकों को तीन भागों में बाँट सकते हैं

(i) कार्बनिक पदार्थ-जैसे-कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, प्रोटीन, आदि। ये ही पदार्थ पारिस्थितिक तंत्र को ऊर्जा देते हैं। 

(ii) अकार्बनिक पदार्थ-जैसे-ऑक्सीजन नाइट्रोजन, जल, कैल्सियम, फॉस्फोरस, लोहा, आदि ये पदार्थ कार्बनिक पदार्थों को बनाने में सहायता देते हैं। ये पदार्थ कभी भी तंत्र से खत्म नहीं होते, बल्कि इनका नियमित चक्र चलता रहता है, जिससे इनकी मात्राएँ प्रकृति में एक सी बनी रहती हैं। 

(iii) जलवायवीय-तापक्रम, वर्षा तथा पहाड़ आदि इस वर्ग में आते हैं, जो किसी स्थान के वातावरण को निर्धारित करते हैं।

(B) जीवीय घटक (biotic Components)-किसी भी पारिस्थितिक तंत्र जीवी य सदस्यों को इस श्रेणी में रखते हैं। जीवीय घटकों को मुख्य रूप से तीन भागों में बाँटा गया है 

(i) उत्पादक (Producer)-इसमें वे जीव आते हैं, जो साधारण अकार्बनिक पदार्थों से सूर्य की प्रकाश ऊर्जा की सहायता से प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा जटिल पदार्थों का निर्माण करते हैं। ये प्राथमिक या मूल उत्पाद कहलाते हैं, क्योंकि पारिस्थितिक तंत्र में पाये जाने वाले सभी जीव इन्हीं से अपना भोजन प्राप्त करते हैं। इस क्रिया में बने ऑक्सीजन, निकलकर वायुमण्डल में चली जाती है तथा सभी जीवधारियों के श्वसन में काम आती है।

(ii) उपभोक्ता (Consumers)-इसमें वे जीव आते हैं, जो हरे पौधे या उनके द्वारा एकत्रित भोज्य पदार्थों का उपयोग करते हैं। 

उपभोक्ताओं को निम्न तीन भाग में बाँटा गया है – 

(a) प्राथमिक उपभोक्ता (Primary Consumers) इसमें वे जीव आते हैं, जो वनस्पतियों उनके अन्य किसी भाग को खाते हैं। जैसे-भेड़, बकरी, घोड़ा, टिड्डे, या सभी शाकाहारी जन्तु। 

(b) द्वितीयक उपभोक्ता (Secondary Consumers) -इसमें वे जीव आते हैं, जो शाकाहारी जन्तुओं (प्राथमिक उपभोक्ता) को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं। जैसे-भेड़ियाँ, मोर, श्रृंगाल, लोमड़ी।

(c) तृतीयक उपभोक्ता (Tertiary Consumers) इसमें वे जीव आते हैं, जो द्वितीय वर्ग के उपभोक्ताओं (मांसाहारी) को खा जाते हैं। इस वर्ग को सर्वश्रेष्ठ उपभोक्ता भी कहते हैं। जैसे-साँप, शेर, बाघ, चीता। 

(iii) अपघटक (Decomposers)-इस वर्ग में मुख्य रूप से जीवाणुओं तथा कवकों को रखा गया है, जो मरे हुए उत्पादकों तथा उपभोक्ताओं को सड़ाकर साधारण भौतिक तत्वों में बदल देते हैं, जो फिर से वातावरण में मिल जाते हैं, जिन्हें पुनः हरे पौधे अवशोषित करके सूर्य के प्रकाश में भोजन के रूप में परिवर्तित कर देते हैं। इन पौधों को प्राथमिक उपभोक्ता खाते हैं। इस प्रकार प्रत्येक पारिस्थितिक तंत्र में यह चक्र चलता रहता है तथा इस तंत् का प्रत्येक जीव एक-दूसरे पर निर्भर रहता है।

पारिस्थितिकी तंत्र की विशेषताएं:-

  • पारिस्थितिकी तंत्र संरचित तथा सुसंगठित तंत्र होता है। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र जीवमंडल में एक सुनिश्चित क्षेत्र धारण करता है। 
  • पारिस्थितिकी तंत्र प्राकृतिक संसाधन होते हैं

तो दोस्तों ये थी पारिस्थितिक तंत्र के बारे में विस्तार से जानकारी, साथ ही हमने जाना पारिस्थितिक तंत्र के प्रकार, घटक, संरचना एवं विशेषताए | रोजाना इसी तरह ऐसे और भी जानकरी भरे पोस्ट के लिए हमारे वेबसाइट answerduniya.com पर विजिट करते रहिये।

आशा करता हूँ कि पारिस्थितिक तंत्र की यह जानकारी आपके लिए उपयोगी साबित होगी, अगर आपको पोस्ट पसंद आये तो पोस्ट को शेयर जरुर करें।

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